मास्टर निदेशों

मास्टर निदेश -अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) निदेश, 2016

भारिबैं/बैंविवि/2015-16/18
डीबीआर.एएमएल.बीसी.सं.81/14.01.001/2015-16

दिनांक- 25 फरवरी 2016
(दिनांक 8 दिसंबर 2016 तक संशोधित)
(दिनांक 8 जुलाई 2016 तक संशोधित)

मास्टर निदेश -अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) निदेश, 2016

धनशोधन निवारण अधिनियम, 2002 और धनशोधन नि‍वारण (अभि‍लेखों का रखरखाव) नि‍यम, 2005 के प्रावधानों के अनुसार विनियमित संस्थाओं (आरई) से अपेक्षित है कि वे खाता आधारित या किसी अन्य प्रकार का लेनदेन करते समय कतिपय ग्राहक पहचान प्रक्रियाओं का पालन करें। तदनुसार, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 और बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (जैसा कि सहकारी समितियों पर लागू है), 1949 की धारा 35ए के साथ पठित इसी अधिनियम की धारा 56 और धनशोधन नि‍वारण (अभि‍लेखों का रखरखाव) नि‍यम, 2005 के नियम 9(14) के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक, इस बात से संतुष्ट होने पर कि ऐसा करना जनहित में आवश्यक और समीचीन है, नीचे दिए गए निदेश जारी करता है।

अध्याय- I
प्रस्तावना

1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ

(क) इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक (अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी)) निदेश, 2016 कहा जाएगा।

(ख) ये निदेश उसी दिन से लागू होंगे, जिस दिन इन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा जाएगा।

2. प्रयोज्यता

(क) इन निदेशों के प्रावधान, जब तक कि अन्यथा विनिर्दिष्ट न किया गया हो, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित सभी संस्थाओं, खासतौर से नीचे मद सं. 3(ख)(xiii) में पारिभाषित संस्थाओं पर लागू होंगे।

(ख) ये निदेश विनियमित संस्थाओं (आरई) की सभी विदेश स्थित शाखाओं और बहुलांश धारित अनुषंगियों पर भी उस सीमा तक लागू होंगे, जहां तक वे मेजबान देश के स्थानीय क़ानूनों से विसंगत न हों, बशर्ते कि :

(i) जहां स्थानीय कानून और विनियम इन निदेशों के कार्यान्वयन का निषेध करते हों, वहाँ इसकी सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक को दी जाए।

(ii) यदि भारतीय रिज़र्व बैंक और मेजबान देश के विनियामकों द्वारा निर्दिष्ट केवाईसी/ एएमएल मानकों में कोई अंतर हो तो विनियमित संस्थाओं की शाखाओं/ विदेशी अनुषंगियों को दोनों में से ज्यादा सख्त विनियम अपनाने होंगे। विदेश में निगमित बैंकों की शाखाओं/ अनुषंगियों को दोनों, यानि कि, भारतीय रिज़र्व बैंक और उनके मेजबान देश के विनियामकों द्वारा विनिर्दिष्ट मानकों में से ज्यादा सख्त विनियम अपनाने होंगे।

बशर्ते कि यह नियम अध्याय VI की धारा 23 में बताए गए “छोटे खातों” पर लागू नहीं होगा।

3. परिभाषाएं

जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, इन निदेशों में दिए गए शब्दों के अर्थ वही होंगे, जो नीचे दिए गए हैं :

(क) धनशोधन नि‍वारण अधि‍नि‍यम (पीएमएलए), 2002 और धनशोधन नि‍वारण (अभिलेखों का रख रखाव) नि‍यम, 2005 में सम्मिलित शब्दों के दिए गए अर्थ :

i. ‘अधिनियम” और “नियम” का आशय है क्रमशः धनशोधन नि‍वारण अधि‍नि‍यम (पीएमएलए), 2002 और धनशोधन नि‍वारण (अभिलेखों का रख रखाव) नि‍यम, 2005 और उनमें किए गए संशोधन।

ii. हिताधिकारी स्वामी (बीओ)

क. जहां ग्राहक कोई कंपनी है, वहां हिताधिकारी स्वामी वह नैसर्गिक व्यक्ति है, जो अकेले या किसी के साथ मिलकर, या एक अथवा एकाधिक विधिक संस्था के जरिए कार्य करता है एवं जिसके पास नियंत्रक स्वामित्व हैं या जो किसी और माध्यम से नियंत्रण रखता है।

स्पष्टीकरण - इस उपखंड के प्रयोजन के लिए

1. “नियंत्रणकारी स्वामित्व हित’’ का अर्थ है कंपनी के 25 प्रतिशत से अधिक शेयर या पूंजी या लाभ का स्वामित्व या हकदारी।

2. “नियंत्रण” शब्द में शेयरधारिता या प्रबंधन अधिकार या शेयरहोल्डर समझौते या वोटिंग समझौते के कारण प्राप्त अधिकार के तहत अधिकांश निदेशकों की नियुक्ति या प्रबंधन का नियंत्रण या नीति निर्णय लेना सम्मिलित है।

ख. जहां ग्राहक कोई भागीदारी फ़र्म है, वहां हिताधिकारी स्वामी वह/वे नैसर्गिक व्यक्ति है/हैं, जो अकेले या किसी के साथ मिलकर, या एक अथवा एकाधिक विधिक संस्था के जरिए, भागीदारी फार्म की पूंजी या लाभ में से 15 प्रतिशत से ज्यादा का स्वामित्व या हकदारी रखते हों।

ग. जहां ग्राहक कोई अनिगमित संस्था या व्यक्तियों का निकाय है, वहां हिताधिकारी स्वामी वह/वे नैसर्गिक व्यक्ति है/हैं, जो अकेले या किसी के साथ मिलकर, या एक अथवा एकाधिक विधिक संस्था के जरिए, अनिगमित संस्था या व्यक्तियों के निकाय की संपत्ति या पूंजी या लाभ में से 15 प्रतिशत से ज्यादा का स्वामित्व या हकदारी रखते हों।

स्पष्टीकरण: “व्यक्तियों के निकाय” में सोसाइटी शामिल हैं। जब उपर्युक्त मद (क), (ख) या (ग) के अंतर्गत किसी नैसर्गिक व्यक्ति की पहचान न की जा सकती हो, तब हिताधिकारी स्वामी वह नैसर्गिक व्यक्ति होगा जो वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारी के पद को धारण किए हो।

घ. जहां ग्राहक कोई न्यास है, वहां हिताधिकारी स्वामी/स्वामियों की पहचान में ट्रस्ट निर्माता, ट्रस्टी, न्यास में 15% या उससे अधिक के लाभार्थी और कोई अन्य नैसर्गिक व्यक्ति जो किसी नियंत्रण शृंखला या स्वामित्व द्वारा न्यास पर अंतिम प्रभावी नियंत्रण रखता है, की पहचान को शामिल किया जाएगा।

iii. “सेंट्रल केवाईसी रिकॉर्ड्स रजिस्ट्री” (सीकेवाईसीआर) का आशय उक्त “नियम” के नियम 2(1)(अअ) के अंतर्गत यथा पारिभाषित (सीकेवाईसीआर) संस्था से है, जो किसी ग्राहक से केवाईसी रिकॉर्ड्स को डिजिटल रूप में प्राप्त, भंडारित तथा सुरक्षित रखती है और उपलब्ध कराती है।

iv. “पदनामित निदेशक” का आशय विनियमित संस्था द्वारा पीएमएल अधिनियम के अध्‍याय 4 और नियम के अधीन अपेक्षित समस्‍त प्रतिबद्धताओं का समग्र अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए नामित व्‍यक्ति से है और इनमें निम्‍नलिखित सम्मिलित हैं –

a. यदि रिपोर्ट करने वाली विनियमित संस्था कोई कंपनी है तो प्रबंध निदेशक या निदेशक बोर्ड द्वारा सम्यक रूप से प्राधिकृत पूर्णकालिक निदेशक;;

b. प्रबंध भागीदार यदि रिपोर्ट करने वाली विनियमित संस्था भागीदारी फर्म है;

c. यदि रिपोर्ट करने वाली विनियमित संस्था कोई स्‍वत्‍वधारित प्रतिष्ठान है तो स्‍वत्‍वधारी;

d. यदि रिपोर्ट करने वाली विनियमित संस्था कोई न्‍यास है तो प्रबंध न्‍यासी;

e. यदि विनियमित संस्था अनिगमित संगठन अथवा व्यक्तियों का निकाय हो तो यथास्थिति कोई व्‍यक्ति या व्‍यष्टि (Individual) जो विनियमित संस्था का नियंत्रण और कार्यों का प्रबंधन करता हो, और

f. सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के संबंध में ऐसा व्‍यक्ति जो वरिष्ठ प्रबंधन या समतुल्य रूप में “पदनामित निदेशक” के रूप में पदनामित हों।

स्‍पष्‍टीकरण - इस खंड के प्रयोजन के लिए 'प्रबंध निदेशक' और 'पूर्णकालिक निदेशक' शब्दों के वही अर्थ होंगे जो कंपनी अधिनियम, 2013 में दिया गया है।

v. 'गैर लाभ अर्जक संगठन' (NPO) का अभिप्राय उस संस्था अथवा संगठन से है जो समितियां पंजीयन अधिनियम, 1860 अथवा उसी प्रकार के राज्य विधि के अंतर्गत ट्रस्ट अथवा समिति के रूप में पंजीकृत हो अथवा कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के अंतर्गत पंजीकृत कोई कंपनी हो।

vi. 'आधिकारिक रूप से वैध दस्तावेज़' (OVD) का अभिप्राय पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र, राज्य सरकार के किसी अधिकारी द्वारा विधिवत हस्ताक्षरित नरेगा (NREGA) के तहत जारी जॉब कार्ड, UIDAI द्वारा जारी पत्र(कार्ड) जिसमें नाम, पता और आधार संख्या दी गई हो।

स्पष्टीकरण: ग्राहक अपनी पहचान एवम् पते के साक्ष्य के रूप में उल्लिखित छह आधिकारिक रूप से वैध दस्तावेजों में से कोई भी एक दस्तावेज़ अपनी इच्छानुसार प्रस्तुत कर सकता है।

बशर्ते कि जहां ग्राहक की पहचान के सत्यापन के लिए ' सरलीकृत उपाय' लागू किए गए हैं, वहाँ निम्नलिखित दस्तावेजों को 'आधिकारिक रूप से वैध दस्तावेज़' (OVD) माना जाएगा :

1. केंद्र/राज्य सरकार के विभागों, सांविधिक/ विनियामक प्राधिकरणों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं द्वारा आवेदक के फोटोग्राफ सहित जारी पहचान पत्र;

2. किसी राजपत्रित अधिकारी द्वारा जारी पत्र जिसमें व्यक्ति का विधिवत अधिप्रमाणित फोटोग्राफ लगा हो ।

बशर्ते यह भी कि जहां पते के सत्यापन हेतु ' सरलीकृत उपाय' का उपयोग, सीमित प्रयोजन के लिए, किया जाता है, वहाँ निम्नलिखित अतिरिक्त दस्तावेजों को 'आधिकारिक रूप से वैध दस्तावेज़' (OVD) माना जाएगा :

1. किसी सेवा प्रदाता(बिजली, टेलीफोन, पोस्ट-पेड मोबाइल फोन, पाईप्ड गैस, पानी (Water) का बिल) द्वारा जारी बिल जो दो महीने से अधिक पुराना न हो;

2. संपत्ति अथवा म्युनिसिपल कर रसीद;

3. बैंक खाता अथवा पोस्ट ऑफिस बचत बैंक खाता विवरण;

4. सरकारी विभागों अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा सेवानिवृत कर्मचारियों को जारी पेंशन अथवा परिवार पेंशन पत्र, यदि उसमें पता अंकित हो;

5. नियोक्ता अर्थात राज्य अथवा केंद्र सरकार के विभागों, सांविधिक अथवा विनियामक निकायों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, अनुसूचित वाणज्यिक बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा जारी आवास आबंटन पत्र। इसी प्रकार, ऐसे नियोक्ता द्वारा जारी आधिकारिक आवास आबंटित किए जाने का लीव एवं लाईसेंस करार; और

6. विदेशी क्षेत्राधिकारों के सरकारी विभागों अथवा भारत में विदेशी दूतावासों अथवा मिशन द्वारा जारी दस्तावेज़/पत्र ।

vii व्यक्ति का आशय वही है जो अधिनियम में अभिहित है और इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

a. कोई व्यक्ति,

b. अविभक्त हिन्दू परिवार,

c. कोई कंपनी

d. फ़र्म

e. व्यक्तियों का संघ या व्यक्तियों का निकाय, चाहे निगमित हो अथवा नही,

f. प्रत्येक कृत्रिम विधिक व्यक्ति, जो उपर्युक्त (क से ङ) व्यक्तियों में से कोई नहीं है, और

g. कोई एजेंसी, कार्यालय या शाखा जो उपर्युक्त (क से च) में उल्लिखित व्यक्तियों में से किसी के स्वामित्व या नियंत्रण में है।

viii “प्रधान अधिकारी” से आशय है विनियमित संस्था द्वारा नामित वह अधिकारी जो उक्त “नियम” के नियम 8 के अंतर्गत सूचना देने के लिए जिम्मेदार है।

ix “संदिग्ध लेनदेन” का आशय उस लेनदेन से है जिसे नीचे पारिभाषित किया गया है जिसमें ''लेनदेन” (संव्यवहार) का प्रयास भी शामिल हैं, भले ही वह नकदी के साथ किया गया हो अथवा नहीं, जो किसी सद्भावपूर्वक कार्य कर रहे व्यक्ति के लिए ;

a. संदेह निर्माण करने के लिए पर्याप्त है, कि उसमें अधिनियम की अनुसूची में विनिर्दिष्ट अपराधों से अर्जित हुई आगम राशि शामिल है जिसका मूल्यकुछ भी क्यों न हो; या

b. असामान्य या अनुचित रूप से जटिल परिस्थितियों में किए गए प्रतीत होते हों; या

c. जिनका कोई सुस्पष्ट आर्थिक प्रयोजन या वास्तविक कारण प्रतीत न होता हो;

d. जहां यह संदेह करने का कारण हो कि इसमें आतंकवाद का वित्तपोषण करने वाले क्रियाकलाप शामिल हैं।

