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प्रेस प्रकाशनी

तीसरा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2018-19 मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी), भारतीय रिज़र्व बैंक का संकल्प

1 अगस्त 2018

तीसरा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2018-19
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी), भारतीय रिज़र्व बैंक का संकल्प

मौद्रिक नीति समिति ने आज की अपनी बैठक में वर्तमान और उभरती समष्टिगत आर्थिक परिस्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया है कि –

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत नीतिगत रिपो दर को 25 आधार अंक बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत किया जाए।

परिणामस्‍वरूप, एलएएफ के तहत प्रतिवर्ती रेपो दर 6.25 प्रतिशत पर और सीमांत स्‍थायी सुविधा (एमएसएफ) दर तथा बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर समायोजित हो जाएगी।

एमपीसी का निर्णय मौद्रिक नीति के तटस्‍थ रुझान के अनुरूप है। इसका तारतम्‍य, वृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्‍फीति के 4 प्रतिशत के मध्‍यावधिक लक्ष्‍य को +2/-2 प्रतिशत के दायरे में रखने के उद्देश्‍य से भी है। इस निर्णय के समर्थन में प्रमुख विवेचनों का वर्णन नीचे दिए गए विवरण में किया गया है।

आकलन

2. जून 2018 में हुई एमपीसी की अंतिम बैठक से वैश्विक आर्थिक गतिविधि सक्रिय बनी हुई है, तथापि वैश्विक वृद्धि असमान हुई है तथा बढ़ते व्यापार तनावों के साथ संभावना के लिए जोखिम बढ़ गए हैं। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) के बीच अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने पहली तिमाही की नरम वृद्धि के बाद दूसरी तिमाही में मजबूती हासिल की है जिसका कारण बढ़ता व्यक्तिगत उपभोग व्यय तथा निर्यात है। यूरो क्षेत्र में राजनीतिक अनिश्चितता और मजबूत मुद्रा के कारण मंद उपभोक्ता मांग के कारण पहली तिमाही की कमजोरी वृद्धि दूसरी तिमाही में भी जारी रही। जापान में खुदरा बिक्री, उपभोक्ता विश्वास पर हाल के आंकड़े और कारोबारी भावना वृद्धि में नरमी की ओर संकेत करते हैं।

3. प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में आर्थिक गतिविधि अस्थिर और बढ़े हुए तेल मूल्यों, बढ़ते व्यापार तनावों और वित्तीय स्थिति के कठोर होने के कारण कुछ धीमी हो गई हैं। चीनी अर्थव्यवस्था ने ऋण को नियंत्रित रखने के लिए किए गए प्रयासों के कारण दूसरी तिमाही में कुछ गति खो दी। रूसी अर्थव्यवस्था ने पहली तिमाही में गति प्राप्त की, रोजगार, औद्योगिक उत्पादन और निर्यात पर हाल के आंकड़े संकेत करते हैं कि अर्थव्यवस्था ने और गति हासिल की है। दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्था पहली तिमाही में संकुचित हुई, हालांकि उपभोक्ता भावना में सुधार हुआ, उच्च बेरोजगारी तथा कमजोर निर्यात की चुनौती है। ब्राजील में आर्थिक गतिविधि को राष्ट्रव्यापी हड़ताल के कारण पहली तिमाही में धक्का लगा, हाल ही के आंकड़े दर्शाते हैं कि वृद्धि मंदी रही क्योंकि औद्योगिक उत्पादन मई में कम हो गया और विनिर्माण खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) घट गया।

4. व्यापार जंग के बढ़ने और ब्रेग्जिट समझौता वार्ता से उत्पन्न हुई अनिश्चितता के कारण वैश्विक व्यापार में कुछ पकड़ कम हो गई। कच्चे तेल की कीमतें, जो नाजुक मांग-आपूर्ति संतुलन के कारण मई-जून में अस्थिर और बढ़ी हुई थी, पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) तथा गैर-ओपेक उत्पादकों से उच्चतर आपूर्ति पर जुलाई के दूसरे पखवाड़े में थोड़ी सहज हुई। मूल धातुओं की कीमतें व्यापार जंग के बढ़ने के डर से बढ़ी हुई सामान्य रिस्क-ऑफ भावना के कारण घट गईं। स्वर्ण की कीमतें मजबूत डॉलर के कारण नरम हो गई हैं। अमेरिका में मुद्रास्फीति मजबूत रही, जो तेल की उच्चतर कीमतों और मजबूत समग्र मांग को प्रतिबिंबित कर रही है। मुद्रास्फीति कुछ अन्य प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में थोड़ी बढ़ गई है, ऐसा आंशिक रूप से ऊर्जा की बढ़ती कीमतों और मुद्रा के मूल्यह्रास के पास-थ्रू प्रभावों के कारण हुआ।

