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Date: 01/07/2014
मास्टर परिपत्र- कोर निवेश कंपनियों (सीआईसी) के लिए विनियामक संरचना

भारिबैं/2014-15/41
गैबैंपवि(नीति प्रभा)कंपरि.सं.393/03.02.001/2014-15

1 जुलाई 2014

सभी कोर निवेश कंपनियां (सीआईसी)

महोदय,

मास्टर परिपत्र- कोर निवेश कंपनियों (सीआईसी) के लिए विनियामक संरचना

जैसा कि आप विदित है कि उल्लिखित विषय पर सभी मौजूदा अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अद्यतित परिपत्र/अधिसूचनाओं जारी करता है। इस परिपत्र में उक्त विषय पर अंतर्विष्ट अनुदेश, जो 30 जून 2014 तक अद्यतन किए गए हैं, नीचे दिए जा रहे हैं। अद्यतन की गई अधिसूचना बैंक की वेब साइट (http://www.rbi.org.in). पर भी उपलब्ध है।

भवदीय,

(के के वोहरा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक


विषय सूची

पैरा नं:

विवरण

1

पृष्ठभूमि

2

कोर निवेश कंपनियां (सीआईसी)

3

संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी)

4

संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कोर निवेश कंपनियां

5

कोर निवेश कंपनियों के समक्ष अड़चने

6

संचरण अवधि

7

शर्तों के साथ अनुपालन के लिए कार्य योजना

8

कोर निवेश कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश 2011 का विस्तार

9

परिभाषायें

10

पंजीकरण

11

पूंजी अपेक्षाएं

12

लेवरेज अनुपात

13

छूट

14

सांविधिक लेखा परीक्षक का वार्षिक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना

 

विविध

15

छूट

16

व्याख्या

17

कोर निवेश कंपनियां(सीआईसी) विदेशी निवेश (रिज़र्व बैंक) निदेश 2012

17.1

पृष्ठभूमि

17.2

सीआईसी द्वारा विदेशी निवेश के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति

17.3

पात्रता मानदण्ड

17.4

सामान्य शर्तें

17.5

विशिष्ठ शर्तें

18

कोर निवेश कंपनियां- बीमा कारोबार में निवेश पर दिशानिदेश

 

परिशिष्ठ

1. पृष्ठभूमि

बैंक ने वर्ष 2010-2011 की वार्षि‍क नीति‍ में यह घोषणा की थी कि‍ वे कंपनि‍याँ जि‍नकी परि‍संपत्ति‍याँ प्रमुखत: ग्रुप कंपनि‍यों में हि‍स्सेदारी (स्टेक) के लि‍ए उनके शेयरों में नि‍वेश के रूप में हैं कि‍न्तु ट्रेडिंग के लि‍ए नहीं हैं और वे कोई अन्य वि‍त्तीय गति‍वि‍धि‍/कार्य नहीं करती हैं अर्थात ये कोर नि‍वेश कंपनि‍याँ हैं। जमाराशि‍याँ न स्वीकार करने वाली और संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि‍ से महत्त्वपूर्ण ये कंपनि‍याँ गैर बैंकिंग वि‍त्तीय कंपनि‍यों पर लागू वि‍नि‍यामक नि‍र्धारणों से भि‍न्न व्यवहार की अपेक्षा की न्यायत: हकदार हैं। इस संबंध में की गई घोषणा के तहत दि‍शानि‍र्देशों का प्रारूप बैंक की वेबसाइट पर 21 अप्रैल 2010 को रखा गया था। वि‍त्तीय बाजार में भागीदारी करने वालों से मि‍ले फीडबैक पर वि‍चार कि‍या गया और यह नि‍र्णय लि‍या गया है कि‍ कोर नि‍वेश कंपनि‍यों के लि‍ए नि‍म्नलि‍खि‍त वि‍नि‍यामक ढांचे को लागू कि‍या जाए।

2. कोर नि‍वेश कंपनि‍यों (सीआईसी) के संबंध में यह माना गया था कि‍ नि‍म्नलि‍खि‍त परि‍स्थि‍ति‍यों में वे शेयरों तथा प्रति‍भूति‍यों के अर्जन का कारोबार करती हुई भी इन गति‍वि‍धि‍यों में लगी हुई नहीं मानी जाएंगी अर्थात,

  1. नि‍वि‍ष्टी(इन्वेस्टी) कंपनी में हि‍स्सेदारी (स्टेक) के प्रयोजन से उसके शेयरों में कि‍या गया नि‍वेश कंपनी की परि‍संपत्ति‍यों के 90% से कम न हो;

  2. वे (होल्डिंग को कम करने या बेचने)के लि‍ए ब्लाक सेल के अलावा इन शेयरों में ट्रेडिंग नहीं कर रही थीं;

  3. वे कोई अन्य वि‍त्तीय गति‍वि‍धि‍/कार्य नहीं कर रही थीं;

  4. उनके पास जनता की जमाराशि‍याँ नहीं थीं/वे जनता से जमाराशि‍याँ स्वीकार नहीं करती थी।

इसलि‍ए, उक्त मानदण्डों को पूरा करने वाली कंपनि‍यों के लि‍ए यह जरूरी नहीं था कि‍ वे भारतीय रि‍ज़र्व बैंक अधि‍नि‍यम, 1934 की धारा 45-झक के अंतर्गत पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करें। व्यवहार में यह पाया गया है कि‍ कि‍सी कंपनी ने कि‍सी अन्य कंपनी में अपनी हि‍स्सेदारी (स्टेक) के लि‍ए उसके शेयरों में नि‍वेश कि‍या है या ट्रेडिंग के लि‍ए, यह नि‍श्चि‍त करना मुश्कि‍ल है। यहाँ तक कि‍ कुछ मामलों में जहाँ प्रारंभ में कि‍सी नि‍वि‍ष्टी कंपनी में हि‍स्सेदारी के लि‍ए नि‍वेश कि‍या गया था, अनेक कारणों से ये शेयर या तो बेच दि‍ए गए थे या अति‍रि‍क्त शेयर खरीद लि‍ए गए थे। पारदर्शि‍ता में ऐसी कमी वि‍त्तीय प्रणाली के हि‍त में नहीं पायी गई। अस्तु यह नि‍र्णय लि‍या गया कि‍ अन्य कंपनि‍यों के शेयरों में नि‍वेश, भले ही वह हि‍स्सेदारी के प्रयोजन से कि‍ये गये हों, को भारतीय रि‍ज़र्व बैंक अधि‍नि‍यम की धारा 45-झ(ग)(ii) के अनुसार शेयरों के अर्जन के कारोबार के रूप में भी माना जाना चाहि‍ए।

3. संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि‍ से महत्त्वपूर्ण गैर बैंकिंग वि‍त्तीय कंपनि‍याँ:

