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मास्टर निदेशों

मास्‍टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (ओटीसी डेरिवेटिव में मार्केट मेकर्स) निदेश, 2021

आरबीआई/एफएमआरडी/2021-22/84
एफएमआरडी.एफएमडी.07/02.03.247/2021-22

16 सितम्‍बर 2021

प्रति,

बाजार के सभी पात्र सहभागी

महोदया/ महोदया,

मास्‍टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (ओटीसी डेरिवेटिव में मार्केट मेकर्स) निदेश, 2021

कृपया 04 दिसम्‍बर 2020 को जारी किए गए द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्‍तव्‍य 2020-21 के एक भाग के तौर पर डेरिवेटिव के बारे में समेकित दिशानिदेशों की समीक्षा (सीजीडी) के संबंध में विकासात्‍मक और विनियामक नीतियों के बारे में दिए गए वक्‍तव्‍य के अनुच्‍छेद 11 का अवलोकन कीजिए।

2. भारतीय रिज़र्व बैंक (ओटीसी डेरिवेटिव में मार्केट मेकर्स) निदेश, 2020 के प्रारूप को जनसाधारण से अभिमत प्राप्‍त करने हेतु 04 दिसम्‍बर 2020 को जारी किया गया था। बाजार के सहभागियों से प्राप्‍त फीडबैक के आधार पर प्रारूप की समीक्षा की गई और अब इन्‍हें अंतिम रूप दिया गया है। मास्‍टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (ओटीसी डेरिवेटिव में मार्केट मेकर्स) निदेश, 2021 संलग्‍न हैं।

भवदीया,

(डिंपल भांडिया)
मुख्य महाप्रबंधक


वित्तीय बाजार विनियमन विभाग

अधिसूचना सं. एफएमआरडी.एफएमडी.08/02.03.247/2021-22 दिनांक 16 सितंबर 2021

मास्‍टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (ओटीसी डेरिवेटिव में मार्केट मेकर्स) निदेश, 2021

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 02) (इसके बाद अधिनियम के रूप में उल्लिखित) की धारा 45यू के साथ पठित इसी अधिनियम की धारा 45डबल्यू के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (इसके बाद रिज़र्व बैंक के रूप में उल्लिखित) एतदद्वारा निम्नलिखित निदेश जारी करता है। इस संबंध में समय-समय पर यथासंशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (1999 का 42) तथा विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा) विनियमावली, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) का अवलोकन भी किया जाए।

1. लघु शीर्षक, प्रवर्तन और अनुमेयता

1.1 इन निदेशों को मास्‍टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (ओटीसी डेरिवेटिव में मार्केट मेकर्स) निदेश, 2021 कहा जाएगा।

1.2 ये निदेश 03 जनवरी 2022 से लागू होंगे।

1.3 ये निदेश नियंत्रक निदेशों के अनुसार ओटीसी में मार्केट मेकर के तौर पर कार्य करने के लिए अनुमति प्राप्‍त प्रतिष्‍ठानों पर लागू होंगे।

2. परिभाषाएं

2.1 इन परिभाषाओं में यदि संदर्भ से अन्‍यथा अपेक्षित नहीं हो तो :

(i) ‘कंपनी’ का वही आशय होगा जो कंपनी अधिनियम, 2013 (2013 का 18) की धारा 2(20) में निर्धारित किया गया है।

(ii) ‘क्रेडिट डिफॉल्ट स्‍वैप’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जिसमें एक पक्ष (सुरक्षा विक्रेता) दूसरे पक्ष (सुरक्षा क्रेता) को संदर्भगत प्रतिष्‍ठान के संबंध में क्रेडिट इवेन्‍ट के मामले में भुगतान करने का वचन देता है, और इसके बदले में संरक्षण-क्रेता द्वारा संरक्षण विक्रेता को आवधिक भुगतान (प्रीमियम) तब तक किए जाते हैं जब तक कि संविदा का समापन या क्रेडिट इवेन्‍ट, दोनों में से जो भी पहले हो, नहीं हो जाए।

(iii) ‘करेन्‍सी स्‍वैप’ का आशय है ऐसे ओटीसी डेरिवेटिव से है जिसमें पूर्व-सहमत विनिमय दर पर स्‍वैप की समयावधि के दौरान निर्दिष्‍ट तारीखों पर अलग-अलग मुद्राओं में ब्‍याज और/अथवा मूलधन की रकमों के प्रवाहों के विनिमय हेतु दो प्रतिपक्षों को प्रतिबद्धता प्रदान की जाती है।

(iv) ‘डेरिवेटिव’ का वही आशय रहेगा जो इस अधिनियम की धारा 45यू(ए) में निर्धारित किया गया है।

