Click here to Visit the RBI’s new website

प्रेस प्रकाशनी

विकासात्मक एवं विनियामकीय नीतियों पर वक्तव्य

6 जून 2018

विकासात्मक एवं विनियामकीय नीतियों पर वक्तव्य

यह वक्तव्य विनियमन और पर्यवेक्षण को मजबूत करने, वित्तीय बाज़ारों के विस्तार तथा उनको सघन बनाने, मुद्रा तथा ऋण प्रबंधन में सुधार करने, भुगतान तथा निपटान प्रणाली में नवोन्मेष को बढ़ावा देने तथा डेटा प्रबंधन सुविधा प्रदान करने हेतु विभिन्न विकासात्मक एवं विनियामकीय नीति उपायों का निर्धारण करता है ।

I. विनियमन एवं पर्यवेक्षण

1. सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में से निकाले गए चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर) में वृद्धि

मौजूदा रोडमैप के अनुसार, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को 01 जनवरी, 2019 तक 100 प्रतिशत के न्यूनतम चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर) तह पहुंचना है। वर्तमान में, बैंकों की एलसीआर की गणना के उद्देश्य से स्तर 1 की उच्च गुणवत्ता चलनिधि परिसंपत्ति (एचक्यूएलए) के रूप में अनुमति दी गई परिसंपत्तियों में, अन्य विषयों के साथ, न्यूनतम आवश्यकता से अधिक तथा अनिवार्य एसएलआर अपेक्षा के भीतर सरकारी प्रतिभूतियाँ, सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के तहत भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमत उच्चतम सीमा तक (वर्तमान में बैंक के एनडीटीएल का 2 प्रतिशत) तथा चलनिधि कवरेज अनुपात (एफएएलएलसीआर) हेतु चलनिधि का लाभ उठाने की सुविधा के तहत (वर्तमान में बैंक के एनडीटीएल का 9 प्रतिशत) सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल हैं । एलसीआर की गणना करने के उद्देश्य से, यह निर्णय लिया गया है कि उपर्युक्त परिसंपत्तियों के अतिरिक्त, बैंकों को अनिवार्य एसएलआर आवश्यकात के भीतर एफएएलएलसीआर के अंतर्गत उनके एनडीटीएल के अतिरिक्त 2 प्रतिशत तक उनके द्वारा रखी गई स्तर 1 एचक्यूएलए सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में शामिल करने की अनुमति दी जाएगी । इस प्रकार, बैंकों के पास उपलब्ध एसएलआर में से कुल आय उनके एनडीटीएल का 13 प्रतिशत होगी। एलसीआर के संबंध में अन्य निर्देश यथावत रहेंगे ।

2. राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन

बैंकों द्वारा वर्गीकरण, मूल्यांकन तथा निवेश पोर्टफोलियो के परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों पर मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार, राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन समकक्ष परिपक्वता वाली केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों (जी-सेक) के प्रतिफल के ऊपर 25 आधार अंकों की एक समान वृद्धि के साथ परिपक्वता तक प्रतिफल (वाईटीएम) पद्धति लागू करके किया जाता है।

अब यह निर्णय लिया गया है कि प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियों का मूल्यांकन अवलोकित मूल्य के आधार पर किया जाए। व्यापारिक राज्य सरकार प्रतिभूतियों का मूल्यांकन उस कीमत पर होगा जिस मूल्य पर बाजार में उनका कारोबार हुआ है। गैर-व्यापारिक राज्य सरकार प्रतिभूतियों के मामले में, मूल्यांकन समकक्ष परिपक्वता की केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों के प्रतिफल पर राज्य विशिष्ट भारित औसत पर आधारित होगा, जैसा कि प्रथम नीलामी में पाया गया था। इस आशय हेतु विस्तृत दिशानिर्देश 20 जून, 2018 तक अलग से जारी किए जाएंगे ।