स्पष्टीकरण: आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों के वित्तपोषण से जुड़े लेनदेन जिनमें वे लेनदेन शामिल हैं जिनकी निधियों का संबंध आतंकवाद या आतंकी गतिविधियों से होने का संदेह हो या किसी आतंकी अथवा आतंकी संगठन या आतंकवाद को वित्तपोषित करने या वित्तपोषण का प्रयास कर रहे व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त होने का संदेह हो।

x. ‘छोटे(लघु) खाते’ का तात्पर्य ऐसे बचत खाते से है जिसमें :

a. एक वित्तीय वर्ष के दौरान समग्र जमाराशि‍ (क्रेडिट) एक लाख रुपए से अधिक न हो;

b. किसी महीने में सभी आहरणों और अंतरणों की कुल राशि‍ दस हजार रुपये से अधिक न हो; तथा

c. किसी भी समय खाते में जमा शेष पचास हजार रुपये से अधिक न हो ।

ix. “लेनदेन” का आशय है कोई खरीद, बिक्री, ऋण, गिरवी रखना, उपहार देना, अंतरण करना या सुपुर्दगी करना अथवा इससे संबन्धित व्यस्थाएँ करना और इसमें निम्नलिखित शामिल हैं :

क. खाता खोलना;

ख. किसी भी मुद्रा में नकद या चेक द्वारा, पेमेंट ऑर्डर या किसी अन्य लिखत द्वारा या इलेक्ट्रोनिक या अन्य अमूर्त साधन द्वारा निधियों को जमा करना, आहरण, विनिमय या अंतरित करना;

ग. सुरक्षित जमा बॉक्स या सुरक्षित जमा के किसी भी रूप का प्रयोग करना;

घ. कोई भी प्रत्ययी संबंध आरंभ करना;

ङ. किसी संविधानात्मक या वैधानिक (विधिक) दायित्व के लिए आंशिक या पूर्ण रूप में कोई भुगतान करना या भुगतान प्राप्त करना;

च. कोई विधिक व्यक्ति (संस्‍था) बनाना या विधिक व्यवस्था स्थापित करना।

(ख) इन निदेशों में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, शब्दों का अर्थ वही होगा, जो नीचे दिया गया है:

i. “सामान्य रिपोर्टिंग मानक” (सीआरएस) से तात्पर्य है कर मामलों में आपसी प्रशासनिक सहयोग कन्‍वेंशन में हस्‍ताक्षरित बहुपक्षीय करार के अनुच्छेद 6 के आधार पर स्वतः सूचना के विनिमय के कार्यान्वयन के लिए निर्धारित रिपोर्टिंग मानक।

ii. ‘ग्राहक' से तात्पर्य किसी ऐसे व्यक्ति‍ से है जो किसी विनियमित संस्था के साथ कि‍सी वि‍त्तीय लेनदेन या गतिविधि में शामिल है तथा इसमें ऐसा व्यक्ति भी शामिल है जिसकी ओर से ऐसे लेनदेन अथवा गतिविधि में कोई व्यक्ति भाग ले रहा है।

iii. “वॉक इन ग्राहक” अर्थात नवागंतुक ग्राहक से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जिसका विनियमित संस्था से खाता आधारित संबंध नहीं है लेकिन वह विनियमित संस्था से लेनदेन करता है।

iv. 'ग्राहक संबंधी समुचित सावधानी'(CDD) का अभिप्राय ग्राहक और हिताधिकारी स्वामी की, पहचान और पते के प्रमाण के रूप में आधिकारिक वैध दस्तावेजों के जरिए सत्यापन करना।

v. ग्राहक पहचान का अभिप्राय 'ग्राहक संबंधी समुचित सावधानी'(CDD) प्रक्रिया को पूरा करना।

vi. 'FATCA' का अभिप्राय संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के विदेशी खाता कर अनुपालन अधिनियम से है जो अन्य बातों के साथ साथ यह अपेक्षा करता है कि विदेशी वित्तीय संस्थाएं अमेरिकी करदाताओं द्वारा रखे गए वित्तीय खातों अथवा ऐसी विदेशी संस्थाओं जिनमें अमेरिकी करदाताओं के भारी स्वामित्व हित हों, को रिपोर्ट करें।

vii. 'IGA' का अभिप्राय भारत सरकार और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच के अंतरसरकारी करार से है जो अंतरराष्ट्रीय कर अनुपालन और अमेरिका के 'FATCA' 'को लागू करने में सुधार लाने से है ।

viii. 'KYC टेंपलेट्स' का अभिप्राय उन टेंपलेट्स से है जो व्यक्तियों और विधिक संस्थाओं के लिए CKYCR को केवाईसी डेटा समेकन और प्रस्तुतीकरण से संबंधित हैं।

ix. अप्रत्यक्ष (Non Face to face) ग्राहक का अभिप्राय ऐसे ग्राहक से है जो विनियमित संस्था की शाखा/कार्यालयों पर आए बिना और विनियमित संस्थाओं के अधिकारियों से मिले बिना खाते खोलता है ।

x. 'सतत समुचित सावधानी' का अभिप्राय उसके खातों में होने वाले लेनदेनों की नियमित निगरानी करने से है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे ग्राहक की प्रोफाइल और निधियों के स्रोतों के अनुरूप हैं।

xi. 'आवधिक अद्यतनीकरण' का अभिप्राय ग्राहक संबंधी समुचित सावधानी(CDD) प्रक्रिया के अंतर्गत जुटाए गए दस्तावेज़, आंकड़े अथवा सूचना को अद्यतन रखने और रिज़र्व बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि अंतरालों पर मौजूदा अभिलेखो की समीक्षा करने से है ।

xii. 'राजनैतिक रूप से जोखिम वाले व्यक्ति'(PEPs) ऐसे व्यक्ति हैं जिन्‍हें किसी दूसरे देश में प्रमुख लोक कार्य का दायित्व सौंपा गया है जैसे राज्यों/सरकारों के प्रमुख, वरिष्ठ राजनयिक, वरिष्ठ सरकारी/न्यायिक/सैनिक अधिकारी, राज्य स्वाधिकृत निगमों के वरिष्ठ कार्यपालक, महत्वपूर्ण राजनैतिक पार्टी के पदाधिकारी, आदि।

xiii. 'विनियमित संस्था'(REs) का अभिप्राय

क. सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक/ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक/लोकल एरिया बैंक/सभी प्राथमिक(शहरी) सहकारी बैंक/राज्य और मध्यवर्ती सहकारी बैंक तथा कोई अन्य संस्था जिसने बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 22 के अंतर्गत लाइसेंस प्राप्त किया हो, जिन्हें एक ग्रुप के रूप में बैंक कहा गया है

ख. अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं

ग. सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ, विविध गैर बैंकिंग कंपनियाँ और अवशिष्ट गैर बैंकिंग कंपनियाँ

घ. सभी भुगतान प्रणाली प्रदाता/सिस्टम सहभागी और प्री-पेड भुगतान लिखत जारी कर्ता

ड॰ विनियामक द्वारा विनियमित सभी प्राधिकृत व्यक्ति जिनमें धन अंतरण सेवा योजना के एजेंट शामिल हैं

xiv. 'सरलीकृत प्रक्रिया' का अभिप्राय उस प्रणाली से है जिसमें विनियमित संस्था द्वारा कम जोखिम वाले ग्राहकों से संबंधित समुचित सावधानी की प्रक्रिया का पालन किया जाता है और जिसके तहत उल्लिखित छह आधिकारिक रूप से वैध दस्तावेज़ नहीं होने एवं इन निदेशों की धारा 3(क)(vi) के दो परंतुकों के अंतर्गत विनिर्दिष्ट वैकल्पिक दस्तावेज़ प्रस्तुत किए जा सकते हैं ।

xv. 'शेल बैंक' का अभिप्राय ऐसे बैंक से है जो उस देश में निगमित है जिसमें उसकी भौतिक उपस्थिति नहीं है और किसी विनियमित वित्तीय समूह से संबद्ध नहीं है।

xvi. 'वायर ट्रान्सफर' का अभिप्राय किसी बैंक के किसी लाभार्थी के लिए धन उपलब्ध कराने के दृष्टिकोण से इलेक्ट्रानिक माध्यम से किसी बैंक के जरिए जारीकर्ता व्यक्ति (प्राकृतिक एवं विधिक) की ओर से सीधे अथवा ट्रान्सफर शृंखला के जरिए लेन देन पूरा करना ।

xvii. 'घरेलू और सीमा पार वायर ट्रान्सफर': जब आरंभक (Originator) बैंक और लाभार्थी बैंक दोनों उसी देश में स्थित एक ही व्यक्ति हों अथवा भिन्न व्यक्ति, ऐसे लेनदेन को 'घरेलू वायर ट्रान्सफर' कहा जाता है और यदि आरंभक बैंक और लाभार्थी बैंक भिन्न देश में स्थित हों तो ऐसे लेनदेन को 'सीमापार वायर ट्रान्सफर' कहा जाता है ।

(ग) सभी अन्य अभिव्यक्तियाँ जो यहाँ परिभाषित नहीं हैं उनके वही अर्थ होंगे जो उन्हें बैंककारी विनियमन अधिनियम अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम अथवा धनशोधन निवारण अधिनियम और धनशोधन निवारण (अभिलेखों का रखरखाव) नियम और किसी सांविधिक संशोधन अथवा इनके पुनः अधिनियमन अथवा वाणिज्यिक शब्‍दों/मुहावरों में, जैसा भी मामला हों, में दिए गए हैं ।

अध्याय- II
सामान्य

4. विनियमित संस्था की “अपने ग्राहक को जानिए” (केवाईसी) संबंधी एक नीति होगी जो विनियमित संस्था के निदेशक बोर्ड या बोर्ड की कोई और समिति, जिसे एतदर्थ शक्तियां प्रत्यायोजित की गई हों, द्वारा विधिवत अनुमोदित हो।

5. केवाईसी नीति में निम्नलिखित चार मुख्य तत्व शामिल होंगे:

(क) ग्राहक स्वीकारण नीति‍; (सीएपी)
(ख) जोखिम प्रबंधन;
(ग) ग्राहक पहचान क्रि‍यावि‍धि‍ (सीआईपी)और
(घ) लेनदेनों की मॉनीटरिंग।

6. पदनामित निदेशक

(क) बोर्ड द्वारा एक ‘पदनामित निदेशक’ नामित किया जाएगा।

(ख) ‘पदनामित निदेशक’ का नाम, पदनाम और पता भारतीय वित्तीय आसूचना एकक (एफआईयू-आइएनडी) को सूचित किया जाएगा।

(ग) किसी भी स्थिति में प्रधान अधिकारी को ‘पदनामित निदेशक’ के रूप में नामित नहीं किया जाएगा।

7. प्रधान अधिकारी

(क) प्रधान अधिकारी कानून/विनियमों की अपेक्षानुसार अनुपालन सुनिश्चित करने, लेनदेन की निगरानी और सूचना साझा तथा उसकी रिपोर्टिंग करने के लिए जिम्मेदार होगा।

(ख) ‘प्रधान अधिकारी’ का नाम, पदनाम और पता भारतीय वित्तीय आसूचना एकक (एफआईयू-आइएनडी) को सूचित किया जाएगा।

8. केवाईसी नीति का अनुपालन

विनियमित संस्थाएं निम्नलिखित के द्वारा केवाईसी के अनुपालन को सुनिश्चित करेंगी:

(क) केवाईसी के अनुपालन के लिए “वरिष्ठ प्रबंध तंत्र” में कौन शामिल हैं, इसका विनिर्देशन करना।

(ख) नीतियों और प्रक्रियाओं के प्रभावी कार्यांवयन के लिए जिम्मेदारी आबंटित/तय करना।

(ग) अनुपालन कार्य में विनियमित संस्था की अपनी नीति‍यों तथा क्रि‍यावि‍धि‍यों का, जि‍नमें वि‍धि‍क तथा वि‍नि‍यामक अपेक्षाएं शामि‍ल हैं, स्वतंत्र मूल्यांकन करना।

(घ) समवर्ती/आंतरि‍क लेखा-परीक्षा प्रणाली द्वारा केवाईसी/एएमएल नीतियों और क्रि‍यावि‍धि‍यों के अनुपालन की जांच करना/सत्यापन करना।

(ङ) लेखा-परीक्षा समि‍ति‍ के समक्ष ति‍माही लेखापरीक्षा नोट और अनुपालन रिपोर्ट को प्रस्तुत करना ।

अध्याय – III
ग्राहक स्वीकरण नीति

9. विनियमित संस्थाएं ग्राहक स्वीकरण नीति बनाएँ।

10. ग्राहक स्वीकरण नीति में समाविष्ट सामान्य आयामों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, विनियमित संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि:

(क) छद्मनाम से या फर्जी /बेनामी नामों से कोई खाता न खोला जाए;

(ख) जि‍न मामलों में विनियमित संस्था ग्राहकों के संबंध में समुचि‍त सावधानी संबंधी उपाय या तो ग्राहक के असहयोग या ग्राहक द्वारा उपलब्ध कराये गए दस्तावेजों/सूचना की अवि‍श्वसनीयता के कारण लागू न कर पाए, उन मामलों में खाता न खोला जाए।

(ग) समुचित सावधानी उपायों का पालन किए बिना कोई लेनदेन या खाता आधारित संबंध स्‍था‍पित नहीं किया जाएगा।

(घ) खाता खोलने और आवधिक अद्यतनीकरण के दौरान केवाईसी के लिए मांगी गई अनिवार्य सूचना विनिर्दिष्ट की जाएगी।

(ङ) वैकल्पिक/अतिरिक्त सूचना खाता खोलने के बाद ग्राहक की स्पष्ट अनुमति से प्राप्त की जा सकती है।

(च) संयुक्त खाता खोलते समय सभी खाताधारियों के लिए समुचित सावधानी उपायों का पालन किया जाएगा।

(छ) जिन परिस्थितियों में किसी ग्राहक को किसी अन्य व्यक्ति/संस्था की ओर से कार्य करने की अनुमति है, उन्हें स्पष्ट रूप से बताया जाएगा।

(ज) यह सुनि‍श्चि‍त करने के लिए कि किसी ग्राहक की पहचान कि‍सी ऐसे व्यक्ति या संस्था से न मेल खाती हो जिसका नाम रिज़र्व बैंक द्वारा परिचालित किसी प्रतिबंधित सूची में शामिल हो, एक उपयुक्त प्रणाली लागू की जाए।

