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वित्तीय बाजार

सुचारू ढ़ंग से कार्य करने वाले, चलनिधि युक्त और लचीले वित्तीय बाजार मौद्रिक नीति अंतरण और भारत के विकास के वित्तपोषण में अपरिहार्य जोखिमों के आवंटन और अवशोषण में सहायता करते हैं।

अधिसूचनाएं


पुनर्खरीद संव्‍यवहार (रेपो) (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2018

आरबीआई/2018-19/24
एफएमआरडी.डीआईआरडी.01/14.03.038/2018-19

जुलाई 24, 2018

प्रति

रेपो बाजारों में सभी सहभागी

महोदय / महोदया

पुनर्खरीद संव्‍यवहार (रेपो) (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2018

कृपया 07 फरवरी 2018 को जारी किए गए छठे द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्‍तव्‍य 2017-18 के एक भाग के तौर पर समेकित रेपो निदेशों को जारी करने के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विकासात्‍मक और विनियामक नीतियों के बारे में दिए गए वक्‍तव्‍य के पैराग्राफ 5 का अवलोकन कीजिए।

2. इन निदेशों के प्रारूप पर सार्वजनिक अभिमत के लिए 01 मार्च 2018 को जारी किया गया था। बाजार के सहभागियों से प्राप्‍त फीडबैक के आधार पर पुनर्खरीद संव्‍यवहार (रेपो) (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2018 की समीक्षा करके इन्‍हें अंतिम रूप दिया गया। ये निदेश संलग्‍न हैं।

भवदीय

(टी. रबीशंकर)
मुख्‍य महाप्रबन्‍धक


भारतीय रिज़र्व बैंक
वित्‍तीय बाजार विनियमन विभाग
पहली मंजिल, केन्‍द्रीय कार्यालय, फोर्ट
मुम्‍बई – 400 001

एफएमआरडी.डीआईआरडी.02/CGM (TRS)-2018 दिनांक 24 जुलाई 2018

पुनर्खरीद संव्‍यवहार (रेपो) (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2018

भारतीय रिज़र्व बैंक (रिज़र्व बैंक) जनहित में आवश्‍यक समझते हुए और देश की वित्‍तीय प्रणाली को इसके फायदे के लिए नियंत्रित करने की दृष्टि से भारत में मार्केट पुनर्खरीद संव्‍यवहार (रेपो) में सभी पात्र व्‍यक्तियों को कारोबार में सहभागिता या कारोबारी लेनदेन करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (आरबीआई एक्‍ट) की धारा 45 (डब्लू) के माध्‍यम से इस संबंध में प्रदत्‍त शक्तियों का प्रयोग करते हुए निम्‍नलिखित निदेश जारी करता है:

1. इन निदेशों का संक्षिप्त शीर्षक, प्रवर्तन और अनुमेयता

(1) इन निदेशों को पुनर्खरीद संव्यवहार (रेपो) (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2018 कहा जाएगा और ये निदेश इस विषय में जारी अन्य सभी निदेशों का अधिग्रहण करेंगे और विनिमयों के दायरे में शामिल करेंगे। ये निदेश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।

(2) ये निदेश मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों,ईटीपी और ओटीसी पर किये गए पुनर्खरीद संव्यवहारों (रेपो) पर इनमें वर्णित सीमा तक अनुमेय होंगे। एक्सचेंज ट्रेडेड पुनर्खरीद संव्यवहारों के मामले में सौदों के निष्पादन और निपटान की पद्धति मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों / भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा जारी नियमों और विनियमों के अनुसार होंगे।

(3) चलनिधि समायोजन सुविधा और सीमान्त स्थायी सुविधा के तहत किए गए रेपो संव्यवहारों पर ये निदेश लागू नहीं होंगे, इनका नियंत्रण प्रचलित विनियमों के अनुसार होता रहेगा।

2. परिभाषाएं

(1) इन निदेशों में जब तक कि सन्दर्भ में अन्यथा अपेक्षित नहीं हो -

(ए) “कार्पोरेट बॉन्ड और डिबेंचर” का आशय है भारत में निर्गत अपरिवर्तनीय ऋण प्रतिभूतियाँ जो ऋणभार का सृजन अथवा अभिस्वीकृति करती हैं, इनमें शामिल हैं (i) डिबेंचर (ii) बॉन्ड (iii) वाणिज्यिक पत्र (iv) जमा प्रमाण पत्र और केंद्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा इसके तहत गठित कम्पनी, बहुपक्षीय वित्तीय संस्था या निगम निकाय की ऐसी ही अन्य प्रतिभूतियाँ, इनसे कम्पनी अथवा निगम निकाय की आस्तियों पर कोई प्रभार सृजित होता हो अथवा नहीं, लेकिन इनमें केंद्र सरकार का या रिज़र्व बैंक द्वारा निर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा जारी ऋण प्रतिभूतियाँ, प्रतिभूति रसीदें और प्रतिभूतिकृत ऋण लिखतें शामिल नहीं हैं।

(बी) “वाणिज्यिक पत्र (सीपी)” एक ऐसी अप्रतिभूत मुद्रा बाजार लिखत है जो प्रामिसरी नोट के रूप में जारी किया जाता है। एक सीपी की मूल समयावधि सात दिन से लेकर एक साल के बीच रहती है।

(सी) “जमा प्रमाणपत्र (सीडी)” मुद्रा बाजार की परक्राम्य लिखत है और किसी बैंक अथवा अन्य पात्र वित्तीय संस्थान में जमा निधियों के बदले में निर्दिष्ट समयावधि के लिए डीमैटिरियलाइज्ड रूप में अथवा मीयादी प्रामिसरी नोट के रूप में जारी किया जाता है।

(डी) “सुपुर्दगी बनाम भुगतान (डीवीपी)” एक प्रकार की निपटान व्यवस्था है जिसमें प्रतिभूतियों के क्रेता से निधियों का अंतरण प्रतिभूतियों के विक्रेता द्वारा प्रतिभूतियों का अंतरण करने के ठीक साथ ही किये जाने की संकल्पना निहित है।

(ई) “सरकारी प्रतिभूतियों” का वही आशय रहेगा जो सरकारी प्रतिभूति अधिनियम 2006 की धारा 20 (च) में निर्धारित है। 2 फ 2(f)

(एफ) “हेयरकट” का आशय कोलेट्रल के बाजार मूल्य और उस कोलेट्रल के बदले में उधार दी गयी रकम के बदले के बीच अंतर से है।

(जी) “सूचीबद्ध कॉर्पोरेट” का आशय ऐसी कंपनी अथवा फर्म से है जिसके शेयर और (अथवा) ऋणों को मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज (जों) में सूचीबद्ध किया गया है और इनके सौदे होते हैं।

(एच) “एमएफआई” का आशय बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों से है, जिनमें भारत सरकार एक सदस्य है।

(आय) “मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज” का आशय वही रहेगा जो प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1996 (1956 का 42) की धारा 2(च) में परिभाषित है। 2 फ 2(f)

(जे) “विनियमित संस्था” का आशय किसी व्यक्ति अथवा हिन्दू अभिवाजित परिवार के अलावा ऐसे किसी व्यक्ति से है जिसके कारोबारी क्रियाकलापों का विनियमन भारत में निम्नलिखित में से किसी एक वित्तीय संस्थान यथा– रिज़र्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड(सेबी), भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इरडाई), पेंशन फण्ड विनियामक और विकास प्राधिकरण, राष्ट्रीय आवास बैंक और राष्ट्रीय कृषि और विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा किया जाता है।

(के) “सम्बद्ध संस्था” का आशय किसी कंपनी अथवा फर्म से है सम्बद्ध ऐसी कंपनी अथवा फर्म से है जो (i) ऐसी कंपनी की धारक, सहायक या सहयोगी कंपनी हो, या (ii) ऐसी धारक कंपनी की सहायक कंपनी से है जो स्वयं भी सहायक कंपनी हो। धारक, सहायक और सहयोगी कंपनी का आशय वही रहेगा जो कंपनी अधनियम, 2013 में परिभाषित है।

