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Date: 01/07/2014
मास्टर परिपत्र - प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार

भारिबैं/2014-15/82
ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी.सं. 5/03.05.33/2014-15

1 जुलाई 2014

अध्यक्ष
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

महोदय ,

मास्टर परिपत्र - प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार

भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के बारे में बैंकों को समय-समय पर कई दिशा-निर्देश / अनुदेश / निदेश जारी किए हैं। बैंकों को सभी अद्यतन अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के प्रयोजन से इस संबंध में विद्यमान दिशा-निर्देशों /अनुदेशों / निदेशों को समाहित करते हुए एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है और संलग्न किया गया है। इस मास्टर परिपत्र में, इसके परिशिष्ट में निर्दिष्ट किए गए अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपर्युक्त विषय पर दिनांक 30 जून 2014 तक जारी सभी परिपत्रों स्पष्टीकरणों को समेकित किया गया है।

2. कृपया इस परिपत्र की प्राप्ति सूचना हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें।

भवदीय

( ए. उदगाता )
प्रधान मुख्‍य महाप्रबंधक


प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार – पृष्‍ठभूमि

जुलाई 1968 में आयोजित राष्ट्रीय ऋण परिषद की बैठक में इस बात पर जोर दिया गया था कि वाणिज्य बैंक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र, अर्थात़् कृषि और लघु उद्योग क्षेत्र के वित्तपोषण हेतु ज्यादा प्रतिबद्धता दिखाएं। बाद में, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम से सम्बन्धित आंकड़ों के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मई 1971 में गठित अनौपचारिक अध्ययन दल की रिपोर्ट के आधार पर 1972 के दौरान प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के स्वरुप को औपचारिक अभिव्यक्ति प्रदान की गई । उक्त रिपोर्ट के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने वाणिज्‍य बैंकों से प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम की रिपोर्ट मंगवाने हेतु एक संशोधित विवरणी निर्धारित की और प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के विभिन्न वर्गों के अंतर्गत शामिल की जाने वाली योग्य मदों को इंगित करने के प्रयोजन से कतिपय दिशा-निर्देश भी जारी किये । हालांकि, प्रारम्भ में प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र उधारों के अंतर्गत कोई विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गए थे, नवम्बर 1974 में वाणिज्‍य बैंकों को सूचित किया गया कि वे मार्च 1979 तक अपने सकल अग्रिमों में इन क्षेत्रों को देय अग्रिमों का प्रतिशत बढ़ाकर 33 1/3% कर दें ।

केन्द्रीय वित्त मंत्री और सरकारी क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों के बीच मार्च 1980 में आयोजित एक बैठक में इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को देय अग्रिमों का अनुपात मार्च 1985 तक बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने हेतु बैंक लक्ष्य निर्धारित करें। बाद में, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र उधार तथा 20 सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम को बैंकों द्वारा लागू किये जाने विषयक तौर-तरीकों के निरुपण हेतु गठित कार्यकारी दल (अध्यक्षः डॉ. के.एस.कृष्णस्वामी) की सिफारिशों के आधार पर सभी वाणिज्य बैंकों को सूचित किया गया कि वे सकल बैंक अग्रिमों का 40% प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार देने का लक्ष्य 1985 तक प्राप्त करें । कृषि तथा कमज़ोर वर्गों को उधार देने हेतु प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के दायरे में ही उप-लक्ष्य भी निर्दिष्ट किये गए थे । तब से अब तक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत देय उधारों तथा विभिन्न बैंक समूहों पर लागू लक्ष्यों तथा उप-लक्ष्यों में कई बार परिवर्तन हुए हैं ।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी)

वास्तव में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को केवल लक्ष्य समूह, जिसमें छोटे और सीमांत किसान, भूमि रहित श्रमिक, ग्रामीण कारीगर तथा समाज के अन्य कमज़ोर वर्ग शामिल हैं, को उधार देने की अनुमति दी गई थी। तदोपरांत, उन्हें गैर-लक्ष्य समूह के उधारकर्ताओं को वर्ष के दौरान अपने वृद्धिशील उधार का 60 प्रतिशत उधार देने की अनुमति दी गई। समीक्षा के बाद, यह निर्णय लिया गया कि 1 अप्रैल 1997 से शुरु हो रहे वित्तीय वर्ष से प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के उधारकर्ताओं को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का अग्रिम उनके बकाया अग्रिमों का 40 प्रतिशत होगा जैसाकि वाणिज्‍य बैंकों के मामले में है। 40 प्रतिशत के समग्र लक्ष्य में से प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम का 25 प्रतिशत (अर्थात् कुल बकाया अग्रिमों का 10 प्रतिशत ) समाज के कमज़ोर वर्गों को प्रदत्त अग्रिम था।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के लिए उपर्युक्तानुसार निर्धारित लक्ष्यों की तुलना में उपलब्धियों के स्तर की समीक्षा दिनांक 6 अगस्त 2002 को संसदीय अनुमान समिति के साथ हुई बैठक में की गई। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले खंडों को और अधिक ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र क्षेत्र को उधार के लिए अपने बकाया अग्रिमों के 40% के लक्ष्य के स्थान पर् 60% लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए। साथ ही, कुल प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र अग्रिमों में से कम से कमक 25% (अर्थात् कुल अग्रिम का 15 प्रतिशत) अग्रिम समाज के कमजोर वर्गों को देना चाहिए। संशोधित लक्ष्य वर्ष 2003-04 से लागू हुए हैं।

