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सामाजिक नियंत्रण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण और बैंक विस्तार का युग 1968 से 1985

दिनांक घटना
दिसंबर 1967 बैंकिग प्रणाली को आर्थिक नीति की जरूरतों के अनुरूप बेहतर ढंग से ढालने के लिए बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण की शुरुआत।
22 दिसंबर 1967 अखिल भारतीय स्तर पर ऋण प्राथमिकताओं पर चर्चा व इसके आकलन के लिए राष्ट्रीय ऋण परिषद (नेशनल क्रेडिट काउंसिल) का गठन। काउंसिल का उद्देश्य ऋण आबंटन में आरबीआई व सरकार की सहायता।
1 अप्रैल 1968 चतुष्क मिश्र धातु रुपए के सिक्के (क्वार्टरनरी अलॉय रूपी कॉयन) विमुद्रित।
1 सितंबर 1968 नियंत्रण की व्यवस्था स्थायी सांविधिक स्तर पर लाने के लिए स्वर्ण (नियंत्रण) अधिनियम पास किया गया।
(देखें : 1966 स्वर्ण नियंत्रण नियमावली)
1968 निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निर्यात ऋण (ब्याज सहायकी/सब्सिडी) योजना, 1968 की शुरुआत। निर्यात प्रोत्साहन उपाय के रूप में जनवरी 1969 से पोत-लदान पूर्व ऋण (प्रि-शिपमेंट क्रेडिट) योजना का प्रारंभ। इससे बैंक रिज़र्व बैंक से पुनर्वित्त ले पाए।
29 जनवरी 1969 निम्नलिखित पर रिपोर्ट के लिए भारत सरकार द्वारा बैंकिंग आयोग की स्थापना (i) बैंकिंग लागत; (ii) बैंकिंग को प्रभावित करने वाले कानून; (iii) देशी बैंकिंग; (iv) बेंक प्रक्रियाएं; (v) बैंकेतर वित्तीय मध्यवर्ती संस्थाएं।
1 फरवरी 1969 प्रति रुपया 0.118489 ग्राम के विशुद्ध स्वर्ण (फाइन गोल्ड) के तात्कालिक आधिकारिक आईएमएफ दर पर आरबीआई की स्वर्ण धारिता (गोल्ड होल्डिंग्स) का पुनर्मूल्यांकन (जून 1966 में 36.5 % का रुपए के अवमूल्यन को ध्यान में रखते हुए)। पुनर्मूल्यांकन से हुए लाभ को रिज़र्व फंड में अंतरित किया गया।
19 जुलाई 1969 राष्ट्रीय नीति के उद्देश्यों के अनुरूप अर्थव्यवस्था के विकास की आवश्यकताओं की बेहतर पूर्ति के लिए 50 करोड़ से अधिक की जमाराशियों वाले 14 प्रमुख भारतीय अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का राष्ट्रीयकरण।
10 फरवरी 1970 को सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम को इस आधार पर शून्य/अमान्य करार दिया कि यह 14 बैंकों के प्रति विभेदकारी था और सरकार द्वारा दी जाने वाली क्षतिपूर्ति समुचित नहीं थी। 14 फरवरी को एक नया अध्यादेश जारी किया गया जिसका स्थान बाद में बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अर्जन और अंतरण) अधिनियम, 1970 ने लिया। (1970 का 5)।
24 सितंबर 1969 बॉम्बे (मुंबई) में राष्ट्रीय बैंक प्रबंध संस्थान (एनआईबीएम) की स्थापना। 1980 के दशक के मध्य में इसका कैंपस पुणे में शिफ्ट हो गया।.
