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प्रेस प्रकाशनी

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मौद्रिक नीति समिति की 6 से 8 फरवरी 2024 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त

22 फरवरी 2024

मौद्रिक नीति समिति की 6 से 8 फरवरी 2024 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत]

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के अंतर्गत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सैंतालीसवीं बैठक 6 से 8 फरवरी 2024 के दौरान आयोजित की गई थी।

2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर ने की।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:

  1. मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;

  2. उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और

  3. उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।

4. एमपीसी ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों की संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया।

संकल्प

5. वर्तमान और उभरती समष्टिआर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (8 फरवरी 2024) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखा जाए।

परिणामस्वरूप स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर यथावत् बनी हुई है।

  • एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

ये निर्णय, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य प्राप्त करने के अनुरूप है।

आकलन और संभावना

6. बीते उतार-चढ़ाव वाले वर्ष में आश्चर्यजनक रूप से आघात-सहनीय निष्पादन के बाद 2024 में वैश्विक संवृद्धि स्थिर रहने की संभावना है। अनिरंतरित बढ़ोतरी के साथ मुद्रास्फीति कई दशकों के उच्चतम स्तर से नीचे आ रही है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में केंद्रीय बैंकों द्वारा शुरुआती पिवट के बारे में बदलते विचारों के कारण वित्तीय बाजार की मनोभावों में उतार-चढ़ाव हो रहा है। कम ब्याज दरों की संभावना ने इक्विटी बाजारों में तेजी ला दी है, हालांकि ब्याज दरों में कटौती के समय के बारे में अनिश्चितता, अमेरिकी डॉलर और सॉवरेन बांड प्रतिफल में द्विदिश आंदोलनों में परिलक्षित होती है। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं (ईएमई), अस्थिर पूंजी प्रवाह के बीच मुद्रा में उतार-चढ़ाव का सामना कर रही हैं।

7. घरेलू आर्थिक गतिविधियां मजबूत हो रही हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी पहले अग्रिम अनुमान (एफएई) के अनुसार, 2023-24 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), वर्ष-दर-वर्ष (वाई-ओ-वाई) 7.3 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, जो मजबूत निवेश गतिविधि द्वारा समर्थित है। आपूर्ति पक्ष पर, 2023-24 में योजित सकल मूल्य (जीवीए) में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें विनिर्माण और सेवा क्षेत्र प्रमुख चालक रहे।

8. आगे चलकर, रबी की बुआई में सुधार ने विनिर्माण में लाभप्रदता को बरकरार रखा और सेवाओं के अंतर्निहित आघात-सहनीयता से 2024-25 में आर्थिक गतिविधि को समर्थन मिलना चाहिए। मांग पक्ष के प्रमुख चालकों में, घरेलू खपत में सुधार की उम्मीद है, जबकि निजी पूंजीगत व्यय चक्र में सुधार, कारोबारी मनोभावों में सुधार, बैंकों और कॉरपोरेट्स का स्वस्थ तुलन-पत्र तथा सरकार का पूंजीगत व्यय पर निरंतर जोर के कारण नियत निवेश की संभावनाएं उज्ज्वल बनी हुई हैं। वैश्विक व्यापार की संभावनाओं में सुधार और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में बढ़ते एकीकरण से निवल बाह्य मांग को समर्थन मिलेगा। हालाँकि, भू-राजनीतिक तनाव, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता और भू-आर्थिक विखंडन से उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियाँ, संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो पहली तिमाही में 7.2 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 6.8 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 7.0 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है (चार्ट 1)। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

9. अक्तूबर 2023 के 4.9 प्रतिशत के निचले स्तर से, सीपीआई मुद्रास्फीति अगले दो महीनों में क्रमिक रूप से बढ़कर दिसंबर तक 5.7 प्रतिशत हो गई। ईंधन में अपस्फीति के गहन होने के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति, मुख्य रूप से वर्ष-दर-वर्ष सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी से हेडलाइन मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी हुई। दिसंबर में मूल मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फीति) घटकर चार वर्ष के निचले स्तर 3.8 प्रतिशत पर आ गई।

10. आगे चलकर, मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र, उभरते खाद्य मुद्रास्फीति संभावना से आकार लेगा। रबी की बुआई पिछले वर्ष के स्तर को पार कर गई है। सब्जियों की कीमतों में सामान्य मौसमी सुधार जारी है, हालांकि यह असमान रूप से है। फिर भी मौसम की प्रतिकूल घटनाओं की संभावना से खाद्य मूल्य संभावना पर काफी अनिश्चितता बनी हुई है। प्रभावी आपूर्ति पक्ष प्रतिक्रियाएँ खाद्य कीमतों के दबाव को नियंत्रण में रख सकती हैं। मौद्रिक नीति कार्रवाइयों और रुख का निरंतर प्रभाव-अंतरण मूल मुद्रास्फीति को शांत रख रहा है। हालाँकि, कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर बनी हुई हैं। रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षण में शामिल विनिर्माण फर्मों को 2023-24 की चौथी तिमाही में इनपुट लागत और बिक्री मूल्यों की वृद्धि में कुछ नरमी की उम्मीद है, जबकि सेवा और बुनियादी ढांचा फर्मों को उच्च इनपुट लागत दबाव और बिक्री कीमतों में संवृद्धि की उम्मीद है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, सीपीआई मुद्रास्फीति 2023-24 के लिए 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है। अगले वर्ष सामान्य मानसून का अनुमान लगाते हुए, 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो पहली तिमाही में 5.0 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 4.0 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 4.6 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 4.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है (चार्ट 2)। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

Cart 1 and 2

11. एमपीसी ने कहा कि घरेलू आर्थिक गतिविधि अच्छी चल रही है और निवेश मांग में तेजी, आशावादी कारोबारी मनोभावों और बढ़ते उपभोक्ता विश्वास से इसे समर्थन मिलने की उम्मीद है। मुद्रास्फीति के स्तर पर, बड़े और बार-बार आने वाले खाद्य मूल्यों के आघात अवस्फीति की गति को बाधित कर रहे हैं जो मूल मुद्रास्फीति में कमी के कारण हो रही है। भू-राजनीतिक घटनाएं और आपूर्ति शृंखलाओं पर उनका प्रभाव, तथा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों और कमोडिटी की कीमतों में अस्थिरता मुद्रास्फीति के बढ़ने के जोखिम के प्रमुख स्रोत हैं। नीतिगत रेपो दर में बढ़ोतरी का संचयी प्रभाव अभी भी अर्थव्यवस्था पर अपना असर दिखा रहा है। एमपीसी गैर-खाद्य कीमतों पर खाद्य कीमतों के दबाव के सामान्यीकरण के किसी भी संकेत की सावधानीपूर्वक निगरानी करेगी, जो मूल मुद्रास्फीति में कमी के लाभ को नष्ट कर सकता है। चूँकि अवस्फीति के मार्ग को कायम रखने की आवश्यकता है, एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने और पूर्ण संचरण को सुनिश्चित करने के लिए मौद्रिक नीति को सक्रिय रूप से अवस्फीतिकारी बने रहना चाहिए। एमपीसी मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप लाने की अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ रहेगी। एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