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर आंतरिक कार्यकारी दल

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र का गठन करनेवाले खंडों, लक्ष्यों और उप-लक्ष्यों आदि सहित प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर मौजूदा नीति, तथा बैंकों, वित्तीय संस्थानों, जनता और भारतीय बैंक संघ से प्राप्त टिप्पणियों / सिफारिशों की जांच, समीक्षा और परिवर्तन की सिफारिश करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक में गठित आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्षः श्री सी.एस.मूर्ति) द्वारा सितंबर 2005 में की गई सिफारिशों के आधार पर यह निर्णय किया गया है कि केवल उन क्षेत्रों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के एक भाग के रूप में शामिल किया जाए जो जनसंख्या के एक बड़े हिस्से, कमज़ोर वर्गों तथा रोजगार प्रधान क्षेत्रों जैसे कृषि, अत्यंत लघु और लघु उद्यमों को प्रभावित करते हों।

तदनुसार, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए मोटे तौर पर प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के निम्नलिखित वर्ग होंगे :

I. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के वर्ग

(i) कृषि (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष वित्त) : कृषि को प्रत्यक्ष वित्त में अलग-अलग किसानों, स्वयं सहायता समूहों या अलग-अलग किसानों के संयुक्त देयता समूहों को कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों (डेरी उद्योग, मत्स्यपालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन आदि) के लिए बिना कोई सीमा के तथा अन्य (जैसे कंपनियों, भागीदारी फर्मो तथा संस्थानों) को कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए भाग I में दर्शाई सीमा तक प्रत्यक्ष रूप से अल्पावधि, मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण देना शामिल है।

कृषि को अप्रत्यक्ष वित्त में भाग I में उल्लिखित कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए ऋण शामिल होंगे।

(ii) व्यष्टि (माइक्रो) और लघु उद्यम (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वित्त): व्यष्टि और लघु उद्यम को प्रत्यक्ष वित्त में सामान के विनिर्माण / उत्पादन, प्रसंस्करण या परिरक्षण में कार्यरत व्यष्टि और लघु (विनिर्माण) उद्यमों तथा सेवाएं प्रदान करने वाले व्यष्टि और लघु (सेवा) उद्यमों, जिनका क्रमशः संयंत्र और मशीनों तथा उपकरणों (भूमि और भवन तथा उसमें उल्लिखित ऐसी मदों को छोड़कर मूल लागत) में निवेश संलग्न भाग I में निर्धारित राशि से अधिक न हो, को प्रदान सभी प्रकार के ऋण शामिल हैं। व्यष्टि और लघु (सेवा) उद्यमों में नीचे भाग I में दी गई परिभाषा के अनुसार लघु सड़क एवं जलपरिवहन परिचालक, लघु व्यवसाय, व्यावसायिक और स्वनियोजित व्यक्तियों, खुदरा व्यापार अर्थात् आवश्यक वस्तुओं (उचित मूल्य की दुकान) के खुदरा व्यापारियों, उपभोक्ता सहकारी भंडारों को अग्रिम प्रदान करना तथा निजी खुदरा व्यापारियों को अग्रिम प्रदान करना जिसकी ऋण सीमा 20 लाख रुपए से अधिक न हो तथा अन्य सभी सेवा उद्यम शामिल होंगे।

लघु उद्यमों को अप्रत्यक्ष वित्त में इस क्षेत्र में कारीगरों, ग्राम एवं कुटीर उद्योगों, हथकरघा उद्योग तथा उत्पादनकर्ता की सहकारी संस्थाओं को निविष्टियां उपलब्ध कराने तथा उनके उत्पादनों की विपणन व्यवस्था करनेवाले किसी भी व्यक्ति को दिया गया वित्त शामिल होगा।

(iii) व्यष्टि ऋण : स्वयं सहायता समूह/संयुक्त देयता समूह तंत्र के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रति उधारकर्ता 50,000 रुपए से अनधिक के ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएं और उत्पाद उपलब्ध कराना

(iv) शैक्षिक ऋण : शैक्षिक ऋण में अलग-अलग व्यक्तियों को शिक्षा के प्रयोजनार्थ भारत में अध्ययन के लिए 10 लाख रुपए तक तथा विदेश में अध्‍ययन के लिए 20 लाख रुपए के स्वीकृत ऋण और अग्रिम शामिल होंगे, न कि संस्थाओं को दिए गए ऋण और अग्रिम। शैक्षिक संस्थाओं को प्रदत्‍त ऋण, माइक्रो और लघु (सेवा) उद्यम के अंतर्गत प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम के रूप में वर्गीकृत होने के पात्र होंगे बशर्ते वे एमएसएमइडी अधिनियम, 2006 के प्रावधानों को पूरा करते हों।

(v) आवास ऋणः व्यक्तियों को प्रति परिवार आवासीय इकाइयां खरीदने / निर्माण करने (बैंकों द्वारा अपने कर्मचारियों को प्रदान ऋण को छोड़कर) हेतु 25 लाख रुपए तक के ऋण तथा क्षतिग्रस्त आवासीय इकाइयों की मरम्मत के लिए ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्र में 1 लाख रुपए तक तथा शहरी और महानगरीय क्षेत्रों में 2 लाख रुपए तक के ऋण शामिल होंगे।

II. दिशानिर्देशों की अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं

(i) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के विभिन्न वर्गों को दिए गए ऋण के रुप में बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में किया गया निवेश संदर्भित आस्तियों के आधार पर प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संबंधित वर्ग (प्रत्य्क्ष या अप्रत्यक्ष) में वर्गीकृत किए जाने का पात्र होगा बशर्ते प्रतिभूतिकृत आस्तियां बैंकों और पात्र वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रायोजित की गई हों तथा प्रतिभूतिकरण पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों की अपेक्षाओं को पूरा करती हों। इसका यह अर्थ होगा कि प्रतिभूतिकृत आस्तियों के उक्त वर्गों में बैंक का निवेश प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संबंध में बैंक का निवेश प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संबंधित वर्गों में वर्गीकरण के लिए तभी पात्र होगा जब प्रतिभूतिकृत अग्रिम उनके प्रतिभूतिकरण से पहले प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र रहा हो।

