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गवर्नर

कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे होंगे जो भारतीय जनमानस के इतने नजदीक फिर भी इतने दूर होंगे जितने कि रिज़र्व बैंक के गवर्नर तथा कम ही होंगे जो विस्मय व भय का वैसा भाव पैदा करते हैं: करीब, क्योंकि लगभग प्रत्येक व्यक्ति, कितान ही गरीब हो या कितना ही अमीर, के पास गवर्नर का वादा और हस्ताक्षर होता है। दूर, क्योंकि परंपरागत रूप से केंद्रीय बैंकर मर्यादित व प्रचार से दूर होते हैं। देश के मुद्रा भंडार के अभिरक्षक व मुद्रा के बाह्य मूल्य के रक्षक के रूप में वे विस्मयकारी हैं ही। तथा जिसे सब चाहते हों पर कम ही लोग समझते हों, वैसी वस्तु यानी धन के भंडारी के रूप में उनके पास रहस्य का प्रभामंडल भी है।

धुंध के पीछे और जन अवधारणा को हटाकर देखने पर, एक विशेष संदर्भ में गवर्नर का व्यक्तित्व देश के किसी भी सार्वजनिक या निजी क्षेत्र के अधिकारी की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण क्योंकि उसे देश में मौद्रिक स्थिरता सुनिश्चित करने का अधिदेश (मेंडेट) प्राप्त है। यह आम नागरिकों के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है।

List of Governors

सर ओसबोर्न स्मिथ
सर जेम्स टेलर
सर सी डी देशमुख
सर बेनेगल रामाराउ
के जी आंबेगांवकर
एच वी आर आयंगर
पी सी भट्टाचार्य
एल के झा
बी एन आदरकर
एस जगन्नाथन
एन सी सेनगुप्ता
के आर पुरी
एम नर सिम्ह्म
डॉ आई जी पटेल
डॉ मनमोहन सिंह
ए घोष
आर एन मल्होत्रा
एस वेंकिटारमणन
डॉ सी रंगराजन
डॉ बिमल जालान
डॉ वाई वी रेड्डी
डॉ. डी सुब्बाराव
डॉ रघुराम राजन
डॉ उर्जित आर. पटेल
श्री शक्तिकान्त दास

सर ओसबोर्न स्मिथ

01-04-1935 से 30-06-1937

Sir Osborne Smith
सर ओसबोर्न स्मिथ रिजर्व बैंक के पहले गवर्नर थे। वे एक पेशेवर बैंकर थे। 1926 में वे इंपीरियल बैंक के प्रबंध गवर्नर के रूप में भारत आए। इससे पहले उन्होंने 1926 में बैंक ऑफ न्यू साउथ वेल्स और 10 साल के लिए कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया में अपनी सेवा दी।

इम्पीरियल बैंक के उनके नेतृत्व ने उन्हें भारत में बैंकिंग क्षेत्रों में पहचान दिलाई। तथापि, विनिमय दर और ब्याज दरों जैसे नीतिगत मुद्दों पर उनका दृष्टिकोण सरकार से अलग था। अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल के पूरा होने से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वैसे, सर ओसबोर्न ने अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी बैंक नोट पर हस्ताक्षर नहीं किए।



सर जेम्स टेलर

01-07-1937 से 17-02-1943

Sir James Taylor
सर जेम्स ब्रैड टेलर भारतीय सिविल सेवा से थे और उन्होंने भारत सरकार के मुद्रा विभाग में एक दशक से अधिक समय तक सेवा दी थी, शुरुआत में उप नियंत्रक के रूप में, बाद में मुद्रा नियंत्रक के रूप में, और उसके बाद वित्त विभाग में अतिरिक्त सचिव के रूप में कार्य किया। वे भारतीय रिजर्व बैंक बिल की तैयारी और पुरोगंता के रूप में सघनता से जुड़े थे। गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले बैंक के उन्होंने उप गवर्नर के रूप में कार्य किया।

