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आरबीआई बुलेटिन - अप्रैल 2022

18 अप्रैल 2022

आरबीआई बुलेटिन - अप्रैल 2022

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का अप्रैल 2022 अंक जारी किया। बुलेटिन में मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2022-23, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का संकल्प 6-8 अप्रैल 2022, मौद्रिक नीति रिपोर्ट - अप्रैल 2022, दो भाषण, छह आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

छह आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारत पर आपूर्ति श्रृंखला के दबाव का अनुमान लगाना; III. बैंकों की ब्याज दरों में मौद्रिक संचरण: बाह्य बेंचमार्क व्यवस्था के प्रभाव; IV. वायदा प्रीमियम को कौन सा तत्व संचालित करता है? - एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण; V. उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में विदेशी मुद्रा भंडार बफर: संचालक, उद्देश्य और प्रभाव; और VI. शहरी सहकारी बैंकों में डिजिटलीकरण: प्रसार और विभेदीकरण।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

महामारी की तीसरी लहर के बाद भारत संवत 2079 में प्रवेश कर रहा है, जिसके साथ कई क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौट रही हैं। हालांकि, इन लाभों पर भू-राजनीतिक शत्रुता से विघटनकारी असर के कारण जोखिम हैं, जो कि मुद्रास्फीति प्रिंटों, वित्तीय स्थितियों की सख्ती और पोर्टफोलियो बहिर्वाह के साथ व्यापार की स्थिति में आघात से सतत रूप से स्पष्ट है। भारत इन चुनौतियों का सामना बुनियादी ढांचे में सुधार और मजबूत बफर के साथ करता है। आगे चलकर, टिकाऊ आधार पर संवृद्धि को बनाए रखने के लिए निजी निवेश को बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है।

II. भारत पर आपूर्ति श्रृंखला के दबाव का अनुमान लगाना

मार्च 2005 से मार्च 2022 की अवधि के लिए 19 घरेलू और वैश्विक चरों में निहित सामान्य कारकों को निकालकर भारत के लिए आपूर्ति श्रृंखला दबावों का एक सूचकांक (आईएसपीआई) विकसित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • आईएसपीआई भारतीय अर्थव्यवस्था पर आपूर्ति दबाव को कुशलतापूर्वक ट्रैक करता है।

  • यह समसामयिक रूप से औद्योगिक उत्पादन, जीडीपी और इनपुट लागत का पूर्वानुमान लगता है और निर्यात परिमाण और मुद्रास्फीति के संबंध में प्रमुख संकेतक गुणों को दर्शाता है।

  • आईएसपीआई ने मई 2021 से ऊपर की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है, जो सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आपूर्ति में व्यवधान, इनबाउंड पोर्ट ट्रैफिक मूवमेंट में भीड़भाड़ और यूएस में डिलीवरी में देरी को दर्शाता है।

  • ये हालिया रीडिंग आपूर्ति श्रृंखला दबावों की सावधानीपूर्वक निगरानी को आवश्यक बना देते हैं।

III. बैंकों की ब्याज दरों में मौद्रिक संचरण: बाह्य बेंचमार्क व्यवस्था के प्रभाव

इस आलेख में बाह्य बेंचमार्क संबंद्ध उधार दर (ईबीएलआर) व्यवस्था पर ध्यान देने के साथ-साथ विभिन्न उधार दर प्रणालियों के तहत बैंकों की जमा और उधार दरों के लिए मौद्रिक नीति संचरण की समीक्षा की गयी है।

प्रमुख बिंदु:

  • निभावकारी मौद्रिक नीति रुख, वृहत अधिशेष चलनिधि की स्थिति और ऋण उठाव में गिरावट के कारण ईबीएलआर व्यवस्था में उधार और जमा दरों के लिए मौद्रिक नीति संचरण में सुधार हुआ है।

  • बैंकों ने ईबीएलआर अवधि के दौरान रेपो दर में कटौती से अधिक डब्ल्यूएएलआर को कम करके मौजूदा उधारकर्ताओं को लाभ दिया है।

  • ऑटोरेग्रेसिव डिस्ट्रीब्यूटेड लैग फ्रेमवर्क पर आधारित अनुभवजन्य अनुमान ईबीएलआर व्यवस्था में उधार और जमा दरों के लिए मौद्रिक संचरण की गति और सीमा में सुधार को दर्शाता है।

  • भविष्य में, बाह्य बेंचमार्क से संबंद्ध ऋणों के अनुपात में आंतरिक बेंचमार्क से संबंद्ध ऋणों में कमी के साथ-साथ और बढ़ोत्तरी की उम्मीद है। इस प्रकार, अल्प रीसेट अवधि में, बैंकों की ब्याज दरों में मौद्रिक संचरण के और मजबूत होने की प्रत्याशा की जा सकती है।

IV. वायदा प्रीमियम को कौन सा तत्व संचालित करता है? - एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण

वायदा प्रीमियम समष्टि आर्थिक और वित्तीय बाजार की गतिविधियों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी को समाहित करता है और यह बाजार सहभागियों और केंद्रीय बैंक दोनों को संकेत देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस लेख में आरबीआई के बाजार परिचालन के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्य (प्री-एफआईटी) अवधि के पहले और एफआईटी काल के दौरान टर्म संरचना में वायदा प्रीमियम के महत्वपूर्ण निर्धारकों की जाँच की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • वायदा प्रीमियम काफी हद तक स्थिर बना हुआ है और ब्याज दर के अंतर के साथ संबद्ध है, लेकिन 2021 की शुरुआत में विशेष रूप से निकट भविष्य के महीने में तेजी देखी गई।