(ii) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र किसी ऋण आस्ति की एकमुश्त खरीद प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) के संबंधित वर्गों में वर्गीकरण के लिए पात्र होगी बशर्ते, खरीदे गए ऋण प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र हों ; ऋण आस्तियां विक्रेता के सहारे बिना बैंकों और पात्र वित्तीय संस्थाओं से (पूरी सावधानी से और उचित मूल्य पर) खरीदी गई हो; और पात्र ऋण आस्तियां, चुकौती के अलावा, खरीद की तारीख से छः माह की अवधि के अंदर निपटाई न गई हों।

(iii) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र वर्ग के अंतर्गत उनके द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के उधार के लिए निर्धारित 60 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक धारित अपनी ऋण आस्तियां बेच सकते हैं।

(iv) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक वाणिज्य बैंकों को जोखिम शेयरिंग आधार पर 180 दिनों की अवधि के अंतर-बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र (आइबीपी) जारी कर सकते हैं जो उनके बकाया अग्रिमों के 60 प्रतिशत से अधिक के उनके प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र अग्रिमों की जमानत पर होंगे।

III. लक्ष्य / उप-लक्ष्य

वर्तमान में, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के लिए अपने बकाया अग्रिमों के 60 प्रतिशत का लक्ष्य होगा। साथ ही, कुल प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र अग्रिमों में से कम से कम 25 प्रतिशत (अर्थात कुल अग्रिमों का 15 प्रतिशत) समाज कमजोर वर्ग के लोगों को दिया जाना चाहिए।

इस संबंध में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश नीचे दिए गए हैं :

भाग I

1. कृषि

प्रत्यक्ष वित्त

1.1 अलग-अलग किसानों [(स्वयं सहायता समूहों या संयुक्त देयता समूहों अर्थात् अलग-अलग किसानों के समूहों सहित) बशर्ते बैंक ऐसे वित्त का अलग से ब्योरा रखते हों] को कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों (डेरी उद्योग, मत्स्य पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधु-मक्खी पालन आदि) के लिए वित्त

1.1.1 फसल उगाने के लिए अल्पावधि ऋण अर्थात् फसल ऋण। इसमें पारंपरिक / गैर-पारंपरिक बागान एवं फलोद्यान शामिल होंगे।

1.1.2 12 माह की अनधिक अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी / दृष्टिबंधक रखकर 10 लाख रुपए तक के अग्रिम, भले ही, किसानों को फसल उगाने के लिए फसल ऋण दिए गए हों या नहीं।

1.1.3 कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों से संबंधित उत्पादन और निवेश आवश्यकताओं हेतु वित्त पोषण के लिए कार्यशील पूंजी और मीयादी ऋण।

1.1.4 कृषि प्रयोजन हेतु जमीन खरीदने के लिए छोटे और सीमांत किसानों को ऋण।

1.1.5 गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त आपदाग्रस्त किसानों को उचित संपार्श्विक अथवा सामूहिक जमानत पर ऋण।

1.1.6 ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तियों, स्वयं सहायता समूहों और को-आपरेटिवों द्वारा फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद किए गए कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), छंटाई, प्रसंस्करण तथा परिवहन के लिए ऋण।

1.1.7 कृषि और संबद्ध कार्यकलापों हेतु प्रदत्त ऋण भले ही उधारकर्ता इकाई निर्यात कार्यों में सक्रिय है या नहीं। तथापि, आरआरबी द्वारा कृषि और संबद्ध कार्यकलापों हेतु प्रदान निर्यात ऋण को "कृषि क्षेत्र को निर्यात ऋण" शीर्ष के अंतर्गत अलग से रिपोर्ट किया जाए।

1.2 अन्‍यों को वित्‍त (जैसे कंपनियां, भागीदारी फर्मों तथा संस्थानों) को कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों (डेरी उद्योग, मत्स्य पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधु-मक्खी पालन आदि) के लिए

1.2.1 फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद किए गए कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), छंटाई तथा परिवहन के लिए ऋण।

1.2.2 उपर्युक्त 1.1.1, 1.1.2, 1.1.3 और 1.2.1 में सूचीबद्ध प्रयोजनों के लिए प्रति उधारकर्ता एक करोड़ रुपए की कुल राशि तक वित्त पोषण।

1.2.3 कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए प्रति उधारकर्ता एक करोड़ रुपए की कुल राशि से अधिक एक-तिहाई ऋण।

अप्रत्यक्ष वित्त

1.3 कृषि एवं उससे संबद्ध कार्यकलापों हेतु वित्त

1.3.1 कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए प्रति उधारकर्ता एक करोड़ रुपए की कुल राशि के अलावा उपर्युक्त 1.2 में आनेवाली संस्थाओं को दो-तिहाई ऋण।

1.3.2 उपर्युक्त 1.1.6 के अलावा संयंत्र और मशीनरी में 10 करोड़ रुपए तक के निवेश वाली खाद्य और कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाइयों को ऋण। डेरी खंड के अंतर्गत दिया जानेवाला ऋण जिससे प्रमुख रूप से छोटे / सीमांत / कृषकों / अत्यंत लघु इकाइयों को लाभ मिल सकता है और इससे डेरी कारोबार का विकास हो पाएगा।

1.3.3 (i) उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों, बीजों आदि की खरीद और वितरण हेतु उधार।

(ii) पशु खाद्य, मुर्गी आहार आदि जैसे संबद्ध कार्यकलापों के लिए निविष्टियों की खरीद एवं संवितरण के लिए 40 लाख रुपए तक के स्वीकृत ऋण।