3. एमटीएम हानि का प्रसार

सरकारी प्रतिभूतियों के प्रतिफल में वृद्धि के चलते, बैंकों को दिसंबर 2017 तथा मार्च 2018 को समाप्त तिमाहियों के दौरान अपने निवेश पोर्टफोलियो में दर्ज मार्क-टू-मार्केट हानि को चार तिमाहियों में प्रसारित करने का विकल्प दिया गया था। यह भी आवश्यक था कि बैंक इस प्रकार की संभाव्य घटनाओं से बचने के लिए एएफएस तथा एचटीएफ श्रेणियों में उनकी कुल धारिता के 2 प्रतिशत के निवेश उतार चढ़ाव रिज़र्व भी बनाए। सरकारी प्रतिभूतियों के प्रतिफल में निरंतर वृद्धि तथा कई बैंकों के लिए आईएफआर बनाने के लिए समय की अपर्याप्तता के मद्देनजर, बैंकों को 30 जून, 2018 को समाप्त तिमाही से प्रारम्भ होने वाली चारों तिमाहियों की अवधि के लिए समान रूप से 30 जून, 2018 को समाप्त तिमाही के लिए बिक्री हेतु उपलब्ध (एएफएस) तथा व्यापार हेतु रखे गए (एचएफटी) में हुए निवेश पर मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) हानि का प्रसार करने का विकल्प देने का निर्णय लिया गया है । इस संबंध में परिपत्र एक सप्ताह में जारी किया जाएगा ।

4. शहरी सहकारी बैंकों का स्वैच्छिक आधार पर लघु वित्त बैंकों के रूप में परिवर्तन

भारतीय रिज़र्व बैंक के तत्कालीन उप गवर्नर श्री आर. गांधी की अध्यक्षता में शहरी सहकारी बैंको (यूसीबी) पर गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने, अन्य बातों के साथ-साथ, यह सिफ़ारिश की थी कि बड़े बहु-राज्य शहरी सहकारी बैंकों को संयुक्त स्टॉक कंपनियों तथा अन्य शहरी सहकारी बैंकों को कुछ मानदंडों के अधीन स्वैच्छिक आधार पर लघु वित्त बैंकों के रूप में परिवर्तित किया जाए। इन सिफ़ारिशों के अनुसरण में यह निर्णय लिया गया है कि निर्धारित मानदंडों को पूरा करने वाले शहरी सहकारी बैंकों को लघु वित्त बैंकों के रूप में स्वैच्छिक आधार पर परिवर्तन की अनुमति दी जाए। इस संबंध में विस्तृत विवरण सहित योजना की घोषणा अलग से की जाएगी।

5. सूक्ष्म, लघु एवं माध्यम उद्यम क्षेत्र को नियमनिष्ठ बनाने को प्रोत्साहन देना।

फरवरी 2018 में, बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) में पंजीकृत सूक्ष्म, लघु एवं माध्यम उद्यमों (एमएसएमई), जिन्हें इन उधारदाताओं से 250 मिलियन रुपए तक की समग्र सीमा के अंतर्गत क्रेडिट सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, को 180 दिनों के पूर्व देय मानदंडों के आधार पर, कुछ विशिष्ट शर्तों के अधीन, अपने एक्स्पोज़रों को वर्गीकृत करने हेतु अनुमति दी गई थी। वस्तु एवं सेवा कर में उनके पंजीकरण के पश्चात सूक्ष्म, लघु एवं माध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को नियमनिष्ठ क्षेत्र में परिवर्तित करने को सुचारु बनाने के उद्देश्य से यह किया गया है

इनपुट क्रेडिट लीकेज तथा अन्य संबन्धित मामलों के मद्देनगर, अब यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) में पंजीकरण न किए गए सूक्ष्म, लघु एवं माध्यम उद्यमों (एमएसएमई), जिन्हें ऊपर उल्लिखित समग्र सीमा के अंतर्गत क्रेडिट सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, को 180 दिनों के पूर्व देय मानदंडों के आधार पर, कुछ विशिष्ट शर्तों के अधीन, अपने एक्स्पोज़रों को वर्गीकृत करने हेतु अनुमति दी गई थी। तदनुसार, पात्र एमएसएमई खाते, जो कि 31 अगस्त, 2017 को मानक थे, को बैंक और एनबीएफसी द्वारा मानक के रूप में वर्गीकृत किया जाना जारी रहेगा, यदि यदि 01 सितंबर 2017 को देय भुगतान और उसके बाद के देय भुगतान जो कि 31 दिसंबर 2018 तक देय थे/ हैं, का उनकी मूल देय तिथि के 180 दिनों के बाद भुगतान नहीं किया गया/ जाता है।

