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Date: 01/07/2013
मास्टर परि‍पत्र - वि‍त्तीय संस्थाओं के लि‍ए प्रकटीकरण मानदंड

आरबीआइ/2013-14/78
बैंपवि‍वि‍. सं. एफआइडी. एफआइसी. 2/01.02.00/2013-14

1 जुलाई 2013
10 आषाढ़ 1935 (शक)

अखि‍ल भारतीय मीयादी ऋणदात्री तथा पुनर्वि‍त्त प्रदान
करनेवाली संस्थाओं के मुख्य कार्यपालक अधि‍कारी
(एक्ज़ि‍म बैंक, नाबार्ड, एनएचबी तथा सि‍डबी )

महोदय

मास्टर परि‍पत्र - वि‍त्तीय संस्थाओं के लि‍ए प्रकटीकरण मानदंड

कृपया उपर्युक्त वि‍षय पर 2 जुलाई 2012 का मास्टर परि‍पत्र बैंपवि‍वि‍. सं. एफआइडी.एफआइसी. 2/01.02.00/ 2012-13 देखें। संलग्न मास्टर परि‍पत्र में 30 जून 2013 तक उक्त वि‍षय पर जारी कि‍ये गये सभी अनुदेशों/ दि‍शानि‍र्देशों को समेकि‍त और अद्यतन कि‍या गया है। यह मास्टर परि‍पत्र भारतीय रि‍ज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध कराया गया है ।

2. यह नोट कि‍या जाए कि‍ अनुबंध 5 में सूचीबद्ध परि‍पत्रों में नि‍हि‍त अनुदेशों को इस मास्टर परि‍पत्र में समेकि‍त कि‍या गया है ।

भवदीय

(राजेश वर्मा)
मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नक : यथोक्त


प्रयोजन

वि‍त्तीय वि‍वरणों की "लेखे पर टि‍प्पणि‍यां" में प्रकटीकरणों के मामले में अखि‍ल भारतीय मीयादी ऋणदात्री तथा पुनर्वि‍त्त प्रदान करनेवाली संस्थाओं को वि‍स्तृत मार्गदर्शन प्रदान करना।

पूर्व अनुदेश

इस मास्टर परि‍पत्र में अनुबंध 5 में सूचीबद्ध परि‍पत्रों में नि‍हि‍त उपर्युक्त वि‍षय पर अनुदेशों को समेकि‍त और अद्यतन कि‍या गया है।

प्रयोज्यता

सभी अखि‍ल भारतीय वि‍त्तीय संस्थाएं अर्थात् एक्ज़ि‍म बैंक, नाबार्ड, एनएचबी तथा सि‍डबी ।

संरचना

1

प्रस्तावना

2

प्रकटीकरण अपेक्षाओं पर दि‍शानि‍र्देश

2.1

पूंजी

2.2

आस्ति‍ गुणवत्ता और ऋण का सकेंद्रण

2.3

चलनि‍धि

2.4

परि‍चालन परि‍णाम

2.5

प्रावधानों में घट-बढ़

2.6

पुनर्रचि‍त खाते

2.7

प्रति‍भूतीकरण कंपनी /पुनर्रचना कंपनी को बेची गयी आस्ति‍यां

2.8

वायदा दर करार और ब्याज दर स्वैप

2.9

ब्याज दर डेरि‍वेटि‍व

2.10

गैर-सरकारी ऋण प्रति‍भूति‍यों में नि‍वेश

2.11

समेकि‍त वि‍त्तीय वि‍वरण

2.11.1

समेकन का वि‍स्तार

2.11.2

लेखा नीति‍यां

2.12

डेरि‍वेटि‍व में जोखि‍म

2.13

ऐसे एक्सपोज़र जहां वि‍त्तीय संस्था ने वर्ष के दौरान वि‍वेकपूर्ण एक्सपोज़र सीमाओं का उल्लंघन कि‍या है

2.14

कंपनी ऋण पुनर्रचना (सीडीआर)

2.15

लेखे पर टि‍प्पणि‍यों के अंतर्गत अति‍रि‍क्त प्रकटीकरण

2.16

परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) संवर्ग के अंतर्गत रखे गए निवेश की बिक्री

टि‍प्पणी

I.

