1 अक्तूबर 2025
विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य
यह वक्तव्य (i) विनियमन; (ii) विदेशी मुद्रा प्रबंधन; (iii) उपभोक्ता संरक्षण और (iv) वित्तीय बाजारों से संबंधित विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीति उपायों को निर्धारित करता है।
I. विनियमन
1. प्रावधानीकरण के लिए अपेक्षित ऋण हानि (ईसीएल) ढांचा
बैंकिंग क्षेत्र की आघात-सहनीयता को मज़बूत करने के उद्देश्य से, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (लघु वित्त बैंकों, भुगतान बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के लिए रिज़र्व बैंक (आस्ति वर्गीकरण, प्रावधानीकरण और आय निर्धारण) निदेश, 2025 का मसौदा जारी करने का प्रस्ताव है। निदेश का मसौदा, अन्य बातों के साथ-साथ, मौजूदा आस्ति वर्गीकरण मानदंडों को बनाए रखते हुए, एक विवेकपूर्ण आधार के अधीन, उपगत हानि पर आधारित मौजूदा ढाँचे को प्रत्याशित ऋण हानि (ईसीएल) दृष्टिकोण से बदलने का प्रस्ताव करता है। इन दिशानिर्देशों से ऋण जोखिम प्रबंधन पद्धतियों को बढ़ाने और विभिन्न संस्थानों में रिपोर्ट किए गए वित्तीय विवरणों की बेहतर तुलना को बढ़ावा देने की आशा है। इस ढाँचे को एक उपयुक्त ग्लाइड-पथ के साथ गैर-विघटनकारी तरीके से कार्यान्वित करने के लिए तैयार किया गया है।
2. ऋण जोखिम के लिए पूंजी प्रभार पर बासेल III दिशानिर्देश - मानकीकृत दृष्टिकोण
बैंकिंग क्षेत्र की आघात-सहनीयता में सुधार और विनियामक ढाँचे को सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय पद्धतियों के अनुरूप बनाने के व्यापक उद्देश्य के एक भाग के रूप में, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (लघु वित्त बैंकों, भुगतान बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) के लिए ऋण जोखिम हेतु मानकीकृत दृष्टिकोण पर संशोधित बासेल ढाँचे के कार्यान्वयन हेतु दिशानिर्देश का मसौदा जारी करने का प्रस्ताव है। संशोधित ढाँचे का उद्देश्य ऋण जोखिम हेतु पूंजी प्रभार की गणना हेतु मानकीकृत दृष्टिकोण की सुदृढ़ता, विस्तृत जानकारी और जोखिम संवेदनशीलता में सुधार करना है। दिशानिर्देश का मसौदा शीघ्र ही जारी किया जाएगा।
3. कारोबार के स्वरूप और निवेश के लिए विवेकपूर्ण विनियमन
बैंकों के लिए कारोबार और निवेश के स्वरूपों पर अक्तूबर 2024 में जारी किए गए मसौदा दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दे दिया गया है और जल्द ही जारी किए जाएँगे। प्रतिक्रिया और समीक्षा के आधार पर, बैंक और उसकी समूह इकाई द्वारा किए जाने वाले कारोबारों में ओवरलैप पर प्रस्तावित प्रतिबंध हटाया जा रहा है। इस परिपत्र में बैंकों और उनकी समूह संस्थाओं द्वारा की जा रही गतिविधियों को सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ बैंकों और एनओएफएचसी को क्रमशः इक्विटी निवेश और समूह संस्थाएँ स्थापित करने के लिए अधिक परिचालन स्वतंत्रता प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
4. भारत में जमा बीमा के लिए जोखिम आधारित प्रीमियम ढांचे की शुरूआत
निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी), डीआईसीजीसी अधिनियम, 1961 के अंतर्गत, 1962 से एक समान दर प्रीमियम के आधार पर जमा बीमा योजना का परिचालन कर रहा है। वर्तमान में, बैंकों से कर योग्य जमा राशि पर प्रति ₹100 पर 12 पैसे का प्रीमियम लिया जाता है। यद्यपि मौजूदा प्रणाली समझने और परिचालित करने में सरल है, लेकिन यह बैंकों के बीच उनकी मज़बूती के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करती है। अतः, एक जोखिम आधारित प्रीमियम मॉडल शुरू करने का प्रस्ताव है जो अधिक मज़बूत बैंकों को भुगतान किए गए प्रीमियम पर उल्लेखनीय बचत करने में मदद करेगा। विस्तृत अधिसूचना जल्द ही जारी की जाएगी, जो अगले वित्तीय वर्ष से प्रभावी होगी।
5. बैंकों के लिए पूंजी बाजार एक्सपोज़र दिशानिर्देशों की समीक्षा
विनियमित संस्थाओं (आरई) के पूंजी बाजार एक्सपोज़र (सीएमई) जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ व्यक्तियों को प्रतिभूतियों के सापेक्ष उधार देना और पूंजी बाजार मध्यस्थों को उधार देना शामिल है, को क्षेत्रीय एक्सपोज़र सीमा, एकल उधारकर्ता सीमा, मार्जिन आवश्यकताओं आदि से संबंधित विवेकपूर्ण विनियमों के अधीन किया गया है। इसके अलावा, शेयरों के अधिग्रहण के लिए बैंक वित्त को आम तौर पर अस्वीकृत कर दिया गया है।
हाल के वर्षों में बैंकिंग प्रणाली के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ पूंजी बाजार संरचना में उल्लेखनीय वृद्धि और विकास हुआ है। बैंकों और अन्य विनियमित संस्थाओं द्वारा पूंजी बाजार ऋण के दायरे को व्यापक बनाने और मौजूदा दिशानिर्देशों को युक्तिसंगत बनाने के उद्देश्य से, अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रस्तावित हैं:
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भारतीय कॉरपोरेट्स द्वारा अधिग्रहण के वित्तपोषण के लिए बैंकों को सक्षम ढांचा प्रदान करना;
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बैंकों द्वारा शेयरों, आरईआईटी की इकाइयों, आईएनवीआईटी की इकाइयों के सापेक्ष ऋण देने की सीमा को बढ़ाया जाएगा, जबकि सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों के सापेक्ष ऋण देने पर विनियामक सीमा को पूरी तरह से हटा दिया जाएगा; और
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पूंजी बाजार मध्यस्थों को ऋण देने के लिए अधिक सिद्धांत-आधारित ढांचा स्थापित किया जाएगा।
दिशानिर्देश का मसौदा शीघ्र ही जारी किया जाएगा।
6. बाजार तंत्र के माध्यम से बड़े उधारकर्ताओं के लिए ऋण आपूर्ति बढ़ाने पर दिशानिर्देश – निकास
अगस्त 2016 में बाज़ार तंत्र के माध्यम से बड़े उधारकर्ताओं के लिए ऋण आपूर्ति बढ़ाने संबंधी दिशानिर्देश जारी किए गए थे जिनका उद्देश्य बैंकिंग प्रणाली द्वारा किसी एक बड़ी कंपनी को दिए गए कुल ऋण जोखिम से उत्पन्न होने वाले संकेंद्रण जोखिम का समाधान करना और ऐसी बड़ी कंपनियों को अपने वित्तपोषण के स्रोतों में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित करना था। इन दिशानिर्देशों की शुरुआत के बाद से कॉर्पोरेट क्षेत्र को बैंक वित्तपोषण की रूपरेखा में आए बदलावों पर विचार करते हुए, समीक्षा के बाद, इन दिशानिर्देशों को वापस लेने का प्रस्ताव है। बैंकों के लिए लागू किया गया बड़ा एक्सपोज़र ढांचा, व्यक्तिगत बैंक-स्तर पर संकेन्द्रण जोखिम पर ध्यान देता है, लेकिन बैंकिंग प्रणाली स्तर पर संकेन्द्रण जोखिम को, जब भी जोखिम माना जाएगा, विशिष्ट समष्टि विवेकपूर्ण उपकरणों के माध्यम से प्रबंधित किया जाएगा। इन दिशानिर्देशों को वापस लेने के लिए परिपत्र का मसौदा शीघ्र ही जनता की टिप्पणियों के लिए जारी किया जाएगा।
7. एनबीएफसी द्वारा बुनियादी ढांचे संबंधी ऋण पर जोखिम भार