29 सितंबर 1969 सहकारी क्षेत्र को प्रशिक्षित करने के लिए पूना (पुणे) में सहकारी बैंकर प्रशिक्षण कॉलेज (सीबीटीसी) की स्थापना। आगे चलकर 1974 में इसका नाम बदलकर कृषि बैंकिंग महाविद्यालय (सीएबी) रखा गया।
दिसंबर 1969 अर्थव्यवस्था में ऋण की कमियों को पूरा करने के लिए बैंकिंग में क्षेत्र दृष्टिकोण (एरिया एप्रोच) की अवधारणा वाली अग्रणी बैंक योजना (लीड बैंक स्कीम) की शुरुआत।
01 जनवरी 1970 अंतरराष्ट्रीय तरलता/चलनिधि (लिक्विडिटी) बढ़ाने के लिए आईएमएफ ने विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) का सृजन किया।
जनवरी 1970 पहली बार आरबीआई ने संवेदनशील वस्तुओं पर अग्रिम पर बैंकों द्वारा लगाया जाने वाला न्यूनतम ब्याज दर निर्धारित किया।
फरवरी 1970 ग्रामीण ऋण के क्षेत्र में नीतियों को बनाने और उसकी समीक्षा के लिए गवर्नर की अध्यक्षता में ग्रामीण ऋण बोर्ड बना।
03 अप्रैल 1970 कंपनी संशोधन अधिनियम, 1969 द्वारा मैनेजिंग एजेंसी सिस्टम को हटा दिया गया।
04 मई 1970 जून 15 तक बी.एन. आदरकर गवर्नर नियुक्त।
16 जून 1970 एस जगन्नाथन गवर्नर नियुक्त।
फरवरी और अगस्‍त 1970 के बीच मुद्रास्फीती के रुख़ से चिंता हुई और इस कारण बैंक रेट बढ़ाने तथा एसएलआर को 25 से 28% करने जैसे कड़े कदम उठाए गए।
01 नवंबर 1970 नई लागू की गइ बिल पुनर्भुनाई योजना से उम्मीद थी कि इससे मुद्रा बाजार में लचीलापन आएगा, बैंकिंग सिस्टम में तरलता में स्थिरता होगी तथा रिज़र्व बैंक को मुद्रा बाजार में तथा प्रभावी नियंत्रण में सहायता मिलेगी।
14 जनवरी 1971 भारतीय ऋण गारंटी निगम लि. स्थापित। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को उधार में सहायता। इसने अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा लघु उधारकर्ताओं को तथा अन्य प्राथमिकता प्राप्त उद्देश्यों के लिए दिए गए ऋण की गारंटी दी।
12 अप्रैल 1971 औद्योगिक रुग्णता की चिंता के कारण भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण निगम लि.की स्थापना।
01 जुलाई 1971 जमाराशि इंश्योरेंस कवर को सहकारी बैंकों तक बढ़ाया गया।
15 अगस्‍त 1971 यूएसडी की परिवर्तनीयता निलंबित। इसके साथ ब्रिटन वुड्स सिस्टम में निहित नियत विनिमय दर की व्यवस्था समाप्त हो गई। 1973 तक चली एक अंतरिम व्यवस्था के बाद विश्व ने अस्थायी विनिमय दर व्यवस्था अपनाई।
अक्टूबर 1971 जिन समस्याओं के लिए अंतर बैंक समन्वय की आवश्यकता है, उन पर विचार के लिए राज्य स्तरीय बैंकर समिति की स्थापना।
30 जून 1971 को समाप्त वर्ष के लिए आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट तथा भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति का हिंदी संस्करण।
25 मार्च 1972 विभेदक ब्याज दर योजना लागू जिसमें चुनिंदा अल्प आय वर्गों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिए गए अग्रिमों पर रियायती ब्याज दरों की अवधारणा थी।
03 अप्रैल 1972 तत्कालीन विचारों को प्रतिबिंबित करते हुए 72-73 की आयात नीति में स्वालंबन प्राप्ति के महत्त्व पर जोर।