युद्ध के वर्षों में उन्होंने बैंक को बड़ी कुशलता से संभाला तथा इस दौरान प्रारंभ व प्रोत्साहित किए गए वित्तीय प्रयोगों में रजत मुद्रा से कागजी मुद्रा की ओर निर्णायक मोड़ भी शामिल था। उनके अकाल निधन से उनका दूसरा कार्यकाल समाप्त हो गया।

सर सी डी देशमुख

11-08-1943 से 30-06-1949

Sir C D Deshmukh
भारतीय सिविल सेवा के श्री चिंतामन द्वारकानाथ देशमुख, बैंक के पहले भारतीय गवर्नर थे। 1939 में बैंक के साथ उनके संबंध तब शुरू हुए, जब उन्हें सरकार का संपर्क अधिकारी नियुक्त किया गया। बाद में उन्होंने सचिव के रूप में और उसके बाद 1941 में बैंक के उप-गवर्नर के रूप में कार्य किया। जेम्स टेलर के निधन पर उन्होंने बैंक की कमान संभाली थी और अगस्त, 1943 में उन्हें गवर्नर नियुक्त किया गया।

गवर्नर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने 1944 में ब्रेटन वुड्स वार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व किया, स्वतंत्रता व देश के विभाजन के दौर देखे और भारत और पाकिस्तान के बीच रिजर्व बैंक की परिसंपत्तियों और देनदारियों के विभाजन का कार्य संभाला। 1 जनवरी 1949 को बैंक का राष्ट्रीयकरण किए जाने के बाद एक शेयरधारक की संस्था से एक राज्य के स्वामित्व वाले संगठन में बैंक के सुचारु परिवर्तन में मदद की। बाद में उन्होंने 1950-56 के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री का पद संभाला।



सर बेनेगल रामा राउ

01-07-1949 से 14-01-1957

Sir Benegal Rama Rau
भारतीय सिविल सेवा के सदस्य रहे सर बेनेगल रामा राउ, बैंक में सबसे लंबे कार्यकाल वाले गवर्नर थे। बैंक में शामिल होने से पहले उन्होंने संयुक्त राज्य (यूएस) में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य किया।

उनके कार्यकाल ने योजना युग की शुरुआत के साथ-साथ सहकारी ऋण और औद्योगिक वित्त के क्षेत्र में अभिनव पहल देखे। उनके कार्यकाल के दौरान नियुक्त अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण समिति की सिफारिशों से इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का भारतीय स्टेट बैंक में परिवर्तन हुआ। नोट जारी करने की आनुपातिक रिजर्व प्रणाली के स्थान पर न्यूनतम रिजर्व प्रणाली आई जिससे बैंक को अधिक परिवर्तनशीलता मिली ।

वित्त मंत्री के साथ मतभेदों के कारण अपने दूसरे कार्यकाल की अवधि समाप्त होने से पहले उन्होंने जनवरी 1957 के मध्य में इस्तीफा दे दिया।

के जी आम्बेगांवकर

14-01-1957 से 28-02-1957

K G Ambegaonkar
भारतीय सिविल सेवा के सदस्य के जी अंबेगांवकर ने उप गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले वित्त सचिव के रूप में कार्य किया था। बी रामा राउ के इस्तीफे के बाद, एच वी आर आयंगर के पदभार संभालने तक उन्हें अंतरिम गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया था।

उन्होंने कृषि उद्यम और रिजर्व बैंक के कार्यों को और घनिष्ठता से जोड़ा। के जी अम्बेगांवकर ने किसी भी बैंक नोट पर हस्ताक्षर नहीं किए।



एच वी आर आयंगार

01-03-1957 से 28-02-1962

H V R Iengar
भारतीय सिविल सेवा के एच वी आर आयंगर ने रिज़र्व बैंक के गवर्नर के रूप में नियुक्त होने से पहले अल्प अवधि के लिए भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष के रूप में सेवा की थी।