सीआरएआर तथा अन्य मानदंड

II.

आस्ति‍ गुणवत्ता और ऋण संकेंद्रण

III

ऋण एक्सपोज़र

IV

पूंजीगत नि‍धि‍यां

V

`उधारकर्ता समूह' की परि‍भाषा

VI

आस्ति‍यों और देयताओं का परि‍पक्वता ढांचा

VII

परि‍चालनगत परि‍णाम

VIII

प्रति‍ कर्मचारी नि‍वल लाभ की गणना

अनुबंध - 1

ऋण प्रति‍भूति‍यों में नि‍वेश हेतु जारीकर्ता संघटकों के प्रकटन के लि‍ए फार्मेट

अनुबंध – 2

डेरि‍वेटि‍व में जोखि‍म एक्सपोज़र के संबंध में प्रकटीकरण
गुणात्मक प्रकटीकरण
मात्रात्मक प्रकटीकरण

अनुबंध - 3

अति‍रि‍क्त प्रकटीकरण

अनुबंध- 4

बैंकों/वित्तीय संस्थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना के संबंध में विवेकपूर्ण दिशानिर्देश

अनुबंध - 5

इस मास्टर परिपत्र में समेकित परि‍पत्रों की सूची

1. प्रस्तावना

वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा प्रकाशि‍त अपने वि‍त्तीय वि‍वरणों में कि‍ये गये प्रकटन के स्वरूप और पद्धति‍ में वि‍द्यमान व्यापक वि‍भि‍न्नता को देखते हुए उनके द्वारा अपनायी गयी प्रकटन पद्धति‍यों में एकरूपता लाने तथा उनके कार्यों की पारदर्शि‍ता में सुधार लाने के उद्देश्य से मार्च 2001 में भारतीय रि‍ज़र्व बैंक ने वि‍त्तीय संस्थाओं के लि‍ए प्रकटन मानदंड लागू कि‍ये थे। ऐसे प्रकटन जो वि‍त्तीय वर्ष 2000-2001 से प्रभावी हुए थे और बाद में जि‍नमें वृद्धि‍ की गई थी, "लेखे पर टि‍प्पणि‍यां" के एक भाग के रूप में कि‍ए जाने अपेक्षि‍त हैं, चाहे वही जानकारी प्रकाशि‍त वि‍त्तीय वि‍वरणों में अन्यत्र भी मौजूद क्यों न हो, ताकि‍ लेखा परीक्षक उन्हें प्रमाणि‍त कर सकें । ये प्रकटन केवल न्यूनतम हैं और यदि‍ कोई वि‍त्तीय संस्था कोई अति‍रि‍क्त प्रकटन करना चाहती हो तो उसे ऐसा करने के लि‍ए प्रोत्साहि‍त कि‍या जाएगा ।

2. प्रकटीकरण अपेक्षाओं पर दि‍शानि‍र्देश

वि‍वि‍ध प्रकटन अपेक्षाएं नि‍म्नानुसार हैं :

2.1 पूंजी

(क) जोखि‍म भारि‍त आस्ति‍ की तुलना में पूंजी का अनुपात (सीआरएआर) स्थायी जोखि‍म भारि‍त आस्ति‍ की तुलना में पूंजी का अनुपात और अनुपूरक जोखि‍म भारि‍त आस्ति‍ की तुलना में पूंजी का अनुपात

(ख) स्तर II की पूंजी के रूप में जुटायी गयी तथा बकाया अधीनस्थ ऋण की राशि‍

(ग) जोखि‍म भारि‍त आस्ति‍यां-तुलन पत्र में शामि‍ल होनेवाली और शामि‍ल न होनेवाली मदों के लि‍ए अलग-अलग