अर्थव्यवस्था के नियमिकरण को बढ़ाने से वित्तीय स्थिरता में होने वाले लाभों को ध्यान में रखते हुए, 1 जनवरी, 2019 से जीएसटी में पंजीकृत सूक्ष्म, लघु एवं माध्यम उद्यमों (एमएसएमई) द्वारा देय बकाया राशि के संबंध में 180 दिन पूर्व देय मानदंडों को मौजूदा 90 दिनों के पूर्व देय मानदंडों के साथ चरणबद्ध तरीके से समायोजित किया जाएगा। जबकि 31 दिसंबर, 2018 तक जीएसटी के तहत पंजीकृत नहीं होने वाली एंटिटियों के लिए, 1 जनवरी 201 9 से देय बकाया राशि के संबंध में परिसंपत्ति वर्गीकरण को तत्काल 90 दिन के मानदंड पर वापस लाया जाएगा। इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं।

6. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार (पीएसएल) संबंधी दिशा-निर्देशों को आवास ऋणों हेतु प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत यथा-परिभाषित किफ़ायती आवास के रूप में परिवर्तित करना

प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार (पीएसएल) संबंधी दिशा-निर्देशों को आवास ऋण हेतु किफायती आवास योजना तहत अधिकतम परिवर्तित करने के उद्देश्य से तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और निचले आय समूहों के लिए कम लागत वाले आवास उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार (पीएसएल) में आवास ऋणों की पात्रता सीमाओं को मेट्रोपॉलिटन केंद्रों में मौजूदा 28 लाख से बढ़ा कर 35 लाख (दस लाख और उससे अधिक की जनसंख्या वाले क्षेत्र) और अन्य केंद्रों में मौजूदा 20 लाख से बढ़ा कर 25 लाख किया जाए, बशर्ते कि आवासीय इकाई की कुल लागत मेट्रोपॉलिटन केन्द्रों तथा अन्य केंद्रों में क्रमश: 45 लाख और 30 लाख से अधिक न हो। इस संबंध में एक परिपत्र 30 जून 2018 तक जारी किया जाएगा।

7. सस्ते टिकट आकार के आवास संबंधी नए परिवर्तन

आवास ऋणों संबंधी डेटा के सूक्ष्म विश्लेषण के पश्चात, यह देखा गया है कि दो लाख रुपए तक के टिकट आकार के लिए एनपीए का स्तर उच्च रहा है और तेजी से बढ़ रहा है। बैंकों को अपनी स्क्रीनिंग को मजबूत करने और विशेष रूप से इस सेगमेंट को उधार देने के संबंध में अनुवर्ती जांच-पड़ताल की आवश्यकता है। रिजर्व बैंक इस क्षेत्र की बारीकी से निगरानी कर रहा है और जरूरत पड़ने पर एलटीवी अनुपात को और अधिक कड़ा बनाने पर एवं / अथवा जोखिम भार में वृद्धि के रूप में उचित नीति प्रतिक्रिया पर आवश्यकता नुसार विचार करेगा।

8. कोर निवेश कंपनियों को बुनियादी ढांचा निवेश ट्रस्ट (इनविट) में प्रायोजक के रूप में निवेश करने के लिए अनुमति देना