उनके कार्यकाल में भारत ने पहले की प्रथा छोड़ दशमलव सिक्का प्रणाली अपनाई। इस अवधि में बैंकिंग उद्योग को मजबूत करने के सचेत प्रयास हुए। सितंबर 1960 में बैंकों के समामेलन और लाइसेंस समाप्त करने का अधिकार बैंक को मिला। पुनर्वित्त की अवधारणा के प्रयोग से बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उद्योग को मध्यम अवधि के ऋणों को प्रोत्साहित किया, जिससे आगे चलकर उद्योग पुनर्वित्त निगम लिमिटेड की स्थापना हुई। बैंक जमाराशियों के लिए जमा बीमा की शुरुआत 1962 में हुई, और इस प्रकार भारत जमाराशि बीमा के क्षेत्र में प्रयोग करने वाले शुरुआती देशों में से एक हुआ। मौद्रिक नीति के क्षेत्र में, चर आरक्षित नकदी निधि अनुपात और चयनात्मक ऋण नियंत्रण का प्रयोग भी पहली बार किया गया।

पी सी भट्टाचार्य

01-03-1962 से 30-06-1967

P C Bhattacharya
इंडियन ऑडिट एंड एकाउंट सर्विस, के सदस्य पीसी भट्टाचार्य ने गवर्नर के रूप में नियुक्त होने से पहले वित्त मंत्रालय में सचिव व इसके बाद भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दीं।

उनके कार्यकाल में भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (1964), और कृषि पुनर्वित्त निगम (1963) और भारतीय यूनिट ट्रस्ट (1964) की स्थापना हुई।

1966 में ऋण विनियम (क्रेडिट रेगुलेशन) के एक साधन के रूप में ऋण प्राधिकार योजना, 1966 में रुपये के अवमूल्यन के साथ आयात उदारीकरण और निर्यात सब्सिडी को खत्म करने सहित कई उपायों के पैकेज की शुरुआत इनके कार्यकाल की अन्य प्रमुख बातें थीं।



एल के झा

01-07-1967 से 03-05-1970

L K Jha
भारतीय सिविल सेवा के सदस्य एल के झा ने गवर्नर के रूप में नियुक्ति से पहले प्रधानमंत्री के सचिव के रूप में कार्य किया।

उनके कार्यकाल के दौरान, 1968 में एक प्रयोग के रूप में वाणिज्यिक बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण शुरू किया गया था, जिसके अंतर्गत एक राष्ट्रीय ऋण परिषद (क्रेडिट काउंसिल) की स्थापना की गई थी। इसके तुरंत बाद, 1969 में 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, एक ऐसा कदम, जिसे रिज़र्व बैंक का समर्थन नहीं था।

अन्य घटनाक्रमों में, स्वर्ण नियंत्रण सांविधिक आधार पर लाया गया; जमा बीमा को सिद्धांतत: सहकारी बैंकों तक विस्तार दिया गया; ऋण वितरण सुगम बनाने के लिए अग्रणी (लीड) बैंक योजना की शुरुआत, और कृषि क्रेडिट बोर्ड की स्थापना थी। गवर्नर के रूप में कार्यकाल पूरा होने से पहले एल के झा को मई 1970 में संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया था।

बी एन आदरकर

04-05-1970 से 15-06-1970

B N Adarkar
एस जगन्नाथन के गवर्नर के रूप में कार्यभार ग्रहण करने तक बी एन आदरकर ने गवर्नर का पद संभाला।

वे एक पेशेवर अर्थशास्त्री थे और उन्होंने भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार के पद पर कई वर्षों तक कार्य किया तथा बैंक के उप-गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में महत्वपूर्ण पदों पर रहे।

उन्होंने आईएमएफ में भारत के कार्यकारी निदेशक के रूप में भी कार्य किया और उप गवर्नर के रूप में, उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बैंक मैनेजमेंट की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई।



