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अधिसूचनाएं

बैंकों और वित्‍तीय संस्‍थाओं द्वारा पुनर्रचित अग्रिमों के संबंध में प्रकटीकरण अपेक्षाएं

आरबीआई/2012-13/409
बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 80/21.04.132/2012-13

31 जनवरी 2013

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

बैंकों और वित्‍तीय संस्‍थाओं द्वारा पुनर्रचित अग्रिमों
के संबंध में प्रकटीकरण अपेक्षाएं

कृपया ‘अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड’ पर दिनांक 2 जुलाई 2012 के मास्‍टर परिपत्र का पैराग्राफ 16 देखें जिसके अनुसार बैंकों को अपने प्रकाशित वार्षिक तुलनपत्र में, 'खातों के संबंध में टिप्‍पणियां' के अंतर्गत, पुनर्रचित अग्रिमों की संख्‍या और उनकी रकम तथा पुनर्रचित अग्रिमों के उचित मूल्‍य में आई कमी की रकम से संबंधित सूचना निम्‍नलिखित श्रेणियों के अंतर्गत प्रकट करनी चाहिएः

  1. पुनर्रचित मानक अग्रिम
  2. पुनर्रचित अवमानक अग्रिम; तथा
  3. पुनर्रचित संदिग्‍ध अग्रिम

उपर्युक्‍त प्रत्‍येक श्रेणी के अंतर्गत, सीडीआर प्रणाली, एसएमई ऋण पुनर्रचना प्रणाली और अन्‍य पुनर्रचना श्रेणियों के अंतर्गत पुनर्रचित अग्रिमों को अलग से दर्शाया जाना अपेक्षित है।

2. अग्रिमों की पुनर्रचना पर मौजूदा विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित कार्यदल (डब्‍ल्‍यूजी) (अध्यक्षः श्री बि. महापात्रा) ने अनुशंसा की थी कि यदि एक बार पुनर्रचित अग्रिमों (जिन्‍हें शुरुआत ही से अथवा अनर्जक परिसंपत्तियों की श्रेणी से उच्‍च श्रेणी में उन्‍नयन के कारण मानक अग्रिम के रूप में वर्गीकृत किया गया है) पर उच्‍चतर प्रावधान एवं जोखिम भार (यदि लागू हो) निर्धारित अवधि के दौरान संतोषजनक प्रदर्शन के कारण वापस सामान्य स्तर पर आ जाते हैं, तो ऐसे अग्रिमों के संबंध में बैंकों से अब यह अपेक्षित नहीं रह जाएगा कि वे उन्हें अपने वार्षिक तुलन-पत्र में "खातों के संबंध में टिप्‍पणियां" में पुनर्रचित खातों के रूप में प्रकट करें। तथापि, मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार बैंकों द्वारा ऐसे पुनर्रचित खातों के उचित मूल्‍य में आयी कमी के लिए प्रावधान करना जारी रखा जाना चाहिए। कार्यदल ने यह भी संस्‍तुत किया है कि बैंकों से निम्‍नलिखित प्रकटीकरण की अपेक्षा की जाए:

  1. ऐसे मानक पुनर्रचित खातों को छोड़कर, जिन पर (यदि लागू हो) उच्‍चतर प्रावधान और जोखिम भार लागू होना समाप्‍त हो जाता है, संचयी आधार पर पुनर्रचित खातों के ब्‍योरे,

  2. विभिन्‍न श्रेणियों के अंतर्गत पुनर्रचित खातों पर किए गए प्रावधान, और

  3. पुनर्रचित खातों की घट-बढ़ के ब्‍योरे।

3. इस अनुशंसा को इस तथ्‍य के मद्देनजर स्‍वीकार किया गया है कि मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार बैंकों से यह अपेक्षित है कि वे अपनी बहियों में वार्षिक आधार पर सभी पुनर्रचित खातों का संचयी आधार पर प्रकटीकरण करें; हालांकि उनमें से कई खाते ऐसे होंगे जिन्‍होंने बाद में काफी लंबी अवधि तक संतोषजनक प्रदर्शन किया होगा। ऐसे में प्रकटीकरणों की वर्तमान स्थिति इस तथ्‍य को ध्‍यान में नहीं रखती कि इनमें से कई खातों में अंतर्निहित कमजोरियां लुप्‍त हो गई हैं तथा खाते वास्‍तव में सभी प्रकार से मानक हैं, लेकिन उन्‍हें तब भी पुनर्रचित अग्रिमों के रूप में प्रकट किया जाना जारी रहता है।

4. तदनुसार, बैंक आगे से अपने वार्षिक तुलन पत्र में ‘खातों के संबंध में टिप्‍पणियां’ के अंतर्गत, पुनर्रचित अग्रिमों की संख्‍या और राशि के बारे में, तथा पुनर्रचित अग्रिमों के उचित मूल्य में आई कमी की राशि के बारे में अनुबंध में दिए गए फार्मेट के अनुसार सूचित करें। प्रकटीकरण के संबंध में विस्‍तृत अनुदेश भी अनुबंध में दिये गये हैं।

5. उपर्युक्‍त प्रकटीकरण अपेक्षाएं वित्‍तीय वर्ष 2012-13 से प्रभावी होंगी।

भवदीय

(दीपक सिंघल)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्‍नकः यथोक्‍त


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