आरबीआई/2019-20/140
डीपीएसएस.सीओ.ओडी.सं.1328/06.08.005/2019-20
10 जनवरी 2020
अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यकारी अधिकारी
प्राधिकृत भुगतान प्रणाली परिचालक / बैंक
महोदया / महोदय
भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अंतर्गत प्राधिकृत भुगतान प्रणाली
परिचालकों /बैंकों पर मौद्रिक दंड अधिरोपित करने के लिए फ्रेमवर्क
कृपया भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के दिनांक 20 अक्तूबर 2016 के परिपत्र डीपीएसएस.सीओ.ओडी.सं.1082/06.08.005/2016-17 का संदर्भ लें, जिसके अंतर्गत मौद्रिक दंड अधिरोपित करने के लिए फ्रेमवर्क तथा भुगतान और निपटान प्रणाली (पीएसएस) अधिनियम, 2007 की क्रमशः धारा 30 और धारा 31 के अंतर्गत उल्लंघनों / अपराधों की कंपाउंडिंग के बारे में सूचित किया गया था।
2. प्रौद्योगिकी को अधिक से अधिक अपनाने, भुगतान उत्पादों की उपलब्धता, अधिक गैर-बैंक प्रतिभागियों का प्रवेश, विमध्यस्थीकरण, कारोबार में उल्लेखनीय वृद्धि, आदि के साथ भुगतान प्रणाली परिदृश्य के घटनाक्रमों में तेजी से परिवर्तन आया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भुगतान प्रणाली सुरक्षित है और विभिन्न हितधारक विनियामक अपेक्षाओं के अनुरूप हैं, समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है कि भुगतान प्रणाली परिचालकों पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिरोपित किए जाने वाले दंड की प्रक्रिया को संशोधित किया जाए।
3. वर्तमान फ्रेमवर्क में किए गए परिवर्तनों को दर्शाने वाली एक सारणी अनुबंध 1 में प्रस्तुत की गई है; संशोधित फ्रेमवर्क की प्रमुख विशेषताएं अनुबंध 2 में दी गई गई हैं। संशोधित फ्रेमवर्क निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता पर ही केंद्रित है। यह उल्लेखनीय है कि इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत की गई कार्रवाई देश के किसी भी अन्य कानून पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी।
भवदीया
(रजनी प्रसाद)
प्रभारी महाप्रबंधक
संलग्नक : यथोक्त
अनुबंध 1
(डीपीएसएस.सीओ.ओडी.सं.1328/06.08.005/2019-20 दिनांक 10 जनवरी 2020)
भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अंतर्गत प्राधिकृत भुगतान प्रणाली परिचालकों /बैंकों पर मौद्रिक दंड अधिरोपित करने के लिए फ्रेमवर्क – विद्यमान फ्रेमवर्क की तुलना में संशोधित फ्रेमवर्क
| क्र.सं. |
विषय |
वर्तमान फ्रेमवर्क
(20 अक्तूबर 2016 का परिपत्र) |
संशोधित फ्रेमवर्क
(दिनांक 10 जनवरी 2020 का परिपत्र) |
| 1. |
जुर्माना अधिरोपित करने और कंपाउंड करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की शक्तियां |
जुर्माना अधिरोपित करने और उल्लंघनों को कंपाउंड करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की शक्तियों का उल्लेख किया गया है; उल्लंघन / अतिक्रमण का प्रकार जिसके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के पास जुर्माना अधिरोपित करने और कंपाउंड करने की शक्तियां निहित हैं, उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाया गया है। |