एस जगन्नाथन

16-06-1970 से 19-05-1975

S Jagannathan
एस जगन्नाथन भारतीय सिविल सेवा के सदस्य थे। गवर्नर के रूप में नियुक्त किए जाने से पहले उन्होंने केंद्र सरकार में और तत्पश्चात विश्व बैंक में भारत के कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य किया था।

तेल के झटके के बाद देश में अभूतपूर्व मुद्रास्फीति के मद्देनजर एक अति सक्रिय मौद्रिक नीति, राष्ट्रीयकरण के महत्वपूर्ण उद्देश्यों के रूप में बैंकिंग कार्यालयों का उत्तरोत्तर विस्तार; क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की स्थापना, राज्य स्तरीय बैंकर्स समितियों की स्थापना और फ्लोटिंग रेट्स व्यवस्था में बदलाव उनके कार्यकाल की प्रमुख बातें थी।

आईएमएफ में भारतीय कार्यपालक निदेशक का पद ग्रहण करने के लिए उन्होंने गवर्नर का पद छोड़ दिया।

एन सी सेनगुप्ता

19-05-1975 से 19-08-1975

N C Sen Gupta
के सी पुरी के पद संभालने तक एन सी सेन गुप्ता को तीन महीने के लिए गवर्नर नियुक्त किया गया था।

राज्यपाल के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले, वह वित्त मंत्रालय के बैंकिंग विभाग के सचिव के रूप में काम कर रहे थे।



के आर पुरी

20-08-1975 से 02-05-1977

K R Puri
के आर पुरी ने गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले भारतीय जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के रूप में कार्य किया था।

उनके कार्यकाल के दौरान, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई थी; एशियाई समाशोधन संघ ने कार्य शुरू किया; बीस सूत्री आर्थिक कार्यक्रम की घोषणा की गई और कार्यान्वयन हुआ और एक नई मुद्रा आपूर्ति श्रृंखला शुरू की गई।

एम नरसिम्हम

02-05-1977 से 30-11-1977

M Narasimham
एम नरसिम्हम रिजर्व बैंक कैडर से नियुक्त होने वाले प्रथम और अब तक के एकमात्र गवर्नर हुए। वे बैंक में आर्थिक विभाग में अनुसंधान अधिकारी के रूप में भर्ती हुए थे। बाद में उन्होंने सरकार में नौकरी की और गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले आर्थिक कार्य विभाग के अतिरिक्त सचिव के रूप में कार्य किया।

उनका कार्यकाल सात महीने की अल्पावधि का था। बाद में उन्होंने विश्व बैंक में भारत के लिए कार्यपालक निदेशक के रूप में और उसके बाद आईएमएफ में कार्य किया जिसके बाद उन्होंने वित्त मंत्रालय में सचिव के रूप में कार्य किया। वह वित्तीय प्रणाली समिति, 1991 और बैंकिंग क्षेत्र सुधार समिति, 1998 के अध्यक्ष थे।



डॉ आई जी पटेल

01-12-1977 से 15-09-1982

Dr. I G Patel
अर्थशास्त्री और प्रशासक डॉ आई जी पटेल, वित्त मंत्रालय और उसके बाद यूएनडीपी में सचिव के रूप में सेवा देने के बाद रिजर्व बैंक में गवर्नर के रूप में आए।

उनके कार्यकाल में उच्च मूल्यवर्ग के नोटों के विमुद्रीकरण के साथ-साथ भारत सरकार की ओर से बैंक के संचालन में "सोने की नीलामी" हुई। इस दौरान छह निजी क्षेत्र के बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, प्राथमिकता क्षेत्र में ऋण के लक्ष्य प्रारंभ किए गए, और डिपॉजिट इंश्योरेंस और क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन का विलय किया गया, और बैंक में एक विभागीय पुनर्गठन किया गया। भुगतान संतुलन कठिनाइयों के मद्देनजर उन्होंने 1981 में आईएमएफ की विस्तारित निधि सुविधा (फ़ंड फ़ैसिलिटी) का लाभ उठाने में सक्रिय भूमिका निभाई। यह आईएमएफ के इतिहास में उस समय की सबसे बड़ी व्यवस्था थी।