5. वित्तीय बाजार मुख्य रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति रुख और भौगोलिक-राजनीतिक तनावों द्वारा प्रभावित हैं। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में इक्विटी बाजारों में व्यापार तनाव और ब्रेग्जिट समझौता वार्ता से संबंधित अनिश्चितता के कारण गिरावट आ गई। यूएस फेडरल द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि करने पर ईएमई आस्तियों के लिए निवेशकों की भूख घट गई। अमेरिका में 10 वर्षीय सॉवरेन प्रतिफल सुरक्षित आश्रय स्थल मांग के चलते 17 मई को इसके शीर्ष से कुछ नीचे आ गया, ऐसा बढ़ते व्यापार द्वन्द्वों के कारण हुआ। अन्य महत्वपूर्ण उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में भी प्रतिफल नरम हो गए। तथापि, अधिकांश उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में प्रतिफलों में गतिविधियां अलग-अलग रही, जो घरेलू समष्टि-आर्थिक मूल तत्वों और कठोर वैश्विक चलनिधि को प्रतिलक्षित करते हैं। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति के कड़े होने की प्रत्याशा में उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी प्रवाहों में गिरावट आई। मुद्रा बाजारों में, अमेरिकी डॉलर बढ़ गया, जिसे मजबूत आर्थिक आंकड़ों से मदद मिली। कम होती राजनीतिक अनिश्चितता तथा केंद्रीय बैंक द्वारा टेपर बातचीत के कारण यूरो में जून में मजबूती आई। तथापि, मिश्रित आर्थिक आंकड़ों और बढ़ते अमेरिकी डॉलर के कारण बाद में मुद्रा ने नरमी पर कारोबार किया। सामान्य तौर पर, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रा में पिछले महीने में अमेरिकी डॉलर की तुलना में मूल्यह्रास हुआ।

6. घरेलू मोर्चे पर, दक्षिण-पश्चिम मानसून में जून के दूसरे पखवाड़े में कमी के लघु समय के बाद सुधार हो रहा है। 31 जुलाई 2018 तक संचित वर्षा दीर्घावधि औसत से 6 प्रतिशत कम रहा। स्थानीय वितरण के मामले में, 36 उप-मंडलों में से 28 में सामान्य या अधिक वर्षा हुई जबकि पिछले वर्ष के तीन उप-मंडलों की तुलना में 8 उप-मंडलों में कम वर्षा हुई। 27 जुलाई को खरीफ फसल का कुल बुआई क्षेत्र एक वर्ष पहले के क्षेत्र से 7.5 प्रतिशत कम रहा। 26 जुलाई को प्रमुख जलाशयों में मौजूदा संग्रहण पूर्ण जलाशय स्तर का 41 प्रतिशत रहा दो एक वर्ष पूर्व 36 प्रतिशत था जो रबी के बुआई मौसम के लिए अच्छा संकेत है।

7. औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक (आईआईपी) द्वारा मापित औद्योगिक वृद्धि वर्ष-दर-वर्ष आधार पर अप्रैल-मई 2018 में मजबूत हो गया। ऐसा मुख्य रूप से पूंजीगत वस्तुओं और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार के कारण हुआ। इंफ्रास्ट्रक्चर/निर्माण क्षेत्र में वृद्धि में तेजी से बढ़ोतरी हुई, जो राष्ट्रीय राजमार्गों और ग्रामीण आवास पर सरकार के जोर को दर्शाती है, जबकि उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुओं की वृद्धि में काफी गिरावट आई। आठ मुख्य उद्योगों का आउटपुट पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पादों, इस्पात, कोयला और सीमेंट में उच्चतर उत्पादन के कारण जून में बढ़ गया। विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग मजबूत रहा। उत्पादन, आदेश बहियों और निर्यात में कुछ नरमी के बावजूद वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही के लिए रिज़र्व बैंक के कारोबार प्रत्याशा सूचकांक (बीईआई) पर आधारित आकलन आशावादी रहा। जुलाई विनिर्माण पीएमआई विस्तारकारी जोन में रहा, हालांकि आउटपुट, नए आदेशों और रोजगार में धीमी वृद्धि के साथ एक महीने पहले के अपने स्तर से सहज हो गया।

