20 फरवरी 2024
आरबीआई बुलेटिन - फरवरी 2024
आज भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का फरवरी 2024 अंक जारी किया। बुलेटिन में मौद्रिक नीति वक्तव्य, पांच भाषण, चार आलेख, वर्तमान आंकड़े शामिल हैं।
चार आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. संवृद्धि संगत राजकोषीय समेकन का आकार; III. हेडलाइन और मूल मुद्रास्फीति की गतिकी: क्या हाल के आघातों ने मूल मुद्रास्फीति की प्रकृति को बदल दिया है?; और IV. भारतीय सेवाओं और आधारभूत संरचना उद्यमों के उभरते कारोबारी मनोभाव - एक गहन विश्लेषण।
I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की अपेक्षा से अधिक मजबूत संवृद्धि प्रदर्शित करने की संभावना हाल के महीनों में मजबूत हुई है, जिसमें जोखिम व्यापक तौर पर संतुलित हैं। उच्च आवृत्ति संकेतकों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था 2023-24 की पहली छमाही में प्राप्त की गई गति को बरकरार रखे हुए है। कॉरपोरेट क्षेत्र द्वारा पूंजीगत व्यय के नए दौर की आशा से संवृद्धि के अगले चरण को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जनवरी 2024 की रीडिंग में नवंबर-दिसंबर की बढ़ोतरी से कम हो गई, जबकि मूल मुद्रास्फीति अक्तूबर 2019 के बाद से सबसे कम है।
II. संवृद्धि संगत राजकोषीय समेकन का आकार
माइकल देवब्रत पात्र, समीर रंजन बेहरा, हरेंद्र कुमार बेहरा, शेषाद्री बनर्जी, इप्सिता पाढी और सक्षम सूद द्वारा
भारत में राजकोषीय समेकन और संवृद्धि के बीच मध्यम अवधि की संपूरकताएं, विकासात्मक व्यय (यथा, स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल, डिजिटलीकरण और जलवायु जोखिम न्यूनीकरण) पर सरकारी व्यय के विन्यास को प्राथमिकता देने का तर्क देती हैं। एक गतिशील स्टोकेस्टिक सामान्य संतुलन (डीएसजीई) मॉडल को नियोजित करते हुए, यह आलेख राजकोषीय समेकन प्रक्षेपवक्र को रेखांकित करता है कि क्या सरकारी व्यय, रोजगार उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों, जलवायु जोखिम न्यूनीकरण और डिजिटलीकरण की ओर निर्देशित होता है।
मुख्य बातें:
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2024-25 के अंतरिम बजट में केंद्र सरकार का सकल राजकोषीय घाटा 2024-25 में जीडीपी का 5.1 प्रतिशत है, जो 2025-26 तक जीडीपी के 4.5 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप है। महामारी के बाद की अवधि में पूंजीगत व्यय को प्रदान किया गया प्रोत्साहन जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी को 3.4 प्रतिशत तक बढ़ाकर बनाए रखा गया है।
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अनुभवजन्य निष्कर्षों से पता चलता है कि विवेकपूर्ण राजकोषीय समेकन और संवृद्धि के बीच मध्यम अवधि की संपूरकताएं अल्पकालिक लागत से अधिक हैं। सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे, जलवायु न्यूनीकरण, डिजिटलीकरण और श्रम बल को कुशल बनाने पर खर्च करने से दीर्घकालिक संवृद्धि लाभांश प्राप्त हो सकता है।
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एक गतिशील स्टोकेस्टिक सामान्य संतुलन मॉडल का उपयोग करते हुए, हम पाते हैं कि यदि सरकारी व्यय उपर्युक्त क्षेत्रों की ओर निर्देशित होता है, तो सामान्य सरकार का ऋण-जीडीपी अनुपात 2030-31 तक जीडीपी के 73.4 प्रतिशत तक काफी हद तक कम हो सकता है।
