Click here to Visit the RBI’s new website

प्रेस प्रकाशनी

मौद्रिक नीति 2012-13 की तीसरी तिमाही समीक्षा - डॉ. डी. सुब्‍बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का वक्‍तव्‍य

29 जनवरी 2013

मौद्रिक नीति 2012-13 की तीसरी तिमाही समीक्षा -
डॉ. डी. सुब्‍बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का वक्‍तव्‍य

''सबसे पहले रिज़र्व बैंक की ओर से मैं वर्ष 2012-13 के लिए मौद्रिक नीति की इस तीसरी तिमाही समीक्षा में आपका हार्दिक स्‍वागत करता हूँ।

2. आज सुबह प्रारंभ में हमने नी‍ति समीक्षा दस्‍तावेज़ प्रस्‍तुत किया। वर्तमान समष्टि-आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर हमने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीति रिपो दर में 25 आधार अंकों की कमी करते हुए इसे 8.0 प्रतिशत से 7.75 प्रतिशत करने का निर्णय लिया है।

3. इसके परिणामस्‍वरूप चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो दर से 100 आधार अंक कम के अंतर से निर्धारित प्रत्‍यावर्तनीय रिपो दर 6.75 प्रतिशत पर समायोजित हो जाती है। उसी प्रकार रिपो दर से 100 आधार अंक अधिक के अंतर से निर्धारित सीमांत स्‍थायी सुविधा (एमएसएफ) तथा बैंक दर भी 8.75 प्रतिशत पर समायोजित हो गई है।

4. ये परिवर्तन इस घोषणा के बाद तत्‍काल प्रभाव से लागू हो गए हैं।

5. हमने यह भी निर्णय लिया है कि अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में 25 आधार अंकों की कमी करते हुए उनकी निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 4.25 प्रतिशत से 4.0 प्रतिशत किया जाए। यह 9 फरवरी 2013 को प्रारंभ होने वाले पखवाड़े से प्रभावी होगा।

6. सीआरआर में इस कमी से बैंकिंग प्रणाली में लगभग `180 बिलियन की प्राथमिक चलनिधि डाली जा सकेगी।

इस नीति प्रयास के पीछे की अवधारणा

7. मौद्रिक नीति रूझान को और अधिक सरल बनाने के लिए आज का निर्णय तीन अवधारणाओं से प्रभावित है।

8. पहला, हेडलाईन थोक मूल्‍य मुद्रास्‍फीति और इसका मुख्‍य संघटक खाद्येतर विनिर्मित उत्‍पाद मुद्रास्‍फीति दोनों तीसरी तिमाही के दौरान नरम हुई हैं। इससे उस निरंतरता से थोड़ी राहत मिली है जिसने वर्ष की पहली छमाही को प्रभावित किया है। कई संकेतक जैसेकि कंपनियों की कमज़ोर मूल्‍य निर्धारण शक्ति, कुछ क्षेत्रों में अत्‍यधिक क्षमता, अंतर्राष्‍ट्रीय पण्‍य वस्‍तुओं की कीमतों के स्थिर रहने की संभावना के साथ-साथ मुद्रास्‍फीति गतिशीलता उपाय प्रस्‍तावित करते हैं कि मुद्रास्‍फीतिकारी दबाव काफी बढ़ गए हैं। तथापि, अगले राजकोषीय वर्ष में जाकर मुद्रास्‍फीति में नरमी और शांत रह सकती है क्‍योंकि लागू मदों के कम मूल्‍य निर्धारण का सुधार अभी भी अधूरा है तथा खाद्यान्‍न मुद्रास्‍फीति बढ़ी हुई है। तदनुसार, मौद्रिक नीति के निर्धारण को प्रतिकूल दबावों और उत्‍पन्‍न जोखिमों के प्रति संवेदनशील रहना होगा।

9. दूसरा, पिछले राजकोषीय वर्ष और अब तक इस वर्ष के दौरान वृद्धि में प्रवृत्ति से नीचे अत्‍यधिक अत्‍यधिक गिरावट हुई है तथा समग्र आर्थिक गतिविधि रूकी हुई है। मांग पक्ष पर निवेश गतिविधि वांछित स्‍तरों से बहुत नीचे है तथा उपभोग मांग में भी गिरावट शुरू हो गई है। शिथिल वैश्विक वृद्धि के कारण बाह्य मांग भी कमज़ोर हुई है। आपूर्ति पक्ष पर मुख्‍य कच्‍चे माल की उपलब्‍धता में बाधाएं तथा मध्‍यवर्ती वस्‍तुएं भी बाध्‍यकारी हो रही हैं। जबकि सरकार द्वारा घोषित नीति उपायों की श्रृंखला ने बाज़ार भावना को उत्‍साहित किया है, निवेश संभावना खासकर नई परियाजनाओं की मांग अभी भी फीकी है।

10. तीसरी अवधारणा जिसने हमारे निर्णय को प्रभावित किया है वह यह है कि चलनिधि स्थितियां कड़ी बनी हुई हैं। यद्यपि, रिज़र्व बैंक ने आरक्षित नकदी निधि अनुपात को क्रमश: सितंबर और अक्‍टूबर 2012 में कम किया है और चलनिधि बढ़ाने के लिए दिसंबर और जनवरी के दौरान `470 बिलियन की प्रणालीगत चलनिधि डालते हुए खुला बाज़ार परिचालन (ओएमओ) संचालित किया है, जनवरी में `910 बिलियन के औसत निवल चलनिधि समायोजन सुविधा उधार रिज़र्व बैंक के सुगमता स्‍तर से अधिक रहे हैं। यह कड़ापन संभावित रूप से अर्थव्‍यवस्‍था के उत्‍पादक क्षेत्रों को ऋण प्रवाहों को हानि पहुँचा संकता है। प्रणाली में ढांचेगत घाटे ने प्रणाली में स्‍थायी प्राथमिक चलनिधि डालने के लिए एक मज़बूत मामला बनाया।

मौद्रिक नीति रूझान

11. यह नीति दस्‍तावेज़ हमारी मौद्रिक नीति के तीन व्‍यापक सीमाओं का भी वर्णन करता है। वे हैं:

  • पहला, जैसे ही मुद्रास्‍फीति जोखिम सुधरते हैं, वृद्धि की सहायता के लिए समुचित ब्‍याज दर वातावरण उपलब्‍ध कराना;

  • दूसरा, मुद्रास्‍फीति को नियंत्रित रखना तथा मुद्रास्‍फीति प्रत्‍याशाओं पर काबू पाना; और

  • तीसरा, अर्थव्‍यवस्‍था के उत्‍पादक क्षेत्रों को ऋण के प्रर्याप्‍त प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए चलनिधि प्रबंधन जारी रखना।

मार्गदर्शन

12. अब तक की जैसी प्रथा रही है हमने भावी समय के लिए निम्‍नलिखित मार्गदर्शन भी दिया है।

13. हेडलाईन मु्द्रास्‍फीति को उच्‍चतम सीमा पर पहुंचने की संभावना और पिछले कुछ माह से खाद्येतर विनिर्मित उत्‍पादों की मुद्रास्‍फीति में निरंतर रूप से हो रही गिरावट के साथ यही प्रवृत्ति 2013-14 में जारी रहने की अधिक संभावना है, मुद्रास्‍फीति वर्तमान स्‍तरों के आस-पास बनी रहेगी। इससे सीमित रूप में ही सही परंतु वृद्धि जोखिमों पर अधिकाधिक बल देने के लिए गुंजाईश मिलती है। तथापि, यह नीतिगत मार्गदर्शन ऊभरते वृद्धि-मुद्रास्‍फीति गतिशीलता और दुहरे घाटों से जोखिमों के प्रबंधन के अनुसार होगा।

अपेक्षित परिणाम

14. हमें आशा है कि आज की नीतिगत कार्रवाई और हमारे द्वारा दिए गए मार्गदर्शन से निम्नालिखित तीन परिणाम होंगे:

  • पहले, निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, उससे वृद्धि को समर्थन मिलेगा;

