आरबीआइ/2010-11/505
ग्राआऋवि.केंका. आयो.बीसी. सं.66 /04.09.01/2010-11
03 मई 2011
अध्यक्ष/प्रबंध निदेशक
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
(सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक)
महोदय/महोदया माइक्रो फाइनांस संस्थाओं (एम एफ आई) को बैंक ऋण – प्राथमिकता क्षेत्र का दर्जा
हम वर्ष 2011-12 के वार्षिक नीति वक्तव्य के पैराग्राफ 92-93 की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करते हैं ।
2. माइक्रो फाइनांस सेक्टर को रिज़र्व बैंक द् वारा एक नए वर्ग के रूप में विनियमित करने का निर्णय लिया गया है । इस संबंध में हम सूचित करते हैं कि आगे व्यक्तियों को या स्व-सहायता समूहों/संयुक्त देयता समूहों को उधार दिए जाने हेतु सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं को 01 अप्रैल 2011 को या उसके बाद दिया गया बैंक ऋण, संबंधित श्रेणियों अर्थात् कृषि, सूक्ष्म एवं लघु उद्यम, सूक्ष्म ऋण (अन्य प्रयोजनों के लिए) श्रेणियों में परोक्ष वित्त पोषण के रूप में प्राथमिकता क्षेत्र अग्रिम के रूप में वर्गीकृत किए जाने का पात्र होगा । परंतु शर्त यह है कि उक्त माइक्रो फाइनांस संस्था की कुल आस्तियों (नकदी, बैंकों/वित्तीय संस्थाओं के पास शेष राशियों, सरकारी प्रतिभूतियों और मुद्रा बाजार के लिखतों से भिन्न) में अर्हक स्वरूप की आस्तियॉं 85 प्रतिशत से कम नहीं हों । इसके अतिरिक्त आय सृजन के कार्यकलापों के लिए प्रदान की गई ऋण राशि, माइक्रो फाइनांस संस्था द् वारा दिए गए कुल ऋण के 75 प्रतिशत से कम नहीं हो।
3.माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा वितरित वह ऋण "अर्हक आस्ति " होगा, जो निम्नलिखित मानदण्डों को पूरा करता हो:
(i) ऋण किसी ऐसे उधारकर्ता को दिया गया हो, जिसकी ग्रामीण क्षेत्र में पारिवारिक वार्षिक आय 60,000/- रुपए से अधिक नहीं हो। गैर ग्रामीण क्षेत्र में वार्षिक आय 1,20,000/- रुपए से अधिक नहीं होनी चहिए।
(ii) पहले दौर में ऋण 35,000/- रूपए से अधिक न हो और अगले दौर में 50,000/- से अधिक नहीं हो।
(iii) उधारकर्ता की कुल ऋण ग्रस्तता 50,000/- रूपए से अधिक न हो।
(iv) यदि ऋण राशि 15000/- रुपए से अधिक हो तो उधार लेने वाले को बिना दण्ड के पूर्व भुगतान करने के अधिकार के साथ, ऋण की अवधि 24 महीने से कम नहीं होनी चाहिए।
(v) ऋण बिना कोलेटरल (संपार्श्विक जमानत) का होना चाहिए ।
(vi) उधारकर्ता की इच्छानुसार ऋण साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक किश्तों में चुकाया जा सकता हो।
4. साथ ही, इन ऋणों को प्राथमिकता क्षेत्र ऋणों के रूप में वर्गीकृत किए जाने हेतु पात्र होने के लिए बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि एमएफआई, मार्जिन और ब्याज दर पर निम्नलिखित उच्चतम सीमा (कैप) और 'मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों' का अनुपालन करें।
(i) सभी एमएफआई के लिए मार्जि़न की अधिकतम सीमा (माजि़न कैप) 12 प्रतिशत होगी। ब्याज लागत की गणना बकाया उधार राशियों के औसतन पाक्षिक शेष के आधार पर तथा ब्याज की आय की गणना अर्हक आस्तियों के बकाया ऋण संविभाग के औसत पाक्षिक शेष के आधार पर की जाएगी।
(ii) ब्याज की अधिकतम सीमा की गणना सभी एमएफआई के लिए अलग-अलग ऋणों पर 26% वार्षिक की दर से घटे हुए शेष के आधार पर की जाएगी।
(iii) ऋणों के मूल्य निर्धारण में केवल तीन घटक शामिल किए जाने हैं यथा (क) संसाधन शुल्क जो सकल ऋण राशि के 1% से अधिक न हो, (ख) ब्याज प्रभार (इंटेरेस्ट चार्ज) और (ग) बीमा प्रीमियम।
