24 जनवरी 2011
2010-11 की तीसरी तिमाही में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां - तीसरी तिमाही समीक्षा वर्ष 2010-11 दस्तावेज जारी किया जो 25 जनवरी 2011 को घोषित की जाने वाली मौद्रिक नीति 2010-11 की तीसरी तिमाही समीक्षा की पृष्ठभूमि को दर्शाता है।
समग्र आकलन
निकट भविष्य में सुदृढ़ और व्यापक-आधार वाले विकास के साथ-साथ उच्च मुद्रास्फीति बने रहने की संभावना है।
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एक ओर मूल्यह्रासकारी जोखिम कम हो गया है, तो दूसरी ओर मुद्रास्फीतिजन्य मूल्यवृद्धि का जोखिम बढ़ गया है।
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चूंकि उच्च विकास को बनाए रखने के लिए निम्नतर मुद्रास्फीति विधान आवश्यक है, अत: मौजूदा परिवेश में मुद्रास्फीति पर काबू पाना प्रबल नीतिगत उद्देश्य बन गया है।
वैश्विक आर्थिक स्थितियां
उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बहाली के रुख में सुधार हुआ है, किंतु यही गति बनी रहेगी कि नहीं यह चिंता की बात है
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वर्ष 2010 की दूसरी तिमाही में वैश्विक आर्थिक गतिविधि प्रत्याशा से कहीं सुदृढ़ रही। इसके बावजूद उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न क्षेत्रों में विकास की असंतुलित गति और उन्नति के टिकाऊपन में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
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उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं (ईएमई) सुदृढ़ विकास से पैदा होने वाली मुद्रास्फीति और पण्यवस्तुओं में मूल्य-वृद्धि के जोखिम का सामना कर रही हैं।
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कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं अपनी अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त पूंजी अंतर्वाहों के प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिए सुलभ पूंजीगत नियंत्रणों और विदेशी विनिमय बाज़ार अंत:क्षेप का सहारा ले रही हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था
उत्पादन
सुदृढ़ विकास से अर्थव्यवस्था उच्च विकास के पथ पर पुन: अग्रसर हो गई किंतु कुछ क्षेत्रों में असंतुलनों से मुद्रास्फीति का जोखिम पैदा हो सकता है।
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वर्ष 2010-11 की पहली छमाही में अत्यधिक जीडीपी वृद्धि से यह जाहिर है कि अर्थव्यवस्था उच्च विकास के पथ पर पुन: अग्रसर हो गई है।
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संतोषजनक खरीफ उत्पादन और रबी की उच्चतर बुवाई से वर्ष 2010-11 में समग्र जीडीपी विकास में कृषि क्षेत्र का सुदृढ़ योगदान दिखाई पड़ता है।
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औद्योगिक उत्पादन में लगभग द्वि-अंकीय विकास दिखाई पड़ रहा है किंतु इस रुख में अत्यंत अस्थिरता अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर रही है।
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सेवा क्षेत्र के प्रमुख संकेतकों से सतत् तेजी दिखाई पड़ती है।
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कुछ क्षेत्रों, खासकर अनाजों के अलावा खाद्य वस्तुओं के मामले में बाज़ार संकेतकों की तुलना में आपूर्ति कमज़ोर रहने से मूल्य में बढ़ोतरी हुई है, जिसकी वजह से मुद्रास्फीति पर मूल्य-वृद्धि का प्रभाव पड़ रहा है।
सकल मांग
निजी खपत संबंधी व्यय और सकल पूंजी निर्माण विकास के प्रमुख कारक के रूप में उभरे हुए हैं।
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निजी खपत के व्यय, जो कि पिछली कुछ तिमाहियों में मंद गति से बढ़ रहा था, में बढ़ोतरी से यह स्पष्ट है कि वर्ष 2010-11 की पहली छमाही में तीव्र वृद्धि हुई है।