(v) ‘इलेक्‍ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्‍लेटफार्म (ईटीपी)’ का वही आशय रहेगा जैसा कि समय-समय पर यथासंशोधित इलेक्‍ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्‍लेटफार्म्स (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2018 दिनांक 5 अक्‍तूबर 2018 के अनुच्छेद 2(1)(iii) में निर्धारित किया गया है।

(vi) ‘एक्‍सचेन्‍ज’ का आशय है ‘मान्यता-प्राप्‍त स्‍टॉक एक्‍सचेन्‍ज’ और इसका वही अर्थ रहेगा जो प्रतिभूति संविदा विनियमन अधिनियम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2(एफ) में निर्धारित किया गया है।

(vii) ‘विदेशी मुद्रा वायदा’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जिसमें संविदा की तारीख को सहमत दर पर भविष्‍य में (परावर्ती दो कारोबारी दिवसों से अधिक के बाद) निर्धारित तारीख को दो मुद्राओं का विनिमय निहित हो।

(viii) ‘विदेशी मुद्रा कॉल आप्‍शन (यूरोपियन)’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जो भविष्‍य में किसी निर्दिष्‍ट तारीख को एक निर्दिष्‍ट विनिमय दर पर किसी निश्चित मुद्रा के साथ किसी मुद्रा की सहमत रकम खरीदने का अधिकार क्रेता को देता है, किन्तु इसे दायित्‍व नहीं माना जाता है।

(ix) ‘विदेशी मुद्रा पुट आप्‍शन (यूरोपियन)’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जो भविष्‍य में किसी निर्दिष्‍ट तारीख को एक निर्दिष्‍ट विनिमय दर पर किसी निश्चित मुद्रा के साथ किसी मुद्रा की सहमत रकम बेचने का अधिकार क्रेता को देता है, किन्तु इसे दायित्‍व नहीं माना जाता है।

(x) ‘विदेशी मुद्रा स्‍वैप’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जिसमें संविदा के समय सहमत दरों पर किसी निर्दिष्‍ट तारीख (शॉर्ट लेग) को दो मुद्राओं (केवल मूलधन की रकम) के वास्तविक विनिमय और फिर भविष्‍य की किसी तारीख (लॉन्‍ग लेग) को इन्‍हीं दोनों मुद्राओं का प्रति-विनिमय निहित हो।

(xi) ‘वायदा दर करार’ का आशय है दो प्रतिपक्षों के बीच नकद-निपटाए गए ओटीसी डेरिवेटिव, जिसमें निपटान की तारीख को एक क्रेता, किसी निर्दिष्‍ट वायदा अवधि के लिए अनुमानित मूलधन की रकम के लिए अनुमेय संदर्भ ब्‍याज दर और पूर्व-निर्धारित निश्‍चित दर (एफआरए दर) के बीच अंतर का भुगतान करेगा या भुगतान प्राप्‍त करेगा।

(xii) ‘नियंत्रक निदेश’ – किसी ओटीसी डेरिवेटिव के लिए इनके अर्थ निम्‍नानुसार हैं :

  1. विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव के लिए समय-समय पर यथासंशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदा) विनियमावली, 2000 (अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 दिनांक 3 मई 2000) और मास्‍टर निदेश – जोखिम प्रबंधन और इन्‍टर-बैंक डीलिंग (अधिसूचना सं. एफएमआरडी. मास्‍टर निदेश सं.1/2016-17 दिनांक 05 जुलाई 2016)।

  2. रुपया ब्‍याज दर डेरिवेटिव (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2019 (अधिसूचना सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.20/2019 दिनांक 26 जून 2019) – समय-समय पर यथासंशोधित।

  3. क्रेडिट डेरिवेटिव के लिए कार्पोरेट बॉन्‍ड हेतु क्रेडिट डिफाल्‍ट स्‍वैप पर दिशानिदेश (अधिसूचना सं.आईडीएमडी.पीसीडी.सं.10/14.03.04/2012-13 दिनांक 7 जनवरी 2013) – समय-समय पर यथासंशोधित।

(xiii) ‘ब्‍याज दर कैप’ का आशय है ब्‍याज दर कॉल आप्‍शन (यूरोपियन) की शृंखला (जिसे कैपलेट कहा जाता है), जिसमें इस आप्‍शन के क्रेता को प्रत्‍येक अवधि के अंत में भुगतान उस समय प्राप्‍त होता है जब अंतर्निहित ब्‍याज दर पहले से सहमत दर से ऊपर होती है।

(xiv) ‘ब्‍याज दर फ्लोर’ का आशय है ब्‍याज दर कॉल आप्‍शन (यूरोपियन) की शृंखला, जिसमें इस आप्‍शन के क्रेता को प्रत्‍येक अवधि के अंत में भुगतान उस समय प्राप्‍त होता है जब अंतर्निहित ब्‍याज दर पहले से सहमत दर की से नीचे होती है।