(एल) “रेपो” का आशय वही रहेगा जो रिज़र्व बैंक एक्ट, 1934 की धारा 45 (यू) (सी) में परिभाषित है।

“रिवर्स रेपो” का आशय वही रहेगा जो रिज़र्व बैंक एक्ट, 1934 की धारा 45 (यू) (डी) में परिभाषित है।

स्पष्टीकरण: किसी एक संस्था द्वारा किया गया रेपो संव्यवहार प्रतिपक्षी संस्था के लिए रिवर्स ‘रेपो संव्यवहार’ कहलाता है। इन निदेशों के प्रयोजन से रेपो शब्द का प्रयोग ‘रेपो’ और ‘रिवर्स रेपो’ दोनों ही अर्थों में किया गया है और सन्दर्भ के अनुसार उचित अर्थ लगाया जाएगा।

(एम) “प्रतिभूतिकृत ऋण लिखत” का आशय होगा प्रतिभूति संविदा (विनिमयन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42 ) की धारा 2 के परिच्छेद (h) के उप-परिच्छेद (ie) में उल्लिखित प्रकार की प्रतिभूतियाँ।

(एन) “प्रतिभूति रसीद” का आशय होगा वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (2002 का 54) की धारा 2 के परिच्छेद (zg) में परिभाषित प्रतिभूति।

(ओ) “तृतीय पक्ष रेपो” का आशय ऐसी रेपो संविदा से है जिसमें कोई तृतीय पक्ष (उधारकर्ता और उधारदाता के अलावा), जिसे तृतीय पक्ष एजेंट कहा जाता है, रेपो के दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है और संव्यवहार समय के दौरान कोलेटरल के चयन, भुगतान, निपटान, अभिरक्षा और प्रबंधन जैसी सेवाओं में सुविधा प्रदान करता है।

(पी) ऐसे शब्द और अभिव्यक्तियों जिनका प्रयोग तो हुआ है किन्तु इन निदेशों में परिभाषित नहीं किया गया है, उनका आशय वही रहेगा जो रिज़र्व बैंक अधनियम 1934 अथवा रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किसी अन्य मास्टर परिपत्र / अधिसूचना / निदेश / में दिया गया है जब तक कि रिज़र्व बैंक द्वारा इसके प्रतिकूल कुछ नहीं कहा गया हो।

3. रेपो के लिए पात्र प्रतिभूतियाँ

इन निदेशों के तहत रेपो के लिए पात्र प्रतिभूतियों में शामिल हैं:

(ए) केंद्र सरकार अथवा किसी राज्य सरकार द्वारा निर्गत सरकारी प्रतिभूतियाँ।

(बी) सूचीबद्ध कार्पोरेट बॉन्ड और ऋणपत्र, शर्त यह रहेगी कि कोई भी सहभागी अपनी ही प्रतिभूतियों अथवा अपनी सम्बद्ध संस्था द्वारा निर्गत प्रतिभूतियों की कोलेटरल के बदले उधार नहीं लेती।

(सी) वाणिज्यिक पत्र (सीपी) और जमा-प्रमाणपत्र (सीडी)।

(डी) केंद्र सरकार द्वारा यथा निर्दिष्ट किसी स्थानीय प्राधिकरण की अन्य प्रतिभूतियाँ।

4. पात्र सहभागी

(1) इन निदेशों के तहत पात्र सहभागी निम्नानुसार हैं:

(ए) कोई भी विनियमित संस्था।

(बी) कोई भी सूचीबद्ध कार्पोरेट ।

(सी) कोई भी गैरसूचीबद्ध कंपनी जिसे भारत सरकार द्वारा विशेष प्रतिभूतियाँ जारी की गयी हैं, केवल इन्हीं विशेष प्रतिभूतियों का प्रयोग कोलेटरल के रूप में करते हुए।

(डी) संसद के अधिनियम से गठित कोई भी अखिल भारतीय वित्तीय संस्था यथा- एक्सिम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी और भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और