1.3.4 एग्री क्लिनिक और एग्री बिजनेस की स्थापना के लिए वित्त।

1.3.5 कृषि मशीनरी और औज़ारों के वितरण हेतु किराया खरीद योजना के लिए वित्त।

1.3.6 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस), कृषक सेवा समितियों (एफएसएस) तथा बड़े आकारवाली आदिवासी बहु -उद्देशीय समितियों ( एलएएमपीएस) के माध्यम से किसानों को ऋण।

1.3.7 सदस्यों के उत्पादनों का निपटान करने के लिए किसानों की सहकारी समितियों को ऋण।

1.3.8 सहकारिता प्रणाली के माध्यम से किसानों को अप्रत्यक्ष वित्त (बांडों और डिबेंचरों के निर्गमों में अभिदान से भिन्न) ।

1.3.9 भंडारण सुविधाओं का निर्माण और उन्हें चलाने कृषि उत्पाद / उत्पादनों के भंडारण के लिए बनाई गई कोल्ड स्टोरेज इकाइयों, (भंडारघर, बाज़ार प्रांगण, गोदाम और साइलो) चाहे वे कहीं भी स्थित हों, सहित के लिए ऋण। यदि स्टोरेज इकाई को लघु उद्योग इकाई / व्यष्टि या लघु उद्यम के रुप में पंजीकृत किया गया हो, तो ऐसी इकाइयों को दिए गए ऋण को लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाएगा।

1.3.10 कस्टम सेवा इकाइयों को अग्रिम, जिनका प्रबंध व्यक्तियों, संस्थाओं या ऐसे संगठनों द्वारा किया जाता है, जिनके पास ट्रैक्टरों, बुलडोज़रों, कुआं खोदने के उपस्करों, थ्रेशर, कंबाइन्स आदि का दस्ता है और वे किसानों का काम ठेके पर करते हों।

1.3.11 द्रव सिंचाई / छिड़काव सिंचाई प्रणाली / कृषि - मशीनों के विक्रेताओं को निम्नलिखित शर्तों पर दिया गया वित्त, चाहे वे कहीं भी कार्यरत हों –

(क) विक्रेता केवल ऐसी वस्तुओं का कारोबार करता हो अथवा यदि वह अन्य वस्तुओं का कारोबार करता हो तो ऐसी वस्तुओं के लिए अलग और स्पष्ट अभिलेख रखता हो।

(ख) प्रत्येक विक्रेता के लिए निर्धारित उच्चत्तम सीमा 30 लाख रुपए तक का पालन किया जाए।

1.3.12 किसानों को ऋण देने, निविष्टियों की आपूर्ति करने तथा अलग-अलग किसानों / स्वयं सहायता समूहों / संयुक्त देयता समूहों से उत्पादन खरीदने हेतु आढ़तियों (ग्रामीण अर्धशहरी क्षेत्रों के बाज़ारों / मण्डियों में कार्यरत कमीशन एजेंट) को ऋण।

1.3.13 सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) के अंतर्गत सामान्य प्रयोजनों के लिए ऋण के अंतर्गत क्रेडिट का बकाया।

1.3.14 एनजीओ /एमएफआई को आगे अलग-अलग किसानों या उनके एसएचजी/जेएलजी को उधार देने के लिए प्रदत्त ऋण। कृषि क्षेत्र और उससे संबद्ध कार्यकलापों को आगे उधार देने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को प्रदान ऋण।

1.3.15 ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में "नो-फ्रिल्स" खातों की जमानत पर प्रदान 25,000 रुपए (प्रति खाता) तक के ओवरड्राफ्ट।

1.4 कृषि को प्रत्यक्ष / अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में वर्गीकरण हेतु अपात्र ऋण

1.4.1 स्वर्ण आभूषणों की जमानत पर व्यक्तियों को या अन्य संस्थाओं को आगे ऋण देने के प्रयोजन हेतु एनबीएफसी को मंजूर किए गए ऋण, एनबीएफसी द्वारा आरंभ की गई जमानती आस्तियों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश, जहाँ अंतर्निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषणों की जमानत पर ऋण तथा एनबीएफसी से स्वर्ण ऋण संविभाग का क्रय / विक्रय-पत्र हों।

2. सूक्ष्म (माइक्रो) और लघु उद्यम

प्रत्यक्ष वित्त

2.1.1 विनिर्माण उद्यम

(क) व्यष्टि (विनिर्माण) उद्यम

ऐसे उद्यम जो सामानों के विनिर्माण / उत्पादन, प्रसंस्करण या परिरक्षण के कार्य में लगे हैं और जिनका संयंत्र और मशीनों (लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की उनकी अधिसूचना सं. एसओ. 1722 (ई) में उल्लिखित वस्तुओं तथा भूमि और भवन को छोड़कर मूल लागत) में निवेश 25 लाख रुपए से अधिक न हो चाहे इकाई कहीं भी स्थित हो ।

(ख) लघु (विनिर्माण) उद्यम

ऐसे उद्यम जो सामानों के विनिर्माण / उत्पादन, प्रसंस्करण या परिरक्षण के कार्य में लगे हैं और जिनका संयंत्र और मशीनों [ 2.1.1 (क) में उल्लिखित वस्तुओं तथा भूमि और भवन को छोड़कर मूल लागत] में निवेश 25 लाख रुपए से अधिक हो, लेकिन 5 करोड़ रूपए से अधिक न हो, चाहे इकाई कहीं भी स्थित हो।

2.1.2 सेवा उद्यम

(क) व्यष्टि (सेवा) उद्यम

ऐसे उद्यम जो सेवाएं उपलब्ध / प्रदान करने में लगे हैं और जिनका उपस्करों (भूमि और भवन, फर्नीचर और जुड़नार तथा अन्य वस्तुएं जो प्रदान की गई सेवा से सीधे संबद्ध न हों या जैसाकि एमएसएमइडी अधिनियम, 2006 में अधिसूचित किया गया हो, को छोड़कर मूल लागत) में निवेश 10 लाख रुपए से अधिक न हो, चाहे इकाई कहीं भी स्थित हो।