वर्ष 2006 में, गैर बैंकिंग वि‍त्तीय कंपनि‍यों की बैंक उधारों, कमर्शि‍यल पेपर, आदि‍ जैसी जनता की नि‍धि‍यों तक पहुंच एवं वि‍त्तीय प्रणाली से उनके अंतर्संबंधों से उत्पन्न प्रणालीगत जोखि‍म के मद्देनज़र वि‍नि‍यामक चिंता का फोकस जमाराशि‍याँ न स्वीकार करने वाली गैर बैंकिंग वि‍त्तीय कंपनि‍यों को भी शामि‍ल करने तक बढ़ गया। तदनुसार, अंति‍म लेखापरीक्षि‍त तुलनपत्र के अनुसार `100 करोड़ एवं अधि‍क की परि‍संपत्ति‍यों वाली जमाराशि‍याँ न लेने वाली गैर बैंकिंग वि‍त्तीय कंपनि‍यों को संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि‍ से महत्त्वपूर्ण जमाराशि‍याँ न लेने वाली गैर बैंकिंग वि‍त्तीय कंपनि‍यों के रूप में परि‍भाषि‍त कि‍या गया था तथा उनके लि‍ए वि‍नि‍यामक संरचना 12 दि‍संबर 2006 के परि‍पत्र सं. 86 के द्वारा लागू कि‍या गया था।

4. कोर नि‍वेश कंपनि‍यों का संपूर्ण प्रणालीगत महत्त्व:

उल्लि‍खि‍त पैरा में दि‍ए गए कारणों से अन्य कंपनि‍यों के शेयरों में कि‍ए गए नि‍वेश, भले ही वे हि‍स्सेदारी (स्टेक) के प्रयोजन से कि‍ए गए हों, को गैर बैंकिंग वि‍त्तीय कंपनी का कारोबार करना माना जाना चाहि‍ए। इसके मद्देनज़र, रू 100 करोड़ तथा उससे अधिक परिसंपत्ति आकार वाली सीआईसी द्वारा सीपी, डिबेंचर, इंटर कॉर्पोरेट डिपाजिट तथा अन्य उधारकर्ता के माध्यम से निधि जुटाने के माध्यम से प्रणालीगत महत्वपूर्ण सार्वजनिक निधि जुटाने वाली ऐसी प्रणालीगत महत्वपूर्ण सीआईसी से यह अपेक्षि‍त है कि‍ वे भारतीय रि‍ज़र्व बैंक अधि‍नि‍यम, 1934 की धारा 45-झक के अंतर्गत पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करें तथा वे भारतीय रिज़ॅर्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधान तथा समय समय पर भारिबैं द्वारा जारी निदेश द्वारा विनियमित होंगी।

5. कोर नि‍वेश कंपनि‍यों के समक्ष अड़चनें

कोर नि‍वेश कंपनि‍यों के वि‍लक्षण कारोबारी मॉडल यथा ग्रुप कंपनि‍यों में हि‍स्सेदारी (स्टेक) तथा ग्रुप के उपक्रमों को नि‍धि‍याँ मुहैया कराने के मद्देनज़र कोर नि‍वेश कंपनि‍यों को भारतीय रि‍ज़र्व बैंक द्वारा गैर बैंकिंग वि‍त्तीय कंपनि‍यों के लि‍ए वि‍नि‍र्दि‍ष्ट मौजूदा नि‍वल स्वाधि‍कृत नि‍धि‍यों एवं जोखि‍म मानदण्डों को पूरा करना मुश्कि‍ल प्रतीत हो सकता है। कोर नि‍वेश कंपनि‍यों के लि‍ए वि‍नि‍यामक ढांचा नि‍र्धारि‍त करते समय इन मुद्दों को ध्यान में रखा गया है।

6. संचरण अवधि‍(transition period)

(i) संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि‍ से महत्त्वपूर्ण जमाराशि‍याँ न स्वीकार करने वाली कोर नि‍वेश कंपनि‍याँ भले ही वे वि‍गत में भारतीय रि‍ज़र्व बैंक के पास पंजीकरण कराने से छूट प्राप्त हों या नहीं, अधि‍सूचना की तारीख 05 जनवरी 2011 के 6 माह के अंदर पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लि‍ए भारतीय रि‍ज़र्व बैंक को आवेदन करेंगी।

(ii) यह भी स्पष्ट कि‍या जाता है कि‍ जो कंपनि‍याँ वि‍नि‍र्दि‍ष्ट 6 माह की अवधि‍ में आवेदन करने में वि‍फल होंगी और उनके संबंध में यदि‍ यह पाया गया कि‍ वे उल्लि‍खि‍त संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि‍ से महत्त्वपूर्ण जमाराशि‍याँ न स्वीकार करने वाली कोर नि‍वेश कंपनी का कारोबार रही हैं तो यह माना जाएगा कि‍ वे उल्लेखानुसार भारतीय रि‍ज़र्व बैंक अधि‍नि‍यम, 1934 की धारा 45-झक के उपबंधों का उल्लंघन कर रही हैं।

(iii) वे कंपनि‍याँ जि‍नकी परि‍संपत्ति‍याँ अभी ` 100 करोड़ से कम हैं उनसे अपेक्षि‍त है कि‍ वे ` 100 करोड़ रुपए की बैलेंसशीट सीमा प्राप्त करने से 3 माह के अंदर पंजीकरण प्रमाणपत्र के लि‍ए भारतीय रि‍ज़र्व बैंक को आवेदन करें।

7. शर्तों के साथ अनुपालन के लि‍ए कार्ययोजना:

(i) कोर निवेश कंपनी(रिजर्व बैंक) निदेश, 2011 में वि‍नि‍र्दि‍ष्ट शर्तें पूरी न कर पाने वाली संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि‍ से महत्त्वपूर्ण जमाराशि‍याँ न स्वीकारने वाली कोर नि‍वेश कंपनि‍यों को चाहि‍ए कि‍ वे इन शर्तों के अनुपालन के लि‍ए कार्य योजना बनाकर 12 अगस्त 2010 का गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं.197/03.10.001/2010-11 के पैरा 6(v) के तहत छूट के लि‍ए भारतीय रि‍ज़र्व बैंक के उस क्षेत्रीय कार्यालय से संपर्क करें जि‍सके अधि‍कार क्षेत्र में वे पंजीकृत हैं।

(ii) पंजीकरण प्रमाणपत्र के लि‍ए आवेदन करने वाली संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि‍ से महत्त्वपूर्ण जमाराशि‍याँ न स्वीकार करने वाली कोर नि‍वेश कंपनि‍यों की कार्य योजना की भारतीय रि‍ज़र्व बैंक जांच करेगा तथा ऐसी शर्तें व नि‍षेध/रोक लगा सकता है जि‍न्हें वह उचि‍त समझेगा।

1कोर निवेश कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2011

8 निदेशो का विस्तार

यह निदेश सभी कोर निवेश कंपनियों पर लागू होंगे , अर्थात, एक ऎसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी, जो अंतिम लेखा परीक्षित तुलनपत्र के तारीख को निम्नलिखित शर्तें पूरी करते हुए, शेयरों तथा प्रतिभूतियों के अर्जन का कारोबार करती है.