(ई) इस प्रयोजन के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित कोई भी संस्था।

5. समयावधि

न्यूनतम एक दिन की अवधि और अधिकतम एक साल की अवधि हेतु रेपो किये जाएंगे।

6. तृतीय पक्ष एजेंट

तृतीय पक्ष एजेंट हेतु पात्रता मानदंड, नियम और दायित्व, आवेदन पद्धति और निष्कासन पद्धति इन निदेशों के अनुलग्नक-1 में दी गयी है।

7. ट्रेडिंग स्थल

रेपो संव्यवहारों के सौदे किसी भी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज अथवा रिज़र्व बैंक द्वारा विधिवत प्राधिकृत ETP पर अथवा ओवर- दि- काउंटर बाजार में किये जा सकते हैं। लेकिन मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों सहित किसी भी ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर रेपो सौदे करने के लिए रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति अपेक्षित है।

8. ट्रेडिंग प्रक्रिया

रेपो संव्यवहारों, तृतीय पक्ष रेपो संव्यवहारों सहित, में आपस में सहमत किसी भी ट्रेडिंग प्रक्रिया का प्रयोग किया जा सकता है, इस प्रक्रिया में द्विपक्षीय अथवा बहुपक्षीय, भाव-आधारित अथवा आर्डर-आधारित प्रक्रियाएँ, अज्ञात अथवा अन्य प्रकार शामिल हैं, लेकिन केवल इन्हीं प्रक्रियाओं की सीमितता नहीं है।

9. सौदों की रिपोर्टिंग

(1) मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों अथवा अनुमोदित इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफार्मों के अलावा सभी रेपो संव्यवहार जो प्लेटफार्म पर सौदों की जानकारी प्रसारित करते हैं, सौदा होने के 15 मिनट के भीतर इसकी रिपोर्ट करेंगे। कार्पोरेट प्रतिभूतियों में रेपो की रिपोर्टिंग F- TRAC रिपोर्टिंग प्लेटफार्म पर और सरकारी प्रतिभूतियों में रेपो के जानकारी क्लीयरकॉर्प रेपो ऑर्डर मैचिंग सिस्टम पर अलग- अलग करेंगे।

(2) मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों सहित रेपो संव्यवहारों हेतु सभी ट्रेडिंग और रिपोर्टिंग प्लेटफार्म अपना डेटा अथवा अन्य जानकारी भारतीय रिज़र्व बैंक को या भारती रिज़र्व बैंक द्वारा यथा अपेक्षानुसार किसी अन्य संस्था को प्रदान करेंगे।

(3) इन निदेशों के तहत रेपो संव्यवहारों के प्रतिभागी भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा माँगी गयी कोई जानकारी अथवा डेटा उस निर्धारित अवधि में प्रस्तुत करेंगे जो जानकारी अथवा डेटा प्रस्तुत करने के लिए सहभागी को लिखे पत्र / मेल में निर्धारित है।

10. सौदों का निपटान

(1) इन निदेशों के तहत सौदों का निपटान इस प्रकार किया जाएगा -

(ए) सभी रेपो संव्यवहारों का प्रथम चरण T+ 0 अथवा T +1 आधार पर निपटाया जाएगा।

(बी) सभी रेपो संव्यवहारों का निपटान सुपुर्दगी बनाम भुगतान आधार पर किया जाएगा।

(सी) सकारी प्रतिभूतियों के सभी रेपो सीसीआईएल या भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित किसी अन्य क्लीयरिंग एजेंसी के माधयम से निपटाए जाएंगे।

(डी) कॉर्पोरेट बॉन्ड और ऋणपत्रों किये गए सभी रेपो का निपटान एक्सचेंजों के क्लीयरिंग हाउस अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित किसी अन्य संस्था के माध्यम से निपटाए जाएंगे।