रिजर्व बैंक के साथ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के रूप में पंजीकृत कोर निवेश कंपनियां (सीआईसी) मुख्य रूप से समूह कंपनियों में निवेश करती हैं और कोई अन्य एनबीएफसी संबंधी गतिविधि नहीं करती हैं। उन्हें समूह कंपनियों में इक्विटी शेयर, अधिमानी शेयर, बॉन्ड, डिबेंचर, ऋण या ऋण के रूप में कम से कम 90 प्रतिशत तक निवल संपत्ति के रूप में निवेश करना होगा, जबकि समूह कंपनियों में इक्विटी निवेश निवल संपत्ति के कम से कम 60 प्रतिशत तक होना चाहिए। बुनियादी ढांचा निवेश ट्रस्ट (इनविट) में निवेश के माध्यम से बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने के लिए, सीआईसी को बुनियादी ढांचा निवेश ट्रस्ट (इनविट) के प्रायोजकों के रूप में कार्य करने के लिए सक्षम करने का निर्णय लिया गया है और उन्हें इक्विटी निवेश के लिए 60 प्रतिशत की उप-सीमा के हिस्से के तौर पर प्रायोजकों के रूप में इनविट इकाइयों के अपने होल्डिंग्स की गणना करने की अनुमति दी गई है। बुनियादी ढांचा निवेश ट्रस्ट (इनविट) हेतु सीआईसी का एक्सपोजर प्रायोजकों के रूप में उनके होल्डिंग तक ही सीमित होगा और किसी भी समय, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) (आधारभूत संरचना निवेश ट्रस्ट) विनियमावली, 2014 में यथा-विनिर्दिष्ट राशि और अवधि के मामले में न्यूनतम सीमा से अधिक नहीं होगा। इस संबंध में आवश्यक निर्देश एक सप्ताह के भीतर जारी किए जाएंगे

II. वित्तीय बाजार

9. अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) हेयरकट को समरूप बनाना

वर्तमान में, रिज़र्व बैंक पात्र संपार्श्विक के एवज में रेपो / सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) विंडो के माध्यम से बाजार प्रतिभागियों को रुपये में चलनिधि प्रदान करता है। केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों (टी-बिल सहित) और राज्य विकास ऋणों पर (एसडीएल) पर क्रमशः 4 प्रतिशत और 6 प्रतिशत का प्रारंभिक मार्जिन लागू किया गया है, जो रेपो / एमएसएफ में प्रतिभागियों द्वारा संपार्श्विक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। चूंकि मार्जिन आवश्यकता सभी पात्र प्रतिभूतियों के समान है, भले ही अवशिष्ट परिपक्वता कितनी भी हो, मौजूदा प्रणाली प्रतिभूतियों में बाजार जोखिम को अलग-अलग नहीं करती है।

समीक्षा करने और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, यह निर्णय लिया गया है कि 1 अगस्त, 2018 से शुरू करते हुए इसकी अवशिष्ट परिपक्वता के आधार पर संपार्श्विक पर प्रारंभिक मार्जिन रखा जाए। केन्द्रीय सरकारी प्रतिभूतियों के लिए प्रारंभिक मार्जिन आवश्यकता अवशिष्ट परिपक्वता के पांच अलग-अलग बकेट में 0.5 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक होगी। एसडीएल के मामले में प्रारंभिक मार्जिन आवश्यकता उसी परिपक्वता बकेट के लिए 2.5 प्रतिशत से 6.0 प्रतिशत की सीमा में होगी। एसडीएल को सार्वजनिक रेटिंग प्राप्त करने के लिए राज्य सरकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से, यह निर्णय लिया गया है कि रेटेड एसडीएल के लिए प्रारंभिक मार्जिन आवश्यकता उसी परिपक्वता बकेट के लिए अन्य एसडीएल की तुलना में 1.0 प्रतिशत कम निर्धारित की जाएगी, यानि, 1.5 प्रतिशत से 5.0 प्रतिशत की सीमा में। इस संबंध में एक परिपत्र आज जारी किया जाएगा।

10. सरकारी प्रतिभूति बाजार में भागीदारी में वृद्धि

(i) सरकारी प्रतिभूतियों में लघु बिक्री

केंद्र सरकार प्रतिभूतियों (जी-सेक) में लघु बिक्री फरवरी 2006 में ब्याज दरों पर दो-तरफा दृष्टिकोण व्यक्त करने और इस प्रकार मूल्य खोज में वृद्धि के लिए एक उपाय प्रदान करने के लिए शुरु की गई थी। वर्तमान में, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, प्राथमिक डीलरों और कुछ अच्छी तरह से प्रबंधित शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) को लघु बिक्री लेनदेन करने की अनुमति है। लघु बिक्री लेनदेन करने के लिए इकाई-वार और (तरल या अपर्याप्त) सुरक्षा-वार सीमाएं हैं। जी-सेक और रेपो बाजार को और सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से, पात्र लघु बिक्री प्रतिभागियों के आधार को उदार बनाने के साथ-साथ जी-सेक में छोटी बिक्री के लिए इकाई-वार और सुरक्षा श्रेणीवार सीमाओं में छूट प्रदान करने का प्रस्ताव है। इस संबंध में एक परिपत्र जून 2018 के अंत तक जारी किया जाएगा।