(i) वह अपनी निवल परिसंपत्तियों के 90% से कम न हो, ग्रूप कंपनियों के ईक्विटी शेयर, प्रिफरेंश शेयर, बॉंडस, डिवेंचर , कर्ज या ऋण में किए गए निवेश के रूप में धारण करती है.

(ii) ग्रूप कंपनियों के ईक्विटी शेयरों (इनमें वे लिखत शामिल हैं जो अनिवार्यत: ईक्विटी शेयरों में उनके जारी होने से 10 वर्ष से अधिक अवधि में परिवर्तनीय नहीं है) में उसके निवेश का प्रतिशत उसकी निवल परिसंपत्तियों, जैसा कि उक्त धारा (i) में दर्शाया गया है, के 60% से कम न हो.

(iii) वह अपनी हिस्सेदारी कम करने या समाप्त करने के लिए एकमुश्त बडी मात्रा में बिक्री को छोडकर , ग्रूप कंपनियों के शेयरों, बॉंडो, डिबेंचरों कर्जो या ऋणों में किए गए निवेश की क्रय - विक्रय न करती हो;

(iv) वह भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम , 1934 की धारा 45 झ ( ग) तथा 45 झ (च) में यथा वर्णित कोई अन्य वित्तीय गतिविधियों , निम्नलिखित के इत्तर हो. निवेश करती है

  1. बैंक जमाराशियों
  2. मुद्रा बाजार मिच्युअल फंड सहित मुद्रा बाजार लिखतों,
  3. सरकारी प्रतिभूतियां तथा
  4. ग्रूप कंपनियों द्वारा जारी बॉंड या डिबेंचर ग्रूप कंपनियों को ऋण स्वीकृत करना तथा ग्रूप कंपनियों के बदले गारेंटी जारी करना.

9. परिभाषायें

(1) इन निदेशों के प्रयोग हेतु, जबतक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो:

"समायोजित निवल मालियत का अर्थ है"

i. वित्त वर्ष के अंत में अंतिम लेखापरीक्षित तुलनपत्र में दिखाई गई कुल राशि जिसमें स्वाधिकृत निधियां जैसाकि गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियां स्वीकार न करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिजर्व बैंक) निदेशिका, 2007 में परिभाषित है .

ii. जो निम्नवत बढाया गया हो:-

(ए) वित्त वर्ष के अंत में अंतिम लेखापरीक्षित तुलन पत्र की तारीख को कोटेड निवेशो के बही मूल्य में हुई वृद्धि की अवसूलित राशि का 50%, (निवेश के मूल्य में वृद्धि के गणना, उसके बही मूल्य की तुलना में उसके कुल बाजार मूल्य में हुई वृद्धि के अनुसार की जाएगी) तथा

(बी) अंतिम लेखापरीक्षित तुलन पत्र के तारीख को ईक्विटी शेयर पूंजी में हुई वृद्धि , यदि कोई होतो.

iii. जो निम्नवत घटाया गया हो:-

(ए) कोटेड निवेशों के बही मूल्य में घट गई राशि (जिसकी गणना कोटेड निवेशों के बाजार मूल्य की तुलना में उसके बही मूल्य में हुई घटोत्तरी के अनुसार की जाएगी) और,

(बी) अंतिम लेखापरीक्षित तुलनपत्र की तारीख से ईक्विटी शेयर पूंजी में हुई घटोत्तरी, यदि कोई हो तो.

(बी) "ग्रूप में कंपनी" का अर्थ ऎसी व्यवस्था जिसमें दो या दो से अधिक संस्थान (entities) का निम्नलिखित संबंधो में से किसी के द्वारा एक दुसरे से जुडा रहना. सहायक कंपनी- मूल कंपनी ( एएस 21 के प्रावधानों के तहत परिभाषित), संयुक्त उपक्रम (एएस 27 के प्रावधानों के तहत परिभाषित), सम्बद्ध (एएस 23 के प्रावधानों के तहत परिभाषित), प्रोमोटर - प्रोमोटी (सेबी विनियमन, 1997 ( शेयरो का अधिग्रहण तथा टेकओवर) के आधार पर) , लिस्टेड कंपनी के लिए, संबंधित पार्टी ( एएस 18 के प्रावधानों के तहत परिभाषित) , समान ब्रांड वाले नाम तथा ईक्विटी में 20% तथा अधिक का निवेश.

(सी) "निवेश" का अर्थ है सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा जारी प्रतिभूतियां या अन्य बाजार प्रतिभूतियां के तरह प्रकृति वाले या शेयर, स्टॉक, बॉंड डिबेंचर में शामिल निवेश.

(डी) "कोट किए गए निवेशों" के बाजार मूल्य" का अर्थ वित्तीय वर्ष , जिसके लिए तुलनपत्र उपलब्ध है, की समाप्ति से ठीक पूर्ववर्ती 26 सप्ताहों की अवधि के दौरन किसी मान्यता प्राप्त शेयर बाजार, स्टॉक एक्सेंज, में जहां निवेश प्रमुखत: सक्रिय रूप से खरीदा - बेचा जाता (ट्रेड होता) रहा हो , में निवेश के कोट किए गए उच्च तथा न्यून भावों का औसत .

(ई) निवल परिसंपत्ति का अर्थ कुल परिसंपत्तियों में से निम्नलिखित को छोडकर -

(i) नकदी एंव बैंक में जमाशेष;
(ii) मुद्रा बाजार लिखतों में निवेश ;
(iii) करों का अग्रिम भुगतान ;
(iv) अस्थगित कर भुगतान .

(एफ) "वाह्य देयताओं" का अर्थ "प्रदत्त पूंजी " तथा "रिजर्व एंव अधिक" को छोडकर , लिखत को जारी करने की तारीख से अधिकत्म 10 वर्ष की अवधी के अंदर अनिवार्य रूप से ईक्विटी शेयर में बदल दिया गया हो, किंतु सभी प्रकार के कर्ज तथा देयताओं जिनके कर्ज की सभी विशेषताएं हो चाहे वे संमिश्र लिखत या अन्यथा जारी करके निर्मित किए गए हों तथा गारंटियों का मूल्य चाहे वे तुलन पत्र में दिखाई गई हो या नहीं सहित तुलनपत्र में देयता की ओर दिखाई देने वाली सभी देयताएं.

(जी) "सार्वजनिक निधि" अर्थात जनता जमानिधि, वाणिज्यिक पत्र, डेबेंचर, अंतर कार्पोरेट जमायें तथा बैंक वित्त द्वारा प्रत्येक्ष या परोक्ष रूप से निधि बनाना किंतु लिखत को जारी करने की तारीख से अधिकतम 10 वर्ष की अवधी के अंदर अनिवार्य रूप से बदले गए ईक्विटी शेयर से बनाये गए निधियों को छोडकर.

(एच) "संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कोर निवेश कंपनी" का अर्थ है सार्वजनिक निधियों का धारण या उगाही सहित अन्य कोर निवेश कंपनियों के साथ या तो ग्रूप में समग्र या केवल अकेले का कुल परिसंपत्ति रू 100 करोड से कम नहीं होना चाहिए.