11. ग्राहक स्वीकरण नीति के परिणामस्वरूप सामान्य जनता, खासतौर से, सामाजिक और वित्तीय रूप से पिछड़े व्यक्तियों को बैंकिंग/वित्तीय सुविधाएं उपलब्ध/प्राप्‍त होने में अडचनें न आएं।

अध्याय – IV
जोखिम प्रबंधन

12. जोखिम प्रबंधन के लिए विनियमित संस्थाएं जोखिम आधारित रुख अपनाएंगी, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(क) ग्राहकों को विनियमित संस्थाओं के आकलन और जोखिम अनुमान के आधार पर कम, मध्यम और उच्च जोखिम वाले ग्राहकों की श्रेणी में वर्गीकृत किया जाएगा।

(ख) जोखिम वर्गीकरण ग्राहक की पहचान, उसकी सामाजि‍क /आर्थि‍क हैसि‍यत, कारोबारी गतिविधियों के स्वरूप, और ग्राहकों के कारोबार एवं स्थान आदि की जानकारी के आधार पर किया जाएगा। ग्राहक की पहचान पर विचार करते समय, ऑनलाइन अथवा जारीकर्ता प्राधिकरणों द्वारा दी जीने वाली अन्य सेवाओं के माध्यम से पहचान दस्तावेजों की पुष्टि करने की क्षमता भी ध्यान में ली जा सकती है।

बशर्ते कि अनुमानित जोखिम के आधार पर विभिन्न श्रेणियों के ग्राहकों से एकत्र की गई सूचना दखलंदाजी भरी न हो और केवाईसी नीति में निर्दिष्ट की गई हो।

स्पष्टीकरण: जोखिम आंकलन में एफ़एटीएफ़ सार्वजनिक वक्तव्य, भारतीय बैंक संघ (आईबीए) द्वारा केवाईसी/एएमएल पर जारी की गईं रिपोर्ट और दिशा-निर्देश नोट, रिज़र्व बैंक द्वारा सभी सहकारी बैंकों को जारी किए गए दिशानिर्देश नोट की सहायता ली जा सकती है।

अध्याय – V
ग्राहक पहचान क्रि‍यावि‍धि‍ (सीआईपी)

13. विनियमित संस्थाओं को निम्नलिखित स्थितियों में ग्राहकों की पहचान करनी होगी:

(क) ग्राहक के साथ कोई खाता आधारित संबंध शुरू करते समय।

(ख) किसी ऐसे व्यक्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा अंतरण करते समय, जो बैंक का खाताधारक न हो।

(ग) जब बैंक को स्वयं द्वारा प्राप्त किए गए ग्राहक पहचान डेटा की प्रामाणिकता या पर्याप्तता को लेकर कोई संदेह हो।

(घ) किसी तीसरी पार्टी के उत्पाद एजेंट के रूप में बेचते समय, स्वयं अपने उत्पाद बेचते समय, क्रेडिट कार्ड के बकाये का भुगतान करते समय और प्रीपेड/यात्रा कार्ड का विक्रय और रीलोडिंग तथा 50,000/- रूपए से अधिक का कोई भी अन्य उत्पाद बेचते समय।

(ङ) वॉक-इन ग्राहक अर्थात नवागंतुक ग्राहक द्वारा किए जाने वाले 50,000/- रूपए के समतुल्य या उससे अधिक राशि के, एकल या कई जुड़े हुए प्रतीत होनेवाले लेनदेन करते समय।

(च) जब किसी विनियमित संस्था के पास यह विश्वास करने का कारण मौजूद हो कि कोई ग्राहक (खाताधारी या नवागंतुक) किसी लेनदेन को इरादतन 50,000/- रूपए से कम के लेनदेनों की शृंखला में बदल रहा है।

14. खाता-आधारित संबंध आरंभ करने से पहले ग्राहकों की पहचान को निर्धारित करने और उसको सत्‍यापित करने के लिए विनियमित संस्थाएं तृतीय पक्ष द्वारा ग्राहकों के संबंध में किए गए समुचित सावधानी उपायों का सहारा लेने का विकल्प निम्‍नलिखित शर्तों के अधीन अपना सकती हैं:

(क) तृतीय पक्ष द्वारा ग्राहक के संबंध में समुचित सावधानी के तहत संकलित आवश्‍यक जानकारी तुरंत विनियमित संस्था द्वारा प्राप्‍त की जाए;

(ख) विनियमित संस्था स्‍वयं को संतुष्ट करने के लिए आवश्‍यक उपाय करे कि ग्राहक संबंधी पहचान डेटा और समुचित सावधानी से संबंधित/सुसंगत दस्तावेजों की प्रतियां तृतीय पक्ष से अनुरोध करने पर अविलंब प्राप्त हो जाएंगी;

(ग) तृतीय पक्ष विनियमित, पर्यवेक्षित हो, और उसे मानीटर किया जाता है और धनशोधन निवारण अधिनियम की अपेक्षाओं और दायित्वों को पूरा करने के अधीन ग्राहक संबंधी समुचित सावधानी और रिकार्ड-कीपिंग अपेक्षाओं के लिए उसने समुचित उपाए किए हैं;

(घ) तृतीय पक्ष उच्च जोखिम के रूप में वर्गीकृत देश या क्षेत्राधिकार में स्थित नहीं है;

(ङ) अंततः विनियमित संस्था ग्राहक से संबंधित समुचित सावधानी के लिए और यथाप्रयोज्य उच्चतर समुचित सावधानी उपाय करने के लिए उत्तरदायी होगी।

15. ग्राहक की पहचान करते समय, विनियमित संस्थाएं यह सुनिश्चित करेगीं कि:

(क) केवाईसी मानदंडों के अनुपालन से संबंधित निर्णय लेने के कार्य आउटसोर्स नहीं किए जाएंगे।

(ख) खाते खोलते समय परिचय नहीं मांगा जाएगा।

(ग) यदि केवाईसी के लिए ग्राहक के ओवीडी में पहचान का प्रमाण और पते का प्रमाण दोनों हों, तो ग्राहक से अतिरिक्त ओवीडी नहीं मांगा जाएगा।

(घ) यदि ग्राहक का वर्तमान पता आधिकारिक रूप से वैध दस्तावेज (ओवीडी) में दर्ज पते से भिन्न है तो भी उसे वर्तमान पते के लिए अलग प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं होगी। ऐसे मामलों में, विनियमित संस्था ग्राहक से ऐसे पते के लिए मात्र एक घोषणा लेगी जिस पर विनियमित संस्था द्वारा समस्त पत्राचार किए जाएंगे।

(ङ) स्थानीय पते का प्रमाण उपलब्ध न होने पर उसका सत्यापन बैंक द्वारा ‘सकारात्मक पुष्टि’ जैसे कि पत्र, चेक बुक, एटीएम कार्ड के प्राप्त होने की पावती; टेलीफोन पर बातचीत, ऐसे स्‍थान का मुआयना आदि से किया जा सकता है।

(च) यदि ‘पते के प्रमाण’ में दिए गए पते में कोई परिवर्तन होता है तो विनियमित संस्था यह सुनिश्चित करेगी कि पते का नया प्रमाण छह माह की अवधि के भीतर प्राप्त कर लिया जाता है।

अध्‍याय VI
ग्राहक के संबंध में समुचित सावधानी प्रक्रिया (सीडीडी)
भाग I – व्‍यक्तियों के मामले में सीडीडी प्रक्रिया

16. किसी व्यक्ति के साथ खाता आधारित संबंध स्‍थापित करते समय विनियमित संस्था संबंधित व्यक्ति से निम्‍नलिखित दस्‍तावेज प्राप्‍त करेगी:

(क) अध्‍याय-I की मद सं. 3 (ए) (vi) में उल्लिखित आधिकारिक वैध दस्‍तावेजों (ओवीडी) की एक प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त की जाए जिसमें ग्राहक की पहचान और पते के ब्‍योरे हों;

(ख) एक हाल ही में लिया गया फोटोग्राफ; और

(ग) कारोबार के स्वरूप अथवा वित्तीय हैसियत से संबंधित ऐसे अन्य दस्तावेज़ जो उसकी केवाईसी नीति में विनिर्दिष्‍ट किए गए हों।

बशर्ते कि खाता खोलने के उद्देश्‍य से ग्राहकों से इकठ्ठी की गई जानकारी गोपनीय रखी जाएगी और उसके ब्‍योरे प्रति विक्रय (क्रॉस सेलिंग) अथवा अन्य उद्देश्‍य से तब तक प्रकट नहीं किए जाएंगे, जब तक ग्राहक द्वारा प्रकटीकरण के लिए स्पष्ट अनुमति न हो।

स्‍पष्‍टीकरण: ग्राहक छह ओवीडी में से किसी एक को पहचान और आवासीय पते के प्रमाण के लिए प्रस्‍तुत कर सकेगा।

17. यूनिक आइडेंटिफिकेशन एथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) की ई-केवाईसी सेवा पीएमएल नियमों के अंतर्गत केवाईसी सत्‍यापन के लिए वैध प्रक्रिया के रूप में स्‍वीकार की जाएगी, यथा

(क) यूआईडीएआई द्वारा उपलब्‍ध कराई गई जनसांख्यिकीय सूचना और फोटोग्राफ, ई-केवाईसी प्रक्रिया के अंतर्गत आधिकारिक वैध दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार किए जाएंगे, तथा

(ख) यूआईडीएआई से विनियमित संस्था को इलैक्ट्रॉनिक रूप में अंतरित केवाईसी डेटा को उसके द्वारा केवाईसी सत्यापन के लिए वैध दस्तावेज़ के रूप में स्‍वीकार किया जाएगा।

बशर्ते कि विनियमित संस्था/कारोबार प्रतिनिधि (बीसी)/कारोबार सुविधा प्रदानकर्ता (बीएफ) संबंधित व्यक्ति से इस आशय का प्राधिकार प्राप्‍त करें जिसमें उसने यूआईडीएआई को अपने पहचान/ पते के बारे में जानकारी बायोमेट्रिक प्रमाणन द्वारा जारी करने के लिए स्‍पष्‍ट सहमति दी हो।

बशर्ते यह भी कि विनियमित संस्था ग्राहकों की ऑन-बोर्डिंग के लिए वन टाइम पिन (ओटीपी) आधारित ई-केवाईसी प्रक्रिया का विकल्प प्रदान करे।

उक्त परन्तुक के अनुसार, अर्थात् ओटीपी आधारित ई-केवाईसी का प्रयोग करते हुए खोले गए खाते निम्नलिखित शर्तें के अधीन हैं :ओटीपी के माध्यम से अधिप्रमाणन करने के लिए ग्राहक से विनिर्दिष्ट सहमति ली जानी चाहिए।

  1. ग्राहक के सभी जमा खातों का समग्र जमाशेष एक लाख रुपये से अधिक नहीं होगा।

  2. किसी वित्त वर्ष में सभी जमाओं की समग्र राशि, सभी जमाओं को मिलाकर, दो लाख रुपये से अधिक नहीं होगी।

  3. उधार खातों के संबंध में, केवल सावधि ऋणों की मंजूरी दी जाएगी। मंजूर की गई सावधि ऋणों की समग्र राशि एक वर्ष में साठ हजार रुपये से अधिक नहीं होगी।

  4. ओटीपी आधारित ई-केवाईसी के प्रयोग से खोले गए खातों, जमा और उधार दोनों, को उस एक वर्ष से अधिक समय के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी जिसके भीतर में धारा 16 में उपबंधित किए गए अनुसार अथवा प्रमुख निदेश की धारा 17 के प्रथम परन्तुक के अनुसार ग्राहक उचित सावधानी (सीडीडी) प्रक्रिया पूरी की जानी है। यदि सीडीडी प्रक्रिया जमा खातों के संबंध में एक वर्ष के भीतर पूरी नहीं की जाती है तो उसे तुरंत बंद किया जाएगा। उधार खातों के संबंध में, और अधिक नामे की अनुमति नहीं दी जाएगी।

  5. ग्राहक से इस प्रकार की घोषणा प्राप्त की जाएगी कि उसी विनियमित संस्था या किसी अन्य विनियमित संस्था में ओटीपी आधारित केवाईसी के प्रयोग से कोई अन्य खाता नहीं खोला गया है अथवा खोला जाएगा। इसके अतिरिक्त, सीकेवाईसीआर के लिए केवाईसी सूचना अपलोड करते समय, विनियमित संस्थाएं स्पष्ट रूप से यह बताएंगी कि ऐसे खाते ओटीपी आधारित ई-केवाईसी के प्रयोग से खोले गए हैं और अन्य विनियमित संस्थाएं ओटीपी आधारित ई-केवाईसी से खाले गए खातों की केवाईसी सूचना पर आधारित खाते नहीं खोलेंगी।

  6. विनियमित संस्थाएं उपर्युक्त शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए किसी गैर-अनुपालन/उल्लंघन के मामले में चेतावनी (अलर्ट) उत्पन्न करने की प्रणाली सहित सख्त निगरानी क्रियाविधि बनाएंगी।

18. यदि भावी ग्राहक केवल अपना आधार नंबर जानता हो अथवा वह किसी अन्‍य स्रोत से डाउनलोड किए गए ई-आधार की प्रति लेकर आए तो विनियमित संस्थाएं यूआईडीएआई पोर्टल से भावी ग्राहक का ई-आधार पत्र सीधे ही प्रिंट/डाउनलोड करेंगी अथवा ऊपर उल्लिखित ई-केवाईसी प्रक्रिया अपनाएंगी, बशर्ते कि भावी ग्राहक विनियमित संस्था की शाखा/कार्यालय में स्वयं उपस्थित हो।

19. व्यक्ति के नाम में विवाह अथवा अन्य कारणों से यदि परिवर्तन हुआ हो तो ऐसी व्यक्ति के साथ खाता आधारित संबंध स्थापित करते समय अथवा मौजूदा ग्राहक के संबंध में आवधिक अद्यतनीकरण के समय उनसे राज्य सरकार द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र अथवा गज़ट अधिसूचना, जिसमें नाम में परिवर्तन प्रकाशित किया गया हो, की प्रतिलिपि आधिकारिक रूप से वैध दस्तावेज़ की प्रमाणित प्रति के साथ प्राप्त की जाएगी।

20. यदि कोई व्‍यक्ति खाता खोलना चाहता हो और उसके पास ‘पते के प्रमाण’ के रूप में ओवीडी न हो, तो ऐसा व्यक्ति ऐसे रिश्तेदार जिनके साथ वह रह रहा हो, उनकी ओवीडी ‘पते के प्रमाण' के रूप में प्रस्‍तुत कर सकेगा। (रिश्तेदार की परिभाषा (कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 की उप-धारा 77 में यथा उपबंधित और कंपनी (परिभाषाओं के ब्‍योरे संबंधी विनिर्देशन) नियमावली, 2014 के नियम 4 के साथ पठित)। ।