(घ) तुलन पत्र की तारीख को शेयर धारि‍ता का स्वरूप

2.2 आस्ति‍ गुणवत्ता और ऋण का सकेंद्रण

(ङ) नि‍वल उधारों तथा अग्रि‍मों की तुलना में नि‍वल अनर्जक आस्ति‍यों का प्रति‍शत

(च) नि‍र्दि‍ष्ट आस्ति‍ वर्गीकरण श्रेणि‍यों के तहत नि‍वल अनर्जक आस्ति‍यों की राशि‍ और प्रति‍शत

(छ) मानक आस्ति‍यों, अनर्जक आस्ति‍यों, नि‍वेशों (अग्रि‍म के रूप में होनेवाले नि‍वेशों को छोड़कर) आयकर हेतु वर्ष के लि‍ए कि‍ये गये प्रावधानों की राशि‍

(ज) नि‍वल अनर्जक आस्ति‍यों में घट-बढ़

(झ) नि‍म्नलि‍खि‍त के संबंध में पूंजीगत नि‍धि‍यों तथा कुल आस्ति‍यों के प्रति‍शत के रूप में ऋण एक्सपोज़र

  • सबसे बड़ा एकल उधारकर्ता ;
  • सबसे बड़ा उधारकर्ता समूह;
  • सबसे बड़े 10 एकल उधारकर्ता;
  • सबसे बड़े 10 उधारकर्ता समूह;

(उधारकर्ताओं/उधारकर्ता समूहों के नाम प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है)

(ञ) कुल उधार आस्ति‍यों के प्रति‍शत के रूप में सबसे बड़े पांच औद्योगि‍क क्षेत्रों (यदि‍ लागू हो तो) को ऋण एक्सपोजर

2.3 चलनि‍धि‍

(ट) रुपया आस्ति‍यों तथा देयताओं के संबंध में परि‍पक्वता अवधि‍ का स्वरूप; तथा

(ठ) नि‍म्नलि‍खि‍त फार्मेट में वि‍देशी मुद्रा आस्ति‍यों तथा देयताओं की परि‍पक्वता अवधि‍ का स्वरूप

मदें

1 वर्ष या उससे कम

एक वर्ष से अधि‍क और 3 वर्ष तक

3 वर्ष से अधि‍क और 5 वर्ष तक

5 वर्ष से अधि‍क और 7 वर्ष तक

7 वर्ष से अधि‍क

कुल

रुपया आस्ति‍याँ

 

 

 

 

 

 

वि‍देशी मुद्रा आस्ति‍याँ

 

 

 

 

 

 

कुल आस्ति‍याँ

 

 

 

 

 

 

रुपया देयताएं

 

 

 

 

 

 

वि‍देशी मुद्रा देयताएं

 

 

 

 

 

 

कुल देयताएं

 

 

 

 

 

 

जोड़

 

 

 

 

 

 

2.4 परि‍चालन परि‍णाम

(ड) औसत कार्यकारी नि‍धि‍यों के प्रति‍शत के रूप में ब्याज आय

(ढ) औसत कार्यकारी नि‍धि‍यों के प्रति‍शत के रूप में ब्याज से इतर आय

(ण) औसत कार्यकारी नि‍धि‍यों के प्रति‍शत के रूप में परि‍चालन लाभ

(त) औसत आस्ति‍यों पर प्रति‍ लाभ

(थ) प्रति‍ कर्मचारी नि‍वल लाभ

2.5 प्रावधानों में घट-बढ़

अनर्जक आस्ति‍यों के लि‍ए धारि‍त प्रावधानों में घट-बढ़ और नि‍वेश संवि‍भाग में मूल्यह्रास को नि‍म्नलि‍खि‍त फार्मेट में प्रकट कि‍या जाना चाहि‍ए :

I. अनर्जक आस्ति‍यों के लि‍ए प्रावधान (अग्रि‍म तथा अंतर-कंपनी जमा के रूप में ऋणों, बांडों तथा डि‍बेंचरों को शामि‍ल करते हुए)
(मानक आस्ति‍यों के लि‍ए प्रावधान को छोड़कर)