(आई) "कुल परिसंपत्ति" का अर्थ तुलनपत्र में परिसंपत्ति के तरफ दिखाया जाने वाला कुल परिसंपत्ति.

10. पंजीकरण

(ए) प्रत्येक संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण - जमाराशियां न स्वीकार करने वाली कोर निवेश कंपनी (CIC-ND-SI) को, इस संबंधि पूर्व में जारी किसी भी सूचना के बावजुद, भारतीय रिजर्व बैंक के समक्ष पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने हेतु आवेदन करना होगा।

(बी) संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण- जमाराशियां न स्वीकार करने वाली कोर निवेश कंपनी (CIC-ND-SI) बनने की तारीख से तीन माह की अवधि के अंदर भारतीय रिजर्व बैंक के समक्ष पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्ति हेतु आवेदन करनी होगी.

2(सी) भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण की छूट प्राप्त करने वाली प्रत्येक कोर निवेश कंपनी को एक बोर्ड संकल्प पास करना होगा कि भविष्य में यह सार्वजनिक निधियों तक अभिगमन नहीं करेंगी। तथापि कोर निवेश कंपनियों को उनके द्वारा अथवा उनके ग्रूप संस्थाओं की तरफ से लिये गये अन्य आकस्मिक देनदारियों पर गारेंटी जारी करने की आवश्यकता है। ऐसा करने के पूर्व, कोर निवेश कंपनियां यह अवश्य सुनिश्चित करें कि इसके तहत जब और जैसे कोई दायित्व उत्पन्न होगी वे इसे पूरा करेंगी। विशेष रूप से, कोर निवेश कंपनियां, जिन्हें पंजीकरण आवश्यकताओं से छूट प्राप्त है उन्हें सार्वजनिक निधियों के आश्रय के बगैर देनदारी के अंतरण की स्थिति के लिए आवश्यक रूप से तैयार रहना होगा, अन्यथा सार्वजनिक निधियों तक अभिगमन के पूर्व उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण के लिए अनुरोध करना होगा।। ` 100 करोड से अधिक परिसंपत्ति वाली अपंजीकृत कोर निवेश कंपनी यदि भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त किये बगैर सार्वजनिक निधियों तक अभिगमन करती है तो इसे 05 जनवरी 2011 का कोर निवेश कंपनी (रिजर्व बैंक) निदेश 2011 के उल्लघंन के रूप में देखा जाएगा।

11. पूंजी अपेक्षाएं

संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण- जमाराशियां न स्वीकार करने वाली कोर निवेश कंपनी (CIC-ND-SI) इस प्रकार न्यूनतम पूंजी अनुपात हमेशा बनाए रखाना चाहिए कि वित्त वर्ष के अंत में उसके अंतिम (last) लेखापरीक्षित तुलनपत्र की तारीख को उसकी समायोजित निवल मालियत (Net worth) तुलनपत्रगत परिसंपत्तियों के समग्र जोखिम भार तथा तुलन पत्र से इत्तर मदों के जोखिम समायोजित मूल्य के 30% से कम न हो.

स्पष्टिकरण

तुलनपत्र की परिसंपत्तियों के संबंध में

(1) इन निदेशो में, ऋण जोखिम की मात्रा के रूप में व्यक्त प्रतिशत भार को तुलनपत्र के परिसंपत्ति से लिया गया है. अत: परिसंपत्ति/ मद को संबंधित परिसंपत्ति का जोखिम समायोजित मूल्य से प्राप्त जोखिम भार से गुणा करने की आवश्यकता है. कुल न्यूनतम पूंजी अनुपात की गणना में ध्यान रखा जाए. जोखिम भार परिसंपत्तियों की गणना निम्नलिखित कुल भार निधि मद के विवरण के अनुसार किया जाए.

भार जोखिम परिसंपत्तियां -तुलनपत्र में दी गई मदों के संबंध में

प्रतिशत भार

(i) बैंकों में मियादी जमा एंव उनके पास जमा प्रमाण पत्र -

 

सहित नकदी और बैंक जमा शेष

0

(ii) निवेश

 

(ए) अनुमोदित प्रतिभूतियां (निम्न में से (सी) के अलावा)

0

(बी) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बॉंड

20

(सी)सार्वजनिक वित्तीय संस्थान के बॉंड/मीयादी जमा/जमा प्रमाणपत्र

100

(डी) सभी कंपनियों के शेयर तथा सभी कंपनियों डिबेंचर/ बॉंड/ वाणिज्यिक पत्र तथा मिच्युअल फंडस के यूनिटें

100

(iii) चालू परिसंपत्ति

 

(ए) किराये पर स्टॉक ( निवल बही मूल्य)

100

(बी)अंतर- कंपनी ऋण / जमा

100

(सी) कंपनी के द्वारा ही धारित जमाराशियों की पूरी जमानत पर ऋण

0

(डी) स्टॉफ को ऋण

0

(ई) अन्य जमानती ऋण और अग्रिम जिन्हें अच्छा पाया गया है.

100

(एफ) भुनाए गए / खरीदे गए बिल

100

(जी) अन्य (विनिर्दिष्ट करें )

100

(iv) अचल परिसंपत्ति (मूल्यह्रास घटाने के बाद)

 

ए) पट्टे पर दी गई परिसंपत्तियां ( निवल बही मूल्य)

100

(बी) परिसर

100

(सी) फर्निचर और फिक्सचर

100

(v) अन्य परिसंपत्तियां

 

(ए) स्रोत पर काटे गए आयकर (प्रावधान घटाकर)

0

(बी) अदा किया गया अग्रिम कर ( प्रावधान घटाकर )

0

(सी) सरकारी प्रतिभूतोयों पर देय (Due/ ड्यू) ब्याज

0

(सी) सरकारी प्रतिभूतोयों पर देय (Due/ ड्यू) ब्याज

100

टिप्पणी :

(i) घटाने का कार्य केवल उन्हीं परिसंपत्तियों के संबंद्ध में किया जाए जिनमें मूल्यह्रास या अशोध्य तथा संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान किए गए हों. 

(ii) निवल स्वाधिकृत निधि की गणना के लिए जिन परिसंपत्तियों को स्वाधिकृत निधि से घटाया गया है उस पर भार " शून्य" होगा.

(iii) जोखिम भार लगाने के प्रयोजन से किसी उधारकर्ता के समग्र निधिक जोखिम की गणना करते समय, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां उधारकर्ता के खाते में कुल बकाया अग्रिमों से नकदी मार्जिन/ प्रतिभूति जमा/ जमानती राशि रूपी संपार्श्विक प्रतिभूति, जिसकी मुजरायी (Set off) के लिए अधिकार उपलब्ध है , का समायोजन कर सकती है.