03 नवंबर 1972 पूर्ववर्ती कॉमकॉन समूह के देशों के साथ विशेष भुगतान व्यवस्था, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार के माध्यम से रुपए में भुगतान सेटल किए गए जो एक प्रकार की विनिमय व्यवस्था थी।
1973 "तेल आघात" जब तेल की कीमतें चौगुनी हुई। इससे दुहरे अंक की मुद्रास्फीति और वैश्विक मंदी की स्थिति पैदा हुई।
कार्रवाई के तौर पर, बैंक ने ऋण के विस्तार को सीमित/ कम करने के लिए प्रतिबंधित उपायों की श्रृंखला लागू की।
काल मनी रेट 30% की सर्व-कालिक ऊँचाई पर पहुँच गई जिससे भारतीय बैंक संघ (आईबीए) को दखल देकर 15% की सीमा निर्धारित करनी पड़ी।
01 सितंबर 1973 विविध बैंकेतर कंपनियां (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1973 के माध्यम से प्राइज चीट, लकी ड्रा बचत योजना चलाने वाली कंपनियों द्वारा जमाराशि स्वीकार को विनियमित करने का प्रयास किया गया।
08 सितंबर 1973 पहली बार 1973-74 के व्यस्त मौसम के लिए खाद्येतर बैंक ऋण पर मात्रात्मक ऋण सीमा निर्धारित की गई।
नवंबर 1973 एसबीआई और इसके अनुषंगियों से प्रतिबंध हटाकर अन्य उनको अन्य वाणिज्यिक बैंकों के समकक्ष लाया गया।
01 जनवरी 1974 विदेशी मुद्रा के संरक्षण के लिए विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 लाया गया। इसकी व्यवस्था रिज़र्व बैंक को सौंपी गई।
9 दिसंबर 1974 बहुपक्षीय आधार पर चालू अंतरराष्ट्रीय लेन-देनों में सहायता के लिए एशियन क्लीयरिंग यूनियन (एसीयू) की स्थापना। क्लीयरिंग के कार्यों सदस्य देश की मुद्रा या एएमयू, जो 1 एसडीआर के समतुल्य हो, में मूल्यवर्गित किया जाना था। क्लीयरिंग के कार्य नवंबर 1975 में प्रारंभ हुए।
13 दिसंबर 1974 भारतीय रिज़र्व बेंक (संशोधन) अधिनियम, 1974 द्वारा रिज़र्व बैंक की शक्तियों का विस्तार किया गया।
19 मई 1975 एन.सी सेनगुप्ता अगस्त 19 तक गवर्नर नियुक्त।
09 अगस्‍त 1975 टंडन समिति रिपोर्ट ने बैंक ऋण को कारोबार/ उत्पादन योजनाओं और अपने संसाधनों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। इसमें बैंक ऋण के लिए 'प्रतिभूति/सिक्यूरिटी आधारित' से 'आवश्यकता आधारित' पद्धति की ओर जाना था। नए मानक कार्यशील पूँजी हेतु बैंक उधार का आधार बने।
20 अगस्‍त 1975 के.आर. पुरी गवर्नर नियुक्त।
25 सितंबर 1975 रुपए के विनिमय मूल्य को चयनित विदेशी मुद्राओं (प्रमुख व्यापार साझीदार)के समूह में उतर-चढ़ाव से जोड़ा गया।
26 सितंबर 1975 20 सूत्री कार्यक्रम के संदर्भ में ग्रामीण लोगों को ऋण देने की वैकल्पिक एजेंसियों के रूप में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक बनाए गए। इनसे “ .....आधुनिक कारोबारी संगठन को ग्रामीण स्पर्श व स्थानीय भाव के साथ मिलाने...” की उम्मीद थी।
01 नवंबर 1975 विदेशों से निजी धन-प्रेषण को बढ़ावा देने के लिए विदेशी मुद्रा (अनिवासी) खाता योजना यूएसडी व जीबीपी में लागू की गई।
16 नवंबर 1975 कृषि पुर्नवित्त निगम (एआरसी) का नाम बदलकर कृषि पुर्नवित्त व विकास निगम (एआरडीसी) किया गया और इसकी गतिविधियों को विस्तार दिया गया।
1975 20 सूत्री कार्यक्रम का प्रारंभ।.