11. रेपोकृत प्रतिभूति का विक्रय और प्रतिस्थापन

(1) रेपो के तहत खरीदी गयी प्रतिभूतियाँ -

(ए) आउटराइट संव्यवहार अथवा किसी अन्य रेपो संव्यवहार के माध्यम से ऑन-सोल्ड की जाएँ। रेपो के तहत अधिग्रहीत प्रतिभूतियों की आउटराइट बिक्री केवल उसी संस्था द्वारा की जाएगी, जो भारतीय रिज़र्व बैंक के संगत निदेशों के तहत शॉर्ट-विक्रय करने की पात्र है और उन्हीं प्रतिभूतियों में की जाएगी जिनके शॉर्ट-विक्रय के अनुमति है।

(बी) किसी भी अनुमोदित क्लीयरिंग एजेंसी के नियमों के अनुसार किसी दूसरी प्रतिभूति से प्रतिस्थापित के जाएगी।

12. कोलेटर की कीमत लगाना, हेयरकट और मार्जिन तय करना

(1) इन निदेशों के तहत रेपो संव्यवहारों के मामले में -

(ए) रेपो के प्रथम चरण में कोलेटरल का कीमत निर्धारण प्रचलित बाजार कीमतों पर पारदर्शी रूप से किया जायगा।

(बी) द्वितीय चरण की कीमतों का निर्धारण प्रथम चरण की कीमत में ब्याज जोड़ कर किया जाएगा।

(सी) रेपो संव्यवहारों का नियंत्रण करने वाले प्रलेखों के अनुसार हेयरकट / मार्जिन का निर्णय क्लीयरिंग हॉउस द्वारा अथवा दोनों पक्षों के बीच सहमति के साथ किया जा सकता है - जिस पर निम्नलिखित शर्तें लागू होंगी -:

  1. सूचीबद्ध कार्पोरेट बॉन्ड और ऋणपत्रों पर बाजार मूल्य का न्यूनतम 2 प्रतिशत हेयरकट रहेगा। प्रतिभूति की समयावधि और अद्रव्यता के आधार पर अतिरिक्त हेयरकट लिया जा सकता है।

  2. सीपी और सीडी के साथ बाजार मूल्य का न्यूनतम 1.5 प्रतिशत हेयरकट रहेगा।

  3. स्थानीय प्राधिकरणों द्वारा निर्गत प्रतिभूतियों पर बाजार मूल्य का न्यूनतम 2 प्रतिशत हेयरकट रहेगा। प्रतिभूति की समयावधि और अद्रव्यता के आधार पर अतिरिक्त हेयरकट लिया जा सकता है।

13. लेखांकन, प्रस्तुति, मूल्यांकन और प्रकटीकरण

(1) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित संस्थाओं द्वारा रेपो का लेखांकन अनुलग्नक-II में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाएगा।

(2) अन्य पात्र सहयोगी रेपो संव्यवहारों का लेखांकन अनुमेय लेखांकन के अनुसार करें।

14. नकदी आरक्षित निधि अनुपात (सीआरआर) / सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) और उधार लेने की सीमा

(1) तृतीय-पक्ष रेपो सहित रेपो रेपो के तहत उधार ली गयी निधियों को सीआरआर / एसएलआर आकलन से छूट दी जाएगी और रेपो के तहत अधिक्रम की गई प्रतिभूति एसएलआर की पात्र होगी, बशर्ते यह प्रतिभूति प्राथमिक रूप से उस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार एसएलआर के लिए पात्र हो जिसके तहत इसे बरकरार रखना अपेक्षित है।

(2) किसी बैंक द्वारा रेपो के माध्यम से कार्पोरेट बॉन्ड और ऋणपत्रों पर लिए गए उधारों को नकदी आरक्षित निधि अनुपात / सांविधिक चलनिधि अनुपात की अपेक्षाओं के लिए देयता के रूप में लिया जाएगा और उस सीमा तक जितनी सीमा तक ये बैंकिंग प्रणाली के लिए देयता हैं, और इनका निवल निर्धारण भारतीय रिजर्ब बैंक अधनियम, 1934 की धारा 42 (1) के अनुसार किया जाएगा।