III. हेडलाइन और मूल मुद्रास्फीति की गतिकी: क्या हाल के आघातों ने मूल मुद्रास्फीति की प्रकृति को बदल दिया है?
आशीष थॉमस जॉर्ज, शैलजा भाटिया, जॉइस जॉन और प्रज्ञा दास द्वारा
कोविड-19, यूक्रेन में युद्ध और प्रतिकूल जलवायु घटनाओं के कारण वर्ष 2020 के बाद से मुद्रास्फीति प्रक्रिया में बड़े आपूर्ति-पक्ष के आघातों की पृष्ठभूमि में , यह आलेख अंतर्निहित मुद्रास्फीति गतिविधियों को समझने में उनकी उपयुक्तता के लिए पूर्व-कोविड अवधि की तुलना में पूर्ण नमूना अवधि (जनवरी 2012 से दिसंबर 2023) के दौरान विभिन्न उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मूल मुद्रास्फीति उपायों, अर्थात् संचार में सुगमता, साधनों की समानता, कम भिन्नता, पूर्वानुमेयता, सह-एकीकरण, निष्पक्षता और आकर्षित करने वाली स्थिति, के वांछनीय गुणों की तुलना करता है।
मुख्य बातें:
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विभिन्न मूल मुद्रास्फीति उपायों के वांछनीय गुण – अपवर्जन आधारित, छंटनी के साधन, पुनः भारित सीपीआई, और प्रवृत्ति सीपीआई – कोविड-पूर्व अवधि की तुलना में कायम रहे।
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2020 की शुरुआत से, विशेष रूप से खाद्य और ऊर्जा में आपूर्ति पक्ष के कई आघातों के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति में कुछ हद तक निरंतरता बनी हुई है। इसके कारण मुलेतर से मूल मुद्रास्फीति में प्रभाव-प्रसार हुआ, जिससे मूल मुद्रास्फीति के कुछ गुण कमजोर हो गए, हालांकि लंबे समय में, मुलेतर मुद्रास्फीति अभी भी मूल मुद्रास्फीति में परिवर्तित हो जाती है।
IV. भारतीय सेवाओं और आधारभूत संरचना उद्यमों के उभरते कारोबारी मनोभाव- एक गहन विश्लेषण।
अभिलाष अरुण सतापे, निवेदिता बनर्जी और सुप्रिया मजूमदार द्वारा
कारोबार प्रवृत्ति सर्वेक्षण, जिसे पूर्वानुमान प्रत्याशा सर्वेक्षण के रूप में जाना जाता है, का उद्देश्य संबंधित समष्टि चर में संभावित गतिविधियों से संबंधित संकेत का पता लगाना है। ऐसा ही एक सर्वेक्षण, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित सेवाएँ और आधारभूत संरचना संभावना सर्वेक्षण (एसआईओएस) घरेलू सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों के मनोभावों को दर्शाता है। यह आलेख 2014-15 की पहली तिमाही से 2023-24 की दूसरी तिमाही की अवधि के दौरान एसआईओएस में शामिल विभिन्न गुणात्मक मापदंडों में व्यवहारिक परिवर्तनों की एक झलक प्रदान करता है।
मुख्य बातें:
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परिणाम बताते हैं कि एसआईओएस ने सर्वेक्षण मापदंडों और समष्टि आर्थिक चरों के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित करके पूर्वानुमान मूल्यांकन के लिए एक टूल के रूप में अपनी प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया है। सर्वेक्षण की प्रतिक्रियाएँ, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों में उत्पादन और कीमतों के उद्भव को समझने के लिए उपयोगी जानकारी प्रदान करती हैं।
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समग्र कारोबारी स्थिति पर उत्तरदाताओं का आकलन, क्षेत्र-विशिष्ट संवृद्धि प्रक्षेप पथों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जबकि बिक्री कीमतों पर संभावनाएं मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान के लिए मूल्यवान इनपुट प्रदान करती हैं।
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महामारी और उसके बाद के बाह्य आघातों से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, जैसे-जैसे कारोबार फिर से खुले और प्रतिबंधों में ढील दी गई, सेवा और आधारभूत संरचना दोनों क्षेत्रों में धीरे-धीरे सुधार हुआ। सर्वेक्षण में शामिल कारोबारी संस्थाओं की धारणा से संकेत मिलता है कि उनके कारोबार की प्रकृति में अंतर के बावजूद, कोविड के बाद, एसआईओएस में शामिल दोनों क्षेत्रों ने अर्थव्यवस्था में विश्वास की बहाली का प्रदर्शन किया।
बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
(श्वेता शर्मा)
उप महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/1906 |