(iv) संसाधन (प्रोसेसिंग) शुल्क को मार्जिन कैप में या ब्याज की अधिकतम सीमा 26% में शामिल नहीं करना है।
(v) केवल बीमा की वास्तविक लागत अर्थात् उधारकर्ता तथा पति/पत्नी के लिए जीवन, स्वास्थ्य और पशुधन के सामूहिक बीमा की वास्तविक लागत वसूली जा सकती है, प्रशासनिक प्रभार आईआरडीए के दिशा-निर्देशों के अनुसार वसूल किए जाएं।
(vi) विलंबित भुगतान हेतु कोई दंड न हो।
(vii) किसी प्रकार की जमानत जमाराशि/मार्जिन न लिया जाए।
5. बैंकों को चाहिएकि वे प्रत्येक तिमाही के अंत में एमएफआई से चार्टर्ड एकाउंटेंट का एक प्रमाण पत्र प्राप्त करें, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह सूचित किया गया हो कि
(i) एमएफआई की कुल आस्तियों का 85% "अर्हक परिसंपित्ति" के रूप में है,
(ii) आय सृजन कार्यकलापों के लिए प्रदान की गई सकल ऋण राशि , एमएफआई द्वारा प्रदत्त कुल ऋण के 75% से कम नहीं है और
(iii) मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है।
6.(i) माइक्रो फाइनांससंस्थाओं द्वारा आरंभ की गई प्रतिभूतिकृत आस्तयों में बैंकों द्वारा निवेशों और (ii) माइक्रो फाइनांससंस्थाओंकेऋणसंविभागोंकीएकमुश्त खरीद को बैंक की बहियों में प्राथमिकता क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने से संबंधित दिशा-निर्देश यथासमय जारी किए जाएंगे। इस बीच नई आस्तियाँ प्राथमिकता क्षेत्र में केवल तभी मानी जाएंगीजब वे अर्हक आस्तियों के मानदण्ड को पूरा करती हों और ऊपर विनिर्दिष्ट अनुसार मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों का पालन किया गया हो।
7. माइक्रो फाइनांस संस्थाओं को दिए गए वे बैंक ऋण, जो उपर्युक्त शर्तों को पूरा नहीं करते हों और अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को दिए गए बैंक ऋण 01 अप्रैल 2011 से प्राथमिकता क्षेत्र के ऋण नहीं माने जाएंगे। 01 अप्रैल 2011 से पूर्व दिए गए प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत बैंक ऋण, ऐसे ऋणों की पूर्णावधि तक प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत माने जाते रहेंगे।
8. हम मालेगाम समिति की अन्य संस्तुतियों के संबंध में विनियामक दिशा-निर्देश तैयार कर रहे हैं। उपर्युक्त विनियामक ढाँचे में शामिल किए जाने वाली सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं को अपेक्षित संगठनात्मक क्षमता निर्माण अभ्यास प्रारंभ करना है ताकि वे उपर्युक्त दिशा-निर्देशों के अनुरूप बन सकें। वे बैंक, जो सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं को ऋण दे रहे हैं, नए विनियामक ढाँचे के स्तंभ होंगे इसलिए उन्हें सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त ऋण आवदनों को प्रसाधित करने के लिए उचित अध्यवसाय (ड्यू डिलीजेंस) के आवश्यक मापदएड तैयार करने की आवश्यकता है। यह प्रक्रिया तुरंत प्रारंभ की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनसे वित्तपोषण की सुविधा प्राप्त कर रही सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएं, कंपनी नियंत्रण (कॉरपोरेट गवर्नेस), मानव संसाधन प्रबंधन, ग्राहक सुरक्षा के संदर्भ में प्रणालियों तथा प्रस्तावित विनियामक ढाँचे के अन्य पहलुओं को स्थापित करने में पूर्णतः सक्षम है। इससे यह भी सुनिश्चित हो सकेगा कि एक बार नया विनियामक ढाँचा कार्यान्वित हो जाने पर सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएं किसी बड़े अवरोध के बिना अपने परिचालन जारी रख सकती हैं।
9. कृपया इस परिपत्र की पावती भेजें।
भवदीया
( दीपाली पन्त जोशी )
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक |