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अधिसूचनाएं

दबावग्रस्त आस्तियों के लिए योजनाएं - संशोधन

भारिबैं./2016-17/122
बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.34/21.04.132/2016-17

10 नवंबर 2016

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर),
अखिल भारतीय मीयादी ऋणदात्री और पुनर्वित्त संस्थाएं
(एक्ज़िम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी तथा सिडबी)
प्रतिभूतीकरण कंपनियों/पुनर्निर्माण कंपनियों सहित
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां

महोदय/महोदया,

दबावग्रस्त आस्तियों के लिए योजनाएं - संशोधन

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने दबावग्रस्त आस्तियों से निपटने के लिए ऋणदाताओं का सामर्थ्य बढ़ाने के लिए विभिन्न विनियामक उपाय किए हैं, जैसे दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा, परियोजना ऋणों की लचीली संरचना, कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना, दबावग्रस्त आस्तियों की संवहनीय संरचना के लिए योजना, आदि।

2. उपर्युक्त दिशानिर्देशों में निम्नलिखित उद्देश्यों से परिवर्तन किए गए हैं:

  1. कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना के मामले में लागू ‘ठहराव’ (स्टैंड स्टिल) खंड को अन्य दिशानिर्देशों के साथ सुसंगत बनाना;

  2. वाणिज्यिक परिचालन की शुरुआत करने की अनुमानित तारीख को स्पष्ट करना; तथा

  3. इन साधनों का दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए प्रयोग करने पर प्राप्त अनुभव, और साथ ही, हितधारकों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर तथा निर्माण क्षेत्र की आवश्यकताओं को विचार में लेते हुए कतिपय दिशानिर्देशों में आंशिक संशोधन करना

3. संबंधित योजनाओं के अन्य सभी प्रावधान यथावत् रहेंगे।

भवदीय,

(अजय कुमार चौधरी)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध

अ. दबावग्रस्त आस्तियों की संवहनीय संरचना के लिए योजना

दबावग्रस्त आस्तियों की संवहनीय संरचना के लिए योजना के अंतर्गत ऐसे मामलों में, जहां प्रवर्तकों में कोई परिवर्तन नहीं है, के ऋणों के लिए आस्ति वर्गीकरण मानदंड दिनांक 13 जून 2016 के परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.103/21.04.132/2015-16 के पैरा 9(ख) में निर्धारित किए गए हैं। हितधारकों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर तथा समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया गया है कि योजना के पैरा 9 (ख) (i) तथा (ii) को निम्नानुसार संशोधित किया जाए:

(i) समाधान योजना में निहित क्रियाविधियों की समीक्षा करने हेतु निगरानी समिति को उचित समय देने की आवश्यकता को देखते हुए, इन दिशानिर्देशों के अंतर्गत खाते का समाधान करने संबंधी ऋणदाता के निर्णय की तारीख (संदर्भ तिथि) को आस्ति वर्गीकरण इस तारीख से 180 दिन1 की अवधि तक जारी रहेगा। इस स्टैंडस्टिल खंड को जेएलएफ/संघ/ बैंकों को समाधान योजना बनाने, दिशानिर्देशों के अंतर्गत गठित निगरानी समिति को प्रस्तुत करने तथा कार्यान्वित करने की अनुमति दी गई है। बैंकों को सामान्यत:संदर्भ तिथि से 90 दिन के भीतर समाधान योजना निगरानी समिति को प्रस्तुत कर देनी चाहिए। यह आशा की जाती है कि निगरानी समिति समाधान योजना, आदि बनाने में निहित क्रियाविधियों के औचित्य तथा इन दिशानिर्देशों के प्रावधानों का पालन किए जाने की समीक्षा करेगी तथा उस पर अपना अंतिम मत 45 दिनों की अवधि के भीतर सूचित करेगी। उसके बाद, बैंक अगले 45 दिनों में इस समाधान योजना को कार्यान्वित करेंगे। तथापि, बैंकों को उक्त समय-सीमा के संबंध में 180 दिन की समग्र अवधि के भीतर लचीलापन प्राप्त होगा। यदि इस अवधि के भीतर समाधान योजना को लागू नहीं किया गया तो मौजूदा आस्ति वर्गीकरण मानदंडों के अनुसार यह मानते हुए आस्ति वर्गीकरण किया जाएगा कि ऐसा कोई स्टैंड-स्टिल था ही नहीं। यह स्पष्ट किया जाता है कि स्टैंड-स्टिल खंड केवल आस्ति वर्गीकरण के लिए लागू होता है तथा यदि नियत तिथि से 90 दिन के भीतर ब्याज की चुकौती नहीं की जाती है तो बैंक उपचय के आधार पर आय निर्धारण नहीं करेंगे;

