
श्री स्वामीनाथन गुरुमूर्ति [73] एक सनदी लेखाकार और उच्च श्रेणी के कार्पोरेट एवं विधि परामर्शदाता हैं।
पेशेवर विशेषज्ञता
1972 में अखिल भारतीय श्रेणी के साथ सीए की इंटरमीडिएट और अंतिम दोनों परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के उपरांत, वे पिछले 42 वर्षों से प्रैक्टिस कर रहे हैं।
श्री गुरुमूर्ति कानून एवं वित्त तथा कॉर्पोरेट को प्रभावित करने वाले समष्टि आर्थिक मुद्दों से संबंधित विषयों में बहुत सारे कॉर्पोरेट के प्रतिष्ठित परामर्शदाता हैं। एक पेशेवर विशेषज्ञ के रूप में उन्होंने कुछ जटिल कॉर्पोरेट मामलों में मध्यस्थता की है और उनका समाधान किया है।
शैक्षणिक गतिविधियां
पेशेवर परामर्शदाता होने के अलावा, वे एक कुशाग्र शिक्षाविद भी हैं। वे अर्थशास्त्र, व्यवसाय, वित्त और प्रबंध के भारतीय मॉडलों पर आईआईटी बॉम्बे के विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं। वे वर्तमान में सास्त्र विश्वविद्यालय, तंजौर में विधि नृविज्ञान के प्रतिष्ठित प्रोफेसर हैं।
आनुभविक अध्ययन
भू राजनीतिक और रणनीतिक मामलों के कुशाग्र चिंतक होने के कारण, वे दिल्ली स्थित प्रतिष्ठित रणनीतिक थिंक टैंक, विवेकानंद अंतरराष्ट्रीय फाउंडेशन के उपाध्यक्ष हैं।
बहुत सारे कॉर्पोरेट के परामर्शदाता होने और बृहत राष्ट्रीय हित से प्रभावित होने के कारण, श्री गुरुमूर्ति ने अर्थव्यवस्था पर भूमंडलीकरण के प्रभाव तथा निर्देशित अर्थव्यवस्था की आदी आर्थिक एवं राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन करना शुरू किया।
1993 से, श्री गुरुमूर्ति और उनके स्वयंसेवकों की टीम, जिसमें अर्थशास्त्री, सनदी लेखाकार और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे, बहुत सारे औद्योगिक समूहों के पास गई, जो सरकारी सहायता अथवा बैंकिंग और शैक्षिक संस्थाओं सहित किसी संस्थागत सहायता के बिना अपने बल पर स्थापित हुए हैं। 40 से अधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक समूहों उत्तर में लुधिना, बटाला, अमृतसर, राजकोट, सूरत, बड़ौदा, मोरवी और पश्चिम में तिरुपुर, नामक्कल, करूर, शिवकाशी और तुतुकुडी की यात्रा करने में उन्हें अगले कई वर्षों तक अध्ययन करना पड़ा। इस अध्ययन में आगरा और कानपुर का दलित प्रधान चर्मोद्योग समूह भी शामिल था। इन औद्योगिक समूहों जिसमें 10000 से अधिक संख्या में कारीगर-समूह शामिल हैं, का भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद में 50% से अधिक तथा विनिर्माण और निर्यात में 60% योगदान है।
आनुभविक अध्ययन से गैर-कॉर्पोरेट अर्थव्यवस्था के चार पहलुओं का पता चला, जिसके बारे में उस समय तक बहुत कम ज्ञात था। पहला, जाति और उद्यमिता के बीच गहरा संबंध है। दूसरा, इसके परिणामस्वरूप सामुदायिक प्रतिस्पर्धा हुई, जिससे उद्यमिता का विकास हुआ। तीसरा, जातियों ने पूंजी जुटाई और उसे परिचालित किया तथा आपस में सूचना का आदान-प्रदान किया। चौथा, एक समूह में जाति द्वारा निर्मित संपत्ति को अन्य जातियों के साथ तुरंत साझा किया गया, जो बहुत सारे समूहों से स्पष्ट है। अध्ययन से पता चला कि भारत इतना जटिल, विशाल और विविधतापूर्ण देश है कि इसकी विविधता को समझे बिना, इसके लिए एक सामान्य नीति नहीं बनाई जा सकती है।
अध्ययन के बहुत सारे निष्कर्षों का बाद में विश्व बैंक द्वारा अपने विश्व विकास रिपोर्ट में समर्थन किया गया। गुरूमूर्ति के नेतृत्व वाले अध्ययन दल ने उद्यमिता और कारोबार के विकास एवं प्रभावपूर्ण वृद्धि के संबंध का पता लगाया। उक्त अध्ययन में विकास के प्रमुख प्रेरक के तौर पर सामाजिक पूंजी पर ध्यान दिया गया – इस विचार को बाद में फ्रांसिस फुकुयामा के लेखन में उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ट्रस्ट में अभिव्यक्त किया गया। बाद में ऐसे तथा समान विषयों पर बहुत सारी पुस्तकें लिखी गईं।
उक्त अध्ययन से बचत व परिवार-प्रेरित उद्यमिता के वित्तपोषण में पारंपरिक परिवार की और महिलाओं की भूमिका का भी पता चला। इससे श्री गुरुमूर्ति की राय पारंपरिक अर्थशास्त्रियों की राय से भिन्न हो गई, जिन्होंने पाया कि पारंपरिक अर्थशास्त्रियों की धारणा भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनकी बुनियादी समझ की अपेक्षा सिद्धांतों में ज्यादा गहरी है।
पत्रकारिता और सक्रियता
पिछले तीन दशकों से श्री गुरुमूर्ति को अपने अन्वेषणात्मक लेखन के लिए पत्रकार के रूप में उच्च सम्मान प्राप्त है। उन्होंने तभी से उच्च स्थानों पर व्याप्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध निरंतर अभियान चलाया है। वे राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर विशेष रूप से अर्थशास्त्र के क्षेत्र में भारत में एक प्रभावशाली अभिमत निर्माता रहे हैं। वे अभी प्रसिद्ध और प्रभावशाली सामाजिक-राजनीतिक साप्ताहिक तमिल पत्रिका तुगलक के संपादक हैं।
मीडिया रेटिंग
श्री गुरुमूर्ति को मीडिया द्वारा 1990 से अब तक निरंतर प्रभावशाली पाया गया। द बिज़नेस बैरन पत्रिका ने श्री गुरुमूर्ति के अर्थशास्त्र, वित्त और लेखा संबंधी ज्ञान को ‘आउटस्टैंडिंग’ दर्जा प्रदान किया है। उन्हें 1990 में भारत के 50 सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों के बीच [जेंटलमैन मैगजी़न]; 2004 में 8वें सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में [बिज़नेस बैरन पत्रिका]; 2005 में 17वें सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में [इंडिया टुडे पत्रिका]; 2015 में 50वें सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में [इंडिया टुडे]; 2016 में 25वें सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में [इंडिया टुडे] और 2017 में 30वें सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में [इंडिया टुडे] स्थान दिया गया। |