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अधिसूचनाएं

अग्रिमों पर ब्याज दरें

आरबीआई/2014-2015/414
बैंविवि/डीआईआर/बीसी.सं.63/13.03.00/2014-15

19 जनवरी 2015

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय / महोदया

अग्रिमों पर ब्याज दरें

कृपया 'आधार दर पर दिशानिर्देश' पर जारी 9 अप्रैल 2010 का हमारा परिपत्र बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी 88/13.03.00/2009-10 तथा 'आधार दर पर संशोधित दिशानिर्देश' पर जारी 2 सितंबर 2013 का परिपत्र बैंपविवि.सं./डीआईआर.बीसी47/13.03.00/2013-14 देखेँ ।

2. 'ऋणों के मूल्य निर्धारण' पर गठित कार्यदल (अध्यक्ष: श्री आनंद सिन्हा) की सिफारिशों के आधार पर बैंकों को अब यह सूचित किया जाता है कि वे अनुबंध में दिए गए अनुसार 'अग्रिमों पर ब्याज दरों' से संबंधित अतिरिक्त दिशानिर्देशों का पालन करें ।

3. यह दिशानिर्देश इस परिपत्र की तारीख से एक माह के बाद प्रभावी होंगे ।

भवदीया

(लिली वडेरा)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध

आधार दर की गणना

आधार दर की गणना करते समय, बैंकों को यह स्वतंत्रता होगी कि वे निधि की लागत की गणना औसत निधि लागत या सीमान्त निधि लागत या अन्य किसी प्रचलित पद्धति से कर सकते हैं, जो तर्कसंगत और पारदर्शी होने के साथ-साथ सुसंगत हो तथा जब कभी आवश्यक हो उसे पर्यवेक्षी समीक्षा / जांच के लिए प्रस्तुत किया जा सके । यहां स्पष्ट किया जाता है कि एक या भिन्न अवधि की जमाराशि के लिए जहां कार्ड दर आधार हो, चयनित अवधि की जमाराशियां बैंक की जमाराशि आधार का सबसे बड़ा हिस्सा होनी चाहिए ।

आधार दर की समीक्षा

अब तक की तरह, बैंकों को अपनी प्रथा के अनुसार अपने निदेशक मंडल या आस्ति देयता प्रबंधन समिति (एएलसीओ) के अनुमोदन से तिमाही में कम से कम एक बार आधार दर की समीक्षा करना आवश्यक है ।

आधार दर समीक्षा की कार्य पद्धति

(i) बैंकों को अधिक परिचालनात्मक सहजता प्रदान करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है कि उन्हें आधार दर कार्यपद्धति की समीक्षा करने के लिए मौजूदा 5 वर्ष की अवधि के स्थान पर कार्यपद्धति को अंतिम रूप दिए जाने की तारीख से तीन वर्ष के बाद उसकी समीक्षा करने की अनुमति दी जाए । तदनुसार, बैंक निदेशक मंडल / एएलसीओ की अनुमति से निर्धारित समय की समाप्ति पर अपनी आधार दर कार्यपद्धति में परिवर्तन कर सकते है ।

(ii) तथापि, बैंकों को समीक्षा चक्र के दौरान अपनी कार्यपद्धति में परिवर्तन करने की अनुमति नहीं होगी ।

कीमत-लागत अंतर (स्प्रेड)

(i) बैंकों की अपने निदेशक मंडल से अनुमोदित एक नीति होनी चाहिए जिसमें ग्राहकों पर लगाए जानेवाले स्प्रेड प्रभार के घटकों का स्पष्ट उल्लेख हो। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कीमतों में किसी भी तरह का भेदभाव बैंक की ऋण निर्धारण नीति के साथ सुसंगत हो ।

(ii) बैंक की आंतरिक मूल्य निर्धारण नीति में एक ही श्रेणी के उधारकर्ता के मामलें में स्प्रेड के औचित्य और विस्तार सीमा के साथ ही ऋण मूल्य निर्धारण के लिए शक्तियों के प्रत्यायोजन का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए । नीति का औचित्य पर्यवेक्षी समीक्षा के लिए उपलब्ध होना चाहिए ।

(iii) मौजूदा उधारकर्ता पर लगाए गए स्प्रेड को ग्राहक के ऋण जोखिम प्रोफाइल के बिगडने या प्रीमियम अवधि में परिवर्तन होने की स्थितियों के अलावा बढ़ाया नहीं जाना चाहिए। ऋण जोखिम प्रोफाइल में बदलाव के कारण स्प्रेड में परिवर्तन का निर्णय ग्राहक के संपूर्ण जोखिम प्रोफाइल की समीक्षा से समर्थित होना चाहिए। प्रीमियम अवधि में परिवर्तन विशिष्ट उधारकर्ता या ऋण श्रेणी पर आधारित नहीं होना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो प्रीमियम अवधि में परिवर्तन सभी प्रकार के ऋणों की शेष अवधि के लिए एक समान होगा।

(iv) तथापि, उपर्युक्त उप पैरा (iii) में निहित दिशानिर्देश संघीय / बहु बैंकिंग व्यवस्था के तहत दिए जानेवाले ऋणों पर लागू नहीं हैं।


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