12. एमपीसी के सभी सदस्य - डॉ. शशांक भिडे, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने के लिए वोट किया। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंकों तक कम करने के लिए वोट किया।

13. डॉ. शशांक भिडे, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए वोट किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने रुख को निष्पक्ष में बदलने के लिए वोट किया।

14. एमपीसी की इस बैठक का कार्यवृत्त 22 फरवरी 2024 को प्रकाशित किया जाएगा।

15. एमपीसी की अगली बैठक 3 से 5 अप्रैल 2024 के दौरान निर्धारित है।

नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने के संकल्प पर वोटिंग

सदस्य वोट
डॉ. शशांक भिडे हाँ
डॉ. आशिमा गोयल हाँ
प्रो. जयंत आर. वर्मा नहीं
डॉ. राजीव रंजन हाँ
डॉ. माइकल देवब्रत पात्र हाँ
श्री शक्तिकान्त दास हाँ

डॉ. शशांका भिडे का वक्तव्य

16. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी वित्त वर्ष 2023-24 के लिए जीडीपी के पहले अग्रिम अनुमान में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वर्ष-दर-वर्ष वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.3 प्रतिशत रखी गई है, जो पिछले वर्ष के 7.2 प्रतिशत से अधिक है। 2023-24 की दूसरी छमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद की अंतर्निहित वृद्धि दर 7 प्रतिशत है, जो दिसंबर 2023 के एमपीसी बैठक के अनुमानों से काफी अधिक है। वित्त वर्ष 2023-24 में कृषि पर प्रतिकूल मानसून की स्थिति, कमजोर बाहरी मांग की स्थिति, भू-राजनीतिक संघर्षों के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के जोखिम और वित्तीय वर्ष के अधिकांश समय में बढ़ी हुई नीतिगत ब्याज दरों के बावजूद संवृद्धि में कोई मंदी नहीं आई है। उपभोक्ता स्तर की मुद्रास्फीति दर में नरमी, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कमोडिटी की कीमतों में गिरावट से घरेलू उत्पादकों के लिए इनपुट लागत पर असर और सरकारी पूंजीगत व्यय की बढ़ती गति ने संवृद्धि की प्रतिकूल स्थितियों के प्रभाव को कम कर दिया है। खाद्य से इतर ऋण, विनिर्माण और सेवाओं के लिए पीएमआई, जीएसटी संग्रह जैसे आर्थिक गतिविधि के हालिया व्यापक उच्च आवृत्ति संकेतक मजबूत मांग स्थितियों की ओर इशारा करते हैं।

17. हालांकि, आउटपुट क्षेत्रों और मांग के स्रोतों में एक समान रूप से संवृद्धि नहीं हुई है, व्यापक सहायक आर्थिक और मौद्रिक नीतियों ने संवृद्धि के चालकों को बनाए रखने में मदद की है। आगे चलकर, उपभोग मांग में वृद्धि का पुनरुद्धार संवृद्धि के मौजूदा गति को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कारक होगा, जिसके लिए रोजगार और घरेलू आय स्थितियों में सुधार की आवश्यकता होगी।

18. अल्पावधि में, 2-11 जनवरी 2024 के दौरान किए गए शहरी परिवारों के लिए आरबीआई के नमूना सर्वेक्षण से पता चलता है कि सर्वेक्षण के पिछले दौर की निष्कर्षों की तुलना में सामान्य आर्थिक स्थिति और घरेलू रोजगार के उपभोक्ता के आकलन और उच्च घरेलू आय के कारण उपभोक्ता विश्वास में सुधार हो रहा है। उपभोक्ता के इस आशावाद को सावधानी से देखा जा रहा है क्योंकि सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि कुल खर्च में वृद्धि की उम्मीद – अर्थात्, बढ़े हुए खर्च की उम्मीद करने वाले उत्तरदाताओं का प्रतिशत - अभी भी महामारी-पूर्व अवधि के स्तर तक नहीं पहुंच पाया है। विवेकाधीन खर्च के मामले में अंतर विशेषतः पर्याप्त है।

19. अक्तूबर-दिसंबर 2023 के दौरान किए गए आरबीआई के उद्यम सर्वेक्षण, वित्तीय वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही से वित्तीय वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही की अवधि के दौरान व्यापार आशावाद में वृद्धि का संकेत देते हैं। हालाँकि, सेवाएं और अवसंरचना क्षेत्रों के मामले में तीन तिमाहियों में प्रत्येक में समग्र कारोबारी स्थितियों में सुधार की उम्मीद है, विनिर्माण क्षेत्र में केवल वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में ही काफी सुधार होने की उम्मीद है।

20. वित्त वर्ष 2023-24 में संवृद्धि का प्रदर्शन अगले वित्तीय वर्ष की संभावनाओं के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों का आकलन 2024 में वैश्विक व्यापार स्थितियों में महत्वपूर्ण सुधार की ओर इशारा करता है और आर्थिक संवृद्धि का पिछले वर्ष के स्तर पर स्थिर रहने की उम्मीद है। अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी मूल्य दबाव मध्यम बने रहने की उम्मीद है। घरेलू अर्थव्यवस्था में, मानसून के दौरान अनुकूल वर्षा सौम्य मुद्रास्फीति और संवृद्धि परिदृश्य दोनों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होगी। राजकोषीय घाटे में कमी के लक्ष्य के साथ, निजी निवेश के लिए धन की उपलब्धता अन्यथा की तुलना में कम बाधित होगी। हालांकि इनमें से प्रत्येक स्थिति जोखिमों के अधीन होगी, मांग के घरेलू स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करने वाली संवृद्धि की धारणीय गति की भी ऐसे ही रहने की संभावना है।

21. विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि अब पहली तिमाही से चौथी तिमाही के दौरान क्रमशः 7.2%, 6.8%, 7% और 6.9% की तिमाही वृद्धि के साथ 7% अनुमानित है। यह पूर्वानुमान वर्ष के लिए सामान्य मानसून पर आधारित है, जो ग्रामीण उपभोग मांग को भी समर्थन देगा। जनवरी 2024 में आयोजित आरबीआई का पेशेवर पूर्वानुमानकर्ता सर्वेक्षण, 2024-25 में 6.5 प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि का औसत पूर्वानुमान प्रदान करता है, जिसे सर्वेक्षण के नवंबर 2023 दौर में 6.3% के पूर्वानुमान से ऊर्ध्वगमी संशोधित किया गया है।