भारतीय रिज़र्व बैंक के पास कतिपय उल्लंघनों के मामले में दंड अधिरोपित करने के साथ-साथ कतिपय उल्लंघनों को कंपाउंड करने की शक्तियां हैं। उल्लंघन का प्रकार /प्रकृति जिसके लिए दंड अधिरोपित और कंपाउंड किया जा सकता है, वे अलग-अलग और भिन्न हैं। पालन की जाने वाली प्रक्रिया के साथ इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। |
| 2. |
मौद्रिक दंड / जुर्माना अधिरोपित करने के लिए प्रक्रिया |
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा पहचान किए गए उल्लंघनों के साथ-साथ उल्लंघनों की कंपाउंडिंग के मामले में मौद्रिक दंड/जुर्माना अधिरोपित करने की एकल प्रक्रिया । |
दंड अधिरोपित करने और उल्लंघनों को कंपाउंड करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की शक्तियां भिन्न हैं, और इसके अलावा उल्लंघनों की पहचान करने की प्रकृति भी भिन्न है, इस बात को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग प्रक्रियाओं को प्रस्तावित किया गया है। |
| 3. |
जुर्माना अधिरोपित करने और उल्लंघनों को कंपाउंड करने के लिए शक्तियों का प्रत्यायोजन |
शक्तियों के प्रत्यायोजन या नामित प्राधिकारी के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। |
आरबीआई द्वारा पहचान किए गए उल्लंघनों और उल्लंघनों को कंपाउंड करने के संबंध में मौद्रिक दंड अधिरोपित करने की शक्तियों को पृथक किया गया है। |
| 4. |
कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी करना |
यदि भारतीय रिज़र्व बैंक उल्लंघनकर्ता द्वारा प्रस्तुत स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है, तो कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी किया जाएगा। इसके मामले पर निर्णय लेने के लिए विभिन्न मापदंडों पर विचार करने की कोई पद्धति नहीं है। |
एससीएन (कारण बताओ नोटिस) जारी करने का निर्णय कुछ मापदंडों के आधार पर होगा जो एक स्कोरिंग मैट्रिक्स में क्रम से वर्णित किए गए हैं। |
| 5. |
उल्लंघन की प्रकृति के आधार पर कार्रवाई |
ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं। |
इस पर निर्भर करेगा कि क्या उल्लंघनों का परिमाण निर्धारित किया जा सकता है अथवा नहीं। |
| 6. |
मौद्रिक दंड की राशि |
परिमाण निर्धारित किए जा सकने वाले उल्लंघनों के लिए - रुपये 5 लाख का न्यूनतम दंड।
परिमाण निर्धारित न किए जा सकने वाले उल्लंघनों के लिए - न्यूनतम रुपये 5 लाख से अधिकतम रुपये 1 करोड़ का दंड। |
अधिरोपित की जाने वाली दंड राशि तय करने के लिए विषयनिष्ठ पद्धति एक स्कोरिंग मैट्रिक्स में क्रम से वर्णित है और इसमें अननुपालन के लिए कार्रवाई भी शामिल है। |
| 7. |
उल्लंघनों के प्रकार जिन्हें कंपाउंड किया जा सकता है |
सभी उल्लंघनों को कंपाउंड किया जा सकता है। |
पीएसएस अधिनियम, 2007 की धारा 26, जिसकी उपधारा 2 से संबंधित अपराधों को छोड़कर, में उल्लिखित सभी अपराधों को कंपाउंड किया जा सकता है।
सभी पात्र उल्लंघन, चाहे वे परिमाण निर्धारित किए जा सकने वाले अथवा परिमाण निर्धारित न किए जा सकने वाले प्रकृति के हों, कंपाउंड किए जाएंगे। |
अनुबंध 2
(डीपीएसएस.सीओ.ओडी.सं.1328/06.08.005/2019-20 दिनांक 10 जनवरी 2020)
भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अंतर्गत प्राधिकृत भुगतान
प्रणाली परिचालकों /बैंकों पर मौद्रिक दंड अधिरोपित करने के लिए फ्रेमवर्क
1. अपराध और दंड