(ख) लघु (सेवा) उद्यम

ऐसे उद्यम जो सेवाएं उपलब्ध / प्रदान करने में लगे हैं और जिनका उपस्करों [भूमि और भवन, फर्नीचर और जुड़नार तथा 2.1.2 (क) में उल्लिखित ऐसी वस्तुओं को छोड़कर मूल लागत] में निवेश 10 लाख रुपए से अधिक हो, लेकिन 2 करोड़ रूपए से अधिक न हो चाहे इकाई कहीं भी स्थित हो।

(ग) लघु और व्यष्टि (सेवा) उद्यमों में लघु सड़क तथा जल परिवहन परिचालक, छोटे कारोबार, व्यावसायिक और स्व-नियोजित व्यक्ति तथा कार्यकलापों में लगे अन्य सेवा उद्यम शामिल होंगे अर्थात् प्रबंध सेवाओं सहित परामर्श सेवाएं, जोखिम और बीमा प्रबंधन में संमिश्र ब्रोकर सेवाएं, पॉलीसीधारक के मेडिकल बीमा दावों के लिए थर्ड पार्टी प्रशासन सेवाएं (टीपीए), सीड ग्रेडिंग सेवाएं, ट्रेनिंग - कम - इन्क्यूबेटर सेवाएं, शैक्षणिक संस्थाएं, कानूनी व्यवहार अर्थात् विधि सेवाएं, खुदरा व्यापार, चिकित्सकीय उपकरणों (बिल्कुल नए) में व्यापार, प्लेसमेंट और प्रबंध परामर्शी सेवाएं, विज्ञापन एजेंसी और प्रशिक्षण केंद्र तथा उपकरणों (भूमि और भवन और फर्नीचर, फिटिंग्स और ऐसी अन्य मदें जो दी गई सेवाओं से सीधे जुड़ी न हो, या एमएसएमइडी अधिनियम,2006 के अंतर्गत अधिसूचित मदों को छोड़कर मूल लागत) (अर्थात् क्रमशः 10 लाख रूपए और 2 करोड़ रूपए से अधिक न हो) में निवेश के सबंध में लघु और व्यष्टि (सेवा) उद्यम की परिभाषा के अनुरूप हो।

(घ) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा व्यष्टि और लघु उद्यमों (एमएसई) (उत्पादन एवं सेवाएं) को प्रदान ऋण, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकरण हेतु पात्र हैं बशर्तें ऐसे उद्यम एमएसएमइडी अधिनियम, 2006 में निहित एमएसई क्षेत्र की परिभाषा पूरी करता हो भले ही उधारकर्ता इकाई निर्यात या अन्य में सक्रिय है या नहीं। तथापि, बैंकों द्वारा एमएसई को प्रदान निर्यात ऋण "व्यष्टि और लघु उद्योग क्षेत्र को निर्यात ऋण" शीर्ष के अंतर्गत अलग से रिपोर्ट किया जाए।

2.1.3 खादी ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआइ)

परिचालनों के आकार, अवस्थिति तथा संयंत्र और मशीनरी में मूल निवेश की राशि पर ध्यान दिए बगैर खादी-ग्राम उद्योग क्षेत्र की ईकाइयों को प्रदान सभी अग्रिम।

अप्रत्यक्ष वित्त

2.2 माइक्रो और लघु (विनिर्माण तथा सेवा) उद्यम क्षेत्र को अप्रत्यक्ष वित्त के अंतर्गत निम्नलिखित को दिए गए ऋण शामिल होंगे :

2.2.1 ऐसे व्यक्ति जो कारीगरों, ग्राम एवं कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति तथा उनके उत्पादनों के विपणन के कार्य में विकेंद्रित क्षेत्र की सहायता कर रहे हों।

2.2.2 विकेंद्रित क्षेत्र में उत्पादकों अर्थात् कारीगरों, ग्राम एवं कुटीर उद्योगों की 'सहकारी समितियों (को-आपरेटिवज)' को अग्रिम ।

3. व्यष्टि (माइक्रो )ऋण

3.1 बैंकों द्वारा सीधे या स्वयं सहायता समूह / संयुक्त देयता समूह तंत्र के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रति उधारकर्ता 50,000 रुपए से अनधिक के दिए गए बहुत छोटी राशि के ऋण।

3.2 आपदाग्रस्त व्यक्तियों (किसानों को छोड़कर) को गैर संस्थागत उधारदाताओं से लिया गया ऋण समय से पूर्व चुकाने के लिए, उचित संपार्श्विक अथवा सामूहिक जमानत पर दिया गया ऋण प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए पात्र होगा।

4. शैक्षिक ऋण

4.1 अलग-अलग व्यक्तियों को शिक्षण के प्रयोजनार्थ भारत में अध्ययन के लिए 10 लाख रुपए तक तथा विदेश में अध्ययन के लिए 20 लाख रूपए तक स्वीकृत ऋण । शैक्षिक संस्थाओं को दिए गए ऋण माइक्रो और लघु (सेवा) उद्यम के अंतर्गत प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम के रूप में वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे बशर्ते वे एमएसएमइडी अधिनियम, 2006 के प्रावधान पूरा करते हों।

5. आवास ऋण

5.1 अलग-अलग व्यक्तियों को प्रत्येक परिवार एक आवास इकाई खरीदने / निर्माण करने हेतु, चाहे जो भी स्थान हो, 25 लाख रुपए तक का ऋण जिसमें बैंकों द्वारा उनके अपने कर्मचारियों को प्रदत्‍त ऋण शामिल नहीं होंगे।