जिन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का परिचालन शुरू हो चुका है, उनमें निर्माणाधीन परियोजनाओं की तुलना में आमतौर पर कम जोखिम होता है। इस जोखिम अंतर को ध्यान में रखते हुए, मौजूदा पूँजी पर्याप्तता मानदंड, एनबीएफसी को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के अंतर्गत चालू परियोजनाओं को कम जोखिम भारांक आवंटित करने की अनुमति देते हैं। एनबीएफसी द्वारा बुनियादी ढाँचा ऋण के लिए जोखिम भारांक को चालू परियोजनाओं के सूक्ष्म जोखिम-प्रोफ़ाइल के अनुरूप और अधिक युक्तिसंगत बनाने के उद्देश्य से, एक सिद्धांत-आधारित ढाँचा शुरू करने का निर्णय लिया गया है। इस ढाँचे का उद्देश्य चालू बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की वास्तविक जोखिम विशेषताओं के साथ जोखिम भारांक को संरेखित करना है, जिससे बेहतर जोखिम मूल्यांकन और पूँजी आवंटन को बढ़ावा मिले। इस संबंध में विनियमन का मसौदा शीघ्र ही सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया जाएगा।
8. नए शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए लाइसेंसिंग ढांचे पर चर्चा पत्र
यूसीबी क्षेत्र की कमज़ोर वित्तीय स्थिति के कारण 2004 से नए यूसीबी के लाइसेंस जारी करने पर रोक लगा दी गई थी। तब से दो दशक से ज़्यादा समय बीत जाने और इस क्षेत्र में सकारात्मक प्रगति को देखते हुए, नए शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लाइसेंस पर एक चर्चा पत्र शीघ्र ही जारी किया जाएगा।
9. विनियामक अनुदेशों का समेकन
रिज़र्व बैंक द्वारा प्रशासित विनियामक ढाँचे के विकास के परिणामस्वरूप अनेक परिपत्रों और निदेश जारी किए गए हैं। विनियमित संस्थाओं तक पहुँच को आसान बनाने और उनके सामने आने वाली अनुपालन लागत को कम करने के लिए, रिज़र्व बैंक ने अपने विनियमन विभाग द्वारा प्रशासित विनियामक अनुदेशों को 'जैसा है' आधार पर मास्टर निदेशों के एक सेट में समेकित करने का कार्य शुरू किया है। 11 प्रकार की विनियमित संस्थाओं के लिए 30 क्षेत्रों तक के मौजूदा अनुदेशों को समेकित करने वाले लगभग 250 मास्टर निदेशों के मसौदे शीघ्र ही उनकी पूर्णता और सटीकता पर टिप्पणियों के लिए वेबसाइट पर उपलब्ध कराए जाएँगे।
10. लेनदेन खातों पर प्रतिबंधों की समीक्षा
उधारकर्ताओं के बीच ऋण अनुशासन लागू करने और ऋणदाताओं द्वारा बेहतर निगरानी की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से, समय-समय पर जारी विभिन्न परिपत्रों के माध्यम से बैंकों द्वारा प्रस्तुत चालू खातों (सीए), नकदी ऋण खातों (सीसी) और ओवरड्राफ्ट खातों (ओडी) ("लेनदेन खातों") के परिचालन पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए थे। प्राप्त अनुभव और प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर, इन अनुदेशों की समीक्षा की गई है और इस संबंध में कुछ शर्तों को आसान बनाने और बैंकों को अधिक लचीलापन प्रदान करने का प्रस्ताव है, विशेष रूप से उन उधारकर्ताओं के मामले में जो वित्तीय क्षेत्र विनियामक द्वारा विनियमित संस्थाएँ हैं। दिशानिर्देशों का मसौदा शीघ्र ही जारी किया जाएगा।
II. विदेशी मुद्रा प्रबंधन
11. भारतीय निर्यातकों द्वारा विदेशी मुद्रा खाते - भारत में आईएफएससी में रखे गए खातों से प्रत्यावर्तन के लिए समय अवधि का विस्तार
जनवरी 2025 में, आरबीआई ने भारतीय निर्यातकों को निर्यात आय प्राप्त करने के लिए भारत के बाहर किसी बैंक में विदेशी मुद्रा खाते खोलने की अनुमति दी थी। इन खातों में जमा धनराशि का उपयोग आयात भुगतान के लिए किया जा सकता है या धनराशि प्राप्ति की तिथि से अगले महीने के अंत तक प्रत्यावर्तित की जानी होती है। अब, भारत में आईएफ़एससी में रखे गए ऐसे विदेशी मुद्रा खातों के मामले में, प्रत्यावर्तन की अवधि को एक महीने से बढ़ाकर तीन महीने करने का निर्णय लिया गया है। इससे भारतीय निर्यातक आईएफ़एससी बैंकिंग इकाइयों में खाते खोलने के लिए प्रोत्साहित होंगे और आईएफ़एससी में विदेशी मुद्रा चलनिधि भी बढ़ेगी। विनियमों में संशोधन शीघ्र ही अधिसूचित किए जाएँगे।
