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निजी क्षेत्र में लघु वित्त बैंकों के ‘ऑन टैप” लाइसेंसिंग संबंधी दिशानिर्देश

I. परिचय

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 27 सितंबर 2014 को निजी क्षेत्र में “लघु वित्त बैंकों” को लाइसेंसिंग संबंधी दिशानिर्देश जारी किए थे। लाइसेंसिंग की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप दस आवेदकों को सैद्धांतिक अनुमोदन प्रदान किया गया और उन्होंने बैंक की स्थापना भी की। इन दिशानिर्देशों में यह सूचित किया गया था कि इन बैंकों के साथ कारोबार में अनुभव प्राप्त करने के पश्चात भारतीय रिज़र्व बैंक इन बैंकों के “ऑन टैप” लाइसेंसिंग पर विचार करेंगे। मौजूदे लघु वित्त बैंकों के कार्यनिष्पादन की समीक्षा के पश्चात और प्रतिस्पर्धा को बढाने हेतु दिनांक 06 जून 2019 के दूसरी द्वैमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2019-20 में यह घोषणा की गई थी कि रिज़र्व बैंक ऐसे बैंकों के “ऑन टैप” लाइसेंसिंग हेतु मसौदा दिशानिर्देश तैयार करेंगे। तदनुसार, 13 सितम्बर 2019 को आरबीआई की वेबसाईट में मसौदा दिशानिर्देश प्रकाशित किया गया और स्टेकहॉल्डर और आम जनता से इस संबंध में प्रतिक्रिया भी मांगी गई। प्राप्त प्रतिक्रियाओं पर विचार करते हुए अंतिम दिशानिर्देश नीचे प्रस्तुत है:

II. दिशानिर्देश

1. पंजीकरण, लाइसेंसिंग और विनियमन

लघु वित्त बैंकों को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पब्लिक लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत किया जाएगा। उन्हें बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 22 के तहत लाइसेंस प्रदान किया जाएगा और बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949; भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934; विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999; भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007; प्रत्यय विषयक जानकारी कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005; निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम अधिनियम, 1961 के प्रावधानों; भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) और अन्य विनियामकों द्वारा समय-समय पर जारी अन्य सम्बंधित विधान और निर्देश, विवेकपूर्ण विनियमन और अन्य दिशानिर्देशों/ अनुदेशों के तहत नियंत्रित किया जाएगा। लघु वित्त बैंकों को अपना संचालन शुरू करते ही अनुसूचित बैंक का दर्जा दिया जाएगा।

2. लक्ष्य

लघु वित्त बैंकों को अनुमति देने का मुख्य उद्देश्य (i) प्रथम रूप से आबादी की मुख्यधारा से बाहर रह रहे वर्गों को बचत के प्रावधान प्रदान करना, और (ii) लघु कारोबार इकाइयों; लघु और सीमांत कृषकों; सूक्ष्म और लघु उद्योगों ; और अन्य असंगठित क्षेत्र की इकाइयों को उच्च तकनीक – कम लागत परिचालनों के जरिए ऋण की आपूर्ति द्वारा वित्तीय समावेश को बढाना है।

3. पात्र प्रोमोटर (प्रोमोटर)

(ए) पात्रता मानदंड :

निवासी व्यक्ति/ पेशेवर (भारतीय नागरिक), एकल या संयुक्त रूप से, प्रत्येक को वरिष्ठ स्तर पर बैंकिंग और वित्त में कम से कम 10 साल का अनुभव प्राप्त हो और निजी क्षेत्र के कम्पनी और सोसाइटी जो निवासियों द्वारा स्वायत्त और नियंत्रित हो (फेमा विनियमनों में परिभाषित, समय-समय पर संशोधित अनुसार) और अपने कारोबार को कम से कम 5 साल तक सफलतापूर्वक चलाने का ट्रैक रिकार्ड रखनेवाले लघु वित्त बैंक स्थापित करने के लिए प्रोमोटर के रूप में पात्र होंगे। निजी क्षेत्र में मौजूदे गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां (एनबीएफ़सी), सूक्ष्म वित्त संस्थान (एमएफ़आई) और स्थानीय क्षेत्र बैंक (एलएबी) जो निवासियों (फेमा विनियमनों में परिभाषित, समय-समय पर संशोधित अनुसार) द्वारा नियंत्रित हैं और कम से कम 5 साल से सफलतापूर्वक कारोबार चलाने का ट्रैक रिकार्ड रखते हैं, वे सभी विभिन्न प्राधिकारियों की कानूनी और विनियामक अपेक्षाओं को पूरा करते हुए और इन दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए लघु वित्त बैंकों में परिवर्तन कर सकते हैं। इसके अलावा, मौजूदे भुगतान बैंक (पीबी) जो निवासियों द्वारा नियंत्रित हैं और पाँच साल का परिचालन पूरे किए हैं भी सभी विभिन्न प्राधिकारियों की कानूनी और विनियामक अपेक्षाओं को पूरा करते हुए और इन दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए लघु वित्त बैंकों में परिवर्तन के पात्र होंगे। तथापि, लघु वित्त बैंक बनाने के उद्देश्य से विभिन्न प्रोमोटरों द्वारा बनाए गए संयुक्त उद्यमों को अनुमति नहीं दी जाएगी। ऐसे बैंकों को लाइसेन्स प्रदान करने का मुख्य मानदंड स्थानीय पर ध्यान केंद्रीकृत करना और लघु ग्राहकों सेवा प्रदान करने की क्षमता होना है, इसलिए स्थानीय उद्यमियों और समाज मुख्यधारा से बाहर रह रहे वर्ग को आर्थिक सहायता प्रदान करने के प्रति ध्यान केन्द्रित रखानेवाले उद्यमियों के लिए यह उचित माध्यम होगा। तदनुसार, सरकारी/ सार्वजनिक क्षेत्र के इकाइयां और बड़े उद्योग प्रतिष्ठान/ कारोबार समूह, उनके द्वारा प्रमोट किए जा रहे एनबीएफ़सी और पीबी सहित, किसी राज्य विधानन मंडल अधिनियमन के तहत स्थापित स्वायत्त बोर्ड/ निगम, राज्य वित्तीय कॉर्पोरेशन, विकास वित्तीय संस्थानों के अनुषंगी को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा। इन दिशानिर्देशों के प्रयोजन लिए, ऐसा समूह जिसकी आस्तियां रु. 5000 करोड़ या अधिक हो, गैर-वित्तीय व्यवसाय जो कुल संपत्ति/ सकल आय के संदर्भ में 40 प्रतिशत या उससे अधिक हो, उन्हें विशाल औद्योगिक प्रतिष्ठान/ व्यापार समूह माना जाएगा। (ये कंपनियां, चाहे प्रमोटर या निवेशक के रूप में, बड़े उद्योग प्रतिष्ठान या बड़े उद्योग हाउस से संबन्धित कंपनी है, इस पर आरबीआई का फैसला अंतिम होगा) साथ ही, वैकल्पिक निवेश निधि (एआईएफ़) से प्रस्तावों को भी प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा।

