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बैंकिंग प्रणाली का विनियामक

बैंक राष्‍ट्रीय वित्‍तीय प्रणाली की नींव होते हैं। बैंकिंग प्रणाली की सुरक्षा एवं सुदृढता को सुनिश्चित करने और वित्‍तीय स्थिरता को बनाए रखने तथा इस प्रणाली के प्रति जनता में विश्‍वास जगाने में केंद्रीय बैंक महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

अधिसूचनाएं


समवर्ती लेखापरीक्षा प्रणाली

RBI/2019-20/64
DBS.CO.ARS.No.BC.01/08.91.021/2019-20

18 सितंबर, 2019

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर),
लघु वित्त बैंक, भुगतान बैंक और स्थानीय क्षेत्रीय बैंक

महोदया/महोदय,

समवर्ती लेखापरीक्षा प्रणाली

कृपया, वाणिज्यिक बैंकों में समवर्ती लेखापरीक्षा प्रणाली - आरबीआई के दिशानिर्देशों में संशोधन विषय पर, दिनांक 16 जुलाई, 2015 के परिपत्र संख्या DBS.CO.ARS.No.BC.2/08.91.021/2015-16 का संदर्भ लें।

2. जैसा कि आप जानते हैं, समवर्ती लेखापरीक्षा का उद्देश्य लेनदेन और इसकी स्वतंत्र जाँच के बीच के अंतराल को कम करना है। इसलिए, यह बेहतर आंतरिक लेखापरीक्षा कार्यों और प्रभावी नियंत्रणों को स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही, गंभीर त्रुटियों और अनियमितताओं का समय पर पता लगाने के लिए इसे बैंक की आरंभिक चेतावनी प्रणाली का हिस्सा माना जाता है, जो धोखाधड़ी वाले लेनदेन को रोकने और बैंकों में निवारक सतर्कता के कार्यान्वयन में भी मदद करता है।

3. आरबीआई पूर्व में, बैंकों के समवर्ती लेखा परीक्षकों के लिए कार्यक्षेत्र, कारोबार / शाखाओं की कवरेज, कवरेज की न्यूनतम मदों, आदि के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करता रहा है। हालांकि, बैंकों में केंद्रीकरण के विभिन्न स्तरों, विभिन्न बैंकों द्वारा की जाने वाली विविध प्रकार की गतिविधियों और लधु वित्त बैंकों और भुगतान बैंकों के द्वारा शुरु किए गए परिचालनों को ध्यान में रखते हुए, सभी बैंकों पर समान समवर्ती लेखापरीक्षा कार्यक्रम लागू करना वांछनीय नहीं है। इसके अलावा, बैंक द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति (श्री वाई एच मालेगाम की अध्यक्षता में) ने समवर्ती लेखापरीक्षा के संबंध में कुछ सिफारिशें की हैं। इसलिए, इस विषय पर मौजूदा दिशानिर्देशों की समीक्षा की गई है और संशोधित दिशानिर्देश निम्नानुसार दिए गए हैं:

क. कवरेज

(i) समवर्ती लेखा परीक्षकों के लिए कार्यक्षेत्र का निर्धारण, कारोबार/ शाखाओं का कवरेज आदि कार्य, बैंकों के आंतरिक लेखापरीक्षा के प्रमुख के विवेकाधिकार पर छोड़ दिए गए हैं, जिसके लिए, बैंक के निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति (ACB) / (विदेशी बैंकों के मामले में) स्थानीय प्रबंधन समिति (LMC) का पूर्व अनुमोदन आवश्यक है।

(ii) हालांकि, बैंकों को यह सुनिश्चित करना है कि उनके विशिष्ट कारोबार रूपरेखाओं के अनुसार उनके द्वारा चिह्नित जोखिम संभावित क्षेत्रों को समवर्ती लेखापरीक्षा में शामिल किया गया है। समवर्ती लेखापरीक्षा का विस्तृत कार्यक्षेत्र एसीबी / एलएमसी द्वारा निर्धारित और अनुमोदित किया जाए। समवर्ती लेखापरीक्षा के अंतर्गत आने वाले व्यापक क्षेत्र, इकाई के रेखांकित जोखिम पर आधारित होने चाहिए और इसमें जहां भी आवश्यक हो, लेनदेन के बृहत नमूने की यादृच्छिक लेनदेन जाँच भी शामिल होनी चाहिए। कवरेज के न्यूनतम क्षेत्र अनुबंध में दिए गए हैं।