22. पिछले दो महीनों में अपेक्षाकृत कम दरों के बाद, हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर नवंबर में 5.6% और दिसंबर 2023 में 5.7% की वृद्धि हुई। नवंबर और दिसंबर में उच्च मुद्रास्फीति दर क्रमशः 8% और 8.7% खाद्य मुद्रास्फीति के कारण थी। वर्ष-दर-वर्ष आधार पर नवंबर और दिसंबर के दौरान ईंधन और प्रकाश सूचकांक में गिरावट आई और खाद्य और ईंधन (मूल मुद्रास्फीति) को छोड़कर मूल्य सूचकांक में क्रमशः 4.1% और 3.8% की वृद्धि हुई। इसलिए, वर्तमान परिस्थितियों में, खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट सतत आधार पर हेडलाइन मुद्रास्फीति को लक्ष्य तक लाने में महत्वपूर्ण होगी।

23. दिसंबर में बढ़ी हुई खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति को दालों, फलों, सब्जियों और मसालों की कीमतों में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर दोहरे अंक में वृद्धि के रूप में चिह्नित किया गया था; अनाज और उत्पाद तथा चीनी और मिष्ठान्न मूल्य सूचकांक में 6% से अधिक की वृद्धि हुई। मांस और मछली, अंडे, दूध और उत्पाद, तेल और वसा, गैर-मादक पेय पदार्थ, और तैयार भोजन, स्नैक्स आदि की कीमतों में 6% से कम की वृद्धि दर्ज की गई। इसलिए, दिसंबर में कई खाद्य पदार्थों की कीमतों में उच्च स्तर की वृद्धि दर्ज की गई। आगे चलकर, अल्पावधि में, खाद्य कीमतों में मंदी के लिए अनुकूल रबी फसल और पर्याप्त आपूर्ति प्रतिक्रिया की आवश्यकता होगी।

24. 2-11 जनवरी के दौरान आरबीआई द्वारा आयोजित शहरी परिवारों का प्रत्याशा संबंधी सर्वेक्षण वर्तमान और एक वर्ष आगे की मुद्रास्फीति में गिरावट का संकेत देता है, लेकिन 3 महीने आगे की अवधि में वृद्धि का संकेत देता है, जो मध्यम अवधि में मूल्य दबाव में कमी का संकेत देता है।

25. अक्तूबर-दिसंबर 2023 में किए गए आरबीआई के उद्यम सर्वेक्षण सभी क्षेत्रों में मूल्य स्थितियों के लिए मिश्रित तस्वीर की ओर इशारा करते हैं। चौथी तिमाही की तत्काल अल्पकालिक अवधि में, सर्वेक्षण से विनिर्माण में इनपुट लागत के दबाव में गिरावट लेकिन सेवाओं और बुनियादी ढांचे में बढ़ते पैटर्न की उम्मीदों का पता चलता है। लागत धारणाओं के अनुरूप, बड़ी संख्या में कंपनियों को 2023-24 की चौथी तिमाही और उसके बाद की दो तिमाहियों में सेवाओं और अवसंरचना में बिक्री कीमतों में वृद्धि की उम्मीद है।

26. दिसंबर 2023 के दौरान भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद द्वारा आयोजित बिजनेस इन्फ्लेशन एक्सपेक्टेशंस सर्वे (बीआईईएस) नवंबर 2023 में अपने सर्वेक्षण के निष्कर्षों की तुलना में एक साल आगे की यूनिट लागत आधारित अपेक्षित मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय वृद्धि की रिपोर्ट करता है। यह सर्वेक्षण अक्तूबर 2023 में 4.73% से दिसंबर 2023 में एक वर्ष आगे की अपेक्षित हेडलाइन मुद्रास्फीति दर में 4.96% की वृद्धि की भी रिपोर्ट करता है। सर्वेक्षण के उत्तरदाता मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र की कंपनियों से थे।1

27. जनवरी 2024 में आयोजित आरबीआई का पेशेवर पूर्वानुमानकर्ता सर्वेक्षण, 2023-24 की चौथी तिमाही में हेडलाइन मुद्रास्फीति 5.1% और उसके बाद 2024-25 की पहली से तीसरी तिमाही में क्रमशः 5.2%, 3.8% और 4.9% का अनुमानित औसत पूर्वानुमान प्रदान करता है। 2024-25 के लिए अनुमानित सीपीआई मुद्रास्फीति दर 4.6% है।

28. विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2023-24 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति दर 5.4% और चौथी तिमाही में 5% रहने का अनुमान है। 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति दर 4.5% अनुमानित है, जिसमें पहली तिमाही से चौथी तिमाही के लिए क्रमशः 5%, 4%, 4.6% और 4.7% का तिमाही अनुमान है।

29. वर्तमान संवृद्धि और मुद्रास्फीति परिदृश्य लगभग वैसा ही है जैसा हमने दिसंबर में देखा था: सभी क्षेत्रों और मांग के स्रोतों में प्रमुख असमान पैटर्न के साथ कई प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद आश्चर्यजनक रूप से मजबूत संवृद्धि गति देखी गई। भू-राजनीतिक संघर्षों और मौसम की स्थिति के कारण वैश्विक आर्थिक स्थितियों पर अनिश्चितता भी बनी हुई है। जहां तक जीडीपी वृद्धि का संबंध है, 2024-25 के लिए आधारभूत अनुमानों को अब दिसंबर के अनुमानों की तुलना में ऊर्ध्वगामी संशोधित किया गया है। 2024-25 की पहली तीन तिमाहियों के लिए मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान दिसंबर के अनुमानों से थोड़ा कम है लेकिन तीसरी और चौथी तिमाही में 4.5% से ऊपर है।.

30. समग्र मुद्रास्फीति दबावों पर खाद्य मुद्रास्फीति के मौजूदा उच्च स्तर के प्रभाव और मौजूदा मजबूत समग्र संवृद्धि को देखते हुए, मुद्रास्फीति लक्ष्य को सतत तरीके से प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। जैसा कि हमने दिसंबर 2023 की बैठक में देखा था, फरवरी 2023 तक नीतिगत दरों में बढ़ोतरी का प्रसारण अभी भी अधूरा है। इसलिए, इस समय वर्तमान नीति दरों को जारी रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि लक्ष्य तक मुद्रास्फीति दर में कमी को सतत तरीके से प्राप्त किया जा सके।

31. इसलिए, मैं::

  1. नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने, और

  2. निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो, के लिए वोट करता हूँ।

डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य

32. भू-राजनीतिक जोखिम जारी हैं लेकिन न तो तेल की कीमतें उतनी बढ़ी हैं जितनी आशंका थी और न ही वैश्विक संवृद्धि दर उतनी धीमी हुई है जितनी उम्मीद थी। चूंकि, मुद्रास्फीति अपने लक्ष्य के करीब पहुंची है, उन्नत अर्थव्यवस्था (एई) केंद्रीय बैंकों (सीबी) ने 2024 में दर में कटौती की घोषणा की है क्योंकि उन्हें लगता है कि वास्तविक ब्याज दरों में और वृद्धि होगी क्योंकि मुद्रास्फीति में गिरावट एक ओवर-करेकशन होगा और सॉफ्ट लैंडिंग के लिए सूक्ष्म कार्रवाइयों की आवश्यकता होती है। कुछ उभरते बाजार सीबी पहले ही दरों में कटौती कर चुके हैं।

33. वैश्विक झटकों के प्रति आघात-सहनीयता का प्रदर्शन करते हुए भारतीय संवृद्धि भी उम्मीदों से अधिक रहा है। लेकिन कई उच्च आवृत्ति संकेतक नवंबर और दिसंबर में मंद पर गए। फिर भी, मात्रा के हिसाब से आयात बढ़ रहा है और ऋण वृद्धि में कोई कमी नहीं आई है। अच्छी वृद्धि के बावजूद क्षमता उपयोग में वृद्धि नहीं होने से पता चलता है कि निजी निवेश हो रहा है।

34. मुद्रास्फीति भी पूर्वानुमानों से नीचे आ गई है और मूल मुद्रास्फीति में नरमी जारी है, जो फिर से संकेत देता है कि उत्पादन, क्षमता से नीचे बना हुआ है। सुधारों और संरचनात्मक परिवर्तनों से लागत कम हो रही है। लाभ मार्जिन में वृद्धि हुई है, हालांकि कॉरपोरेट्स मूल्य वृद्धि के मुकाबले मात्रा को प्राथमिकता दे रहे हैं। कॉर्पोरेट परिणाम दर्शाते हैं कि तीसरी तिमाही में वास्तविक बिक्री वृद्धि सांकेतिक वृद्धि से अधिक रही। एफएमसीजी कंपनियां स्थानीय प्रतिस्पर्धियों के कारण कीमतों में कटौती कर रही हैं। तेल की बड़ी कंपनियों के पास भी कीमतों में कटौती की गुंजाइश है। वर्तमान धारणाएं और दीर्घकालिक घरेलू मुद्रास्फीति उम्मीदें सौम्य हो गई हैं। इस बात पर समग्र सहमति बनती दिख रही है कि मुद्रास्फीति लक्ष्य की ओर बढ़ रही है। इससे मूल मुद्रास्फीति 4% के आसपास रहनी चाहिए। अपेक्षा से अधिक तेज़ राजकोषीय समेकन और सरकारी व्यय की निरंतर बेहतर संरचना से मुद्रास्फीति का दबाव भी कम होगा।

35. चूंकि संवृद्धि अभी भी मजबूत है और हालिया हेडलाइन मुद्रास्फीति ऊपरी सहन-सीमा बैंड के करीब रही है, हम यह सुनिश्चित करने के लिए थोड़ा और इंतजार कर सकते हैं कि मुद्रास्फीति किसी भी भू-राजनीति से संबंधित या अन्य कमोडिटी मूल्य आघातों के बावजूद लक्ष्य तक बढ़ती रहे। पिछले वर्ष के अनुभव से पता चलता है कि कमोडिटी की कीमत के आघात अब अल्पकालिक हो सकते हैं और मुद्रास्फीति को लगातार नहीं बढ़ा सकती है। तब सिर्फ इसलिए दरें उच्च रखना जरूरी नहीं होगा क्योंकि भविष्य में आपूर्ति संबंधी आघात होने की आशंका है। लेकिन हम इसके परीक्षण के लिए कुछ और समय तक इंतजार कर सकते हैं। इसलिए, मैं दरों पर यथास्थिति के लिए वोट करती हूं, हालांकि वित्तीय वर्ष 25 के लिए हेडलाइन मुद्रास्फीति के 4.5% के अनुमान से कटौती की गुंजाइश है। वर्ष के अंत में हेडलाइन मुद्रास्फीति में 5% की वृद्धि की उम्मीद आधार प्रभावों और खाद्य कीमतों में अपेक्षित वृद्धि के कारण है, लेकिन बाद वाले अत्यधिक अनिश्चित हैं। मैं नीतिगत दरों के अभी भी अवस्फीतिकारी होने के संदर्भ में उल्लिखित रुख से सहमत हूं और रुख पर यथास्थिति के लिए वोट करती हूं।

36. आपूर्ति पक्ष में और सुधार आवश्यक हैं जो आघात को कम कर सकें। एई में बेहतर एकीकृत बाजार खाद्य कीमतों के उन आघातों से बचाते हैं जिनका हमें सामना करना पड़ता है। प्रमुख सब्जियों की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए आधुनिक आपूर्ति शृंखलाओं को हमारी भौगोलिक विविधता के साथ-साथ आयात का भी उपयोग करना चाहिए।

37. पिछले कुछ महीनों में दैनिक भारित औसत मांग दर (डब्ल्यूएसीआर) अक्सर रेपो दर से ऊपर रही है। जिस तरह रेपो दर को प्रतिवर्ती रेपो से ऊपर बढ़ाने को सुनिश्चित करने के लिए चलनिधि को वापस लेने से सख्ती का चक्र शुरू हुआ था, अब 6 महीने की सख्त बैंकिंग चलनिधि, और यथाअपेक्षित वास्तविक दरों में वृद्धि के बाद, यह सुनिश्चित करने के उपायों की आवश्यकता है कि डब्ल्यूएसीआर काफी हद तक रेपो दर पर बना रहे। इनसे अल्प दरों में भी कमी आएगी और यह चलनिधि समायोजन ढांचे के प्राकृतिक विकास का हिस्सा है जो मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का समर्थन करता है।

38. भले ही डब्ल्यूएसीआर का रेपो से अधिक होना अभूतपूर्व और विस्तारित बृहद सरकारी नकदी शेष के कारण था, इन और कई अन्य आघातों का सामना करने के लिए टूलकिट, जिसके अधीन भारत की चलनिधि है, का विस्तार और उसे सक्रिय किया जा सकता है। अधिशेष सरकारी नकदी शेषराशि के हिस्से पर पहले से ही वीआरआर नीलामी के लिए विचार किया जाता रहा है, नकदी प्रबंधन में सुधार किया जा सकता है और सरकारी उधार को कम किया जा सकता है। जस्ट इन टाइम मोड में जाने से ब्याज लागत में बचत होगी। मुद्रा बाजार का समय बढ़ाया जा सकता है और बैंकों को एक-दूसरे को ऋण देने में सक्षम बनाने के लिए बाजार के माइक्रोस्ट्रक्चर को विकसित किया जा सकता है।

39. बैंक, शेष वित्तीय प्रणाली में चलनिधि का एकमात्र माध्यम हैं और यदि चलनिधि की कमी होती है तो वे अपने पास इसे जमाकर रखते हैं। चूंकि गैर-बैंक वित्तीय मध्यस्थों के पास अंतिम ऋणदाता तक पहुंच नहीं है और क्रेडिट डिफॉल्ट के लिए जुर्माना अब अधिक है, इसलिए वे भी अतिरिक्त चलनिधि रखते हैं। परिणामस्वरूप क्रेडिट प्रणाली के बड़े हिस्से को सेवा नहीं मिल पाती है।

40. आघात-सहनीयता संबंधी कार्य2 से पता चलता है कि सीबी को वित्तीय प्रणाली में कहीं भी जोखिम प्रीमियम को कम करने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए। इसका एक प्रभावी उदाहरण भारतीय विदेशी मुद्रा (एफएक्स) बाजार में है जहां रुपये की अस्थिरता और एफएक्स वायदा प्रीमियम में गिरावट आई है। यह एक कारण है कि हमने पिछले 2 महीनों3 में सबसे कम ब्याज अंतर पर बड़े ऋण अंतर्वाह को देखा है और यह फिर से अमेरिकी दरों से भारतीय नीति दरों की स्वतंत्रता की ओर इशारा करता है।

41. समष्टि-विवेकपूर्ण सख्ती से पहले से ही तुलन-पत्र (बीएस) तनाव कम हो जाता है, साथ ही मैक्रो फंडामेंटल और राजकोषीय समेकन भी बेहतर होता है। लेकिन चलनिधि के लागत को बढ़ाने, दिवालियेपन में बदलने और बीएस तनाव पैदा करने से रोकने के लिए पर्याप्त चलनिधि भी महत्वपूर्ण है। सिलिकॉन वैली बैंक के पतन का एक प्रमुख कारण, जिसका अन्य लोगों द्वारा अनुसरण नहीं किया गया, फेड द्वारा तनावग्रस्त वित्तीय संस्थानों को व्यापक चलनिधि समर्थन उपलब्ध कराना था, भले ही यह क्वान्टिटेटिव टाइटनिंग के साथ जारी रहा।

प्रोफेसर जयंत आर. वर्मा का वक्तव्य

42. 2024-25 में मुद्रास्फीति औसतन 4.5% रहने का अनुमान है, और इसलिए, 6.5% की वर्तमान नीतिगत दर 2% की वास्तविक दर हो जाती है। मैं नहीं मानता कि मुद्रास्फीति को 4% के लक्ष्य तक लाने के लिए इस समय इतनी उच्च वास्तविक दर की आवश्यकता है। यह सत्य है कि आर्थिक संवृद्धि अच्छी है, लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि अर्थव्यवस्था अति-सक्रिय (ओवरहीटिंग) है।

43. संभवतः, एमपीसी के अधिकांश सदस्यों को चिंता है कि उत्पादन अंतर पहले ही समाप्त हो चुका है, और 2024-25 के लिए 7% की अनुमानित संवृद्धि दर भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि क्षमता से अधिक है। मुझे नहीं लगता कि इस तरह की संवृद्धि निराशावृत्ति उचित है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, हमने डिजिटलीकरण, कर सुधार और अवसंरचना निवेश में वृद्धि सहित कई नीतिगत उपाय देखे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था की संभावित संवृद्धि दर को समर्थन मिलना चाहिए। साथ ही, महामारी-पूर्व स्तर से वास्तविक जीडीपी की चक्रवृद्धि औसत संवृद्धि दर काफी कम है: 2019-20 से 2023-24 तक 4¼ प्रतिशत प्रति वर्ष (पहला अग्रिम अनुमान)। संवृद्धि निराशावृत्ति के लिए किसी को यह मान लेना होगा कि महामारी ने अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर स्थायी क्षति पहुंचाई है। इसके विपरीत, सभी संकेत यही हैं कि अर्थव्यवस्था काफी आघात-सह रही है, और यहां तक ​​कि जो क्षेत्र महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए थे, उनमें भी बहाली हो रही है।

44. यदि अर्थव्यवस्था की संभावित संवृद्धि दर 8% के करीब है, तो 2024-25 में अर्थव्यवस्था के अति-सक्रिय (ओवरहीटिंग) होने का खतरा नहीं है। 1-1.5% की वास्तविक ब्याज दर मुद्रास्फीति को 4% के लक्ष्य तक ले जाने के लिए पर्याप्त होगी। 2% की वास्तविक ब्याज दर संवृद्धि निराशावृत्ति को स्वयं संतुष्टि भविष्यवाणी में बदलने का वास्तविक जोखिम उत्पन्न करती है।

45. यह भी ध्यान रखना होगा कि राजकोषीय समेकन की प्रक्रिया 2024-25 में भी जारी रहने का अनुमान है। इससे मुद्रास्फीति बढ़ने के जोखिम के बिना मौद्रिक सुलभता की गुंजाइश बनती है। मेरे विचार में, एमपीसी के लिए यह स्पष्ट संकेत भेजने का समय आ गया है कि वह मुद्रास्फीति और संवृद्धि के अपने दोहरे अधिदेश को गंभीरता से लेती है, और उस वास्तविक ब्याज दर को बनाए नहीं रखेगी जो कि उसके लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यकता से काफी अधिक है।

46. अतएव मैं रेपो दर को 25 आधार अंकों तक कम करने और रुख को तटस्थ में बदलने के लिए वोट करता हूं।

डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य

47. मैं अपने दिसंबर 2023 कार्यवृत्त में दी गई संभावना से शुरूआत करना चाहता हूं, "जबकि उपभोग और निवेश द्वारा समर्थित एक स्थायी संवृद्दि पथ यहां से दिखाई दे रहा है, लेकिन अवस्फीति के बारे में अभी तक ऐसा नहीं कहा जा सकता है। अक्तूबर 2023 में 5 प्रतिशत से कम का प्रिंट यथाशीघ्र अगले माह तक प्रतिवर्ती हो सकता है।' पिछली नीति के बाद से, संवृद्धि मुद्रास्फीति गतिकी काफी हद तक इसी तर्ज पर विकसित हुई है। संवृद्धि आशा से बेहतर बनी हुई है, जबकि नवंबर और दिसंबर में मुद्रास्फीति प्रिंट 5 प्रतिशत को पार कर गया है। मूल मुद्रास्फीति ने अवस्फीति के स्पष्ट और धारणीय संकेत दिए हैं जो हमें मौद्रिक नीति के परिप्रेक्ष्य से राहत प्रदान करते हैं, लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति से ऊर्ध्वगामी जोखिम बना हुआ है।