प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक (यूसीबी), जो लघु वित्त बैंक के रूप में परिवर्तित होने के लिए स्वेच्छा से तैयार होते हैं, शहरी सहकारी बैंक के लघु वित्त बैंक के रूप में स्वैच्छिक परिवर्तन संबंधी योजना का संदर्भ लें (दिनांक 27 सितंबर 2018 परिपत्र संदर्भ सं. डीसीबीआर.केंका.एलएस.पीसीबी.परि.सं.5/07.01.000/2018-19)। लघु वित्त बैंक के रूप में परिवर्तन या ऐसे परिवर्तन (ऊपर संदर्भित योजना के तहत) हेतु सैद्धान्तिक अनुमोदन के लिए आवेदन कर रहे यूसीबी को न्यूनतम पूंजी संबंधी दिशानिर्देश को छोड़कर लघु वित्त बैंक के रूप में कारोबार शुरू करने की तारीख से ‘ऑन टैप’ लाइसेंसिंग संबंधी दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। ऐसे लघु वित्त बैंकों की न्यूनतम निवल मालियत कारोबार शुरू करने की तारीख से रु.100 करोड़ होंगे। तथापि, उनको अपनी न्यूनतम निवल मालियत को कारोबार शुरू करने की तारीख से पांच साल के भीतर रु.200 करोड़ में बढ़ाना होगा।

(बी) ‘उचित एवं उपयुक्त’ मानदंड

प्रोमोटर/ प्रोमोटर1 समूह को लघु वित्त बैंकों के प्रवर्तन हेतु पात्र बनने के लिए ‘उचित एवं उपयुक्त’ होना चाहिए। आवेदकों की ‘उचित एवं उपयुक्त’ स्थिति का मूल्यांकन आरबीआई द्वारा उनके मजबूत क्रडेन्शल्ज़ और सत्यनिष्ठा संबंधी पिछले रिकार्ड; वित्तीय मजबूती और पेशेवर अनुभव या पिछले पांच साल की अवधि के लिए अपने कारोबार को सफलतापूर्वक चलाने संबंधी सफल ट्रैक रिकार्ड के आधार पर किया जाएगा।

(सी) कार्पोरेट संरचना:

प्रोमोटर / प्रोमोटर समूह एकल संस्था या किसी होल्डिंग कंपनी के तहत लघु वित्त बैंक स्थापित करने के बारे में विचार कर सकते हैं जो बैंक के प्रवर्तन संस्था के रूप में कार्य करेंगे। तथापि, अगर लघु वित्त बैंक और उसके प्रवर्तन इकाई के बीच कोई मध्यवर्ती कंपनी है तो वह गैर-परिचालनात्मक वित्तीय धारक कंपनी (एनओएफ़एचसी) होनी चाहिए। अगर प्रोमोटर होल्डिंग कंपनी संरचना के तहत छोटा वित्त बैंक बनाना चाहते हैं, बिना एनओएफ़एचसी के, तो होल्डिंग कंपनी / प्रोमोटर संस्था एनबीएफ़सी-सीआईसी के रूप में रिज़र्व बैंक में पंजीकृत होना चाहिए। अगर छोटा वित्त बैंक एनओएफ़एचसी के तहत बनाया जाता है, तो एनओएफ़एचसी को 1 अगस्त 2016 के निजी क्षेत्र में वैश्विक बैंकों को ‘ऑन टैप’ लाइसेंसिंग संबंधी दिशानिर्देशों के पैराग्राफ 2(सी) II के तहत निर्धारित सभी अपेक्षाओं को पूरा करना होगा। समूह में कार्यकलापों के पुन:वर्गीकरण के लिए सामान्य सिद्धान्त यह है कि बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6(ए) से (ओ) के तहत अनुमत सभी कार्यकलाप बैंक से जारी रखे जाए। तथापि, अगर प्रोमोटर एनओएफ़एचसी के तहत आयोजित करने हेतु प्रस्तावित अलग संस्था के जरिए मौजूदे विशिष्ट कार्यकलापों को जारी रखना चाहते हैं तो आरबीआई से पूर्वानुमती लेनी होगी और यह सुनिश्चित करनी होगी कि समान कार्यकलाप बैंक के जरिए नहीं किए जा रहे हैं। आगे, बैंक को अनुमति नहीं दिए गए कार्यकलाप करने की अनुमति समूह के लिए भी नहीं होगी, अर्थात एनओएफ़एचसी के तहत संस्थाओं को बैंक को अनुमति नहीं दिए गए कार्यकलाप करने की अनुमति नहीं होगी। तथापि, लघु वित्त बैंकों को किसी अनुषंगी बनाने की अनुमति नहीं होगी।

4. कार्यकलापों का दायरा

लघु वित्त बैंक, जिन उद्देश्यों के लिए बनाया गया है, उसके अलावा, प्रथम रूप से लघु कारोबार इकाई, लघु और सीमांत कृषक और असंगठित क्षेत्र के संस्थाएँ सहित मुख्य धारा से बाहर रह रहे वर्गों को उधार और जमाराशि स्वीकार करने जैसे मूल बैंकिंग कार्यकलाप करेंगे।

ये अन्य गैर-जोखिम शेयरिंग सरल वित्तीय सेवा कार्यकलाप कर सकते हैं जिनमें अपनी निधि की बाध्यता नहीं होती जैसे म्यूचुअल फंड इकाई, बीमा उत्पाद, पेंशन उत्पाद आदि का वितरण। लेकिन इसके लिए उनको आरबीआई की पूर्वानुमती और ऐसे उत्पादों के क्षेत्रीय विनियामकों की अपेक्षाओं का अनुपालन करना होगा। बैंक के कारोबार शुरू होने की तारीख से तीन साल के पश्चात रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमती लेने की आवश्यकता नहीं होगी और बैंक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए लागू मौजूदा मानदंडों के तहत नियंत्रित होगा।

