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मिन्ट स्ट्रीट मेमो

692 kb दिनांक : 12 फरवरी 2018

मिंट स्ट्रीट मेमो सं. 10
कार्यशील पूंजी की चुनौतियां और निर्यातः जीएसटी रोलआउट से साक्ष्य

शेखर तोमर, संकल्प माथुर और सौरभ घोष*

सारांश: ऐसा प्रतीत होता है कि वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) की नई कर व्यवस्था के अंतर्गत कार्यान्वयन और रिफंड से फर्मों के लिए कार्यशील पूंजी चुनौतियां बढ़ गई हैं जो आगे अक्तूबर 2017 में उनके निर्यात को हानि पहुचांई होगी। इस अनुमान के समर्थन में हम साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जिसमें निर्यात पर क्षेत्रकीय आंकड़ों का उपयोग किया गया है और ऐसे क्षेत्र ढूंढ़ते हैं जिनमें कार्यशील पूंजी उच्च रही और जो इस अवधि के दौरान उच्च स्तर पर रहे। तथापि, ऐसा प्रतीत होता है कि तब से सरकार द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों से निर्यातकों की चिंता काफी कम हुई है जो नवंबर और दिसंबर 2017 में हुई निर्यात वृद्धि में प्रतिलक्षित हुआ।

1 परिचय

भारत ने 1 जुलाई 2017 से नई कर व्यवस्था शुरू की है। नई परोक्ष कर संरचना की शुरुआत के साथ ही, अर्थव्यवस्था में अल्पावधि और दीर्घावधि में कारोबारी गतिविधि पर नई व्यवस्था के प्रभाव को समझने के लिए रुचि बढ़ रही है।

शुरुआत में जीएसटी कार्यान्वयन इंफ्रास्ट्रक्चर समस्याओं और कार्यान्वयन विलंबों के चलते बाधित हुआ जिनके कारण जुलाई के लिए कर विवरणियां फाइल करने की तारीख में कई बार बदलाव हुआ। अंततः फर्मों को अंतिम संशोधन के तहत 30 सितंबर तक अपनी विवरणियां फाइल करने की जरूरत थी। कर व्यवस्था के कार्यान्वयन के अनुसार, ऐसा माना गया था कि रिटर्न फाइल करने के सात दिन के अंदर निर्यातक इनपुट कर रिफंड का 90 प्रतिशत प्राप्त कर लेंगे। तथापि, विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार इनपुट कर क्रेडिट प्राप्त करने में काफी विलंब हुआ है जिसने फर्मों की कार्यशील पूंजी पर प्रतिकूल प्रभाव डाला होगा। इसका अर्थ है कि उच्च कार्यशील पूंजी अपेक्षा वाले क्षेत्रों पर कम कार्यशील पूंजी अपेक्षा वाले क्षेत्रों की तुलना में गैर-रिफंड के कारण अधिक गंभीर रूप से असर पड़ा होगा।

अधिक विस्तार से बताने के लिए, कार्यान्वयन मुद्दों का प्रभाव निर्यातकों के लिए अधिक स्पष्ट और गंभीर है। जीएसटी से पहले, निर्यातकों को शुरू में ही शुल्कों का भुगतान करने की छूट दी गई। अब जीएसटी के अंतर्गत उनसे अपेक्षित है कि वे पहले कर का भुगतान करें और बाद में रिफंड का दावा करें। इससे व्यवस्था में परिवर्तन के बाद कम से कम एक बार उनकी कार्यशील पूंजी बाधित हुई क्योंकि निर्यातकों को नई कर व्यवस्था के अनुरूप समायोजित करना था। जीएसटी के अंतर्गत, वे सात दिन के अंदर इनपुट कर रिफंड का 90 प्रतिशत का लाभ उठा सकते हैं किंतु ऐसा केवल माल भारत से बाहर निर्यात होने के बाद ही होगा।

जुलाई माह में फाइल किए गए रिफंड अक्तूबर के अंत और नवंबर में ही क्रेडिटरों को स्वीकृत किया गया। इससे फाइलिंग और रिफंड की मध्यावधि के दौरान फर्मों की कार्यशील पूंजी के वित्तपोषण को नुकसान हुआ होगा। यदि सितंबर में कर फाइल करने के बाद रिफंड का पहला चरण बाधित हो जाता तो इससे अक्तूबर 2017 के आसपास फर्मों की कार्यशील पूंजी को नुकसान होना शुरू हो गया होता। यह अक्तूबर 2017 में निर्यात वृद्धि संख्या में प्रतिलक्षित हुआ है जिसमें -1.2 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) तक कमी आई जैसा कि आकृति 1 में दिखाया गया है और यह व्यापक आधारित थी।