1.1 भुगतान और निपटान प्रणाली (पीएसएस) अधिनियम, 2007 की धारा 26 में निम्नलिखित गतिविधियों को अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनके लिए कारावास या अर्थदण्ड अथवा दोनों ही दंड दिये जा सकते हैं:
(i) आरबीआई से प्राधिकरण प्राप्त किए बिना भुगतान प्रणाली का परिचालन;
(ii) जिन निबन्धन और शर्तों के आधार पर प्राधिकरण प्रदान किया गया था उनका अनुपालन करने में विफल होना;
(iii) प्राधिकरण के लिए किसी भी आवेदन अथवा रिटर्न अथवा अन्य दस्तावेजों में जानबूझकर सूचना में गलत विवरण प्रस्तुत कराना अथवा जानबूझकर कोई ठोस विवरण प्रस्तुत न करना;
(iv) कोई भी विवरण, सूचना, रिटर्न अथवा दस्तावेज उपलब्ध कराने में विफल रहना;
(v) किसी निषिद्ध सूचना का खुलासा;
(vi) भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्देशों का अननुपालन अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिरोपित अर्थदण्ड का भुगतान करने में विफल रहना; तथा
(vii) अधिनियम के किसी भी प्रावधान अथवा उसके अंतर्गत बनाए गए किसी भी विनियम, आदेश अथवा निर्देश का उल्लंघन, जिसके संबंध में कोई भी दंड निर्दिष्ट नहीं किया गया है।
2. जुर्माना अधिरोपित करने से संबंधित भारतीय रिज़र्व बैंक की शक्तियां
2.1 भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 की धारा 30 के अंतर्गत, आरबीआई को अधिनियम की धारा 26 (2) और 26 (6) में वर्णित उल्लंघनों/चूकों की प्रकृति के मामले में ₹5 लाख तक का दंड अथवा वैसे किसी उल्लंघन में शामिल राशि से दुगनी राशि अथवा चूक जिसमें वैसी राशि का परिमाण निर्धारित किया जा सकता है, जो भी अधिक हो, अर्थदण्ड अधिरोपित करने की शक्ति प्राप्त है। इसके अलावा, यदि वैसा उल्लंघन अथवा चूक निरंतर होता रहता है तो पहले उल्लंघन/चूक के बाद होने वाले प्रत्येक उल्लंघन/चूक के लिए ₹25,000/-प्रति दिन तक का अतिरिक्त अर्थदण्ड अधिरोपित किया जा सकता है।
3. अपराधों को कंपाउंड करने संबंधी आरबीआई की शक्तियां
3.1 भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम की धारा 31 आरबीआई को अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराधों से संबंधित किसी भी उल्लंघन को कंपाउंड करने का अधिकार प्रदान करता है, जो कि एक ऐसा अपराध न हो जिसके लिए कैद / कैद और जुर्माना की सजा का प्रावधान है।
4. देश में भुगतान परिदृश्य की निरंतर उन्नति और विकास की बढ़ती गति के साथ, तकनीकी विकास का लाभ उठाने वाले गैर-बैंक भागीदारों के प्रवेश सहित, और इसके परिणामस्वरूप सुरक्षित, सुदृढ़ और सक्षम भुगतान प्रणालियों को सुनिश्चित करने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अर्थदंड अधिरोपित करने की संपूर्ण प्रक्रिया की समीक्षा करने की जरूरत महसूस की गई, जिससे कि आरबीआई के विभिन्न निर्देशों और विनियमों के कार्यान्वयन की प्रभावशीलता सुनिश्चित की जा सके।
5. तदनुसार, पूरी प्रक्रिया की समीक्षा की गई है और एक संशोधित फ्रेमवर्क, जैसा कि नीचे दिया गया है, तत्काल प्रभाव से लागू किया जा रहा है।
6 मौद्रिक दंड अधिरोपित करने / किसी उल्लंघन को कंपाउंड करने के सिद्धांत
6.1 किसी उल्लंघन की भौतिकता का निर्धारण करने के लिए निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाएगा, चाहे उनकी पहचान आरबीआई द्वारा की गई हो अथवा उल्लंघनकर्ता से कंपाउंडिंग के लिए आवेदन प्राप्त हुआ हो :