01 फरवरी 1976 निर्यात प्रोत्साहन उपाय के रूप में शुल्क वापसी (ड्यूटी ड्रॉ बैक) ऋण योजना की शुरुआत।
1976 बैंकों के लिए ग्राम को गोद लेने की योजना शुरू की गई।
अप्रैल 1977 मूद्रा आपूर्ति की एक नई श्रृंखला एम1, एम2,एम3 आदि की अवधारणा लेकर आई। जनता के पास मुद्रा आपूर्ति में निम्नलिखित को शामिल किया गया
(ए) जनता के पास मुद्रा
(बी)सभी वाणिज्य बैंकों, राज्य, केंद्र और शहरी सहकारी बैंकों एवं वेतन अर्जक समितियों की मांग जमाराशियां और
(सी)'भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाराशियां'
02 मई 1977 एम. नरसिम्हम नवंबर 30 तक गवर्नर नियुक्त।
1977 गरीबी उन्मूलन उपाय के रूप में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आईआरडीपी) का प्रारंभ।.
01 दिसंबर 1977 आई. जी. पटेल गवर्नर नियुक्त।
16 जनवरी 1978 'अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक लेनदेनों के वित्तपोषण के लिए धन के अवैध अंतरण…'. पर लगाम लगाने के लिए रु.500, रु.1000, रु.10,000 के उच्चमूल्यवर्गीय बैंक नोटों को विमुद्रिकृत (डिमॉनीटाइज़्ड) कर दिया गया।
03 मई 1978 आरबीआई ने भारत सरकार की ओर से सरकारी स्टॉक से पाक्षिक अंतराल पर स्वर्ण नीलामी प्रारंभ की।
27 मई 1978 जमाराशि बीमा निगम (डीआईसी) ने ऋण गारंटी निगम लि. (सीजीसीआई) को टेकओवर किया और 15 जुलाई 1978 से निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) बना।
03 जून 1978 आरबीआई ऐक्ट संशोधित। संशोधन प्रमुखत: इसलिए किए गए कि विदेशी मुद्रा भंडार का प्रभावी उपयोग हो।
12 दिसंबर 1978 12 दिसंबर, 1978 से प्राइज चिट एंड मनी सर्क्यूलेशन स्कीम्स (बैकिंग) ऐक्ट, 1978 लागू हुआ।
1978 प्रबंध लेखा परीक्षा की तरह बैंकों का वार्षिक मूल्यांकन लागू हुआ। मुख्य जोर संगठनात्मक ढाँचे, श्रमशक्ति योजना, पर्यवेक्षण की मशीनरी एवं शाखाओं पर नियंत्रण, प्रमुख क्षेत्रों में प्रणाली व प्रक्रियाएं, फ़ंड्स मेनेजमेंट और ऋण के प्रबंधन के परीक्षण पर दिया गया।
30 मार्च 1979 सीआरआर एवं एसएलआर का अनुपालन न करने पर जुर्माना लागू ताकि रिज़र्व बैंक को मौद्रिक नीति अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने का अधिकार मिले।
1979 ग्रामीण इलाकों में ऋण के लिए बहु-एजेंसी पद्धति का समुचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक में ग्रामीण आयोजना और ऋण कक्ष स्थापित।.
अगस्‍त 1979 प्रत्येक माह क्रेडिट इन्फॉर्मेशन रिव्यू का प्रकाशन प्रारंभ। ऋण व बैंकिंग पर रिज़र्व बैंक के नीतिगत निर्णयों की सरल भाषा में अविलंब जानकारी के प्रसार का उद्देश्य।
17 जनवरी 1980 अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण कीमतें सर्वकालिक ऊँचाई पर।
मार्च 1980 कमजोर वर्गों की स्थिति में सुधार के लिए 20 सूत्री कार्यक्रम के कार्यान्वयन हेतु बैंकों से वित्तीय सहायता अपेक्षित।
छठी पंचवर्षीय योजना
15 अप्रैल 1980 “…राज्य की नीति के अनुसार अर्थव्यवस्था की ऊँचाइयों पर और अधिक नियंत्रण करने व अर्थव्यवस्था की जरूरतों को उत्तरोत्तर पूरा करने, बेहतर सेवा देने और लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने…” के लिए छह प्राइवेट सेक्टर बैंक राष्ट्रीयकृत
दिसंबर 1980 नकद ऋण प्रणाली से संबंधित कोर समिति के परामर्श अपनाए गए। उधारकर्ताओं द्वारा अपने आंतरिक स्त्रोतों से कार्यशील पूँजी आवशआयकताओं हेतु अंश बढ़ाने पर जोर।.