फर्मों की वित्तीय सेहत और निर्यात निर्णय के बीच संबंध का ट्रेड साहित्य में व्यापक रूप से अध्ययन किया गया है। ग्रीनअवे और अन्य (2007) तथा हाल के वैगनर (2014) से शुरू करते हुए, पर्याप्त साक्ष्य हैं कि निर्यातक फर्में गैर-निर्यातक फर्मों की तुलना में वित्तीय रूप से कम नियंत्रित हैं। यह अध्ययन साहित्य के उपर्युक्त घटक से भिन्न है क्योंकि यह निर्यातकों के लिए अस्थायी झटके के तत्काल प्रभाव का विश्लेषण करता है जिसका अल्पावधि में नकारात्मक प्रभाव है किंतु दीर्घावधि में इसके शायद कोई प्रभाव नहीं हों।

बड़ी रोचक बात है कि निर्यात ने नवंबर में बड़ा पुनरुज्जीवन दर्शाया और यह 30.5 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) तक बढ़ गया। इसे आंशिक रूप से नवंबर 2016 (विमुद्रीकरण के माह) में कम निर्यात के आधार वर्ष और नवंबर 2017 में निर्यात के रिफंड दावों को तेज करने के सरकार के सक्रिय हस्तक्षेप द्वारा समझाया गया है। दिसंबर 2017 में निर्यात वृद्धि 13.3 प्रतिशत रही जो नरमी के साथ ही सही, निरंतर वृद्धि के संकेत दर्शा रही है।

अगले खंड में हम आंकड़े और पद्धति प्रस्तुत करेंगे। खंड 3 मुख्य परिणाम उपलब्ध कराता है जबकि खंड 4 नवंबर और दिसंबर 2017 में निर्यात में सुधार का वर्णन करता है। खंड 5 सुदृढ़ता के परिणामों और फर्म स्तरीय आंकड़ों से हमारे अनुमान के प्रारंभिक साक्ष्य प्रदान करता है। अंततः खंड 6 निष्कर्ष प्रस्तुत करता है।

2 आंकड़े और पद्धति

क्या उच्च कार्यशील पूंजी अपेक्षा वाले क्षेत्रों पर कम कार्यशाली पूंजी की अपेक्षा वाले क्षेत्रों की तुलना में कर रिफंड की कमी से गंभीर प्रभाव पड़ा? हम निर्यात के लिए ट्रेड आंकड़ों का उपयोग करते हुए इसका जवाब देते हैं जो मासिक स्तर पर उपलब्ध हैं। हम वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित प्रधान पण्य-वस्तुओं पर मासिक ट्रेड आंकड़ों का उपयोग करते हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए उत्पादन सूचना मासिक अंतराल पर उपलब्ध नहीं हैं और इस प्रकार समान विश्लेषण नहीं किया जा सकता है।

ट्रेड पर सूचना के अलावा हमने क्षेत्र स्तर पर कार्यशील पूंजी पर आंकड़ों का उपयोग भी किया है। हम सीएमआईई प्रोवेस से फर्म स्तरीय आंकड़ों का उपयोग करते हुए इसका परिकलन करते हैं जिसमें मुख्यतः सार्वजनिक सूचीबद्ध फर्म और कुछ निजी लिमिटेड कंपनियां शामिल हैं। हम वर्ष 2010-2016 के दौरान सक्रिय प्रत्येक फर्म के लिए बिक्री अनुपात की तुलना में औसत कार्यशील पूंजी का परिकलन करते है और फिर सभी फर्मों के लिए माध्यिका का बेंचमार्क क्षेत्रकीय अनुपात के रूप में उपयोग करते हैं। आंकड़ों के दो स्तरों का मिलान करने के बाद हमारे पास कुल 17 क्षेत्र हैं।

हमने सारणी 2 में विभिन्न क्षेत्रों के लिए माध्यिका कार्यशील पूंजी/बिक्री अनुपात सूचीबद्ध किया है। खाद्य उत्पादों जैसे मैरिन या मीट, डेयरी और पोल्ट्री जैसे क्षेत्र कम कार्यशाली पूंजी सघन क्षेत्र हैं और इनमें सबसे कम कार्यशील पूंजी/बिक्री अपेक्षा है। इलेक्ट्रॉनिक्स और अभियांत्रिकी वस्तुओं वाले क्षेत्र इस अपेक्षा में माध्यिका क्षेत्र है, जबकि हीरे और जवाहारात तथा पेट्रोलियम में सर्वाधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता है।

