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Date: 01/07/2015
मास्टर परिपत्र - अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों/विदेशी नागरिकों (राष्ट्रिकों) के लिए विप्रेषण सुविधाएं

आरबीआई/2015-16/80
मास्टर परिपत्र सं.8/2015-16

1 जुलाई 2015

सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक और प्राधिकृत बैंक

महोदया /महोदय

मास्टर परिपत्र - अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों/
विदेशी नागरिकों (राष्ट्रिकों) के लिए विप्रेषण सुविधाएं

अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों/विदेशी नागरिकों (राष्ट्रिकों) के लिए विप्रेषण सुविधाएं, समय-समय पर यथा संशोधित 3 मई 2000 की फेमा. अधिसूचना सं.13/2000-आरबी और फेमा अधिसूचना सं.21/2000-आरबी के साथ पठित विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा 6 की उप धारा (1) और (2) के द्वारा नियंत्रित की जाती हैं।

2. इस मास्टर परिपत्र में "अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों/विदेशी नागरिकों (राष्ट्रिकों) के लिए विप्रेषण सुविधाएं" विषय पर वर्तमान अनुदेशों को एक ही स्थान में समेकित किया गया है। इस मास्टर परिपत्र में समेकित निहित परिपत्रों/अधिसूचनाओं की सूची परिशिष्ट में दी गयी है।

3. नए अनुदेश जारी होने पर, इस मास्टर परिपत्र को समय-समय पर अद्यतन किया जाता है। मास्टर परिपत्र किस तारीख तक अद्यतन है, इसका उचित रूप में उल्लेख किया जाता है।

4. सामान्य मार्गदर्शन के लिए इस मास्टर परिपत्र का संदर्भ लिया जाए। आवश्यक होने पर विस्तृत जानकारी के लिए प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक और प्राधिकृत बैंक संबंधित परिपत्रों/ अधिसूचनाओं का संदर्भ लें।

भवदीय,

(ए॰ के॰ पाण्डेय)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुक्रमणिका

1. अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों और विदेशी नागरिकों के लिए विप्रेषण सुविधाएं
2. अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति की परिभाषा
3. चालू आय का विप्रेषण
4. गैर-भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों द्वारा परिसंपत्तियों का विप्रेषण
5. अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति द्वारा परिसंपत्तियों का विप्रेषण
6. वेतन का विप्रेषण
7. अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्तियों द्वारा विदेशी मुद्रा से खरीदी गई आवासीय संपत्ति की बिक्री आय का प्रत्यावर्तन
8. विद्यार्थियों के लिए सुविधा
9. आयकर बेबाकी
10. अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड
संलग्नक-1 भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत किये जानेवाले विवरण/विवरणियां
परिशिष्ट इस मास्टर परिपत्र में समेकित अधिसूचनाओं/परिपत्रों की सूची

1. अनिवासी भारतीयों (NRIs)/भारतीय मूल के व्यक्तियों (PIOs) और विदेशी राष्ट्रिकों के लिए विप्रेषण सुविधाएं

भारत में निवासी या भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति द्वारा परिसंपत्तियों के भारत से बाहर अंतरण के लिए विनियमावली, समय-समय पर यथा संशोधित, 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा. 13/2000-आरबी में दी गई है। तदनुसार, भारत में निवासी या भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति द्वारा भारत में धारित पूंजी परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त निधियों के विप्रेषण के लिए फेमा अथवा उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों में दी गई सीमा को छोड़कर भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमोदन की आवश्यकता है।

2. अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति की परिभाषा

3 मई 2000 की फेमा. अधिसूचना सं.13 के विनियम 2 के अनुसार, अनिवासी भारतीय का अर्थ भारत से बाहर रहने वाला वह व्यक्ति है जो भारत का नागरिक है। भारतीय मूल के व्यक्ति का अर्थ बांग्लादेश अथवा पाकिस्तान को छोड़कर किसी अन्य देश का नागरिक, जिसके पास (ए) किसी समय भारतीय पासपोर्ट था अथवा (बी) वह अथवा उसके माता-पिता अथवा उसके दादा-दादी में से कोई एक भारतीय संविधान अथवा नागरिकता अधिनियम, 1955 के नाते भारतीय नागरिक थे अथवा (सी) वह व्यक्ति किसी भारतीय नागरिक का पति/पत्नी है अथवा (ए) अथवा (बी) में उल्लिखित व्यक्ति है।