(iv) भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (CCIL) प्रति संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण - जमाराशियां न स्वीकार करने वाली कोर निवेश कंपनी (CICs-ND-SI ) के ( संपार्श्वीकृत उधार और ऋण्दायी बाध्यताएं / CBLOs) प्रतिभूतियों में किए गए वित्तीय लेनेदेनों के कारण जो जोखिम प्रतिपक्षी क्रेडिट रिस्क के रूप में उत्त्पन्न होते हैं, उन पर जोखिम भार शून्य होगा क्योंकि इनके बाबत यह माना जाता है कि भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड के प्रति प्रतिपक्ष से हुए जोखिम दैनिक आधार पर पूर्णत: संपार्श्विक प्रतिभूति से अवतरित होते हैं जो केंद्रीय प्रतिपक्ष पार्टी (CCP) के क्रेडिट रिस्क को सुरक्षा प्रदान करते है. तथापि, संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वप्पूर्ण- जमाराशियां न स्वीकार करने वाली कोर निवेश कंपनी (CICs-ND-SI ) द्वारा भारतीय समासोधन निगम लिमिटेड ( CCIL) के पास रखी जमाराशियों/ समपार्श्वीक प्रतिभूतियों के लिए जोखिम भार 20% होगा.

तुलन पत्र से इत्तर मद

(1) इन निदेशों में, तुलनपत्र से इतर मदों से संबंद्ध ऋण जोखिम ( एक्सपोजर) की मात्रा को ऋण परिवर्तन कारक के प्रतिशत के रूप में दर्शाया गया है. अत: तुलनपत्र से इत्तर मदों के जोखिम समायोजित मूल्य की गणना के लिए सबसे पहले प्रत्येक मद के अंकित मूल्य को उसके संगत परिवर्तन कारक (कंवर्सन फैक्टर) से गुणा करना होगा. इसके सकल को न्युनतम पूंजी अनुपात निकालने के लिए हिसाब में लिया जाएगा. इसे पुन: जोखिम भार 100 से गुणा किया जाएगा. तुलनपत्र से इत्तर मदों के जोखिम समायोजित मूल्य की गणना , गैर - निधिक मदों के ऋण परिवर्तन कारकों द्वारा निम्नानुसार की जाएगी:-

मद का स्वरूप

ऋण परिवर्तक कारक प्रतिशत

i) वितीय तथा अन्य गारेंटी यां

100

ii) शेयर / डिबेंचर हामीदारी दायित्व

50

iii)अंशीक प्रदत्त शेयर/ डिबेंचर

100

iv) भुनाए/ पुन: भुनाए गए बिल

100

v)किए गए पट्टा करार जो निष्पादित होने है.

100

12. लेवरेज़ (Leverage) अनुपात

संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वप्पूर्ण- जमाराशियां न स्वीकार करने वाली कोर निवेश कंपनी (CIC-ND-SI) यह सुनिश्चित करेगी कि उसकी वाह्य देयताए वित्त वर्ष के अंत में उसके अंतिम (last) लेखापरीक्षित तुलनपत्र की तारीख को उसकी समायोजित निवल मालियत के 2.5 गुने से अधिक न हों.

13. छूट

(i) 3 अधिनियम 45-I क (1)(ख) का प्रावधान, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी वाली कोर निवेश कंपनी (रिजर्व बैंक ) निदेश 2011 में परिभाषित प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण कोर निवेश कंपनी पर लागू नहीं होती, बशर्ते यह उक्त निदेश में निहित पूंजी आवश्यकताओं तथा लाभ अनुपात का अनुपालन करती है .

(ii) 4 गैर बैंकिंग वित्तीय (जमा राशि नहीं स्वीकार करने वाली या धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिज़र्व बैंक) निदेश 2007 में अंतर्विष्ट 22 फरवरी 2007 की अधिसूचना डीएनबीएस.193/डीजी(वीएल)-2007 के पैराग्राफ 15,16 तथा 18 के प्रावधान कोर निवेश कंपनी निदेश में पारिभाषित प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण कोर निवेश कंपनी पर लागू नहीं होंगे बशर्ते कोर निवेश कंपनी वार्षिक लेखापरीक्षा प्रमाणपत्र प्रस्तुत करती है तथा कोर निवेश कंपनी निदेश में निहित पूंजी आवश्यकताओं तथा लाभ अनुपात के आवश्यकताओं का अनुपालन करती है .

14. सांवि‍धि‍क लेखापरीक्षक का वार्षि‍क प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना

प्रत्येक संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि‍ से महत्त्वपूर्ण जमाराशि‍याँ न स्वीकार करने वाली कोर नि‍वेश कंपनि‍यों से अपेक्षि‍त है कि‍ वे तुलनपत्र को अंति‍म रूप देने की तारीख से एक माह के अंदर उक्त दि‍शानि‍र्देशों के अनुपालन के संबंध में सांवि‍धि‍क लेखापरीक्षक का वार्षि‍क प्रमाणपत्र प्रस्तुत करें।

विविध

15. छुट

भारतीय रिजर्व बैंक , यदि किसी कठिनाई को टालने अथवा किसी अन्य उचित एंव पर्याप्त कारण से ऎसा आवश्यक समझता है, तो वह किसी संपूर्ण प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण- जमाराशियां न स्वीकार करने वाली कोर निवेश कंपनियां ( CIC-ND-SI) को इन निदेशों के सभी अथवा किसी प्रावधानों के अनुपालन के लिए और समय प्रदान कर सकता है अथवा या तो सामान्य रूप से या किसी विशिष्ट अवधि के लिए छूट दे सकता है, जो उन शर्तों के अधीन होगा, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक ने उन पर लगाए है.

16. व्याख्या (Interpretattions)

इन निदेशों के प्रावधानों को लागू करने के प्रयोजन से, भारतीय रिजर्व बैंक यदि आवश्यक समझता है तो इसमें शामिल किसी भी मामले के बारे में आवश्यक स्पष्टिकरण जारी कर सकता है और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इन निदेशों के किसी प्रावधान की दी गई व्याख्या अंतिम होगी और सभी संबंधित पक्षों पर बाध्यकारी होगी.

17. 5[कोर निवेश कंपनियां (सीआईसी)- विदेशी निवेश (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2012]

17.1. पृष्ठभूमि

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी द्वारा विदेश में शाखाएं/सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम/प्रतिनिधि कार्यालय खोलना या निवेश करना) निदेश, 2011 में एनबीएफसी द्वारा विदेशी निवेश के लिए सामान्य और विशिष्ठ स्थितियां विनिर्दिष्ट किया गया है। कोर निवेश कंपनी (सीआईसी) के लिए निदेश के प्रासंगिकता की जांच की गई तथा उनके विशिष्ट कारोबार प्रकृति ( केवल होल्डिंग उद्देश्य के लिए निवेश) के आलोक में निदेश यह पाया गया कि इसमें कुछ संशोधन करना आवश्यक है।

कोर निवेश कंपनी (सीआईसी) अर्थ व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में समूह कंपनियों में मुख्य रूप से निवेश करती है। होल्डिंग कंपनी होने के कारण उन्हें वित्तीय और गैर वित्तीय दोनो कार्यकलापों में निवेश करने की आवश्यकता है। अत: यह निर्णय लिया गया है कि उनके विदेशी निवेश के संबंध में एक अलग निदेश जारी किया जाए।