हमारे केंद्रीय अनुमान के परीक्षण के लिए, हम विभिन्न क्षेत्रों के लिए अक्तूबर और मार्च 2017 के बीच निर्यात वृद्धि में अंतर पर नजर रखते हैं और देखते है कि क्या यह बिक्री अनुपात की तुलना में कार्यशील पूंजी के आकार के साथ जुड़ा हुआ है। अधिक स्पष्ट रूप से, हम जांच करते हैं कि क्या (कार्यशील पूंजी/बिक्री) क्षेत्र i के लिए i अनुपात निम्नलिखित दोहरे अंतर में क्षेत्रकीय घट-बढ़ का वर्णन करने में सहायता करता है:

उपर्युक्त समीकरण (1) में ऑबजेक्ट अंतर चर में एक अंतर है जहां पहला अंतर अक्तूबर और मार्च 2017 के बीच अर्थात जीएसटी के प्रभाव में निर्यात में बदलाव को देखता है, जबकि दूसरा अंतर मौसमीपन के लिए है। यदि जीएसटी के कार्यान्वयन से ऊपर अपनाए गए तरीके के कारण अक्तूबर 2017 में निर्यात में गिरावट आई है तो हम उपर्युक्त दोहरे अंतर और बिक्री अनुपात की तुलना में कार्यशील पूंजी के बीच नकारात्मक संबंध की संभावना करेंगे।1

हम विश्वास करते हैं कि जनवरी, फरवरी या मार्च 2017 के विरूद्ध अंतर इस कार्रवाई हेतु सबसे उपयुक्त है क्योंकि इसमें नवंबर और दिसंबर 2016, विमुद्रीकरण की अवधि और साथ ही जुलाई से पहले के महीने जब जीएसटी लागू हुआ था, से बचा गया है। विमुद्रीकरण के आसपास के महीनों और जीएसटी लागू होने से पहले के महीनों को नीतिगत अंतरालों से हानि पहुंची और इससे हमारे परिणाम पक्षपातपूर्ण बन सकते हैं।

3 परिणाम

हम अक्तूबर और मार्च के बीच निर्यात वृद्धि बनाम बिक्री के अनुपात की तुलना में कार्यशील पूंजी में अंतर को आकृति 2 में स्कैटर प्लाट में प्रस्तुत कर रहे हैं। प्लाट पर प्रत्येक बिंदु एक क्षेत्र के लिए है। हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि निर्यात वृद्धि और बिक्री के अनुपात की तुलना में कार्यशील पूंजी में अंतर के बीच संबंध इस ग्राफ में नकारात्मक है तथा इसमें -0.18 का स्लोप को-एफिसेंट है। आंकड़ों की कमियों के बावजूद भी, मोटे रूप से इसका अर्थ है कि कार्यशील पूंजी/बिक्री अनुपात में 10 प्रतिशत वृद्धि से निर्यात वृद्धि में 1.8 प्रतिशत की कमी आई। इस प्रकार बिक्री अनुपात की तुलना में उच्च कार्यशील पूंजी वाले क्षेत्रों पर वास्तव में मार्च और अक्तूबर के बीच निर्यात वृद्धि पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। उदाहरण के लिए, पेट्रोलियम और हीरे तथा जवाहारात के क्षेत्र में उच्चतम कार्यशील पूंजी/बिक्री अपेक्षा है और इन क्षेत्रों पर अक्तूबर के दौरान सबसे अधिक प्रभाव पड़ा जैसाकि सारणी 2 में रिपोर्ट किया गया है। दूसरी तरफ माँस, डेयरी और पोल्ट्री में कम कार्यशील पूंजी की जरूरत है तथा इनमें निर्यात वृद्धि में बहुत कम गिरावट देखी गई। यह परिणाम पुष्ट और निरंतर है चाहे हम अक्तूबर 2017 और जनवरी या फरवरी 2017 जैसे अन्य महीनों के बीच अंतर को उठाते हैं।

किंतु यह ग्राफ संबंध स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह संभव है कि हम किसी अन्य घटना के कारण यह संबंध बन रहा है जो शायद उसी समय घटित हुई हो। ऐसी संभावनाओं को खत्म करने के लिए हम इस संबंध को आगे स्थापित करने के लिए प्लेसबो परीक्षण करते हैं।

यह देखते हुए कि जीएसटी फाइलिंग सितंबर के अंत तक पूरी हो जाएगी, इसलिए कार्यशील पूंजी चुनौतियों ने फर्मों को केवल सितंबर के अंत या इसके बाद प्रभाव डाला जब रिफंड देय हो गया। इस प्रकार हम अगस्त और सितंबर के लिए वृद्धि अंतर का उपयोग मार्च के साथ कर सकते हैं और परीक्षण का उपयोग कर सकते हैं यदि बिक्री अनुपात की तुलना में कार्यशील पूंजी के साथ ऐसा ही संबंध हो।