(xv) ‘ब्‍याज दर कॉल आप्‍शन (यूरोपियन)’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जो भविष्‍य में किसी निर्दिष्‍ट तारीख को पूर्व-निर्धारित कीमत/दर पर ब्‍याज दर लिखत खरीदने या किसी अनुमानित मूलधन पर ब्‍याज दर प्राप्‍त करने का अधिकार देता है, लेकिन इसमें दायित्‍व नहीं होता है।

(xvi) ‘ब्‍याज दर पुट आप्‍शन (यूरोपियन)’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जो भविष्‍य में किसी निर्दिष्‍ट तारीख को पूर्व-निर्धारित कीमत/दर पर ब्‍याज दर लिखत के विक्रय या किसी अनुमानित मूलधन पर ब्‍याज दर के भुगतान करने का अधिकार देता है, लेकिन इसमें दायित्‍व नहीं होता है।

(xvii) ‘ब्‍याज दर स्‍वैप’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जिसमें दो प्रतिपक्ष एक निर्दिष्‍ट अवधि के दौरान किसी अनुमानित मूलधन की रकम पर अनुमेय भावी ब्‍याज भुगतानों के एक प्रवाह को किसी दूसरे प्रवाह से विनिमय की सहमति देते हैं।

(xviii) ‘मार्केट मेकर’ का आशय है ऐसा प्रतिष्‍ठान जो अन्‍य मार्केट मेकर्स और प्रयोक्‍ताओं को कीमतें प्रदान करता है।

स्‍पष्‍टीकरण : विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(1) के तहत प्राधिकृत किए हुए प्राधिकृत व्‍यक्ति, जिसे प्रयोक्‍ताओं और अन्‍य प्राधिकृत व्‍यक्तियों के साथ विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव लेनदेन की अनुमति हो, उसे ऐसे लेनदेन के लिए मार्केट मेकर के तौर पर माना जाएगा।

(xix) ‘अप्रदेय डेरिवेटिव’ का आशय वही रहेगा जो नियंत्रक निदेशों में इसके लिए निर्धारित किया गया है।

(xx) ‘ओवर-दि-काउन्‍टर (ओटीसी) डेरिवेटिव’ का आशय है ऐसे डेरिवेटिव (प्रदेय और अप्रदेय) जो एक्‍सचेंजों में सौदाकृत के अलावा होते हैं और इनमें वे डेरिवेटिव भी शामिल होंगे जिनका सौदा इलेक्‍ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्‍लेटफॉर्म (ईटीपी) पर किया जाता है।

(xxi) ‘भारत में निवासी व्‍यक्ति’ का वही आशय रहेगा जो विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 2(वी) में निर्धारित किया गया है।

(xxii) ‘भारत के बाहर निवासी व्‍यक्ति’ का वही आशय रहेगा जो विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 2(डब्ल्यू) में निर्धारित किया गया है।

(xxiii) ‘संरचनाबद्ध डेरिवेटिव’ का आशय है ऐसा ओटीसी डेरिवेटिव जो जेनरिक डेरिवेटिव से अलग होता है।

इस परिभाषा के प्रयोजन से जेनरिक डेरिवेटिव का आशय निम्‍नलिखित से है :

  1. वायदा दर करार;

  2. विदेशी मुद्रा वायदा;

  3. ब्‍याज दर स्‍वैप;

  4. विदेशी मुद्रा स्‍वैप;

  5. मुद्रा स्‍वैप;

  6. क्रेडिट चूक स्‍वैप;

  7. ब्‍याज दर कॉल/पुट आप्‍शन (यूरोपियन);

  8. ब्‍याज दर कैप (यूरोपियन);

  9. ब्‍याज दर फ्लोर (यूरोपियन);

  10. विदेशी मुद्रा कॉल/पुट आप्‍शन (यूरोपियन).

(xxiv) ‘प्रयोक्‍ता’ का वही आशय रहेगा जो नियंत्रक निदेशों में यथा निर्धारित है।

2.2 इन निदेशों में प्रयुक्‍त किन्‍तु परिभाषित नहीं किए गए शब्‍दों और अभिव्‍यक्तियों का वही अर्थ रहेगा जो इस अधिनियम में निर्धारित किया गया है।

3. अभिशासन

3.1 मार्केट मेकर के निदेशक मंडल (या समकक्ष मंच) और वरिष्‍ठ प्रबंधन के पास उनके अपने प्रतिष्‍ठान द्वारा किए जा रहे डेरिवेटिव कारोबार की प्रकृति की अच्‍छी समझ होनी चाहिए और आवश्‍यक है कि वे अपने कार्यों से यह प्रदर्शित करें कि डेरिवेटिव कारोबार के संबंध में समस्‍त संस्‍थान में प्रभावी जोखिम प्रबंधन और अनुपालना के परिवेश के प्रति उनमें प्रबल प्रतिबद्धता है। विशेष करके, निदेशक मंडल (या समकक्ष मंच) निम्‍नलिखित के कार्यान्वयन को सुनिश्‍चित करेंगे :