लघु वित्त बैंक अपने ग्राहक की आवश्यकता के लिए विदेशी मुद्रा कारोबार में श्रेणी II प्राथिकृत डीलर भी बन सकते हैं।

दिनांक 18 मई 2017 को “शाखा प्राधिकरण नीति को युक्तिसंगत बनाना – दिशानिर्देशों में संशोधन” पर जारी आरबीआई परिपत्र, समय-समय पर संशोधित, के अनुसार लघु वित्त बैंकों को कारोबार शुरू करने की तारीख से बैंकिंग आउटलेट खोलने की सामान्य अनुमति होगी बशर्ते कि उनके बैंकिंग आउटलेट का 25 प्रतिशत बैंक रहित ग्रामीण केंद्रों (अद्यतन जनगणना के अनुसार 9,999 तक की आबादी) में खोलनी होगी। जहां मौजूदे एनबीएफ़सी-एमएफ़आई को परिवर्तित करके लघु वित्त बैंक बनाया गया है, मौजूदे शाखाओं के बैंकिंग आउटलेट के रूप में परिवर्तन दिनांक 18 मई 2017 को “शाखा प्राधिकरण नीति को युक्तिसंगत बनाना – दिशानिर्देशों में संशोधन” विषय पर आरबीआई परिपत्र, समय-समय पर संशोधित, के पैराग्राफ 7 के प्रावधानों के अनुसार नियंत्रित होगी।

लघु वित्त बैंकों के कार्यक्षेत्र में किसी प्रकार की पाबंदी नहीं होगी; तथापि, प्राथमिकता उन आवेदकों को दी जाएगी जो, शुरुआती चरण में, देश के उत्तर-पूर्वी, पूर्वी और मध्य क्षेत्र जैसे कम बैंकिंग सेवा प्राप्त राज्यों/ जिलाओं में बैंक शुरू करना चाहते हैं। इन आवेदकों को जल्द ही अन्य क्षेत्रों में अपने कारोबार का विस्तार करने में कोई रोक-टोक नहीं है। यह अपेक्षा की जाती है कि लघु वित्त बैंक मुख्यत: स्थानीय जरूरतों को प्रमुखता दें। पांच साल की प्रारम्भिक स्थिरता अवधि और समीक्षा के पश्चात आरबीआई लघु वित्त बैंकों के कार्यकलापों के दायरे को बढ़ाया जा सकता है।

प्रमोटरों के अन्य वित्तीय और गैर-वित्तीय सेवा संबंधी कार्यकलापों को बैंकिंग कारोबार से दूर रखना चाहिए।

लघु वित्त बैंकों को अपने नाम में “लघु वित्त बैंक” का प्रयोग करना चाहिए ताकि अन्य बैंकों से इनकी अलग से पहचान की जा सके।

5. पूंजी आवश्यकता

नीचे दिए गए लघु वित्त बैंकों को छोड़कर अन्य लघु वित्त बैंकों के लिए चुकता वोटिंग ईक्विटी पूंजी रु.200 करोड़ है,

ए) यूसीबी से परिवर्तित, जिनके लिए पूंजी आवश्यकता ऊपर पैराग्राफ 3(ए) में निर्धारित अनुसार होगी।

बी) एनबीएफ़सी/एमएफ़आई/एलएबी/पीबी से परिवर्तित, जिनके लिए पूंजी आवश्यकता नीचे पैराग्राफ 10 में निर्धारित अनुसार होगी।

लघु वित्त बैंकों में अंतर्निहित जोखिम को देखते हुए ऐसे बैंकों को निरंतर आधार पर अपने जोखिम भारित आस्तियों (आरडबल्यूए) का 15 प्रतिशत का न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखने की आवश्यकता है, यह आरबीआई द्वारा समय-समय पर निर्धारित किसी भी उच्च प्रतिशत के अधीन होगा। टियर I पूंजी आरडबल्यूए का कम से कम 7.5% होगी। टियर II पूंजी कुल टियर I पूंजी के अधिकतम 100 प्रतिशत सीमित होगी। बेसल II मानदंड सामान्य रूप में लघु वित्त बैंकों पर भी लागू होगी, यदि अन्यथा निर्धारित नहीं की जाती है।

6. प्रोमोटर का अंशदान

बैंक के कारोबार प्रारम्भ होने की तारीख से पहले पांच सालों के दौरान प्रोमोटर द्वारा हर समय बैंक की चुकता वोटिंग ईक्विटी पूंजी का कम से कम 40 प्रतिशत का धारण करना चाहिए। अगर बैंक में प्रमोटरों का प्रारम्भिक शेयरहोल्डिंग चुकता वोटिंग ईक्विटी पूंजी के 40 प्रतिशत से अधिक है तो पांच वर्ष की अवधि के भीतर उसको 40 प्रतिशत में लाना चाहिए। क्या पांच साल की लोक-इन अवधि के बाद कोई प्रोमोटर, प्रोमोटर नहीं रहता या बैंक से बाहर जा सकता है, यह आरबीआई की विनियामकीय और पर्यवेक्षी सहजता/ असुविधा और इस संबंध में सेबी के विनियमनों पर आधारित है। आगे, प्रोमोटरों के स्टेक को कारोबार शुरू होने के 10 साल के भीतर बैंक के चुकता वोटिंग ईक्विटी पूंजी के अधिकतम 30 प्रतिशत और 15 साल के भीतर अधिकतम 15 प्रतिशत तक नीचे लाना चाहिए।

इसके अलावा, यूसीबी से लघु वित्त बैंकों में परिवर्तित बैंकों के मामले में प्रोमोटर को बैंक के कारोबार शुरू होने की तारीख से पांच साल के लिए लगातार चुकता वोटिंग ईक्विटी पूंजी का न्यूनतम 26 प्रतिशत का धारण करना चाहिए। ऐसे यूसीबी द्वारा रु.200 करोड़ की निवल मालियत प्राप्त करने की तारीख से 15 साल की अवधि में उसको 15 प्रतिशत में नीचे लाना चाहिए।