3.चालू आय का विप्रेषण

3.1 खाताधारक की भारत में किराए, लाभांश, पेंशन, ब्याज जैसी चालू आय का भारत के बाहर विप्रेषण एनआरओ खाते में नामे डालते हुए स्वीकार्य/अनुमत है। प्राधिकृत व्यापारी बैंक एनआरओ खाते नहीं रखने वाले अनिवासी भारतीयों की किराए, लाभांश, पेंशन, ब्याज जैसी चालू आय विप्रेषित करने की अनुमति दे सकते हैं, बशर्ते केंद्रीय प्रत्यक्ष का बोर्ड द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट यथा लागू करों का भुगतान किया गया हो।

3.2 अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति को अपने अनिवासी (बाह्य) रुपया खाते में चालू आय को जमा करने का विकल्प है बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी इस बात से संतुष्ट हो कि जमा अनिवासी खाताधारक की चालू आय को दर्शाता है तथा उस पर आयकर की कटौती की गई है/उसका प्रावधान किया गया है।

3.3 विदेशी राष्ट्रिक जो भारत में रोजगार के लिए आते हैं और विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा 2 (v) के अनुसार निवासी हो जाते हैं और निवासी बचत बैंक खाता खोलने/रखने के लिए पात्र हो जाते हैं, उन्हें रोजगार के बाद देश छोड़ने पर अपने भारत में रखे निवासी खाते को एनआरओ खाते में पुनर्नामित करने की अनुमति है ताकि वे कतिपय शर्तों के तहत वैध प्राप्तियाँ प्राप्त कर सकें।

4. गैर-भारतीय मूल के विदेशी राष्ट्रिकों (नागरिकों) द्वारा परिसंपत्तियों का विप्रेषण

4.1 गैर-भारतीय मूल का विदेशी नागरिक, जो भारत में नौकरी से सेवा निवृत्त हुआ है अथवा जिसने उक्त अधिनियम की धारा 6(5) में संदर्भित (भारत में निवासी) व्यक्ति से विरासत में परिसंपत्ति प्राप्त की है अथवा जो भारत में निवासी भारतीय नागरिक की विधवा है, वह परिसंपत्ति के अधिग्रहण/विरासत में प्राप्ति के दस्तावेजी साक्ष्य प्राधिकृत व्यापारी बैंक को प्रस्तुत करके जिससे वह संतुष्ट हो और देय कर, यदि कोई हों, की अदायगी करके प्रति वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में अधिकतम एक मिलियन अमरीकी डालर की राशि विप्रेषित कर सकता है।

4.2 ये विप्रेषण सुविधाएं नेपाल और भूटान के नागरिकों के लिए उपलब्ध नहीं हैं।

4.3 यदि भारत में निवासी कोई व्यक्ति भारत से बाहर नौकरी करने या कोई कारोबार/ व्यवसाय / पेशेवर कार्य करने के लिए किसी अन्य देश (नेपाल और भूटान से भिन्न) में चला जाता है या भारत से बाहर रहने के इरादे से भारत छोड़ता है, तो प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक ऐसे विदेशी राष्ट्रिक को देश छोड़ने पर उसके नियोजन (employment) के बाद उसके भारत में रखे गए मौजूदा निवासी खाते को एनआरओ खाते के रूप में पुन: नामित करने की अनुमति दे सकता है जिससे वह अपनी शेष वास्तविक प्राप्य राशियां प्राप्त कर सके बशर्ते निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हों :

ए. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों को खाताधारकों से उनके खाते में प्राप्य विधि- संगत राशियों के बारे में पूरे ब्योरे प्राप्त करने चाहिए।

बी. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों को ऐसी जमाराशियों के संबंध में संतुष्ट होना चाहिए जो उसके / उनके भारत में निवासी होने के दौरान खाताधारक को वास्तविक रूप में देय थीं ।

सी. एनआरओ खाते में जमा निधियां विदेश में अविलंब प्रत्यावर्तित की जानी चाहिए बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक भारत में उन पर लागू आयकर और अन्य करों के भुगतान होने के संबंध में संतुष्ट हों ।

डी. विदेश में प्रत्यावर्तित की गयी राशि प्रति वित्तीय वर्ष एक मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक नहीं होनी चाहिए ।

ई. खाताधारक के विदेश में रखे गए खाते में केवल प्रत्यावर्तन के प्रयोजन के लिए खाते को नामे किया जाना चाहिए ।

एफ. उसके खाते में उपर्युक्त मद (ए) में दर्शायी गयी मद से भिन्न कोई अन्य राशि/जमा नहीं होनी चाहिए ।