स्‍पष्‍टीकरण: उस रिश्‍तेदार से एक घोषणापत्र प्राप्‍त कर लिया जाए कि संबंधित व्‍यक्ति उनके रिश्‍तेदार हैं और उनके साथ रह रहे हैं।

21. ऐसे मामलों में, जहां कोई ग्राहक ‘कम जोखिम’ की श्रेणी में आता हो, यदि किसी कारण से - जिसे विनियमित संस्था द्वारा वास्तविक समझती हो, - आवश्‍यक दस्‍तावेजों को पूरा करने में असमर्थता व्यक्त करे, और जहां कारोबार की सामान्‍य प्रक्रिया को बाधित करना आवश्‍यक नही है, वहां विनियमित संस्था, अपने विवेक पर, खाता खोलने की प्रक्रिया के पूर्ण होने की तारीख से छह महीने के भीतर ग्राहक की पहचान का सत्‍यापन कार्य पूरा कर पाएगी।

22. ऐसे ग्राहक जिन्‍हें ‘कम जोखिम’ की श्रेणी में रखा गया हो, अध्‍याय-I के खंड 3 (ए) (vi) में उल्लिखित ओवीडी में से कोई भी दस्‍तावेज प्रस्‍तुत करने में असमर्थ हो और जहॉं ‘सरलीकृत क्रियाविधि’ लागू हो, विनियमित संस्था उप-नियम 2(1)(डी) के दो परंतुकों के तहत सूचीबद्ध दस्‍तावेजों के दो अतिरिक्‍त सेटों में से प्रत्येकी एक दस्‍तावेज स्‍वीकार कर सकती है।

स्‍प्‍ष्‍टीकरण: आवधिक समीक्षा के दौरान, यदि ‘कम जोखिम’ श्रेणी के रूप में वर्गीकृत ग्राहक जिसके लिए सरलीकृत क्रियाविधि लागू की गई है, यदि उसे ‘मध्यम’’ अथवा ’उच्‍च‘ जोखिम श्रेणी में पुनर्वर्गीकृत किया जाता है तो विनियमित संस्था ग्राहक की पहचान और पते के प्रमाण के लिए इन निर्देशों की धारा 3(ए)(vi) में सूचीबद्ध छह ओवीडी में से एक दस्‍तावेज तत्‍काल प्राप्‍त करेगी। यदि ऐसा कोई ग्राहक ऐसी ओवीडी प्रस्‍तुत करने में असफल रहता है तो विनियमित संस्था इन निर्देशों की धारा 39 में किए गए उल्लेखानुसार कार्रवाई प्रारंभ कर सकेगी।

23. यदि किसी व्यक्ति (ग्राहक) के पास सरलीकृत क्रियाविधि (ऊपर खंड 22 में वर्णित) के संबंध में लागू दस्‍तावेजों में कोई भी दस्‍तावेज न हो और वह बैंक खाता खोलना चाहता हो, तो बैंक ‘लघु खाता’ खोल सकता है, बशर्ते कि:

(क) बैंक ग्राहक से स्‍व-प्रमाणित फोटोग्राफ की एक प्रति प्राप्‍त करें।

(ख) बैंक का पदनामित अधिकारी अपने हस्‍ताक्षर के तहत यह प्रमाणित करेगा कि उसकी उपस्थिति में खाता खोलने वाले व्‍यक्ति ने अपने हस्‍ताक्षर अथवा अंगूठे का निशान लगाया है।

(ग) ऐसे खाते केवल कोर बैंकिंग सोल्‍यूशन (सीबीएस) से जुड़ी शाखाओं अथवा ऐसी शाखाओं में खोले जा सकते हैं जहां मैनुवली निगरानी रखना संभव हो तथा यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे खाते में विदेशी विप्रेषण जमा नहीं किया जाता है।

(घ) बैंक यह सुनिश्चित करें कि लेनदेन संबंधी विनिर्दिष्ट सकल राशि और शेष राशि के लिए निर्धारित मासिक और वार्षिक सीमा का उल्‍लंघन लेनदेन होने पर न घटित हो।

(ड.) ऐसे खाते की निगरानी रखी जाएगी और जब धनशोधन अथवा आतंकवादी गतिविधियों का वित्‍तपोषण अथवा अन्‍य उच्‍च जोखिम का संदेह हो तो ‘आधिकारिक वैध दस्‍तावेज’ प्राप्त कर ग्राहक की पहचान की पुष्टि की जाएगी।

(च) विदेशी विप्रेषण तब तक जमा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक ‘अधिकारिक वैध दस्‍तावेजों’ के प्रस्‍तुतीकरण के माध्‍यम से ग्राहक की पहचान पूरी तरह से स्‍थापित नहीं होती।

(छ) खाता प्रारंभ में बारह महीने की अवधि के लिए चालू रहेगा जिसे आगे बारह महीने की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है, बशर्ते खाता धारक आवेदन करे और इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करे कि उसने खाता खोलने के प्रथम 12 महीने के दौरान उल्लिखित ओवीडी में से किसी के लिए आवेदन किया है।

(ज) संपूर्ण छूट प्रावधानों की चौबीस महीनों के बाद समीक्षा की जाएगी।

24. गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा खाता खोलने के लिए सरलीकृत क्रियाविधि: यदि कोई व्‍यक्ति अध्‍याय-I की मद सं. 3(ए) (vi) में उल्लिखित दस्‍तावेज प्रस्‍तुत करने में सक्षम न हो, तो गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियां अपने विवेकानुसार निम्‍नलिखित शर्तों पर खाता खोल सकती हैं:

(क) केवाईसी क्रियाविधि पूरी कर चुके अन्‍य खाताधारक से परिचय।

(ख) गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनी के साथ परिचयकर्ता का खाता कम से कम छह माह पुराना हो और संतोषजनक लेनदेन दिखाता हो।

(ग) जो व्‍यक्ति खाता खोलना चाहता हो, उस व्यक्ति का फोटो और पता परिचयकर्ता द्वारा प्रमाणित किया जाएगा, अथवा गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनी की संतुष्टि के लिए परिचय और पते के लिए अन्‍य कोई साक्ष्‍य प्राप्‍त किया जाएगा।

(घ) उनके सभी खातों में कुल मिलाकर शेष राशि किसी भी समय पचार हजार रुपए से अधिक नहीं होगी।

(ङ) सभी खातों में कुल जमा एक वर्ष में एक लाख रुपए से अधिक नहीं होगी।

(च) ग्राहक को जागरुक किया जाए कि यदि निर्देश (iv) और (v) का उनके द्वारा उल्‍लंघन किया जाएगा तो संपूर्ण केवाईसी क्रिया‍विधि पूरी होने तक उन्‍हें आगे के लेनदेन के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी।

(छ) ग्राहक को यह सूचित किया जाए कि जब शेष राशि चालीस हजार रुपये तक पहुंच जाएगी अथवा जमा एक वर्ष में अस्‍सी हजार रूपये तक पहुंच जाएगी तब केवाईसी प्रक्रिया पूरी करने के लिए उचित दस्‍तावेज प्रस्‍तुत करने होंगे अन्‍यथा सभी खातों की कुल मिलाकर संपूर्ण शेष राशि उक्‍त निर्देश (डी) और (ई) में निर्धारित सीमा को पार करते ही लेनदेन रोक दिए जाएंगे।

25. यदि विनियमित संस्था का वर्तमान केवाईसी अनुपालन करनेवाला ग्राहक उसी विनियमित संस्था के पास अन्‍य खाता खोलना चाहे, तब सीडीडी की नयी प्रक्रिया पूरी करने की आवश्‍यकता नहीं है।

26. किसी भी विनियमित संस्था की एक शाखा/कार्यालय द्वारा एक बार किया गया केवाईसी सत्‍यापन उसी विनियमित संस्था की किसी अन्‍य शाखा/कार्यालय में खाता अंतरित करने के लिए वैध होगा, बशर्ते कि संबंधित खाते के लिए संपूर्ण केवासी सत्‍यापन पहले ही किया गया हो और वह आवधिक अपडेशन के लिए नियत न हो तथा ऐसे मामलों में खाताधारक से उसके वर्तमान पते के लिए स्‍व-घोषणा प्राप्‍त की जाए।

भाग II – स्‍वत्‍वधारित प्रतिष्ठानों के लिए सीडीडी उपाय

27. स्‍वत्‍वधारित प्रतिष्ठानों के नाम पर खाता खोलने के लिए अध्‍याय 1 की मद सं. 3 (ए) (vi) में उल्लिखित ओवीडी की एक प्रमाणित प्रति, जिसमें पहचान और व्‍यक्ति (मालिक) का पता दर्ज हो, प्राप्त कर ली जाए।

28. उपर्युक्‍त के अलावा, स्‍वत्‍वधारित प्रतिष्ठान के नाम कारोबार/गतिविधि के प्रमाण के रूप में निम्‍नलिखित दस्‍तावेजों में से कोई भी दो दस्‍तावेज प्राप्‍त कर लिए जाएं:

(क) पंजीकरण प्रमाणपत्र

(ख) दुकान और संस्‍थापना अधिनियम के तहत म्‍युनिसिपल प्राधिकारियों द्वारा जारी प्रमाणपत्र/लाइसेंस

(ग) बिक्री और आयकर विवरणियां

(घ) सीएसटी/वैट प्रमाणपत्र।

(ङ) बिक्री कर/सेवा कर/व्‍यवसाय कर प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया प्रमाणपत्र/ पंजीकरण।

(च) डीजीएफटी के कार्यालय द्वारा स्वामित्व वाले प्रतिष्ठान को जारी आईईसी (आयातक/निर्यातक कोड) /संविधि के तहत निगमित किसी व्‍यावसायिक निकाय द्वारा स्‍वामित्‍व वाले प्रतिष्ठान के नाम पर व्‍यवसाय करने के लिए जारी लाइसेंस/प्रमाणपत्र।

(छ) स्‍वत्‍वधारी के नाम आयकर प्राधिकरण द्वारा विधिवत प्रमाणित/स्‍वीकृत संपूर्ण आयकर विवरणी (केवल प्राप्ति-सूचना नहीं), जिसमें फर्म की आय दर्शाई गई हो।

(ज) उपयोगिता बिल जैसे बिजली, पानी और लैंडलाइन टेलीफोन बिल।

29. ऐसे मामलों में जहां विनियमित संस्था इस बात से संतुष्‍ट हो कि ऐसे दो दस्‍तावेज प्रस्‍तुत करना संभव न हो, कारोबार/गतिविधि के प्रमाण के रूप में उन दस्‍तावेजों में से विनियमित संस्था अपने विवेकानुसार केवल एक स्‍वीकार कर सकती है।

बशर्ते कि, विनियमित संस्था संपर्की का सत्‍यापन करे और ऐसी अन्‍य जानकारी तथा स्‍प्‍ष्‍टीकरण जो ऐसी फर्म के अस्तित्‍व को प्रमाणित करने के लिए आवश्‍यक हो, इकठ्ठी करे और स्वयं की इस बात के लिए पुष्टि करे और अपनी संतुष्टि कर ले कि स्‍वत्‍वधारित प्रतिष्ठान के पते से कारोबार की गतिविधियों को सत्‍यापित किया गया है।

भाग III – विधिक संस्थाओं के लिए सीडीडी उपाय

30. किसी कंपनी का खाता खोलने के लिए निम्‍नलिखित दस्‍तावेजों में से प्रत्येक की प्रमाणित प्रति प्राप्‍त करें:

(क) निगमीकरण/गठन का प्रमाणपत्र।

(ख) संस्था के अंतर्नियम और बहिर्नियम।

(ग) निदेशक मंडल का इस आशय का संकल्‍प और अपने प्रबंधकों, अधिकारियों अथवा कर्मचारियों को संस्था की ओर से लेनदेन करने के लिए दिया गया मुख्‍तारनामा।

(घ) संस्था की ओर से लेनदेन करने के लिए मुख्‍तारनामा धारक प्रबंधकों, अधिकारियों अथवा कर्मचारियों के संबंध में आधिकारिक वैध दस्‍तावेज।

31. भागीदारी फर्म के लिए खाता खोलने हेतु निम्‍नलिखित दस्‍तावेजों में से प्रत्‍येक की एक प्रमाणित प्रति प्राप्‍त कर ली जाए:

(क) पंजीकरण प्रमाणपत्र।

(ख) भागीदारी विलेख।

(ग) उस व्यक्ति के संबंध में एक आधिकारिक रूप से वैध दस्‍तावेज जो ग्राहक की ओर से लेनदेन करने हेतु मुख्तारनामा धारण करता हो।

32. किसी न्‍यास का खाता खोलने के लिए निम्‍नलिखित में से प्रत्येक की एक-एक प्रमाणित प्रति प्राप्‍त कर ली जाए।

(क) पंजीकरण प्रमाणपत्र।

(ख) न्यास विलेख।

(ग) उस व्यक्ति के संबंध में एक आधिकारिक रूप से वैध दस्‍तावेज जो ग्राहक की ओर से लेनदेन करने हेतु मुख्तारनामा धारण करता हो।

33. अनिगमित संघ या व्यक्तियों के निकाय का खाता खोलने के लिए निम्नलिखित दस्तावेजों में से प्रत्येक की एक-एक प्रमाणित प्रति प्राप्‍त की जाए:

(क) ऐसे अनिगमित संघ या व्यक्तियों के निकाय के प्रबंधन का संकल्प;

(ख) उसकी ओर से लेनदेन करने के लिए प्रदत्त मुख्तारनामा;

(ग) उस व्यक्ति के संबंध में एक आधिकारिक रूप से वैध दस्‍तावेज जो उसकी ओर से लेनदेन करने हेतु मुख्तारनामा धारण करता हो; और

(घ) ऐसी सूचना जो ऐसे अनिगमित संघ या व्यक्तियों के निकाय के विधिक अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए समग्र रूप से विनियमित संस्था (आरई) द्वारा अपेक्षित हो।

स्‍पष्‍टीकरण: अपंजीकृत न्‍यास/भागीदारी फर्मों को ‘’अनिगमित संघ’’ के दायरे में शामिल किया जाएगा।

