18 सितंबर 2023
आरबीआई बुलेटिन – सितंबर 2023
आज रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का सितंबर 2023 अंक जारी किया। बुलेटिन में छ: भाषण, पांच आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।
पांच आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारतीय राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन प्रणाली अपनाने की राजकोषीय लागत - एक आकलन; III. एनबीएफसी क्षेत्र के नवीनतम कार्य-प्रदर्शन का विश्लेषण; IV. मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति-प्रत्याशाएं: एक विस्तृत मापन; V. भारत में निजी खपत के कारक: एक समग्र प्रतिदर्शात्मक उपागम।
I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
जहां, विभिन्न क्षेत्रों की समष्टि-आर्थिक स्थितियों में विभाजन के कारण वैश्विक आर्थिक गतिविधि की गति में कमी आ रही है, वहीं वैश्विक उन्नति हेतु वसुधैव कुटुंबकम के सोच के साथ भारत की जी20 की अध्यक्षता और इसके परिणाम, ऐसे माहौल में उल्लेखनीय हैं। कमज़ोर होती वैश्विक संभावनाओं के बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था, घरेलू कारकों- निजी खपत; और मजबूत सार्वजनिक-क्षेत्र-पूंजीगत-व्यय के साथ-साथ स्थिर निवेश की बढ़त के कारण सशक्त है। आपूर्ति प्रतिक्रियाओं में सुधार हो रहा है और हेडलाइन मुद्रास्फीति पिछले महीने की उच्चतम स्थिति से अगस्त में कम हो गई है।
II. भारतीय राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन प्रणाली अपनाने की राजकोषीय लागत - एक आकलन
रचित सोलंकी, सोमनाथ शर्मा, आर. के. सिन्हा, समीर रंजन बेहरा और अत्री मुखर्जी, द्वारा
इस सदी के पहले दशक के दौरान भारत में शुरू किए गए पेंशन सुधारों के हिस्से के रूप में, अधिकांश राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) को अपनाया, जो एक निर्धारित अंशदान योजना है। पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को वापस लाने के बारे में हाल ही में हुई सार्वजनिक चर्चा और कुछ राज्यों द्वारा वास्तव में ऐसा किए जाने की पृष्ठभूमि में यह अध्ययन शुरू किया गया है। यह राज्य सरकार के कर्मचारियों के एनपीएस अंशदान डेटा का विश्लेषण करता है ताकि संभावित राजकोषीय लागत का अनुमान लगाया जा सके, जो सभी राज्य सरकारों द्वारा ओपीएस अपनाने पर उत्पन्न हो सकता है।
प्रमुख बिंदु :
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ओपीएस की वापसी के कारण राज्यों के पेंशन खर्च में अल्पकालिक कमी, लंबी अवधि में भविष्य में गैर-वित्तपोषित पेंशन देयताओं में भारी वृद्धि के कारण प्रभावहीन हो जाएगा। ओपीएस के मामले में पेंशन का बोझ 2030 तक अधिकांश राज्यों के लिए एनपीएस अंशदान से अधिक हो जाएगा।
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ओपीएस के तहत, अनुमानित वास्तविक पेंशन देयता, एनपीएस के अनुमानित पेंशन व्यय का लगभग 4.5 गुना बढ़ जाएगा। अतिरिक्त ओपीएस बोझ 2060 तक सालाना सकल घरेलू उत्पाद का 0.9 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।
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ऐसे समय में जब अधिकांश देश निर्धारित अंशदान योजनाओं की ओर बढ़ रहे हैं, भारतीय राज्यों द्वारा ओपीएस की ओर लौटना, पिछले राजकोषीय सुधारों के लाभों को कम करते हुए प्रतिगामी कदम होगा।
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राज्यों द्वारा ओपीएस को पुन: लागू करना राजकोषीय रूप से धारणीय नहीं होगा।
III. एनबीएफसी क्षेत्र के नवीनतम कार्य-प्रदर्शन का विश्लेषण
अभ्युदय हर्ष, नंदिनी जयकुमार, रजनीश कुमार चंद्रा और बृजेश पी, द्वारा।