(ii) ऐसे खाते के संबंध में, जो संदर्भ तिथि को 'मानक' हो, संपूर्ण बकाया (भाग क और भाग ख दोनों) को 'मानक' माना जा सकता है, बशर्ते कि ऋणदाताओं द्वारा भाग ख में धारित राशि का कम से कम 40 प्रतिशत अथवा समग्र बकाया राशि (भाग क और ख का जोड़) के 20 प्रतिशत में से जो भी अधिक हो, का पहले से प्रावधान किया जाए। इस प्रयोजन से खाते में पहले से धारित प्रावधानों को मान्यता दी जा सकती है। समाधान योजना को कार्यान्वित करने की तारीख से एक वर्ष के बाद अथवा खाते में पहले से मौजूद दीर्घतम ऋण-स्थगन के पूर्ण होने के एक वर्ष बाद, जो भी बाद में हो, उक्त प्रावधानों का प्रत्यावर्तन कर सकते हैं, बशर्ते कि इस अवधि के दौरान भाग क और भाग ख का कार्यनिष्पादन संतोषजनक रहा हो।

2. योजना के अन्य सभी दिशानिर्देश, जिन्हें यहां विनिर्दिष्ट रूप से संशोधित नहीं किया गया है, अपरिवर्तित रहेंगे।

ख. इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा महत्वपूर्ण उद्योगों को मौजूदा दीर्घावधि परियोजना ऋणों की लचीली संरचना

3. दिनांक 15 जुलाई 2014 के परिपत्र बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.24/21.04.132/2014-15 के अनुसार रिज़र्व बैंक ने इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा महत्वपूर्ण उद्योगों को दीर्घावधि परियोजना ऋणों की लचीली संरचना के लिए दिशानिर्देश जारी किए। उसके बाद, दिनांक 15 दिसंबर 2014 के परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.53/21.04.132/2014-15 के अनुसार बैंकों को इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा महत्वपूर्ण उद्योगों को मौजूदा दीर्घावधि परियोजना ऋणों की लचीली संरचना के लिए अनुमति दी गई।

4. विनिर्दिष्ट क्षेत्रों में दीर्घावधि परियोजना ऋणों की लचीली संरचना पर बैंकों को प्राप्त अनुभव के आधार पर तथा इस सिद्धांत के आधार पर कि ऋणों का चुकौती कार्यक्रम सामान्यत: ऐसे ऋणों से उत्पन्न अंतर्निहित आस्तियों के नकद प्रवाहों के अनुरूप होना चाहिए, अब यह निर्णय लिया गया है कि बैंक निम्नलिखित के संबंध में लचीली संरचना लागू कर सकते हैं:

  1. सभी क्षेत्रों में नए परियोजना ऋण; तथा

  2. मौजूदा परियोजना ऋण, जिनमें सभी संस्थागत ऋणदाताओं का सभी क्षेत्रों में समग्र एक्सपोजर 250 करोड़ रुपये से अधिक हो;

बशर्ते कि संबंधित दिशानिर्देशों में निर्धारित अन्य सभी नियमों और शर्तों का पालन किया जाए।

5. इसके अतिरिक्त, बैंक विभिन्न क्षेत्रों के ऋणों की लचीली संरचना पर एक विस्तृत नीति बनाएंगे, जिसमें उपयोगी आर्थिक जीवनकाल, आस्तियों के आर्थिक जीवनकाल के आधार पर ऋणों की अवधि, पुनर्वित्तीयन तथा आस्ति- देयता प्रबंधन जोखिम आदि संबंधी मानदंड निहित होंगे।

