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अनुसंधान और आंकड़े

रिज़र्व बैंक में बेहतर, नीति उन्मुखी आर्थिक शोध करने, आंकड़ों का संकलन करने और ज्ञान साझा करने की समृद्ध परंपरा है।

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आरबीआई बुलेटिन – मई 2022

17 मई 2022

आरबीआई बुलेटिन – मई 2022

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का मई 2022 अंक जारी किया। बुलेटिन में मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2022-23, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का संकल्प 2 और 4 मई 2022, एक भाषण, चार आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

चार आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारतीय अर्थव्यवस्था 2019-20 के वित्तीय स्टॉक और निधियों का प्रवाह; III. संवृद्धि के कारण बढ़ते भारत के विदेशी कर्ज; और IV. धारणीय कृषि के लिए सिंचाई प्रबंधन।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी बहाली को समेकित किया, जिसमें अधिकांश घटक गतिविधि के महामारी-पूर्व स्तरों को पार कर गए। कमजोर संवृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति, भू-राजनीतिक स्पिलओवर के कारण आपूर्ति में व्यवधान से उत्पन्न प्रवर्धित वैश्विक जोखिम तथा समकालिक मौद्रिक सख्ती से उत्पन्न वित्तीय बाजार में अस्थिरता ने निकट भविष्य में चुनौतियां प्रस्तुत करती है।

II. भारतीय अर्थव्यवस्था 2019-20 के वित्तीय स्टॉक और निधियों का प्रवाह

यह आलेख निम्नलिखित पांच व्यापक संस्थागत क्षेत्रों के लिए लिखत-वार वित्तीय स्टॉक और निधियों का प्रवाह (एफएसएफ) प्रस्तुत करता है - (i) वित्तीय निगम; (ii) गैर-वित्तीय निगम; (iii) सामान्य सरकार; (iv) पारिवारिक इकाइयों की सहायता करने वाली गैर-लाभकारी संस्थाओं सहित पारिवारिक इकाइयां; और (v) शेष विश्व, वर्ष 2019-20 के लिए ‘फ्रोम-हुम-टु-हुम' (एफ़डब्ल्यूटीडब्ल्यू) आधार पर।

डेटा की सोर्सिंग में किए गए संशोधन और सुधारों को ध्यान में रखते हुए, आलेख के साथ 2011-12 से 2018-19 तक एफ़एसएफ़ लेखाओं की संशोधित श्रृंखला भी जारी की गई है।

मुख्य बातें:

  • घरेलू अर्थव्यवस्था का वित्तीय संसाधन अंतराल - जिसे वित्तीय आस्तियों के निवल अधिग्रहण से वित्तीय देयताओं में निवल वृद्धि को घटाकर मापा जाता है, 2019-20 के दौरान संकुचित हुआ है।

  • वित्तीय निवल मालियत के संदर्भ में, पारिवारिक इकाइयों ने प्रमुख स्थान धारण किया है, जिसके बाद वित्तीय निगम आते हैं, जबकि सामान्य सरकार और गैर-वित्तीय निगम निवल उधारकर्ता बने रहे।

  • वित्तीय निगमों का वित्तीय संसाधन संतुलन 2019-20 के दौरान मजबूत हुआ।

  • 2019-20 में भारत दुनिया के बाकी हिस्सों से निवल उधारकर्ता बना रहा। हालांकि, विदेशी संसाधनों पर निर्भरता एक वर्ष पहले की तुलना में कम हुई है।

  • कुल मिलाकर, संसाधनों के अभिनियोजन के लिए ऋण और अग्रिम सबसे पसंदीदा लिखत बने रहे, जिसके बाद मुद्रा और जमा-राशियों का स्थान रहा।

III. संवृद्धि के कारण बढ़ते भारत के विदेशी कर्ज

महामारी के बाद के समय में, विदेशी कर्ज और आर्थिक संवृद्धि के बीच संबंध नीति अनुसंधान के केंद्र में आ गए हैं। इस पृष्ठभूमि के सापेक्ष, यह आलेख भारत के लिए विदेशी कर्ज को उच्चतम सीमा को बढ़ाने वाली संवृद्धि की पहचान को ध्यान में रखते हुए विदेशी कर्ज और संवृद्धि के बीच संबंधों की जांच करता है।

मुख्य बातें:

  • निष्कर्ष एक गैर-रेखीय लाफ़र वक्र प्रकार के उल्टे यू-आकार के संबंध का प्रमाण प्रदान करते हैं।

  • जीडीपी की तुलना में विदेशी कर्ज को बढ़ाने वाली संवृद्धि का अनुमानित अनुपात दिसंबर 2021 के अंत के मौजूदा स्तर से अधिक है, जो अधिक ऋण प्रवाह होने का संकेत देती है।

  • संवृद्धि के उद्देश्य प्राप्त करने का प्रयास करते हुए समष्टि-स्थिरता को बनाए रखने के लिए अन्य बाह्य सुभेद्यता मापदंडों के साथ-साथ भारत के विदेशी कर्ज के लिए पहचाने गए स्थान का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जा सकता है।

IV. धारणीय कृषि के लिए सिंचाई प्रबंधन

बार-बार पड़ने वाले सूखे और घटते भूजल स्तर की पृष्ठभूमि में, धारणीय कृषि के लिए सिंचाई दक्षता सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण है। यह आलेख 2002-03 से 2017-18 की अवधि के लिए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित उपज की व्यापक लागत संबंधी आंकड़ों का उपयोग करते हुए कृषि के लिए महत्वपूर्ण 19 भारतीय राज्यों में क्षेत्र-भारित लागत और सिंचाई की दक्षता के प्रवृत्ति का विश्लेषण करता है।

मुख्य बातें:

  • अध्ययन अवधि के दौरान सिंचाई की क्षेत्र-भारित लागत में गिरावट आई, जो शायद अधिकांश राज्यों में सब्सिडी वाली बिजली के उपयोग में वृद्धि के प्रभाव को दर्शाती है। हालांकि, कुछ राज्यों में लागत अभी भी अधिक है।

  • सिंचाई की अनुमानित तकनीकी दक्षता से पता चलता है कि अधिकांश राज्य दक्षता सीमा से बहुत दूर हैं और अध्ययन अवधि के दौरान गिरावट की प्रवृत्ति भी दर्ज की गई है।

  • यह अक्षमता, कृषि क्षेत्र और भूजल तक पहुंच में ऊर्जा की खपत से प्रेरित प्रतीत होती है।

  • निष्कर्ष, ऊर्जा और जल सक्षम सिंचाई प्रौद्योगिकियों पर नीतिगत ध्यान केंद्रित करने पर ज़ोर देते हैं, विशेषकर उन राज्यों में जहां सिंचाई सक्षमता में गिरावट आ रही है।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/221

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