प्लेसबो परीक्षण के परिणाम आकृति 4 (अनुबंध) में दर्शाए गए हैं और हमारे अनुमान के अनुकूल हैं। जैसेकि कोई भी देख सकता है कि सितंबर और मार्च के बीच निर्यात वृद्धि अंतक के बीच कोई बड़ा संबंध नहीं है। इस प्रकार, यह दर्शाता है कि अक्तूबर के आसपास बड़ी घटना हुई थी जिसने निर्यात अंतर और बिक्री अनुपात की तुलना में कार्यशील पूंजी के बीच अचानक संबंध बना दिया। यह कम संभावना है कि जीएसटी के अलावा किसी घटना का अक्तूबर में ऐसी छोटी अवधि में इतने सारे क्षेत्रों के लिए निर्यात और बिक्री अनुपात की तुलना में कार्यशील पूंजी के बीच नकारात्मक संबंध स्थापित हो।2

4 सुधार होना

अक्तूबर, नवंबर 2017 में निर्यात के निराशाजनक कार्यनिष्पादन के बाद 30.55 प्रतिशत की अच्छी वृद्धि देखी गई। यह पिछले दो वर्षों में निर्यात में देखी गई सबसे बड़ी वृद्धि दर थी। निर्यात में इस सुधार के दो संभाव्य कारण हैं: (i) जीएसटी रिफंडों और निर्यात रियायतों (सोप्स) की तीव्र-ट्रेकिंग और (ii) नवंबर 2016 में निर्यात वृद्धि का कम आधार।

नवंबर 2016 में निर्यात वृद्धि 2.6 प्रतिशत पर निराशाजनक थी और इस प्रकार नवंबर 2017 में 14.2 प्रतिशत का अनुकूल आधार प्रभाव प्रदान किया। इस प्रकार शेष निर्यात सुधार नवंबर में जीएसटी रिफंड की तीव्र-ट्रेकिंग के द्वारा हुआ और इस प्रकार आर्थिक अनिश्चितता की अवधि समाप्त हो गई जिसने जीएसटी लागू होने के बाद फर्मों के निर्णय निर्माण को प्रभावित किया था। अक्तूबर 2017 में निर्यात मंदी के बाद इनपुट क्रेडिट को तेज करने के अलावा, सरकार ने निर्यात गिरावट की जांच करने के लिए अनेक उपायों की घोषणा भी की।3 केंद्रीय उत्पाद और सीमाशुल्क बोर्ड की हाल की प्रेस प्रकाशनी (सीबीईसी, 29 नवंबर 2017) के अनुसार, जुलाई माह में फाइल किए गए अधिकांश कर क्रेडिटों को अब नवंबर में मंजूर किया गया है। रिपोर्ट दावा करती है कि सीबीईसी जुलाई, अगस्त और सितंबर माह के लिए कुल 6500 करोड़ के आईजीएसटी रिफंड दावों को क्रेडिट करने के लिए निर्बाध रूप से कार्य कर रहा है।

हम सोचते हैं कि सरकार के सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से निर्यातकों के लिए जीएसटी रिफंड की गति से कार्यशील पूंजी की चुनौतियां कम हो गई हैं, जिससे निर्यातक आखिरकार अपने विलंबित निर्यात आदेशों को पूरा कर सकते हैं। यह नवंबर 2017 में निर्यात वृद्धि में तेज सुधार के कुछ भागों के बारे में बताता है। दिसंबर 2017 के अंक भी बढ़ी हुई प्रवृत्ति का लगातार अनुसरण कर रहे हैं।

चूंकि नवंबर 2017 के दौरान कार्यशील पूंजी की चुनौतियां कम हो गई थी, उच्च कार्यशील पूंजी वाले क्षेत्र जिनमें अक्तूबर 2017 में सबसे अधिक चुनौतियां आई, वे अपने दीर्घावधि वृद्धि पथ पर लौटने चाहिए और नवंबर 2017 में अपनी निर्यात वृद्धि में बड़ी छलांग दर्ज करनी चाहिए। इसे आकृति 3 में देखा जा सकता है, जहां हम बिक्री अनुपात की तुलना में कार्यशील पूंजी के मुकाबले नवंबर–अक्तूबर 2017 के बीच निर्यात वृद्धि अंतर दर्शाते हैं। हम पाते हैं कि वास्तव में उच्चतम कार्यशील पूंजी अपेक्षा वाले क्षेत्रों ने नवंबर 2017 में उच्चतम निर्यात वृद्धि दर्शाई है। साथ ही, दिसंबर-नवंबर 2017 के बीच निर्यात वृद्धि अंतर कार्यशील पूंजी (आकृति 5) पर निर्भर नहीं करता है, जिसका अभिप्राय है कि कार्यशील पूंजी की चुनौती का दिसंबर 2017 में क्षेत्रकीय निर्यात वृद्धि का पूर्वानुमान में महत्व खत्म हो गया। ये दोनों ग्राफ आगे साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि जीएसटी झटके से निर्यात वृद्धि में एक अवधि में गिरावट आई।