(ii) सरकारी प्रतिभूतियों बाजार में व्हेन इश्यूड (डब्ल्यूआई)

बेहतर प्रबंधन के माध्यम से ऋण जारी करने के ढांचे और नीलामी जोखिम वितरण प्रणाली को मजबूत करने के लिए वित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम 2003 के आलोक में मई 2006 में केंद्र सरकार प्रतिभूति (जी-सेक) में ‘जब जारी’ बाजार (डब्ल्यूआई) शुरू किया गया था। वर्तमान में, डब्ल्यूआई बाजार में लंबी स्थिति (लाँग पोजीशन) नीलामी में भाग लेने के योग्य व्यक्ति द्वारा ली जा सकती है, जबकि केवल बैंकों और प्राथमिक डीलरों (पीडी) को छोटी स्थिति (शॉर्ट पोजीशन) लेने की अनुमति है। इसके अलावा, बैंकों और पीडी के लिए शॉर्ट पोजीशन 5 प्रतिशत पर निर्धारित की गई है। भागीदारी मानदंड धीरे-धीरे आसान हो गए हैं। जी-सेक बाजार को और गहन बनाने के उद्देश्य से, पात्र प्रतिभागियों के आधार को उदार बनाने और ‘जब जारी’ बाजार में जगह बनाने के लिए इकाई-वार सीमाओं में छूट देने का प्रस्ताव है। इस संबंध में एक परिपत्र जून 2018 के अंत तक जारी किया जाएगा।

11. एकल आधार प्राथमिक डीलरों की गतिविधियों का विस्तार करना

एकल आधार प्राथमिक डीलरों (एसपीडी) को धीरे-धीरे स्वीकार्य सीमाओं के भीतर जी-सेक गतिविधियों से वैकल्पिक माध्यमों में अपनी गतिविधियों को विविधता देने की अनुमति दी गई है। अपने एफपीआई ग्राहकों को व्यापक सेवाएं प्रदान करने के लिए एसपीडी की सुविधा के लिए, एसपीडी को एक सीमित विदेशी मुद्रा लाइसेंस प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में एक परिपत्र जून 2018 के अंत तक जारी किया जाएगा।

12. बाजार दुरुपयोग संबंधित विनियम

वित्तीय बाजारों में गतिविधि और भागीदारी को बढ़ाने और बैंकिंग प्रणाली के वित्तीय जोखिम को पुनर्वितरित करने के लिए विभिन्न विनियामक पहलों को तेजी से लागू किया जा रहा है। संयोग से, गलत बाजार प्रथाओं को रोकने के लिए नियमों को मजबूत करने की आवश्यकता है। भारतीय स्थायी आय मुद्रा बाजार और व्युत्पन्न संघ (एफआईएमएमडीए) ने बैंकों और अन्य सदस्यों द्वारा स्वैच्छिक रूप से अपनाने के लिए एक उचित व्यवहार संहिता (एफपीसी) विकसित किया है। विदेशी मुद्रा डीलर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफईडीएआई) ने भारतीय विदेशी मुद्रा (एफएक्स) बाजार में बाजार प्रतिभागियों के लिए भी वैश्विक आचार संहिता अपनाया है, यह थोक एफएक्स बाजार के लिए ऐसी वैश्विक आचार संहिता है जो उच्च नैतिक मानकों से निहित है और मजबूत, निष्पक्ष, तरल, खुले और उचित पारदर्शी बाजार को बढ़ावा देने के सिद्धांतों को निर्धारित करता है, । इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए, रिजर्व बैंक द्वारा नियंत्रित बाजारों में दुरुपयोग को रोकने के लिए सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप नियमों को लाने का प्रस्ताव है। परामर्श के लिए प्रारूप विनियमन अगस्त 2018 के अंत तक जारी किया जाएगा।