8. सेवा गतिविधि के अनेक उच्च बारंबारता सूचक मई-जून में तेज गति से बढ़े। ट्रैक्टर और दुपहिया वाहनों की बिक्री वृद्धि में काफी तेजी आई, जो मजबूत ग्रामीण मांग को दर्शाती है। यात्री वाहन बिक्री वृद्धि जो शहरी मांग का सूचक है, भी सुदृढ़ रही। वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री वृद्धि भी कुछ मंदी के बावजूद मजबूत बनी रही। घरेलू हवाई ट्रैफिक-शहरी मांग का दूसरा सूचक दुहरी संख्या वृद्धि में बना रहा। जून में लगातार आठवें माह के लिए दुहरी संख्या में वृद्धि के बनाए रखते हुए सीमेंट उत्पादन के साथ निर्माण गतिविधि सूचकों में भी सुधार हुआ। मई में इस्पात उत्पादन में भी तेजी आई। सेवा पीएमआई मई में थोड़ी कमी के बाद जून में 12 माह के उच्च स्तर पर पहुंच गया, जिसमें नए कारोबार और रोजगार में विस्तार से सहायता मिली।

9. वर्ष-दर-वर्ष आधार पर सीपीआई में बदलाव द्वारा मापित खुदरा मुद्रास्फीति मई के 4.9 प्रतिशत से बढ़कर जून में 5 प्रतिशत हो गई, ऐसा ईंधन और खाद्य तथा ईंधन के अतिरिक्त अन्य मदों में बढ़ोतरी द्वारा हुआ, हालांकि ग्रीष्मकालीन महीनों में फलों और सब्जियों की कीमतों में साधारण वृद्धि की तुलना में कम वृद्धि के कारण खाद्य मुद्रास्फीति मंदी रही। सातवें केंद्रीय वेतन आयोग के आवास किराया भत्तों (एचआरए) के अनुमानित प्रभाव को समायोजित करते हुए, हेडलाइन मुद्रास्फीति मई के 4.5 प्रतिशत से बढ़कर जून में 4.6 प्रतिशत हो गई। अनाज, माँस, दूध, तेल, मसालों और गैर-अल्कॉहोलिक पेय पदार्थों में कम मुद्रास्फीति जारी रही तथा दलहन और चीनी के कीमतें अवस्फीति में रही।

10. ईंधन और रोशनी समूह की मुद्रास्फीति में तेजी से वृद्धि हुई, जिसे तरल पेट्रोलियम गैस और केरोसिन द्वारा बढ़ाया गया। जलाने वाली लकड़ी तथा चिप्स में मुद्रास्फीति बढ़ गई, जबकि विद्युत मुद्रास्फीति कम रही। वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों के पास-थ्रू ने घरेलू पेट्रोलियन उत्पादों तथा परिवहन सेवाओं में मुद्रास्फीति पर प्रभाव डाला। शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में भी मुद्रास्फीति में थोड़ी बढ़ोतरी हुई।

11. रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए परिवारों के सर्वेक्षण के जून दौर में पिछले दौर की तुलना में तीन महीने आगे की और एक वर्ष आगे की मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं में 20 आधार अंकों की रिपोर्ट की गई है। रिज़र्व बैंक के औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण (आईओएस) में मत देने वाली विनिर्माण फर्मों ने वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में उच्चतर इनपुट लागत और बिक्री मूल्यों की रिपोर्ट की है। विनिर्माण पीएमआई ने दर्शाया है कि जुलाई में इनपुट कीमतें थोड़ी कम हुई, हालांकि फिर भी ये उच्च बनी हुई हैं। जून में सेवा पीएमआई के लिए मत देने वाली कंपनियों के लिए इनपुट लागतें भी उच्च रही। कृषि और गैर-कृषि इनपुट लागतें काफी बढ़ी। फरवरी और मार्च 2018 में कुछ बढ़ोतरी के बावजूद, ग्रामीण मजदूरी वृद्धि सामान्य रही जबकि संगठित क्षेत्र में मजदूरी वृद्धि मजबूत रही।