(i) मानदंडों / सीमाओं (आइसोलेटेड, लोकलाईज्ड, एक्स्टेंसिव, वाइडस्प्रेड) के उल्लंघन के परिमाण के संदर्भ में उल्लंघन की गंभीरता (आइसोलेटेड, लोकलाईज्ड, एक्स्टेंसिव, वाइडस्प्रेड);
(ii) पिछले 5 वर्षों के दौरान समान प्रकृति के उल्लंघन की अवधि और आवृत्ति ;
(iii) उल्लंघन की गंभीरता; विचाराधीन अवधि के दौरान उल्लंघनकर्ता द्वारा निपटाए गए लेनदेनों के कुल मूल्य की तुलना में उल्लंघन में शामिल राशि का प्रतिशत;
(iv) उल्लंघन में शामिल राशि; तथा
(v) गलत / झूठा / अपूर्ण अनुपालन प्रस्तुत करना।
6.2 किसी संस्था पर अधिरोपित किए जाने वाले मौद्रिक दंड की राशि निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाएगा। यह उपर्युक्त पैरा 6.1 के परिणामस्वरूप होगा:
(i) उल्लंघन के परिणामस्वरूप उल्लंघनकर्ता द्वारा उपचित लाभ या अनुचित लाभ की राशि, जहां परिमाण का निर्धारण किया जा सकता है;
(ii) किसी अन्य प्राधिकरण / एजेंसी / राजकोष और / अथवा किसी अन्य बाजार भागीदार को हुए नुकसान की राशि;
(iii) विलंबित / गैर-अनुपालन से उल्लंघनकर्ता द्वारा उपचित मौद्रिक लाभ;
7. आरबीआई द्वारा पहचान किए गए उल्लंघनों के लिए मौद्रिक दंड अधिरोपित करना
(i) उल्लंघनों / अतिक्रमणों की एक सांकेतिक सूची निम्नानुसार है :
ए. आरबीआई को जानबूझकर सूचना में गलत विवरण प्रस्तुत कराना अथवा जानबूझकर कोई ठोस विवरण प्रस्तुत न करना;
बी. विभिन्न सांविधिक / विनियामक रिटर्न / विवरण / दस्तावेज आदि को विलंब से/ नहीं / अपूर्ण / गलत प्रस्तुत करना आदि;
सी. अधिनियम के किसी भी प्रावधान अथवा किसी भी विनियमन, उनके अंतर्गत जारी निर्देशों/अनुदेशों का उल्लंघन;
डी. निवल मालियत संबंधी अपेक्षाओं आदि को बनाए रखने में समस्या;
ई. अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) और धन-शोधन निवारण (एएमएल) मानदंडों का अननुपालन;
एफ. नोडल / निलंब खातों को बनाए रखने में समस्याएं;
जी. पीपीआई से संबंधित लोडिंग, निधि के अंतरण, आदि की सीमाओं का उल्लंघन ;
एच. भारत में भुगतान प्रणाली डाटा को संगृहीत करने में अपर्याप्तता; तथा
आई. निर्देशों / अनुदेशों संबंधी कोई अन्य उल्लंघन – विशिष्ट अथवा सामान्य ।
(ii) दंड अधिरोपित करने हेतु नामित प्राधिकारी
-
परिमाण निर्धारित करने योग्य उल्लंघन के मामले में, वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति नामित प्राधिकारी होगी, जिसमें मुख्य महाप्रबंधक / प्रभारी अधिकारी, भुगतान और निपटान प्रणाली विभाग (डीपीएसएस), केंद्रीय कार्यालय और भारतीय रिज़र्व बैंक के दो अन्य विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे।
-
परिमाण निर्धारित न करने योग्य उल्लंघन के मामले में, एक समिति नामित प्राधिकारी होगी, जिसमें डीपीएसएस के प्रभारी ईडी और आरबीआई के दो अन्य विभागों के मुख्य महाप्रबंधक (सीजीएम समिति) शामिल होंगे।
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आंशिक रूप से परिमाण निर्धारित करने योग्य और आंशिक रूप से परिमाण निर्धारित न करने योग्य उल्लंघनों के लिए सीजीएम समिति नामित प्राधिकारी होगी।
(iii) दंड अधिरोपित करने की प्रक्रिया
(ए) जानकारी मांगना: किसी उल्लंघन के मामले में जानकारी प्राप्त होने पर, आरबीआई उल्लंघनकर्ता से अतिरिक्त जानकारी मांग सकता है।