सभी सीआईसी को विदेश में वित्तीय क्षेत्र के संयुक्त उद्यम/सहायक कंपनी/प्रतिनिधि कार्यालय में निवेश करने के लिए बैंक से पूर्वानुमति लेने की आवश्यकता है। अनुमोदन भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ञक, 45 के तथा 45 ठ द्वारा प्रदत्त शक्तियों के द्वारा 6 दिसम्बर 2012 की अधिसूचना सं: गैबैंपवि(नीप्र) 252/सीजीएम(यूएस)/2012 द्वारा में जारी संलग्न निदेश में निहित नियम को पूरा करने के अधीन होगा। अधिसूचना गहन अनुपालन हेतु संलग्न है।

अत: वर्तमान में पंजीकरण से छूट प्राप्त सीआईसी यदि वित्तीय क्षेत्र में विदेशी निवेश करने की इच्छा रखती है तो उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा तथा पंजीकृत सीआईसी पर लागू सभी विनियम का अनुपालन भी करना होगा। तथापि छूट प्राप्त सीआईसी को गैर वित्तीय क्षेत्र में निवेश करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।

17.2. सीआईसी द्वारा विदेशी निवेश के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमति

i. यह निदेश सभी सीआईसी 6 (भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकृत अथवा पंजीकरण से छूट प्राप्त किसी भी स्थिति में) पर लागू होगें, जो विदेशी निवेश की इच्छा रखती है।

ii. 7 विदेशी वित्तीय क्षेत्र में निवेश:

वित्तीय क्षेत्र में विदेशी निवेश की इच्छा रखने वाली सीआईसी को भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र (सीओआर) धारण तथा पंजीकृत सीआईसी पर लागू सभी विनियमों का पालन करना होगा। अत: सीआईसी जिन्हें बैंक के विनियमन संरचना से छूट प्राप्त है (छूट प्राप्त सीआईसी) वित्तीय क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए उन्हें बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने की आवश्यकता है तथा वे सीआईसी-एनडी-एसआई की तरह विनियमित होंगी।

iii. गैर वित्तीय क्षेत्र में निवेश :

छूट प्राप्त सीआईसी जो विदेशी गैर वित्तीय क्षेत्र में निवेश कर रहीं है उन्हें बैंक से पंजीकरण प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है अत: यह निदेश उनके उनपर लागू नहीं होंगी। इसके अतिरिक्त पंजीकृत सीआईसी को विदेशी गैर वित्तीय क्षेत्र में निवेश करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग (डीएनबीएस) से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। तथापि, उन्हें ऐसे निवेश के 30 दिनों के भीतर निर्धारित फार्मेट में इसकी सूचना क्षेत्रीय कार्यालय के गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग को देना होगा जहां वह पंजीकृत है तथा तिमाही रिटर्न की प्रस्तुति जारी रखना होगा;

iv. सीआईसी के लिए विदेशी निवेश हेतु माप दण्ड तथा निर्धारित अन्य नियम निम्नलिखित पैराग्राप में दी गई है:

17.3 पात्रता मानदण्ड

i. सीआईसी की समायोजित निवल मालियत (एएनडब्ल्यू) उसके तुलनपत्र के सकल जोखिम भारित परिसंपत्तियों तथा तुलनपत्र इत्तर मदों के समायोजित जोखिम मूल्य वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर अंतिम लेखा परीक्षित तुलन पत्र की तारीख को 30% से कम नहीं होना चाहिए। सीआईसी को विदेशी निवेश के बाद एएनडब्ल्यू का आवश्यक न्यूनतम स्तर बनाए रखना होगा। इस उद्देश्य के लिए, 5 जनवरी 2011 के अधिसूचना सं:219 में जोखिम भार को निश्चित किया गया है।

ii. सीआईसी की निवल अनर्जक परिसंपत्तियों का स्तर अंतिम लेखा परीक्षित तुलन पत्र की तारीख को निवल अग्रिम से 1% से अधिक नहीं होना चाहिए;

iii. सीआईसी को सामान्यत: अंतिम तीन वर्ष में लगातार लाभ अर्जित करनेवाली होनी चाहिए तथा इसकी मौजूदगी के दौरान इसका कार्यनिष्पादन संतोषजनक होनी चाहिए।

17.4.सामान्य शर्तें

i. फेमा के तहत निषिद्ध गतिविधियों में प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति नहीं है;

ii. कुल विदेशी निवेश सीआईसी के स्वाधिकृत निधियों के 400% से अधिक नहीं होनी चाहिए;

iii. वित्तीय क्षेत्र में विदेशी निवेश इसके स्वाधिकृत निधियों के 200%से अधिक नहीं होनी चाहिए;

iv. वित्तीय क्षेत्र में निवेश केवल विनियमित विदेशी संस्थाओं में ही होगी।

v. 8 विदेश में स्थापित अथवा विदेश में अधिगृहित संस्था को विदेश में पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक संस्थाएं (डब्ल्यूओएस)/ संयुक्त उद्यम (जेवी) के रूप में माना जाएगा;

vi. 9 सीआईसी द्वारा वित्तीय /गैर वित्तीय क्षेत्र में विदेशी निवेश उसके वित्तीय प्रतिबद्धता तक सीमित होगी। तथापि इस संबंध में गारंटी /चुकौती आश्वासन पत्र जारी करने के मामले में निम्न को नोट किया जाए;

ए. गैर वित्तीय गतिविधियों में संलिप्त विदेशी संस्थाओं को सीआईसी गारंटी/ चुकौती आश्वासन पत्र जारी कर सकती है;

बी. सीआईसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि विदेश में की गई निवेश के कारण जटिल संरचना तैयार होगा। यदि विदेशी संरचना में गैर परिचालनगत नियंत्रक कंपनी की आवश्यता होती है तो संरचना में दो स्तरीय संरचना से अधिक नहीं होनी चाहिए। सीआईसी के अस्तित्व में उनके निवेश संरचना के लिए एक से अधिक गैर परिचालनगत नियंत्रक कंपनी रहती है, जिसकी रिपोर्टिंग भारतीय रिज़र्व बैंक को समीक्षा के लिए की जानी चाहिए।

सी. सीआईसी को फेमा,1999 के तहत समय समय पर जारी विनियमों का अनुपालन करना होगा;

डी. सीआईसी को सांविधिक लेखा परीक्षक से वार्षिक प्रमाण पत्र, जिसमें यह प्रमाणित किया जाए कि विदेश में निवेश के लिए इस दिशानिर्देश के तहत निर्धारित सभी नियम का पूर्ण अनुपालन उनके द्वारा किया गया है, को क्षेत्रीय कार्यालय के गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग में प्रस्तुत करना होगा, जहां वह पंजीकृत है। प्रत्येक वर्ष के मार्च माह की समाप्ति पर प्रमाण अत्र प्रत्येक वर्ष के 30 अप्रैल तक प्रस्तुत करना होगा ;