13. केंद्रीय काउंटरपार्टियों के लिए नीति ढांचा

केंद्रीय काउंटरपार्टियां (सीसीपी) वित्तीय बाजारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सीसीपी उनके द्वारा प्रदत्त बाजारों में गारंटीकृत निपटान सेवाएं प्रदान करते हैं और प्रतिभागियों के लिए प्रतिपक्ष जोखिम को कम करते हैं, जिससे प्रणालीगत जोखिम कम हो जाता है। ताकि ये संस्थाएं एक कुशल और प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें, रिजर्व बैंक विदेशी सीसीपी की मान्यता के लिए ढांचे को तैयार करेगा और साथ ही सभी सीसीपी के लिए पूंजी आवश्यकता और अभिशासन ढांचे को भी तैयार करेगा। ये निदेश जुलाई 2018 के अंत तक जारी की जाएंगी।

III. ऋण प्रबंधन

14. राज्य सरकारों की समेकित ऋण-शोधन निधि और गारंटी उन्मोचन निधि

राज्य सरकारें अपनी देनदारियों की चुकौती के लिए रिज़र्व बैंक के पास समेकित ऋण-शोधन निधि (सीएसएफ) और गारंटी उन्मोचन निधि (जीआरएफ) को बफर के रूप में बनाए रख रही है। वर्तमान में, राज्य सरकारें सीएसएफ और जीआरएफ में उपलब्ध निधियों के संपार्श्विक के बदले रिज़र्व बैंक से विशेष आहरण सुविधा (एसडीएफ) का लाभ उठा सकती हैं। प्रभारित ब्याज की दर रेपो दर से 100 आधार अंक कम है जिस पर राज्य सरकारों को अर्थोपाय अग्रिम प्रदान किया जाता है। राज्य सरकारों द्वारा इन निधियों के पर्याप्त रखरखाव को और प्रोत्साहित करने तथा इन निधियों के कॉर्पस को बढ़ाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने हेतु, यह निर्णय लिया गया है कि एसडीएफ पर ब्याज की दर को कम करके उसे रेपो दर से 100 आधार अंक नीचे के बजाए रेपो दर से 200 आधार अंक नीचे कर दिया जाए। इस संबंध में 30 जून 2018 तक परिपत्र जारी किया जाएगा।

IV. भुगतान और निपटान

15. भुगतान प्रणालियों का प्रमाणीकरण

खुदरा भुगतान बाजार की परिपक्वता को देखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि वित्तीय स्थिरता के परिप्रेक्ष्य में खुदरा भुगतान प्रणाली में संक्रेंद्रण जोखिम को कम किया जाए। रिज़र्व बैंक इस क्षेत्र में नवोन्मेष और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर भुगतान प्लेटफार्मों में भाग लेने तथा उसे बढ़ावा देने के लिए अधिक भागीदारों को प्रोत्साहित करने की योजना बना रहा है। इस संबंध में 30 सितंबर 2018 तक सार्वजनिक परामर्श हेतु एक नीति पत्र लाया जाएगा।

V. मुद्रा प्रबंधन

16. भारतीय बैंक नोटों का उपयोग करने में दृष्टिबाधितों द्वारा सामना की जा रही कठिनाइयों को कम करना

भारतीय बैंक नोटों के साथ दृष्टिहीन व्यक्तियों द्वारा अपने दैनिक व्यवसाय को संचालित करने में जिन चुनौतियों का सामना किया जा रहा है, रिज़र्व बैंक उसके प्रति संवेदनशील है। भारतीय बैंक नोटों में किसी भी प्रकार का बदलाव करने से पूर्व समय-समय पर विभिन्न मंचों से परामर्श लिया जाता है, तथापि, रिज़र्व बैंक का यह मानना है कि तकनीकी प्रगति ने दृष्टिहीन व्यक्तियों को भारतीय बैंकनोटों को और अधिक सहजता से पहचानने हेतु एक नया खाका प्रदान किया है जिससे उनका दैनिक लेन-देन सुविधाजनक हो गया है। तदनुसार, यह निर्णय लिया गया है कि रिज़र्व बैंक, दृष्टिहीनों का प्रतिनिधित्व करने वाली विभिन्न संस्थाओं के परामर्श से, दृष्टिहीनों के लिए भारतीय बैंकनोटों की पहचान में सहायक एक उपयुक्त उपकरण या तंत्र विकसित करने की व्यवहार्यता का पता लगाएगा। रिज़र्व बैंक छह महीने के भीतर इस संबंध में आवश्यक दिशानिर्देश जारी करेगा।