प्रमोटरों के प्रारंभिक न्यूनतम हिस्सेदारी के अधीन, विविध शेयरधारिता वाले प्रस्ताव, और बैंक की लिस्टिंग के लिए एक समय सीमा को प्रधानता दी जाएगी। हालांकि, लघु वित्त बैंक द्वारा पहली बार 500 करोड़ रुपये के निवल मूल्य तक पहुंचने के बाद तीन साल के भीतर लिस्टिंग अनिवार्य होगी। 500 करोड़ रुपये से कम की कुल संपत्ति वाले लघु वित्त बैंक भी पूंजी बाजार नियामक की आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद अपने शेयर स्वेच्छा से सूचीबद्ध कर सकते हैं। आवेदन के समय प्रमोटर इकाई के शेयरहोल्डिंग पैटर्न में प्रस्तावित किसी महत्वपूर्ण परिवर्तन2 तथा आवेदन और लाइसेंस के अनुदान की अवधि के दौरान परिवर्तन को आरबीआई की पूर्व सूचना में लाया जाना चाहिए। इसके बाद, इस तरह के बदलाव के लिए आरबीआई की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होगी।

7. विदेशी शेयरहोल्डिंग

लघु वित्त बैंक में विदेशी शेयरहोल्डिंग निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए मौजूदा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) नीति के अनुसार होगी, जो उपर्युक्त अनुच्छेद 6 के आधार पर है।

8. वोटिंग अधिकार और शेयरों का हस्तांतरण/ अधिग्रहण

21 जुलाई, 2016 के भारतीय रिज़र्व बैंक की अधिसूचना के साथ पठित बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 12 (2) के अनुसार, 17 सितंबर, 2016 के राजपत्र में प्रकाशित अनुसार निजी क्षेत्र के बैंकों में किसी भी शेयरधारक का वोटिंग अधिकार वर्तमान में बैंकिंग कंपनी के सभी शेयरधारकों के कुल मतदान अधिकारों के 26 प्रतिशत पर सीमित किए हैं। इसके अलावा, अधिनियम की धारा 12 (ख) के अनुसार, किसी भी निजी क्षेत्र के बैंक में 5 प्रतिशत या उससे अधिक की शेयर पूंजी का अधिग्रहण या मताधिकार के लिए आरबीआई की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होगी। ये प्रावधान लघु वित्त बैंकों पर भी लागू होंगे। हालाँकि, प्रमोटरों/ प्रोमोटर समूह की शेयरधारिता सीमाएँ इन दिशानिर्देशों के पैरा 6 के अनुसार होगी।

9. विवेकपूर्ण मानदंड

नए स्थापित लघु वित्त बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पास एक मजबूत जोखिम प्रबंधन ढांचा तैयार है। लघु वित्त बैंक आरबीआई के सभी विवेकपूर्ण मानदंडों और विनियमों के अधीन होगा, जो मौजूदा वाणिज्यिक बैंकों के लिए लागू है, जिसमें नकदी रिज़र्व अनुपात (सीआरआर) और वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) के रखरखाव की आवश्यकता शामिल है। वैधानिक प्रावधानों का पालन करने में कोई ढीलाई नहीं बरती जाएगी।

जिन उद्देश्यों के लिए लघु वित्त बैंक स्थापित किए गए हैं, उनके मद्देनजर, बैंक को अपने समायोजित नेट बैंक क्रेडिट (एएनबीसी) के 75 प्रतिशत को आरबीआई द्वारा प्राथमिकता वाले क्षेत्र ऋण (पीएसएल) के रूप में वर्गीकृत क्षेत्र के लिए दिया जाना होगा। जबकि उसके एएनबीसी का 40 फीसदी हिस्सा पीएसएल के तहत विभिन्न उप-क्षेत्रों को आवंटित पीएसएल निर्धारण के अनुसार आवंटित किया जाना चाहिए, बैंक पीएसएल के तहत किसी भी एक या एक से अधिक उप-क्षेत्रों में 35 प्रतिशत का आवंटन कर सकता है जहां उसे प्रतिस्पर्धात्मक लाभ है। लघु वित्त बैंक के संचालन की शुरुआत के बाद 31 मार्च की स्थिति के अनुसार के प्रथम लेखापरीक्षित तुलनपत्र बैंक के लिए पहले पीएसएल लक्ष्य (बाद के वित्तीय वर्ष के लिए) का आधार बनेगी। ‘बीच की अवधि’ अर्थात कारोबार शुरू होने की तारीख और पहली लेखापरिक्षित तुलनपत्र (अर्थात 31 मार्च) की तारीख के बीच की अवधि के दौरान, लघु वित्त बैंकों को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र बेचने की अनुमति नहीं है।

एकल और समूह की बाध्यता के लिए अधिकतम ऋण राशि और निवेश सीमा क्रमशः 10 प्रतिशत और अपने पूंजीगत निधि के 15 प्रतिशत तक सीमित होगी। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि बैंक मुख्य रूप से लघु उधारकर्ताओं के लिए ऋण का विस्तार किया जाता है, ऋण और अग्रिम को शामिल करते हुए अपने ऋण पोर्टफोलियो का कम से कम 50 प्रतिशत ऋण निरंतर आधार पर 25 लाख रुपये तक का होना चाहिए। इस आवश्यकता के अनुपालन का आकलन करने के लिए, परिचालन शुरू होने की तारीख तक, बैंक के संपूर्ण ऋण पोर्टफोलियो पर विचार किया जाएगा, न कि परिचालन शुरू होने के बाद वितरित किए गए केवल ऩए ऋणों को इसमें शामिल माना जाएगा। इसके अलावा, 25 लाख रुपये की ऊपरी सीमा के मानदंड उधारकर्ता के अनुसार होंगे।

पांच साल की प्रारंभिक स्थिरीकरण अवधि के बाद, और एक समीक्षा के बाद, आरबीआई उपरोक्त एक्सपोज़र सीमा में ढील दे सकता है।

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 20 के तहत निदेशकों और निदेशकों के हित निहित कंपनियों को बैंक द्वारा ऋण और अग्रिम देने में प्रतिबंधों के अलावा, लघु वित्त बैंक को अपने प्रमोटरों, शेयरधारकों (जिनके पास बैंक में प्रदत्त वोटिंग इक्विटी शेयरों के 10 प्रतिशत या उससे अधिक की हिस्सेदारी है), प्रमोटर के रिश्तेदारों [कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (77) और नियमों के तहत परिभाषित अनुसार] तथा ऐसी संस्थाएं जिनमें उनका महत्वपूर्ण प्रभाव या नियंत्रण है (जैसा कि लेखा मानक आईएनडी एएस 28 और आईएनडी एएस 110 के रूप में परिभाषित है) के साथ एक्सपोज़र नहीं होना चाहिए।