12. जून-जुलाई 2018 के दौरान प्रणालीगत चलनिधि सामान्य रूप से अधिशेष में रही। जून में, रिज़र्व बैंक ने एलएएफ के अंतर्गत दैनिक निवल औसत आधार पर लगभग ₹ 140 बिलियन की अधिशेष चलनिधि अवशोषित की, हालांकि प्रणाली अग्रिम कर बहिर्वाह के कारण माह के दुसरे पखवाड़े में निवल अधिशेष से निवल घाटे के मोड में बदल गई। जून में ओवरनाइट कॉल मुद्रा बाजार में ब्याज दरें बढ़ गई जो 6 जून 2018 को रेपो दर में हुई बढ़ोतरी को प्रतिबिंबित करती हैं। भारित औसत कॉल दर (डब्ल्यूएसीआर) का औसतन आधार पर रेपो दर से 12 आधार अंक कम पर कारोबार किया गया जैसाकि मई में हुआ था। सरकार के बढ़े हुए खर्च के साथ जुलाई की शुरुआत में प्रणालीगत चलनिधि अधिशेष मोड में चली गई किंतु 10 जुलाई के बाद घाटे में बदल गई, दैनिक निवल औसत आधार पर रिज़र्व बैंक ने जुलाई में एलएएफ के अंतर्गत ₹ 107 बिलियन की चलनिधि उपलब्ध कराई। जुलाई में औसतन आधार पर डब्ल्यूएसीआर का कारोबार नीति दर से 9 आधार अंक कम पर हुआ। व्याप्त चलनिधि स्थिति और इसके आगे टिकाऊ चलनिधि आवश्यकताओं के आकलन के आधार पर, रिज़र्व बैंक ने 21 जून और 19 जुलाई 2018 को प्रत्येक बार ₹ 100 बिलियन की दो खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) खरीद नीलामी आयोजित की।

13. वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मई और जून 2018 में निर्यात वृद्धि में तेजी आई, जिसमें इंजीनियरिंग वस्तुओं, पेट्रोलियम उत्पादों, औषधी और फार्मास्यूटिकल्स तथा रसायनों द्वारा सहायता मिली। मुख्य रूप से कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के चलते आयात वृद्धि में भी तेजी आई। गैर-तेल आयात में, कम मात्रा के कारण स्वर्ण आयात में गिरावट आई, जबकि मशीनरी, कोयला, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं, रसायनों और लोहा तथा इस्पात का आयात तेजी से बढ़ गया। मई और जून में दुहरी संख्या में आयात वृद्धि ने व्यापार घाटे को बढ़ा दिया। वित्तीय पक्ष पर, वर्ष 2018-19 के पहले दो महीनों में निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह में काफी सुधार हुआ। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में चलनिधि स्थिति के कड़े होने के साथ बढ़ती भौगोलिक-राजनीतिक चिंताएं और संरक्षणवादी भावना के बढ़ने के साथ, घरेलू पूंजी बाजार से निवल विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) बहिर्वाह जारी रहा, हालांकि यह काफी धीमी दर पर रहा। 27 जुलाई 2018 को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 404.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

संभावना

14. 2018-19 के दूसरे द्वि-मासिक संकल्प में, 2018-19 हेतु केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए एचआरए प्रभाव सहित, जिससे जोखिम ऊपर की ओर झुक गया, एच1 में 4.8-4.9 प्रतिशत और एच2 में 4.7 प्रतिशत सीपीआई मुद्रास्फीति की परिकल्पना की गई थी। एचआरए संशोधन के प्रभाव को छोड़कर, एच1 में 4.6 प्रतिशत और एच2 में 4.7 प्रतिशत सीपीआई मुद्रास्फीति की परिकल्पना की गई थी। वास्तविक मुद्रास्फीति के परिणाम अनुमानित प्रक्षेपवक्र से थोड़ा नीचे हैं क्योंकि पिछली बार की तुलना में इस बार मौसमी गर्मी के समय भी सब्जी की कीमतें कुछ हद तक पहले की तरह ही रही हैं तथा फलों की कीमतें घट गई हैं।