जी. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक ऐसे खाते में जमा और नामे होने पर निगरानी रखने के लिए उचित आंतरिक नियंत्रण व्यवस्था करें।

एच. उपर्युक्त पैराग्राफ (ए) में उल्लिखित खाताधारकों द्वारा की गयी घोषणा के अनुसार सभी देय राशियां प्राप्त होने और प्रत्यावर्तित किये जाते ही खाता तुरंत बंद कर देना चाहिए।

5. अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति द्वारा परिसंपत्तियों का विप्रेषण

5.1 अनिवासी भारतीय अथवा भारतीय मूल का व्यक्ति सभी वास्तविक प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत व्यापारी के संतुष्ट होने पर तथा लागू करों का भुगतान करके अपने अनिवासी (सामान्य) रुपया (एनआरओ) खाते की शेष राशि/परिसंपत्तियों (उत्तराधिकार अथवा हस्तांतरण में अधिगृहीत परिसंपत्तियों सहित) की बिक्री से प्राप्त राशि में से प्रति वित्तीय वर्ष एक मिलियन अमरीकी डालर तक की राशि विप्रेषित कर सकता है।

5.2 अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल का व्यक्ति रुपया निधि में से उपर्युक्त पैरा 5.1 में दर्शाए अनुसार (अथवा भारत के निवासी व्यक्ति के रूप में) उसके द्वारा खरीदी गयी अचल संपत्ति की बिक्री से प्राप्त आय का विप्रेषण बिना किसी अवरुद्धता अवधि के कर सकता है।

5.3 विरासत या वसीयत या हस्तांतरण (सेटलमेंट) के रूप में अर्जित परिसंपत्तियों की बिक्री आय, जहां कोई अवरुद्धता अवधि नहीं है, के विप्रेषण के संबंध में अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल का व्यक्ति परिसंपत्तियों की विरासत या वसीयत के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य, निर्धारित फॉर्मेटों में विप्रेषक द्वारा वचनपत्र प्राधिकृत व्यापारी को प्रस्तुत करें। हस्तांतरण भी माता-पिता से विरासत में प्राप्ति का एक तरीका है फर्क सिर्फ इतना है कि हस्तांतरण के तहत मालिक/माता-पिता की मृत्यु पर संपत्ति बिना किसी कानूनी प्रक्रिया/बाधा के लाभार्थी को मिल जाती है और प्रमाणित करने (प्रोबेट) आदि के लिए आवेदन करने के विलंब और असुविधा से बचने में सहायता करती है। यदि संपत्ति में आजीवन हित न रखते हुए हस्तांतरण (सेटेलमेंट) किया जाता है, तो यह उपहार के रूप में नियमित हस्तांतरण के बराबर होगा। अत: यदि बिना हस्तांतरणकर्ता के आजीवन हित के समझौते के माध्यम से अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल का व्यक्ति संपत्ति को प्राप्त करता है, तो इसे उपहार द्वारा हस्तांतरण माना जाए और ऐसी संपत्ति की बिक्री आय के विप्रेषण, एनआरओ खाते में शेष के विप्रेषण संबंधी वर्तमान अनुदेशों से नियंत्रित होंगे।

5.4 (ए) कोई व्यक्ति या उसका उत्तराधिकारी जिसने फेमा, 1999 की धारा 6(5) के अनुसार, अचल संपत्ति अर्जित की है वह रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बिना ऐसी संपत्ति की बिक्री आय को भारत से बाहर प्रत्यावर्तित नहीं कर सकता है ।

(बी) अन्य वित्तीय परिसंपत्तियों की बिक्री आय के विप्रेषण की सुविधा पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के नागरिकों को उपलब्ध नहीं है।

6. वेतन का विप्रेषण

6.1 किसी विदेशी कंपनी का कर्मचारी होने के कारण किसी विदेशी राष्ट्र का भारत में निवासी कोई नागरिक अथवा भारत का कोई नागरिक, जो किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत से बाहर नियोजित किया गया है और इस प्रकार किसी विदेशी कंपनी के भारत में कार्यालय/शाखा/ सहयोगी कंपनी/संयुक्त उद्यम में प्रतिनियुक्ति पर कोई व्यक्ति भारत से बाहर किसी बैंक में विदेशी मुद्रा खाता खोल सकता है, धारित कर सकता है और खाते का रखरखाव कर सकता है तथा ऐसी विदेशी कंपनी के भारत में स्थित कार्यालय/शाखा/सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम/ ग्रुप कंपनी को प्रदान की गयी सेवाओं के लिए उसे देय समग्र वेतन ऐसे खाते में जमा करते हुए प्राप्त/विप्रेषित कर सकता है बशर्ते भारत में अर्जित किये गये अनुसार आयकर अधिनियम, 1961 के तहत समग्र वेतन पर लागू आयकर अदा किया जाता है।

6.2 भारत में निगमित किसी कंपनी में नियोजित कोई विदेशी नागरिक जो भारत में निवास करता है, वह भारत से बाहर के किसी बैंक में विदेशी मुद्रा खाता खोल सकता है, धारित कर सकता है और खाते का रखरखाव कर सकता है तथा इस प्रकार भारतीय कंपनी को दी गई सेवाओं के लिए भारतीय रुपए में प्राप्त पूरा वेतन ऐसे खाते में जमा (क्रेडिट) के मार्फत विप्रेषित कर सकता है बशर्ते भारत में उपचित/अर्जित पूरे वेतन पर आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार लागू आयकर अदा किया जाए।

[कंपनी पारिभाषिक शब्द में सीमित देयता भागीदारी अधिनियम, 2008 के अंतर्गत यथा परिभाषित सीमित देयता भागीदारी फर्में शामिल हैं ]

7. अनिवासी भारतीय / भारतीय मूल के व्यक्तियों द्वारा विदेशी मुद्रा* से खरीदी गई आवासीय संपत्ति की बिक्री-आय का प्रत्यावर्तन

7.1 अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों द्वारा खरीदी गई आवासीय संपत्ति की बिक्री-आय का प्रत्यावर्तन अचल संपत्ति के लिए बैंकिग चैनल के माध्यम से प्राप्त विदेशी मुद्रा में अदा की गई राशि तक स्वीकार्य/अनुमत है। यह सुविधा ऐसी दो संपत्तियों तक सीमित है। शेष राशि एनआरओ खाते में जमा की जा सकती है और पैराग्राफ 5.1 में दर्शाये गये अनुसार एक मिलियन अमरीकी डॉलर सुविधा के तहत विप्रेषित की जा सकती है।

7.2 प्राधिकृत व्यापारी बैंक फ्लैटों/प्लाटों के आबंटन न होने/ रिहायशी/ वाणिज्यिक संपत्ति की खरीद की बुकिंग/डील के रद्द होने के कारण मकान बनाने वाली एजेंसियों/ विक्रेताओं द्वारा आवेदन/बयाना राशि/ क्रय प्रतिफल की धनवापसी को दर्शानेवाली राशियों, यदि कोई ब्याज हो तो, उसके साथ (उस पर देय आयकर का निवल) के प्रत्यावर्तन की अनुमति दे सकता है, बशर्ते मूल भुगतान खाताधारक के एनआरई/एफसीएनआर(बी) खाते अथवा सामान्य बैंकिंग चैनल के माध्यम से भारत के बाहर से विप्रेषण द्वारा किया गया हो तथा प्राधिकृत व्यापारी बैंक लेनदेन की सदाशयता/सच्चाई से संतुष्ट हो। ऐसी निधियां, अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों की इच्छा से उनके एनआरई/एफसीएनआर(बी) खाते में भी जमा की जा सकती हैं।

7.3 प्राधिकृत व्यापारी बैंक अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति द्वारा प्राधिकृत व्यापारी/आवास वित्त संस्थाओं से ऋण के रूप में जुटाई गई निधियों से खरीदे गए रिहायशी आवास की बिक्री-आय के प्रत्यावर्तन की उस सीमा तक अनुमति दे सकता है जिस सीमा तक उसने ऐसे ऋणों की चुकौती सामान्य बैंकिंग चैनल के माध्यम से प्राप्त विदेशी आवक विप्रेषणों से अथवा अपने एनआरई/ एफसीएनआर(बी) खाते के नामे डालकर की है।

(*इस प्रयोजन हेतु भारतीय मूल के व्यक्ति की परिभाषा वही है जो 3.5.2000 की अधिसूचना सं. फेमा. 21/2000-आरबी में दी गयी है।)

8. विद्यार्थियों के लिए सुविधा

8.1 अध्ययन के लिए विदेश जानेवाले विद्यार्थियों को अनिवासी भारतीय माना जाता है और वे फेमा के अधीन अनिवासी भारतीयों को उपलब्ध सभी सुविधाओं के लिए पात्र हैं।