10. बैंक में परिवर्तित होने हेतु एनबीएफसी/ एमएफआई/ एलएबी/ पीबी के लिए अतिरिक्त शर्तें

एक मौजूदा एनबीएफसी/ एमएफआई/ एलएबी/ पीबी, अगर इन दिशानिर्देशों के तहत शर्तों को पूरा करता है, तो विभिन्न प्राधिकरणों से सभी कानूनी और अनुमोदन आवश्यकताओं का अनुपालन करने के बाद, खुद को लघु वित्त बैंक में परिवर्तित करने के लिए आवेदन कर सकता है। ऐसी स्थिति में, संस्था के पास न्यूनतम रु.200 करोड़ का नेटवर्थ हो, सैद्धांतिक अनुमोदन की तारीख से अठारह महीने के भीतर या परिचालन शुरू होने पर, जो भी पहले हो, रु.200 करोड़ के नेटवर्थ प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त प्रदत्त वोटिंग इक्विटी पूंजी लगाएं। यह ध्यान दिया जाए कि लघु वित्त बैंक में रूपांतरित होने पर एनबीएफसी/ एमएफआई/ पीबी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और उसका सारा व्यवसाय जो एक बैंक कर सकता है, उसे बैंक में बदल देना होगा और जिन गतिविधियों को बैंक संवैधानिक रूप से नहीं कर सकता है, उनको समाप्त/ निपटान किया जाए। इसके अलावा, एनबीएफसी/ एमएफआई/ पीबी की शाखाओं को या तो परिचालन शुरू होने की तारीख से तीन साल की अवधि के भीतर बैंक शाखाओं में परिवर्तित किया जाए या विलय/ बंद किया जाए। लघु वित्त बैंक और एनबीएफसी/ एमएफआई का सह-अस्तित्व संभव नहीं है।

बैंकों को उनकी संपत्ति पर फ्लोटिंग चार्ज बनाने से रोक लगाई है। ऐसे एनबीएफसी / एमएफआई के लिए, जो लघु वित्त बैंकों में परिवर्तित होने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने में सफल होते हैं, यदि उन्होंने सुरक्षित उधार के लिए अपनी संपत्ति पर फ्लोटिंग चार्ज बनाए हैं जो लघु वित्त बैंक में रूपांतरण के दिन अपने तुलनपत्र में हैं, तो आरबीआई उनकी ऐसे उधार की परिपक्वता तक छूट प्रदान करेगा। 25 प्रतिशत का अतिरिक्त जोखिम भार उन परिसंपत्तियों पर लगाया जाएगा, जिन पर परिवर्तित इकाई द्वारा मौजूदा ऋणदाताओं/ डिबेंचर धारकों के पक्ष में चार्ज/ ग्रहणाधिकार बनाया गया है, यह तब तक रहेगा जब तक कि जमाकर्ताओं की ब्याज की रक्षा के लिए इन देनदारियों को समाप्त नहीं किया जाता है।

विनियामकीय आवश्यकताओं या अन्यथा के कारण यदि मौजूदा एनबीएफसी/ एमएफआई/ एलएबी ने प्रमोटरों के शेयरहोल्डिंग को 40 प्रतिशत से कम कर दी है, लेकिन 26 प्रतिशत से अधिक है, तो आरबीआई दिशानिर्देशों के पैरा 6 में दिए अनुसार प्रमोटरों के न्यूनतम प्रारंभिक योगदान पर जोर नहीं देगी। ऐसे मामलों में, प्रोमोटरों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंक के कारोबार शुरू होने के बाद पहले पांच वर्षों के दौरान, नई इक्विटी लगाने के बावजूद, उनकी होल्डिंग प्रदत्त वोटिंग इक्विटी पूंजी के 26% से कम न हो।

11. कारोबार योजना

लघु वित्त बैंक लाइसेंस के लिए आवेदकों को अपने आवेदन के साथ प्रोजेक्ट रिपोर्ट के साथ अपनी कारोबार योजनाओं को प्रस्तुत करना होगा। कारोबार योजना में बैंक द्वारा लघु वित्त बैंकों की स्थापना के पीछे के उद्देश्यों को कैसे प्राप्त करेगा और एनबीएफसी/ एमएफआई आवेदक के मामले में, एनबीएफसी/ एमएफआई के मौजूदा कारोबार को बैंक में कैसे परिवर्तित/ निपटाया जाएगा, यह शामिल होना चाहिए। आवेदक द्वारा प्रस्तुत कारोबार योजना यथार्थवादी और व्यवहार्य होनी चाहिए। लाइसेंस जारी करने के बाद घोषित कारोबार योजना से विचलन के मामले में, आरबीआई बैंक के विस्तार को प्रतिबंधित करने, प्रबंधन में परिवर्तन और अन्य दंडात्मक/ विनियामक उपाय, जो आवश्यक है को लागू करने पर विचार कर सकता है ।

12. कारपोरेट गवर्नेंस

  1. लघु वित्त बैंक के बोर्ड में अधिकांश स्वतंत्र निदेशक3 होना चाहिए।

  2. बैंक को आरबीआई द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निदेशकों के लिए “उचित एवं उपयुक्त” मानदंड सहित कॉर्पोरेट गवर्नेंस दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए।

13. अन्य शर्तें

i एक प्रमोटर को यूनिवर्सल बैंक और लघु वित्त बैंक दोनों के लिए लाइसेंस नहीं दिया जाएगा, भले ही प्रस्ताव उनका एनओएचएफ़सी संरचना के तहत हो।

ii यदि भुगतान बैंक का प्रमोटर लघु वित्त बैंक स्थापित करने की इच्छा रखता है तो दोनों बैंक एनओएचएफ़सी संरचना के तहत होने चाहिए

iii प्रमोटरों के अलावा किसी अन्य व्यक्तियों (रिश्तेदारों सहित) और संस्थाओं को बैंक में प्रदत्त वोटिंग इक्विटी पूंजी के 10% से अधिक शेयरहोल्डिंग के लिए अनुमति नहीं है। मौजूदा एनबीएफ़सी/ एमएफ़आई/ एलएबी को लघु वित्त बैंक में परिवर्तित करने के मामले में, जहां प्रमोटरों के अलावा अन्य संस्थाओं (निजी इक्विटी फंड सहित) द्वारा प्रदत्त वोटिंग इक्विटी पूंजी 10% से अधिक धारित है, आरबीआई उक्त शेयरहोल्डिंग को अधिकतम 10% तक लाने के लिए सैद्धांतिक अनुमोदन की तारीख से 3 साल तक की अवधि का समय देने पर विचार कर सकता है।

