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प्रेस प्रकाशनी

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भारतीय रिज़र्व बैंक बुलेटिन – नवंबर 2025

24 नवंबर 2025

भारतीय रिज़र्व बैंक बुलेटिन – नवंबर 2025

आज, रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का नवंबर 2025 अंक जारी किया। इस बुलेटिन में छह भाषण, पाँच आलेख और वर्तमान सांख्यिकी को शामिल किया गया हैं।

पांच आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. ‘क्षितिज को मिलाना’: अल्पकालिक मुद्रास्फीति पूर्वानुमान के लिए एक असामान्य दृष्टिकोण; III. बहुचर मूल प्रवृत्ति मुद्रास्फीति: मूल मुद्रास्फीति का एक नया माप; IV. भारत में जीडीपी का नाउकास्टिंग: एक नया दृष्टिकोण; और V. भारत के प्रमुख आर्थिक संकेतकों में मौसमीपन

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वैश्विक अनिश्चितता अभी भी उच्च स्तर पर बनी हुई है, हालांकि अक्टूबर में एक वर्ष से अधिक समय तक लगातार बढ़ोतरी के बाद थोड़ी कमी आई। वैश्विक इक्विटी बाजारों में बढ़ते उत्साह के बारे में चिंताएं बनी हुई हैं, जिससे इसकी स्थिरता और वित्तीय स्थिरता पर इसके प्रभाव के बारे में प्रश्न उठ रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था ने लगातार वैश्विक चुनौतियों के बावजूद गति में और वृद्धि के संकेत दिखाए। अक्टूबर के लिए उपलब्ध उच्च-आवृत्ति संकेतकों से पता चलता है कि त्योहारी मांग और जीएसटी सुधारों के लगातार सकारात्मक प्रभाव के समर्थन से विनिर्माण और सेवा गतिविधियों में मजबूत विस्तार हुआ। मुद्रास्फीति ऐतिहासिक निम्न स्तर पर आ गई और लक्ष्य दर से काफी नीचे बनी रही। वित्तीय स्थितियां अनुकूल बनी रहीं, और वाणिज्यिक क्षेत्र को वित्तीय संसाधनों का प्रवाह एक वर्ष पहले की तुलना में काफी बढ़ गया।

II. ‘क्षितिज को मिलाना’: अल्पकालिक मुद्रास्फीति पूर्वानुमान के लिए एक असामान्य दृष्टिकोण

जॉयस जॉन, सक़ीब हसन, रेंजिथ मोहन और सुवेंदु सरकार द्वारा

यह लेख अल्पकालिक मुद्रास्फीति पूर्वानुमान के लिए एक ढांचा प्रस्तुत करता है जो तीन विविध प्रक्रियाओं को एकीकृत करता है: (i) नाउकास्ट (ii) मशीन लर्निंग और सांख्यिकीय विधियां और (iii) गतिशील और यादृच्छिक समीकरणों की प्रणाली, जो नजदीकी क्षितिज के अंत में नाउकास्ट को एक मानक पूर्वानुमान से अभिसरित करने की अनुमति देती है।

मुख्य बातें:

  • नाउकास्ट (पूर्ण-जानकारी मैट्रिक्स का उपयोग करके), मानक पूर्वानुमान (मशीन लर्निंग और सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग करके), मौसमी कारक और निर्णयात्मक समायोजनों को विघटित घटक/उप-समूह स्तर के समीकरणों की एक गतिशील प्रणाली में एकीकृत करके, प्रस्तावित ढांचा, मुद्रास्फीति गतिशीलता का एक आगे की ओर देखने वाला और विस्तृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।

  • वर्ष-दर-वर्ष हेडलाइन मुद्रास्फीति के लिए अर्ध-अनुमानित नमूने की मूल माध्य वर्ग त्रुटि, (आरएमएसई) नजदीकी अवधि में मानक पूर्वानुमानों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से कम है और जैसे-जैसे क्षितिज बढ़ता है, यह मानक पूर्वानुमानों के समान हो जाता है। इस प्रकार, प्रस्तावित ढांचा नजदीकी अवधि में नाउकास्ट के लाभों का उपयोग करता है, जबकि छोटी अवधि में सुधारित पूर्वानुमान सटीकता सुनिश्चित करता है।