क) वि‍त्तीय वर्ष की शुरुआत में आरंभि‍क शेष

जोड़ें : वर्ष के दौरान कि‍ये गये प्रावधान

घटाएं : अति‍रि‍क्त प्रावधान का पुनरांकन, बट्टे खाते डालना

ख) वि‍त्तीय वर्ष की समाप्ति‍ पर अंति‍म शेष

II. नि‍वेशों में मूल्यह्रास हेतु प्रावधान

ग) वि‍त्तीय वर्ष की शुरुआत में आरंभि‍क शेष

जोड़ें :
i. वर्ष के दौरान कि‍ये गये प्रावधान
ii. वर्ष के दौरान नि‍वेश घट-बढ़ प्रारक्षि‍त नि‍धि‍ खाते से वि‍नि‍योग, यदि‍ कोई हो

घटाएं :

i. वर्ष के दौरान बट्टे खाते
ii. नि‍वेश घट-बढ़ आरक्षि‍त नि‍धि‍ खाते में अंतरण, यदि‍ कोई हो

घ) वि‍त्तीय वर्ष की समाप्ति‍ पर अंति‍म शेष

2.6 पुनर्रचि‍त खाते

2.6.1 ऋण आस्ति‍यों और पुनर्रचना आदि‍ के अधीन अवमानक आस्ति‍यों /संदि‍ग्ध आस्ति‍यों की कुल राशि‍ अलग-अलग प्रकट की जाये।

2.6.2 बैंकों और वित्‍तीय संस्‍थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा

1. जैसा कि 03 मई 2013 को घोषित मौद्रिक नीति वक्‍तव्‍य 2013-14 के पैरा 81 (उद्धरण संलग्‍न) में सूचित किया गया है, ‘बैंकों/वित्‍तीय संस्‍थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश’ को इस संबंध में गठित कार्यदल (अध्‍यक्षः श्री बी. महापात्र) की संस्‍तुतियों और दिनांक 31 जनवरी 2013 को बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 21.04.132/2012-13 द्वारा जारी प्रारूप दिशानिर्देशों पर प्राप्त टिप्‍पणियों को ध्‍यान में रखते हुए संशोधित किया गया है।

2. संशोधित अनुदेश अनुबंध 4 में दिए गए हैं जिनमें उक्‍त विषय के संबंध में केवल परिवर्तित सिद्धांतों/अनुदेशों का वर्णन किया गया है। अतएव इन दिशानिर्देशों को उक्‍त विषय पर दिए गए उन अनुदेशों के साथ मिलाकर पढ़ा जाना चाहिए जो ‘अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड’ पर 02 जुलाई 2012 के मास्‍टर परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 9/ 21.04.048/2012-13 में दिए गए हैं। उक्‍त मास्‍टर परिपत्र दिनांक 27 अगस्‍त 2008 को जारी ‘अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश’, परवर्ती परिपत्रों तथा मेल-बॉक्‍स स्‍पष्‍टीकरणों का नवीनतम संकलन है।

2.7 प्रति‍भूतीकरण कंपनी/पुनर्रचना कंपनी को बेची गयी आस्ति‍यां

जो वि‍त्तीय संस्थाएं अपनी वि‍त्तीय आस्ति‍यां प्रति‍भूतीकरण कंपनी/पुनर्रचना कंपनी को बेचती हैं उन्हें नि‍म्नलि‍खि‍त प्रकटीकरण करने होंगे :

क) खातों की संख्या
ख) प्रति‍भूतीकरण कंपनी/पुनर्रचना कंपनी को बेचे गये खातों का कुल मूल्य (प्रावधानों को घटाकर)
ग) कुल प्रति‍फल
घ) पहले के वर्षों में अंतरि‍त खातों के संबंध में प्राप्त अति‍रि‍क्त प्रति‍फल
ङ) नि‍वल बही मूल्य पर कुल लाभ/हानि‍

2.8 वायदा दर करार और ब्याज दर स्वैप

तुलन पत्र पर टि‍प्पणि‍यों में नि‍म्नलि‍खि‍त प्रकटीकरण कि‍ये जाने चाहि‍ए :