8.2 अनिवासी भारतीयों के रूप में वे भारत से (i) उदारीकृत विप्रेषण योजना के तहत विनिर्दिष्ट सीमा जिसमें भारत में उनके नज़दीकी रिश्तेदारों द्वारा उनके निर्वाह एवं अध्ययन के लिए उन्हें किए जाने वाले विप्रेषण शामिल होंगे। हालांकि, अध्ययन के प्रयोजन हेतु विदेशी विश्वविद्यालय द्वारा की गई मांग के अनुसार सीमा तक; और (ii) परिसंपत्तियों की बिक्री-आय/भारत में किसी प्राधिकृत व्यापारी के पास रखे गए अपने एनआरओ खाते की जमाशेष राशि में से प्रति वित्तीय वर्ष 1 मिलियन अमरीकी डॉलर तक विप्रेषण प्राप्त करने के पात्र होंगे।

8.3 फेमा के अधीन अनिवासी भारतीयों को उपलब्ध अन्य सभी सुविधाएं विद्यार्थियों के लिए भी समान रूप से लागू हैं।

8.4 भारत के निवासी के रूप में उनके द्वारा लिए गए शैक्षिक और अन्य ऋणों की उपलब्धता फेमा के विनियमों के अनुसार बनी रहेगी।

9. आयकर बेबाकी (इन्कम टैक्स क्लीयरेंस)

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित फार्मेटों में विप्रेषक द्वारा वचनपत्र की प्रस्तुति पर प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा विप्रेषण किये जाने के लिए अनुमति दी जाएगी। भारतीय रिज़र्व बैंक कर मुद्दों के संबंध में स्पष्टीकरण के बाबत विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत कोई अनुदेश जारी नहीं करेगा। प्राधिकृत व्यापारियों के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे यथा लागू कर क़ानूनों की अपेक्षाओं का पालन करें।

10. अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड

भारतीय रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बिना अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति को अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड जारी करने की अनुमति प्राधिकृत व्यापारियों को दी गई है। ऐसे लेनदेन का निपटारा आवक विप्रेषणों अथवा कार्ड धारकों के विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता (बी)/ अनिवासी विदेशी/अनिवासी (सामान्य) रुपया खाते में रखे शेष राशि में से किया जाए।


संलग्नक-1

भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत किये जाने वाले विवरण/विवरणियां

विवरण के ब्योरे अवधि संबंधित अनुदेश
अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों और विदेशी राष्ट्रिकों को सुविधाएं- उदारीकरण- एनआरओ खाते से विप्रेषण मासिक 18 फरवरी 2014 का ए.पी (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 106

परिशिष्ट

इस मास्टर परिपत्र में समेकित अधिसूचनाओं/परिपत्रों की सूची

https://www.rbi.org.in/hindi/Scripts/apdir.aspx

https://www.rbi.org.in/hindi/Scripts/Fema.aspx

क्रम सं. जारी की गई अधिसूचनाएं/परिपत्र दिनांक
1 अधिसूचना सं. फेमा 62/20012-आरबी 13 मई 2002
2 अधिसूचना सं. फेमा 65/2002-आरबी 29 जून 2002
3 अधिसूचना सं. फेमा 93/2003-आरबी 9 जून 2003
4 अधिसूचना सं. फेमा 97/2003-आरबी 8 जुलाई 2003
5 अधिसूचना सं. फेमा 119/2004-आरबी 29 जून 2004
6 अधिसूचना सं. फेमा 152/2007-आरबी 15 मई 2007
1 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.45 14 मई 2002
2 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.1 2 जुलाई 2002
3 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.5 15 जुलाई 2002
4 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.19 12 सितबंर 2002
5 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.26 28 सितंबर 2002
6 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.27 28 सितंबर 2002
7 एपी(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र सं.35 1 नवंबर 2002
8 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.40 5 नवंबर 2002
9 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.46 12 नवंबर 2002
10 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.56 26 नवंबर 2002
11 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.59 9 दिसंबर 2002
12 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.67 13 जनवरी 2003
13 एपी(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र सं.101 5 मई 2003
14 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.104 31 मई 2003
15 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.43 8 दिसंबर 2003
16 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्रसं.45 8 दिसंबर 2003
17 एपी(डीआइआर सीरीज़) परिपत्र सं.62 31 जनवरी 2004
18 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.43 13 मई 2005
19 एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.12 16 नवंबर 2006
20. एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.26 14 जनवरी 2010
21. एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.70 09 जून 2011
22. एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.82 11 फरवरी 2013
23. एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.106 18 फरवरी 2014
24. एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 151 30 जून 2014
25. एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 43 2 दिसंबर 2014
26. एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 62 22 जनवरी 2015
27. एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 106 1 जून 2015
 
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