डॉ मनमोहन सिंह

16-09-1982 से 14-01-1985

Dr. Manmohan Singh
अकादमिक और प्रशासक डॉ मनमोहन सिंह ने गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले वित्त सचिव और योजना आयोग के सदस्य सचिव के रूप में भी कार्य किया था।

उनके कार्यकाल के दौरान बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित व्यापक विधायी सुधार किए गए और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में एक नया अध्याय जोड़ा गया और शहरी बैंक विभाग स्थापित किया गया।

बैंक में अपने कार्यकाल के बाद, उन्होंने वित्त मंत्री नियुक्त होने से पहले विभिन्न पदों पर सेवा की। वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल इस तथ्य के लिए उल्लेखनीय था कि उन्होंने भारत में उदारीकरण और व्यापक सुधारों की शुरुआत की।



ए घोष

15-01-1985 से 04-02-1985

A Ghosh
ए घोष 1982 से बैंक के उप-गवर्नर थे और इसी समय उन्हें आर एन मल्होत्रा के पदभार संभालने तक 15 दिनों के लिए गवर्नर नियुक्त किया गया था। बैंक के उप गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले वे इलाहाबाद बैंक के अध्यक्ष थे। वह भारतीय औद्योगिक विकास बैंक और राष्ट्रीय बैंक प्रबंध संस्थान (एन्आईबीएम) के शासी निकाय के निदेशक भी थे।

आर एन मल्होत्रा

04-02-1985 से 22-12-1990

R N Malhotra
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य, आर एन मल्होत्रा ने आईएमएफ के कार्यपालक निदेशक और वित्त सचिव के रूप में कार्य किया।

उनके कार्यकाल के दौरान मुद्रा बाजारों को विकसित करने के प्रयास किए गए और नए लिखत (उपकरण) लाए गए। डिस्काउंट एंड फाइनेंस हाउस ऑफ़ इंडिया, नेशनल हाउसिंग बैंक की स्थापना की गई और इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च का उद्घाटन किया गया। ग्रामीण वित्त के क्षेत्र में, वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से ऋण के प्रवाह को उत्प्रेरित करने के लिए सेवा क्षेत्र पद्धति को अपनाया गया।



वेंकिटारमणन

22-12-1990 से 21-12-1992

Venkitaramanan
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य एस वेंकटरमन ने गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले कर्नाटक सरकार में वित्त सचिव और सलाहकार के रूप में कार्य किया था।

उनके कार्यकाल में देश को बाह्य क्षेत्र से संबंधित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके कुशल प्रबंधन ने देश को भुगतान संतुलन के संकट के पार उतारा। उनके कार्यकाल में भारत ने आईएमएफ के स्थैर्यकरण कार्यक्रम को भी अपनाया, जिसमें रुपये का अवमूल्यन हुआ और आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।

डॉ. सी. रंगराजन

22-12-1992 से 22-11-1997

Dr. C Rangarajan
डॉ सी रंगराजन एक पेशेवर अर्थशास्त्री थे। गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले, उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक उप गवर्नर के रूप में कार्यभार संभाला। वह योजना आयोग के सदस्य और दसवें वित्त आयोग के सदस्य भी थे।

गवर्नर के रूप में उनके कार्यकाल में वित्तीय क्षेत्र की प्रतिस्पर्धी क्षमता को मजबूत करने और बेहतर बनाने की दिशा में व्यापक कदम उठाते हुए अभूतपूर्व केंद्रीय बैंक सक्रियता देखने को मिली। नई संस्थाएं व लिखत (इन्स्ट्रूमेंट) लाए गए और विनिमय दर प्रबंधन में परिवर्तन का समापन एकीकृत विनिमय दर की स्थापना में हुआ। मौद्रिक नीति के क्षेत्र में, उनके कार्यकाल में बैंक और सरकार के बीच ऐतिहासिक ज्ञापन हस्ताक्षरित हुआ, जिसके तहत बैंक द्वारा सरकार को तदर्थ खजाना बिलों (ट्रेजरी बिल) के रूप में स्वत: वित्त पर एक सीमा निर्धारित की गई थी।