  1. पर्याप्‍त और प्रभावी जोखिम प्रबंधन और आंतरिक नियंत्रण नीतियां और कार्यपद्धतियां जो उत्‍पादों की जटिलता के समानुरूप हों;

  2. डेरिवेटिव कारोबार, जोखिम प्रबंधन प्रकार्य, आंतरिक नियंत्रण प्रकार्य और आंतरिक लेखा-परीक्षा के विवेकपूर्ण संचालन हेतु समुचित संस्‍थागत संरचना (दायित्‍व और उत्तरदायित्व की स्‍पष्‍ट व्‍यवस्‍था सहित), स्‍टाफ और अन्‍य संसाधन;

  3. विनियामक अनुपालना के लिए पर्याप्‍त और प्रभावी उपाय; और

  4. आंतरिक और बाह्य लेखापरीक्षाओं में प्राप्‍त परिणामों के समाधान हेतु पर्याप्‍त और प्रभावी उपाय।

3.2 मार्केट-मेकर के निदेशक मंडल (या समकक्ष मंच) निगमगत (कार्पोरेट) अभिशासन हेतु अपने सामान्‍य दायित्‍व के समनुरूप ही लिखित नीतियों का अनुमोदन करेंगे जिसमें समग्र विधि-विधान को परिभाषित किया गया हो जिसके दायरे में रहते हुए डेरिवेटिव कारोबार का परिचालन और संबंधित जोखिमों का प्रबंधन किया जाएगा। ऐसे विधि-विधान में कम-से-कम निम्‍नलिखित पहलुओं को दायरे में लिया जाएगा :

(i) जोखिम उठाने में प्रतिष्‍ठान की सम्‍यक प्रबलता स्‍थापित करना और सुनिश्‍चित करना कि यह जोखिम से प्रभावी रूप से निपटने हेतु इसकी रणनीति, प्रयोजनों, पूंजी-सुदृढ़ता और क्षमता के समनुरूप है;

(ii) डेरिवेटिव कारोबार हेतु अनुमत क्रियाकलापों, उत्‍पादों और सीमाओं को निर्धारित करना;

(iii) निम्‍नलिखित हेतु नीतियां स्‍थापित करना :

  1. इन निदेशों के पैरा 4 में बताए गए व्‍यापक सिद्धांतों पर आधारित नए ओटीसी डेरिवेटिव उत्‍पादों को शुरू करना;

  2. इन निदेशों के पैरा 5.1.3 में बताए गए व्‍यापक सिद्धांतों के आधार पर कारोबार-पूर्व यथोचित सतर्कता बनाए रखना;

  3. इन निदेशों के पैरा 6 में बताए गए व्‍यापक सिद्धांतों के आधार पर जोखिम प्रबंधन;

  4. इन निदेशों के पैरा 7 में बताए गए व्‍यापक सिद्धांतों के आधार पर आंतरिक नियंत्रण; और

  5. इन निदेशों के पैरा 8 में बताए गए व्‍यापक सिद्धांतों के आधार पर आंतरिक लेखापरीक्षा का संचालन।

(iv) निदेशक बोर्ड (या समकक्ष फोरम) और इसकी समितियों को प्रस्‍तुत की जाने वाली रिपोर्टों के प्रकार और बारंबारता का विवरण दीजिए।

4. उत्‍पाद

4.1 नए ओटीसी डेरिवेटिव उत्‍पादों की शुरूआत की नीति में नए उत्‍पादों के मूल्‍यांकन और अनुमोदन की प्रक्रिया तो कम-से-कम शामिल अवश्‍य की जाएगी।

4.2 अनुमत उत्‍पाद

4.2.1 मार्केट-मेकर केवल नियंत्रक निदेशों के अनुसार अनुमत डेरिवेटिव उत्‍पादों में ही कारोाबर करेंगे।

4.2.2 मार्केट-मेकर उन्‍हीं डेरिवेटिव उत्‍पादों में कारोबार करेंगे जो नकदी विलेख और/अथवा इनके घटक के तौर पर अनुमत डेरिवेटिव हैं।

4.2.3 मार्केट-मेकर जब तक नियंत्रक निदेशों के अनुसार विशिष्‍ट तौर पर अनुमत नहीं हो, अन्‍तर्निहित डेरिवेटिव लिखत वाले डेरिवेटिव उत्‍पादों में कारोबार नहीं करेंगे।

4.2.4 मार्केट-मेकर प्रत्‍यक्ष अथवा बैक-टू-बैक आधार पर ऐसे डेरिवेटिव उप्‍तादों में लेनदेन नहीं करेंगे जिनकी कीमत वे स्‍वतंत्र रूप से निर्धारित नहीं कर सकते हों।

4.3 यथोचित सतर्कता

4.3.1 ई नया उत्‍पाद आरंभ करने हेतु यथोचित सतर्कता में कम-से-कम उस उत्‍पाद के निम्‍नलिखित पहलुओं की आकलन को शामिल किया जाएगा :

  1. प्रयोजन (नों);

  2. लक्षित ग्राहक का प्रकार और यह उत्‍पाद उनकी जरूरत (तों) को किस प्रकार से पूरा करता है;

  3. सभी जोखिम जो ग्राहक के सामने आने संभावित हैं;

  4. चुकौती प्रोफाइल;

  5. कीमत निर्धारण;

  6. ग्राहक द्वारा वहन की जाने वाली लागत और शुल्‍क, इनके घटकों के विश्‍लेषण सहित, और

  7. किसी भी प्रकार के हित संघर्ष से बचाव हेतु आवश्‍यक उपाय।

4.3.2 नए उत्‍पादों के अनुमोदन से पहले मुख्‍य अनुपालन अधिकारी (सीसीओ) और मुख्‍य जोखिम अधिकारी (सीआरओ) विशिष्‍ट निर्णय (साइन ऑफ) करेंगे।

4.3.3 सभी नए उत्‍पादों का अनुमोदन निदेशक मंडल (या समकक्ष मंच) द्वारा किया जाएगा, जिसमें अन्‍य बातों के साथ-साथ यह भी सुनिश्‍चित किया जाए कि उत्‍पाद के लिए सभी अनुमेय विनियमों को प्रलेखन किया गया और अनुपालन किया गया है।

4.4 कीमत निर्धारण और मूल्‍यांकन

4.4.1 उत्‍पादों के कीमत निर्धारण और मूल्‍यांकन पद्धति के विवरणों को प्रलेखबद्ध किया जाएगा।

4.4.2 निम्‍नानुसार प्राथमिकता अनुक्रम के आधार पर उत्‍पादों का मूल्‍य तय किया जाएगा :

  1. उत्‍पाद (या इसके घटक(कों)) को मार्क-टु-मार्केट करना;

  2. उत्‍पाद (या इसके घटक(कों)) को मार्क-टु-मॉडल करना;

4.4.3 ऐसे मामले जिनमें उत्‍पाद के मूल्‍यांकन हेतु किसी प्रतिमान (मॉडल) का प्रयोग किया जाता है:

  1. तृतीय पक्ष के मॉडलों सहित किसी भी प्रतिमान (मॉडल)का प्रयोजन, बनावट, निविष्टि (इनपुट) चरांक, अंतर्निहित पूर्वधारणाओं, मात्रात्‍मक कलनविधियों और सीमाओं को पर्याप्‍त रूप से समझा और प्रलेखबद्ध किया जाएगा;

  2. जहां भी उपलब्‍ध हों तो प्रतिमान को समर्थन देने वाले निविष्टि (इनपुट) ऐसे होंगे जो मार्केट के सुस्‍पष्‍ट चरांक हों;

  3. यदि निविष्टि (इनपुट) चरांकों में से कोई एक भी स्‍पष्‍ट / विषयनिष्‍ठ नहीं हो तो इनके प्रयोग का औचित्‍य बताया जाएगा और आकलन पद्धति को प्रलेखबद्ध किया जाएगा; और

  4. स्‍वतंत्र समीक्षा और पार्श्‍व-परीक्षण के माध्‍यम से इस प्रतिमान मॉडल का आवधिक सत्‍यापन किया जाएगा।

5. प्रयोक्‍ता डीलिंग संचालन

5.1 कारोबार से पहले का संचालन

5.1.1 प्रयोक्‍ता वर्गीकरण : प्रयोक्‍ता का वर्गीकरण और नियंत्रक निदेशों के अनुसार डेरिवेटिव उत्‍पादों का प्रस्‍ताव दिया जाएगा।

5.1.2 उत्पाद प्रकटीकरण वक्‍तव्‍य : पर्याप्‍त जानकारी प्रदान करने हेतु प्रयोक्‍ता को उत्‍पाद प्रकटीकरण वक्‍तव्‍य दिया जाएगा, जिसमें उत्‍पाद के बारे में मानक जानकारी दी गई होगी ताकि वह यह निर्णय कर सके कि क्‍या यह उत्‍पाद उसकी जरूरतों को पूरा करेगा और वह अन्‍य उत्‍पादों के साथ इसकी तुलना करने में सुविधा भी रहे। इस वक्‍तव्‍य में उत्‍पाद के बारे में कम-से-कम निम्‍नलिखित जानकारी दी जाएगी :

  1. विशेषताएं;

