3 फरवरी 2015
डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर का
छठा द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2014-15
भाग-क : मौद्रिक नीति
मौद्रिक और चलनिधि संबंधी उपाय
मौजूदा और उभरती समष्टि-आर्थिक परिस्थिति के मूल्यांकन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि:
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चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीति रेपो दर को 7.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए;
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वाणिज्यिक बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 4.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए।
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07 फरवरी 2015 से शुरू होने वाले पखवाड़े से अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में 50 आधार अंकों की कटौती कर उनके एनडीटीएल के 22.0 प्रतिशत से 21.5 प्रतिशत कर दिया जाए;
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07 फरवरी 2015 से निर्यात ऋण पुनर्वित्त (ईसीआर) सुविधा के स्थान पर प्रणाली स्तरीय चलनिधि का प्रावधान शुरू किया जाए;
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नीलामियों के माध्यम से बैंक-वार निवल मांग और मीयादी देयताओं के 0.25 प्रतिशत पर ओवर नाइट रेपो के अंतर्गत चलनिधि उपलब्ध कराना तथा बैंकिंग प्रणाली की निवल मांग और मीयादी देयताओं के 0.75 प्रतिशत तक 7-दिवसीय और 14-दिवसीय रेपो के अंतर्गत चलनिधि उपलब्ध कराना जारी रखा जाए।
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चलनिधि की आसान पहुंच के लिए दैनिक परिवर्तनीय दर मीयादी रिपो और प्रत्यावर्तनीय रिपो नीलामियां जारी रखी जाएं।
परिणामस्वरूप, चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर 6.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रहेगी तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 8.75 पर बनी रहेंगी।
आकलन
2. दिसंबर 2014 के पांचवें द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2015 और 2016 के लिए अनुमानित वृद्धि दर में संशोधन कर उसे घटा दिया है। तथापि, ये पूर्वानुमानित दरें 2014 के लिए आकलित दरों की तुलना में अधिक हैं। 2014 के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका की वृद्धि दर में मामूली गिरावट दर्ज हुई, जहां कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के कारण खपतमूलक मांग में तेजी आई थी, जबकि अमेरिकी डॉलर की मज़बूती की वजह से निवल निर्यात में आई नरमी ने वृद्धि की गति धीमी कर दी। अवस्फीतिजन्य दबाव, यूनान में मचे राजनीतिक तनाव और अब भी जारी बेरोज़गार के ऊंचे स्तर जैसी परिस्थिति के कारण यूरो क्षेत्र की आर्थिक स्थिति बुरी तरह प्रभावित हुई है। जापान में मौद्रिक और राजकोषीय उपाय जोरों पर किए जाने के बावजूद पिछले वर्ष में खपत कर में बढ़ोतरी किए जाने की वजह से मांग में सुधार के आसार अब दिखाई देने लगे हैं। येन में मूल्यह्रास होने के कारण निर्यात को सहारा मिला है। चीन में संपत्ति बाज़ार में नरमी आने और अनेक उद्योगों की ज़रूरत से अधिक क्षमता के कारण वृद्धि की गति कम हो रही है। फलस्वरूप कंपनियों और बैंकों की वित्तीय कठिनाइयों को दूर करने के लिए लक्ष्यबद्ध उपाय करने पड़े। जहां तक अन्य उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में तेल के निर्यातकों का प्रश्न है वृद्धि दर में गिरावट दर्ज हुई, वहीं मुद्रास्फीतिकारी दबावों ने निवेश प्रवृत्ति को बाधित किया और तटस्थ राजकोषीय रुख के कारण तेल से इतर वस्तुओं के निर्यातों की वृद्धि दर में गिरावट बरकरार है।