5.2 परिवारों को उनके क्षतिग्रस्त आवास इकाइयों की मरम्मत के लिए ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 1 लाख रुपए और शहरी तथा महानगर क्षेत्रों में 2 लाख रुपए का दिया गया ऋण।

5.3 किसी भी सरकारी एजेंसी को आवास इकाई के निर्माण अथवा गंदी बस्तियों को हटाने और गंदी बस्तियों में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए प्रदान वित्तीय सहायता, जिसकी अधिकतम सीमा 5 लाख रुपए प्रति आवास इकाई से अधिक न हो।

5.4 किसी गैर-सरकारी एजेंसी को, जिसे आवास इकाई के निर्माण / पुनर्निर्माण अथवा गंदी बस्तियों को हटाने और गंदी बस्तियों में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए पुनर्वित्त प्रदान किए जाने हेतु राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) द्वारा अनुमोदित किया गया हो, जिसके ऋण घटक की अधिकतम सीमा 10 लाख रुपए प्रति आवास इकाई होगी।

6. अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठन

अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य द्वारा प्रायोजित संगठनों को अपने हिताधिकारियों के लिए निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति तथा /अथवा उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत अग्रिम।

7. कमज़ोर वर्ग

प्राथमितकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कमज़ोर वर्गों में निम्नलिखित शामिल हैं :

(क) 5 एकड़ या इससे कम जोत वाले छोटे और सीमान्त किसान, भूमिहीन किसान,पट्टेदार किसान और बंटाई पर खेती करनेवाले काश्तकार।

(ख) दस्तकार, ऐसे ग्रामीण और कुटीर उद्योग जिनकी वैयक्तिक ऋण सीमा 50,000/- रु. से अधिक न हो।

(ग) स्वर्ण जयन्ती ग्रामस्वरोजगार योजना (एसजीएसवाइ) अब राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के हिताधिकारी

(घ) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति

(ङ) विभेदक ब्याज दर योजना (डीआरआइ) के हिताधिकारी

(च) स्वर्णजयन्ती शहरी रोजगार योजना (एसजेएसआरवाय) के हिताधिकारी

(छ) स्वच्छकारों की पुनर्वास योजना (एसआरएमएस) के हिताधिकारी

(ज) स्वयं सहायता समूहों को देय अग्रिम

(झ) आपदाग्रस्त गरीबों को अनौपचारिक क्षेत्र से लिए ऋण समय से पूर्व चुकाने हेतु उचित संपार्श्विक अथवा सामूहिक जमानत पर दिया गया ऋण।

(ञ) समय-समय पर भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किये जाने वाले अल्प संख्यक समुदाय के व्यक्तियों को ऊपर (क) से (झ) के अंतर्गत दिये गये ऋण।

उन राज्यों में जहां अल्पसंख्यक के रुप में अधिसूचित कोई समुदाय वास्तव में मेजोरिटी में है वहां मद (ञ) केवल अन्य अधिसूचित समुदायों को कवर करेगी। ये राज्य / संघशासित क्षेत्र हैं - जम्मू और कश्मीर , पंजाब , मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप ।

भाग II

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम के संबंध में सामान्य दिशानिर्देश

1. बैंकों से यह अपेक्षित है कि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी वर्गों के सम्बन्ध मे वे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित इन सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करें ।

2. आवेदनों का प्रसंस्करण

2.1 आवेदन भरना

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) जैसी सरकार प्रायोजित योजनाओं के मामले में डीआरडीए, डीआईसी आदि जैसे संबंधित परियोजना प्राधिकारियों को उधारकर्ताओं से प्राप्त आवेदंपत्रों पूरा कर लेने की व्यवस्था करनी चाहिए। दूसरे क्षेत्रों में बैंक के स्टाफ सदस्य इस प्रयोजन के लिए उधारकर्ताओं की सहायता करें।

2.2 ऋण आवेदनों की पावती जारी करना

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा कमजोर वर्गों से प्राप्त आवेदनों की पावती दी जाए । इस प्रयोजन हेतु यह सुनिश्चित किया जाए कि उनमें पावती हेतु एक छिद्रित (परफोरेटेड) हिस्सा भी हो, जिसे प्राप्तकर्ता शाखा द्वारा भर कर जारी किया जाए। प्रत्येक शाखा द्वारा मुख्य आवेदनपत्र तथा पावती के तदनुरुप हिस्से पर जारी क्रम में एक (रनिंग) अनुक्रमांक अंकित किया जाए । आवेदनों के विद्यमान स्टॉक जिनमें पावती हेतु एक छिद्रित (परफोरेटेड) अलग से हिस्सा न हो, का उपयोग करते समय इस बात को सुनिश्चित करने का ध्यान रखा जाए कि पावती पर अंकित अनुक्रमांक मुख्य आवेदन पर भी अंकित हो। संभावित उधारकर्ताओं के मार्गदर्शन के लिए ऋण आवेदन में आवश्यक दस्तावेजों की एक जांच सूची होनी चाहिए ।

2.3 आवेदनों का निपटान

(i) 25,000/- रु. तक की ऋण सीमा वाले सभी आवेदनों का निपटान एक पखव़ाड़े मे हो जाना चाहिए जब कि 25,000/- रु. से ज्यादा राशि वाले आवेदनों का 8 से 9 सप्ताह के भीतर ।

(ii) लघु उद्योग के लिए 25,000/- रु. तक की ऋण सीमा वाले सभी आवेदनों का निपटान दो सप्ताह में हो जाना चाहिए तथा 5 लाख रु. तक की राशि वाले आवेदनों का 4 सप्ताह के भीतर, बशर्ते कि ऋण आवेदन सभी तरह से पूरे भरे हों तथा उनके साथ एक चेक लिस्ट हो।