ई. सीआईसी को एक संलग्न तिमाही विवरणी क्षेत्रीय कार्यालय गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग को तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के सांख्यिकी और सूचना प्रबंध विभाग को समाप्त तिमाही के 15 दिन के भीतर प्रस्तुत करना होगा।

एफ. यदि बैंक के संज्ञान में कोई प्रतिकूल बात आती है तो स्वीकृत अनुमति को वापस ले लिया जाएगा। विदेश में निवेश हेतु सभी स्वीकृतियां इस नियम के अधीन है।

17.5 विशिष्ठ शर्ते

i .शाखा खोलना

जैसा कि सीआईसी गैर परिचालनगत संस्थाएं होती है, सामान्य स्थिति में, उन्हें विदेश में शाखा खोलने की अनुमति नहीं है। सीआईसी, जिन्होंने निवेश कारोबार के लिए पहले ही विदेश में शाखा (यें) खोल ली है उन्हें इन दिशानिदेशों के जारी होने की तारीख से तीन माह के भीतर समीक्षा हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक से संपर्क करना होगा।

ii. सीआईसी द्वारा विदेश में डब्ल्यूओएस/जेवी खोलना

सीआईसी द्वारा विदेश में डब्ल्यूओएस/जेवी के मामले में, उक्त निर्धारित सभी शर्तें लागू होंगी। बैंक द्वारा जारी की जानी वाली अन्नपत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) विदेशी विनियामक की अनुमति प्रक्रिया से स्वतंत्र होंगी। इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित शर्तें सभी सीआईसी पर लागू होगी:

ए. विदेश में स्थापित की जाने वाली डब्ल्यूओएस/जेवी दिखावटी कंपनी (सेल कंपनी) नहीं होनी चाहिए अर्थात “ कंपनी जो गठित है किंतु कोई महत्वपूर्ण परिसंपत्तियां या परिचालन नहीं है:। तथापि वित्तीय सलाहकार तथा परामर्श सेवाएं प्रदान करने का कारोबार करने वाली ऐसी कंपनियों को दिखावटी कंपनी नहीं माना जाएगा;

बी. सीआईसी द्वारा विदेश में स्थापित की जाने वाली डब्ल्यूओएस/जेवी को भारत में भारतीय परिचालन के लिए परिसंपत्तियों के निर्माण हेतु, संसाधन जुटाने वाली माध्यम के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए;

सी. प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए, मूल सीआईसी को विदेशी डब्ल्यूओएस/जेवी द्वारा किए जाने वाले कारोबार संबंधी कम से कम तिमाही आवधिक रिपोर्ट/लेखा परीक्षा रिपोर्ट प्राप्त कर बैंक के निरीक्षण अधिकारियों को उपलब्ध कराना होगा;

डी. यदि डब्ल्यूओएस/जेवी द्वारा कोई कारोबार नहीं रहा अथवा ऐसी कोई रिपोर्ट की प्रस्तुति नहीं की जाती है तो विदेश में डब्ल्यूओएस/जेवी की स्थापना के लिए प्रदान की गई अनुमति की समीक्षा की जाएगी;

ई. डब्ल्यूओएस/जेवी अपने तुलन पत्र में अपनी मूल संस्था के प्रति अपनी देनदारी की राशि के संबंध में प्रकटीकरण करेगी तथा यह भी प्रकट करेगी कि क्या यह इक्विटी/ऋण तक सीमित है यदि गारंटी दी है तो ऐसी गारंटियों की प्रकृति तथा उसमे शामिल राशि;

एफ. विदेश के डब्ल्यूओएस/जेवी का सभी परिचालन मेजबान देश के विनियामक द्वारा निर्धारित नियमों के अधीन होगा।

iii. सीआईसी द्वारा विदेश में प्रतिनिधि कार्यालय खोलना

विदेश में प्रतिनिधि कार्यालय खोलने के लिए सीआईसी को भारतीय रिज़र्व बैंक के गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग से पूर्वानुमति लेना आवश्यक है। विदेश में प्रतिनिधि कार्यालय की स्थापना विदेश में संपर्क कार्य , बाजार स्टडी तथा अनुसंधान कार्य हेतु प्रतिनिधि कार्यालय खोला जा सकता है किंतु इसमें किसी भी प्रकार से निधियों का परिव्यय कारोबार शामिल न हो। प्रतिनिधि कार्यालय को इस संबंध में मेजबान देश के विनियामक द्वारा निर्धारित विनियमों का अनुपालन करना होगा, यदि कोई हो तो। ऐसा परिकल्पित नहीं किया गया है कि ऐसे कार्यालय संपर्क कार्य के अतिरिक्त और कोई गतिविधि करें, इन्हें कोई ऋण व्यवस्था प्रदान नहीं की जाए।

मूल सीआईसी को विदेशी प्रतिनिधि कार्यालय से उनके कारोबार संबंधी आवधिक रिपोर्ट प्राप्त करनी होगी। . यदि प्रतिनिधि कार्यालय द्वारा कोई कारोबार नहीं किया जाता है या रिपोर्ट की प्राप्ति नहीं होती है तो बैंक सीआईसी को संस्था बन्द करने हेतु सूचित करेगा।

इन निदेशो का उल्लंघन भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के तहत दण्डनीय है

18 कोर निवेश कंपनियां – बीमा में निवेश पर दिशानिदेश

10 कोर निवेश कंपनियों (सीआईसी) का विशिष्ट कारोबार मॉडल के आलोक में, यह निर्णय लिया गया कि बीमा कारोबार में उनके प्रवेश के लिए पृथक दिशानिदेश बनाया जाए।

जबकि पात्रता मानदण्ड, सामान्य रूप में, अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों हेतु निर्धारित मापदंड के अनुरूप होगी तथा संयुक्त बीमा उपक्रम में सीआईसी का निवेश हेतु उनके लिए उच्चतम सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त यह स्पष्ट किया जाता है कि सीआईसी बीमा ऐजेंसी का कारोबार नहीं कर सकती है। दिशानिदेश गहन अनुपालन हेतु संलग्न है।

भारतीय रिज़र्व बैंक से छूट प्राप्त सीआईसी को पूर्वानुमति लेने की आवश्यकता नहीं हैं बशर्ते कि वे 05 जनवरी 2011 के सीसी सं:206 के तहत निर्धारित छूट हेतु निर्धारित शर्तों को पूरा करती हो। संयुक्त बीमा उपक्रम में उनका निवेश बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के नियम द्वारा निदेशित होगें।

18.2 भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकृत कोई कोर निवेश कंपनी जो निम्नलिखित मापदंड को पूरा करती है उन्हें सुरक्षा उपायों के अधीन जोखिम सहभागिता के साथ बीमा कारोबार करने के लिए संयुक्त उपक्रम कंपनी स्थापित करने की अनुमति दी जा सकती है। इस प्रकार की सीआईसी द्वारा धारित संयुक्त उपक्रम में अधिकतम इक्विटी अंशदान आईआरडीए के अनुमोदन के अनुसार होगा।

