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प्रेस प्रकाशनी

समष्टि-आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां -  प्रथम तिमाही समीक्षा, 2013-14

29 जुलाई 2013

समष्टि-आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां -  प्रथम तिमाही समीक्षा, 2013-14

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज समष्टि-आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की वर्ष 2013-14 की प्रथम तिमाही समीक्षा जारी की। यह दस्तावेज 30 जुलाई 2013 को घोषित की जाने वाली मौद्रिक नीति वक्तव्य 2013-14 की प्रथम तिमाही की समीक्षा की पृष्ठभूमि का कार्य करेगा। मुख्य-मुख्य बातें:

समग्र संभावना

बढ़ते हुए समष्टि-वित्तीय जोखिम सतर्क मौद्रिक नीति रूझान का समर्थन करते है

  • वर्ष में आगे बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे सुधार होना अपेक्षित है, किंतु सुधार के धीमे रहने की संभावना है।

  • विभिन्न सर्वेक्षण कारोबार विश्वास में और गिरावट दर्शाते हैं। रिज़र्व बैक का औद्योगिक दृष्टिकोण सर्वेक्षण वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में कमजोर बाजार भावनाएं दर्शाता है जो तीन वर्ष में सबसे कम रही, यद्यपि प्रत्याशाओं ने दूसरी तिमाही में सुधार दर्शाया।

  • थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित हेडलाइन मुद्रास्फीति में सुधार होकर यह 5 प्रतिशत से नीचे पहुंच गई, जबकि उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति दोहरे अंकों के समीप बढ़े हुए स्तर पर रही। हाल में रुपए के अवमूल्यन और मध्य पूर्व में बढ़ती राजनीतिक अनिश्चितता के बीच कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के साथ वृद्धिगत जोखिम बने रहे।

  • रिज़र्व बैंक से बाहर के व्यावसायिक भविष्यवक्ता वर्ष 2013-14 में 5.7 प्रतिशत पर उदार सुधार का अनुमान लगाते हैं। नवीनतम अनुमान मई 2013 में 6.0 प्रतिशत से नीचे की तरफ संशोधन है। वर्ष 2013-14 में उनका 5.3 प्रतिशत का औसत थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति अनुमान मई 2013 में 6.5 प्रतिशत से काफी नीचे है।

  • मुद्रा विनिमय में अस्थिरता पर काबू पाने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए हाल के चलनिधि सीमित करने के उपाय कुछ राहत प्रदान करते हैं। यह रणनीति केवल तभी सफल होगी जब चालू खाता घाटा कम करने और बचत और निवेश बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधारों द्वारा सहारा दिया जाएं।

वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां

वैश्विक वृद्धि कमजोर है, वित्तीय बाजार अस्थिरता की अवधि में हैं

  • कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई), विशेषकर अमेरिका और जापान में सुधारों के साथ वैश्विक वृद्धि नियंत्रित रही जो महत्वपूर्ण उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) में मंदी वृद्धि द्वारा बराबर हो रही है।

  • वैश्विक व्यापारिक वस्तुओं की मूल्य मुद्रास्फीति से आने वाले समय में आंशिक रूप में चीन में धीमी वृद्धि के कारण नियंत्रित रहने की संभावना है। तथापि, मध्य पूर्व में बढ़ती भौगोलिक-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण वैश्विक कच्चे तेल के मूल्यों के लिए वृद्धिगत जोखिम बने हुए हैं।

  • वैश्विक वित्तीय बाजार परिमाणात्मक सहजता (क्यूई) के धीरे-धीरे कम होने से जोखिमों के पुनर्मूल्यन के साथ नई अस्थिरता के समय में पहुंच चुके हैं। आने वाले समय में ब्याज दरें सख्त हो सकती हैं और वित्तीय स्थितियां कड़ी हो सकती हैं जो बाजारों को प्रासंगिक रूप से दवाब में रखेंगी।

भारतीय अर्थव्यवस्था

परिणाम

वर्ष 2013-14 के बाद के भाग में धीमे सुधार की संभावना

  • भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में धीमी रही। अग्रणी सूचक उत्पादन गतिविधि में तत्काल सुधार के संकेत नहीं देते हैं और वर्ष 2013-14 के बाद के भाग में अच्छे मानसून से धीमे सुधार की संभावना है जो ग्रामीण मांग को पुष्ट कर सकता है।

  • मानसून की प्रगति प्रोत्साहक है और कृषि वृद्धि के बढ़ने की संभावना है। रिज़र्व बैंक का उत्पादन भारित वर्षा सूचकांक दर्शाता है कि अब तक वर्षा लंबे समय के औसत से 17 प्रतिशत अधिक रहा है। अब प्रमुख जलाशयों में जलस्तर पिछले औसत से 66 प्रतिशत ऊपर है। 

  • औद्योगिक वृद्धि नियंत्रित रही है और आपूर्ति पक्ष की बाधाएं महत्वपूर्ण उद्योगों पर प्रतिबंध लगा रही हैं। सेवा क्षेत्र के अग्रणी सूचक और रिज़र्व बैंक का सेवा क्षेत्र संयुक्त सूचक वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में सुधार का संकेत देते हैं।

  • रिज़र्व बैंक की आदेश पुस्तिका, माल सूची और क्षमता उपयोग सर्वेक्षण दर्शाता है कि क्षमता उपयोग ने वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में पिछली तिमाही से मौसमी वृद्धि दर्ज की। तथापि, यह वर्ष 2010-11 और 2011-12 की चौथी तिमाही में देखी गई शीर्ष सीमा से कम रही।

कुल मांग

कम होते उपभोग और निवेश के साथ कुल मांग में कमी

  • उपभोग और निवेश में गिरावट के साथ कुल मांग कमजोर रही है। सरकारी प्रयासों ने मूलभूत सुविधाओं की बाधाओं का समाधान करना शुरू कर दिया है, यद्यपि प्रगति धीमी है। 566 बड़ी केन्द्रीय क्षेत्र की परियोजनाओं में से लगभग आधी परियोजनाओं में विलंब हुआ है और इससे 18 प्रतिशत लागत अधिक लगी है।

  • बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा मंजूर की गई वित्तीय सहायता वाली परियोजनाओं पर उनके पास फाइल किए गए आंकड़ों के आधार पर नई परियोजनाओं में परिलक्षित निवेश में वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में कुछ सुधार हुआ किंतु वर्ष 2012-13 में पूर्ण वर्ष का निवेश रु. 2.0 ट्रिलियन पर पिछले वर्ष के लगभग बराबर और वर्ष 2010-11 में 3.8 ट्रिलियन से कम रहा।

  • 2419 गैर-सरकारी, गैर-वित्तीय कंपनियों की बिक्री वृद्धि तीसरी तिमाही में 9.4 प्रतिशत से और घटकर वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही के दौरान 4.9 प्रतिशत हो गई। वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही के शुरूआती परिणाम बिक्री में और गिरावट दर्शाते हैं।

  • कर संग्रह वर्ष 2013-14 के दौरान अब तक कमजोर रहा है। यदि विकास के धीमे होने के कारण राजस्व बजट अनुमान से कम रहता है तो फिर से व्यय में कटौती की आवश्यकता होगी। इस समय में सब्सिडी प्रतिबद्धताओं को नियंत्रित करना और निजी निवेश के लिए सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना महत्वपूर्ण है।

बाह्य क्षेत्र

चालू खाता घाटे को कम करने और इसे स्थायी प्रवाहों के माध्यम से वित्त सहायता देना सुनिश्चित करने की आवश्यकता

  • यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में चालू खाता घाटे (सीएडी) में वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही के ऐतिहासिक रूप से 6.5 उच्च स्तर से सुधार होकर वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में 3.8 प्रतिशत हो गया, संकेत दर्शाते हैं कि यह वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में फिर से बढ़ सकता है। निर्यात में कमी और सोने के आयात में तेज वृद्धि के कारण वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में व्यापार घाटा बढ़ गया है।

  • आने वाले समय में चालू खाते में सुधार होने की संभावना है। सीमा शुल्क में वृद्धि और स्वर्ण आयात नीति के तर्कसंगत होने से सोने की मांग में कमी होने की संभावना है।

  • जबकि वर्ष 2013-14 में चालू खाता घाटा कम हो सकता है, चालू खाता घाटे के वित्तपोषण के जोखिम अमेरिकी प्रतिफलों के साथ बढ़ गए हैं जिनके कारण वैश्विक बांड की कम कीमत पर बिक्री हुई और भारत सहित उभरती  बाजार अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी का बहिर्वाह हुआ।

  • बाह्य क्षेत्र के संवेदनशीलता सूचकों में गिरावट आई है। मार्च 2013 में लघु-कालिक ऋण (अवशिष्ट परिपक्वता) का कुल ऋण में 44 प्रतिशत हिस्सा था। भारत की निवल अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति सकल घरेलू उत्पाद की (-) 16.7 प्रतिशत थी। इस परिवेश में चालू खाता घाटा कम करने और भारतीय अर्थव्यवस्था में अधिक स्थायी पूंजी प्रवाहों को आकर्षित कर वित्तपोषण में सुधार करने के लिए संरचनात्मक नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां

वृद्धित समष्टि-वित्तीय जोखिम से नीति समायोजन आवश्यक हो गया

  • रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2012-13 और मई 2013 की शुरूआत में नीति दर में 125 आधार बिन्दुओं की कमी के साथ मौद्रिक नीति को सुगम बनाया। इस सहजता के संचरण से भारित औसत उधार दर 47 आधार बिन्दुओं तक कम हो गई।

  • तथापि, नीति को समायोजित किया गया और विदेशी विनिमय बाजार में पुनः स्थायित्व लाने के लिए जुलाई 2013 में चलनिधि कम की गई। रिज़र्व बैंक ने सीमांत स्थायी सुविधा और बैंक दर में वृद्धि की, चलनिधि समायोजन सुविधा के तहत उधार पर प्रतिबंध लगाया, प्रारक्षित नकदी अनुपात का दैनिक उच्च अनुरक्षण निर्धारित किया और सरकारी प्रतिभूतियों की खुले बाजार में बिक्री की गई।

  • व्यापक मुद्रा (एम3) सांकेतिक विकास पथ के अनुरूप बनी रही परंतु घरेलू वृद्धि में कमी और बैंकिंग क्षेत्र की आस्ति गुणवत्ता में गिरावट से ऋण वृद्धि वर्ष 2013-14 की प्रथम तिमाही में सांकेतिक विकास पथ से नीचे रही है।

  • आने वाले समय में रिज़र्व बैंक वृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन और समष्टि-वित्तीय स्थायित्व के अनुरूप मौद्रिक संचरण को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से चलनिधि का प्रबंध करने का प्रयास करेगा।

वित्तीय बाजार

वैश्विक बांड की कम कीमत पर बिक्री से संक्रमण भारतीय वित्तीय बाजारों में तनाव उत्पन्न करता है

  • मई 2013 में फेडरल रिज़र्व द्वारा नीतिगत वक्तव्य से वैश्विक बांड की कम कीमत पर बिक्री पर जोर दिया गया। इससे बाजार आशंकित हो गए, जिससे उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं में बांडों, मुद्राओं, व्यापारिक वस्तुओं और इक्विटी में अस्थिरता उत्पन्न हो गई। एशिया के बाजारों से संक्रमण भारत तक आ गया।

  • इन फैलाव प्रभावों को सीमित करने के लिए व्यापक आधार पर नीतिगत कार्रवाई की गई। इससे रुपए की विनिमय दर के स्थिर होने में सहायता मिली, यद्यपि मुद्रा बाजार दरें और बांड प्रतिफल सख्त हो गए। रुपए की विनिमय दर में 22 मई 2013 को फेडरल रिज़र्व की घोषणा के बाद 15 जुलाई 2013 तक 7.5 प्रतिशत तक अवमूल्यन हुआ था, बाद में रिज़र्व बैंक के उपायों के बाद 26 जुलाई तक मूल्य में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

  • घरेलू कीमतें बढ़े हुए स्तरों पर बने रहे। रिज़र्व बैंक का घरेलू कीमत सूचकांक (एचपीआई) वर्ष दर वर्ष बढ़कर 19.4 प्रतिशत हो गया और वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में 2.1 प्रतिशत तिमाही दर तिमाही बढ़ा।

मूल्य स्थिति

हेडलाइन मुद्रास्फीति में सुधार हुआ, परंतु वृद्धिगत जोखिम बने रहे

  • वैश्विक व्यापारिक वस्तुओं की कीमतों में सुधार, नकारात्मक परिणाम अंतराल और पूर्व की मौद्रिक नीति कार्रवाइयों ने हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक को मई 2013 तक 5 प्रतिशत के नीचे तक गिरने में योगदान दिया। खाद्येतर निर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में पिछले तीन वर्षों के अपने सबसे कम स्तर तक कमी आई। तथापि, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति पिछले 15 महीनों में लगभग दोहरे अंक स्तर पर मंडराती रही।  

  • खाद्य मुद्रास्फीति में मई और जून 2013 में वृद्धि हुई और इससे सामान्य कीमत स्तर पर दवाब बन रहा। इन दवाबों में कुछ सुधार हो सकता है यदि मानसून शेष बचे मौसम के दौरान सही रहता है।

  • हाल का मुद्रा अवमूल्यन और ईंधन की कीमतों में वृद्धिगत संशोधन ने थोक और उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति दोनों के लिए वृद्धिगत जोखिम बढ़ा दिए हैं।

अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/199


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