6. बैंक निधिक एक्सपोजरों की लचीली संरचना निर्माण कंपनियों पर, ऐसी कंपनियों द्वारा निष्पादित की जा रही विनिर्दिष्ट परियोजनाओं में पहचानयोग्य परियोजनाओं पर भी लागू कर सकते हैं, जिनमें परियोजना विकासकों द्वारा गारंटियों को लागू करने/ हस्तांतरण के कारण निधिक एक्स्पोजर को शामिल किया जा सकता है। ऐसे निधिक एक्स्पोजरों के लिए संशोधित परिशोधन कार्यक्रम को अंतर्निहित परियोजनाओं के वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ करने की तारीख तक सीमित किया जाएगा। जहां लचीली संरचना ऐसे विद्यमान एक्सपोजरों पर लागू है, वहां सभी संस्थागत ऋणदाताओं का समग्र एक्सपोजर उपर्युक्त पैरा 4 (ख) में दिए गए अनुसार 250 करोड़ से अधिक होगा।

7. साथ ही, बैंक परिशिष्ट में दिए गए फॉर्मेट के अनुसार मौजूदा ऋणों पर लचीली संरचना लागू करने के संबंध में अपने वित्तीय विवरण में वार्षिक प्रकटीकरण करेंगे। इस योजना के अन्य सभी प्रावधान, जिन्हें यहां विनिर्दिष्ट रूप से संशोधित नहीं किया गया है, यथावत् रहेंगे।

ग. कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना

8. यह निर्णय लिया गया है कि दिनांक 08 जून 2015 के परिपत्र बैंविवि.बीपी.बीसी.सं. 101/21.04.132/2014-15 के पैरा xiv)(ख) तथा दिनांक 25 फरवरी 2016 के परिपत्र बैंविवि.बीपी.बीसी.सं. 82/21.04.132/2015-16 के पैरा 7 को निम्नानुसार संशोधित किया जाए:

" नए प्रवर्तकों द्वारा उधारकर्ता कंपनी के चुकता शेयर पूंजी का न्यूनतम 26% अधिग्रहण कर लिया जाना चाहिए, तथा वह उधारकर्ता कंपनी का सबसे बड़ा एकल शेयरधारक होगा। साथ ही, कंपनी अधिनियम, 2013/ भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड/ किसी अन्य लागू विनियमों/ लेखांकन मानकों, जैसा भी मामला हो, में दी गई ‘ नियंत्रण ’ की परिभाषा के अनुसार नया प्रवर्तक उधारकर्ता कंपनी को ‘ नियंत्रण ’ में रखेगा। "

9. यह स्पष्ट किया जाता है कि 'स्टैंड-स्टिल' खंड केवल आस्ति वर्गीकरण पर लागू होता है तथा यदि नियत तिथि से 90 दिनों के भीतर ब्याज की चुकौती नहीं की जाती, तो बैंक उपचित आधार पर आय निर्धारण नहीं करेंगे।

10. बैंक परिशिष्ट में दिए गए फॉर्मेट के अनुसार अपने वार्षिक वित्तीय विवरण में एसडीआर लागू करने संबंधी प्रकटीकरण करेंगे।

11. एसडीआर योजना के अन्य सभी दिशानिर्देश अपरिवर्तित रहेंगे।

घ. उधारकर्ता संस्थाओं के स्वामित्व में परिवर्तन (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) पर विवेकपूर्ण मानदंड

12. दिनांक 24 सितंबर 2015 के परिपत्र बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.41/21.04.048/2015-16 के द्वारा उधारकर्ता संस्थाओं के स्वामित्व में परिवर्तन (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) पर विवेकपूर्ण मानदंड जारी किए गए हैं। हितधारकों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर अब यह निर्णय लिया गया है कि उधारकर्ता संस्थाओं के स्वामित्व में परिवर्तन (ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) पर विवेकपूर्ण मानदंडों की समीक्षा की जाए तथा कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना की तरह इस योजना में आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण अपेक्षाओं में स्टैंड-स्टिल खंड की शुरुआत की जाए। यह संशोधन निम्नानुसार है:

(i) ऊपर बताए गए किसी भी तरीके से स्वामित्व में परिवर्तन के निर्णय को लागू करने को सुप्रलेखित किया जाना चाहिए तथा जेएलएफ सदस्यों द्वारा बहुमत (उधारकर्ताओं का न्यूनतम 75% मूल्य तथा उधारकर्ताओं की 50% संख्या) से अनुमोदित होना चाहिए। जिस तिथि को बैंक स्वामित्व में परिवर्तन का संकल्प पारित करता है, उसे ‘संदर्भ तिथि’ कहा जाएगा;

(ii) जहां बैंक ऋण को इक्विटी/शेयरों कI गिरवी को रखने में संपरिवर्तन के माध्यम से स्वामित्व में परिवर्तन करने का निर्णय लेते हैं, 'संदर्भ तिथि' को खाते का विद्यमान आस्ति वर्गीकरण 'संदर्भ तिथि' से 18 माह की अवधि तक जारी रहेगा, ताकि बैंक स्वामित्व में परिवर्तन की प्रक्रिया को पूर्ण कर सकें। तथापि, जहां लागू हो, बैंक 'संदर्भ तिथि' से 90 दिन के भीतर ऋण से इक्विटी संपरिवर्तन पैकेज को अनुमोदन देंगे। बैंकों द्वारा यथा-अनुमोदित ऋणों का इक्विटी में संपरिवर्तन संघ/जेएलएफ द्वारा संपरिवर्तन पैकेज का अनुमोदन किए जाने की तारीख से 90 दिनों की अवधि के भीतर पूर्ण किया जाएगा। इक्विटी शेयरों के गिरवी को लागू करने के मामले में, इसे 'संदर्भ तिथि' से 180 दिन के भीतर पूर्ण किया जाएगा। यदि 'संदर्भ तिथि' से 180 दिन के भीतर ऋण का इक्विटी में लक्ष्यित संपरिवर्तन/गिरवी इक्विटी शेयरों का अंतरण नहीं किया जाता है, तो स्टैंड-स्टिल का लाभ मिलना बंद हो जाएगा। तब ऋण को मौजूदा आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण मानदंडों के अनुसार इस प्रकार वर्गीकृत किया जाएगा, मानों आस्ति-वर्गीकरण पर कोई स्टैंड-स्टिल उपलब्ध ही नहीं था।

(iii) जहां उधारकर्ता कंपनी द्वारा नए शेयर जारी करके अथवा कंपनी के मौजूदा प्रवर्तक द्वारा अधिग्रहणकर्ता को शेयरों की बिक्री करके स्वामित्व में परिवर्तन किया जाता है, उधारकर्ता कंपनी/मौजूदा प्रवर्तक और नए प्रवर्तक के बीच बाध्यकारी करार2 करने की तारीख को मौजूद आस्ति वर्गीकरण 12 माह की अवधि तक जारी रहेगा ताकि नए शेयर जारी किए जा सकें/ मौजूदा प्रवर्तक से नए प्रवर्तक को शेयरों का हस्तांतरण किया जा सके।

(iv) ठहराव (स्टैंड-स्टिल) की समाप्ति (18 या 12 माह, जैसा भी मामला हो) पर यदि नए प्रवर्तकों के पक्ष में स्वामित्व का अंतरण नहीं होता है, तो आस्ति वर्गीकरण मौजूदा आस्ति वर्गीकरण मानदंडों के अनुसार होगा, यह मानते हुए कि आस्ति वर्गीकरण में उपर्युक्त स्टैंड-स्टिल दिया ही नहीं गया। यह स्पष्ट किया जाता है कि स्टैंड-स्टिल उपनियम केवल आस्ति वर्गीकरण पर लागू होता है तथा यदि नियत तिथि से 90 दिन के भीतर ब्याज की चुकौती नहीं की जाती, तो बैंक उपचित आधार पर आय निर्धारण नहीं करेंगे।