  • अतः, पूर्वानुमान ढांचा, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं द्वारा सामना किए जा रहे बढ़ती जटिलता और अनिश्चितता के माहौल में अल्पकालिक मुद्रास्फीति पूर्वानुमान उत्पन्न करने के लिए एक शक्तिशाली, लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।

III. बहुचर मूल प्रवृत्ति मुद्रास्फीति: मूल मुद्रास्फीति का एक नया माप

हरेंद्र कुमार बेहरा और अभिषेक रंजन द्वारा

बहुचर मूल प्रवृत्ति (एमसीटी) मुद्रास्फीति, प्रवृत्ति मुद्रास्फीति का एक माप है जो यह जानकारी प्रदान करता है कि क्या मुद्रास्फीति गतिशीलता को क्षेत्रों के बीच एक सामान्य प्रवृत्ति या क्षेत्र-विशिष्ट प्रवृत्ति द्वारा प्रभावित किया जा रहा है, और यह अर्थव्यवस्था में स्थायी मूल्य दबावों का ट्रैक रखने के लिए विकसित किया गया है। यह माप भोजन और ईंधन में अस्थायी मूल्य उतार-चढ़ाव से आगे देखता है और स्थायी मुद्रास्फीति प्रवृत्ति पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे यह नीति मूल्यांकन के लिए उपयोगी होता है।

मुख्य बातें:

  • एमसीटी मुद्रास्फीति, हेडलाइन और पारंपरिक मूल मुद्रास्फीति की तुलना में अधिक स्थिरता और सहज गति दिखाती है, विशेष रूप से महामारी और वैश्विक पण्य मूल्यों में वृद्धि जैसे बड़े आपूर्ति झटकों के दौरान।

  • हाल के वर्षों में अंतर्निहित मुद्रास्फीति के प्रमुख स्त्रोत व्यापक मूल्य दबाव रहे हैं, न कि अलग-अलग क्षेत्रों की गति, और सेवा मुद्रास्फीति का महत्व बढ़ रहा है।

  • नया माप मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति पूर्वानुमान में सुधार करता है, जो नीति निर्माताओं को मुद्रास्फीति गतिशीलता की निगरानी करने और निर्णय लेने में सहायता करने के लिए एक अतिरिक्त उपकरण प्रदान करता है।

IV. भारत में जीडीपी का नाउकास्टिंग: एक नया दृष्टिकोण

इंद्रजीत रॉय और के. एम. नीलिमा द्वारा

अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित स्थिति का आकलन करने के लिए, केंद्रीय बैंकों और नीति निर्माता प्रायः उच्च आवृत्ति संकेतकों का अनुसरण करते हैं। इस संदर्भ में, नाउकास्टिंग नीति निर्माताओं के लिए विभिन्न संकेतकों से प्रवाहित जानकारी को सारांशित करने के लिए एक उपयोगी उपकरण बन गई है, विशेष रूप से उन समष्टि आर्थिक चरों जैसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिए जिनके डेटा प्रायः बड़े विलंब के साथ जारी किए जाते हैं। इस लेख में, जीडीपी के नाउकास्टिंग के लिए एक नया दो-चरण दृष्टिकोण प्रस्तावित किया गया है।

मुख्य बातें:

  • लक्ष्य चर, अर्थात जीडीपी, के संबंध में प्रत्येक संकेतक की मजबूती के आधार पर चयनित संकेतकों का उपयोग करके एक प्राथमिक संयुक्त सूचकांक (पीसीआई) बनाया जाता है और एक द्वितीयक संयुक्त सूचकांक (एससीआई) उन संकेतकों की अवशिष्ट जानकारी से बनाया जाता है जिन्हें अन्यथा समान्यतः अस्वीकार कर दिया जाता है। उसके बाद पीसीआई और एससीआई का संयुक्त रूप से उपयोग जीडीपी के नाउकास्टिंग के लिए किया जाता है।