स्‍पष्‍टीकरण : व्यक्तियों के निकाय वाक्यांश में सोसायटी शामिल हैं

33अ: पूर्ववर्ती भाग में विशिष्टतः कवर नहीं किए गए न्यायिक व्यक्तियों, जैसे कि सरकार या उसके विभागों, सोसायटी, विश्वविद्यालयों और ग्राम पंचायत जैसे स्थानीय निकायों के खाते खोलने के लिए, निम्नलिखित दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति प्राप्त की जाएगी:

  1. संस्था की ओर से कार्य करने के लिए प्राधिकृत व्यक्ति का नाम दर्शाने वाले दस्तावेज;

  2. उसकी ओर से लेन-देन करने के मुख्तारनामा धारक व्यक्ति के संबंध में पहचान और पते के प्रमाण के लिए आधिकारिक रूप से वैध दस्तावेज और

  3. ऐसे दस्तावेज जो ऐसी किसी संस्था/न्यायिक व्यक्ति का विधिक अस्तित्व स्थापित करने के लिए विनियमित संस्था द्वारा अपेक्षित हो सकते हैं।

भाग – IV हिताधिकारी स्वामी की पहचान

34. विधिक संस्था, जो कि प्राकृतिक व्‍यक्ति नहीं है, का खाता खोलने के लिए हिताधिकारी स्‍वामी की पहचान करनी चाहिए और उक्त नियम (Rules) के नियम 9(3) के अनुसार उसकी पहचान का सत्यापन करने के लिए, नीचे दिये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं:

(क) जहां नियंत्रक हिताधिकारी स्‍वामी स्‍टाक एक्‍सचेंज में सूचीबद्ध कोई कंपनी या ऐसी कंपनी की समनुषंगी है वहां ऐसी कंपनियों के किसी शेयर धारक या हिताधिकारी स्‍वामी की पहचान करना और पहचान को सत्‍यापित करना आवश्‍यक नहीं है।

(ख) न्‍यास/नामिती या प्रत्ययी खातों के मामलों में यह निर्धारित किया जाए कि क्‍या ग्राहक किसी अन्‍य की ओर से न्यासी /नामि‍ती अथवा कि‍सी अन्य मध्यवर्ती के रूप में कार्य कर रहा है। ऐसे मामलों में, मध्यवर्ति‍यों अथवा जि‍नकी ओर से वे काम कर रहे हैं, ऐसे व्यक्ति‍यों की पहचान का संतोषजनक साक्ष्य तथा न्यास के स्वरूप तथा अन्य व्यवस्थाओं के ब्यौरे भी प्राप्त करने चाहि‍ए।

भाग – V सतत (On-going) समुचित सावधानी

35. विनियमित संस्था (आरई) को ग्राहकों के संबंध में सतत समुचित सावधानी बरतनी चाहि‍ए ताकि वे यह सुनिश्चित कर सकें कि उनके (ग्राहकों के) लेनदेन, ग्राहकों के कारोबार और जोखिम प्रोफाइल; तथा नि‍धि‍यों के स्रोतों के संबंध में उसकी जानकारी के अनुरूप हैं।

36. सघन निगरानी के लिए आवश्‍यक तथ्‍यों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना निम्‍न प्रकार के लेनदेनों की अवश्‍य निगरानी की जानी चाहिए:

(क) आरटीजीएस सहित बड़े और जटि‍ल लेनदेन जो असामान्‍य रूप के हैं, संबंधि‍त ग्राहक की सामान्य और अपेक्षि‍त गति‍वि‍धि‍ के अनुरूप नहीं हैं और जि‍नका कोई सुस्पष्ट आर्थि‍क अथवा वैध (औचित्यपूर्ण) प्रयोजन न हो।

(ख) कि‍सी वि‍शि‍ष्ट श्रेणी के खातों के लि‍ए नि‍र्धारि‍त (सचेतक) न्यूनतम सीमाओं को लांघने वाले लेनदेन।

(ग) रखी गयी शेष राशि‍ की मात्रा के अननुरूप बहुत बड़े लेनदेन।

(घ) विद्यमान और नए खुले खातों में जमा हुए थर्ड पार्टी चेक, ड्राफ्ट आदि के बाद बड़ी राशि‍यों की निकासी।

37. निगरानी किस सीमा तक होगी यह ग्राहक के जोखिम वर्गीकरण पर निर्भर होगा।

स्‍पष्‍टीकरण: उच्च जोखिम वाले खातों की सघन निगरानी की जानी चाहिए।

(क) खातों के जोखि‍म वर्गीकरण की आवधि‍क समीक्षा जो छह महीने में कम से कम एक बार करनी चाहिए और इस संबंध में संवर्धित समुचित सावधानी के उपाय लागू करनेके लिए एक प्रणाली स्थापित की जाए। ।

(ख) मार्केटिंग कंपनियों, विशेषकर बहु-स्तरीय मार्केटिंग कंपनियों (एमएलएम), के खातों की सघन निगरानी करनी चाहि‍ए।

स्‍पष्‍टीकरण: ऐसे मामलों में जहां कंपनी द्वारा बड़ी संख्या में चेक बुकों की मांग की गई हो, एक ही बैंक खाते में देश भर में बहुत सारी छोटी-छोटी जमाराशियां जमा की गयी हों (सामान्यतः नकद रूप में) और जहां बड़ी संख्या में एक समान राशियों/तिथियों के चेक जारी किए जाते हों तो ऐसे मामले को रिजर्व बैंक और अन्य उचित प्राधिकारियों जैसे कि एफ़आईयू-आईएनडी को तत्काल रिपोर्ट किया जाना चाहिए।

38. आवधिक अद्यतनीकरण

उच्‍च जोखिम वाले ग्राहकों के लिए कम-से-कम प्रत्‍येक दो वर्षों में, मध्‍यम जोखिम वाले ग्राहकों के लिए प्रत्‍येक आठ वर्ष में तथा कम जोखिम वाले ग्राहकों के लिए प्रत्‍येक दस वर्षों में केवाईसी की पूरी प्रक्रिया निम्‍नानुसार दुहराई जानी चाहिए:

(a) ‘कम जोखिम’ के रूप में वर्गीकृत ग्राहकों से आवधिक अद्यतनीकरण के समय पहचान और पते के नए प्रमाण नहीं मांगे जाने चाहिए, पहचान और पते की स्थिति में यदि कोई परिवर्तन न हो तो ग्राहकों से इस संबंध में स्वप्रमाणन प्राप्त करना चाहिए।

(b) ‘कम जोखिम वाले’ ग्राहकों द्वारा पते में परिवर्तन होने पर पते के प्रमाण की सत्यापित प्रति मेल/डाक इत्यादि से भिजवाना स्‍वीकार्य होगा।

(c) आवधिक अद्यतनीकरण के समय ऐसे ‘कम जोखिम वाले’ ग्राहकों के व्यक्तिश: उपस्थित होने पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए।

(d) ऊपर विनर्दिष्‍ट समय-सीमा, खाता खोलने की तिथि/पिछले केवाईसी के सत्‍यापन से लागू होगी।

(e) नाबालिक ग्राहक के वयस्‍क हो जाने पर उससे नवीन फोटोग्राफ प्राप्‍त किया जाना चाहिए।

(f) आवधिक अद्यतनीकरण के प्रयोजन से ओटीपी के आधार पर अधिप्रमाणन करने की ई-केवाईसी प्रक्रिया की अनुमति दी जाती है, बशर्ते कि, ऑन-बोर्डिंग के समय, ग्राहक धारा 16 या धारा 17 में विनिर्दिष्ट केवाईसी प्रक्रिया से गुजरा हो।

39. खातों को आंशिक फ्रीज़ करना तथा बंद करना

(क) यदि विनियमित संस्था (आरई) उपरोक्‍त भाग I से V में वर्णित सीडीडी की अपेक्षाओं का अनुपालन करने में असमर्थ हों तो वे खाते न खोलें, कारोबारी संबंध प्रारंभ न करें या लेनदेन न करें। विद्यमान कारोबारी रिश्‍तों, जिनका केवाईसी अनुपालन नहीं हुआ है, की स्थिति में बैंक उचित नोटिस देकर विद्यमान कारोबारी रिश्‍तों को समाप्‍त करने के लिए कार्रवाई करें।

(ख) नियम के अपवादस्वरूप, बैंकों को सीधे कारोबारी रिश्‍ते समाप्‍त न करते हुए निम्‍नानुसार खाते में लेनदेन संबंधी चरणबद्ध तरीके से परिचालन बंद करने का विकल्प चुन सकते हैं:

I. केवाईसी अपेक्षाएं पूरी करने हेतु तीन माह का अपेक्षित नोटिस देने के पश्‍चात ही आंशिक फ्रीजिंग’ का विकल्‍प का उपयोग किया जाए।

II. अनुस्‍मारक जारी करके तीन माह का और समय दिया जाए।

III. इसके पश्चात पहले नोटिस की तारीख से छह महीनों तक केवाईसी अनुपालन नहीं होता है तो खाता बंद करने की स्वतंत्रता के साथ ही, सभी क्रेडिट लेनदेनों की अनुमति तथा डेबिट लेनेदनों की मनाही करते हुए ‘आंशिक फ्रीजिंग’ लागू की जा सकती है।

IV. यदि शुरुआती ‘आंशिक फ्रीजिंग’ लागू किए जाने के बाद भी खाते में छह माह तक केवाईसी अनुपालन नहीं होता है तो इस खाते से सभी नामे और जमा लेनदेनों हेतु मनाही की जा सकती है।

V. खाताधारक के पास केवाईसी दस्तावेज प्रस्तुत करके खाते को पुनः चालू कराने का विकल्‍प मौजूद रहेगा।

(ग) जब कोई खाता ‘आंशिक फ्रीजिंग’ के बिना अथवा ‘आंशिक फ्रीजिंग’ के बाद बंद कर दिया जाता है तो खाताधारक को इसका कारण बताया जाना चाहिए।

भाग VI – संवर्धित (Enhanced) और सरलीकृत समुचित सावधानी प्रक्रिया

a. संवर्धित समुचित सावधानी

40. अप्रत्यक्ष ग्राहकों के खाते: अप्रत्‍यक्ष ग्राहकों के लिए संवर्धित समुचित सावधानी में विनियमित संस्था (आरई) को अतिरिक्त प्रक्रियाएं अपनानी चाहिए जैसे कि प्रस्तुत दस्तावेजों का प्रमाणीकरण, अति‍रि‍क्त दस्तावेजों की माँग और किसी दूसरी विनियमित संस्था (आरई) के केवाईसी अनुपालित खाते के माध्‍यम से पहला भुगतान।

41. 'राजनैतिक रूप से जोखिम वाले व्यक्तियों के खाते (पीईपी)

ए. विनियमित संस्था (आरई) को राजनैतिक रूप से जोखिम वाले व्यक्तियों के साथ कारोबारी संबंध रखने का विकल्‍प होगा, बशर्ते कि:

a. राजनैतिक रूप से जोखिम वाले व्यक्तियों के संबंध में उनके परिवार के सदस्यों और नजदीकी संबंधियों के खातों, निधिक स्रोतों की जानकारी सहित पर्याप्त सूचना एकत्रित करनी चाहिए;

b. राजनैतिक रूप से जोखिम वाले व्यक्तियों को ग्राहक के रूप में स्वीकार करने से पूर्व उस व्यक्ति की पहचान का सत्यापन किया जाना चाहिए;

c. पीईपी का खाता खोलने का निर्णय विनियमित संस्था (आरई) की ग्राहक स्वीकरण नीति के अनुसार वरिष्ठ स्तर पर किया जाना चाहिए;

d. ऐसे सभी खातों की सतत संवर्धित निगरानी की जानी चाहिए;

e. कि‍सी वि‍द्यमान खाते का हिताधिकारी स्वामी अथवा वि‍द्यमान ग्राहक जो बाद में पीईपी हो जाता है तो उक्त ग्राहक के साथ व्यावसायि‍क संबंध जारी रखने के लि‍ए वरि‍ष्ठ प्रबंध तंत्र का अनुमोदन प्राप्त करना चाहिए;

f. पीईपी पर सीडीडी उपायों के साथ सतत संवर्धित निगरानी उपाय लागू होंगे।

बी. ये अनुदेश उन खातों पर भी लागू होते हैं जहां कोई पीईपी हिताधिकारी स्वामी है।

42. व्यावसायिक मध्यवर्ति‍यों द्वारा खोले गए ग्राहकों (Clients) के खाते:

व्यावसायिक मध्यवर्ति‍यों के जरिए ग्राहकों के खाते खुलवाते समय विनियमित संस्था द्वारा निम्‍नलिखित बातें सुनिश्चित की जानी चाहिए, कि:

a. व्यावसायिक मध्यवर्ती द्वारा खोला गया ग्राहक खाता किसी एकल ग्राहक के लिए होने पर उस ग्राहक की पहचान कर ली जानी चाहिए।

b. म्यूच्युअल निधियों, पेन्शन निधियों अथवा अन्य प्रकार की निधियों जैसी संस्थाओं की ओर से व्यावसायिक मध्यवर्तियों द्वारा प्रबंधित 'सामूहिक' (Pooled) खाते को रखने का विकल्‍प विनियमित संस्था के पास होगा।

c. विनियमित संस्था (आरई) को ऐसे व्यावसायिक मध्यवर्तियों के खाते नहीं खोलने चाहिए जो ग्राहक गोपनीयता की किसी व्यावसायिक बाध्यता के कारण ग्राहक के ब्योरे प्रकट नहीं कर सकते हैं।

d. ऐसे सभी हिताधिकारी स्वामियों की पहचान की जाएगी जहां मध्यवर्तियों द्वारा धारित निधियां विनियामक संस्था के स्तर पर मिश्रित नहीं की जाती हैं और जहां 'उप खाते' हैं जिनमें से प्रत्येक किसी हिताधिकारी स्वामी का है अथवा जहां ऐसी निधियाँ विनियामक स्तर पर मिश्रित की जाती हैं, विनियामक संस्था ऐसे हिताधिकारी स्वामियों की पहचान करेगी।

e. विनियमित संस्था (आरई) अपने स्‍वविवेक पर किसी मध्यवर्ती द्वारा की गयी `ग्राहक संबंधी समुचित सावधानी' (सीडीडी) पर भरोसा कर सकते हैं बशर्ते वह मध्यवर्ती विनियमित तथा पर्यवेक्षित संस्‍था हो और उसके पास ग्राहकों के “अपने ग्राहक को जानिए'' अपेक्षाओं का अनुपालन करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था/प्रणाली हो।

f. ग्राहक को जानने का अंतिम दायित्व विनियमित संस्था (आरई) का है।

बी. सरलीकृत समुचित सावधानी

43. स्‍वयं सेवा समूहों (एसएचजी) के लिए सरलीकृत मानदंड

a. एसएचजी का बचत बैंक खाता खोलते समय एसएचजी के सभी सदस्यों का केवाईसी सत्यापन करना आवश्यक नहीं है।

b. एसएचजी के सभी पदधारियों का केवाईसी सत्यापन करना पर्याप्त होगा।

c. एसएचजी का क्रेडिट लिंकिंग करते समय सदस्यों या पदधारियों का अलग से केवाईसी सत्यापन करने की जरूरत नहीं है।