पर्यवेक्षी डेटा का उपयोग करते हुए, यह आलेख 2022-23 में (2022-23 की तीसरी तिमाही तक) एनबीएफसी क्षेत्र के कार्य-प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है। इस आलेख के लिए, एनबीएफसी को उनके आकार, गतिविधि और स्केल-आधारित विनियामकीय ढांचा, जो 01 अक्तूबर 2022 से प्रभावी हुआ, के संदर्भ में जोखिम के अनुमानित स्तर के आधार पर चार स्तरों (यानी, आधार, मध्य, ऊपरी या शीर्ष) में से एक में समूहित किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
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एनबीएफसी क्षेत्र की समेकित तुलन पत्र ने दिसंबर 2022 तक वर्ष-दर-वर्ष द्विअंकीय वृद्धि दिखाई।
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एनबीएफसी की बैंकों पर निर्भरता बढ़ी, विशेष रूप से ऊपरी स्तर (एनबीएफसी-यूएल) में एनबीएफसी के लिए, जिनकी प्रत्यक्ष बैंक उधारी लगातार बढ़ी है, जो दिसंबर 2022 के अंत तक उनकी कुल उधारी का लगभग आधा हिस्सा है।
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क्षेत्रवार ऋण वितरण से पता चलता है कि मध्य स्तर में सरकारी स्वामित्व वाली एनबीएफसी (एनबीएफसी-एमएल) मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे के लिए ऋण देती हैं। सभी एनबीएफसी-यूएल, जो निजी स्वामित्व वाले हैं, खुदरा क्षेत्र को भारी ऋण देते हैं।
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आर्थिक सुधार के साथ-साथ, ताजा एनपीए के अल्प संचय और बेहतर वसूली के कारण कुल अग्रिमों के प्रतिशत के रूप में इस क्षेत्र की अनर्जक आस्तियों (एनपीए) में गिरावट आई है। एनबीएफसी ने मजबूत पूंजी स्थिति और पर्याप्त बफर बनाए रखना जारी रखा है।
IV. मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति-प्रत्याशाएं: एक विस्तृत मापन
आर. के. सिन्हा द्वारा
यह आलेख उपयुक्त सांख्यिकीय वितरणों की पहचान करता है, जो वास्तविक मुद्रास्फीति और सर्वेक्षण-आधारित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के व्यवहार को समझाने में मदद करता है। पहचाने गए वितरण, जोखिम वाली मुद्रास्फीति के मापन में सुविधा प्रदान करते हैं।
प्रमुख बिंदु:
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सूक्ष्म-स्तरीय मुद्रास्फीति डेटासेट, यानी सर्वेक्षण-आधारित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं और वास्तविक मुद्रास्फीति, दोनों की मानक विचलन के संदर्भ में मापी गई परिवर्तनशीलता, समग्र मुद्रास्फीति डेटासेट की तुलना में काफी अधिक पाई गई है।
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'बर वितरण' दोनों डेटासेट की सांख्यिकीय विशेषताओं को दर्शाने में उपयोगी पाया गया है।
V. भारत में निजी खपत के कारक: एक समग्र प्रतिदर्शात्मक उपागम
दीपमाला, सुनील कुमार और बिपुल घोष, द्वारा
यह आलेख निजी खपत के समष्टि-आर्थिक कारकों की पड़ताल करता है - जो भारत में समग्र मांग का प्रमुख घटक है - लघु और दीर्घकालिक। मौद्रिक नीति नरमी और चक्रों को सख्त बनाने के निजी उपभोग पर प्रभाव की भी पड़ताल की गई है।
प्रमुख बिंदु:
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निष्कर्षों से उपभोग और आय के एक मजबूत को-मूवमेंट का पता चलता है, जो वास्तविक निजी उपभोग और आय (वास्तविक व्यक्तिगत प्रयोज्य आय) और धन के बीच दीर्घकालिक सह-एकीकृत संबंध की उपस्थिति से स्पष्ट है, जिसमें आय प्रत्यास्थता यूनिटी के करीब अनुमानित है।
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अल्पकालिक कारकों में, आय, ब्याज दर, मुद्रास्फीति, परिवारों और सरकार की ऋणग्रस्तता और अनिश्चितता, निजी खपत को प्रभावित करती पाई जाती हैं।
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आंकड़ेजन्य निष्कर्ष, ब्याज दर में बदलाव के एक असममित प्रभाव का संकेत देते हैं, जिसमें मौद्रिक सख्ती के कारण, ब्याज दर में समतुल्य ढील के स्फीतिकारी प्रभाव की तुलना में निजी खपत में अधिक कमी आती है।
बुलेटिन आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/939 |