iv लघु वित्त बैंक दूसरे बैंक के लिए व्यापार प्रतिनिधि (बीसी) नहीं हो सकता है। हालाँकि, इसका अपना बीसी नेटवर्क हो सकता है।

v बैंक कारोबार के शुरुआत से ही प्रौद्योगिकी संचालित होना चाहिए, जो आमतौर पर स्वीकृत मानकों और मानदंडों के अनुरूप हो; जबकि नए दृष्टिकोण (जैसे डेटा भंडारण, सुरक्षा और वास्तविक समय डेटा अपडेशन के लिए) को प्रोत्साहित किया जाए, उसकी एक विस्तृत प्रौद्योगिकी योजना आरबीआई को प्रस्तुत की जानी चाहिए।

vi बैंक के पास ग्राहकों के शिकायतों के निवारण के लिए एक उच्चस्तरीय ग्राहक शिकायत निवारण कक्ष होना चाहिए। लघु वित्त बैंक, आरबीआई बैंकिंग लोकपाल योजना, 2006, समय-समय पर संशोधित, के दायरे में आएंगे।

vii आरबीआई द्वारा निर्धारित नियमों और शर्तों का अनुपालन लाइसेंस प्रदान करने के लिए एक आवश्यक शर्त है। कोई भी गैर-अनुपालन बैंक के लाइसेंस को रद्द करने सहित दंडात्मक उपायों या विनियामक कार्रवाई को आकर्षित करेगा।

14. अंतरण प्रणाली

लघु वित्त बैंक एक विभेदित बैंक के रूप में जारी रहने का विकल्प चुन सकते हैं। यदि यह एक यूनिवर्सल बैंक में अंतरित करने की इच्छा रखता है, तो ऐसा अंतरण स्वचालित नहीं होगा, लेकिन यह इस तरह के अंतरण के लिए आरबीआई में आवेदन करने और यूनिवर्सल बैंकों के लिए लागू न्यूनतम प्रदत्त वोटिंग इक्विटी पूंजी/ नेटवर्थ आवश्यकता को पूरा करने; पांच साल की न्यूनतम अवधि के लिए लघु वित्त बैंक के रूप में प्रदर्शन का संतोषजनक ट्रैक रिकॉर्ड और आरबीआई की समुचित सावधानी प्रक्रिया के परिणाम के अधीन होगा। यूनिवर्सल बैंक में परिवर्तित होने पर, यह 1 अगस्त, 2016 को निजी क्षेत्र में यूनिवर्सल बैंकों के 'ऑन टैप लाइसेंसिंग” के लिए दिशानिर्देशों के तहत लागू एनओएचएफसी संरचना सहित सभी मानदंडों के अधीन होगा।

15. आवेदन की प्रक्रिया

बैंककारी विनियमन (कंपनी) नियम, 1949 के नियम 11 के तहत आवेदन पत्र को निर्धारित प्रारूप (प्रपत्र III) में प्रस्तुत किया जाना है। इसके अलावा, आवेदकों को पैरा 11 के अनुसार कारोबार योजना और अनुबंध II के अनुसार अन्य आवश्यक जानकारी प्रस्तुत करनी होगी। निजी क्षेत्र में लघु वित्त बैंकों की स्थापना के लिए आवेदन, ऊपर वर्णित अन्य विवरणों के साथ, एक लिफाफे में "लघु वित्त बैंक के लिए आवेदन" लिखकर निम्नलिखित को संबोधित करते हुए प्रस्तुत किया जाए:

मुख्य महाप्रबंधक,
विनियमन विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक,
केंद्रीय कार्यालय, 13 वीं मंजिल, केंद्रीय कार्यालय भवन,
शहीद भगत सिंह मार्ग, मुंबई - 400001

लाइसेंस विंडो ऑन टैप खुली होगी। इस प्रकार, आवेदक द्वारा वांछित रूप में किसी भी समय अपेक्षित जानकारी के साथ निर्धारित प्रपत्र में आवेदन आरबीआई को प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

16. आरबीआई निर्णय की प्रक्रिया

  1. पहले चरण में, आवेदकों की पात्रता आकलन करने के लिए आरबीआई द्वारा इन दिशा-निर्देशों में निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के संदर्भ में आवेदनों की जांच की जाएगी। ऊपर दिए गए पैराग्राफ 3 में निर्धारित ‘उचित एवं उपयुक्त’ मानदंडों के अलावा, आरबीआई आवेदनों की उपयुक्तता निर्धारित करने के लिए अतिरिक्त मानदंड लागू कर सकता है। इसके बाद, आवेदनों को आरबीआई द्वारा स्थापित की जाने वाली स्थायी बाह्य सलाहकार समिति (एसईएसी) के पास भेजा जाएगा।

  2. एसईएसी में बैंकिंग, वित्तीय क्षेत्र और अन्य संबंधित क्षेत्रों में अनुभव वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे। एसईएसी का कार्यकाल तीन साल के लिए होगा।

  3. एसईएसी आवेदनों की स्क्रीनिंग के लिए अपनी प्रक्रिया स्थापित करेगा। एसईएसी समय-समय पर, आवश्यकता पड़ने पर मिलेंगे। समिति के पास अधिक जानकारी मांगने का अधिकार सुरक्षित रहेगा और साथ ही वे किसी भी आवेदक के साथ विचार-विमर्श कर सकती है और किसी भी मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांग सकती है। समिति अपनी सिफारिशें आरबीआई को विचारार्थ प्रस्तुत करेगी।

  4. आंतरिक स्क्रीनिंग कमेटी (आईएससी), जिसमें गवर्नर और उप-गवर्नर शामिल हैं, सभी आवेदनों की जांच करेगी। आईएससी एसईएसी द्वारा की गई सिफारिशों के औचित्य पर भी विचार-विमर्श करेगा और फिर आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की समिति (सीसीबी) को ’सैद्धांतिक अनुमोदन’ जारी करने के अंतिम निर्णय के लिए आरबीआई अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगा।