2.4 प्रस्तावों की नामंजूरी

शाखा प्रबंधक आवेदनों को अस्वीकार कर सकते हैं (अजा/अजजा से सम्बन्धित आवेदनों को छोड़कर) बशर्ते कि निरस्त मामलों का बाद में संभागीय/क्षेत्रीय प्रबंधकों द्वारा सत्यापन किया जाए। अजा/अजजा से प्राप्त आवेदनों का निरसन शाखा प्रबंधक से ऊपर के स्तर पर होना चाहिए।

2.5 नामंजूर आवेदनों का रजिस्टर

शाखा स्तर पर एक रजिस्टर बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारिख के अलावा मंजूरी/ नामंजूरी/ संवितरण आदि का कारणों सहित उल्लेख किया जाए। सभी निरीक्षणकर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर उपलब्ध करवाया जाए।

3. ऋण संवितरण का तरीका

किसानों को व्यापक स्वेच्छा देने तथा अनावश्यक परम्पराओं को रोकने के लिए बैंक कृषि प्रयोजनों के लिए सभी ऋणों का संवितरण नकदी में कर सकते हैं जिससे उधारकर्ताओं को उपयुक्त डीलर चुनने तथा विश्वास का माहौल बनाने का मौका मिलेगा। तथापि, बैंक उधारकर्ताओं से रसीदें प्राप्त करने की प्रक्रिया को बने रहना दे सकते हैं।

4. चुकौती अवधि का निर्धारण

4.1 चुकौती की अवधि निर्धारित करते समय भरण-पोषण अपेक्षाओं, अतिरिक्त उत्पादन क्षमता लाभ हानि रहित स्थिति, आस्ति के उपयोगी बने रहने की अवधि जैसे तथ्यों को ध्यान में रखा जाए तथा "तदर्थ " आधार पर निर्धारण नहीं किया जाए। सम्मिश्र ऋणों के मामले में केवल मीयादी ऋण घटक की चुकौती अवधि ही निर्धारित की जाए।

4.2 चूंकि प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों के अर्थोपार्जन व्यवसाय और आर्थिक आस्तियों की क्षति हो जाने से उनकी चुकौती क्षमता बहुत क्षीण हो जाती है, इसलिए नाबार्ड के अनुदेशों के अनुसार प्रभावित उधारकर्ताओं को मौजूदा ऋण की पुनर्संरचना आदि जैसे लाभ प्रदान किए जाने चाहिए ।

5. ब्याज की दरें

5.1 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र अग्रिमों की विभिन्न श्रेणियों पर लागू ब्याज दर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी निदेशों के अनुरुप रहेगी ।

5.2 (क) प्रत्यक्ष कृषि अग्रिमों के संबंध में बैंक वर्तमान देय राशियों अर्थात् मीयादी ऋणों के संबंध में जहां फसल ऋण और उसकी किस्तें देय न हुई हों, ब्याज को चक्रवृद्धि न बनाएं क्योंकि कृषकों के पास अपनी फसल की बिक्री से प्राप्त होने वाली आय के अलावा अन्य कोई नियमित आय का स्रोत नहीं होता है।

ख) जब मीयादी ऋण के अंतर्गत फसल ऋण या उसकी किस्त अतिदेय हो जाए तो बैंक ब्याज को मूलधन में जोड़ सकते हैं ।

ग) जहां चूक का कारण कोई वास्तविक वजह रही हो वहां मीयादी ऋण के अंतर्गत बैंक को ऋण की अवधि बढ़ा देनी चाहिए या किस्तों की चुकौती का पुनर्निर्धारण कर देना चाहिए । एक बार इस तरह की राहत दिए जाने पर अतिदेय चालू देय हो जाएंगे और तब बैंक ब्याज को चक्रवृद्धि न बनाएं ।

घ) बैंकों को लंबी अवधि वाली फसलों से संबंधित कृषि अग्रिमों पर तिमाही और लंबें अंतरालों के बजाए वार्षिक आधार पर ब्याज लगाना चाहिए और यदि ऋण /किस्त अतिदेय हो जाए तो चक्रवृद्धि ब्याज लगाना चाहिए ।

6. दण्डात्मक ब्याज:

6.1 चुकौती में चूक करने, वित्तीय विवरण प्रस्तुत न करने इत्यादि जैसे कारण होने पर, दण्डात्मक ब्याज वसूल करने का मुद्दा प्रत्येक बैंक के बोर्ड पर, छोड़ दिया गया है । बैंकों को सूचित किया गया है कि वे अपने बोर्डों के अनुमोदन से ऐसा दण्डात्मक ब्याज वसूल करने हेतु नीति तैयार करें ; ये पारदर्शिता नीति, औचित्य, उधार पर सेवा को प्रोत्साहन और ग्राहक की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए बनाई जाएँ।

6.2 अब तक के समान 25,000/- रु. तक के ऋणों पर कोई दण्डात्मक ब्याज नहीं लगाया जाए। तथापि, उपर्युक्त दिशानिर्देशों के अनुसार बैंक 25000 रु. से अधिक के ऋणों पर दण्डात्मक ब्याज लगाने के लिए स्वतंत्र होंगे ।

7. सेवा प्रभार / निरीक्षण प्रभार:

7.1 25,000/- रु. तक के प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र ऋणों पर सेवा प्रभार / निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाए।

7.2 बैंक 25,000/- रु. से अधिक के अग्रिमों पर दिनांक 7 सितंबर 1999 के परिपत्र सं. बैंपविवि. डीआइआर. बीसी.86/03.01.00/99-2000 के अनुसार अपने बोर्ड के पूर्व अनुमोदन पर सेवा प्रभार निर्धारित करने हेतु स्वतंत्र होंगे

8. आग और अन्य जोखिमों से सुरक्षा हेतु बीमा:

8.1 बैंक ऋण से वित्तपोषित आस्तियों को निम्नलिखित मामलों में बीमा करवाने की शर्त से छूदी जा सकती है :

सं.