(बी) स्पष्टीकरण पत्र जारी करना : उल्लंघन की पहचान करने पर, स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने हेतु उल्लंघनकर्ता को एक पत्र जारी किया जाएगा।
(सी) कारण बताओ नोटिस जारी करना (एससीएन) :
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यदि उल्लंघनकर्ता द्वारा प्रस्तुत कारणों/स्पष्टीकरण से भारतीय रिज़र्व बैंक संतुष्ट नहीं है, तो पैरा 6.1 में ऊपर वर्णित मापदंडों के आधार पर एससीएन जारी किया जाए जिसमें उल्लंघनकर्ता को कारण बताने के लिए सूचित किया जाए कि नोटिस में निर्दिष्ट राशि अर्थदण्ड के रूप में क्यों नहीं अधिरोपित की जाए। इस प्रयोजन हेतु, कुछ मापदंडों के आधार पर एक भारित अंक प्राप्त करने के लिए एक मैट्रिक्स तैयार किया गया है।
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उन मामलों में जहां किसी विशिष्ट प्रकार के उल्लंघन के लिए आरबीआई द्वारा पिछले 5 वर्षों के दौरान वैसे उल्लंघनों के अवसर पर किसी उल्लंघनकर्ता को पहले ही एक से अधिक सचेतक / चेतावनी / असंतोष वाले पत्र जारी किए गए हों, समग्र रूप से प्राप्त भारित स्कोर पर ध्यान दिये बिना आगामी अवसर/अवसरों पर एससीएन जारी किया जाएगा ।
(डी) व्यक्तिगत सुनवाई : यदि आरसीएन के जवाब में उल्लंघनकर्ता द्वारा अनुरोध किया गया है, तो उसे सुनवाई का उचित अवसर प्रदान किया जाएगा।
(ई) सकारण आदेश पारित करना : उल्लंघनकर्ता द्वारा प्रस्तुत की गई जानकारी एवं सहायक दस्तावेजों के आधार पर और व्यक्तिगत सुनवाई के दौरान इस संबंध में उनके द्वारा किए गए निवेदनों के आधार पर भी नामित प्राधिकारी सकारण आदेश पारित करेगा।
(iv) मौद्रिक दंड की राशि:
ए. विभिन्न कारकों के प्रभाव पर निर्भर होने के कारण मौद्रिक दंड की राशि अलग-अलग हो सकती है।
बी. किसी उल्लंघन के लिए, जहां राशि का निर्धारण किया जा सके, मौद्रिक दंड की राशि ₹5 लाख अथवा उल्लंघन में शामिल राशि की दुगनी राशि, जो भी अधिक हो, से अधिक नहीं होगी। उल्लंघन का परिमाण निर्धारित नहीं किए जा सकने वाले मामलों में अधिकतम अर्थदण्ड की राशि ₹5 लाख प्रति उल्लंघन होगी।
सी. अर्थदण्ड की राशि के निर्धारण के लिए एक मैट्रिक्स तैयार किया गया है। मामलों की परिस्थितियों के आधार पर वास्तविक राशि भिन्न हो सकती है।
डी. गंभीरता कम करने वाले कारकों पर विचार करने के उपरांत, अर्थदण्ड की राशि समग्र रूप से भारित स्कोर की मात्रा पर निर्भर करते हुए भिन्न हो सकती है, जैसा कि अनुबंध 1 में बताया गया है। वैसे मामले में, जहां अधिरोपित अर्थदण्ड की राशि उल्लंघनकर्ता की अर्थक्षमता को प्रभावित कर सकती हो अथवा अन्यथा गैर-अनुपातिक अथवा अनुचित हो, अथवा यह भी कि जहां न तो प्रभाव का दायरा और न ही उल्लंघन करने का इरादा स्पष्ट रूप से स्थापित हो, नामित प्राधिकारी द्वारा सांविधिक सीमाओं का अनुसरण करते हुए विवेकपूर्ण शक्ति का प्रयोग किया जाए और, या तो दंड को कम करने संबंधी उचित निर्णय लिया जाए अथवा दंड के रूप में उचित राशि अधिरोपित की जाए।
(v) मौद्रिक दंड का भुगतान :
ए. मौद्रिक दंड आदेश की तारीख से तीस दिनों की अवधि के भीतर देय होगा।
बी. अर्थदण्ड राशि के भुगतान में विफल होने की स्थिति में, आरबीआई पीएसएस अधिनियम की धारा 8 अथवा धारा 30 (3) अथवा धारा 33 के अंतर्गत उल्लंघनकर्ता के विरुद्ध यथोचित कार्रवाई शुरू करेगा।