  5. आरबीआई द्वारा जारी ’सैद्धांतिक अनुमोदन ’ की वैधता ’सैद्धांतिक अनुमोदन ’ प्रदान करने की तारीख से 18 महीने होगी और उसके बाद स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। इसलिए, आवेदक को ’सैद्धांतिक अनुमोदन’ देने के 18 महीने की अवधि के भीतर लाइसेंस प्राप्त करना होगा।

  6. लघु वित्त बैंक की स्थापना के लिए ’सैद्धांतिक अनुमोदन’ जारी करने के बाद, अगर प्रोमोटरों या कंपनियों/ संस्थाओं के बारे में जिससे प्रमोटर जुड़े हुए हैं और जिस समूह में उनका हित निहित है के संदर्भ में कोई प्रतिकूल विशेषताएं ध्यान में आते हैं, तो आवश्यकता पड़ने पर आरबीआई द्वारा अतिरिक्त शर्तें लगाई जा सकती है, ’सैद्धांतिक अनुमोदन’ वापस लिया भी जा सकता है।

  7. ’सैद्धांतिक अनुमोदन’ के लिए उपयुक्त पाए गए आवेदकों के नाम आरबीआई वेबसाइट पर डाले जाएंगे।

  8. जो आवेदक लाइसेंस जारी करने के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया है, उसे रिज़र्व बैंक के निर्णय के बारे में सूचित किया जाएगा। ऐसे आवेदक उस निर्णय की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन करने के पात्र नहीं होंगे।

  9. उपर्युक्त पैरा 16 (ज) में बताए अनुसार आरबीआई द्वारा आवेदन पर विचार नहीं किए जाने पर केंद्रीय बोर्ड की समिति के निर्णय से असंतुष्ट आवेदक, आरबीआई से सूचना की प्राप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर केंद्रीय निदेशक मंडल के फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं।


अनुबंध I

परिभाषा

I. प्रमोटर

प्रमोटर का अर्थ है, वह व्यक्ति, जो अपने रिश्तेदारों के साथ [कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (77) और इसके अधीन बनाए गए नियमों में यथापरिभाषित] वोटिंग इक्विटी शेयरों के स्वामित्व के आधार पर, बैंक/ एनओएफएचसी पर प्रभावी नियंत्रण की स्थिति में है, और इसमें, जहां भी लागू हो, वे सभी संस्थाएं शामिल हैं जो प्रमोटर समूह का हिस्सा हैं।

II. प्रमोटिंग संस्था

प्रमोटिंग संस्था का अर्थ है वह संस्था जो बैंक को प्रमोट करते हैं।

III. प्रमोटर समूह

"प्रमोटर समूह" में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

(i) प्रमोटर;

(ii) प्रमोटर के रिश्तेदार [कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (77) और इसके अधीन बनाए गए नियमों में यथापरिभाषित]; और

(iii) यदि प्रमोटर एक कॉर्पोरेट निकाय है:

(क) ऐसे कारपोरेट निकाय की अनुषंगी या होल्डिंग कंपनी.

(ख) कोई भी कारपोरेट निकाय जिसमें प्रमोटर दस प्रतिशत या उससे अधिक इक्विटी शेयर पूंजी धारित करता है या जो प्रमोटर की दस प्रतिशत या उससे अधिक इक्विटी शेयर पूंजी धारित करती है;

(ग) कोई भी कारपोरेट निकाय जिसमें व्यक्तियों या कंपनियों का कोई समूह या संयोजन जो उस कारपोरेट निकाय में बीस प्रतिशत या उससे अधिक इक्विटी शेयर पूंजी धारित करता है और प्रमोटर की बीस प्रतिशत या उससे अधिक इक्विटी शेयर पूंजी भी धारित करती है ;

(घ) प्रमोटर के साथ संयुक्त/ एसोसिएट उद्यम (आईएनडी एएस 28 के संदर्भ में यथापरिभाषित);

(ङ) प्रमोटर से संबंधित पार्टी (आईएनडी एएस 28 के संदर्भ में यथापरिभाषित); और

IV. यदि प्रमोटर व्यक्ति है:

A) कोई भी कारपोरेट निकाय जिसमें दस प्रतिशत या उससे अधिक इक्विटी शेयर पूंजी प्रमोटर या प्रमोटर के रिश्तेदार या किसी फर्म या हिंदू अविभाजित परिवार, जिसमें प्रमोटर या उसके एक अथवा एकाधिक नजदीकी रिश्तेदार द्वारा धारित की जाती है;

B) कोई भी कारपोरेट निकाय जिसमें उपर्युक्त (क) में प्रावधित कारपोरेट निकाय दस प्रतिशत या उससे अधिक इक्विटी शेयर पूंजी धारित करती है;

C) हिंदू अविभाजित परिवार या फर्म जिसमें प्रमोटर और उसके नजदीकी रिश्तेदारों की कुल शेयरधारिता कुल के दस प्रतिशत या उससे अधिक है;

(v) बैंक/ समूह कंपनियों के बहिर्नियम में प्रमोटर घोषित किए गए सभी व्यक्ति।

(vi) वे सभी व्यक्ति, जिनकी शेयरहोल्डिंग "प्रमोटर समूह की शेयरहोल्डिंग" शीर्षक के तहत प्रॉस्पेक्टस4 में प्रकट करने के उद्देश्य से समेकित की जाती है;

(vii) ए, बी, सी, डी ई, एफ में उल्लिखित संस्थाओं के साथ एक सामान्य ब्रांड नाम साझा करने वाली संस्थाएं जहां प्रमोटर एक कारपोरेट निकाय है और ए, बी, सी जहां प्रमोटर एक व्यक्ति है;

बशर्ते कि किसी वित्तीय संस्था, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, विदेशी संस्थागत निवेशक या म्यूचुअल फंड को केवल इस तथ्य के आधार पर प्रमोटर समूह नहीं माना जाएगा कि प्रमोटर की दस प्रतिशत या उससे अधिक इक्विटी शेयर पूंजी ऐसी संस्था द्वारा धारित जाती है जब तक कि ऐसा निवेश कार्यनीतिक प्रकृति का न हो।


अनुबंध II

प्रासंगिक सहायक दस्तावेजों के साथ प्रमोटरों द्वारा दी जाने वाली अतिरिक्त जानकारी

I. मौजूदा संरचना

1. व्यक्तिगत प्रमोटर के बारे में जानकारी:

क. परिशिष्ट I के अनुसार व्यक्तिगत प्रमोटरों द्वारा स्व-घोषणा।

ख. व्यक्तिगत प्रमोटरों की पृष्ठभूमि और अनुभव पर विस्तृत प्रोफाइल, उनकी विशेषज्ञता, व्यवसाय का पिछला रिकॉर्ड।

2. प्रमोटर समूह में व्यक्तियों और संस्थाओं की जानकारी:

क. परिशिष्ट II के अनुसार प्रमोटर समूह में अन्य संस्थाओं के नाम और विवरण (यदि परिशिष्ट I में शामिल नहीं हैं)।

ख. प्रमोटर समूह में सभी संस्थाओं के शेयरहोल्डिंग का रूप।

ग. समूह में सभी संस्थाओं की कारपोरेट संरचना को दर्शाने वाला व संस्थाओं की हिस्सेदारी और कुल संपत्ति को दर्शाने वाला एक चित्रात्मक विवरण:

घ. सभी समूह संस्थाओं की पिछले पांच वर्षों की वार्षिक रिपोर्ट।

1. बैंक में परिवर्तित/ प्रवर्तित संस्था की जानकारी:

क. परिशिष्ट III के अनुसार प्रवर्तित/ परिवर्तित संस्था द्वारा घोषणा।

ख. प्रवर्तित/ परिवर्तित संस्था का शेयरधारिता पैटर्न ।

ग. संस्था के अंतर्नियम एवं बहिर्नियम और पिछले पांच वर्षों के लिए प्रवर्तक संस्था के वित्तीय विवरण (उक्त वर्षों के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय संकेतकों के सारांश सहित), बोर्ड की संरचना और दस वर्षों की अवधि में निदेशकों का प्रतिनिधित्व, पिछले तीन वर्षों का आयकर विवरणी, प्रवर्तित / परिवर्तित संस्था हेतु धन का स्रोत दर्शाने वाला सीए सर्टिफिकेट।

II. प्रस्तावित संरचना

1. आवेदक को उन व्यक्तियों / संस्थाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करनी चाहिए, जो प्रस्तावित बैंक में विदेशी इक्विटी भागीदारी सहित प्रस्तावित बैंक के प्रदत्त वोटिंग इक्विटी पूंजी (शेयरधारिता पैटर्न) और प्रस्तावित निवेशकों की पूंजी के स्रोत का 5 प्रतिशत या उससे अधिक अभिदान करेंगे।

2. प्रस्तावित प्रमोटर शेयरहोल्डिंग और दिशानिर्देशों के अनुपालन में प्रमोटर शेयरहोल्डिंग को कम करने की योजना।

3. यदि अंतिम रूप दिया गया, तो बैंक का प्रस्तावित प्रबंधन।

III. प्रोजेक्ट रिपोर्ट

प्रस्तावित बैंक की कारोबार क्षमता और व्यवहार्यता, परिचालन का प्रस्तावित क्षेत्र, कारोबार योजना5, किसी भी अन्य वित्तीय सेवाओं की पेशकश करने का प्रस्ताव, सीआरआर/ एसएलआर6 पर विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुपालन की योजना, ऋण पोर्टफोलियो की संरचना, प्राथमिकता क्षेत्र, आदि दिशानिर्देशों के अनुसार, और भी कोई अन्य जानकारी जिसे प्रासंगिक माना जाता है, को समाहित करते हुए परियोजना रिपोर्ट। जमीनी स्तर की पर्याप्त जानकारी के आधार पर परियोजना रिपोर्ट में अधिक से अधिक ठोस विवरण दिए जाने चाहिए, और अवास्तविक या अवांछित महत्वाकांक्षी अनुमानों से बचना चाहिए । कारोबार योजना को यह देखना चाहिए कि बैंक वित्तीय समावेशन7 प्राप्त करने का प्रस्ताव कैसे करता है और एनबीएफसी/ एमएफआई आवेदक के मामले में, एनबीएफसी/ एमएफआई का मौजूदा कारोबार बैंक में कैसे शामिल होगा या हटेगा/ समाप्त होगा।

IV. कोई अन्य जानकारी

प्रमोटर आवेदन के समर्थन में किसी भी अन्य प्रासंगिक जानकारी और दस्तावेजों को प्रस्तुत कर सकते हैं। इसके अलावा, आरबीआई समय-समय पर जैसा भी आवश्यक हो, किसी अन्य अतिरिक्त जानकारी मांग सकते हैं।


1 प्रमोटर/ प्रमोटर समूह की परिभाषा परिशिष्ट I में दिया गया है।

2 महत्वपूर्ण परिवर्तन का अर्थ शेयरहोल्डिंग में 10% या उससे अधिक का किसी भी परिवर्तन है।

3 स्वतंत्र निदेशक: जैसा कि कंपनी अधिनियम, 2013 में परिभाषित किया गया है

4 भारतीय प्रतिभूति और विनियमन बोर्ड (पूजी और प्रकटीकरण आवश्यकताओं को जारी करना) अधिनियम, 2018

5 अन्य बातों के साथ, कारोबार योजना में, (लेकिन सीमित नहीं), अंतर्निहित मान्यताओं, मौजूदा बुनियादी ढांचे/ नेटवर्क/ शाखाओं, और प्रस्तावित उत्पाद लाइनों, लक्षित ग्राहकों, लक्ष्य स्थानों, प्रौद्योगिकी का उपयोग, जोखिम प्रबंधन, मानव संसाधन से संबंधित योजनाओं, शाखा नेटवर्क, उपस्थिति के वैकल्पिक केंद्र, बैंकरहित ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएँ खोलना, प्राथमिकता क्षेत्र अनुपालन, पाँच वर्षों के लिए वित्तीय अनुमान इत्यादि को शामिल करना चाहिए।

6 एनबीएफसी आवेदकों के मामले में, मौजूदा सीआरआर/ एसएलआर आवश्यकता, अनुमानित सीआरआर/ एसएलआर आवश्यकता और सीआरआर/ एसएलआर पर सांविधिक मानदंडों के अनुपालन की योजना के बारे में जानकारी दी जाए।

7 वित्तीय समावेशन योजना में वित्तीय समावेशन उत्पादों की पेशकश के लिए संयुक्त उद्यम या साझेदारी का विवरण, वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देना, लघु वित्त बैंकों के उद्देश्य को प्राप्त करना आदि (लेकिन सीमित नहीं) शामिल होना चाहिए।


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