48. पिछली नीति के बाद से दो अन्य आश्वासनदायी गतिविधियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला वैश्विक अर्थव्यवस्था से संबंधित है जो पहले की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन कर रही है। वैश्विक संवृद्धि की संभावनाओं में सुधार हुआ है और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति धीरे-धीरे कम हो रही है, यद्यपि बीच-बीच में गिरावट के रुख से विचलित हो जाती है। वैश्विक कमोडिटी कीमतें नरम बनी हुई हैं और चल रहे संघर्षों में कई नए फ्लैशप्वाइंट के बावजूद कच्चे तेल की कीमतें नहीं बढ़ी हैं। दूसरा, केंद्र सरकार ने अपने अंतरिम बजट में राजकोषीय समेकन पथ पर बने रहने की घोषणा की। एक विवेकपूर्ण राजकोषीय नीति लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे की विश्वसनीयता को मजबूत कर सकती है और इस प्रकार दीर्घकालिक मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।4 2024 में कम बजट वाले बाज़ार उधार और बॉण्ड समावेशन संचालित प्रवाह की आशा के साथ, राजकोष ने एक तरफ निजी क्षेत्र के लिए स्थान खाली किया है, वहीं दूसरी ओर, सौर ऊर्जा, स्वास्थ्य, नवोन्मेष और नवीकरण जैसे क्षेत्रों में पूंजीगत व्यय और अन्य दीर्घकालिक धारणीय संवृद्धि पहलों पर अपने निरंतर ध्यान के माध्यम से निजी निवेश में वृद्धि के लिए कदम उठाए हैं।

49. इस पृष्ठभूमि में, मैं निम्नलिखित कारणों से दर और रुख पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए वोट करता हूं।

50. सबसे पहले, यह ध्यातव्य है कि हमने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और कई उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं, जहां दर वृद्धि बहुत अधिक थी, में केंद्रीय बैंकों के विपरीत मई 2022 से फरवरी 2023 के दौरान रेपो दर को संचयी रूप से 250 बीपीएस बढ़ाकर अपनी दर कार्रवाई को आगे बढ़ाया था। अप्रैल 2023 में, जब हमने विराम लगाया, तब भी अधिकांश बाज़ार सहभागी एमपीसी दरों में बढ़ोतरी की आशा कर रहे थे। दूसरे शब्दों में, पश्चिमी केंद्रीय बैंकों द्वारा की गई 400-500 बीपीएस वृद्धि के विपरीत, हमने अपनी ब्याज दरों को बहुत अधिक प्रतिबंधात्मक क्षेत्र तक नहीं बढ़ाया।

51. दूसरा, संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिकी और मुद्रास्फीति के आगे बढ़ने के पथ से संबंधित अनिश्चितता को देखते हुए, वर्तमान रबी फसल और आगामी मानसून बारिश पर अधिक स्पष्टता प्राप्त करने के लिए यथास्थिति जारी रखना बेहतर होगा ताकि 4 प्रतिशत की ओर मुद्रास्फीति के एक टिकाऊ अधोगामी प्रक्षेपवक्र के हमारे दृढ़ विश्वास की पुष्टि हो सके।

52. तीसरा, बाज़ार इस समय भारत सहित विश्व भर के नीति निर्माताओं से आगे चल रहे हैं। नीति दिशा में किसी भी बदलाव का कई गुना प्रभाव होने वाला है। यह विशेष रूप से मुश्किल है क्योंकि पिछले दो महीनों में संचरण धीमा हो गया है। नवंबर-दिसंबर 2023 के दौरान वाणिज्यिक बैंकों के नए ऋणों पर भारित औसत उधार दर में 18 बीपीएस की गिरावट आई है।5 इस स्तर पर कोई भी बदलाव एक गलत कदम हो सकता है और अब तक प्राप्त लाभ को बर्बाद कर सकता है।

53. चौथा, डिजिटलीकरण और अर्थव्यवस्था के औपचारिकीकरण के माध्यम से उत्पादकता में सुधार, पूंजी निर्माण में वृद्धि, अनुकूल जनसांख्यिकी और सेवा निर्यात जैसे संवृद्धि के नए चालकों के कारण, भारत की संभावित संवृद्धि अब उच्चतर6 होने की संभावना है। इससे हम मुद्रास्फीति के मोर्चे पर अधिक सावधानी से आगे बढ़ सकते हैं। मजबूत संवृद्धि के बावजूद कम मूल मुद्रास्फीति इस तर्क का समर्थन करती है।

54. पांचवां, मुद्रास्फीति के अंतिम अवरोह को सफलतापूर्वक प्रबंधित करना यात्रा का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा है और पिछले 100 मुद्रास्फीति प्रकरणों का इतिहास हमें सिखाता है कि मुद्रास्फीति का आघात, सामान्य तौर पर, दीर्घस्थायी रहता है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सफलता के लिए जो बात महत्वपूर्ण है वह नीति की निरंतरता और विश्वसनीयता है जो मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को मजबूती से नियंत्रित करने में मदद करती है।7 किसी भी पूर्व-परिपक्व कदम से बचने से हमें विश्वसनीयता के लिए सबसे बड़ी चुनौती, अर्थात्, मुद्रास्फीति के ऊर्ध्वगामी अप्रत्याशित आश्चर्य का सामना करने पर बाद में पिछली कार्रवाइयों को दोहराना, से सुरक्षा में मदद मिलेगी।8

55. अंत में, मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि आज हम संचरण के दौर में हैं, जो थोड़ा नाजुक है जहां न तो आगे का मार्गदर्शन कार्य करता है और न ही पहले से अधिकृत नीतिगत कार्रवाई। बदलाव की उम्मीदें एजेंटों और बाजार सहभागियों को इस तरह से व्यवहार करने पर मजबूर कर देती हैं जैसे कि बदलाव पहले ही हो चुका है, जिससे वर्तमान को प्रबंधित करना और भी कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, हाल ही में हमने देखा कि प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा दरों में कटौती की उम्मीदों ने वैश्विक बाज़ारों को बहुत उत्साहित कर दिया है। इससे केंद्रीय बैंकों का कार्य और भी कठिन हो जाता है, खासकर तब जब अवस्फीति का अंतिम चरण अभी भी लंबित है। हाल के दिनों की ब्लैक स्वान घटनाओं, जब निर्णायक, आक्रामक और नवोन्मेषी दृष्टिकोण कार्य करता है, के विपरीत संचरण काल ​​के दौरान सावधानी और अपरिवर्तनवाद महत्वपूर्ण है। बिना किसी बहकावे में आए दृढ़ संकल्प के साथ पूरी यात्रा जारी रखना इन संचरण चुनौतियों से निपटने का सबसे अच्छा विकल्प है। हमारे मजबूत मूलतत्व हमें और भी मजबूत होकर उभरने में मदद करेंगे।