VI. डेटा प्रबंधन

17. पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री पर उच्च स्तरीय कार्यदल

जैसा कि 4 अक्टूबर 2017 के विकासात्मक और विनियामक नीतियों से संबंधित वक्तव्य में दर्शाया गया था, भारत के लिए पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री (पीसीआर) पर एक उच्चस्तरीय कार्यदल (अध्यक्ष: श्री यशवंत एम. देवस्थले) का गठन रिज़र्व बैंक द्वारा क्रेडिट पर सूचनाओं की वर्तमान उपलब्धता, मौजूदा सूचना उपयोगिता की पर्याप्तता, तथा कमियों की पहचान जिसे पीसीआर द्वारा ठीक किया जा सके, की समीक्षा के लिए किया गया था। उक्त कार्यदल, जिसने 4 अप्रैल 2018 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, ने सिफारिश की थी कि सूचना विषमता के समाधान, क्रेडिट तक पहुंच बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में क्रेडिट संस्कृति को मजबूत करने से संबंधित मुद्दों के निपटारे हेतु रिज़र्व बैंक द्वारा एक पीसीआर स्थापित किया जाना चाहिए। रिज़र्व बैंक ने कार्यदल की सिफारिशों पर विचार किया है तथा मॉड्यूलर और चरणबद्ध तरीके से एक पीसीआर स्थापित करने का निर्णय लिया है। कार्यदल की रिपोर्ट आज रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर जनता के लिए जारी की जाएगी। पीसीआर की स्थापना के लिए आगामी कदम के रूप में लॉजिस्टिक एवं डिजाइन में सहायता करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा एक कार्यान्वयन टास्क फोर्स (आईटीएफ) का गठन किया जा रहा है।

18. उदारीकृत विप्रेषण योजना के लिए डेटा और परिभाषाओं का सामंजस्य

5 अप्रैल 2018 को पहले द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 2018-19 में की गई घोषणा के अनुसार, अधिकृत डीलर (एडी) बैंकों द्वारा उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) के तहत व्यक्तिगत लेनदेन की दैनिक रिपोर्टिंग के लिए एक प्रणाली विकसित की गई है। यह प्रणाली अधिकृत डीलर बैंकों को वित्तीय वर्ष के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा पहले से भेजे गए विप्रेषण को देखने में सक्षम बनाती है, जिससे निगरानी में सुधार हो सके और एलआरएस सीमाओं का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके। चूंकि उक्त रिपोर्टिंग प्रणाली, प्रेषक-वार आकंड़ों को एकत्र करने के लिए प्रेषक के स्थायी खाता संख्या (पैन) का उपयोग एक विशिष्ट पहचानकर्ता के रूप में करती है, अतः यह निर्णय लिया गया है कि एलआरएस के तहत जाने वाले सभी विप्रेषणों के लिए पैन प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया जाए, जिसे अब तक 25,000 अमेरिकी डॉलर तक के अनुमत चालू खाता लेनदेन पर प्रस्तुत करने हेतु ज़ोर नहीं दिया जाता था। इसके अतिरिक्त, करीबी रिश्तेदारों के निर्वाह के लिए एलआरएस के तहत अनुमोदित विप्रेषण के संदर्भ में, यह निर्णय लिया गया है कि 'रिश्तेदार' की परिभाषा को कंपनी अधिनियम, 1956 के बजाय कंपनी अधिनियम, 2013 में दी गई परिभाषा के साथ संरेखित किया जाए।

जोस जे. कट्टूर
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2017-2018/3191


2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
पुरालेख
Server 214
शीर्ष