श्रेणी

जोखिम का स्वरुप

आस्तियों का स्वरुप

(क)

10,000/- रु. सहित इस राशि तक के सभी प्राथमिकताप्राप्त अग्रिमों की श्रेणियां

आग और अन्य जोखिम

उपकरण और चालू आस्तियां

(ख)

सूक्ष्म (माइक्रो) और लघु उद्यमों को निम्नलिखित रूप में 25,000 रुपए तक और सहित अग्रिम

 

- दस्तकारों,ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को सम्मिश्र ऋण

- सभी मीयादी ऋण

-कार्यशील पूंजी, जो गैर जोखिमपूर्ण माल हेतु दी गई हो ।

आग

आग

आग

उपकरण और चालू आस्तियां

उपकरण

चालू आस्तियां

8.2 जहां किसी कानूनी प्रावधान के अंतर्गत वाहन अथवा मशीनरी अथवा अन्य उपकरण/ आस्तियों का बीमा अनिवार्य हो, अथवा किसी पुनर्वित्त एजेन्सी की पुनर्वित्त योजना में बीमा की शर्त अनिवार्य हो, अथवा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) जैसे किसी सरकार प्रायोजित कार्यक्रम के एक भाग के रूप में ऐसी शर्त निर्धारित हो, वहां बीमा की अनिवार्यता से छूट न दी जाए, भले ही सम्बन्धित ऋण सुविधा 10,000/- रु. अथवा 25,000/- रु. से अधिक न भी हो।

9. ऋणकर्ताओं के फोटोग्राफ

पहचान के प्रयोजन से ऋणकर्ताओं के फोटोग्राफ लेने के मुद्दे पर कोई आपत्ति नहीं है और बैंक द्वारा कमज़ोर वर्ग के अधीन आनेवाले ऋणकर्ताओं के फोटो खिंचवाने की व्यवस्था की जाए और व्यय का वहन किया जाए । यह भी सुनिश्चित किया जाए कि इस हेतु अपनाई गई प्रक्रिया की वजह से ऋण संवितरण में कोई विलम्ब नहीं हो।

10. विवेकाधीन शक्तियां

क्षेत्रीय्क़ ग्रामीण बैंकों के सभी शाखा प्रबंधकों को इस आशय की विवेकाधीन शक्तियां दी जानी चाहिए कि वे उच्चतर प्राधिकारियों को संदर्भित किये बगैर कमज़ोर वर्गों से प्राप्त ऋण प्रस्तावों को मंजूरी दे सकें । यदि सभी शाखा प्रबंधकों को इस आशय की विवेकाधीन शक्तियां देने के मार्ग में कठिनाइयां हों, तो कम से कम जिला स्तर पर ऐसी शक्तियां देने की व्यवस्था की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि कमज़ोर वर्गों से सम्बन्धित ऋण प्रस्ताव तत्परता से निपटाए जाएं ।

11. शिकायत निवारण मशीनरी

11.1 यदि शाखाएं इन अनुदेशों का पालन नहीं करती हों, तो इस सम्बन्ध में प्राप्त शिकायतों पर कार्रवाई करने हेतु, तथा इस बात के सत्यापन हेतु कि शाखाओं द्वारा इन दिशा-निर्देशों को वास्तव में कड़ाई से लागू किया जाता है, क्षेत्रीय कार्यालय स्तर पर मशीनरी होनी चाहिए ।

11.2 प्रत्येक शाखा के नोटिस बोर्ड पर उस अधिकारी के नाम और पते का उल्लेख किया जाए जिसके पास शिकायतें दर्ज की जा सकेंगी I

12. संशोधन

ये दिशा-निर्देश भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किये जाने वाले अनुदेशों के अधीन हैं ।


परिशिष्ट

इस मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

सं.

परिपत्र सं.

दिनांक

विषय

1.

आरबीआई/2012-13/85 ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी सं..6/03.05.33/2012-13

2.07.2012

प्राथमिकताप्राप्‍त क्षेत्र को उधार का मास्‍टर परिपत्र

2.

ग्राआऋवि.केंका. आरआरबी.बीसी सं..74/03.05.33/2011-12

27.04.2012

प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार - आवास क्षेत्र को अप्रत्यक्ष वित्त

3.

ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी सं..24/03.05.33/2011-12

18.10.2011

कृषि हेतु सीधे वित्तपोषण के अंतर्गत केसीसीकेअंतर्गत ऋण समावेशन

4.

ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी सं.71/03.05.33/2010-11

16.05.2011

प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत आवास ऋण सीमा में बढ़ोतरी

5.

ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी सं.82/ 03.05.33/2009-10

11.05.2010

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार – कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए निर्यात ऋण

6.

ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी सं..76/03.05.33/2009-10

21.04.2010

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार – निर्यात में सक्रिय माइक्रो और लघु उद्यमों को अग्रिम

7.

ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी सं..29/03.05.33/2009-10

06.10.2009

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार – एमएसएमईडी अधिनियम के तहत सेवा के अंतर्गत आनेवाले कार्यकलापों का श्रेणीकरण

8.

ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी सं.13/ 03.05.33/2009-10

04.8.2009

अंतर-बैंक सहभागिता

9.

ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी. बीसी सं..33/03.05.33/2007-08

22.5.2008

प्राथमिकताप्राप्त द्वोत्र को ऋण के बढ़ते अवसर

10.

ग्राआऋवि.केका.प्लान.बीसी.66/ 04.09.01/2007-08

06.05.2008

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कृषि को अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में जनरल प्रयोजन क्रेडिट कार्ड और "नो-फ्रिल्स" की जमानत पर ओवर ड्राफ्ट

 
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