01 जनवरी 1981 पड़ोस यात्रा (नेबरहुड ट्रेवल) योजना (एनटीएस) लागू।
15 जनवरी 1981 भारत सरकार ने विशेष वाहक बॉण्ड की घोषणा की। बेहिसाबी धन को समेटने और इसे उत्पादक कार्यों की ओर मोड़ने के लिए।
अप्रैल 1981 रिज़र्व बैंक में संगठनात्मक स्तर पर बड़ी आंतरिक पुन: संरचना। नए विभागों का गठन।
1981 तेल की कीमत बढने के कारण स्फी तिकारी दबाव बढ़े और विदेशी व्यापार पर नकारात्‍मक प्रभाव पडना शुरू हो गय। बैंक दर बढ़ाकर 10 प्रतिशत, सीआरआर बढाकर 7.5 प्रतिशत और एसएलआर 35 प्रतिशत किया गया।
11 जुलाई 1981 कंपनियों (बैंकिंग कंपनियों सहित) सहकारी सोसाइटियों, फ़र्मों, द्वारा किसी व्यक्ति को कोई जमाराशि रु.10,000 या अधिक की चुकौती अकाउंट पेयी चेक / बैंक ड्राफ्ट के सिवा किसी और माध्यम से करने पर रोक का अध्यादेश।
01 जनवरी 1982 निर्यातकों और आयातकों को वित्तीय व सम्बद्ध सेवाओं का व्यापक पैकेज देने के उद्देश्य से भारतीय निर्यात आयात बैंक की स्थापना की गई।
01 जनवरी 1982 प्रधानमंत्री द्वारा नए 20 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा।
12 जुलाई 1982 समन्वित ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण संपन्नता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कृषि, लघु उद्योग, कुटीर व ग्रामोद्योग, हस्तशिल्प व ग्रामीण शिल्पों के विकास के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास अधिनियम, 1981 के आधार पर राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बेंक (नाबार्ड) की स्थापना.. '।
16 सितंबर 1982 मनमोहन सिंह गवर्नर नियुक्त
1983 गवर्नर देशमुख के सम्मान में सी डी देशमुख स्मारक व्याख्यान के वार्षिक आयोजन की शुरुआत।
नवंबर 1983 यांत्रिक चेक प्रोसेसिंग और चेकों की राष्ट्रीय क्लीयरिंग की शुरुआत के लिए राष्ट्रीय समाशोधन (क्लीयरिंग)कक्ष (एनसीसी) की स्थापना।
12 जनवरी 1984 बैंकिंग विधि (संशोधन) अधिनियम, 1983 ने बैंकों द्वारा की जा सकने वाली गतिविधियों (जैसे लीज़िंग) को विस्तार दिया, तथा अन्य बातों के साथ-साथ खाता धारकों को नामांकन सुविधाएं दी, रिज़र्व बैंक को अधिक सशक्त बनाया, विवरणियों को सुसंगत बनाया और अनिगमित निकायों को, सिवाय एक निर्दिष्ट सीमा तक के, जनता से जमाराशियां स्वीकार करने पर रोक लगाई।
01 फरवरी 1984 शहरी सहकारी बैंकों के कार्य-कलापों पर पर्यवेक्षण के लिए शहरी बैंक विभाग बना।
01 मई 1984 निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम की प्राधिकृत पूँजी बढ़ाकर 50 करोड़ की गई।
15 जनवरी 1985 फरवरी 4 तक ए घोष गवर्नर नियुक्त।
04 फरवरी 1985 आर एन मल्होत्रा नियुक्त।
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