3. जनवरी के उत्तरार्द्ध में यूरोपीय केंद्रीय बैंक (यू.कें.बैं) द्वारा भारी मात्रात्मक छूट की घोषणा किए जाने के कारण वित्तीय जोखिम उठाने की मनोवृत्ति में सुधार आया, सारे विश्व में शेयर बाज़ारों में तेजी आई, भले ही बाज़ार के सहभागियों ने कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को भांप लिया था और यूरोपीय केंद्रीय बैंक की घोषणा कमज़ोर आर्थिक परिदृश्य का परिचायक होगी। चूंकि यह माना जाने लगा कि यूएस फेड का रुख अनुमानित समय से अधिक बरकरार रहेगा, अत: उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में बॉण्ड प्रतिफलों में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज हुई। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति के रुख के सामान्यीकरण तथा चीन और तेल निर्यात करने वाली उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर में गिरावट की आशंका को लेकर वित्तीय बाज़ार अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं।
4. सकल देशी उत्पाद (जीडीपी) के आधार वर्ष और उसकी परिकलन-पद्धतियों में संशोधन के कारण 2014-15 से संबंधित जीडीपी वृद्धि दरों में तथा जीडीपी पूर्वानुमानों में बदलाव होगा। मुख्यत: पिछले वर्ष की तुलना में खरीफ की फसलों में गिरावट आने के कारण 2014-15 की तीसरी तिमाही में देशी गतिविधियों में सुस्ती बरकरार रहने की संभावना है। पूर्वोत्तर मानसून में देरी से सुधार होने और रबी की फसलों की बुआई के कारण चौथी तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि की गति बढ़ने की संभावना है। तथापि, चूंकि ट्रैक्टर और मोटरसाइकलों की बिक्री तथा ग्रामीण क्षेत्रों में मज़दूरी दर में गिरावट जैसे प्रमुख संकेतक ग्रामीण क्षेत्रों में घटती मांग की ओर इशारा कर रहे हैं, अत: वृद्धि के आकलित स्तर में कमी की जानी चाहिए।
5. नवंबर 2014 में औद्योगिक गतिविधयों में आया सुधार व्यापक स्तरीय है, किंतु उपभोक्ता मालों के उत्पादन में जारी गिरावट से खपतजन्य मांग (इससे उत्पादन के मापन पर भी प्रश्न उठता है) में कमी का पता चलता है। परोक्ष कर की उगाही; तेल और स्वर्ण से इतर वस्तुओं के आयात में बढ़ोतरी; आदेश बहियों में विस्तार; तथा क्रय प्रबंधक सर्वेक्षण में रिपोर्ट किए गए नए कारोबार जैसे औद्योगिक गतिविधि संबंधी उन्नत संकेतकों ने आने वाले महीनों में धीमी गति से सुधार की ओर इशारा किया है। भूमि अर्जन में की गई नीतिगत पहलें, खनन गतिविधि की अड़चनों को दूर करने तथा रक्षा, बीमा और रेलवे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दायरा बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के कारण औद्योगिक सुधार के लिए अनुकूल माहौल बनेगा। त्वरित रूप से अनुमति दिए जाने की वजह से बंद पड़ी परियोजनाओं को गति मिलने लगी है। कारोबार विश्वास में सुधार किए जाने की वजह से नए निवेश की प्रवृत्ति, विशेषकर परिवहन, बिजला और विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिला है।
6. क्रय प्रबंधक सर्वेक्षण ने सेवा क्षेत्र में, विशेष रूप से नए आदेशों की गति धीमी होने का संकेत दिया है। तथापि, विदेशी पर्यटकों के आगमन, वाहनों की बिक्री, पत्तनों में कार्गो की आवाजाही की मात्रा, और रेलवे माल परिवहन जैसे सेवा क्षेत्र के कुछ और संकेतकों ने सुधार का संकेत प्रकट किया है। समग्रत: वृद्धि की गति निवेश के रुख में परिवर्तन और कारोबारी आशावाद के अनुरूप कारोबार के लिए अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में हो रहे सुधार पर निर्भर करती है। तेल की कीमतों और मुद्रास्फीति में आई कमी के कारण अगले वर्ष में वैयक्तिक प्रयोज्य आय में बढ़ोतरी हो सकती है और देशी मांग की स्थिति में सुधार हो सकता है।
7. जून के बाद से बने बढ़ती कीमतजन्य दबावों को संतुलित करने वाले अनुकूल आधार प्रभाव कम होने की वजह से दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति, जिसका आकलन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में होने वाले वर्ष-दर-वर्ष परिवर्तनों के माध्यम से किया जाता है, में बढ़ोतरी हुई। दूध, मांस और दाल जैसे प्रोटीन युक्त वस्तुओं की कीमतें बने रहने के बावजूद अनाजों और मौसमी सब्जियों की कीमतों में मामूली गिरावट आने के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति की गति धीमी हुई। अक्सर मार्च महीने के आसपास सब्जियों की कीमतों में मौसमी बढ़ोतरी होती है, अत: इस पर सावधानीपूर्वक निगरानी रखनी है। ईंधन श्रेणी में शामिल बिजली, कोयला और रसोई गैस जैसे घटकों की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किए जाने के कारण वे यथावत् रहीं। परिणामस्वरूप, फरवरी 2014 के बाद पहली बार सीपीआई में मासिक गिरावट दर्ज हुई है।
8. दिसंबर में लगातार दूसरी बार मुद्रास्फीति, जिसके अंतर्गत खाद्य पदार्थ और ईंधन शामिल नहीं हैं, में गिरावट आई। इसका प्रमुख कारण है अगस्त के बाद कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें गिरने की वजह से परिवहन और संचार की कीमतों में आई कमी है और सामान्य रूप से इसका कारण है पण्यवस्तु की कीमतों में आई कमी। विविध सेवाओं और आवास आवास क्षेत्र से संबंधित मुद्रास्फीति में काफी गिरावट दर्ज हुई। देशी मांग में नरमी आने के कारण कंपनियों की कीमत निर्धारित शक्ति बाधित हुई और खाद्य व ईंधन पदार्थों से इतर वस्तुओं में मुद्रास्फीतिकारी दबाव कम हुए। 21 तिमाहियों के बाद पहली बार घरेलू क्षेत्र से संबंधित मुद्रास्फीति की अल्पकालीन और दीर्घकालीन प्रत्याशाओं में कमी आकर वे एकल अंक पर पहुंच गईं। व्यावसायिक पूर्वानुमानकर्ताओं, उद्योग तथा रिज़र्व बैंक द्वारा आवधिक अंतराल पर किए गए सर्वेक्षणों में भी सकारात्मक प्रत्याशाएं व्यक्त की गई हैं।
9. सितंबर की शुरुआत में अपनाए गए संशोधित ढांचे के अंतर्गत सक्रिय चलनिधि प्रबंधन परिचालनों के कारण आम तौर पर चलनिधि की स्थिति सहज रही। मुद्रा बाज़ार दरें अग्रिम कर बहिर्वाह के दिनों में पैदा होने वाले दबावों और तिमाही के अंत में होने वाली सख्ती के दौर को छोड़कर नीतिगत रिपो दर के अनुरूप रहीं। दिन की शुरुआत में घोषित की जाने वाली ओवरनाइट परिवर्ती दर रिपो/प्रत्यावर्तनीय रिपो नीलामियों से बाज़ार को अग्रिम रूप से उस दिन के संबंध में रिज़र्व बैंक के प्रणाली-स्तरीय मूल्यांकन की सूचना मिल जाती है और तदनुसार चलनिधि की स्थिति में सुधार किया जाता है। इससे क्षेत्र विशेष के लिए किसी अन्य सुविधा देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। दिसंबर और जनवरी में एलएएफ (मीयादी रिपो, प्रत्यावतर्नीय रिपो और एमएसएफ सहित) के अंतर्गत उधार ली गई औसत निवल राशि `850 बिलियन है।
10. मुद्रास्फीतिकारी दबावों के घटने से बाज़ार ब्याज दरों की अनुकूल चलनिधि स्थिति का प्रभाव बढ़ा है; तीसरी तिमाही में सरकारी और कॉरपोरेट बॉण्डों के प्रतिफलों में 50 आधार अंक से अधिक गिरावट आई है। किंतु बैंकों ने निधियों की लागत में आम तौर पर हुई कमी तथा जनवरी 15 को की गई नीतिगत दरों की कटौती का प्रभाव ऋण दरों में कटौती कर आगे नहीं बढ़ाया है।
11. दो लगातार तिमाहियों के बाद 2014-15 की तीसरी तिमाही में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें गिरने की वजह से पेट्रोलयम उत्पादों के निर्यात पर प्रभाव पड़ा, तथा तेल से इतर वस्तुओं के निर्यात की दर में काफी गिरावट आई, व्यापारिक मालों के निर्यात में गिरावट दर्ज हुई। सुस्त वैश्विक मांग और इकाई मूल्य की वसूली में लगातार गिरावट आने की वजह से निर्यात की गति धीमी रही। रुपये के मूल्यवृद्धि का भी कुछ हद तक प्रभाव पड़ा। तीसरी तिमाही में पेट्रोलियम, तेल और चिकनाई के पदार्थों (पीओएल) के आयात की मात्रा में बढ़ोतरी होने के बावजूद कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आई गिरावट से इन पदार्थों के आयात से काफी बचत हुई। सितंबर-नवंबर में मौसमी मांग बढ़ने के बाद आलोच्य अवधि में सोने के आयात की मात्रा में कमी आई है। वहीं तेल और सोने से इतर वस्तुओं के आयात की मात्रा बरकरार रही और यही दौर मई की शुरुआत से जारी है। हालांकि दिसंबर में समूचे आयात में गिरावट दर्ज हुई, फिर भी तीसरी तिमाही में सोने और तेल व सोने से इतर वस्तुओं के आयात की मात्रा में बढ़ोतरी होने के कारण समग्रत: आयात की मात्रा में वृद्धि दर्ज हुई। परिणामस्वरूप, पिछली तिमाही की तुलना में तीसरी तिमाही में व्यापार घाटे में इजाफा हुआ। वर्तमान में 2014-15 के लिए जीडीपी में चालू खाता घाटे का हिस्सा 1.3 प्रतिशत आंका गया है, जो कि पूर्व में किए अनुमानों से काफी कम है। चालू खाता घाटे की भरपाई न केवल निवल पूंजी अंतर्वाहों, मुख्य रूप से अत्यधिक संविभाग निधि प्रवाहों से की जाती है, बल्कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतर्वाहों और बाह्य वाणिज्यिक उधारों द्वारा भी सहजता से की गई है। अत: तीसरी तिमाही में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि जमा हुई है।
नीति का रुख और तर्काधार
12. सामान्यत: मुद्रास्फीति की गति रिज़र्व बैंक के द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में किए गए जोखिम संतुलन संबंधी आकलन के अनुरूप रही है, तथापि, अवस्फीति के पूर्वानुमान में कुछ विचलन हुआ है। हालांकि जून-नवंबर के दौरान अनुकूल आधार प्रभावों के कारण मुद्रास्फीति में प्रत्याशा से अधिक गिरावट दर्ज हुई, फिर भी दिसंबर में स्थिति बदलने से पूर्वानुमानों के विपरीत उसमें बढ़ोतरी हुई। इन आंकड़ों और मुद्रास्फीति में गिरावट की प्रत्याशाओं से संबंधित सर्वेक्षण आंकड़े तथा पण्यवस्तुओं की कम कीमतों और बाधित ग्रामीण मज़दूरी दर संबंधी आंकड़ों के आधार पर रिज़र्व बैंक ने आकलित किया कि वह जनवरी 2016 तक सीपीआई मुद्रास्फीति को 6 प्रतिशत तक लाने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। सार्वजनिक वक्तव्यों में मौद्रिक नीति का रुख बदलने के बारे में की गई प्रतिबद्धता और प्राप्त आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ने 15 जनवरी 2015 को नीतिगत दरों में कटौती की।
13. रिज़र्व बैंक ने यह भी उल्लेख किया है ‘‘और कटौती अवस्फीतिकारी दबावों के जारी रहने संबंधी आंकड़ों के आधार पर की जाएगी। इसके लिए उच्च स्तरीय राजकोषीय समेकन भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा......।’’ चूंकि 15 जनवरी के बाद अवस्फीतिकारी प्रक्रिया या राजकोषीय दृष्टिकोण में कोई महत्वपूर्ण नए कदम उठाए नहीं गए हैं, अत: रिज़र्व बैंक ने उनके लिए प्रतीक्षा करना और ब्याज दर के प्रति मौजूदा रुख को बरकरार रखना उचित समझा है।
14. मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी का जोखिम राजकोषीय ढिलाई, 2015 के दौरान मानसून के स्थानिक और मौसमी वितरण की अनिश्चितता के कारण पैदा होता है। साथ ही, भू-राजनीतिक गतिविधियों के कारण कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बढ़ने की कम संभाव्य, किंतु अत्यंत प्रभावशील जोखिमों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में अत्यधिक अस्थिरता, जिसके अंतर्गत विनिमय दर सरणी के माध्यम से होने वाली अस्थिरता भी शामिल है, भी मुद्रास्फीति के आकलन में महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करने वाला कारक है। भविष्य की बात करें तो जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत के लक्ष्यित स्तर पर रहने की संभावना है (चार्ट 1)। जहां तक 2015-16 में मुद्रास्फीति के रुख का प्रश्न है रिज़र्व बैंक सीपीआई की संशोधन प्रक्रिया पर गहनतापूर्वक निगरानी रखेगा, जो इस सूचकांक के लिए 2012 को पुन: आधार बनाएगा तथा और अधिक घटकों को शामिल कर उपभोग समूह तैयार करेंगा एवं पद्धतिमूलक सुधार करेगा।
15. अवस्फीति, तेल की कीमतों में गिरावट आने से वास्तविक आय के अभिलाभ, वित्त की सहज प्राप्ति और बंद पड़ी परियोजनाओं पर कुछ हद तक हुई प्रगति के कारण वृद्धि के दृष्टिकोण में कुछ हद तक सुधार हुआ है। ऐसी अनुकूल परिस्थिति में निजी क्षेत्र की खपत मांग में तेजी आनी चाहिए, किंतु सुस्त वैश्विक वृद्धि के दृष्टिकोण तथा वर्ष के लिए निर्धारित समेकन संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए योजना व्यय में बढ़ोतरी होने की वजह से अल्पकालीन राजकोषीय कर्षण के कारण वृद्धि दर पर पड़ने वाला सकारात्मक प्रभाव कुछ हद तक बाधित हो सकता है। इसको ध्यान में रखते हुए 2014-15 के लिए पुराने जीडीपी का प्रयोग करते हुए किए गए बेसलाइन आकलन को 5.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है। जहां तक 2015-16 के पूर्वानुमानों का प्रश्न है ये दक्षिण-पश्चिम मानसून और जोखिमों के संतुलन के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण पर निर्भर करेंगे। इनपुट लागतजन्य प्रभावों में कमी, अनुकूल मौद्रिक स्थिति और परियोजनाओं के अनुमोदन, भूमि अर्जन, खनन और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के संबंध में हाल में उठाए गए कदमों आदि की वजह से देशी स्तर पर वृद्धि की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। तदनुसार, 2015-16 में जीडीपी वृद्धि के केंद्रीय आकलन 6.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है, साथ ही इस काल खंड हेतु जोखिमों को व्यापक स्तर पर संतुलित कर हिसाब में लिया गया है (चार्ट 2)। 30 जनवरी को जारी की गई संशोधित जीडीपी सांख्यिकी (आधार 2011-12) और 09 फरवरी 2015 को प्रत्याशित 2014-15 से संबंधित अग्रिम आकलनों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाना चाहिए तथा इससे 2015-16 के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए वृद्धि के पूर्वानुमानों में बदलाव हो सकता है।
16. चलनिधि स्थिति के सुविधाजनक होने के साथ निर्यात क्रेडिट के प्रति आश्रय कम रहा है, यह अक्टूबर 2014 से मासिक औसत आधार पर सीमा के 50 प्रतिशत से कम रहा। क्षेत्र-विशिष्ट पुनर्वित्त से दूर जाने के लिए डॉ. ऊर्जित आर. पटेल समिति की सिफारिशों के अनुसरण में ईसीआर सीमा को जून 2014 से धीरे-धीरे कम किया गया है। इसे तर्कसंगत बनाना जारी रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि 7 फरवरी 2015 से इस सुविधा को प्रणाली स्तरीय चलनिधि प्रावधान के साथ आमेलित किया जाए। रिज़र्व बैंक 22 अगस्त 2014 को घोषित संशोधित चलनिधि समायोजन ढ़ांचे के अनुसार प्रणाली व्यापक चलनिधि आवश्यकताओं को पूरा करता रहेगा।
17. बैंकों के क्रेडिट में विस्तार हेतु गुंजाइश उत्पन्न करने के लिए सांविधिक चलनिधि अनुपात को निवल मांग और मीयादी देयताओं के 22.0 प्रतिशत से घटाकर 21.5 प्रतिशत कर दिया गया है। बैंकों को प्रतिस्पर्धी आधार पर उत्पादक क्षेत्रों के लिए अपने उधार में वृद्धि करने के लिए इस गुंजाइश का उपयोग करना चाहिए जिससे कि निवेश और वृद्धि को सहायता मिल सके।
भाग ख: विकासात्मक और विनियामक उपाय
18. वर्ष 2013-14 के लिए मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा में अक्टूबर 2013 में घोषित पांच-स्तंभीय दृष्टिकोण वाली संगठनात्मक ढ़ांचे में रिज़र्व बैंक द्वारा विकासात्मक और विनियामक उपाय शुरू किए गए हैं। इस वक्तव्य के अंश में निर्धारित उपाय वित्तीय बाजारों को व्यापक और गहन बनाने; बैंकिंग संरचना को सुदृढ़ बनाने; और परियोजनाओं को फिर से पटरी पर लाकर बैंकिंग आस्तियों में तनाव का निपटान करने पर जोर देते हैं।
I. वित्तीय बाजार
19. रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2013 में समष्टि-विवेकपूर्ण उपाय के रूप में उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) के अंतर्गत विदेशी मुद्रा विप्रेषण की पात्रता सीमा को 75,000 अमेरिकी डॉलर किया गया था। विदेशी मुद्रा बाजार में स्थिरता आने के साथ मार्जिन ट्रेडिंग, लॉटरी और ऐसे ही अन्य प्रतिबंधित विदेशी मुद्रा लेनदेनों को छोड़कर अंतिम उपयोग प्रतिबंधों के बिना इस सीमा को जून 2014 में बढ़ाकर 125,000 अमेरिकी डॉलर कर दिया गया। बाह्य क्षेत्र के दृष्टिकोण की समीक्षा करने और समष्टि-विवेकपूर्ण प्रबंधन में और कार्रवाई करने पर यह निर्णय लिया गया है कि एलआरएस के अंतर्गत सीमा को बढ़ाकर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 250,000 अमेरिकी डॉलर कर दिया जाए। इसके अलावा, लेनदेन की सहजता सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के परामर्श से यह निर्णय भी लिया गया है कि समय-समय पर संशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियम, 2000 की अनुसूची III के अंतर्गत चालू खाता लेनदेन के लिए निवासी व्यक्तियों के पास उपलब्ध विदेशी मुद्रा/विप्रेषण जारी करने की सुविधा भी इस सीमा में शामिल की जाएगी।
20. विभिन्न क्षेत्रों में उनकी विभिन्न वित्तीय आवश्यकताओं और भिन्न-भिन्न जोखिम बोध के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की उभरती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने की दृष्टि से और निवेशकों को गिरावट जोखिमों के विरूद्ध कुछ सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारत सरकार के परामर्श से यह निर्णय लिया गया है कि सन्निहित विकल्प खंड या किसी अन्य तरीके से सरकारी प्रतिफल वक्र पर उचित कटौती पर निश्चित प्रतिलाभ सहित लिखतों/प्रतिभूतियों के मूल्यनिर्धारण में अधिक लचीलापन लाए जाए। इस संबंध में दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।
21. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ पंजीकृत विदेशी संविभाग निवेशकों (एफपीआई) द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश सीमा को वर्तमान में 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर रखा गया है जिसमें से 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर दीर्घावधिक निवेशकों के लिए आरक्षित हैं। सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश सीमा का अब पूरी तरह से उपयोग किया जाता है। दीर्घावधिक निवेशकों को प्रोत्साहित करने के उपाय के रूप में भारत सरकार के परामर्श से यह निर्णय लिया गया है कि मौजूदा सीमा का पूरी तरह से उपयोग होने पर सरकारी प्रतिभूतियों में कूपनों का पुनर्निवेश किया जा सकता है।
22. विदेशी संविभाग निवेशकों को वर्तमान में कम से कम तीन वर्षों के अवशिष्ट परिपक्वता के साथ सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति है। कॉर्पोरेट बांडों में उनके निवेश क लिए ऐसी कोई शर्त लागू नहीं है। आवश्यकताओं में सामंजस्य बैठाने के लिए सरकार के परामर्श से यह निर्णय लिया गया है कि भारत में ऋण बाजार में एफपीआईज़ द्वारा सभी भावी निवेश तीन वर्षों की न्यूनतम अवशिष्ट परिपक्वता के साथ किए जाने की आवश्यकता होगी। तदनुसार, बिक्री या उन्मोचन के माध्यम से एफपीआई द्वारा वर्तमान निवेश कम करने पर सीमा से मुक्त होने सहित कॉर्पोरेट बांडों में निवेश की सीमा के अंदर सभी भावी निवेश तीन वर्ष की न्यूनतम अवशिष्ट परिपक्वता के साथ कॉर्पोरेट बांडों में करने की आवश्यकता होगी। इसके अतिरिक्त, विदेशी संविभाग निवेशकों को लघु परिपक्वता चलनिधि/मुद्रा बाजार म्यूचुअल फंड योजनाओं में वृद्धिशील निवेश करने की अनुमति नहीं होगी। तथापि, कोई लॉक-इन अवधि नहीं होगी तथा विदेशी संविभाग निवेशक घरेलू निवेशकों को प्रतिभूतियों (पहले तीन वर्ष से कम अवधि की अवशिष्ट परिपक्वता से कम अवधि के लिए धारित प्रतिभूतियों सहित) की बिक्री करने के लिए स्वतंत्र होंगे। विस्तृत परिचालनात्मक दिशानिर्देश फरवरी 2015 के अंत तक जारी किए जाएंगे।
23. वर्ष 2014-15 के पहले द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में रिज़र्व बैंक ने वित्तीय बेंचमार्कों पर समिति (अध्यक्षः श्री पी. विजय भास्कर) की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की थी। बैंक ने 16 अप्रैल 2014 को बेंचमार्क प्रस्तुतकर्ताओं के लिए अभिशासन ढ़ांचे पर दिशानिर्देश जारी किए हैं। भारतीय नियत आय मुद्रा बाजार और व्युत्पन्नी संघ (फिम्डा) और भारतीय विदेशी मुद्रा व्यापारी संघ (एफईडीएआई) ने तब से बेंचमार्क प्रस्तुतकर्ताओं के लिए आचार संहिता जारी की है। “वित्तीय बेंचमार्क इंडिया प्रा. लिमिटेड” नामक एक स्वतंत्र कंपनी जिसे रुपया ब्याज दर और विदेशी मुद्रा बेंचमार्कों के नियंत्रण के लिए फिम्डा, फेडाई और भारतीय बैंक संघ (आईबीए) द्वारा संयुक्त रूप से चालू किया गया है, उसे इसमें शामिल किया गया है। बेंचमार्क-निर्धारण पद्धति के सुदृढ़ीकरण के लिए एक और उपाय के रूप में यह निर्णय लिया गया है कि ओवरनाइट मुंबई अंतर-बैंक प्रस्तावित दर (मिबोर) को वर्तमान पोलिंग आधारित प्रणाली से भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (सीसीआईएल) की लेनदेन आधारित प्रणाली में 25 अप्रैल 2015 तक परिवर्तित करने के लिए आवश्यक अवसंरचनात्मक और परिवर्तनीय व्यवस्था की जाए।
24. मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों को विकसित करने के लिए नकदी निपटान वाले 10 वर्षीय ब्याज दर फ्यूचर्स (आईआरएफ) संविदाओं को दिसंबर 2013 में शेयर बाजारों में शुरू किए जाने की अनुमति दी गई। भारत सरकार की 10 वर्षीय प्रतिभूति पर नकदी निपटान वाली संविदा जनवरी 2014 में शुरू की गई और इसे उत्साहित जवाब मिला है। बाजार प्रतिभागियों को अपने ब्याज दर जोखिम को सुरक्षित करने के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि भारत सरकार की 5-7 वर्षीय और 13-15 वर्षीय प्रतिभूतियों पर नकदी निपटान वाली आईआरएफ संविदाएं शुरू की जाएं। विस्तृत परिचालनात्मक दिशानिर्देश मार्च 2015 के अंत तक जारी किए जाएंगे।