डॉ बिमल जालान

22-11-1997 से 06-09-2003

Dr. Bimal Jalan
गवर्नर के रूप में नियुक्त होने से पहले डॉ बिमल जालान ने भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार, बैंकिंग सचिव, वित्त सचिव, योजना आयोग के सदस्य सचिव, और प्रधान मंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने आईएमएफ और विश्व बैंक के कार्यकारी बोर्डों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।

उनके कार्यकाल के दौरान, भारत ने एशियाई संकट का सामना किया और उदारीकरण और आर्थिक सुधारों के लाभ को सुदृढ़ किया। मौद्रिक नीति प्रक्रिया को रहस्यमुक्त किया गया और केंद्रीय बैंक संप्रेषण में पारदर्शिता की ओर जाने का स्पष्ट संकेत दिखा।

इस दौर में बैंकिंग क्षेत्र को मजबूत करने, नए संस्थानों की स्थापना करने और नए उपकरणों (इन्सट्रूमेंट्स) को लाने के लिए कई कदम देखने को मिले। भुगतान और विदेशी मुद्रा की सुदृढ़ स्थिति, मुद्रास्फीति में कमी और नरम ब्याज दर इस अवधि की विशेषता रही है।

डॉ वाई वी रेड्डी

06-09-2003 से 05-09-2008

Dr. Y V Reddy
इक्कीसवें गवर्नर डॉ यागा वेणुगोपाल रेड्डी, भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य हैं। उन्होंने अपने कैरीयर का अधिकांश समय वित्त और योजना के क्षेत्रों में बिताया है। उन्होंने वित्त मंत्रालय में सचिव (बैंकिंग), अतिरिक्त सचिव, वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार में वित्त मंत्रालय में संयुक्त सचिव, आंध्र प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव, और रिज़र्व बैंक के उप-राज्यपाल के रूप में छः वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। राज्यपाल के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले, डॉ रेड्डी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के बोर्ड में भारत के कार्यकारी निदेशक थे।

डॉ रेड्डी ने वित्तीय क्षेत्र के सुधारों; वित्त व्यापार; भुगतान संतुलन और विदेशी मुद्रा दर की निगरानी; बाहरी वाणिज्यिक उधार; केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध; क्षेत्रीय योजना; और सार्वजनिक उद्यम सुधार के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण नीतिगत योगदान दिया है और संस्थाओं के निर्माण में करीब से जुड़े रहे हैं। उनके नाम कई पुस्तकें हैं जो मुख्यत: वित्त, योजना और सार्वजनिक उद्यमों से संबंधित हैं।

डॉ. डी. सुब्बाराव

05-09-2008 से 04-09-2013

Dr. D. Subbarao
डॉ डी सुब्बाराव ने 5 सितंबर, 2008 को भारतीय रिज़र्व बैंक के 22 वें गवर्नर के रूप में पदभार संभाला। डॉ सुब्बाराव को तीन साल के कार्यकाल के लिए नियुक्त किए गए। इस नियुक्ति से पहले, डॉ सुब्बाराव भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में वित्त सचिव थे

डॉ सुब्बाराव इससे पहले प्रधान मंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के सचिव (2005-2007), विश्व बैंक में प्रमुख अर्थशास्त्री (1999-2004), आंध्र प्रदेश सरकार के वित्त सचिव (1993-98) और आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार में संयुक्त सचिव रह चुके हैं(1988-1993)।