डॉ. माइकल देवब्रत पात्र का वक्तव्य

56. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के हालिया अग्रिम अनुमान और उसके बाद उपलब्ध उच्च आवृत्ति संकेतक घरेलू आर्थिक गतिविधि की गति के जारी रहने की ओर इशारा करते हैं। यह उपभोग से निवेश की ओर बदलाव पर आधारित है। यद्यपि एक पूर्ण निजी पूंजीगत व्यय चक्र को अभी गति मिलनी बाकी है, उच्च कॉर्पोरेट लाभप्रदता, बढ़ते आवास और स्थावर संपदा बाज़ार तथा राजकोषीय समेकन के लिए मजबूत प्रतिबद्धता - अभी और मध्यम अवधि में – को इसकी वैविध्यपूर्ण शुरुआत को तेज करना चाहिए। अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता का विस्तार हो रहा है, जिसका अधिकांश वित्तपोषण घरेलू स्तर पर किया जा रहा है, जैसा कि चालू खाते के मामूली घाटे से स्पष्ट है। परिणामस्वरूप, अत्यधिक अनिश्चित और अस्थिर वैश्विक वातावरण में संवृद्धि की अंतःप्रेरणा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रवाह की अस्थिरता से अप्रभावित है। दूसरी ओर, निजी खपत, जो जीडीपी का 57 प्रतिशत है, अभी भी बढ़ी हुई खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव में है। यह बात खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रही है। संवृद्धि के समावेशी और धारणीय होने के लिए मुद्रास्फीति को उसके लक्ष्य तक सीमित रखना होगा।

57. निरंतर खाद्य आपूर्ति दबावों ने मूल मुद्रास्फीति में लगातार कमी के कारण हुई अवस्फीति को बंधक बना रखा है। दिसंबर 2023 के नवीनतम सीपीआई प्रिंट में, प्रतिकूल आधार प्रभावों ने खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट की गति को कम कर दिया। तथापि, सर्दियों की मौसमी कीमतों में नरमी के कम होने के साथ, खाद्य श्रेणी में मांग-आपूर्ति असंतुलन फिर से दिखाई दे सकता है; उन्हें मूल मुद्रास्फीति पर मौद्रिक नीति के नियंत्रण के लाभ को गवाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। रुख संकेतक अनुकूल हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ता विश्वास में लगातार सुधार हो रहा है, यहां तक कि परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशाएँ एक वर्ष पहले ही कम हो गई हैं, और वे अपनी वर्तमान धारणाओं में इस परिणाम के बारे में अधिक आश्वस्त हैं। कारोबारी रुख भी उत्साहित है, खासकर सेवा क्षेत्र की कंपनियों के बीच। विनिर्माण क्षेत्र में, मात्रा विस्तार के कारण सांकेतिक बिक्री वृद्धि बढ़ रही है। ऋण चुकौती बोझ और कर्मचारियों की लागत कम हो रही है जबकि लाभप्रदता में वृद्धि जारी है।

58. यदि मुद्रास्फीति कम हो जाती है और लक्ष्य के साथ संरेखित हो जाती है, तो इन उभरती समष्टि आर्थिक स्थितियों तथा विवेकपूर्ण और संवृद्धि-प्रोत्साहक बजटीय घोषणाओं के सापेक्ष वित्तीय स्थितियों में हाल के सुधार से उत्पन्न आशावाद पूर्ण हो जाएगा। भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावना मुद्रास्फीति जोखिमों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनी हुई है। उच्च मुद्रास्फीति क्रय शक्ति को नष्ट कर देती है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो भोजन जैसी आवश्यक वस्तुओं की उच्च लागत से कम सुरक्षित हैं। मूल्य स्थिरता बहाल करना सभी के लिए लाभदायक है। तदनुसार, मौद्रिक नीति को प्रतिबंधात्मक रहना चाहिए और अवस्फीति की उत्पादन लागत को कम करते हुए मुद्रास्फीति पर अधोगामी दबाव बनाए रखना चाहिए। केवल तभी जब मुद्रास्फीति कम हो और स्थायी रूप से लक्ष्य के करीब रहे, तभी नीतिगत अवरोध को कम किया जा सकता है। अतएव, मैं नीतिगत दर को अपरिवर्तित रखने और निभाव को वापस लेने के रुख को जारी रखने के लिए वोट करता हूं।

श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य

59. वर्तमान चुनौतीपूर्ण और अस्थिर वैश्विक वातावरण में, भारत मजबूती और आघात-सहनीयता की तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है। हमारी सक्रिय, बहु-आयामी और सुविचारित नीतियों ने समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने और मजबूत करने के लिए अच्छा कार्य किया है। हमारा दृष्टिकोण भविष्य के लिए एक अच्छा उदाहरण हो सकता है। यह ध्यान में रखते हुए कि मूल्य और वित्तीय स्थिरता मजबूत, धारणीय और समावेशी संवृद्धि की नींव हैं, हमारा प्रयास हमेशा अर्थव्यवस्था को संतुलन में रखने के लिए सर्वांगीण दृष्टिकोण अपनाने का रहा है।

60. 2023-24 में वास्तविक जीडीपी 2022-23 में दर्ज 7.2 प्रतिशत की संवृद्धि बढ़कर 7.3 प्रतिशत रहने की आशा है। मुद्रास्फीति कम हो रही है और 2023-24 में पिछले वर्ष के 6.7 प्रतिशत (वर्ष के औसत) से कम होकर 5.4 प्रतिशत होने की उम्मीद है। उपभोक्ता विश्वास बढ़ रहा है, कारोबारी रुख उत्साहित हैं और मुद्रास्फीति प्रत्याशाएँ लगातार स्थिर हो रही हैं।