18.3 संयुक्त उपक्रम में भागीदारी हेतु पात्रता मानदंड निम्न के तहत, उपलब्ध नवीनतम लेखापरीक्षित तुलन पत्र के अनुसार होगा।

i. सीआईसी का स्वाधिकृत निधि रू 500 करोड़ से कम नहीं होना चाहिए;
ii. अनर्जक आस्तियां का स्तर कुल अग्रिमों का 1% से अधिक नहीं होनी चाहिए;
iii. सीआईसी को लगातार तीन वर्ष लगातार निवल लाभ अर्जित किया हुआ होना चाहिए;
iv. संबंधित सीआईसी की सहायक संस्थाएं, यदि कोई होतो, के कार्य निष्पादन का ट्रैक रिकार्ड संतोषजनक होना चाहिए;
v. सीआईसी को सीआईसी निदेश 2011 सहित सभी लागू विनियमों का अनुपालन करना होगा। इस प्रकार सीआईसी-एनडी-एसआई को समायोजित निवल मूल्य जो तुलन पत्र मदों और तुलन पत्रेतर मदो के समायोजित जोखिम मूल्य पर कुल जोखिम भारित आस्तियों का कम से कम 30% बनाए रखना आवश्यक है।

18.4 सीआईसी को विभागीय रूप से यह कारोबार करने की अनुमति नहीं है। इसके अतिरिक्त, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (इसके समूह में/ वाह्य समूह में) को सामान्यत जोखिम भागीदारी आधार पर बीमा कंपनी ज्वांइन करने की अनुमति नहीं है अत: वे बीमा उपक्रम में प्रत्येक्ष या परोक्ष रूप से वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं करा सकती।

18.5 समूह के अंतर्गत, सीआईसी को अन्य गैर - वित्तीय संस्थाओं के साथ एकल आधार पर या संयुक्त उद्यम में बीमा कंपनी की इक्विटी में 100% तक निवेश करने की अनुमति दी जा सकती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सीआईसी या तो एक एकल आधार पर अथवा समूह कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम में बीमा जोखिम अनावृत करेगी तथा समूह में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी ऐसी जोखिम के घेरे से बाहर होगी।

18.6 ऐसे मामले में जहां एक विदेशी भागीदार बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण / विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड की अनुमति से इक्विटी में 26 प्रतिशत का अंशदान करता है वहां एक से अधिक सीआईसी बीमा संयुक्त उद्यम की इक्विटी में भाग ले सकती है। इस प्रकार भागीदारों को भी बीमा जोखिम अपनाना होगा तथा केवल वही सीआईसी पात्र होंगी जो उक्त पैराग्राफ 2 में निहित पात्रता मानदंड को पूरा करती है।

18.7 सीआईसी ऐजेंट के रूप में बीमा कारोबार में प्रवेश नहीं कर सकती। बीमा कारोबार में निवेशक अथवा जोखिम भागीदार के आधार पर भाग लेने की इच्छा रखने वाली सीआईसी को भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमति प्राप्त करनी होगी। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सभी संबंधित घटको को ध्यान में रख कर मामले के अनुसार अनुमति प्रदान की जाएगी। यह सुनिश्चित किया जाए कि बीमा कारोबार में शामिल जोखिमों का स्थानांतरण सीआईसी को नहीं किया जाएगा।

नोट:

(1) बीमा कंपनी में प्रवर्तक सीआईसी द्वारा धारित इक्विटी अथवा बीमा कारोबार में निवेश बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण/केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गए नियम और विनियमन के अनुपालन के अधीन होगा। इसमें निर्धारित समयावधि के अंदर चुकता पूंजी का 26 प्रतिशत से अधिक इक्विटी में विनिवेश के लिए आईआरडी अधिनियम 1999 में यथा संशोधित धारा 6एए का अनुपालन शामिल होगा।

(2) कोर निवेश कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2011 के नियम के अनुसार पंजीकरण से छूट प्राप्त सीआईसी को पूर्वानुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है बशर्ते वे छूट के लिए निर्धारित सभी शर्तों को पूरा करती हो।


फूट नोट : मूल परिपत्र/अधिसूचना में जब और जैसे परिवर्तन होगा मास्टर परिपत्र में संदर्भित कंपनी अधिनियम, 1956 में भी परिवर्तन होगा।


परिशिष्ट

क्रम

परिपत्र सं

दिनांक

1

डीएनबीएस(पीडी)सीसी.सं:206/03.10.001/2010-11

5 जनवरी 2011

2

डीएनबीएस.पीडी.सीसी.सं274/03.02.089/2011-12

11 मई 2012

3

डीएनबीएस.पीडी.सीसी.सं.311/03.10.01/2012-13

6 दिसम्बर 2012

4

डीएनबीएस.पीडी.सीसी.सं. 322/03.10.01/2012-13

1 अप्रैल 2013


15 जनवरी 2011 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि(नीप्र)219/सीजीएम(यूएस)-2011
211 मई 2012 की  अधिसूचना सं:डीएनबीस(पीडे)245/सीजीएम(यूएस)-2012 द्वारा शामिल किया गया
35 जनवरी 2011 की अधिसूचना गैबैंपवि(नीप्र)220/सीजीएम(यूएस)-2011
4 5 जनवरी 2011 की अधिसूचना गैबैंपवि(नीप्र)220/सीजीएम(यूएस)-2011
506 दिसम्बर 2012 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.सं.311/03.10.01/2012-13 द्वारा जोड़ा गया
6सीआईसी, 05 जनवरी 2011 के परिपत्र गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि सं: 206/03.10.001/2010-11 के पैरा 2(बी) परिभाषित के अनुसार जिसका शीर्षक है कोर निवेश कंपनियों के लिए विनियामक संरचना।
7इस उद्देश्य के लिए वित्तीय क्षेत्र अर्थात वह क्षेत्र /सेवाएं जो वित्तीय क्षेत्र विनियामक द्वारा विनियमित है।
8 फेमा के तहत “संयुक्त उद्यम” अर्थात विदेशी संस्था जो मेजबान देश के कानून के अनुसार निगमित और पंजीकृत  है विदेशी संस्था जिसमें भारतीय पक्ष प्रत्यक्ष निवेश करता है। “डब्ल्यूओएस” अर्थात मेजबान देश के कानून के अनुसार निगमित और पंजीकृत विदेशी संस्था, जिसकी पूरी पूंजी भारतीय पक्ष द्वारा धारण जी गई हो।
9“वित्तीय प्रतिबद्धता” अर्थात वह राशि जो इक्विटी में प्रत्येक्ष निवेश का योगदान दे कर ऋण और विदेशी जेवी/डब्ल्यूओएस को या उसकी तरफ से भारतीय पक्ष द्वारा 50% की राशि के लिए गारंटी दी गई हो।
101 अप्रैल 2013 के गैबैंपवि(नीप्र) कंपरि.सं.322/03.10.001/2012-13 द्वारा शामिल किया गया।

 
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