  • एफआईटी-पूर्व अवधि और एफआईटी काल- दोनों परिपक्वता अवधियों में ब्याज दर अंतर वायदा प्रीमियम का प्रमुख निर्धारक साबित होता है। अन्य महत्वपूर्ण निर्धारकों में वैश्विक नीति अनिश्चितता, घरेलू बैंकिंग प्रणाली की चलनिधि और वायदा बाजारों में आरबीआई का हस्तक्षेप शामिल हैं।

  • लंबी अवधि के वायदा प्रीमियम को निर्धारित करने में मुद्रास्फीति की अस्थिरता का अधिक महत्व है, जबकि एफआईटी अवधि में प्रणाली में चलनिधि भी महत्वपूर्ण हो गई है।

  • एफआईटी अवधि के दौरान, अधिशेष चलनिधि का सभी अवधियों में वायदा प्रीमियम पर एक गंभीर प्रभाव पड़ा और अधिक अनिश्चितता के कारण वायदा प्रीमियम में उतार-चढ़ाव कम हो गया।

V. उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में विदेशी मुद्रा भंडार बफर: संचालक, उद्देश्य और प्रभाव

प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में देखी गई प्रवृत्ति के अनुरूप, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 2019-20 और 2020-21 में तेजी से वृद्धि हुई, जिसके मुख्य कारण- मामूली बाह्य वित्तपोषण आवश्यकताओं की तुलना में मजबूत पूंजी प्रवाह और आईएमएफ द्वारा किए गए विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) आबंटन थे। इस लेख में ईएमई के लिए विदेशी मुद्रा भंडार के संचालकों और प्रभावों की चर्चा की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • 16 ईएमई के लिए पैनल डेटा के आधार पर तार्किक विश्लेषण से पता चलता है कि लंबी अवधि में, ईएमई का आरक्षित संचय व्यापारिक मकसद के बजाय एहतियाती मकसद से निर्धारित होता है।

  • प्रभावों के संबंध में, प्रोबिट मॉडल से पता चलता है कि आरक्षित निधि में वृद्धि मुद्रा संकट की संभावना को कम करती है। इसके अलावा, विदेशी मुद्रा भंडार विनिमय दरों की अस्थिरता को रोकने में ईएमई की मदद करते हैं।

  • भारत के लिए, आयात के आरक्षित कवर में वृद्धि को विदेशी मुद्रा उधार की कम लागत के साथ जुड़ा हुआ माना जाता है।

VI. शहरी सहकारी बैंकों में डिजिटलीकरण: प्रसार और विभेदीकरण

हाल के दशकों में, तकनीकी और डिजिटल प्रगति ने भारत में बैंकिंग को फिर से परिभाषित किया है। वर्ष 2016 से 2021 तक की अवधि तक शामिल शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) पर सर्वेक्षण-आधारित डेटा का उपयोग करते हुए, यह आलेख (क) यूसीबी क्षेत्र में समग्र डिजिटल प्रसार; (ख) यूसीबी द्वारा विभिन्न डिजिटल बैंकिंग चैनलों को अपनाने में क्या प्रगति हुई है; और (ग) इन बैंकों में डिजिटलीकरण और जमाकर्ता व्यवहार के बीच संबंध का विश्लेषण करता है।

प्रमुख बिंदु

  • यूसीबी ने हाल के वर्षों में डिजिटलीकरण में लगातार वृद्धि का प्रदर्शन किया है। हालांकि, 2021 में भी, इन बैंकों के लिए उनके डिजिटल प्रसार को दर्शाने वाला डिजिटल इंडेक्स (डीआई) स्कोर अधिकतम 100 में से 41 होने का अनुमान लगाया गया था, जो इन बैंकों को डिजिटलीकरण में अग्रणी बनने के लिए अभी भी यात्रा के लिए शेष दूरी को दर्शाता है।

  • यूसीबी के बीच डिजिटलीकरण में निम्नानुसार विभेदीकरण किया गया है (क) श्रेणी द्वारा (गैर-अनुसूचित यूसीबी पर स्पष्ट वरिष्ठता रखने वाला अनुसूचित यूसीबी); (ख) जमाराशि के आधार पर (टियर I यूसीबी से आगे टियर II यूसीबी); और (ग) क्षेत्र (अन्य तीन क्षेत्रों से यूसीबी के आगे पश्चिम क्षेत्र के यूसीबी)।

  • अध्ययन अवधि के दौरान, यूसीबी ने आईएमपीएस जैसे खुदरा भुगतान चैनलों को अपनाने में अधिकतम प्रगति दिखाई है, इसके बाद मोबाइल बैंकिंग जैसे एप्लिकेशन-आधारित चैनलों को भी अपनाया गया है।

  • अनुमानित डीआई स्कोर यूसीबी की वर्तमान और बचत जमाओं की राशि और संख्या के बीच एक सकारात्मक सहसंबंध रखते हैं, जो इन बैंकों में जमाकर्ता के व्यवहार पर डिजिटलीकरण के प्रभाव को दर्शाता है।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/83


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