15. मुद्रास्फीति आउटलुक को कई कारकों से सही आकार देने की संभावना है। सबसे पहले, केंद्र सरकार ने 2018-19 के बुवाई के मौसम के लिए खरीफ फसलों के उत्पादन की लागत के कम से कम 150 प्रतिशत की न्यूनतम समर्थन कीमतों (एमएसपी) को तय करने का निर्णय लिया है। इससे खरीफ की फसलों के लिए एमएसपी में वृद्धि होगी, जो पिछले कुछ वर्षों में देखी गई औसत वृद्धि से काफी अधिक है तथा इससे खाद्य मुद्रास्फीति पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा एवं दूसरे चरण में हेडलाइन मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ेगा। ऐतिहासिक रुझानों के आधार पर एमएसपी में वृद्धि का एक हिस्सा जून बेसलाइन अनुमानों में पहले से ही शामिल किया गया था। इस प्रकार, अतीत में औसत वृद्धि के ऊपर एमएसपी में वृद्धिशील वृद्धि ही केवल मुद्रास्फीति अनुमानों को प्रभावित करेगी। हालांकि, एक बड़ी अनिश्चितता है और सटीक प्रभाव सरकार के खरीद संचालन की प्रकृति और पैमाने पर निर्भर करेगा। दूसरी ओर, मानसून का समग्र प्रदर्शन अब तक मध्यम अवधि में खाद्य मुद्रास्फीति के लिए अच्छा रहा है। तीसरा, कच्चे तेल की कीमतें थोड़ी कम हो गई हैं, लेकिन ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं। चौथा, केंद्र सरकार ने कई वस्तुओं और सेवाओं पर वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) दरों को कम कर दिया है। इसका प्रभाव मुद्रास्फीति पर घटते क्रम में होगा, बशर्ते खुदरा उपभोक्ताओं को कम जीएसटी दरों का पास-थ्रू दिया जाए। पांचवां, खाद्य और ईंधन को छोड़कर वस्तुओं में मुद्रास्फीति व्यापक रूप से आधारित है और हाल के महीनों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है, जो बढ़ती इनपुट लागतों और मांग की स्थिति में सुधार के माध्यम से अधिक पास-थ्रू को दर्शाती है। अंत में, वित्तीय बाजार अभी भी अस्थिर बना हुआ है। उपर्युक्त कारकों के मूल्यांकन के आधार पर, मुद्रास्फीति, Q2 में 4.6 प्रतिशत, 2018-19 के एच2 में 4.8 प्रतिशत और क्यू1:2019-20 में 5.0 प्रतिशत, जोखिमों को समान रूप से संतुलित (चार्ट 1) के साथ, का अनुमान लगाया गया है। एचआरए प्रभाव को छोड़कर, सीपीआई मुद्रास्फीति, क्यू2 में 4.4 प्रतिशत, एच2 में 4.7-4.8 प्रतिशत और क्यू1:2019-20 में 5.0 प्रतिशत, का अनुमान लगाया गया है।

16. विकास दृष्टिकोण की ओर मुड़ते हुए, विभिन्न संकेतक बताते हैं कि आर्थिक गतिविधि मजबूत हो रही है। खरीफ फसलों के एमएसपी में सामान्य वृद्धि की तुलना में अधिक वृद्धि एवं अब तक मानसून की प्रगति से किसानों की आय में बढ़ोतरी एवं ग्रामीण मांग को बढ़ावा देने की उम्मीद है। दुरुस्त कॉर्पोरेट आय, विशेष रूप से तेजी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) कंपनियों के, भी सकारात्मक ग्रामीण मांग को दर्शाती है। वर्तमान अवधि में वित्त पोषण की स्थिति कुछ कठिन होने के बावजूद, निवेश गतिविधि दृढ़ बनी हुई है। हाल के महीनों में बढ़ी हुई एफडीआई प्रवाह और लगातार उत्साही घरेलू पूंजी बाजार की स्थिति से निवेश गतिविधि के लिए अच्छे संकेत हैं। रिजर्व बैंक का आईओएस इंगित करता है कि क्यू2 में विनिर्माण क्षेत्र में गतिविधि मजबूत रहने की उम्मीद है, हालांकि गति में कुछ कमी आ सकती है। हालांकि, बढ़ते व्यापार तनाव भारत के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। कुल मूल्यांकन के आधार पर, 2018-19 के लिए सकल घरेलू उत्पाद का वृद्धि अनुमान, जून के वक्तव्य के अनुसार 7.4 प्रतिशत पर, एच1 में 7.5-7.6 प्रतिशत और एच2 में 7.3-7.4 प्रतिशत के साथ, जोखिम समान रूप से संतुलित; क्यू1:2019-20 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि: अनुमानित 7.5 प्रतिशत (चार्ट 2) पर अनुमानित है, को बनाए रखा गया है।