  • स्वैप करार का अनुमानि‍क मूल धन;

  • स्वैप का स्वरूप और शर्तें जि‍समें ऋण और बाज़ार जोखि‍म तथा स्वैप रि‍कार्ड करने हेतु अपनायी गयी लेखा नीति‍यों के संबंध में जानकारी शामि‍ल हो ;

  • करार के तहत प्रति‍पक्ष द्वारा अपना दायि‍त्व नि‍भा न पाने पर हुई हानि‍ की मात्रा ;

  • स्वैप करने पर संस्था द्वारा अपेक्षि‍त संपार्श्वि‍क जमानत;

  • स्वैप से उत्पन्न ऋण जोखि‍म का कोई सकेंद्रण। वि‍शि‍ष्ट उद्योगों से संबंधि‍त एक्सपोजर या अत्यधि‍क अनुकूल कंपनी के साथ स्वैप संकेंद्रण के उदाहरण हो सकते हैं; और

  • कुल स्वैप बही का "उचि‍त" मूल्य । यदि‍ स्वैप वि‍शि‍ष्ट आस्ति‍यों, देयताओं या वायदों से संबद्ध कि‍ये गये हों तो उचि‍त मूल्य वह अनुमानि‍त राशि‍ होगी जो तुलन-पत्र की तारीख को संस्था प्राप्त करेगी या स्वैप करार समाप्त करने हेतु अदा करेगी। कि‍सी व्यापारि‍क स्वैप के लि‍ए उचि‍त मूल्य आस्ति‍यों का दैनि‍क बाज़ार मूल्य होगा ।

2.9 ब्याज दर डेरि‍वेटि‍व

एक्सचेंजों में ब्याज दर डेरि‍वेटि‍व का कारोबार करनेवाली वि‍त्तीय संस्था तुलन-पत्र में `लेखे पर टि‍प्पणि‍यां' के एक भाग के रूप में नि‍म्नलि‍खि‍त ब्योरा प्रकट करें :

क्रम सं.

वि‍वरण

राशि‍

1

वर्ष के दौरान एक्सचेंजों में लेनदेन कि‍ये गये ब्याज दर डेरि‍वेटि‍व व्यापार की कल्पि‍त मूल धन राशि‍ (लि‍खत वार)
क)
ख)
ग)

 

2

एक्सचेंजों में कि‍ये गये लेनदेन ब्याज दर डेरि‍वेटि‍व की 31 मार्च .. . . . को बकाया कल्पि‍त मूल धन राशि‍ (लि‍खत वार)
क)
ख)
ग)

 

3

एक्सचेंजों में कि‍ये गये लेनदेन ब्याज दर डेरि‍वेटि‍व की बकाया कल्पि‍त मूल धन राशि‍ और जो "अत्यधि‍क प्रभावी" नहीं है (लि‍खत वार)
क)
ख)
ग)

 

4.

एक्सचेंजों में कि‍ये गये लेनदेन ब्याज दर डेरि‍वेटि‍व की बकाया राशि‍ का बाज़ार मूल्य और जो "अत्यधि‍क प्रभावी" नहीं है (लि‍खत वार)
क)
ख)
ग)

 

2.10 गैर-सरकारी ऋण प्रति‍भूति‍यों में नि‍वेश

वि‍त्तीय संस्थाओं को चाहि‍ए कि‍ वे नि‍जी तौर पर शेयर आबंटन के जरि‍ए कि‍ये गये नि‍वेशों के जारीकर्ता संघटकों के ब्योरे और अनर्जक नि‍वेशों को तुलन पत्र के `लेखे पर टि‍प्पणि‍यां' में अनुबंध 1 में दि‍ये गये फार्मेट में प्रकट करें ।

2.11 समेकि‍त वि‍त्तीय वि‍वरण (सीएफएस)

2.11.1 समेकन का वि‍स्तार :