12. व्यापारिक लेनदेन (एमटीटी)
व्यापार में वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न हो रहे हैं, जिससे भारतीय व्यापारियों के लिए समय पर अपने संविदात्मक दायित्वों को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो रहा है। एमटीटी पर मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार, विदेशी मुद्रा में व्यय हेतु चार महीने तक की अनुमति है। अब एमटीटी के मामले में विदेशी मुद्रा व्यय की अवधि चार महीने से बढ़ाकर छह महीने करने का निर्णय लिया गया है। इस छूट से भारतीय व्यापारियों को लाभप्रदता बनाए रखते हुए अपने व्यावसायिक लेनदेन को कुशलतापूर्वक पूरा करने में आने वाली चुनौतियों से निपटने में मदद मिलने की आशा है। विनियमों में संशोधन शीघ्र ही अधिसूचित किए जाएँगे।
13. लघु मूल्य निर्यातकों/आयातकों के लिए अनुपालन संबंधी अपेक्षाओं में छूट
निर्यातकों/ आयातकों, विशेष रूप से छोटे मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं के लिए, अनुपालन को आसान बनाने के उद्देश्य से, निर्यात डेटा प्रसंस्करण और निगरानी प्रणाली (ईडीपीएमएस) और आयात डेटा प्रसंस्करण और निगरानी प्रणाली (आईडीपीएमएस) में मिलान की प्रक्रिया को सरल बनाने का निर्णय लिया गया है।
संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, ईडीपीएमएस या आईडीपीएमएस में प्राधिकृत व्यापारी बैंक द्वारा बिलों का मिलान और समापन किया जा सकता है, जो कि संबंधित निर्यातक या आयातक, जैसा भी मामला हो, द्वारा की गई घोषणा पर आधारित होगा कि ईडीपीएमएस/आईडीपीएमएस में 10 लाख रुपये प्रति बिल के बराबर या उससे कम मूल्य की प्रविष्टियों (बकाया प्रविष्टियों सहित) के लिए लदान बिल के लिए राशि वसूल कर ली गई है या प्रविष्टि पत्र (बिल ऑफ एंट्री) के लिए भुगतान कर दिया गया है।
संशोधित प्रक्रिया से एडी बैंकों द्वारा ऐसी घोषणाओं के आधार पर बिलों के वसूली योग्य मूल्य में भी कमी की जा सकेगी। इस उपाय से छोटे मूल्य के निर्यातकों और आयातकों पर अनुपालन का बोझ कम होने और व्यापार सुगमता में वृद्धि होने की आशा है। निदेश शीघ्र ही जारी किए जाएँगे।
14. बाह्य वाणिज्यिक उधार ढांचे की समीक्षा
बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) को नियंत्रित करने वाले विनियमों को युक्तिसंगत और सरल बनाने के उद्देश्य से, भारतीय रिज़र्व बैंक ने विदेशी मुद्रा प्रबंध (उधार और ऋण) विनियमावली, 2018 के अंतर्गत मौजूदा प्रावधानों की समीक्षा की है।
समीक्षा के आधार पर, एक संशोधित ढाँचा प्रस्तुत करने का प्रस्ताव है जो पात्र उधारकर्ताओं और मान्यता प्राप्त ऋणदाताओं के आधार का विस्तार, उधार सीमा का युक्तिकरण, औसत परिपक्वता अवधि पर प्रतिबंधों का युक्तिकरण, ईसीबी के लिए उधार की लागत पर प्रतिबंधों को हटाना, अंतिम उपयोग प्रतिबंधों की समीक्षा और रिपोर्टिंग अपेक्षाओं को सरल बनाने का प्रावधान करता है। ढाँचे का मसौदा शीघ्र ही जारी किया जाएगा।
15. भारत में शाखा कार्यालय या संपर्क कार्यालय या परियोजना कार्यालय या कोई अन्य कारोबारी जगह की स्थापना के लिए विनियमों का युक्तिकरण
“भारत में शाखा कार्यालय, संपर्क कार्यालय, परियोजना कार्यालय या कोई अन्य कारोबारी जगह की स्थापना" के लिए मौजूदा विनियम, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 2016 में जारी किए गए थे। इन विनियमों की व्यापक समीक्षा की गई है। संशोधित नियम सिद्धांत-आधारित हैं और प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को अधिक शक्तियाँ प्रदान करने और अनुपालन भार कम करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे भारत में व्यापार करने में और आसानी होगी। विनियमों का मसौदा शीघ्र ही जारी किया जाएगा।