क) एसडीआर पर लागू अन्य सभी अनुदेश उन मामलों पर भी लागू होंगे, जहां बैंक उधारकर्ता संस्थाओं (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) के स्वामित्व में परिवर्तन का निर्णय लेता है।

ख) बैंक सतर्क रहेंगे तथा केवल ऐसे मामलों में स्वामित्व (एसडीआर के अधीन वाले सहित) के परिवर्तन पर विचार करेंगे, जहां स्वामित्व में परिवर्तन से आस्ति के आर्थिक मूल्य में सुधार होने तथा उनकी देयताओं की वसूली होने की संभावना हो।

13. बैंक परिशिष्ट में दिए गए फॉर्मेट के अनुसार उन खातों के संबंध में प्रकटीकरण करेंगे, जहां एसडीआर योजना के बाहर स्वामित्व में परिवर्तन लागू किया जा रहा है।

14. एसडीआर योजना के बाहर के अन्य सभी दिशानिर्देश अपरिवर्तित रहेंगे।

ङ. अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधान करने से संबंधित मानदंड – कार्यान्वयन के अधीन परियोजनाएं- स्वामित्व में परिवर्तन

15. कार्यान्वयन के अधीन ऐसी परियोजनाओं के संबंध में, जहां स्वामित्व में परिवर्तन किया गया है दिनांक 06 अप्रैल 2015 के परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी. बीसी.84/21.04.048/2014-15 के पैरा (vi) के आंशिक संशोधन में यह निर्णय लिया गया है कि 'संदर्भ तिथि' को खाते का आस्ति वर्गीकरण उक्त परिपत्र में यथा-निर्धारित बढ़ाई गई अवधि के दौरान जारी रहेगा। इस प्रयोजन से 'संदर्भ तिथि' लेनदेन करने वाले पक्षों के बीच बाध्यकारी करार करने की तारीख होगी, बशर्ते कि ऐसे अधिग्रहण/कब्जे का अभिशासन करने वाले कानूनों/ विनियमावलियों के प्रावधानों के अनुसार स्वामित्व का अधिग्रहण/ कब्जा लेने का कार्य ऐसे बाध्यकारी करार के निष्पादन की तारीख से 12 माह की अवधि में पूर्ण किया जाए। साथ ही, स्वामित्व में परिवर्तन पर अन्य दिशानिर्देशों के अनुरूप, उक्त 12 माह की अवधि के दौरान आस्ति वर्गीकरण में ठहराव (स्टैंड-स्टिल) रहेगा। यदि बाध्यकारी करार की तारीख से 12 माह की अवधि के भीतर स्वामित्व में परिवर्तन पूर्ण नहीं किया जाता, तो आस्ति वर्गीकरण मौजूदा आस्ति वर्गीकरण मानदंडों के अनुसार होगा, यह मानते हुए कि आस्ति वर्गीकरण में उपर्युक्त स्टैंड-स्टिल दिया ही नहीं गया।

च. कार्यान्वयन के अधीन परियोजनाओं को ऋण- वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ करने की तारीख (डीसीसीओ)

16. दिनांक 01 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र - अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड के पैरा 4.2.15 में निहित मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार वित्तीय संस्थाओं/ बैंकों द्वारा वित्तपोषित सभी परियोजनाओं के लिए ‘परियोजना के पूर्ण होने की तारीख’ तथा ‘वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ करने की तारीख (डीसीसीओ)’ को परियोजना के वित्तीय समापन के समय स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए तथा उसका औपचारिक रूप से प्रलेखीकरण भी किया जाना चाहिए। इन दिशानिर्देशों में कतिपय शर्तों के अधीन आस्ति वर्गीकरण का दर्जा घटाए बिना डीसीसीओ के आस्थगन तथा इसके परिणामस्वरूप चुकौती कार्यक्रम में समान या कमतर अवधि के परिवर्तन (संशोधित चुकौती कार्यक्रम के प्रारंभ की तारीख और अंत की तारीख सहित) की अनुमति भी दी गई है।

17. भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी निर्माण अवधि के दौरान व्यय के ट्रीटमेंट के लिए मार्गदर्शी नोट के साथ पठित लेखांकन मानक 16 के अनुरूप दिनांक 01 जुलाई के मास्टर परिपत्र - अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड के पैरा 4.2.15 में निहित कार्यान्वयन के अधीन परियोजना पर दिशानिर्देशों के प्रयोजन से कोई परियोजना, जिसकी विभिन्न स्वतंत्र इकाइयों ने निम्नलिखित शर्तों के अधीन उस तारीख से वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ किया माना जा सकता है, जब मूल रूप से परिकल्पित क्षमता के 50 प्रतिशत (या उससे अधिक) का प्रतिनिधित्व करने वाली स्वतंत्र इकाइयों ने इस प्रकार अंतिम आउटपुट का वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ कर दिया हो, जैसा कि मूल रूप से परिकल्पित था:

क) मूल रूप से परिकल्पित क्षमता में से शेष 50 प्रतिशत (या उससे कम) का प्रतिनिधित्व करने वाली इकाइयां वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ करने की मानी गई तारीख से अधिकतम एक वर्ष की अवधि के भीतर वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ करेंगी।

ख) परियोजना की वाणिज्यिक अर्थक्षमता का असंदिग्ध रूप से पुनर्मूल्यांकन किया गया है; तथा

ग) प्लांट की जिन इकाइयों ने वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ कर दिए हैं, उनसे संबंधित परियोजना ऋण घटक के संबंध में ब्याज दायित्व का पूंजीकरण बंद हो जाना चाहिए तथा राजस्व व्यय को राजस्व खाते में दर्ज किया जाए।

18. ऐसे मामलों में, बैंक अपने विवेकानुसार उन इकाइयों, जिन्होंने वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ नहीं किए हैं, से संबंधित ऋणों के चुकौती कार्यक्रम में भी समान या कमतर अवधि (संशोधित चुकौती कार्यक्रम की प्रारंभिक तारीख और अंतिम तारीख सहित) अर्थात, एक वर्ष, के लिए परिणामी परिवर्तन भी कर सकते हैं, बशर्ते कि अन्य लागू दिशानिर्देशों का पालन किया जाए।

19. तथापि, यदि शेष इकाइयां निर्धारित समय के भीतर व्यावसायिक परिचालन प्रारंभ नहीं करती हैं, तो खाते पर कार्यान्वयन के अधीन परियोजनाओं पर लागू होने वाले आस्ति वर्गीकरण मानदंड लागू होंगे, और तदनुसार ऊपर 11 (क) में बताए गए एक वर्ष की समाप्ति पर उन्हें अनर्जक आस्तियां माना जाएगा।

20. इसके अतिरिक्त, परियोजना ऋणों की लचीली संरचना सहित (दिनांक 15 जुलाई 2014 का बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.24/21.04.132/2014-15 तथा दिनांक 15 दिसंबर 2014 का बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.53/21.04.132/2014-15 के अनुसार) परियोजना ऋणों पर किसी परियोजना के डीसीसीओ के बाद लागू होने वाले दिशानिर्देश, ऐसी इकाइयों से संबंधित परियोजना ऋणों पर लागू नहीं होंगे, जिन्होंने वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ नहीं किए हैं।


1वर्तमान में, ठहराव (स्टैंड-स्टिल) अवधि 90 दिन की है।

2नए प्रवर्तकों द्वारा उधारकर्ता कंपनी की चुकता शेयर पूंजी का न्यूनतम 26% अधिग्रहण कर लिया जाना चाहिए, तथा वह उधारकर्ता कंपनी का सबसे बड़ा एकल शेयरधारक होगा। साथ ही, कंपनी अधिनियम, 2013/ भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्डद्वारा जारी विनियमों/ किसी अन्य लागू विनियमों/ लेखांकन मानकों, जैसा भी मामला हो, में दी गई ‘नियंत्रण’ की परिभाषा के अनुसार नया प्रवर्तक उधारकर्ता कंपनी को ‘नियंत्रण’ में रखेगा।


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