समेकि‍त वि‍त्तीय वि‍वरण प्रस्तुतकर्ता मूल संस्था को देशी और वि‍देशी, भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आइसीएआइ) के लेखांकन मानदंड -21 (एएस-21) के तहत जि‍न्हें वि‍शि‍ष्ट रूप में शामि‍ल न करने की अनुमति‍ दी गयी है ऐसी संस्थाओं को छोड़कर, सभी सहायक संस्थाओं के वि‍त्तीय वि‍वरण समेकि‍त करने चाहि‍ए। कि‍सी सहायक कंपनी का समेकन न करने के कारणों को समेकि‍त वि‍त्तीय वि‍वरण में प्रकट करना चाहि‍ए। कि‍सी खास संस्था को समेकन हेतु शामि‍ल कि‍या जाना चाहि‍ए या नहीं यह नि‍र्धारि‍त करने की जि‍म्मेदारी मूल संस्था के प्रबंधन की होगी। यदि‍ उसके सांवि‍धि‍क लेखा परीक्षकों की यह राय है कि‍ ऐसी कोई संस्था जि‍से समेकि‍त कि‍या जाना चाहि‍ए था, उसे छोड़ दि‍या गया है, तो इस बारे में उन्हें "लेखे पर टि‍प्पणि‍यां" में अपना अभि‍मत शामि‍ल करना चाहि‍ए।

2.11.2 लेखा नीति‍यां :

एक समान लेनदेनों और एक जैसी परि‍स्थि‍ति‍यों में अन्य घटनाओं के लि‍ए एक समान लेखा नीति‍यों का उपयोग करके समेकि‍त वि‍त्तीय वि‍वरण बनाया जाना चाहि‍ए। (इस प्रयोजन हेतु वि‍त्तीय संस्थाएं सहायक संस्थाओं के सांवि‍धि‍क लेखा परीक्षकों द्वारा दि‍ये गये गैर-एक समान लेखा नीति‍यों के लि‍ए समायोजन वि‍वरणों पर नि‍र्भर रहें।) यदि‍ यह व्यवहार्य न हो, तो समेकि‍त वि‍त्तीय वि‍वरण में ऐसे मदों के उस अनुपात के साथ तथ्यों को प्रकट कि‍या जाना चाहि‍ए जि‍स अनुपात में भि‍न्न-भि‍न्न लेखा नीति‍यां लागू की गयी हैं।

2.12 डेरि‍वेटि‍व में जोखि‍म एक्सपोजरों के संबंध में प्रकटन

सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के लि‍ए वि‍त्तीय संस्थाओं के जोखि‍म के प्रति‍ एक्सपोज़र के संदर्भ में अर्थपूर्ण और उचि‍त प्रकटन तथा जोखि‍म प्रबंधन के लि‍ए उनकी उचि‍त कार्य नीति‍ आवश्यक है। डेरि‍वेटि‍व्ज़ में अपने जोखि‍म एक्सपोज़र के संबंध में वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा प्रकटन हेतु न्यूनतम ढांचा अनुबंध 2 में दि‍या गया है। प्रकटन फार्मेट में गुणात्मक तथा मात्रात्मक पक्ष शामि‍ल हैं और इसे डेरि‍वेटि‍व्ज़ में जोखि‍मों की तुलना में ऋण आदि‍ नि‍वेश जोखि‍म प्रबंधन प्रणालि‍यों, उद्देश्यों और नीति‍यों के संबंध में स्पष्ट चि‍त्र प्रस्तुत करने के लि‍ए तैयार कि‍या गया है। तुलन पत्र के `लेखे पर टि‍प्पणि‍यां' के एक भाग के रूप में वि‍त्तीय संस्थाओं को ये प्रकटन 31 मार्च 2005 से शुरू करना चाहि‍ए (राष्ट्रीय आवास बैंक के मामले में 30 जून 2005 से)।

2.13 ऐसे एक्सपोजर जहां वि‍त्तीय संस्था ने वर्ष के दौरान वि‍वेकपूर्ण एक्सपोजर सीमाओं का उल्लंघन कि‍या है