5 प्रबलता: फर्म लेवल प्रमाण

इस मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए, हमने सीएमआईई कौशल से कार्यरत पूंजी की बाधाओं पर फर्मों की प्रतिक्रिया जानने, या क्या इस तरह की बाधाओं ने वास्तव में तिसरी तिमाही और चौथी तिमाही 2017 (हम पूरे विश्लेषण में कैलेंडर वर्ष का उपयोग कर रहे हैं) में आघात पहुचाया है, को देखा है। हमने फर्मों द्वारा अंतरिम वित्तीय विवरणियों में रिपोर्ट किए गए पहली तिमाही 2014- तिसरी तिमाही 2017 के आंकड़ो का इस्तेमाल किया। चूंकि कंपनियां अक्टूबर में नकारात्मक निर्यात वृद्धि दर्शाती हैं, इसलिए किसी भी वित्तीय बाधा को तिसरी तिमाही 2017 के अंत,अर्थात् सितंबर 2017 में तैयार की गई वित्तीय विवरणी में प्रतिबिंबित होना चाहिए।

हम तीन महत्वपूर्ण फर्म स्तरीय चर- लघु अवधि के उधार, 'नकद और बैंक बैलेंस' और पूंजीगत व्यय को देखते हैं। अगर जीएसटी ने एक नकारात्मक चलनिधि का आघात लगाया, तो हमें फर्मों से अपने अल्पकालिक उधार लेने में वृद्धि, अपनी नकदी और बैंक बैलेंस को कम करने और अपनी पूंजी को कम करने की उम्मीद करते है। हम अपनी परिकल्पना का परीक्षण करने के लिए निम्नलिखित प्रतिगमन चलाते हैं:

तालिका 1 में कॉलम (1) और (2) कंपनियों के अल्पावधि उधार पर जीएसटी के प्रभाव को दिखाते हैं। डमी पर गुणांक (सितंबर '17) कमजोर है, जीएसटी का सीधा प्रभाव नहीं दिखा रहा है, हालांकि कॉलम 2 में 2 महत्वपूर्ण है और अल्पावधि उधार पर एक छोटा लेकिन सकारात्मक प्रभाव दिखाता है अर्थात क्षेत्र में उच्च कार्यरत पूंजी अपेक्षा वाले फर्म ने सितंबर 2017 में अपनी अल्पावधि उधारी को बढ़ाया। यहां, यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि यह प्रतिगमन फर्मों की रिपोर्टिंग अल्पकालिक उधार पर सशर्त है। इसलिए, उन फर्मों के लिए अल्पावधि उधार बढ़े जिसने वास्तव में इस अवधि में और साथ ही अतीत में उधार लिया था।4

हम यह भी पता लगाते हैं कि तिसरी तिमाही 2017 में, फर्मों ने इस अवधि के दौरान अपने 'नकद और बैंक बैलेंस' को कम कर दिया, जैसा कि कॉलम 3 और 4 में β1 गुणांक में दर्शाया गया है, हालांकि, इस मामले में कार्यशील पूंजी / बिक्री अनुपात फर्मों के फैसले में कोई भूमिका नहीं निभाता है जो कि इस तथ्य से परिलक्षित होता है कि β2 इन दोनों विशेषताओं में महत्वपूर्ण नहीं है। नकद और बैंक बैलेंस के परिणाम काफी मजबूत हैं क्योंकि तिसरी तिमाही 2017 वो कुछ समय है जहां तिमाही पर डमी वैरिएबल महत्वपूर्ण है। अन्त में,तिमाही डमीयां नकारात्मक है जबकि पूंजीगत व्यय के मामले में उल्लेखनीय है, जैसा कि कॉलम 5 और 6 में दिखाया गया है, इससे पता चलता है कि इस अवधि में पूंजीगत व्यय एक प्रमुख चैनल नहीं था।

  लॉग (कम अवधि उधार) लॉग (नकद और बैंक शेष)
(लॉग कैपिटल)
(1) (2) (3) (4) (5) (6)
डी(सितं.17) 0.00421
(0.115)
-0.0386
(0.124)
-0.171***
(0.065)
-0.193***
(0.0702)
-1.392
(0.739)
-1.388
(0.738)
डी(सितं. 17)*
डब्लयूसी रेशियो
  0.00312**
(0.001)
  0.00177
(0.0006)
  0.000239
(0.0002)
फर्म एफई हां हां हां हां हां हां
तिमाही FE हां हां हां हां हां हां
टिप्पणी 16,436 14,171 23,332 20,213 19,292 17,934