  2. परिसमापन/अवसान सहित संविदा के सभी निबंधन और शर्तें;

  3. फायदे;

  4. सभी जोखिम;

  5. चुकौती रूपरेखा;

  6. लागत और शुल्क, जहां भी जरूरी हो नियंत्रक निदेशकों के अनुसार ब्‍यौरों और विवरण सहित; और

  7. उदाहरण कि यह उत्‍पाद कैसे कार्य करता है।

5.1.3 समुचित सतर्कता : प्रयोक्‍ता के साथ डेरिवेटिव लेनदेन करने से पहले निम्‍नलिखित पहलुओं के संबंध में समुचित सतर्कता रखी जाएगी। प्रदेय और अप्रदेय तथा 13 माह तक की कालावधि वाले – प्‍लेन वनीला विदेशी मुद्रा वायदा और विदेशी मुद्रा कॉल/पुट आप्‍शन (यूरोपियन) के मामले में इस प्रकार की समुचित सतर्कता अनिवार्य नहीं होगी।

(i) उत्‍पाद अनुरूपता : प्रस्‍तावित उत्‍पाद को प्रयोक्‍ता के प्रयोजनों और जोखिम सहनीयता के साथ समनुरूप रखना होगा। यदि मार्केट-मेकर के आकलन में कोई उत्‍पाद प्रयोक्‍ता के अनुरूप नहीं पाया जाता है तो प्रयोक्‍ता को इस बारे में जानकारी दी जाएगी। इसके बावजूद भी यदि प्रयोक्‍ता आगे बढ़ना चाहता है तो मार्केट-मेकर अपने विश्‍लेषणों और प्रयोक्‍ता के साथ हुए विचार-विमर्श को प्रलेखबद्ध करेगा। मार्केट-मेकर के साथ-साथ प्रयोक्‍ता भी ऐसे संव्‍यवहारों के लिए अनुमोदन को अपने अगले उच्‍चतर स्‍तर के प्राधिकारी तक ले जाएंगे।

(ii) प्रयोक्‍ता संगतता : कोई उत्‍पाद केवल उन्‍हीं प्रयोक्‍ताओं को प्रस्‍तावित किया जाएगा जो मार्केट-मेकर के विवेकपूर्ण आकलन के अनुसार :

  1. उत्‍पाद की प्रकृति, कीमत निर्धारण और जोखिमों का आवश्‍यक ज्ञान और दक्षता रखते हैं;

  2. इन जोखिमों को उठाने की वित्‍तीय सामर्थ्‍य रखते हैं; और

  3. ऑफर किए जा रहे उत्‍पाद के समनुरूप जोखिम प्रबंधन व्‍यवस्‍था रखते हैं।

(iii) जोखिम प्रकटीकरण वक्‍तव्‍य : प्रत्‍येक डेरिवेटिव संव्‍यवहार हेतु प्रयोक्‍ता को जोखिम प्रकटीकरण वक्‍तव्‍य प्रदान किया जएगा। इस वक्‍तव्‍य में कम-से-कम निम्‍नलिखित जानकारी अवश्‍य दी जाएगी :

  1. संव्‍यवहार का विवरण और औचित्‍य;

  2. उत्‍पाद को प्रभावित करने वाले विभिन्‍न मानदंडों का अभिनिर्धारण करने वाले संवेदनीयता विश्‍लेषण; और

  3. भुगतान प्रोफाइल पर महत्त्वपूर्ण उच्‍च और नकारात्‍मक जोखिमों को शामिल करने वाले परिदृश्‍य का समेकित विश्‍लेषण।

(iv) संरचनाबद्ध डेरिवेटिव : प्रयोक्‍ता को संरचनाबद्ध डेरिवेटिव का प्रस्‍ताव देने से पहले उत्‍पाद की जटिलता के समनुरूप वर्द्धित समुचित सतर्कता का आकलन किया जाएगा।

5.1.4 प्राधिकार का सत्‍यापन : इस बारे में सत्‍यापन की समुचित सतर्कता रखी जाएगी कि डेरिवेटिव संव्‍यवहार करने वाले व्‍यक्तियों को विधिवत प्राधिकृत किया जाता है।

5.2 ट्रेड संचालन

5.2.1 संव्‍यवहारों को उचित और पारदर्शी रीति से पूरा किया जाएगा।

5.2.2 संविदा के पुनर्निधा्रण, पुनर्संरचना और नवीयन सहित संव्‍यवहारों का निष्‍पादन प्रचलित बाजार दरों पर किया जाएगा। इस बारे में नियंत्रक निदेशों में निर्धारित अपेक्षाओं का अनुपालन किया जाएगा।

5.3 सौदे पश्‍चात के संचालन

5.3.1 प्रयोक्‍ता द्वारा किसी दिन-विशेष को किए गए प्रत्‍येक संव्‍यवहार के लिए अलग-अलग या सभी संव्‍यवहारों के लिए समेकित रूप से प्रयोक्‍ता को सौदे की पुष्टि प्रदान की जाएगी। इसकी पुष्टि भी प्रयोक्‍ता से इस रीति से प्राप्‍त की जाएगी जो विधिक दृष्टि से प्रवर्तनीय हो।

5.3.2 मार्केट-मेकर और प्रयोक्‍ता के बीच पारस्‍परिक सहमति के अनुसार आवधिक रूप से, और जब भी प्रयोक्‍ता द्वारा मांग की जाएगी, सभी स्थितियों के मार्क-टू-मार्केट मूल्‍य प्रयोक्‍ता को प्रदान किए जाएंगे।

5.4 जानकारी

5.4.1 प्रयोक्‍ता को दी जाने वाले सभी महत्त्वपूर्ण जानकारी लिखित में होगी (इलेक्‍ट्रॉनिक प्रकार सहित)।

5.4.2 प्रयोक्‍ता को दी जाने वाली सभी जानकारी स्‍पष्‍ट और असंदिग्‍ध भाषा और प्रस्‍तुति में होगी। चेतावनी और महत्त्वपूर्ण जानकारी सुप्रकट रूप में प्रस्‍तुत और सुस्‍पष्‍ट रूप से बताई जाएगी।

5.4.3 जहां कहीं भी कोई अभिमत अभिव्‍यक्‍त किया जाता है तो ऐसा अभिमत अभिव्‍यक्‍त करने हेतु पर्याप्‍त आधार रखना होगा और यह असंदिग्‍ध रूप से बताया जाएगा कि यह अभिमत की अभिव्‍यक्ति है।

5.4.4 प्रयोक्‍ता को दी जाने वाली जानकारी पर्याप्‍त और यथेष्‍ट होनी चाहिए ताकि उसे सुविज्ञ निर्णय लेने में सहायता रहे।

6. जोखिम प्रबंधन

6.1 अपने डेरिवेटिव कारोबार के कारण मार्केट-मेकर जिन सभी जोखिमों के प्रति अनावृत्त है उनको अभिनिर्धारित किया जाएगा और सहनशीलता स्‍तरों को निर्धारित किया जाएगा।

6.2 इन जोखिमों के प्रबंध हेतु प्रकियाओं को स्‍थापित किए जाएगा।

6.3 इन जोखिमों के प्रबंध हेतु सीमाओं की स्‍पष्‍ट और समेकित श्रेणियां स्‍थापित की जाएंगी।

6.4 जोखिम निविष्टि (इनपुट) का दबाव परीक्षण किया जाएगा।

6.5 मॉडल जोखिम के प्रबंध हेतु प्रभावी नीतियों, पद्धतियों और नियंत्रणों को लागू किया जाएगा।

6.6 विधिक जोखिम, अर्थात किसी डेरिवेटिव संविदा को विधिक रूप से प्रवर्तित करने के अयोग्‍य होने के जोखिम को पहचाना जाए और मार्केट-मेकर को मानक प्रलेखीकरण (उदाहरण के लिए आईएसडीए मास्‍टर करार) का प्रयोग करते हुए इसके समाधान का प्रयास करना चाहिए। यदि विशिष्‍ट प्रकार का प्रलेखीकरण प्रयोग किया जाता है तो इसके लिए प्रलेखबद्ध विधिक सलाह ली जाए।

6.7 डेरिवेटिव संविदा से प्रतिपक्ष के क्रेडिट जोखिम का समझा जाए और प्रतिपक्ष का क्रेडिट आकलन करके मार्केट-मेकर को इसका प्रबंधन करना चाहिए और जहां भी अनुमति हो तो इसके लिए प्रतिपक्ष के साथ समुचित सांपार्श्विक का विनिमय भी करें।

7. आंतरिक नियंत्रण

7.1 संव्‍यवहारों की प्रोसेसिंग और निगरानी कार्यप्रवाह के विभिन्‍न स्‍तरों पर आंतरिक नियंत्रण लागू करने के लिए नीतियों और कार्यपद्धतियों को निर्धारित किया जाएगा।

7.2 ट्रेडिंग परिचालनों का संचालन करने के लिए जिम्‍मेदार अग्र-कार्यालय और परिणामी सौदों की प्रोसेसिंग हेतु जिम्‍मेदार पश्‍च कार्यालय दोनों के बीच प्रकार्यात्‍मक रूप से और भौतिक दृष्टि दोनों ही प्रकार से सुस्‍पष्‍ट विभेदन रखना होगा।

8. आंतरिक लेखा-परीक्षा

8.1 जोखिम प्रबंधन प्रणाली और आंतरिक नियंत्रणों की पर्याप्‍तता हेतु समीक्षा और प्रभावशीलता के परीक्षण के लिए डेरिवेटिव कारोबार की आंतरिक लेखा-परीक्षा की जाएगी। लेखा-परीक्षा में कम-से-कम -

  1. सीमाओं के बड़े उल्‍लंघनों, अप्राधिकृत सौदों और असमाशोधित मूल्‍यांकन अथवा लेखांकन अंतरों जैसी असामान्‍य घटनाओं की जांच की जाएगी;

  2. वरिष्‍ठ प्रबंधन और निदेशक मंडल (या समकक्ष मंच) को सूचित जानकारी की विश्‍वसनीयता और सामयिकता का मूल्‍यांकन किया जाएगा;

  3. अंतर्निहित डाटा स्रोतों पर दी गई जोखिम अनावृत्ति रिपोर्टों की जानकारी को सत्‍यापित किया और इसका पता लगाया जाएगा;

  4. जोखिम प्रबंधन प्रक्रिया की प्रभावकारिता और स्‍वतंत्रता का मूल्‍यांकन किया जाएगा;

  5. मूल्‍यांकन और स्‍वतंत्र रूप से सत्‍यापित किया जाएगा कि क्या मॉडल जोखिम प्रबंधन परिपाटियां समेकित, प्रखर और प्रभावी हैं;

  6. डेरिवेटिव मूल्यांकन प्रक्रिया की पर्याप्‍तता का मूल्‍यांकन किया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि यह कार्य जोखिम-उठाने के क्रियाकलापों से अलग पक्षों द्वारा किया जाता है। लेखापरीक्षक परिशुद्धता के लिए डेरिवेटिव मूल्‍यांकन रिपोर्टों का परीक्षण करेंगे; और

  7. प्रयोक्‍ताओं को दिए गए उत्‍पाद प्रकटीकरण वक्‍तव्‍य और जोखिम प्रकटीकरण वक्‍तव्‍य का मूल्‍यांकन किया जाएगा।

8.2 आंतरिक लेखा-परीक्षा का संचालन योग्‍य व्यावसायिकों द्वारा किया जाएगा, जो लेखा-परीक्षा की जा रही कारोबारी लाइन से निष्‍पक्ष हों।

8.3 आंतरिक लेखा-परीक्षकों की सिफारिशों को सहमत समयावधि के भीतर ही लागू करने में प्रबंधन की विफलता की रिपोर्ट निदेशक मंडल (या समकक्ष मंच) की लेखा-परीक्षा समिति को दी जाएगी।

9. अभिलेखों का संरक्षण

9.1 कारोबार, नियंत्रण और निगरानी संबंधी सभी अभिलेखों को प्रचलित प्रतिधारणा अवधियों तक संरक्षित रखा जाएगा। यदि सांविधिक प्रतिधारणा अवधि का निर्धारण नहीं किया गया है तो अभिलेखों को मार्केट मेकर की आंतरिक नीति के अनुसार अभिलेखों का संरक्षण किया जाएगा शर्त यह रहेगी कि इन अभिलेखों को उत्‍पाद/संव्‍यवहार के जीवन चक्र (लाइफ) के बाद कम-से-कम दो वर्ष तक संरक्षित किया जाएगा। महत्त्वपूर्ण जानकारी और आंकड़ों का बैक-अप और संरक्षण मार्केट मेकर की सूचना प्रौद्योगिकी नीति के अनुसार किया जाएगा।

10. निष्‍प्रभावित

10.1 जिस तारीख को ये निदेश प्रभावी होंगे उसी दिन से रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निम्‍नलिखित परिपत्र निष्‍प्रभावी हो जाएंगे :

  1. परिपत्र सं. बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.86/21.04.157/2006-07 डेरिवेटिव विषयक समेकित दिशानिदेश दिनांक 20 अप्रैल 2007;

  2. परिपत्र सं. बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.27/21.04.157/2011-12 डेरिवेटिव विषयक समेकित दिशानिदेश : संशोधन दिनांक 2 अगस्‍त 2011;

  3. परिपत्र सं. बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.44/21.04.157/2011-12 डेरिवेटिव विषयक समेकित दिशानिदेश : संशोधन दिनांक 2 नवम्‍बर 2011; और

  4. परिपत्र सं. बैंपवि.सं.बीपी.बीसी.103/21.04.157/2017-18 डेरिवेटिव विषयक समेकित दिशानिदेश : संशोधन दिनांक 6 अप्रैल 2018.

10.2 उक्त निदेशों के अनुसार किए गए डेरिवेटिव संव्‍यवहारों पर पैरा 10.1 के तहत बताए गए परिपत्रों में निहित निदेश तब तक लागू होते रहेंगे, जब तक कि इन संव्‍यवहारों का समापन नहीं हो जाता है।


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