  • नए दृष्टिकोण की नवीनता i) लक्ष्य श्रृंखला के साथ संबंधित संकेतकों को अधिक भार देने में निहित है, बजाय संकेतकों के बीच सह-गति के, और ii) अवशिष्टों पर आधारित एक द्वितीयक सूचना स्रोत बनाकर, पारंपरिक मॉडलिंग प्रक्रिया द्वारा प्रायः अस्वीकार की जाने वाली जानकारी को अधिकतम प्रयोग करने में निहित है।

  • गतिशील कारक-आधारित मॉडलिंग (डीएफ़एम) का उपयोग करके आधार एकल-चरण नाउकास्टिंग की तुलना में अवशिष्टों से द्वितीयक जानकारी को शामिल करने से जीडीपी के नाउकास्टिंग की सटीकता में काफी सुधार हुआ है।

V. भारत के प्रमुख आर्थिक संकेतकों में मौसमीपन

सौविक घोष, शिवांगी मिश्रा, अनिर्बान सान्याल और संजय सिंह द्वारा

यह लेख भारत के प्रमुख आर्थिक संकेतकों में मौसमी पैटर्न को उजागर करता है, छह प्रमुख क्षेत्रों — मौद्रिक और बैंकिंग, भुगतान प्रणाली, मूल्य, औद्योगिक उत्पादन, माल व्यापार और सेवाएं — में 78 मासिक संकेतकों के साथ-साथ राष्ट्रीय खातों, भुगतान संतुलन, भारतीय विनिर्माण कंपनियों की क्षमता उपयोगिता और आगे की ओर देखने वाले उद्यम सर्वेक्षणों में 25 तिमाही संकेतकों का विश्लेषण करता है।

मुख्य बातें:

  • बैंकिंग मासिक संकेतक जैसे बैंक ऋण, गैर-खाद्य ऋण और मांग जमा समान्यतः मार्च में अपने वर्ष के अंत के चरम पर पहुंचते हैं।

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जुलाई से नवंबर तक मौसमी दबाव का अनुभव करता है, मुख्य रूप से मानसून के दौरान सब्जियों के मूल्यों में वृद्धि के कारण, जबकि फल के मूल्य गर्मियों में चरम पर पहुंचते हैं।

  • औद्योगिक उत्पादन में, अधिकांश वस्तुएं मार्च में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचती हैं, सिवाय उपभोक्ता स्थायी वस्तुओं के, जो त्योहारी सीजन के दौरान अक्टूबर में चरम पर पहुंचती हैं।

  • निर्यात और आयात दोनों मार्च में अपने मौसमी उच्चतम स्तर पर पहुंचते हैं, जबकि निर्यात आयात की तुलना में अधिक उल्लेखनीय मौसमी उतार-चढ़ाव दिखाते हैं।

  • वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद और सकल मूल्य वर्धित लगातार चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में चरम पर पहुंचते हैं, जिसमें महामारी के बाद से अधिक मौसमी भिन्नताएं हैं।

  • निजी अंतिम उपभोक्ता व्यय और सकल स्थिर पूंजी निर्माण दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में निम्नतम बिंदु पर हैं, जबकि सरकारी अंतिम उपभोक्ता व्यय तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में मौसमी निम्नतम अनुभव करता है। आपूर्ति की ओर से, कृषि अधिकतम मौसमी भिन्नताएं दिखाती है।

  • रिज़र्व बैंक के औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण में, उत्पादकों का वर्तमान आकलन चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में चरम पर पहुंचता है और प्रत्याशाएँ तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में मौसमी अधिकतम तक पहुंचती हैं।

  • सेवा निर्यात चौथी तिमाही में चरम पर पहुंचते हैं, जबकि दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवाओं के निर्यात तीसरी तिमाही में सबसे मजबूत होते हैं।

बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(ब्रिज राज)   
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2025-2026/1561


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