** 5% पर महत्वपूर्ण, 1%. पर महत्वपूर्ण ***, फर्म स्तर पर संकलित त्रुटियां.

तालिका 1: कार्यशील पूंजी की कमी के लिए फर्म की प्रतिक्रिया

इन परिणामों को देखते हुए,हम इस बात से निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जीएसटी आघात के जवाब में कंपनियों ने तिसरी तिमाही 2017 में मुख्य रूप से अपने कैश और बैंक बैलेंस को कम किया। अन्त में, यहां एक चेतावनी देना महत्वपूर्ण है। आदर्श रूप से, हम फर्मों के निर्यात के लिए इस विश्लेषण को चलाना चाहेंगे, क्योंकि पिछले सेक्शन में दिए गए परिणाम निर्यातकों के बारे में थे। लेकिन हमारे नमूने में बहुत कम निर्यात वाली फर्म हैं जो तिमाही परिणामों की रिपोर्ट करते हैं, और ऐसे में हम अपने नमूने को केवल निर्यात करने वाले फर्मों तक सीमित करके एक मजबूत विश्लेषण नहीं कर सकते। यह शायद एक कारण है कि हमें ऊपर तीन में से दो विशेषताओं में महत्वपूर्ण β2 नहीं मिल रहा है। समग्र रूप से, यह कम फॉर्म विश्लेषण इस अध्ययन में प्राथमिक परिकल्पना के लिए अधिक विश्वास और विश्वसनीयता देता है और तिसरी तिमाही 2017 के अंत में पूरे अर्थव्यवस्था में चलनिधि की बाधाओं की उपस्थिति का संकेत देता है।

6 निष्कर्ष

इस अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि अल्पकालिक नकदी प्रवाह का असर निर्यात क्षेत्रों में कंपनियों को कैसे प्रभावित कर सकता है,जिसे आम तौर पर आर्थिक रूप से मजबूत माना जाता है। हमने दिखाया है कि उच्च कार्यशील पूंजी / बिक्री अनुपात वाले निर्यात योगदान क्षेत्र इन तरलता की कमी के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। निर्यातकों की चिंताओं को दूर करने के लिए नवंबर में सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न उपायों से भी यह पुष्टि हुई है। आखिरकार,नवंबर 2017 में निर्यात फिर से शुरू हुआ जो कि यह दर्शाता है कि इन त्वरित उपायों ने अक्तूबर 2017 के दौरान निर्यातकों द्वारा अस्थायी ऋण की कमी को आंशिक रूप से हल किया गया ।

आगे बढ़ते हुए, कार्यशील पूंजी की कमी के जवाब में फर्मों की जेनेरिक प्रतिक्रिया को देखना दिलचस्प होगा। फर्मों ने इस अस्थायी तरलता की कमी से किस तरह निपटा इसका अध्ययन उनके अल्पकालिक उधार प्रकार और चलनिधि प्रबंधन के उपयोग के लिए किया जा सकता है। फर्म स्तर के आंकड़ों के साथ, एक फर्म प्रतिक्रिया में विविधता को भी देखा सकता है और यह पहचान सकता है कि इस तरह की तरलता झटके के लिए कौन सी कंपनियां अधिक कमजोर हैं। हमने फर्म स्तर की प्रतिक्रिया के लिए प्रारंभिक सबूत प्रदान किए हैं,जिसे भविष्य के कार्यों में आगे बढ़ाया जा सकता है।

7 संदर्भ

चॉने, थॉमस (2016), "लिक्विडिटी कंस्ट्रेंन्ड एक्पोर्टर", जर्नल ऑफ़ इकोनॉमिक डायनेमिक्स कंट्रोल, 72: 141-54।

ग्रीनवे, डेविड, एलेसेंड्रा ग्युरिग्लिया और रिचर्ड नेल्लर (2007), " फांइनेंशियल फेक्टर एंड एक्पोर्टिंग डिसीजन", जर्नल ऑफ इंटरनेशनल इकॉनामिक्स 73 (2), 377-395 ।

वैगनर, जोआचिम (2014), " क्रेडिट कंस्ट्रेंड एंड एक्पोर्ट: ए सर्वे ऑफ इमपिरिकल स्टडीज यूजिग फर्म-लेवल डेटा", इंडस्ट्रियल एंड कॉरपोरेट चेंज,वॉल्यूम 23,इश्यू 6, 1477-1492 ।

केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड ,प्रेस विज्ञप्ति, 29 नवंबर 2017चॉने, थॉमस (2016), "लिक्विडिटी कंस्ट्रेंन्ड एक्पोर्टर", जर्नल ऑफ़ इकोनॉमिक डायनेमिक्स कंट्रोल, 72: 141-54।

8 अनुबंध

क्षेत्र कार्यशील पूंजी / बिक्री निर्यात वृद्धि (%)
(%) अक्‍तू-मार्च नवंबर-अक्‍तू दिसंबर-नवंबर
समुद्री उत्पाद 18.22 -34.17 23.70 -12.75
मांस, डेयरी और कुक्कुट 18.72 -14.45 7.55 70.63
अनाज और विविध 30.10 10.10 35.42 -17.96
वस्‍त्रोद्योग 34.09 -35.38 24.41 -6.53
कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन 36.58 6.85 31.99 -22.92
प्लास्टिक और लिनोलियम 37.10 5.35 16.49 -24.59
चाय 40.88 -23.72 26.43 -0.61
चमड़ा और चमड़ा उत्पाद 44.58 -9.96 10.84 9.07
इलेक्ट्रॉनिक सामान 45.41 -11.90 32.97 -21.28
ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स 46.63 -14.28 22.13 -6.44
इंजीनियरिंग सामान 47.32 -34.90 31.99 -18.44
कॉफ़ी 51.39 -5.59 15.35 -10.28
कच्ची धातु और खनिज 52.48 -67.27 4.60 -15.57
तंबाकू 53.74 7.91 6.81 5.28
सिरेमिक उत्पाद और ग्लासवेयर 55.21 -19.96 24.74 -5.16
रत्न और आभूषण 60.81 -37.04 57.19 -30.30
पेट्रोलियम 68.34 -54.39 32.94 -22.54
तालिका 2: कार्यशील पूंजी और निर्यात वृद्धि




प्रेस रिलीज़

29 नवंबर, 2017

जीएसटी रिफंड पर

निर्यातक भारत से निर्यात किए गए सामानों पर भुगतान किए गए एकीकृत माल और सेवा कर (आईजीएसटी) से संबंधित रिफंड और इसी तरह निर्यात पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) देने में देरी के बारे में शिकायत कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों में जुलाई से अक्टूबर 2017 की अवधि के लिए रखी गयी धनवापसी राशि के अतिरंजित अनुमान लगाए गए हैं। यह स्पष्ट किया जाता है कि जुलाई से अक्टूबर 2017 की अवधि के दौरान शिपिंग बिलों के माध्यम से दायर आईजीएसटी रिफंड दावों की मात्रा लगभग 6500 करोड़ है और जीएसटीएन पोर्टल पर दायर आरएफडी 01 ए एप्लीकेशन के अनुसार इनपुट या इनपुट सेवाओं पर अप्रयुक्त क्रेडिट की वापसी की राशि 30 करोड़ रुपये की है।

आईजीएसटी की वापसी:

भारत से निर्यात किए गए सामानों पर आईजीएसटी के भुगतान के संबंध में, अधिकतर रिफंड जुलाई 2017 में किए गए निर्यात के लिए दावों में से हैं जहां उचित दावों को मंजूरी दी गई है। अगस्त, सितंबर और अक्टूबर 2017 में किए गए निर्यात के लिए आईजीएसटी के रिफंड दावों को निरंतर रूप से मंजूरी दे दी जा रही है जहां रिटर्न ठीक से दायर किया गया है। प्रदत्‍त आईजीएसटी की वापसी की स्वीकृति के लिए आवश्यक पूर्व शर्तें है निर्यातक द्वारा जीएसटीएन पोर्टल पर जीएसटीआर 3 बी और जीएसटीआर 1 की तालिका 6 ए और सीमा शुल्क ईडीआई सिस्टम पर शिपिंग बिल दायर किया जाना। यह आवश्यक है कि निर्यातक यह सुनिश्चित करें कि जीएसटीआर 1 की तालिका 6 ए और शिपिंग बिल में दी गई जानकारी में कोई विसंगति न हो। यह देखा गया है कि निर्यातकों द्वारा अपने रिटर्न दाखिल करते समय कुछ सामान्य त्रुटियां की जाती रही है जैसेकि जीएसटी 1 में शिपिंग बिल संख्या में गल्‍ती, चालान संख्या और प्रदत्‍त आईजीएसटी राशि के मिलान में गल्‍ती, गलत बैंक खाता आदि। ये त्रुटियां रिफंड देने में देरी या उनकी अस्वीकृति का एकमात्र कारण है। जबकि अगर निर्यातक पंजीकृत हैं तो उनके लिए आईसगेट पोर्टल पर सूचना उपलब्ध कराई गई है,जीएसटी रिटर्न और शिपिंग बिल में जानकारी प्रस्तुत करने में हुई गल्तियों की जांच करके उन्‍हें जल्द से जल्द सुधारने के लिए वे सीमा शुल्क क्षेत्राधिकारियों से भी संपर्क कर सकते हैं।