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सकल स्थिर पूंजी निर्माण की वृद्धि के रुख के अनुसार निवेश की मांग, जिसकी शुरुआत पिछले वर्ष की अंतिम तिमाही में हुई थी, में काफी सुधार समेकित रूप धारण करके सुदृढ़ बना रहा।
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इस वर्ष में आज की तारीख की स्थिति के अनुसार वित्तीय रुख से यह ज्ञात होता है कि वित्तीय घाटा बजटित स्तर के अंदर रह सका, किंतु पूंजीगत व्यय बढ़ने से निजी मांग के समग्र विकास को गति मिली।
बाह्य क्षेत्र
उच्च पूंजी अंतर्वाहों के साथ-साथ चालू खाता घाटा बढ़ा, किंतु पूंजी प्रवाहों की संरचना से िकाऊपन की चिंता पैदा हो सकती है।
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आकलन के अनुसार, वर्ष की दूसरी तिमाही में चालू खाता घाटे में काफी बढ़ोतरी हुई।
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हालांकि आयात की तुलना में निर्यात की मात्रा में काफी बढ़ोतरी हुई, किंतु व्यापार-घाटा बढ़ा। चालू खाते के परिप्रेक्ष्य में निवल अदृश्य तत्वों से वृद्धिशील व्यापार-घाटे के सहायता में कमी हुई।
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अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, चालू खाता घाटे में हुई बढ़ोतरी की वजह से उच्चतर निवल पूंजी अंतर्वाहों से निकट भविष्य के लिए कोई चुनौती पैदा नहीं हुई।
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पूंजी प्रवाहों की संरचना में बदलाव, विशेषकर संविभाग के अंतर्वाहों में आई एकाएक उछाल और निवल एफडीआई अंतर्वाहों में काफी कमी के बावजूद मध्यम अवधि में बाह्य क्षेत्र के टिकाऊपन पर कई प्रश्न उठते हैं।
मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां
रिज़र्व बैंक द्वारा प्रति-मुद्रास्फीतिकारी संकेंद्रण को कम किए बिना चलनिधिजन्य दबाव से राहत पाने के लिए काफी मात्रा में प्राथमिक चलनिधि उपलब्ध कराई गई
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वर्ष 2010 के अंतिम महीनों में चलनिधि की स्थिति में इतनी सख्ती आई कि वह विकास के पथ पर अड़चन पैदा करने लगी।
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चलनिधि में सरकार और ढांचागत कारकों के असाधारण अतिरिक्त शेषों से संबद्ध दोनों संविभाजकीय घटकों की वजह से चलनिधि की स्थिति में सख्ती आई, जो कि जमा वृद्धि के साथ-साथ मुद्रा की उच्चतर मांग से संबंधित सुदृढ ऋण वृद्धि के रूप में उभरकर आई।
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रिज़र्व बैंक ने घाटे की मात्रा को सीमित रखने की दिशा में कई उपाय प्रारंभ किए, जो प्रति-मुद्रास्फीतिकारी नीति के रुझान के अनुरूप रहे।
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खाद्येतर ऋण में रिज़र्व बैंक द्वारा आकलित स्तर से अधिक वृद्धि हुई जो तेज आर्थिक विकास से संबद्ध वृद्धिशील ऋण मांग की वजह से सुदृढ़ रहा।
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मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं पर अच्छी तरह से काबू पाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की दृष्टि से रिज़र्व बैंक ने मार्च 2010 से छह बार नीतिगत दरों में वृद्धि की है।
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इसके परिणामस्वरूप और रिवर्स रेपो से रेपो में एलएएफ साधन में अंतरण होने की वजह से नीतिगत दर में 300 आधार अंकों की वृद्धि हुई।
वित्तीय बाज़ार
चलनिाधि में घाटे की स्थिति से नीतिगत दर की गतिविधियां जमा और ऋण दरों में परिणत हुईं
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मुद्रा बाज़ार में ब्याज दरों में, विशेषकर सीबीएलओ, राजकोष बिल, सीपी और सीडी खंडों में चलनिधि की सख्त स्थितियों को दर्शाते हुए सख्ती आई।