61. सीपीआई मुद्रास्फीति पिछली गर्मियों के उच्च स्तर से काफी कम हो गई है, जो मूल मुद्रास्फीति में स्थिर और निरंतर अवस्फीति के कारण हुआ है, तथापि प्रतिकूल खाद्य मूल्य आघातों के कारण बीच-बीच में रुकावटें आई हैं। ऐसा हाल ही में हुआ था जब खाद्य मुद्रास्फीति अक्तूबर में 6.3 प्रतिशत से बढ़कर दिसंबर में 8.7 प्रतिशत हो गई थी। परिणामस्वरूप, हेडलाइन मुद्रास्फीति अक्तूबर में 4.9 प्रतिशत से बढ़कर दिसंबर में 5.7 प्रतिशत हो गई, जबकि मूल मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फीति) चार वर्ष के निचले स्तर 3.8 प्रतिशत पर आ गई। ईंधन में भी अवस्फीति गहन हुई है।

62. 2024-25 में मुद्रास्फीति के और कम होकर औसतन 4.5 प्रतिशत तक पहुंचने की आशा है, जबकि दूसरी तिमाही में यह क्षणिक गिरावट के साथ 4 प्रतिशत रहेगी। खाद्य मूल्य अनिश्चितता हेडलाइन मुद्रास्फीति की संभावना के लिए अस्थिरता का एक प्रमुख स्रोत बनी हुई है। बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और नए फ्लैशप्वाइंट के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान भी मुद्रास्फीति की संभावना के लिए और अधिक जोखिम उत्पन्न करते हैं।

63. 2024-25 में आर्थिक गतिविधियों की गति जारी रहने के साथ आगे चलकर जीडीपी की संवृद्धि दर आघात-सह रहने की आशा है। रबी की बुआई इस समय पिछले वर्ष की तुलना में बेहतर है, जो संबद्ध गतिविधियों में निरंतर गति के साथ-साथ ग्रामीण खपत को भी समर्थन प्रदान करेगी। शहरी मांग मजबूत बनी हुई है। निजी पूंजीगत व्यय चक्र में तेजी आई है, जिसे सरकार के बुनियादी ढांचे पर जोर और मजबूत कॉरपोरेट्स और बैंकों के दोहरे तुलन पत्र का लाभ मिला है। वास्तव में, नियत निवेश में मजबूत वृद्धि निवेश चक्र में बदलाव को सिद्ध करती है जिस पर मैं वर्ष के दौरान अपने पिछले वक्तव्यों में जोर देता रहा हूं। वैश्विक संभावना में सुधार से निवल बाह्य मांग में बढ़ोतरी की आशा है। आपूर्ति पक्ष पर, लाभ मार्जिन में सुधार के कारण विनिर्माण गतिविधि उत्साहित बनी हुई है। मजबूत घरेलू मांग के कारण सेवा क्षेत्र उज्ज्वल स्थिति में है। तदनुसार, हमें आशा है कि 2024-25 में वास्तविक जीडीपी में 7.0 प्रतिशत की वृद्धि होगी।

64. मौद्रिक नीति का वर्तमान विन्यास सही दिशा में आगे बढ़ रहा है, संवृद्धि स्थिर है और मुद्रास्फीति लक्ष्य के करीब आ रही है। इस समय, मौद्रिक नीति को सतर्क रहना चाहिए और यह नहीं मानना चाहिए कि मुद्रास्फीति के मोर्चे पर हमारा कार्य समाप्त हो गया है। हमें अवस्फीति के 'आखिरी मील' को सफलतापूर्वक पार करने के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहिए जो कि मुश्किल हो सकता है। चूंकि बाज़ार नीतिगत बदलावों की प्रत्याशा में केंद्रीय बैंकों से आगे हैं, कोई भी समयपूर्व कदम अब तक प्राप्त की गई सफलता को कमजोर कर सकता है। उच्च संवृद्धि को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए मूल्य और वित्तीय स्थिरता आवश्यक है। वर्तमान समय में नीतिगत अनिवार्यता संवृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ आधार पर 4 प्रतिशत मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने पर केंद्रित रहना है। तदनुसार, मैं नीतिगत रेपो दर को अपरिवर्तित रखने और निभाव को वापस लेने पर ध्यान जारी रखने के लिए वोट करता हूं।

(श्वेता शर्मा) 
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/1916


1 बिजनेस इन्फ्लेशन एक्सपेक्टेशंस सर्वे (बीआईईएस), दिसंबर 2023। https://www.iima.ac.in/faculty-research/centers/Misra-Centre-for-Financial-Markets-and-Economy/BIESIndian Institute of Management, Ahmedabad.

2 ब्रुनेरमेयर, एम. 2024. 'माइक्रोफाइनेंस एंड रेजिलिएन्स.' 2024 अमेरिकन फाइनेंस एसोसिएशन में प्रेसीडेंसीयल भाषण। https://www.youtube.com/watch?v=z94l-G5gz4o&list=PL42MdOODnBSvD0p8ervyECxCSfKv2XCRy पर उपलब्ध

3 नीचे दिए गए कागजात में कठोर अनुमान दर्शाते हैं कि विनिमय दर की अस्थिरता ईएम ब्याज दर प्रसार को बढ़ाती है।
गोयल, ए. और बनर्जी, के. 2020. 'मोनेटरी स्पिलओवर एंड रियल एक्सचेंज रेट।' इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इमर्जिंग मार्केट्स, 17(2): 452-484, 2020। https://doi.org/10.1108/IJOEM-02-2020-0192.
गोयल, ए., वर्मा, ए., और सेनगुप्ता, आर. 2021. 'एक्स्टर्नल शोक्स, क्रॉस बार्डर फ्लोस एंड मैक्रोइकोनोमिक रिस्क्स इन इमरजिंग इकोनोमिज।' एम्पिरिकल इकोनॉमिक्स, 62, pp. 2111-2148। यहां उपलब्ध है: https://doi.org/10.1007/s00181-021-02099-z

4 सिम्स, सी. ए. (2004)। 'लिमिट्स टू इन्फ्लेशन टार्गेटिंग. दि इन्फ्लेशन-टार्गेटिंग डिबेट' (पृ. 283-310)। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेस।

5 मौजूदा सख्ती चक्र (मई 2022 - दिसंबर 2023) के दौरान रुपये के नए ऋण पर भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) 181 बीपीएस बढ़ गई। तथापि, नवंबर और दिसंबर के दौरान, रुपये के नए ऋण पर डब्ल्यूएएलआर में 18 बीपीएस की गिरावट आई।

6 मैंने अपने पिछले कार्यवृत्त में इस बिंदु पर विस्तार से बताया है।

7 अरी अनिल और लेव रत्नोवस्की (2023)। 'हिस्ट्रीज़ इन्फ्लेशन लेसंस'. फाइनेंस एंड डेवलपमेंट. दिसंबर'।

8 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व आर्थिक संभावना अपडेट, जनवरी 2024।


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