(vi) प्रकटीकरण :
ए. संस्थाएं अपने लेखों से संबंधित टिप्पणियों में, जो मौद्रिक दंड अधिरोपित होने वाले वित्त वर्ष के लिए वार्षिक वित्तीय विवरणियों का हिस्सा हैं, अदा किए गए मौद्रिक दंड के विवरण को प्रकट करेंगे,
बी. आरबीआई अधिरोपित किए गए दंड का खुलासा अपनी वेबसाइट पर करेगा।
8. उल्लंघनों की कंपाउंडिंग
(i) उल्लंघनों / अतिक्रमणों की कंपाउंडिंग के लिए एक सांकेतिक सूची निम्नानुसार है:
ए) आरबीआई द्वारा जारी प्राधिकरण के निबन्धन और शर्तों का पालन करने में विफलता ;
बी) कोई भी विवरण, सूचना, रिटर्न अथवा अन्य दस्तावेजों को आरबीआई के समक्ष प्रस्तुत करने/उपलब्ध कराने अथवा भुगतान प्रणाली के परिचालन से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर में विफलता;
सी) पीएसएस अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत किसी भी निषिद्ध सूचना का प्रकटीकरण;
डी) अधिनियम/विनियमन/आदेश/निर्देशों के अंतर्गत किए गए कतिपय प्रावधानों का अननुपालन / उल्लंघन, जिनके संबंध में अधिनियम में कोई दंड निर्दिष्ट नहीं किया गया है ;
ई) केवाईसी / एएमएल मानदंडों का उल्लंघन;
एफ) विभिन्न सांविधिक / विनियामक रिटर्न / विवरणों / दस्तावेजों आदि को देरी से / नहीं / अपूर्ण / गलत प्रस्तुत करना आदि (धारा 26 की उपधारा 2 के अंतर्गत दंडनीय कृत्य को छोड़कर)
जी) नोडल / निलंब खातों के बनाए रखने में समस्याएं;
एच) पीपीआई की लोडिंग, निधि अंतरण आदि संबंधी सीमाओं का उल्लंघन;
आई) भारत में भुगतान प्रणाली डाटा को संगृहीत करने संबंधी अपर्याप्तता; तथा
जे) दिशानिर्देशों/अनुदेशों से संबंधित कोई भी अन्य उल्लंघन - विशिष्ट या सामान्य ।
(ii) कंपाउंडिंग का प्राधिकार - परिमाण निर्धारित करने योग्य उल्लंघनों की कंपाउंडिंग वाले मामलों में कंपाउंडिंग प्राधिकारी सीजीएम / प्रभारी अधिकारी, डीपीएसएस, केंद्रीय कार्यालय और परिमाण निर्धारित नहीं करने योग्य उल्लंघनों की कंपाउंडिंग वाले मामलों में कंपाउंडिंग प्राधिकारी डीपीएसएस के प्रभारी ईडी होंगे।
(iii) कंपाउंडिंग के लिए पात्रता :
ए) पीएसएस अधिनियम, 2007 की धारा 26 (1), (3), (4), (5) और (6) में उल्लिखित अपराधों वाली प्रकृति के सभी उल्लंघन (परिमाण निर्धारित करने योग्य अथवा परिमाण निर्धारित नहीं करने योग्य) कंपाउंड करने के लिए पात्र हैं।
बी) धन-शोधन, आतंकी वित्तपोषण अथवा राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करने वाले मामले आरबीआई द्वारा कंपाउंड नहीं किए जाएंगे।
सी) पात्र उल्लंघनों की कंपाउंडिंग के लिए प्रस्तुत किए गए आवेदन आरबीआई द्वारा स्वीकार किए जाएंगे, भले ही वे किसी भी न्यायालय (आरबीआई द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर) में लंबित हैं ।
डी) आरबीआई द्वारा कंपाउंड किए गए किसी उल्लंघन के मामले में वैसा उल्लंघन, जिसे कंपाउंड किया गया है, करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध, जैसा भी मामला हो, कोई कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी अथवा कार्यवाही आगे जारी नहीं रखी जाएगी।
(iv) कंपाउंडिंग के लिए प्रक्रिया :