III. ग्राहक संरक्षण
16. सामान्य बचत बैंक जमा (बीएसबीडी) खाता संबंधी अनुदेशों की समीक्षा
बीएसबीडी खाता एक बचत बैंक खाता है जिसे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। बीएसबीडी खाते से संबंधित मौजूदा निर्देशों के अनुसार, बैंकों को ऐसे खाताधारकों को न्यूनतम शेष राशि की आवश्यकता के बिना, कतिपय न्यूनतम सुविधाएँ निःशुल्क प्रदान करनी होती हैं। बैंकिंग क्षेत्र में चल रहे डिजिटलीकरण के कारण ग्राहकों की बदलती ज़रूरतों के अनुरूप एक बीएसबीडी खाता आवश्यक हो गया है। अतः, जनता को किफायती बैंकिंग सुविधाएँ प्रदान करने और वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करने के लिए बीएसबीडी खातों के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु बीएसबीडी खाते से संबंधित मौजूदा निर्देशों की समीक्षा करने का निर्णय लिया गया है।
17. आरई में आंतरिक ओम्बुड्स्मैन व्यवस्था को मजबूत करने के उपाय
रिज़र्व बैंक ने चुनिंदा विनियमित संस्थाओं (आरई) में आंतरिक ओम्बुड्स्मैन (आईओ) व्यवस्था को संस्थागत रूप दिया है, जिससे आरई द्वारा अस्वीकृत की जा रही शिकायतों की निष्पक्ष रूप से शीर्ष स्तरीय समीक्षा संभव हो पाती है। इस व्यवस्था की प्रभावशीलता को और बेहतर बनाने के लिए, यह प्रस्ताव है कि आईओ को क्षतिपूर्ति संबंधी शक्तियाँ प्रदान की जाएँ और उन्हें शिकायतकर्ता तक पहुँच की अनुमति दी जाए, जिससे आईओ की भूमिका आरबीआई ओम्बुड्स्मैन की भूमिका के और भी समतुल्य हो जाएगी। इसके अतिरिक्त, आईओ के समक्ष शिकायत निवारण से पहले विनियमित संस्थाओं (आरई) के भीतर एक द्वि-स्तरीय संरचना लागू की जा सकती है। इन उपायों का उद्देश्य विनियमित संस्थाओं के भीतर ग्राहकों की शिकायतों का सार्थक और समय पर समाधान सुनिश्चित करना है, जिससे सेवा मानकों और उपभोक्ता विश्वास में सुधार होगा। इन संशोधनों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए मास्टर निदेश का एक मसौदा शीघ्र ही जन सामान्य की प्रतिक्रिया के लिए जारी किया जा रहा है।
18. रिज़र्व बैंक - एकीकृत ओम्बुड्स्मैन योजना, 2021 की समीक्षा
रिज़र्व बैंक-एकीकृत ओम्बुड्स्मैन योजना (आरबी-आईओएस) (योजना), 2021, जिसका लोकार्पण 12 नवंबर 2021 को किया गया था, विनियमित संस्थाओं (आरई) के ग्राहकों को एक त्वरित, किफ़ायती और त्वरित वैकल्पिक शिकायत निवारण व्यवस्था प्रदान करती है। वर्तमान में इस योजना के अंतर्गत आने वाले विनियमित संस्थाओं में वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक, ₹50 करोड़ और उससे अधिक जमा राशि वाले गैर-अनुसूचित प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक, चुनिंदा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ और साख सूचना कंपनियाँ शामिल हैं।
ग्रामीण सहकारी बैंकों के ग्राहकों को आरबीआई ओम्बुड्स्मैन की व्यवस्था तक पहुँच प्रदान करने के लिए, राज्य सहकारी बैंकों और जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (जो अब तक नाबार्ड के अंतर्गत आते थे) को आरबीआई ओम्बुड्स्मैन योजना के दायरे में लाने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में शीघ्र ही अधिसूचना जारी की जाएगी।
इसके अलावा, परिचालनगत अनुभव, हितधारकों की प्रतिक्रिया और वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों के आधार पर, रिज़र्व बैंक ने इस योजना की व्यापक समीक्षा की है। इस समीक्षा का उद्देश्य स्पष्टता बढ़ाना, प्रक्रियाओं को सरल बनाना और समय-सीमा को कम करना है ताकि समयबद्ध, निष्पक्ष और प्रभावी निवारण को और बेहतर बनाया जा सके। हितधारकों से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए योजना का मसौदा शीघ्र ही रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाएगा।