डॉ सुब्बाराव को लोक वित्त का काफ़ी अनुभव है। विश्व बैंक में, उन्होंने अफ्रीका और पूर्वी एशिया के देशों में लोक वित्त के मुद्दों पर काम किया। उन्होंने चीन, इंडोनेशिया, वियतनाम, फिलीपींस और कंबोडिया सहित पूर्वी एशिया के प्रमुख देशों में विकेंद्रीकरण पर एक प्रमुख अध्ययन किया। डॉ सुब्बाराव राज्य स्तर पर राजकोषीय सुधार की शुरुआत में भी शामिल थे। डॉ। सुब्बाराव ने लोक वित्त, विकेंद्रीकरण और सुधारों की राजनीतिक अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर विस्तार से लिखा है।

11 अगस्त 1949 को जन्मे डॉ सुब्बाराव ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर से भौतिक विज्ञान में बीएससी (ऑनर्स) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से भौतिकी में एम.एससी की डिग्री हासिल की है। डॉ सुब्बाराव ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एमएस की डिग्री भी रखते हैं। 1982-83 में एमआईटी में हम्फ्री फेलो थे। उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की है और उनकी थीसिस उप-राष्ट्रीय स्तर पर राजकोषीय सुधार पर है। डॉ सुब्बाराव 1972 में भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय विदेश सेवाओं में प्रवेश के लिए अखिल भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में टॉपर थे। वह सिविल सेवा में शामिल होने वाले पहले आईआईटीयन्स में से थे।

डॉ. रघुराम राजन

04-09-2013 से 04-09-2016

Dr. Raghuram Rajan

डॉ. रघुराम राजन ने 4 सितंबर, 2013 को भारतीय रिज़र्व बैंक के 23 वें गवर्नर के रूप में पदभार ग्रहण किया। इससे पहले, वे वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार और शिकागो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल में वित्त के एरिक जे ग्लेशियर डिस्टिंग्विश्ड सर्विस प्रोफेसर थे। 2003 और 2006 के बीच, डॉ. राजन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में मुख्य अर्थशास्त्री और अनुसंधान निदेशक थे।

डॉ. राजन की अनुसंधान रुचियां बैंकिंग, कॉर्पोरेट वित्त और आर्थिक विकास में हैं, विशेषत: इसमें वित्त की भूमिका में। उन्होंने 2003 में लुइगी ज़िंगेल्स के साथ सेविंग कैपिटलिज्म फ्रॉम कैपिटलिस्ट्स का सह-लेखन किया है। उन्होंने इसके बाद फॉल्ट लाइन्स: हाउ हिडन फ्रैक्चर्स स्टिल थ्रेटेन द वर्ल्ड इकोनॉमी लिखा, जिसके लिए उन्हें 2010 में सर्वोत्तम कारोबारी पुस्तक (बेस्ट बिजनेस बुक) के लिए फाइनेंशियल टाइम्स-गोल्डमैन जाक्स पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

डॉ. राजन ग्रूप ऑफ़ थर्टी के सदस्य हैं। वह 2011 में अमेरिकन फाइनेंस एसोसिएशन के अध्यक्ष थे और अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज के सदस्य हैं। जनवरी 2003 में, अमेरिकन फाइनेंस एसोसिएशन ने डॉ. राजन को 40 वर्ष से कम आयु के सर्वश्रेष्ठ वित्त शोधकर्ता के लिए उद्घाटन फिशर ब्लैक पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्हें जो अन्य पुरस्कार मिले हैं, उनमें 2011 में नैसकॉम का वैश्विक भारतीय अवार्ड, 2012 में आर्थिक विज्ञान के लिए इन्फोसिस पुरस्कार, और 2013 में वित्तीय अर्थशास्त्र के लिए सेंटर फॉर फाइनैंशियल स्टडीज़-ड्यूश बैंक प्राइज़ शामिल है।

डॉ. राजन का जन्म 3 फरवरी, 1963 को हुआ, उनकी पत्नी का नाम राधिका है और उनके दो बच्चे हैं।