चूंकि सीमा शुल्क प्रणाली जीएसटीएन पोर्टल और कस्टम सिस्टम पर उपलब्ध कराई गई जानकारी के मिलान में किसी भी अधिकारी की सहभागिता के बिना स्वचालित रूप से धनवापसी प्रदान करने के लिए डिज़ाइन की गई है, सभी विवरणों को सही ढंग से भरने की जिम्मेदारी निर्यातकों पर है। इसलिए ज़रूरी है कि निर्यातक अगस्त 2017 और उसके बाद के जीएसटी 1 के तालिका 6 ए दाखिल करते समय सावधानी बरतते हुए यह सुनिश्चित करें कि कोई त्रुटि न रह जाएं। अगस्त 2017 के लिए जीएसटीआर 1 भरने की सुविधा 4 दिसंबर 2017 तक भी तैयार हो जाएगी। जुलाई में हुई ग़लत प्रविष्टियों के मामले में, अगस्‍त माह के जीएसटीआर 1 की तालिका 9 में संशोधन की अनुमति होगी।

इनपुट टैक्स क्रेडिट की वापसी:

जहां तक निर्यात करते समय प्रयुक्‍त इनपुट या इनपुट सेवाओं पर अप्रयुक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड का संबंध है, निर्यातकों को आम पोर्टल पर फॉर्म जीएसटी आरएफडी -01 ए में आवेदन करना होगा जहां रिफंड के रूप में दावा की गई निर्यातक की सीमा तक की राशि इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेखावही से डेबिट की जाएगी।

इसके बाद, डेबिट साक्ष्‍य (एआरएएन-स्वीकृति रसीद संख्या) जीएसटीएन पोर्टल पर जनरेट होगी, जिसका उल्लेख फॉर्म जीएसटी आरएफडी -01 ए के प्रिंट आउट पर किया जाएगा और व्‍यक्तिगत रूप से उसे न्यायक्षेत्र के अधिकारी के पास जमा किया जाएगा। रिफंड की समय पर स्वीकृति के लिए निर्यातकों को यह सुनिश्चित करना हैं कि सभी आवश्यक दस्तावेजी साक्ष्य फॉर्म जीएसटी आरएफडी 01 ए के साथ दायर किए गए हैं।

इसलिए निर्यातकों को सलाह दी जाती है कि आईजीएसटी रिफंड की कार्रवाई के लिए अगर पहले से नहीं किया गया है तो वे तत्काल फाइल करें (ए) तालिका 6 ए और जीएसटीआर 3 बी (बी) निर्यात करते समय प्रयुक्‍त इनपुट या इनपुट सेवाओं पर अप्रयुक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड के लिए जीएसटीएन पोर्टल पर आरएफडी 01 ए और (सी) आवश्‍यकतानुसार जुलाई जीएसटीआर 1 में प्रदान की गई जानकारी में संशोधन के लिए अगस्त 2017 के लिए जीएसटीआर 1। सरकार ने कठिनाई को कम करने के लिए कई उपाय किए हैं और वह शीघ्र वितरण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।


* स्ट्रैटेजिक रिसर्च यूनिट (एसआरयू),आरबीआई में सौरभ घोष, निदेशक, शेखर तोमर रिसर्च मैनेजर, और संकल्प माथुर रिसर्च एसोसिएट हैं। इस पत्र में व्यक्त विचार और राय लेखकों के हैं जो जरूरी नहीं कि आरबीआई के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हों।

2 स्पष्टता के लिए, हमने माह नवंबर 2016 में विमुद्रीकरण के दौरान इस तरह के पैटर्न को पहचानने के लिए इसी प्रकार का अभ्यास किया था। लेकिन परीक्षित आंकड़े (परिशिष्ट में रेखाचित्र 5 (नीचे)) ऐसा कोई संबंध नहीं दर्शाते है।

3 एक्सपोर्ट पैकेज पर सीबीईसी प्रेस रिलीज

4 यह देखते हुए कि इस प्रतिगमन में अधिकांश प्रति टिप्पणियां ड्रॉप आउट नहीं होती हैं, इसका मतलब यह भी है कि इस नमूने में ज्यादातर कंपनियां अधिकांश समय में अल्पकालिक उधार लेती हैं, जो आश्चर्यजनक नहीं हैं क्योंकि सीएमआईई प्रॉवेस में ज्यादातर सूचीबद्ध और बड़ी कंपनियां हैं।

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