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प्रेस प्रकाशनी

रिज़र्व बैंक ने भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए वर्तमान स्वामित्व दिशानिर्देशों और कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा करने के लिए आंतरिक कार्य समूह की रिपोर्ट प्रकाशित की

20 नवंबर 2020

रिज़र्व बैंक ने भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए वर्तमान स्वामित्व दिशानिर्देशों और
कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा करने के लिए आंतरिक कार्य समूह की रिपोर्ट प्रकाशित की

भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए वर्तमान स्वामित्व दिशानिर्देशों और कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा करने के लिए 12 जून 2020 को एक आंतरिक कार्य समूह (आईडबल्यूजी) का गठन किया था। आईडबल्यूजी के संदर्भ में अन्य बातों के साथ-साथ बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन करने के लिए व्यक्तियों / संस्थाओं के लिए पात्रता मानदंड की समीक्षा; बैंकों के लिए अधिमान्य कॉर्पोरेट संरचना की जांच और इस संबंध में मानदंडों का सामंजस्य; और, प्रवर्तकों और अन्य शेयरधारकों द्वारा बैंकों में दीर्घावधि शेयरधारिता के मानदंडों की समीक्षा करना शामिल था।

आईडबल्यूजी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। आईडबल्यूजी की प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं:

  1. लंबी अवधि (15 वर्ष) में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी पर सीमा (कैप) को बैंक के प्रदत्त वोटिंग इक्विटी शेयर पूंजी के 15 प्रतिशत के वर्तमान स्तर से बढ़ाकर 26 प्रतिशत किया जा सकता है।

  2. गैर-प्रवर्तक शेयरधारिता के संबंध में, सभी प्रकार के शेयरधारकों के लिए बैंक की प्रदत्त वोटिंग इक्विटी शेयर पूंजी का 15 प्रतिशत का एक समान कैप निर्धारित किया जा सकता है।

  3. बड़े कॉरपोरेट / औद्योगिक घरानों को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 में आवश्यक संशोधन के बाद ही बैंकों के प्रवर्तकों के रूप में अनुमति दी जा सकती है (बैंकों और अन्य वित्तीय और गैर-वित्तीय समूह संस्थाओं के बीच जुड़े हुए उधार और जोखिम को रोकने के लिए); और समेकित पर्यवेक्षण सहित बड़े समूहों के लिए पर्यवेक्षी तंत्र को मजबूत करना।

  4. अच्छी तरह से चल रही बड़ी गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियाँ (एनबीएफ़सी), जिनकी परिसंपत्ति का आकार ₹50,000 करोड़ या उससे अधिक है, जिनमें कॉरपोरेट घराने के स्वामित्व वाले भी शामिल हैं, को बैंकों में रूपांतरण के लिए विचार किया जा सकता है बशर्ते परिचालन के 10 वर्ष पूर्ण हुए हो तथा तत्परता से मानदंड का अनुपालन और इस संबंध में निर्दिष्ट अतिरिक्त शर्तों का अनुपालन हो रहा हो।

  5. भुगतान बैंकों जो एक लघु वित्त बैंक में परिवर्तित होने का इरादा रखते हैं के लिए , भुगतान बैंक के रूप में 3 वर्षों के अनुभव का ट्रैक रिकॉर्ड पर्याप्त माना जा सकता है।

  6. लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंक ‘सार्वभौमिक बैंकों के लिए निर्धारित मौजूदा प्रविष्टि पूंजीगत अपेक्षाओं के बराबर निवल मालियत(नेट वर्थ) तक पहुँचने की तारीख से 6 वर्ष’ के भीतर या ‘परिचालन शुरू होने की तारीख से 10 वर्ष’, जो भी पहले हो सूचीबद्ध हो सकते हैं।

  7. नए बैंकों को लाइसेंस देने के लिए न्यूनतम प्रारंभिक पूंजीगत अपेक्षाओं को सार्वभौमिक बैंकों के लिए ₹500 करोड़ से ₹1000 करोड़ और छोटे वित्त बैंकों के लिए ₹200 करोड़ से ₹300 करोड़ तक बढ़ाया जाना चाहिए।

  8. परिचालनेतर वित्तीय धारक कंपनी (एनओएफएचसी) को सार्वभौमिक बैंकों के लिए जारी किए जाने वाले सभी नए लाइसेंसों के लिए अधिमान्य संरचना बने रहना चाहिए। हालांकि, यह केवल उन मामलों में अनिवार्य होना चाहिए जहां व्यक्तिगत प्रवर्तकों / संस्थाओं को बढ़ावा देने / संस्थाओं को परिवर्तित करने के लिए अन्य समूह इकाइयां हैं।

  9. जबकि 2013 से पहले लाइसेंस प्राप्त बैंक अपने विवेक से एनओएफ़एचसी संरचना में जा सकते हैं, एक बार एनओएफ़एचसी संरचना कर-तटस्थ स्थिति प्राप्त कर लेती है, तो 2013 से पहले लाइसेंस प्राप्त सभी बैंक कर-तटस्थता की घोषणा से 5 वर्षों के भीतर एनओएफ़एचसी संरचना में चले जाएंगे।

  10. जब तक एनओएफ़एचसी संरचना को व्यवहार्य और परिचालन योग्य नहीं बनाया जाता है, तब तक सहायक कंपनियों / संयुक्त वेंचर्स / सहयोगियों के माध्यम से विभिन्न गतिविधियां करने वाले बैंकों के संबंध में चिंताओं को उपयुक्त विनियमों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए।

  11. वर्तमान में एनओएफ़एचसी संरचना के अंतर्गत आने वाले बैंकों को ऐसी संरचना से बाहर निकलने की अनुमति दी जा सकती है यदि उनके पास अन्य समूह संस्थाएं नहीं हैं।

  12. रिज़र्व बैंक भिन्न-भिन्न लाइसेंसिंग दिशानिर्देशों में सामंजस्य और एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठा सकता है। जब भी नए लाइसेंस दिशा-निर्देश जारी किए जाएं, यदि नए नियमों में अधिक छूट हो, तो मौजूदा बैंकों को लाभ दिया जाना चाहिए, और यदि नए नियम सख्त हैं, तो विरासत बैंकों को भी नए सख्त नियमों के अनुरूप होना चाहिए, लेकिन प्रभावित बैंकों को एक गैर-विघटनकारी परिवर्तन पथ प्रदान किया जा सकता है।

रिपोर्ट आज हितधारकों और जनता के सदस्यों की टिप्पणियों के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखी गई है। रिपोर्ट पर टिप्पणियाँ 15 जनवरी 2021 तक ईमेल के माध्यम से प्रस्तुत की जा सकती हैं। रिज़र्व बैंक मामले पर विचार करने से पूर्व टिप्पणियों और सुझावों की जांच करेगा।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2020-2021/667


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