25. जून 2014 में विदेशी संविभाग निवेशकों को विदेशी मुद्रा व्यापारित करेंसी डेरिवेटीव (ईटीसीडी) बाजार में भागीदारी करने की अनुमति दी गई। इसके साथ-साथ ईटीसीडी बाज़ार में घरेलू संस्थाओं की भागीदारी के लिए विनियामक व्यवस्था में संशोधन किया गया जिसका उद्देश्य ईटीसीडी और ओवर दि काउंटर (ओटीसी) बाज़ारों में समानता लाना था। ईटीसीडी बाज़ार में विदेशी संविभाग निवेशकों और घरेलू प्रतिभागियों को अधिक लचीलापन उपलब्ध कराने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि:
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अब घरेलू संस्थाओं और विदेशी संविभाग निवेशकों को किसी अंतर्निहित एक्पोज़र के अस्तित्व को स्थापित किए बिना 15 मिलियन अमरीकी डॉलर तक के प्रत्येक विनिमय के लिए यूएसडी-भारतीय रुपया जोड़े में विदेशी मुद्रा रखने की अनुमति होगी। इसके अतिरिक्त उन्हें यूरो-भारतीय रुपया, ग्रेट ब्रिटेन पाउण्ड-भारतीय रुपया और जापानी येन-भारतीय रुपया में प्रति विनिमय कुल मिलाकर 5 मिलियन अमरीकी डॉलर तक विदेशी करेंसी रखने की अनुमति होगी। घरेलू संस्थाएं और विदेशी संविभाग निवेशक जो ईटीसीडी बाज़ार उपर्युक्त सीमाओं से अधिक राशि रखना चाहते हैं, उन्हें अंतर्निहित एक्पोजर का अस्तित्व स्थापित करना होगा।
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वे घरेलू सहभागी जो माल और सेवाओं के आयातक हैं, उनके लिए जिस सीमा तक वे ईटीसीडी बाजार में उचित हेजि़ंग स्थिति रख सकते हैं, उसका निर्धारण (i) उनके पिछले तीन सालों के आयात टर्न-ओवर की औसत अथवा (ii) वर्तमान के 50 प्रतिशत की बजाय पिछले वर्ष के टर्न-ओवर के 100 प्रतिशत के रूप में किया जाएगा।
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ईटीसीडी बाज़रों में हेजि़ंग के लिए प्रलेखन और अन्य प्रशासनिक आवश्यकताओं को भी तर्क संगत बनाया जा रहा है।
विस्तृत परिचालनात्मक दिशानिर्देश मार्च 2015 के अंत तक जारी किए जाएंगे।
II. पुनर्संरचना
26. वर्तमान में बड़ी परियोजनाओं का कार्यान्वयन जटिल है और अप्रत्याशित घटनाएं परियोजना कार्यान्वयन में विलंब उत्पन्न कर सकती है जिसके कारण वाणिज्यिक परिचालन शुरू करने की मूल परिकल्पित तारीख की प्राप्ति में असफलता मिल सकती है। रिज़र्व बैंक ने 31 मार्च 2010 और 30 मई 2013 के परिपत्रों के माध्यम से कार्यान्वयनधीन परियोजनाओं के लिए ऋण देने के संबंध में कुछ लचीलेपन की अनुमति दी है जिसमें ऐसे ऋणों की अदायगी सूची के साथ कार्यान्वयनधीन परियोजनाओं के डीसीसीओ को इन ऋणों के आस्ति वर्गीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना एक हद तक अंतरित करने की अनुमति दी है। तथापि, मुख्य रूप से वर्तमान प्रवर्तकों/प्रबंधन की अपर्याप्तता के कारण अवरूद्ध परियोजनाओं के मामले में परियोजना को पुनरुज्जीवित करने के लिए स्वामित्व और प्रबंधन में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है। इस संबंध में नए प्रवर्तकों/डेवलेपरों को अवरूद्ध परियोजनाओं को पुनरुज्जीवित करने/पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय की जरूरत हो सकती है। स्वामित्व और पुनरुज्जीवन में बदलाव लाने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि निश्चित शर्तों के अधीन ऐसी परियोजनाओं के लिए ऋण के आस्ति वर्गीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसी परियोजनाओं के डीसीसीओ के अधिक विस्तार द्वारा लचीलापन उपलब्ध कराया जाए जहां स्वामित्व में बदलाव होता है। इस संबंध में परिचालनात्मक दिशानिर्देश जल्दी ही जारी किए जाएंगे।
27. बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19(2) के अनुसार बैकों को गिरवीदार, बंधकग्राही या पूर्ण मालिक के रूप में उस कंपनी की चुकता पूंजी के 30 प्रतिशत तक की राशि या चुकता पूंजी और आरक्षित निधियों के 30 प्रतिशत जो भी कम हो तक कंपनी में शेयर धारित करने की अनुमति है। बैंक उल्लिखित शर्तों के अधीन बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्संरचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों का पालन करते हुए ऋण को इक्विटी में परिवर्तित कर उधारकर्ता कंपनी के शेयरों को भी प्राप्त कर सकते हैं। तथापि, सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों के ऋण या किसी अन्य तरीके से परिवर्तन द्वारा अधिग्रहण की आवश्यकता होगी जिससे कि पूंजी और प्रकटन आवश्यकताओं