ए. कंपाउंडिंग आवेदन प्रस्तुत करना : पात्र उल्लंघनों की कंपाउंडिंग की मांग करने वाले किसी उल्लंघनकर्ता को एक आवेदन निर्धारित प्रपत्र (अनुबंध 2) में मुख्य महाप्रबंधक, भुगतान और निपटान प्रणाली विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, मुंबई, को भेजना होगा, जिसमें उल्लंघन के घटित होने से संबंधित तथ्यों एवं परिस्थितियों की जानकारी, संस्था के अंतर्नियम एवं संगम ज्ञापन और हाल के लेखापरीक्षित तुलन-पत्र शामिल होंगे। वह यह वचन-पत्र भी प्रस्तुत करेगा/करेगी कि वे किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसी, जैसे प्रवर्तन निदेशालय, राजस्व आसूचना निदेशालय, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, आदि द्वारा किसी भी जांच / अन्वेषण / अधिनिर्णय के अधीन नहीं हैं।
बी. कंपाउंडिंग आवेदन की जांच : कंपाउंडिंग के लिए आवेदन प्राप्त होने पर, आरबीआई द्वारा इसकी जांच और कंपाउंडिंग प्रक्रिया के लिए इसपर कार्रवाई की जाएगी।
सी. सूचना की मांग करना: उल्लंघन से संबंधित अभिलेख अथवा कोई अन्य दस्तावेज की मांग आरबीआई कर सकेगा।
डी. व्यक्तिगत सुनवाई : उल्लंघनकर्ता को संबंधित कंपाउंडिंग प्राधिकारी द्वारा सुनवाई का, उल्लंघनकर्ता द्वारा इसका विकल्प चुनने अथवा नहीं चुनने के बावजूद भी, उचित अवसर प्रदान किया जाएगा।
ई. कंपाउंडिंग आदेश जारी करना : कंपाउंडिंग प्राधिकारी द्वारा कंपाउंडिंग आवेदन के संबंध में एक आदेश यथाशीघ्र, परंतु संपूर्ण कंपाउंडिंग आवेदन की प्राप्ति की तारीख के 6 माह की अवधि के भीतर, पारित किया जाएगा।
(v) कंपाउंडिंग राशि :
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कंपाउंडिंग राशि की गणना के लिए आधार अर्थदण्ड (के रूप में परिशिष्ट 1 में निर्धारित) के लिए की गई गणना ही होगी (जैसा कि अनुबंध 1 में निर्धारित किया गया है)।
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कंपाउंडिंग राशि गणना की गई राशि (अनुबंध 1 के अनुसार) से 25% कम हो सकती है, जिसे अधिनियम की धारा 30 के अंतर्गत अन्यथा अधिरोपित किया गया होता।
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उल्लंघनों का परिमाण निर्धारित करने योग्य मामले में कंपाउंडिंग राशि ₹ 5 लाख अथवा उल्लंघन में शामिल राशि का दोगुना, जो भी अधिक हो, से अधिक नहीं हो सकती है, जबकि उल्लंघनों का परिमाण निर्धारित नहीं होने योग्य मामले में कंपाउंडिंग राशि ₹ 5 लाख से अधिक नहीं होगी।
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यदि उल्लंघन (5 वर्ष की अवधि के भीतर) बार-बार किया जाता है जिसके संबंध में पहले अवसर पर कंपाउंडिंग की गई है, तो कंपाउंडिंग राशि को गणना की गई राशि से 50 प्रतिशत बढ़ा दिया जाए (अनुबंध 1 के अनुसार) ।
(vi) कंपाउंडिंग राशि का भुगतान :
ए) कंपाउंडिंग के आदेश में निर्दिष्ट राशि का भुगतान आदेश की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर किया जाएगा।
बी) कंपाउंडिंग राशि के भुगतान में विफल होने की स्थिति में, जिसके लिए उल्लंघन को पहले कंपाउंड किया गया था, यह माना जाएगा कि उल्लंघनकर्ता ने पीएसएस अधिनियम के अंतर्गत उल्लंघन हेतु कंपाउंडिंग करने के लिए आवेदन नहीं भेजा था, तथा आरबीआई अधिनियम के अंतर्गत उचित कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगा।
(vii) प्रकटीकरण : आरबीआई अपनी वेबसाइट पर उल्लंघनों की कंपाउंडिंग के लिए संस्था पर अधिरोपित कंपाउंडिंग राशि को सार्वजनिक करेगा । |