भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) देश के विदेशी मुद्रा भण्डार का अभिरक्षक है और इस भण्डार के निवेश- प्रबंधन का दायित्व बैंक की जिम्मेदारी में निहित है। विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के संबंध में रिज़र्व बैंक की नीतियों के आधारभूत मानदंड सुरक्षा, तरलता और प्रतिलाभ हैं। विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन को अभिशासित करने वाले विधिक प्रावधान आरबीआई अधिनियम, 1934 में दिए गए हैं। संक्षेप में, उक्त अधिनियम निम्नलिखित व्यापक निवेश श्रेणियों की अनुमति देता है:
क) अन्य केंद्रीय बैंकों और अंतरराष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) में जमाराशियां;
ख) विदेशी वाणिज्यिक बैंकों में जमाराशियां;
ग) 10 वर्ष से अनधिक अवशिष्ट परिपक्वता अवधि वाले संप्रभु /संप्रभु गारंटी देयताओं वाले ऋण लिखत;
घ) भारतीय रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में अनुमोदित अन्य लिखत/ संस्थाएं;
ङ) स्वर्ण में निवेश, विक्रय, क्रय और जमा; और
च) कतिपय प्रकार के डेरिवेटिव में कारोबार।
जहां सुरक्षा और तरलता विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के दो प्रमुख स्तंभ हैं, वहीं इष्टतम प्रतिलाभ की कार्यनीति भी इस ढांचे में समाहित है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भण्डार की सुरक्षा तथा तरलता बढ़ाने के लिए निर्गमकर्ताओं, प्रतिपक्षकारों और उनके साथ किए जाने वाले निवेश के चयन के संबंध में कड़े पात्रता मानदंड निर्धारित करते हुए मार्गदर्शी सिद्धांत तैयार किए हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत सरकार के साथ परामर्श से, विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन कार्यनीतियों की सतत समीक्षा करता रहता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक में विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन का कार्य बाह्य निवेश और परिचालन विभाग (बानिपवि) द्वारा किया जाता है।