के निर्गम (आईसीडीआर) विनियमों तथा शेयरों और नियंत्रण के अधिग्रहण (एसएएसटी) विनियमों की पुष्टि हो सकें। प्राय: आईसीडीआर विनियमों के अनुसार जिन कंपनियों के ऋण की पुनर्संरचना की जाती हैं, उनके शेयर मूल्य उनके आंतरिक मूल्य के अनुसार नहीं पाए जाते हैं। इससे पुनर्संरचना करने पर बैंकों के लिए हानि का विसंगत अपफ्रंट आवंटन होगा। उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ऋण को इक्विटी में परिवर्तित करने के लिए निश्चित विशेष परिस्थितियों में आईसीडीआर और एसएएसटी विनियमों से माफी के लिए सेबी से परामर्श ले रहा है। विस्तृत दिशानिर्देश तीन महीनों के अंदर जारी किए जाएंगे।
28. अर्थव्यवस्था में चिंताग्रस्त आस्तियों को पुनरुज्जीवित करने वाले ढांचे के अंतर्गत बैंकों को फरवरी 2014 में अनुमति दी गई कि वे अनर्जक आस्तियों की बिक्री पर प्रावधान के आधिक्य को प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्निर्माण कंपपनियों को प्रत्यावर्तित करें जब प्राप्त की गई नकदी (शुरूआती बिक्री और/अथवा सुरक्षा प्राप्तियों/पास-थ्रू प्रमाणपत्रों के उन्मोचन द्वारा) आस्ति के निवल अंकित मूल्य (एनबीवी) से अधिक हो, ऐसा निश्चित शर्तों के अधीन अनर्जक आस्तियों के संबंध में उचित मूल्य वसूलने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से किया गया है। तथापि, इसका वितरण भावी आधार अर्थात् 26 फरवरी 2014 को या इसके बाद बिक्री की गई अनर्जक आस्तियों के लिए उपलब्ध होगा। समीक्षा करने पर और इस संबंध में बैंकों के अभ्यावेदन के आधार पर अब यह निर्णय लिया गया है कि उपर्युक्त वितरण 26 फरवरी 2014 से पहले बिक्री की गई अनर्जक आस्तियों पर भी लागू किया जाए। इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश जल्दी ही जारी किए जाएंगे।
III. बैंकिंग और वित्तीय संरचना
29. वर्तमान में बैंकों को एक करोड़ से कम की जमाराशियों के लिए अवधि के आधार पर और एक करोड़ तथा उससे अधिक की जमाराशियों के लिए मात्रा के आधार पर जमाराशियों पर विभेदक ब्याज दर प्रदान करने की अनुमति है। तथापि, बैंकों को जमाराशि संविदा के किसी अन्य पैरामीटर के आधार पर भेदभाव करने की अनुमति नहीं है। इसके अतिरिक्त अलग-अलग व्यक्तियों और हिंदू अविभक्त परिवार (एचयूएफ) से एक करोड़ तक स्वीकर की गई सभी जमाराशियां प्रतिदेय हैं अर्थात् उनके पूर्वपरिपक्वता आहरण की सुविधा है। इसका परिणाम विशेष रूप से बासेल III ढांचे के अंतर्गत चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर) आवश्यकता के अंतर्गत आस्ति-देयता प्रबंध मुद्दों के रूप में होगा। इसलिए गैर-प्रतिदेयता जमाराशियों की अनुमति का प्रस्ताव है। जमाराशियों में प्रतिदेयता जमाराशियों पर विभेदक ब्याज दर प्रदान करने के लिए एक अनूठी विशेषता है। विस्तृत दिशानिर्देश जल्दी ही आएंगे।
30. अलग-अलग बैंकों के रूप में भुगतान बैंकों और लघु बैंकों पर अंतिम दिशानिर्देश 27 नवंबर 2014 को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाले गए और प्रश्नों के स्पष्टीकरण 1 जनवरी 2015 को जारी किए गए। आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तारीख 2 फरवरी 2015 थी। लघु वित्त बैंकों के लिए बेहतर आवेदन और भुगतान बैंकों के लिए 41 आवेदन कल आवेदन जमा करने की अंतिम तारीख तक प्राप्त हुई। इसमें अन्य स्थानों पर प्राप्त किए जाने वाले आवदेन शामिल नहीं हैं। जैसाकि दिशानिर्देशों में कहा गया है कि दो बाह्य परामर्शदात्री समितियां (ईएसी) लघु वित्त और भुगतान बैंक स्थापित करने के लिए प्राप्त आवदेनों को मूल्यांकन करेंगी। तथा इसके बाद रिज़र्व बैंक को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेंगी। लघु वित्त बैंकों और भुगतान बैंकों के लिए बाह्य परामर्शदात्री समितियों की अध्यक्षता क्रमश: श्रीमती उषा थोरात, पूर्व उप गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक तथा डॉ. नचिकेत मोर, निदेशक, रिज़र्व बैंक केंद्रीय बोर्ड द्वारा की जाएगी।
31. वित्तीय वर्ष 2015-16 का पहला द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य मंगलवार, 7 अप्रैल 2015 को निर्धारित है।
संगीता दास
निदेशक
प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/1619 |