(iii) यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी केंद्रीकृत प्रोसेसिंग केंद्र (व्यवसाय उत्पत्ति और निगरानी) समवर्ती लेखापरीक्षा के तहत शामिल किए गए हैं।

ख. लेखा परीक्षकों की नियुक्ति

(i) समवर्ती लेखा परीक्षा बैंक के अपने स्टाफ या बाहरी लेखा परीक्षकों (जिसमें अपने स्वयं के बैंक के सेवानिवृत्त कर्मचारी शामिल हो सकते हैं) द्वारा कराये जाने के विकल्प को संबंधित बैंकों के विवेक पर छोड़ा जाता है।

(ii) जहां इस तरह के कार्य को आउटसोर्स किया जाता है, बैंक में आंतरिक लेखा परीक्षा के प्रमुख, समवर्ती लेखा परीक्षकों के चयन में भाग लेंगे और वे, उनको रिपोर्ट करने वाले समवर्ती लेखा परीक्षकों के कार्य की गुणवत्ता समीक्षा (जिसमें कार्यरत कर्मचारियों का कौशल भी शामिल है) के लिए जिम्मेदार होंगे। हालांकि, यह सुनिश्चित किया जाए कि यदि किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म का कोई भागीदार किसी बैंक के बोर्ड में निदेशक है, तो उसी फर्म के किसी भी भागीदार को उसी बैंक में समवर्ती लेखा परीक्षक के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए।

(iii) यदि बैंक अपने ही अधिकारियों को समवर्ती लेखा परीक्षकों के रूप में नियुक्त करते हैं तो उन्हें अनुभवी, सुप्रशिक्षित और पर्याप्त रूप से वरिष्ठ होना चाहिए। समवर्ती लेखापरीक्षा में शामिल कर्मचारियों को उस शाखा अथवा व्यावसायिक इकाई से स्वतंत्र होना चाहिए, जहां समवर्ती लेखा परीक्षा की जाती है।

ग. जवाबदेही

(i) यदि बाहरी फर्मों को नियुक्त किया जाता है और उनके कार्य में कोई गंभीर चूक पाई जाती है तो उनकी नियुक्तियों को सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद रद्द किया जा सकता है और इस तथ्य की सूचना बैंक के एसीबी / एलएमसी, आरबीआई और आईसीएआई को दी जाएगी।

(ii) बैंक को, समवर्ती लेखा परीक्षकों के रूप में काम करने वाले अपने स्टाफ या सेवानिवृत्त स्टाफ के कार्यों में चूक के गंभीर मामलों में जवाबदेही तय करने के लिए एक नीति तैयार करनी चाहिए।

घ. कार्यकाल

(i) बैंक का एसीबी / एलएमसी, बैंक में बाहरी समवर्ती लेखा परीक्षकों का अधिकतम कार्यकाल तय करेगा। आमतौर पर, बैंक में बाहरी समवर्ती लेखा परीक्षकों का कार्यकाल निरंतर आधार पर पांच वर्ष से अधिक नहीं होगा। इसके अलावा, समवर्ती लेखा परीक्षकों के रूप में नियुक्त सेवानिवृत्त स्टाफ की आयु सीमा 70 वर्ष निर्धारित की जाए। हालांकि, किसी भी समवर्ती लेखा परीक्षक को तीन वर्ष से अधिक की अवधि के लिए किसी एक शाखा/व्यावसायिक इकाई में नियुक्ति जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

ङ. पारिश्रमिक

(i) बाहरी समवर्ती लेखा परीक्षकों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक का निर्धारण बैंक के एसीबी/एलएमसी द्वारा किया जाएगा। पारिश्रमिक; लेखापरीक्षा का दायरा और व्याप्ति, आवश्यक कौशल, जरूरी स्टाफ की संख्या और लेखापरीक्षा में लगे समय के अनुरूप होना चाहिए।

च. समवर्ती लेखापरीक्षा की प्रभाविता की समीक्षा

(i) बैंक के एसीबी / एलएमसी को समवर्ती लेखा परीक्षा प्रणाली की प्रभाविता के साथ-साथ समवर्ती लेखा परीक्षकों के कार्य-निष्पादन की वार्षिक आधार पर समीक्षा करनी चाहिए और प्रणाली को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए।