15. प्रलेखन

(1) एफआईएमएमडीए द्वारा अंतिम रूप दिए गए प्रलेखन के अनुसार ही मानक द्विपक्षीय मास्टर रेपो समझौतों का निपटान किया जाएगा,

(2) बहुपक्षीय ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर सौदा किये गए रेपो संव्यवहारों का नियंत्रण उस प्लेटफार्म के नियमों और विनियमों के अनुसार किया जाएगा, जिन पर इनका सौदा किया गया है।

(3) तृतीय पक्ष रेपो के मामले में सहभागी और तृतीय पक्ष एजेंट द्वारा निर्धारित प्रलेखों के अनुसार अलग से समझौता किया जायगा।

16. रेपो संव्यवहार के बारे में रिज़र्व बैंक द्वारा जारी उन पूर्ववर्ती परिपत्रों की सूची अनुलग्नक-III में दी गयी है जिन्हें इसके तहत अप्रभावी और वापस लिया गया है।

(टी. रबीशंकर)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुलग्‍नक III

      1. परिपत्र सं. आईडीएमसी/पीडीआरएस/3432/10.02.01/2002-03 दिनांक फरवरी 21, 2003.
      2. परिपत्र सं. आईडीएमडी/पीडीआरएस/4779/10.02.01/2004-05 दिनांक मई 11, 2005.
      3. परिपत्र सं. आईडीएमडी.डीओडी.No.334/11.08.36/2009-10 दिनांक जुलाई 20, 2009
      4. परिपत्र सं. आईडीएमडी.डीओडी.No.04/11.08.38/2009-10 दिनांक जनवरी 8, 2010.
      5. परिपत्र सं. आईडीएमडी.डीओडी.No.05/11.08.38/2009-10 दिनांक जनवरी 8, 2010.
      6. परिपत्र सं. आईडीएमडी/4135/11.08.43/2009-10 दिनांक मार्च 23, 2010.
      7. परिपत्र सं. आईडीएमडी.डीओडी.08/11.08.38/2009-10 दिनांक अप्रैल 16, 2010.
      8. परिपत्र सं. आईडीएमडी.पीसीडी.सं.21/11.08.38/2010-11 दिनांक नवम्‍बर 9, 2010.
      9. परिपत्र सं. आईडीएमडी.पीसीडी.No.22/11.08.38/2010-11 दिनांक नवम्‍बर 9, 2010.
      10. परिपत्र सं. आईडीएमडीसं./29/11.08.043/2010-11 दिनांक मई 30, 2011.
      11. परिपत्र सं. आईडीएमडी.पीसीडी.1423/14.03.02/2012-13 दिनांक अक्‍तूबर 30, 2012.
      12. परिपत्र सं. आईडीएमडी.पीसीडी.08/14.03.02/2012-13 दिनांक जनवरी 4, 2013.
      13. परिपत्र सं. आईडीएमडी.पीसीडी.सं.08/14.03.02/2012-13 दिनांक जनवरी 7, 2013.
      14. परिपत्र सं. आईडीएमडी.पीसीडी.सं.09/14.03.02/2012-13 दिनांक जनवरी 7, 2013.
      15. परिपत्र सं. आईडीएमडी.पीसीडी.13/14.01.02/2013-14 दिनांक जून 25, 2014.
      16. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.3/14.03.002/2014-15 दिनांक फरवरी 03, 2015.
      17. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.4/14.03.002/2014-15 दिनांक फरवरी 03, 2015.
      18. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.5/14.03.002/2014-15 दिनांक फरवरी 05, 2015.
      19. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.07/14.03.002/2014-15 दिनांक मई 14, 2015.
      20. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.08/14.03.002/2014-15 दिनांक मई 14, 2015.
      21. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.4/14.01.009/2016-17 दिनांकअगस्‍त 25, 2016.
      22. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.5/14.01.009/2016-17 दिनांक अगस्‍त 25, 2016.
      23. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.6/14.03.002/2016-17 दिनांक अगस्‍त 25, 2016.
      24. परिपत्र सं. एफएमआरडी.डीआईआरडी.4/14.03.024/2017-18 दिनांक अगस्‍त 10, 2017.
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