डॉ. ऊर्जित आर पटेल

04-09-2016 से 11-12-2018

Dr. Urjit R. Patel

डॉ ऊर्जित आर पटेल ने जनवरी 2013 से उप – गवर्नर के रूप में कार्य करने के बाद 4 सितंबर, 2016 को भारतीय रिज़र्व बैंक के चौबीसवें गवर्नर के रूप में पदभार ग्रहण किया। प्रथम तीन वर्ष के कार्यकाल के बाद 11 जनवरी 2016 को उप गवर्नर के रूप में उन्हें पुनः नियुक्त किया गया। उप गवर्नर के रूप में डॉ पटेल ने मौद्रिक नीति ढाँचे को संशोधित और मजबूत करने के लिए विशेषज्ञ समिति की अध्यक्षता की। भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, उन्होंने ब्रिक्स राष्ट्रों के बीच अंतर-सरकारी संधि और अंतर-केंद्रीय बैंक समझौते (आईसीबीए) पर हस्ताक्षर करने में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिसके कारण आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (सीआरएए), स्थापित हुई जो इन देशों के केंद्रीय बैंकों के बीच एक स्वैप लाइन का ढाँचा है।

डॉ पटेल ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में भी काम किया है। 1996-1997 के दौरान वे आईएमएफ से रिजर्व बैंक में प्रतिनियुक्ति पर थे, और उस क्षमता में उन्होंने ऋण बाजार के विकास, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार, पेंशन फंड सुधार और विदेशी मुद्रा बाजार के विकास पर सुझाव दिए। वे 1998 से 2001 तक भारत सरकार के वित्त मंत्रालय (आर्थिक कार्य विभाग) के सलाहकार थे। उन्होंने सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में अन्य कार्य भी किए हैं।

डॉ पटेल ने कई केंद्रीय और राज्य सरकार के उच्च स्तरीय समितियों के साथ मिलकर काम किया है, जिसमें प्रत्यक्ष कर (केलकर समिति) पर कार्य बल, सिविल और रक्षा सेवा पेंशन प्रणाली की समीक्षा के लिए उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह, बुनियादी ढाँचे पर प्रधान मंत्री कार्य दल, टेलीकॉम मामलों पर मंत्रियों के समूह, नागरिक उड्डयन सुधार समिति और राज्य बिजली बोर्डों पर विद्युत विशेषज्ञ समूह शामिल हैं।

डॉ पटेल के नाम भारतीय मैक्रोइकॉनॉमिक्स, मौद्रिक नीति, लोक वित्त, भारतीय वित्तीय क्षेत्र, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और नियामक अर्थशास्त्र के क्षेत्रों में कई प्रकाशन हैं।।

डॉ पटेल ने येल विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड से एम फिल और लंदन विश्वविद्यालय से बी.एससी की है।

श्री शक्तिकान्त दास

12-12-2018 से अब तक

Shri Shaktikanta Das

श्री शक्तिकान्त दास, आईएएस सेवानिवृत्त, पूर्व सचिव, राजस्व विभाग और आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने 12 दिसंबर, 2018 से भारतीय रिजर्व बैंक के 25 वें गवर्नर के रूप में पदभार ग्रहण किया। अपने वर्तमान कार्यभार से ठीक पहले वे 15 वें वित्त आयोग के सदस्य और G20 शेरपा ऑफ़ इंडिया के रूप में कार्य कर रहे थे।

पिछले 38 वर्षों में श्री शक्तिकान्त दास ने अभिशासन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक अनुभव प्राप्त किया है। श्री दास ने केंद्र और राज्य सरकारों में वित्त, कराधान (टैक्सेशन), उद्योग, आधार-संरचना, आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है।

भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान, वे सीधे तौर पर 8 यूनियन बजटों की तैयारी से जुड़े थे। श्री दास ने में भारत के वैकल्पिक गवर्नर के रूप में वर्ल्ड बैंक में, एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी), न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एईआईआईबी) में भी काम किया है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों जैसे आईएमएफ, जी 20, ब्रिक्स, सार्क आदि में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

श्री शक्तिकान्त दास सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर हैं।

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