छ. रिपोर्टिंग प्रणाली

(i) बैंकों के आंतरिक लेखापरीक्षा विभाग को एसीबी/एलएमसी की स्वीकृति के साथ समवर्ती लेखा परीक्षकों के लिए एक रिपोर्टिंग प्रणाली विकसित करनी चाहिए।

(ii) समवर्ती लेखा परीक्षकों के निष्कर्षों को बैंक द्वारा निर्धारित व्यवस्थित प्रारूप में प्राप्त किया जाए।

(iii) समवर्ती लेखा परीक्षकों द्वारा बताई गई मामूली अनियमितताओं को मौके पर ही ठीक किया जाए। लेखापरीक्षा के दौरान देखी गई प्रमुख कमियों / विसंगतियों को तुरंत बैंक की संबंधित शाखा/ कारोबारी इकाई के नियंत्रण कार्यालय/प्रधान कार्यालय के संज्ञान में लाया जाना चाहिए।

(iv) समवर्ती लेखापरीक्षा के महत्वपूर्ण निष्कर्षों की त्रैमासिक समीक्षा को एसीबी/ एलएमसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। समवर्ती लेखापरीक्षा के क्षेत्र-वार निष्कर्षों को तिमाही आधार पर एसीबी/ एलएमसी को रिपोर्ट किया जाना चाहिए।

(v) जब भी फर्जी लेनदेन का पता लगता है, तो उन्हें तुरंत आंतरिक लेखा परीक्षा विभाग (प्रधान कार्यालय) के साथ-साथ मुख्य सतर्कता अधिकारी और संबंधित शाखा प्रबंधक (यदि शाखा प्रबंधक शामिल नहीं है) को भी सूचित किया जाना चाहिए।

(vi) समवर्ती लेखापरीक्षा रिपोर्टों पर अनुवर्ती कार्रवाई और कमियों को सुधारने के लिए बैंक की संबंधित शाखा/कारोबारी इकाई के नियंत्रक कार्यालय/ प्रधान कार्यालय द्वारा उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

4. आप यह सुनिश्चित करें कि संशोधित दिशानिर्देशों के आधार पर, समवर्ती लेखापरीक्षा की वर्तमान प्रणाली की तुरंत समीक्षा की जाए और बैंक के एसीबी/एलएमसी के पूर्व अनुमोदन के साथ इसमें आवश्यक परिवर्तनों को शामिल किया जाए।

भवदीय,

(ए. के. चौधरी)
मुख्य महाप्रबंधक

संलग्नक : यथोपरि


अनुबंध

समवर्ती लेखापरीक्षा के अंतर्गत न्यूनतम कवरेज क्षेत्र

1. नकदी लेनदेन - नकदी का भौतिक सत्यापन आदि सहित।

2. ऋण और अग्रिम - प्रतिभूतियों का भौतिक सत्यापन, मंजूरी हेतु शक्तियों का प्रत्यायोजन, सुरक्षा चार्ज निर्माण, निधियों का अंतिम उपयोग का सत्यापन, अधिक निकासी वाले खातों की निगरानी, परियोजनाओं की निगरानी आदि सहित।

3. केवाईसी/एएमएल दिशानिर्देशों का पालन - खातों में लेनदेन की निगरानी, विदेशी खाता कर अनुपालन अधिनियम (एफएटीसीए) तथा सामान्य रिपोर्टिंग मानकों (सीआरएस) का अनुपालन, नए खातों/स्टाफ के खातों की लेनदेन संबंधी निगरानी, सीटीआर/एसटीआर की रिपोर्टिंग आदि सहित।

4. धनप्रेषण/संकलन के लिए बिल - स्विफ्ट लेनदेन सहित, अतिदेय विवरणी (खरीदे गए/भुनाए गए/परक्रामित बिलों आदि) की निगरानी।

5. हाउस कीपिंग - खातों के मिलान, सामान्य खाता-बही/अनुषंगी सामान्य खाता-बही/पार्किंग खातों की निगरानी, आंतरिक खाते खोलना आदि सहित।

6. कोषागार परिचालन।

7. गैर निधि आधारित व्यवसाय।

8. विदेशी विनिमय लेनदेन।

9. समाशोधन लेनदेन।

10. व्यापार बैंकिंग व्यवसाय का सत्यापन।

11. क्रेडिट कार्ड/डेबिट कार्ड व्यवसाय का सत्यापन।

12. कर्मचारियों का आचरण, उत्पादों की अनुचित बिक्री आदि।

13. भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों तथा समय-समय पर जारी आंतरिक नीति दिशानर्देशों का अनुपालन।

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