IV. वित्तीय बाज़ार
19. भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों को प्राधिकृत व्यापारी (एडी) बैंकों द्वारा भारतीय रुपये (आईएनआर) में ऋण देना
भारतीय रुपये और स्थानीय मुद्राओं में सीमा-पारीय लेनदेन के निपटान को बढ़ावा देने के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम के अंतर्गत विनियमों को उत्तरोत्तर उदार बना रहा है। इस पहल को और आगे बढ़ाने के लिए, यह आवश्यक है कि अन्य देशों के निवासियों के लिए भी भारतीय रुपये की चलनिधि उपलब्ध और सुलभ हो। इस दिशा में एक सुविचारित कदम के रूप में, यह निर्णय लिया गया है कि भारत में प्राधिकृत व्यापारी बैंकों और उनकी विदेशी शाखाओं को भूटान, नेपाल और श्रीलंका के निवासियों, जिसमें इन क्षेत्रों का एक बैंक भी शामिल है, को भारतीय रुपये में ऋण देने की अनुमति दी जा सकती है, ताकि सीमा-पारीय व्यापार लेनदेन को सुगम बनाया जा सके। विनियमों में संशोधन शीघ्र ही अधिसूचित किए जाएँगे।
20. फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया लिमिटेड द्वारा प्रकाशित की जाने वाली अतिरिक्त संदर्भ दरें
पिछले कुछ वर्षों में, विदेशी मुद्रा बाजार के विकास ने व्यापार और पूंजी प्रवाह के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था के शेष विश्व के साथ बढ़ते एकीकरण को सुगम बनाया है। वर्तमान में, फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया लिमिटेड (एफ़बीआईएल) ने आईएनआर के सापेक्ष यूएसडी, ईयूआर, जीबीपी और जेपीवाई के लिए संदर्भ दरें प्रकाशित करता है। इन दरों का उपयोग डेरिवेटिव सहित विदेशी मुद्रा लेनदेन के निपटान के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। अब एफबीआईएल द्वारा प्रकाशित संदर्भ दरों की सूची में भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की चुनिंदा मुद्राओं को शामिल करने का प्रस्ताव है। इससे ऑनशोर विदेशी मुद्रा बाज़ार में और गहनता लाने और बैंकों को मुद्रा युग्मों के एक बड़े समूह में सीधे उद्धरण देने के लिए प्रोत्साहित होने की उम्मीद है, जिससे कई मुद्रा रूपांतरणों की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी तथा व्यापार और अधिक कुशल हो जाएगा। एफबीआईएल को बाज़ार के परामर्श से नई संदर्भ दरें प्रकाशित करने हेतु सूचित किया गया है।
21. विशेष रुपया वास्ट्रो खाता (एसआरवीए) धारकों के लिए निवेश के दायरे का विस्तार
भारत से निर्यात को बढ़ावा देने और वैश्विक व्यापारिक समुदाय की भारतीय रुपये में बढ़ती रुचि को बढ़ावा देने के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक ने जुलाई 2022 में विशेष रुपया वास्ट्रो खातों (एसआरवीए) को अनुमति दी थी ताकि भारतीय रुपये में निर्यात/आयात के चालान, भुगतान और निपटान को सुगम बनाया जा सके। इस व्यवस्था के अंतर्गत, अन्य बातों के साथ-साथ, एसआरवीए में रुपया अधिशेष को खज़ाना बिलों सहित सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति दी गई थी। एसआरवीए धारकों के लिए भारत में निवेश के अवसरों का विस्तार करने हेतु, अब इन खातों की शेष राशि को कॉर्पोरेट बॉन्ड और वाणिज्यिक पत्रों में निवेश करने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है। संशोधित विनियमों को शीघ्र ही अधिसूचित किया जाएगा।
(पुनीत पंचोली)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2025-2026/1218 |