17. यद्यपि तिमाही 2 के लिए मुद्रास्फीति अनुमानों में जून वक्तव्य के मुकाबले में मामूली रूप से कम सुधार हुआ है, आगे तिमाही 3 के लिए अनुमान व्यापक रूप से अपरिवर्तित रहे हैं। कई जोखिम बने हुए है, पहला, कच्चे तेल की कीमतों में उतारचढ़ाव जारी है और यह ऊपरी और नीचे दोनों जोखिमों के लिए संवेदनशील है। विशेष रूप से, जबकि भूराजनीतिक तनाव और आपूर्ति व्यवधान तेल की कीमतों के लिए एक बड़ा जोखिम बना हुआ है, संरक्षणवादी व्यापार नीतियों की अधिक तीव्रता के कारण वैश्विक मांग में गिरावट से तेल की कीमतें कम हो सकती हैं। दूसरा, वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता मुद्रास्फीति दृष्टिकोण को अनिश्चितता प्रदान करती रही है। तीसरा, रिजर्व बैंक के सर्वेक्षण में मापी गयी, परिवार मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं, पिछले दो दौरों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है, जो आने वाले महीनों में वास्तविक मुद्रास्फीति के परिणामों को प्रभावित कर सकती है। चौथा, रिज़र्व बैंक के औद्योगिक आउटलुक सर्वेक्षण में शामिल विनिर्माण फर्मों ने 2018-19 की दूसरी तिमाही में इनपुट मूल्य दबावों के सख्त होने की सूचना दी है। तथापि, यदि वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में हालिया नरमी बनी रहती है, तो यह इनपुट लागतों के ऊपर के कुछ दबाव को कम कर सकती है। पांचवा, हालांकि मानसून अस्थायी रूप से अब तक सामान्य रहा है, लेकिन महत्वपूर्ण सीपीआई घटकों जैसे धान के संदर्भ में इसके क्षेत्रीय वितरण की सावधानीपूर्वक निगरानी की जानी चाहिए। छठां, यदि केंद्र और / या राज्य स्तर पर राजकोषीय गिरावट है,तो वह बाजार में अस्थिरता, निजी निवेश में कमी और मुद्रास्फीति दृष्टिकोण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। सातवां, मुद्रास्फीति पर एमएसपी के पूर्ण प्रभाव के आसपास अनिश्चितता केवल मूल्य समर्थन योजना लागू होने के बाद अगले कई महीनों में ही हल हो जाएगी। अंत में, राज्य सरकारों द्वारा एचआरए संशोधन के लड़खड़ाने वाले प्रभाव से हेडलाईन मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। जब एचआरए संशोधन के सांख्यिकीय प्रभाव को देखा जाएगा, मुद्रास्फीति पर किसी दूसरे दौर के प्रभाव देखे जाने की आवश्यकता है।

18. उपर्युक्त पृष्ठभूमि के देखते हुए, एमपीसी ने पॉलिसी रेपो दर को 25 आधार अंकों तक बढ़ाने निर्णय किया। एमपीसी एक टिकाऊ आधार पर 4 प्रतिशत की मुद्रास्फीति के लिए मध्यम अवधि के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराता है।

19. एमपीसी ने नोट किया कि घरेलू आर्थिक गतिविधि ने गति को बनाए रखा है और उत्पादन अंतराल लगभग बंद हो गया है। तथापि, आगामी महीनों में घरेलू मुद्रास्फीति के आसपास अनिश्चितता की सावधानी से निगरानी की जानी चाहिए। इसके अलावा, हाल की वैश्विक गतिविधितां कुछ चिंताएं उत्पन्न करती हैं। बढ़ते व्यापार संरक्षणवाद ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा डालने और उत्पादकता को रोकने और निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डालकर निकट अवधि और दीर्घकालिक वैश्विक विकास संभावनाओं के लिए गंभीर खतरा पैदा किया है। भूराजनीतिक तनाव और बढ़ी हुई तेल की कीमतें वैश्विक विकास के जोखिम के अन्य स्रोत हैं।

20. डॉ चेतन घाटे, डॉ. पामी दुआ, डॉ माइकल देबब्रत पात्रा, डॉ विरल वी. आचार्य और डॉ. उर्जित आर. पटेल ने निर्णय के पक्ष में मतदान किया; डॉ रविंद्र एच. ढोलकिया ने निर्णय के खिलाफ मतदान किया। एमपीसी की बैठक के कार्यवृत्‍त 16 अगस्त 2018 तक प्रकाशित किए जाएंगे।

21. एमपीसी की अगली बैठक 3 से 5 अक्टूबर 2018 तक आयोजित की जाएगी।

जोस जे. कट्टूर
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2018-2019/278


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