44. विदेशी विद्यार्थियों के खाते खोलते समय बैंकों को निम्नलिखित प्रक्रिया अपनानी चाहिए:

(ख) बैंक विदेशी विद्यार्थी का अनिवासी साधारण (एनआरओ) बैंक खाता उसके पासपोर्ट (वीजा और आप्रवासन पृष्‍ठांकन सहित) के आधार पर खोल सकते हैं जिसमें उसके गृह राष्‍ट्र में उसकी पहचान तथा पते का प्रमाण दर्ज हो तथा उसके साथ एक फोटो और भारत में शैक्षणिक संस्‍थान द्वारा प्रवेश दिए जाने संबंधी पत्र होना चाहिए।

i. बशर्ते खाता खोलने से 30 दिनों की अवधि के भीतर स्थानीय पते के संबंध में घोषणा लेनी चाहिए और दिए गए पते की जांच करनी चाहिए।

ii. बशर्ते 30 दिनों की अवधि के दौरान खाता इस शर्त के अधीन परिचालित किया जाना चाहिए कि पते की जांच हो जाने तक खाते से 1,000 अमेरिकी डालर या उसकी समतुल्य राशि से अधिक के विदेशी विप्रेषण की अनुमति नहीं होगी तथा 50,000/- रुपए की अधिकतम सीमा होगी ।

(ख) खाते को सामान्‍य एनआरओ खाते के रूप में माना जाएगा और उसका परिचालन अनिवासी साधारण रुपया (एनआरओ) खाता संबंधी भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुदेशों तथा विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के प्रावधानों के अनुसार होगा।

(ग) पाकिस्तान की राष्ट्रीयता वाले छात्र का खाता खोलने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति लेनी होगी।

45. विदेशी संविभाग निवेशकों (एफपीआई) के लिए सरलीकृत केवाईसी मानदंड

संविभाग निवेश योजना (पीआईएस) के अंतर्गत निवेश करने के प्रयोजन हेतु एफपीआई के वे खाते जो सेबी के दिशा-निर्देशों के अनुसार पात्र/पंजीकृत हैं, के खाते अनुबंध–II में दिए गए ब्‍यौरे के अनुसार केवाईसी दस्‍तावेज़ों को स्वीकार करके और आयकर नियमों (एफएटीसीए/सीआरएस) के तहत खोले जा सकते हैं।

बशर्ते कि बैंक एफपीआई से या एफपीआई की ओर से कार्य कर रहे वैश्विक अभिरक्षक से इस आशय की घोषणा प्राप्‍त करें कि जब कभी आवश्‍यकता होगी तो अनुबंध–II में दिए गए ब्‍यौरे के अनुसार छूट प्राप्‍त दस्‍तावेज वे प्रस्‍तुत करेंगे।

अध्‍याय VII
अभिलेख प्रबंधन

46. पीएमएल अधिनियम और नियम के अनुसार विनियमित संस्था (आरई) को ग्राहक खाता संबंधी सूचना के रखरखाव, परिरक्षण और रिपोर्टिंग के लिए निम्‍नलिखित कदम उठाने होंगे:

a. ग्राहक और विनियमित संस्था (आरई) के बीच घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों लेनदेनों के लिए सभी आवश्यक रिकार्ड संबंधित लेनदेन की तारीख से कम से कम पांच वर्षों तक अनुरक्षित किए जाएंगे।

b. ग्राहक का खाता खोलने के समय तथा कारोबारी संबंध बने रहने के दौरान उसकी पहचान और पते के संबंध में प्राप्त अभि‍लेख कारोबारी संबंध के समाप्त हो जाने के बाद कम से कम पांच वर्ष तक उचित रूप में सुरक्षित रखे जाएं।

c. सक्षम प्राधि‍कारि‍यों द्वारा अनुरोध कि‍ए जाने पर पहचान के रि‍कार्ड और लेनदेन के आँकड़े उन्हें उपलब्ध कराए जाएं।

d. धनशोधन निवारण (रिकॉर्ड का रखरखाव) नियमावली, 2005 के नियम 3 के अनुसार लेनदेनों का रिकॉर्ड उचित प्रकार से रखने हेतु एक प्रणाली की शुरुआत करनी चाहिए।

e. धनशोधन नि‍वारण (पीएमएल) नि‍यम 3 में निर्धारित लेनदेनों के संबंध में सभी आवश्यक सूचनाएं रखें ताकि निम्नलिखित सहित किसी एकल लेनदेन की पुनर्रचना की जा सके:

i. लेनदेनों का स्वरूप;

ii. लेनदेन की राशि ‍और वह मुद्रा जि‍समें उसे मूल्यवर्गीकृत कि‍या गया;

iii. वह तारीख जिस दिन वह लेनदेन कि‍या गया; तथा

iv. लेनदेन के पक्षकार।

a. खाता संबंधी सूचना रखने और उसके परि‍रक्षण के लिए एक ऐसी प्रणाली वि‍कसि‍त करें ताकि‍ आवश्यकता पड़ने पर या सक्षम प्राधि‍कारि‍यों द्वारा आंकड़ों के लि‍ए अनुरोध किए जाने पर आसानी से और तुरंत उन्‍हें प्राप्त किया जा सकें।

b. अपने ग्राहकों की पहचान और पते संबंधी अभिलेख और नियम 3 में उल्लिखित लेनदेनों से संबंधित अभिलेखों को हार्ड या सॉफ्ट फॉर्मेट में रखा जाए।

अध्याय VIII
वित्तीय आसूचना इकाई –भारत (एफआईयू- आईएनडी) को रिपोर्टिंग की अपेक्षाएँ

47. विनियमित संस्थाओं (आरई) द्वारा पीएमएल (अभिलेखों का रखरखाव) नियमावली, 2005 के नियम 7 के अनुसार नियम 3 में संदर्भित सूचना निदेशक, वित्तीय आसूचना एकक – भारत को प्रस्तुत की जाएगी।

स्पष्टीकरण: नियम 7 के उप-नियम 3 और 4 के संशोधन के संबंध में 22 सितंबर 2015 को अधिसूचित तीसरी संशोधन नियमावली के अनुसार निदेशक, एफआईयू- आईएनडी को नियम 3 के उप नियम(1) के विभिन्न अनुच्छेदों में संदर्भित लेनदेनों का पता लगाने के लिए विनियमित संस्थाओं को दिशानिर्देश जारी करने, सूचना के प्रकार के संबंध में उन्हें निदेश देने और सूचना की प्रस्तुति एवं प्रक्रिया निर्धारित करने के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने का अधिकार होगा।

48. एफआईयू- आईएनडी द्वारा रिपोर्टिंग फॉर्मेट तथा विस्तृत फॉर्मेट गाइड निर्धारित/जारी की गई है। एफआईयू- आईएनडी ने रिपोर्ट करने वाली संस्थाओं को निर्धारित रिपोर्टें तैयार करने हेतु सहायता प्रदान करने के लिए रिपोर्ट जेनेरेशन यूटिलिटी तथा रिपोर्ट वैलिडेशन यूटिलिटी विकसित की है जिसे ध्यान में रखा जाए। नकद लेनदेन रिपोर्ट (सीटीआर) / संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) को इलेक्ट्रोनिक रूप से फाइल करने के लिए एफआईयू- आईएनडी ने अपनी वेबसाइट पर एडि‍टेबल इलैक्ट्रॉनि‍क यूटि‍लि‍टि‍ज डाली है जिसका उपयोग ऐसी वित्तीय संस्थाओं द्वारा उपयोग किया जा सकता है जो अपने लेनदेन के सामान्य आँकड़ों से सीटीआर/एसटीआर बनाने के लि‍ऐ उपयुक्त प्रौद्योगि‍की टूल स्थापि‍त नहीं‍ कर पाए हैं। जिन विनियमित संस्थाओं की सभी शाखाएं अभी तक पूर्णत: कंप्यूटरीकृत नहीं हुई हैं, ऐसी संस्‍थाओं के प्रधान अधिकारियों के पास ऐसी शाखाओं से लेनदेन के ब्यौरों को लेकर उन्हें एफआईयू-आइएनडी द्वारा अपनी वेबसाइट http://fiuindia.gov.in पर उपलब्ध कराई गयी सीटीआर/एसटीआर की एडि‍टेबल इलैक्ट्रॉनि‍क यूटि‍लि‍टि‍ज की सहायता से इलैक्ट्रॉनि‍क फाइल के रूप में आंकड़े फीड करने की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए।

49. निदेशक, एफआईयू-आईएनडी को सूचना देते समय, लेनदेन की रिपोर्टिंग में हुई प्रत्येक दिन की देरी अथवा नियम में विनिर्दिष्ट समय-सीमा के बाद गलत रूप से दर्शाये गए किसी लेनदेन को सुधारने में होने वाली प्रत्येक दिन की देरी को अलग से एक उल्लंघन माना जाएगा। विनियमित संस्थाएं उन खातों के परिचालनों पर कोई प्रति‍बंध न लगाएं जिनके संबंध में संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) भेजी गई है। विनियमित संस्थाओं द्वारा एसटीआर प्रस्तुत करने के तथ्य को पूर्णत: गोपनीय रखा जाएगा। यह सुनि‍श्चि‍त कि‍या जाए कि ग्राहक को कि‍सी भी स्तर पर गुप्त रूप से सचेत (टि‍पिंग ऑफ़) नहीं कि‍या जाए।

50. संदिग्ध लेनदेनों की प्रभावी पहचान एवं रिपोर्टिंग के एक भाग के रूप में, जोखिम वर्गीकरण तथा ग्राहकों की अद्यतन प्रोफाइल के साथ लेनदेनों के असंगत होने की स्थिति में अलर्ट जारी करने वाला एक सशक्त सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाना चाहिए।

अध्याय IX
अंतरराष्ट्रीय करारों के तहत अपेक्षाएँ/बाध्यताएँ
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से संपर्क

51. विनियमित संस्थाएं (आरई) यह सुनिश्चित करें कि वि‍धि‍वि‍रुद्ध क्रि‍याकलाप (नि‍वारण) अधि‍नि‍यम, 1967 की धारा 51क के अनुसार उनके पास आंतकी गतिविधियों से जुड़े होने की आशंका वाले ऐसे व्यक्तियों/संस्थाओं का कोई खाता नहीं होना चाहिए जिसके नाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) द्वारा समय-समय पर अनुमोदित तथा परिचालित ऐसे व्यक्तियों तथा संस्थाओं की सूची में शामिल हो। ऐसी दो सूची निम्नानुसार हैं:

(a) "आईएसआईएल (Da’esh) और अल-कायदा प्रतिबंध सूची" में अल-कायदा से संबद्ध व्यक्तियों तथा संगठनों के नाम शामिल हैं। आईएसआईएल और अल-कायदा संबंधित अद्यतन प्रतिबंध सूची

https://scsanctions.un.org/fop/fop?xml=htdocs/resources/xml/en/consolidated.xml&xslt=htdocs/resources/xsl/en/al-qaida-r.xsl पर उपलब्ध है।

(b) "1988 प्रतिबंध सूची" में तालिबान से संबद्ध व्यक्तियों (समेकित सूची का खंड ए) तथा संगठनों (खंड बी) को शामिल किया गया है जो https://scsanctions.un.org/fop/fop?xml=htdocs/resources/xml/en/consolidated.xml&xslt=htdocs/resources/xsl/en/taliban-r.xsl पर उपलब्ध है।

52. सूची में शामिल व्यक्तियों/संस्थाओं से मिलते-जुलते किसी भी खातों के ब्‍योरे 27 अगस्त 2009 की यूएपीए अधिसूचना की अपेक्षानुसार गृह मंत्रालय के अतिरिक्त एफआईयू- आईएनडी को रिपोर्ट किये जाने चाहिए।

53. उपर्युक्त के अलावा, किसी अन्य क्षेत्रों/संस्थाओं के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर परिचालित अन्य यूएनएससीआर को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

54. वि‍धि‍वि‍रुद्ध क्रि‍याकलाप (नि‍वारण) अधि‍नि‍यम, 1967 की धारा 51क के अंतर्गत आस्ति‍यों को फ्रीज़ करना

27 अगस्त 2009 को जारी यूएपीए आदेश (इस मास्टर दिशानिर्देश के अनुबंध I) में निर्धारित प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन किया जाए तथा सरकार के आदेश का अक्षरशः अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।

55. वि‍त्तीय कार्रवाई दल (एफएटीएफ) की सि‍फारि‍शों को लागू नहीं करने वाले अथवा अपर्याप्त रूप से लागू करने वाले देश

(a) एफ़एटीएफ़ सिफ़ारिशों को लागू न करने वाले या अपर्याप्त रूप से लागू करने वाले देशों की पहचान करने के लिए भारतीय रि‍ज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर परि‍चालि‍त कि‍ए जाने वाले एफएटीएफ वक्तव्यों और सार्वजनि‍क तौर पर उपलब्ध जानकारी को देखा जाना चाहिए। एफएटीएफ वक्तव्य में शामि‍ल कि‍ए गए क्षेत्रों में धनशोधन नि‍वारण/आतंकवाद के वि‍त्तपोषण के प्रति‍रोध संबंधी व्‍यवस्‍था में कमि‍यों के कारण उत्‍पन्‍न जोखि‍म को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

(b) एफ़एटीएफ़ वक्तव्यों में शामिल क्षेत्रों एवं ऐसे देशों, जिन्होंने एफ़एटीएफ़ सिफ़ारिशों को लागू नहीं किया है या अपर्याप्‍त रूप से लागू किया है, अथवा ऐसे देशों के व्‍यक्तियों (विधिक व्यक्तियों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं) के साथ कारोबारी संबंधों और लेनदेनों पर विशेष नजर रखी जानी चाहिए।

स्पष्टीकरण: धारा 55 ए तथा बी में संदर्भित प्रक्रिया विनियमित संस्थाओं (आरई) को एफ़एटीएफ़ वक्‍तव्‍य में वर्णित क्षेत्रों तथा देशों के साथ वैध व्यापार तथा कारोबारी लेनदेन बनाए रखने को प्रतिबंधित नहीं करती है।

(c) एफएटीएफ वक्तव्यों में शामि‍ल कि‍ए गए क्षेत्रों तथा एफएटीएफ की सि‍फारि‍शों को लागू न करने वाले अथवा अपर्याप्त रूप से लागू करने वाले देशों के व्‍यक्तियों (वि‍धि‍क संस्‍था तथा अन्य वि‍त्तीय संस्थाओं सहि‍त) के साथ लेनदेन की पृष्ठभूमि‍ तथा प्रयोजन की जांच की जाए तथा इसके नि‍ष्कर्ष को लि‍खि‍त रूप में सभी दस्तावजों सहि‍त रखा जाए और अनुरोध प्राप्त होने पर उन्हें रि‍ज़र्व बैंक/अन्य संबंधि‍त प्राधि‍कारि‍यों को उपलब्ध कराया जाए।

अध्याय X
अन्य अनुदेश

56. गोपनीयता संबंधी दायित्व और सूचनाओं का आदान-प्रदान

(a) बैंक, बैंकर तथा ग्राहक के बीच स्थापित संविधात्मक संबंधों से उन्‍हें प्राप्त ग्राहक संबंधी सूचना के संबंध में गोपनीयता बनाए रखेंगे।

(b) सरकार तथा अन्य एजेंसियों से डेटा / सूचना के लिए प्राप्त अनुरोध पर विचार करते समय, बैंकों को स्वयं इस बात से आश्वस्त होना होगा कि मंगायी गई सूचना की प्रकृति ऐसी नहीं है, जिससे बैंकिंग लेनदेनों में गोपनीयता से संबंधित क़ानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन होता हो।

(c) इस नियम के अपवाद निम्नानुसार होंगे :

(i) जहां प्रकटीकरण कानूनन मजबूरी हो,

(ii) जहां प्रकटीकरण जनता के प्रति एक कर्तव्य हो,

(iii) प्रकटीकरण, बैंक के हित में अपेक्षित हो, और

(iv) प्रकटीकरण ग्राहक की स्‍पष्‍ट या निहित सहमति से किया गया हो।

(d) एनबीएफसी को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 45एनबी के अनुसार सूचना की गोपनियता बनाई रखनी होगी।

57. सीडीडी क्रियाविधि तथा केंद्रीय केवाईसी रिकॉर्ड्स रजिस्ट्री (सीकेवाईसीआर) के साथ सूचना साझा करना

विनियमित संस्थाएं (आरई) सीकेवाईसीआर के साथ साझा करने के लिए नियम में उल्लिखित तरीके से केवाईसी सूचना कैप्चर करेंगी, जैसा कि व्यक्तियों और विधिक संस्थाओं, जैसा भी मामला हो, के लिए तैयार किए गए संशोधित केवाईसी टेम्प्लेट में अपेक्षित है। भारत सरकार ने दिनांक 26 नवंबर 2015 की राजपत्र अधिसूचना सं.एस.ओ.3183 (ई) के द्वारा प्रतिभूतीकरण आस्ति पुनर्निर्माण तथा भारतीय प्रतिभूति हित की केंद्रीय रजिस्ट्री (CERSAI) को सीकेवाईसीआर के रूप में कार्य करने तथा उसके कार्यों का निष्पादन करने के लिए प्राधिकृत किया है।

सीकेवाईसीआर का 'लाइव रन' 15 जुलाई 2016 से चरणबद्ध रूप से प्रारंभ किया जाएगा, जिसकी शुरुआत नए 'व्यक्तियों के खातों' से की जाएगी। तदनुसार, विनियामक संस्थाएं निम्नलिखित कदम उठाएंगी:

  1. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक धन शोधन निवारण (अभिलेखों का रखरखाव) नियमावली, 2005 के प्रावधानों के अनुसार CERSAI में 1 जनवरी 2017 को या उसके बाद खोले गए सभी नए वैयक्तिक खातों से संबंधित केवाईसी डाटा को अनिवार्य रूप से अपलोड करेंगे। तथापि, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक को जनवरी 2017 के दौरान खोले गए खातों के संबंध में तारीख को अपलोड करने के लिए 1 फरवरी 2017 तक का समय दिया जाता है।

  2. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के अलावा विनियमित संस्थाएं धन शोधन निवारण (अभिलेखों का रखरखाव) नियमावली, 2005 के प्रावधानों के अनुसार CERSAI में 1 अप्रैल 2017 को या उसके बाद खोले गए सभी नए वैयक्तिक खातों से संबंधित केवाईसी डाटा को अपलोड करेंगी।

  3. केवाईसी डाटा को अपलोड करने के लिए CERSAI द्वारा परिचालनगत दिशानिर्देश (संस्करण 1.1) जारी किए गए हैं। साथ ही, विनियमित संस्थाओं के प्रयोग के लिए CERSAI द्वारा ‘परीक्षण का वातावरण’ भी उपलब्ध कराया गया है।

58. विदेशी खातों संबंधीकर अनुपालन अधिनियम (एफ़एटीसीए) और सामान्य रिपोर्टिंग मानक” (सीआरएस)

एफ़एटीसीए और सीआरएस के अंतर्गत विनियमित संस्थाएं आयकर नियमावली 114च, 114छ और 114ज के प्रावधानों का अनुपालन करेंगी और यह निर्धारित करेगी कि क्या वे आयकर नियम 114एफ में परिभाषित रिपोर्टिंग वित्तीय संस्थाएं हैं और यदि वे हैं तो उन्हें रिपोर्टिंग अपेक्षाओं का अनुपालन करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

(a) रिपोर्ट करने वाली वित्तीय संस्थाओं के रूप में आयकर विभाग के संबंधित ई-फाइलिंग पोर्टल https://incometaxindiaefiling.gov.in/ post login -- > My Account -- > Register as Reporting Financial Institution पर जाकर रजिस्टर करें।

(b) पदनामित निदेशक के डिजिटल हस्ताक्षर से फॉर्म 61बी अथवा ‘शून्‍य’ रिपोर्ट ऑनलाइन प्रस्तुत करें जिसके लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा तैयार किए गए खाका (schema) को ध्यान में रखा जाए।

स्पष्टीकरण: विनियमत संस्थाओं को नियम 114एच के अनुसार रिपोर्ट करने योग्य खातों की पहचान करने के उद्देश्य से समुचित प्रक्रिया अपनाने के लिए भारतीय विदेशी मुद्रा व्यापार संघ (फेडाई) द्वारा अपनी वेबसाइट http://www.fedai.org.in/RevaluationRates.aspxपर प्रकाशित हाजिर संदर्भ दर को देखना चाहिए।

(c) आईटी नियम 114 के अनुसार समुचित सावधानी प्रणाली अपनाने तथा उसकी रिपोर्टिंग एवं रखरखाव के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) फ्रेमवर्क विकसित करना चाहिए।

(d) आईटी फ्रेमवर्क के ऑडिट तथा आयकर नियमावली के नियम 114एफ, 114जी, तथा 114एच के अनुपालन के लिए एक प्रणाली विकसित करनी चाहिए।

(e) अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पदनामित निदेशक अथवा किसी अन्‍य समतुल्‍य कार्यकारी के अधीन एक ”उच्च स्तरीय निगरानी समिति’’ गठित की जानी चाहिए।

(f) केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा उक्त विषय पर समय-समय पर जारी और वेबसाइट http://www.incometaxindia.gov.in/Pages/default.aspx पर उपलब्ध अद्यतन अनुदेशों/ नियमों/ मार्गदर्शन नोटों/ प्रेस प्रकाशनियों का अनुपालन सुनिश्चित करें। विनियमित संस्थाएं निम्नलिखित का ध्यान रखें:

  1. FATCA और CRS पर अद्यतन मार्गदर्शन नोट

  2. नियम 114ज (8) के अंतर्गत ‘वित्तीय लेखों का समापन’ पर प्रेस प्रकाशनी।

59. भुगतान लिखत प्रस्तुत करने की अवधि

चेकों/ड्राफ्टों/भुगतान आदेशों/बैंकर चेकों का भुगतान उनकी जारी की तारीख से तीन महीने के बाद प्रस्तुत कि‍ए जाने पर नहीं करना चाहि‍ए।

60. बैंक खातों का परिचालन तथा ‘धनशोधन का माध्यम’ (मनी म्यूल) बने व्यक्ति‍

खाता खोलने और लेनदेनों की निगरानी संबंधी अनुदेशों का पालन कड़ाई से किया जाना चाहिए ताकि ‘’धनशोधन के माध्‍यमों (मनी म्यूल)’’ के कार्यकलापों को कम किया जा सके। अपराधि‍यों द्वारा धोखाधड़ी वाली योजनाओं (उदाहरणार्थ फि‍शिंग तथा पहचान की चोरी) से होने वाली आय का शोधन करने के लि‍ए `धनशोधन के माध्यम' के रूप में कार्य करने वाले कुछ व्यक्ति‍यों का इस्तेमाल किया जा सकता है जो धनशोधन का माध्यम बना दिये गए ऐसे तीसरे पक्षकारों को भर्ती कर जमा खातों तक अवैध रूप से पहुँच बना लेते हैं। यदि यह स्पष्ट हो जाता है कि खाता खोलना तथा खाते का परिचालन `धनशोधन के माध्यम' द्वारा किया जा रहा है तो यह समझा जाएगा कि बैंक ने इससे संबंधित दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया है।

61. आदाता खाता चेक का संग्रहण

आदाता के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के लिए आदाता खाता चेक का संग्रहण नहीं किया जाना चाहिए। बैंक अपने विवेकानुसार 50,000/- रुपए से अनधिक राशि के ऐसे आदाता खाता चेक का संग्रहण अपने ग्राहकों के खातों में जमा करने के लिए कर सकते हैं जो सहकारी समितियां हों, बशर्ते ऐसे चेकों के आदाता उन सहकारी ऋण समितियों के ग्राहक हों।

62. (क) बैंक और एनबीएफसी कंपनियों को चाहिए कि वे व्‍यक्तिगत ग्राहकों के साथ नए संबंध स्‍थापित करते समय उन्‍हें विशिष्‍ट ग्राहक पहचान कोड (यूसीआईसी) आबंटित करें। वर्तमान ग्राहकों को भी यह कोड आबंटित किया जाना चाहिए।

(ख) बैंकों/एनबीएफसी के पास अपनी मर्जी से प्री-पेड लिखत/थर्ड पार्टी उत्‍पाद खरीदने के लिए आने वाले वाक-इन/ नवागंतुक ग्राहकों को यूसीआईसी कोड जारी न करने का विकल्प है, जब तक उनके पास ऐसी पर्याप्‍त व्‍यवस्‍था है कि वे ऐसे वाक-इन ग्राहकों की पहचान कर सकें और यदि ऐसे किसी ग्राहक के साथ बार-बार लेनदेन हो रहा हो तो उसे यूसीआईसी कोड जारी किया जाना चाहिए।

63. नई तकनीक का उपयोग – क्रेडिट कार्ड/डेबिट कार्ड/स्‍मार्ट कार्ड/गिफ्ट कार्ड/मोबाइल वॉलेट/नेट बैंकिंग/ मोबइल बैंकिंग/आरटीजीएस/एनईएफटी/ईसीएस/आईएमपीएस आदि।

विनियमित संस्‍थाओं को चाहिए कि वे नई अथवा विकासशील प्रौद्योगिकी के परिणामस्‍वरूप उत्‍पन्‍न होने वाले धन-शोधन और आतंकवाद के वित्‍तपोषण संबंधी खतरों पर पर्याप्त ध्‍यान दें। नए उत्‍पाद/सेवाएं/ प्रौद्योगिकी को अमल में लाने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि समय-समय पर जारी उचित केवाईसी प्रक्रिया को सही ढंग से लागू किया गया है। जिन एजंटों को क्रेडिट कार्ड की मार्केटिंग का कार्य सौंपा गया है उनके संबंध में समुचित सावधानी बरती जानी चाहिए और उन्‍हें भी केवाईसी प्रक्रिया के अंतर्गत लाया जाना चाहिए।

64. संपर्ककर्ता (कॉरेस्पांडेंट) बैंक

बैंकों को चाहिए कि वे संपर्ककर्ता बैंकिंग संबंधों के अनुमोदन के लिए मानदंड निश्चित करने हेतु अपने बोर्ड, या अध्‍यक्ष/सीईओ/एमडी की अध्‍यक्षता वाली समिति से निम्‍नलिखित मानदंडों के साथ नीति अनुमोदित करवा लें:

a. बैंक के कारोबार के स्‍वरूप के बारे में पर्याप्‍त जानकारी इकट्ठा की जाए जिसमें प्रबंधन संबंधी सूचना, प्रमुख कारोबारी गतिविधियां, एएमएल/सीएफटी अनुपालन का स्‍तर, खाता खोलने का प्रयोजन, प्रतिनिधि बैंकिंग सेवाओं का उपयोग कोई थर्ड पार्टी व्‍यक्ति/संस्‍था करने वाली हो तो उसकी पहचान और संबंधित बैंक के अपने देश के विनियामक/पर्यवेक्षी ढांचे की जानकारी शामिल हो।

b. समिति द्वारा अनुमोदित प्रस्‍तावों पर बोर्ड का कार्योत्‍तर अनुमोदन उसकी अगली बैठक में लिया जाए।

c. जिन बैंकों के साथ संपर्ककर्ता बैंकिंग संबंध स्‍थापित किए गए हैं उन सभी बैंकों की जिम्‍मेदारियों का स्‍पष्‍ट उल्‍लेख लिखित रूप में हो।

d. खातों के माध्‍यम से देय (पेएबल थ्रू एकाउंट्स) मामले में संपर्ककर्ता बैंक को इस बात से संतुष्‍ट होना चाहिए कि रेस्‍पोंडेंट बैंक ने उन ग्राहकों की पहचान की जांच कर ली है जिन्‍हें खाते से सीधे लेनदेन की सुविधा दी गई है और वह उनके संबंध में सतत ‘समुचित सावधानी’ बरत रहा है।

e. संपर्ककर्ता बैंक को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अनुरोध किए जाने पर रेस्‍पोंडेंट बैंक ग्राहक की पहचान संबंधी सूचना तुरंत उपलब्‍ध करा सकता है।

f. अप्रत्‍यक्ष बैंक (शैल बैंक) के साथ संपर्ककर्ता संबंध स्‍थापित नहीं किया जाना चाहिए।

g. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संपर्ककर्ता बैंक शैल बैंकों को अपने खातों का उपयोग करने की अनुमति नहीं देते हैं।

h. बैंकों को ऐसे संपर्ककर्ता बैंकों के साथ सावधानी बरतनी चाहिए जो ऐसे क्षेत्राधिकारों में स्‍थापित हैं जहां रणनीतिगत कमियां हैं या जहां वित्‍तीय कार्रवाई दल (एफएटीएफ) की सिफारिशों को लागू करने पर पर्याप्‍त प्रगति नहीं हुई है।

i. बैंकों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि रेस्‍पोंडेंट बैंकों के पास केवाईसी/एएमएल नीति और प्रक्रियाएं हैं और संपर्ककर्ता खातों से होनेवाले लेनदेनों पर वे ‘संवर्धित समुचित सावधानी’ बरतते हैं।

