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बैंकिंग प्रणाली का विनियामक

बैंक राष्‍ट्रीय वित्‍तीय प्रणाली की नींव होते हैं। बैंकिंग प्रणाली की सुरक्षा एवं सुदृढता को सुनिश्चित करने और वित्‍तीय स्थिरता को बनाए रखने तथा इस प्रणाली के प्रति जनता में विश्‍वास जगाने में केंद्रीय बैंक महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

अधिसूचनाएं


मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवाएं) निदेश, 2016 में संशोधन

भारिबैं/2017-18/66
बैंविवि.सं.एफएसडी.बीसी.89/24.01.040/2017-18

25 सितंबर, 2017

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय/ महोदया,

मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवाएं) निदेश, 2016 में संशोधन

सेबी, बैंकों और अन्य स्टेकधारकों से प्राप्त सुझावों और प्रश्नों पर विचार करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक ने 26 मई, 2016 के मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवाएं) निदेश, सं.बैंविवि.एफएसडी. सं.101/24.01.041/2015-16 में कतिपय संशोधन करने का निर्णय लिया है। इन परिवर्तनों के अनुसार, बैंकों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवा पर मास्टर निदेश के पैरा 5(क)(v) को निम्नानुसार संशोधित किया गया है:

“v. कोई भी बैंक

क) जमा स्वीकार करने वाली एनबीएफसी में 10 फीसदी से ज्यादा की इक्विटी धारण नहीं करेगा। बशर्ते कि यह आवास वित्त कंपनी के लिए लागू नहीं होता।

ख) स्थावर संपदा निवेश न्यास/आधारभूत संरचना निवेश न्यास की यूनिट पूंजी में 10 प्रतिशत से अधिक का निवेश नहीं करेगा, बशर्ते कि शेयर, संपरिवर्तनीय बॉण्ड/ डिबेंचर, इक्विटी-उन्नमुख म्यूचुअल फंड और वैकल्पिक निवेश फंड में प्रत्यक्ष निवेश के लिए इसकी निवल मालियत के 20 प्रतिशत की समग्र अनुमत सीमा के अधीन होगा।

ग) कोई बैंक किसी कंपनी, जो गैर वित्तीय सेवाओं के कारोबार में शामिल इसकी अनुषंगी न हो, की चुकता पूंजी का 10 प्रतिशत या बैंक की चुकता पूंजी तथा आरक्षित निधि के 10 प्रतिशत, जो भी कम हो, से अधिक धारण नहीं करेगा।

बशर्ते कि निम्न परिस्थितियों में ऐसी निवेशक कंपनी की चुकता शेयर पूंजी के 10 प्रतिशत से अधिक, परन्तु 30 प्रतिशत से कम निवेश की अनुमति दी जाएगीः

  1. निवेशक कंपनी, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6 (1) के तहत बैंकों के लिए अनुमत गैर वित्तीय गतिविधियों में शामिल हो, अथवा

  2. अतिरिक्त अधिग्रहण ऋण की पुनर्रचना के माध्यम से हो या किसी कंपनी में किए गए निवेश/ को दिए गए ऋण पर बैंक के हित की रक्षा के लिए हो। बैंक को विर्निदिष्ट अवधि में ऐसे शेयरों के निपटान के लिए समयबद्ध कार्य योजना भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करनी होगी।

घ) बैंक के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष नियंत्रण वाली अनुषंगी कंपनियों, सहायक कंपनियों या संयुक्त उद्यमों या अन्य इकाइयों के साथ; और बैंक के नियंत्रण वाली आस्ति प्रबंधन कंपनियों के प्रबंधन वाले म्यूचुअल फंडों में गैर-वित्तीय सेवाओं में संलग्न निवेशित कंपनियों की चुकता पूंजी के 20 प्रतिशत से अधिक धारण नहीं करेगा। तथापि, यह सीमा उपर्युक्त पैरा 5(ए)(v)(ग)(i) और (ii) में उल्लिखित मामलों के संबंध में लागू नहीं है।

ङ) श्रेणी III वैकल्पिक निवेश निधि (एआईएफ) में कोई निवेश नहीं करेगा। किसी बैंक की सहायक संस्था के द्वारा श्रेणी III वैकल्पिक निवेश निधि (एआईएफ) में निवेश सेबी द्वारा निर्धारित विनियामक न्यूनतम मानदंड़ तक सीमित रहेगा।”

2. पैरा 5(क) (vi) (ख) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“उपर्युक्त क्रम 5 (क) (v) (ग) (ii) में उल्लिखित परिस्थितियों में अधिगृहित की गईं गैर वित्तीय कंपनियों में 10 प्रतिशत से अधिक निवेश।”

3. पैरा 5(ख) (i) (ख) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“बैंक के पास न्यूनतम निर्धारित पूंजी (पूंजी संरक्षण बफर सहित) है और उसने ठीक पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में निवल लाभ भी कमाया है; और”

4. घारा 5 (ख)(i)(घ) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“बैंक की अनुषंगी कंपनियों में या संयुक्त उद्यमों या बैंक के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष नियंत्रण वाली अन्य संस्थाओं के द्वारा शेयरधारिता, यदि कोई हो, सहित, बैंक की समग्र शेयरधारिता निवेशित कंपनी की चुकता पूंजी के 20 प्रतिशत से कम हो।

व्याख्या: यदि वित्तीय सेवा कंपनियों में निवेश को ‘ट्रेडिंग के लिए धारित’ श्रेणी के अंतर्गत धारित किया जाता है और 90 दिनों से अधिक समय के लिए धारित नहीं किया जाता है, तो भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन अपेक्षित नहीं रहेगा।”

5. पैरा 5(ख) में, निम्नलिखित को (iii) के रूप में जोड़ा गया है:

“(iii) श्रेणी I/ श्रेणी II वैकल्पिक निवेश निधि में चुकता पूंजी/ यूनिट पूंजी के 10 प्रतिशत से अधिक निवेश।”

6. पैरा 5(ख) के बाद एक नया पैरा 5(ग) जोड़ा गया है, जो निम्नानुसार है:

“बैंक आंतरिक पूंजी पर्याप्तता निर्धारण प्रक्रिया (आईसीएएपी) ढांचे के भीतर सीधे तौर पर अथवा अपनी अनुषंगी कंपनियों के द्वारा वैकल्पिक निवेश निधियों में किए गए इक्विटी निवेश के कारण उत्पन्न जोखिम का पता लगाएंगे और अपेक्षित अतिरिक्त पूंजी निर्धारित करेंगे जो पर्यवेक्षी समीक्षा और मूल्यांकन प्रक्रिया के भाग के रूप में पर्यवेक्षी जांच के अधीन होगा। यह बैंकों द्वारा आधारभूत संरचना ऋण निधियों के प्रायोजन पर भी लागू होगा।”

7. पैरा 7(घ) की व्याख्या को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“व्याख्याः यह अनुषंगी कंपनी द्वारा बनाए गए श्रेणी I और श्रेणी II एआईएफ द्वारा किए गए निवेशों पर लागू नहीं होगा।”

8. धारा 14(क)(ii) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“निवेश के पश्चात इसके पास न्यूनतम निर्धारित पूंजी (पूंजी संरक्षण बफर सहित) है।”

9. धारा 14(ख)(ii) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“यह 14 (क) ii, iii, iv और v में दी गयी शर्तों का अनुपालन करता है।”

10. धारा 14(ग)(ii) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“विभागीय तौर पर बीमा ब्रोकिंग की सेवाएं:

बीमा एजेंसी कारोबार पर धारा 18 (घ) में उल्लिखित शर्तों के अधीन, बैंक स्वेच्छा से, विभागीय तौर पर बीमा ब्रोकर की तरह कार्य कर सकता है।”

11. धारा 15(ii) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“निवेश के पश्चात इसके पास न्यूनतम निर्धारित पूंजी (पूंजी संरक्षण बफर सहित) है।”

12. धारा 21(क)(ii) को संशोधन के बाद निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“निवेश के पश्चात इसके पास न्यूनतम निर्धारित पूंजी (पूंजी संरक्षण बफर सहित) है।”

13. पैरा 21(ख) के बाद एक नया पैरा 21(ग) जोड़ा गया है, जिसे निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“कोई भी बैंक सेबी से मान्यता प्राप्त एक्सचेंज के कमोडिटी डेरिवेटिव खंड का पेशेवर समाशोधन सदस्य तब तक नहीं बनेगा जब तक वह विवेकपूर्ण मानदंड़ों (पैरा 21(क) (i) से (iv)) को पूरा नहीं करता और वह निम्नलिखित शर्तों के अधीन ऐसा करेगा:

  1. बैंक स्टॉक एक्सचेंजों का सदस्यता संबंधी मानदंड पूरा करेगा और सेबी और संबंधित स्टॉक एक्सचेंज द्वारा निर्धारित विनियामक मानदंडों का अनुपालन करेगा।

  2. बैंक, बोर्ड के अनुमोदन से, प्रभावी जोखिम नियंत्रण उपाय करेगा, अपने प्रत्येक ट्रेडिंग सदस्य की निवल मालियत, कारोबार आवर्त, आदि को ध्यान में रखते हुए उनके संबंध में जोखिम एक्सपोजर पर विवेकपूर्ण मानदंड तैयार करेगा।

  3. बैंक कमोडिटी एक्सचेंज के डेरिवेटिव खंड में अपने ही खाते में ट्रेडिंग नहीं करेगा और वह स्वयं को एक्सचेंज में ट्रेडिंग सदस्यों/ ग्राहकों द्वारा किए जाने समाशोधन और निपटान लेनदेन तक ही सीमित रखेगा।

  4. बैंक अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के अनुसार अपने ट्रेडिंग सदस्यों के संबंध में एक्सपोजर प्राप्त करेगा।

  5. बैंक एक्सचेंज के समाशोधन सदस्य के रूप में अपने ग्राहकों के द्वारा किए गए सौदों से उत्पन्न भुगतान दायित्वों को इस शर्त के अधीन पूरा करेगा कि बैंक के पंजीकृत ग्राहकों के संबंध में बैंक द्वारा प्राप्त किए जाने वाले सम्पूर्ण एक्सपोजर का निर्धारण बोर्ड द्वारा बैंक की निवल मालियत के संबंध में किया जाना चाहिए और नियमित रूप से इसकी निगरानी की जानी चाहिए। तथापि, बैंक पेशेवर समाशोधन सदस्य के रूप में अपनी भूमिका में की गई अपेक्षा के अलावा किसी अन्य लेनदेन के भुगतान दायित्व को पूरा नहीं करेगा।

  6. बैंक बैंक के बोर्ड अथवा कमोडिटी एक्सचेंज और साथ ही कमोडिटी ब्रोकर की ओर से जारी गारंटी के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा दिशानिर्देशों के द्वारा यथानिर्धारित विभिन्न मार्जिन अपेक्षाओं का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करेगा।”

14. मास्टर निदेश में एक नया पैरा 22 जोड़ा गया है जिसे निम्नानुसार पढ़ा जाएगा:

“22. कमोडिटी डेरिवेटिव खंड के लिए ब्रोकिंग सेवाएं

(क) कोई भी बैंक इस प्रयोजन के लिए स्थापित किसी अलग सहायक संस्था अथवा इसकी मौजूदा सहायक संस्थाओं में से एक के माध्यम को छोड़कर सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज के कमोडिटी डेरिवेटिव खंड के लिए ब्रोकिंग सेवाओं का प्रस्ताव नहीं देगा और ऐसा निम्नलिखित शर्तों के अधीन ही कर सकेगा:

  1. अनुषंगी संस्था, अपने बोर्ड के अनुमोदन से, अपने प्रत्येक ग्राहक की निवल मालियत, व्यापार आवर्त, इत्यादि को ध्यान में रखते हुए उनके संबंध में जोखिम एक्सपोजर पर विवेकपूर्ण मानदंड़ सहित प्रभावी जोखिम नियंत्रण उपाय तैयार करेगी।

  2. अनुषंगी संस्था कमोडिटी डेरिवेटिव खंड में स्वामित्व का स्थान ग्रहण नहीं करेगी।

  3. अनुषंगी संस्था सेबी, अपने स्वयं के बोर्ड अथवा कमोडिटी एक्सचेंज के द्वारा जो भी निर्धारित किया जाएगा, उसके अनुसार विभिन्न मार्जिन अपेक्षाओं का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करेगी।”

15. मास्टर निदेश को उचित रूप से अद्यतन किया गया है।

(डॉ. एस. के. कर)
मुख्य महाप्रबंधक

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