  • दूसरे कम और स्थिर मुद्रास्‍फीति के प्रति विश्वसनीय प्रतिबद्धता के आधार पर मध्यावधि की मुद्रास्‍फीति प्रत्याशाएं नियंत्रित रहेंगी।

  • और अंत में, चलनिधि की परिस्थितियों में ऋण प्रवाह के समर्थन के लिए सुधार होगा।

वैश्विक और देशी गतिविधियां

15. हमारे नीतिगत निर्णय वैश्विक और देशी समष्टि आर्थिक स्थिति के व्यापक मूल्यांकन पर आधारित हैं। पहले मैं वैश्विक परिदृश्य पर विचार व्यक्त करता हूं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था

16. अक्‍टूबर 2012 में रिज़र्व बैंक की पिछली तिमाही नीति समीक्षा के बाद यद्यपि मंदी की स्थितियां जारी हैं फिर भी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर फिर से अंकुश रखनेवाला प्रतिवात (हेडविंड) धीरे-धीरे कम हो रहा है। अमेरिका में 2012 की तीसरी तिमाही में गतिविधि ने गति पकड़ी है परंतु चौथी तिमाही में उसका जारी रहना असंभव है। जबकि 'फिस्कल क्लिफ' के निवारण के लिए राजनीतिक सहमति ने वित्तीय बाज़ारों को शांत किया है फिर भी ऋण की उच्चतम सीमा का प्रबंध कैसे किया जाता है यह भावी बाज़ार प्रवृत्ति को आकार देने में महत्वपूर्ण हो जाएगा। यूरोपीयन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) के चलनिधि सुरक्षा कवच और यूनियन की सहायता (बैकस्टाप) के लिए सामूहिक रूप से कार्य करने के प्रति यूरोपीय संघ (ईयू) की वचनबद्धता के बावजूद की निरंतर हो रहे आकुंचन द्वारा यूरो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को खतरा है। तथापि, समग्र रूप से सरकारी ऋण संकट से वैश्विक वित्तीय प्रणाली में बाधा ड़ाली जाने की आशंकाएं कम हो गई हैं।

17. चीन की वृद्धि की गति बढ़ने की संभावना है। परंतु बाहरी मांग में गिरावट और देशी संरचनागत अवरोधों के कारण उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि धीमी हो गई है। इसके अलावा, इनमें से कुछ देशों में मुद्रास्‍फीतिकारी दबाव जारी हैं। समग्र रूप में, अक्‍टूबर 2012 में रिज़र्व बैंक की अंतिम समीक्षा के बाद महत्वपूर्ण जोखिम होते हुए भी वैश्विक आर्थिक संभावनाओं में थोड़ा-सा सुधार हुआ हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था

18. देशी अर्थव्यवस्था के संबंध में इस वर्ष समग्र देशी उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि उल्लेखनीय रूप से कम हुई है, पहली तिमाही में कम होकर 5.5 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में और कम होकर 5.3 प्रतिशत। जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट, ठप हो गए निवेश और घटते निर्यात के साथ-साथ उपभोक्ता मांग में भी कमी के साथ व्यापक हो गई।

19. जुलाई 2012 में रिज़र्व बैंक ने वर्तमान वर्ष 2012-13 के लिए 6.5 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया था। अक्‍टूबर की समीक्षा में हमने उसमें संशोधन के साथ उसे कम करते हुए 5.8 प्रतिशत किया था और बढ़ते वैश्विक जोखिम तथा साथ ही उद्घोषित देशी जोखिमों का संकेत दिया था। इस समीक्षा के भाग के रूप में हमने पिछले तीन माह की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए पुन: वृद्धि का अनुमान लगाया है। इस अवधि के दौरान औद्योगिक गतिविधि में गिरावट आ गई। धीमी बाहरी मांग के कारण सेवा में सुधार का रोका जाना जारी रहा। जबकि रबी की बुआई की व्याप्ति में वृद्धि हुई थी फिर भी देश के कतिपय क्षेत्रों में तीव्र ठण्डी के कारण फसल की संभावनाओं पर प्रभाव पड़ सकता है। नये निवेश की मांग जो ऊर्ध्वमुखी वृद्धि का मुख्य घटक होना चाहिए कमजोर ही बनी रही। जबकि सरकार द्वारा हाल ही में किए गए नीतिगत उपायों के कारण बाजार प्रवृति को बढ़ावा मिला है फिर भी निवेश गिरावट के प्रतिवर्तित होने और वृद्धि को पुन: अनुप्राणित होने में कुछ समय लगेगा।

20. तदनुसार, हमने वर्तमान वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि के हमारे प्रारंभिक अनुमान में संशोधन करते हुए उसे 5.8 प्रतिशत से कम करके 5.5. प्रतिशत किया है।

मुद्रास्फीति

21. अब मैं मुद्रास्फीति पर बात करना चाहूंगा। हेडलाइन थोक मूल्‍य सूचकांक मुद्रास्फीति सितंबर 2012 में 8.1 से उल्‍लेखनीय रूप से कम होकर दिसंबर तक 7.2 प्रतिशत हो गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद जिनकी थोक मूल्‍य सूचकांक में 55 प्रतिशत हिस्सेदारी है, के कारण मुद्रास्फीति में नवंबर-दिसंबर में काफी कमी आई, क्योंकि इनपुट कीमत दबाव कम हो गए। गतिशील संकेतक भी हेडलाइन और खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में सुधार का सुझाव देते हैं। रिज़र्व बैंक का औद्योगिक दृष्टिकोण सर्वेक्षण भी आउटपुट कीमतों की वृद्धि दर में कमी की तरफ यह सुझाव देते हुए संकेत करता है कि कंपनियों की मूल्यनिर्धारण शक्ति कमजोर हो गई है। ईंधन समूह मुद्रास्फीति में दिसंबर में सुधार हुआ, जो मुख्य रूप से गैर-निर्धारित पेट्रोलियम उत्पादों और रूप ये की सीमाबद्ध विनिमय दर की मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति को परिलक्षित करता है।

22. दूसरी तरफ, खाद्य मुद्रास्फीति ने चक्रीय और संरचनात्मक कारकों दोनों को परिलक्षित करते हुए दिसंबर में दुहरे अंकों में पहुंचकर विपरीत प्रवृत्ति दर्शाई।

23. थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्‍फीति के विपरीत नए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गई उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक मुद्रास्फीति दिसंबर में बढ़कर 10.6 प्रतिशत हो गई, जिसमें मुख्य रूप से खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल परिलक्षित हुआ। खाद्य और ईंधन समूहों को छोड़कर, उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक मुद्रास्फीति तीसरी तिमाही में 8.4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रही।

24. अक्‍टूबर की समीक्षा में, रिज़र्व बैंक ने मार्च 2013 के लिए मुद्रास्फीति का प्रारंभिक अनुमान 7.5 प्रतिशत लगाया था। धीमे विकास परिवेश और कुछ क्षेत्रों में अधिक क्षमता का सुझाव है कि मुद्रास्फीति अपने शीर्ष से कम हो गई है। तथापि, यह आशा की जाती है कि निरंतर खाद्य मुद्रास्फीति, अगले कुछ माह में डीजल कीमतों के समायोजनों के पास-थ्रू और अन्य निर्धारित मूल्यों में समायोजन की संभावना के कारण यह वर्तमान स्‍तरों के आस-पास सीमाबद्ध रहेगी। यदि कच्चे तेल की कीमत सहित अंतर्राष्ट्रीय पण्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आती है, तो वे इस सीमा तक डीजल कीमतों में चरणबद्ध वृद्धि को सुविधा पदान करें ताकि विनिमय दर गतिविधियों से संतुलित न हों। तथापि, मुद्रास्फीति दबाव में लगातार कमी आपूर्ति बाध्‍यताओं से बचने और राजकोषीय समेकन पर प्रगति पर निर्भर है। इससे मजदूरी में उछाल के कारण लागत प्रेरित दबावों को कम करने में भी सहायता मिलेगी।

25. खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में अपेक्षित सुधार, घरेलू आपूर्ति-मांग संतुलनों और पण्य वस्तुओं की कीमतों में वैश्विक प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए हमने मार्च 2013 के लिए बेसलाइन थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति अनुमान को संशोधित करते हुए इसे 7.5 प्रतिशत से कम करके 6.8 प्रतिशत किया है।

मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियां

26. अब मैं मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियों पर बात करना चाहूंगा। मुद्रा आपूर्ति रिज़र्व बैंक के सांकेतिक विकास पथ से नीचे रही। इससे अनिवार्य रूप से सकल जमाराशियों में वृद्धि में गिरावट और आर्थिक कार्यकलाप में नरमी परिलक्षित हुई। दूसरी तरफ, समग्र खाद्येतर ऋण वृद्धि सांकेतिक विकास पथ के आसपास रही। तथापि, उद्योग के लिए बैंक ऋण ने अत्यधिक कमी दर्शाई जबकि कृषि के लिए ऋण में वृद्धि दर्ज की गई।

27. पिछली तिमाही के मौसमी पैटर्न को ध्यान में रखते हुए, वर्तमान वर्ष के लिए एम3 का वृद्धि अनुमान कम होकर 13.0 तक नीचे आ गया है जबकि खाद्येतर ऋण वृद्धि अनुमान 16.0 प्रतिशत पर रहा है।

28. चलनिधि परिस्थितियां केन्द्र के नकदी शेषों में वृद्धि, त्‍योहार-संबंधी करेंसी मांग में भारी वृद्धि और जमा वृद्धि तथा ऋण वृद्धि के बीच व्यापक होते अंतर द्वारा उत्पन्न संरचनात्मक दबावों के कारण नवंबर के दूसरे सप्ताह से कड़ी हो गई। चलनिधि दबावों का अनुमान लगाते हुए, रिज़र्व बैंक ने सीआरआर को कम कर दिया और खुले बाजार परिचालन आयोजित किए। इन उपायों के बावजूद, व्यवस्था में चलनिधि की कमी रिज़र्व बैंक के सुविधा स्तर से ऊपर रही।

जोखिम कारक

29. आगे चलकर, समष्टि-आर्थिक प्रबंधन के समक्ष कई जोखिमें आएंगी। मैं इसके बारे में संक्षिप्‍त में बताना चाहूंगा।

  • पहला, खासकर अत्‍यधिक राजकोषीय घाटा और धीमे विकास के संदर्भ में ऐतिहासिक रूप से उच्‍च स्‍तरों के चालू खाता घाटे (सीएडी) के विस्‍तार के कारण अर्थव्‍यवस्‍था को दोहरे घाटा जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। जोखिमभरे और अस्थिर प्रवाहों के बढ़ जाने से चालू खाता घाटे का वित्तपोषण करने में अर्थव्‍यवस्‍था की जोखिम प्रवृत्ति और चलनिधि अधिमान में अचानक बदलाव से असुरक्षा बढ़ जाती है। इससे समष्टि-आर्थिक और विदेशी मुद्रा दर स्थिरता का खतरा पैदा हो सकता है। अत्‍यधिक राजकोषीय घाटे के कारण चालू खाता घाटे का जोखिम बढ़ जाएगा, निजी निवेश को और अधिक कम कर देगा और विकास प्रोत्‍साहन को रोक देगा।

  • दूसरा, हाल की शांति के बावजूद वैश्विक जोखिमें उच्‍च स्‍तर पर बनी हुई है और यह व्‍यापार, वित्त और विश्‍वास के माध्‍यम से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में फैल सकता है। अमरीका में ऋण सीमा के प्रबंधन में राजनीतिक कार्रवाई न किए जाने का जोखिम अथवा अचानक राजकोषीय मितव्‍ययिता शुरू करने से भी वित्तीय बाज़ारों में हलचल हो सकती है और उसके बाद आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आ सकती है। एक विश्‍वसनीय और व्‍यापक नीति प्रतिक्रिया के अभाव में यूरो क्षेत्र राजकोषीय ऋण तनाव के बढ़ने से आकस्मिक वैश्विक जोखिम बना हुआ है। जोखिमें भौगोलिक तनावों से भी उभरते हैं जो प्रमुख वस्‍तुओं खासकर, कच्‍चे तेल की आपूर्ति और कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। इसके अलावा, इन प्रभावों से हमारे चालू खाता घाटे के वित्तपोषण के लिए निहितार्थों के साथ वैश्विक जोखिम से बचने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

  • तीसरा, पिछले तीन वर्ष से मुद्रास्‍फीति का कारण मांग दबाव और आपूर्ति बाध्‍यताएं रही हैं। अब, मांग दबावों के घटने से आपूर्ति बाध्‍यताओं को तुरंत संबोधित करने की जरूरत है। एक भावी आपूर्ति प्रतिक्रिया के अभाव में मुद्रास्‍फीतिकारी दबाव वापस आ सकता है और समष्टि-आर्थिक स्थिरता के लिए प्रतिकूल प्रभाव जारी रह सकते हैं।

  • चौथा, निवेश में सशक्‍त और बनाए रखने योग्‍य पुनरुज्‍जीवन विकास को प्रोत्‍साहित करने की चाबी है। तथापि, इसकी प्राप्ति इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर अंतर को कम करना और ढांचेगत तथा अभिशासित सुधारों को जारी रखने का संकल्‍प करना जैसे कई कारकों पर निर्भर होता है।

  • अंतत:, बढ़ती अनर्जक आस्तियों (एनपीए) से संबंधित चिंताओं से उभरे बैंकिंग प्रणाली के जोखिमों से बचने के लिए ऋण प्रवाहों को रोकना है। आस्ति गुणवत्‍ता को सुधारने के महत्‍व को ध्‍यान में न लेते हुए बैंकों को अपने ऋण निर्णयों को पहचानना होगा और अर्थव्‍यवस्‍था के उत्‍पादक क्षेत्रों को पर्याप्‍त ऋण प्रवाह सुनिश्चित करना होगा।

30. मैं, इसका समापन हमारी समष्टि-आर्थिक चिंताओं के सारांश से करना चाहूँगा। मुद्रास्‍फीति अपनी अत्‍यधिक ऊंचाई से कम हुई है किंतु इसके और कम होने की गति धीमी होगी और यह धीरे-धीरे कम होगी। दूसरी ओर, आर्थिक गतिविधियां कम हुई हैं, वे अपनी सक्षमता से काफी पीछे हैं और एक नकारात्‍मक आउट-पुट अंतर शुरू कर रहे हैं। अर्थव्‍यवस्‍था को सबसे ज्‍यादा और तुरंत जरूरत नए निवेश करने की है। यह मौजूदा कम समग्र मांग को बढ़ा देगी और आपूर्ति बाध्‍यताओं को भी सुगम बना देगी ताकि मौजूदा क्षमता का पूर्ण प्रयोग किया जा सके और नई क्षमता का निर्माण हो सके। एक मज़बूत और प्रभावी आपूर्ति प्रतिक्रिया इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर अंतर को कम करने और प्रमुख खाद्य वस्‍तुओं सहित अर्थव्‍यवस्‍था के अन्‍य भागों में ढांचेगत असंतुलनों को सुधारने के लिए खास तौर से महत्‍वपूर्ण है। सरकार द्वारा एक विश्‍वसनीय और व्‍यापक राजकोषीय समायोजन करना, ढांचेगत सुधारों को लागू करना, अनुमोदन प्रक्रिया को मज़बूत बनना तथा संभाव्‍य निवेशकों की निष्‍ठा और विश्‍वास को प्रेरित करने के लिए अभिशासन को सुधारना इस प्रयास के लिए महत्‍वपूर्ण है। रिज़र्व बैंक को विकास-मुद्रास्‍फीति गतिशीलता को विकसित करने और दोहरे घाटे जोखिमों के प्रबंधन के लिए सोच-समझकर मौद्रिक नीति बनानी होगी।

31. मुझे ध्‍यानपूर्वक सुनने के लिए सभी को धन्‍यवाद''।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1267


2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
पुरालेख
Server 214
शीर्ष