65. वायर अंतरण

वायर अंतरण के समय विनियमित संस्‍थाएं निम्‍नलिखित बातों का ध्‍यान रखें:

(a) खाता न होने की स्थिति में सभी प्रकार के सीमापार वायर अंतरणों, जिनमें क्रेडिट या डेबिट कार्ड से किए गए लेनदेन शामिल हैं, के संबंध में लेनदेन के आरंभक की सही और अर्थपूर्ण जानकारी, जैसे कि – नाम, पता और खाता संख्‍या या विशिष्‍ट संदर्भ संख्‍या जो संबंधित देश में प्रचलित हो, होनी चाहिए।

अपवाद: जिन अंतर बैंक अं‍तरणों और निपटानों में आरंभक और लाभार्थी दोनों ही बैंक अथवा वित्‍तीय संस्‍थाएं हों, वहां उक्‍त शर्त से छूट होगी।

(b) पचास हजार रुपए और उससे उच्‍चतर राशि के घरेलू वायर अंतरण के संबंध में आरंभक की जानकारी, जैसे कि नाम, पता और खाता संख्‍या होनी चाहिए।

(c) यदि ग्राहक रिपोर्टिंग और मॉनीटरिंग से बचने के लिए जानबूझकर पचास हजार रुपए से नीचे की राशि के वायर अंतरण का उपयोग कर रहा हो तो ऐसे ग्राहक की पहचान की जानी चाहिए। यदि ग्राहक सहयोग न कर रहा हो तो ग्राहक की पहचान पता करने की कोशिश की जानी चाहिए और वित्‍तीय आसूचना एकक-भारत को संदिग्‍ध लेनदेन रिपोर्ट भेज देनी चाहिए।

(d) पात्र वायर अंतरण के संबंध में आरंभक की संपूर्ण जानकारी आदेशकर्ता बैंक द्वारा कम से कम पाँच वर्षों के लिए परिरक्षित की जानी चाहिए।

(e) जो बैंक वायर अंतरण की कड़ी में मध्‍यवर्ती (इंटरमीडीएरी) के रूप में काम कर रहा हो, उसे चाहिए कि वह आरंभक की संपूर्ण जानकारी वायर अंतरण के साथ रखे।

(f) प्राप्‍तकर्ता मध्‍यवर्ती बैंक को चाहिए कि वह सीमापार वायर अंतरण के साथ आरंभक की संपूर्ण जानकारी अंतरित करे। यदि तकनीकी सीमाओं के कारण संबंधित घरेलू वायर अंतरण के साथ उसे भेजना संभव न हो तो उसे कम से कम पाँच वर्षों तक परिरक्षित किया जाए।

(g) संबंधित विधि प्रवर्तन तथा/या अभियोजन प्राधिकारियों द्वारा मांगे जाने पर वायर अंतरणों के आरंभक की संपूर्ण जानकारी तुरंत उन्‍हें उपलब्‍ध कराई जाए।

(h) वायर अंतरणों के संबंध में आरंभक की संपूर्ण जानकारी के अभाव में ऐसे अंतरणों को पहचानने के लिए लाभार्थी बैंक के पास प्रभावी जोखिम आधारित प्रक्रिया होनी चाहिए।

(i) आरंभक की संपूर्ण जानकारी न होने पर लाभार्थी बैंक ऐसे लेनदेनों की जानकारी वित्‍तीय आसूचना एकक-भारत को संदिग्‍ध लेनदेन के रूप में देगा।

(j) लाभार्थी बैंक को चाहिए कि वह आदेशकर्ता बैंक से निधि भेजने वाले की विस्‍तृत जानकारी प्राप्‍त करे। यदि आदेशकर्ता बैंक निधि भेजनेवाले की जानकारी नहीं देता तो लाभार्थी बैंक को चाहिए कि वह आदेशकर्ता बैंक के साथ कारोबारी संबंधों को सीमित करने या उसे समाप्‍त करने पर विचार करे।

66. डिमांड ड्राफ्ट, आदि जारी करना एवं उनका भुगतान

डिमांड ड्राफ्ट, मेल/टेलिग्राफिक अंतरण/ एनईएफटी/ आईएमपीएस या अन्‍य किसी माध्‍यम और यात्री चेक के जरिए किए जाने वाले पचास हजार रुपए और उससे अधिक की राशि के प्रेषण नकद भुगतान के रूप में स्‍वीकार न करते हुए ग्राहक के खाते में नामे डालकर या चेक लेकर किए जाएं।

67. स्‍थायी अकाउंट नंबर (पैन) का उल्‍लेख करना

बैंकों के लिए लागू समय-समय पर किए गए संशोधित आयकर नियम 114बी के प्रावधानों के अनुसार ग्राहकों के साथ लेनदेन करते समय उनका स्‍थायी अकाउंट नंबर (पैन) लिया जाना चाहिए और उसका सत्‍यापन भी किया जाना चाहिए। जिनके पास पैन नहीं है उनसे फार्म 60 लेना चाहिए।

68. थर्ड पार्टी उत्‍पादों की बिक्री

जो विनियमित संस्‍था एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं उन्‍हें चाहिए कि वे समय-समय पर जारी विनियमों के अनुसार थर्ड पार्टी उत्‍पादों की बिक्री करते समय इन निदेशों के प्रयोजन हेतु निम्‍नलिखित अपेक्षाओं का अनुपालन करें:

(a) इन निदेशों की धारा 13(ई) में की गई अपेक्षानुसार नवागंतुक (वाक-इन) ग्राहक के पचास हजार रुपए से अधिक के लेनदेन के लिए उसकी पहचान और पता सत्‍यापित किया जाना चाहिए।

(b) अध्याय VII धारा 46 के निर्धारण के अनुसार थर्ड पार्टी उत्‍पादों की बिक्री संबंधी लेनदेनों के ब्‍योरे और संबंधित रिकॉर्ड रखे जाने चाहिए।

(c) थर्ड पार्टी उत्‍पादों के संबंध में नवागंतुक ग्राहकों सहित सभी ग्राहकों के साथ हुए लेनदेन के संबंध में सीटीआर/एसटीआर फाइल के लिए चेतावनियां कैप्‍चर करने, जनरेट करने और उनका विश्‍लेषण करने की योग्‍यता युक्‍त एएमएल सॉफ्टवेयर उपलब्‍ध होना चाहिए।

(d) पचास हजार रुपए और उससे ऊपर के लेनदेन केवल निम्‍नलिखित माध्‍यमों से किए जाएं:

  • ग्राहक के खाते में राशि नामे डाल कर या चेक के बदले में; और

  • खाताधारकों और नवागंतुक ग्राहकों का पैन क्रमांक लेकर उनका सत्‍यापन करके।

(e) उक्‍त (घ) में दिए गए अनुदेश विनियमित संस्‍था के अपने उत्‍पादों की बिक्री, क्रेडिट कार्ड की बकाया राशि का भुगतान करने/ प्री-पेड/ ट्रेवल कार्ड की बिक्री और उसे री-लोड करने और अन्‍य उत्‍पादों की ब्रिक्री के लिए भी लागू होंगे जहां लेनदेन की राशि पचास हजार रुपए और उससे अधिक है।

69. सहकारी बैंकों द्वारा उपयोग में लायी जाने वाली सममूल्‍य चेक सुविधा (एट पार)

(क) वाणिज्यिक बैंक सहकारी बैंकों को ‘सममूल्‍य’ चेक सुविधा देते हैं। इस सुविधा की मॉनीटरिंग की जानी चाहिए और इस व्‍यवस्‍था से होने वाले जोखिम, जिसमें ऋण जोखिम और प्रतिष्‍ठा संबंधी जोखिम शामिल हैं, का मूल्‍यांकन करने के लिए इस व्‍यवस्‍था की समीक्षा की जानी चाहिए। ।

(ख) केवाईसी और एएमएल के संबंध में जारी वर्तमान अनुदेशों के अनुपालन की दृष्टि से इस प्रकार की व्‍यवस्‍था के अंतर्गत ग्राहक सहकारी बैंक/समितियों द्वारा रखे गए अभिलेखों को सत्‍यापित करने का अधिकार बैंक को अपने पास रखना चाहिए।

(ग) सहकारी बैंकों को चाहिए कि वे:

i. यह सुनिश्चित करें कि ‘सममूल्‍य’ सुविधा का उपयोग केवल निम्‍नलिखित प्रयोजन के लिए हो:

क. स्‍वयं के उपयोग के लिए,

ख. केवाईसी अनुपालित अपने खाताधारकों के लिए, बशर्ते पचास हजार रुपए और उच्‍चतर राशि के सभी लेनेदेन अनिवार्य रूप से ग्राहकों के खातों में नामे द्वारा ही किए जाते हों,

ग. अकस्‍मात आने वाले ग्राहकों के लिए प्रति व्‍यक्ति पचास हजार रुपए से कम की नकद राशि के लिए।

ii. निम्नलिखित अपेक्षाओं का अनुपालन किया जाए:

क. जारी किए गए ‘सममूल्‍य’ चेकों का अभिलेख रखा जाए जिसमें आवेदक का नाम और खाता क्रमांक, लाभार्थी के ब्‍योरे, जारी किए गए ‘सममूल्‍य’ चेक की तारीख और अन्‍य जानकारी हो,

ख. जो वाणिज्‍य बैंक यह सुविधा उपलब्‍ध करा रहा है उसके साथ पर्याप्‍त शेष/ आहरण व्‍यवस्‍था बनाए रखी जाए ताकि ऐसे लिखतों का भुगतान हो सके।

iii. ‘सममूल्‍य’ चेक ‘आदाता खाता’ शब्‍दों के साथ रेखांकित हो, चाहे उसकी राशि कितनी भी हो।

70. प्री-पेड भुगतान लिखतों (पीपीआई) को जारी करना:

पीपीआई जारीकर्ता को चाहिए कि वह भारतीय रिज़र्व बैंक के भुगतान और निपटान प्रणाली विभाग द्वारा मास्‍टर निदेश के माध्‍यम से जारी अनुदेशों का कड़ाई से पालन करे।

71 कर्मचारियों की भर्ती और कर्मचारी प्रशिक्षण

(क) कर्मचारियों की भर्ती/ उनकी हायरिंग की प्रक्रिया में समुचित जांच-पड़ताल की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए।

(ख) वर्तमान कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की सतत व्‍यवस्‍था होनी चाहिए ताकि स्टाफ सदस्‍य एएमएल/सीएफटी नीति के बारे समुचित रूप से प्रशिक्षित हो सकें। फ्रंटलाइन स्‍टाफ, अनुपालन स्‍टाफ और नए ग्राहकों को सेवा देने वाले स्‍टाफ सदस्‍यों को उनके कार्य की अपेक्षानुसार प्रशिक्षण दिया जाए। फ्रंट डेस्‍क स्‍टाफ को ग्राहक शिक्षा की कमी के कारण उत्‍पन्‍न स्थितियों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाए। लेखा-परीक्षा कार्य के लिए उचित स्‍टाफ दिया जाए जो प्रशिक्षित हो और विनियमित संस्‍था की एएमएल/सीएफटी नीति, विनियम और संबंधित मामलों से अच्‍छी तरह परिचित हो।

72. एनबीएफसी/आरएनबीसी और उनके द्वारा प्राधिकृत व्यक्तियों, ब्रोकर/एजेंट आदि सहित, द्वारा ‘अपने ग्राहक को जानिए’ (केवाईसी) दिशानिर्देशों का पालन

(a) एनबीएफसी/आरएनबीसी द्वारा जमाराशियां संग्रह करने के लिए प्राधिकृत व्‍यक्ति, उनके ब्रोकर/एजेंट आदि एनबीएफसी/आरएनबीसी के लिए लागू केवाईसी दिशानिर्देशों के अनुरूप होने चाहिए।

(b) केवाईसी दिशानिर्देशों के अनुपालन की स्थिति के सत्‍यापन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को समस्‍त जानकारी उपलब्‍ध कराई जाएगी और एनबीएफसी/आरएनबीसी द्वारा प्राधिकृत व्‍यक्तियों, जिसमें उनकी ओर से कार्य कर रहे ब्रोकर/एजेंट आदि भी शामिल हैं, द्वारा किए गए उल्‍लंघन के कारण होने वाले परिणामों को वे पूरी तरह स्‍वीकार करेंगे।

(c) यदि एनबीएफसी/आरएनबीसी और उनके द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति, जिसमें ब्रोकर/एजें आदि भी शामिल है, कंपनी का ब्रोकरेज कार्य कर रहे हैं तो मांगे जाने पर उनकी लेखा-बहियां लेखा-परीक्षण और निरीक्षण के लिए उपलब्‍ध कराई जाएं।

अध्‍याय XI
निरसन प्रावधान

73. इन निदेशों के जारी होने के बाद परिशिष्‍ट में उल्लिखित भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेश/दिशानिर्देश निरस्‍त समझे जाएंगे।

74. उक्‍त परिपत्रों द्वारा दिए गए सभी अनुमोदनों/अभिस्‍वीकृतियों के संबंध में यह माना जाएगा कि वे इन निदेशों के अंतर्गत दिये गए हैं।

75. सभी निरस्‍त परिपत्रों के संबंध में यह माना जाएगा कि वे इस निदेश के जारी होने तक लागू थे।


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