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बैंक ने जमा वृद्धि और ऋण वृद्धि के बीच ढांचागत असंतुलन और प्रति-मुद्रास्फीतिकारी मौद्रिक नीतिगत रुख की ओर ध्यान देते हुए जमा संग्रहण को बढ़ावा देने के लिए अपनी जमा दरों में बढ़ोतरी की।
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कई बैंकों ने भी जुलाई 2010 से 17 जनवरी 2011 के बीच 25-100 आधार अंकों के दायरे में अपनी आधार-दरों में बढ़ोतरी की है यह माना जाता है कि प्रभावी ऋण दरों में बढ़ोतरी होने की वजह से बढ़ती मांग के दबाव पर काबू पाना संभव है।
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विभिन्न शहरों में आवास की कीमतों की बढ़ोतरी की गति में काफी अंतर रहा। रिज़र्व बैंक ने परिसंपत्ति मूल्य की बढ़ोतरी में अतिरिक्त लीवरेज को नियंत्रित करने के लिए हाल में कई समष्टि विवेकपूर्ण उपायों का प्रयोग किया।
मुद्रास्फीति
कुछ क्षेत्रों में ढांचागत मांग-आपूर्ति के असंतुलनजन्य मुद्रास्फीति से मूल्य-वृद्धिपरक जोखिमों में बढ़ोतरी हुई और पण्य वस्तुओं के विश्व स्तरीय मूल्य काफी सख्त हुए हैं।
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जुलाई 2010 तक लगातार पांच महीने के दौरान द्वि-अंक के स्तर पर रहने के बाद अगस्त-नवंबर 2010 में डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में मामूली गिरावट आई।
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किंतु दिसंबर 2010 में अप्रत्याशित कारणों से मूल्यजन्य दबाव पुन: बढ़ने लगे।
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असामयिक वर्षा और आपूर्ति-श्रृंखला में अस्तव्यस्तता के चलते प्रमुख रूप से प्याज और अन्य सब्जि़यों की वजह से खाद्य मुद्रास्फीति में पुन: काफी बढ़ोतरी हुई।
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अंतरराष्ट्रीय पण्य-वस्तुओं, विशेष रूप से तेल की कीमतों में आकलन से कहीं अधिक तेजी आई।
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यह आशा की जाती है कि सामान्य वर्षा के बाद खाद्य मुद्रास्फीति में काफी कमी आए, किंतु ऐसा नहीं हुआ। इससे कुछ क्षेत्रों, खासकर अनाज के अलावा खाद्य पदार्थों में बढ़ते ढांचागत असंतुलन का प्रभाव दिखाई पड़ता है।
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वर्ष के दौरान अब तक की स्थिति के अनुसार खाद्येतर विनिर्मित उत्पादों में मुद्रास्फीति, जो कि सामान्यीकृत और मांग पक्ष के मूल्यजन्य दबावों का एक व्यापक संकेतक है, 5.1 से 5.9 प्रतिशत तक के दायरे में स्थिर बनी रही।
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हाल के महीनों में अत्यधिक माह-दर-माह (वार्षिक अंतराल पर, ऋतु के अनुसार समायोजित) मुद्रास्फीति के साथ-साथ खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद समूह के बढ़ते मूल्य सूचकांक से निविष्टि लागतों और मांगजन्य दबाव दोनों का संयुक्त प्रभाव परिलक्षित होता है।
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निकट भविष्य में मुद्रास्फीति में कमी होती तो भी कम स्तर पर मुद्रास्फीति को बनाए रखने के लिए आपूर्ति पक्ष के कुछ क्षेत्रों, खासकर ऐसी मदों में ढांचागत कठोरता की ओर ध्यान देना अपेक्षित है, जिनकी आपूर्ति-मांग के असंतुलनों से अननुपातिक तरीके से प्रमुख मुद्रास्फीति पर काफी प्रभाव पड़ता हो।
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अत्यधिक मुद्रास्फीति बने रहने से विकास का उद्देश्य बाधित होने की आशंका रहती है, साथ-ही-साथ समावेशी विकास भी जोखिमग्रस्त हो जाता है, अत: मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना निकट भविष्य में मौद्रिक नीति का प्रबल उद्देश्य हो।
आर.आर. सिन्हा
उप महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1058 |