वि‍त्तीय संस्था को उन एक्सपोजरों के मामले में जहां वि‍त्तीय संस्था ने वर्ष के दौरान वि‍वेकपूर्ण एक्सपोजर सीमाओं का उल्लंघन कि‍या है अपने वार्षि‍क वि‍त्तीय वि‍वरणों के "लेखे पर टि‍प्पणि‍यां" में उचि‍त प्रकटीकरण करने चाहि‍ए।

2.14 कंपनी ऋण पुनर्रचना (सी डी आर)

वि‍त्तीय संस्थाओं को सीडीआर के संबंध में वर्ष के दौरान अपने प्रकाशि‍त वार्षि‍क लेखे में लेखे पर टि‍प्पणि‍यां' के अंतर्गत नि‍म्नलि‍खि‍त का प्रकटीकरण करना चाहि‍ए :

  • सीडीआर के अंतर्गत पुनर्रचना के अधीन ऋण आस्ति‍यों की कुल राशि‍ ।
  • सीडीआर के अधीन मानक आस्ति‍यों की राशि‍।
  • सीडीआर के अधीन अवमानक आस्ति‍यों की राशि‍।

2.15 वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा लेखे पर टि‍प्पणि‍यों के अंतर्गत अति‍रि‍क्त प्रकटीकरण

रि‍ज़र्व बैंक बैंकों के परि‍चालनों में पारदर्शि‍ता बढ़ाने के लि‍ए सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप व्यापक प्रकटीकरण नि‍र्धारि‍त करते हुए समय-समय पर अनेक उपाय करता आ रहा है।

मौजूदा प्रकटीकरणों की समीक्षा के उपरांत यह नि‍र्णय लि‍या गया है कि‍ मार्च 2010 में समाप्त वर्ष से बैंकों के तुलनपत्रों के "लेखे पर टि‍प्पणि‍यों" के अंतर्गत नि‍म्नलि‍खि‍त अति‍रि‍क्त प्रकटीकरण नि‍र्धारि‍त कि‍ए जाएं :

  1. जमाराशि‍, अग्रि‍मों, एक्सपोज़र तथा अनर्जक आस्ति‍यों (एन पी ए ) का संकेंद्रण
  2. क्षेत्रवार अनर्जक आस्ति‍याँ
  3. अनर्जक आस्ति‍यों में घटबढ़ (कृपया सकल एन पी ए की गणना के लि‍ए 26 मार्च 2010 का परि‍पत्र बैंपवि‍वि‍. सं. एफआइडी. एफआइसी. 9/01.02.00/2009-10 देखें)
  4. वि‍देश स्थि‍त आस्ति‍यां, अनर्जक आस्ति‍याँ तथा आय
  5. बैंकों द्वारा प्रायोजि‍त तुलनपत्रेतर एस पी वी

नि‍र्धारि‍त फार्मेट अनुबंध 3 में दि‍ए गए हैं।

टि‍प्पणि‍यां :

(I) सीआरएआर तथा अन्य मानदंड

वि‍त्तीय संस्थाओं के लि‍ए वर्तमान पूंजी पर्याप्तता मानदंडों के अनुसार नि‍र्धारि‍त जोखि‍म भारि‍त आस्ति‍ की तुलना में पूंजी का अनुपात (सीआरएआर) और अन्य संबंधि‍त मानदंडों को प्रकट कि‍या जाये ।

(II) आस्ति‍ गुणवत्ता और ऋण संकेंद्रण

आस्ति‍ गुणवत्ता और ऋण के संकेंद्रण के प्रयोजन हेतु, ऋण, अग्रि‍म तथा अनर्जक आस्ति‍यों की राशि‍ नि‍र्धारि‍त करने के लि‍ए नि‍म्नलि‍खि‍त को ध्यान में लि‍या जाना चाहि‍ए और प्रकटनों में शामि‍ल कि‍या जाना चाहि‍ए :

(i) बांड और डि‍बेंचर : बांडों तथा डि‍बेंचरों को अग्रि‍म के रूप में माना जाना चाहि‍ए जब :

    • परि‍योजना वि‍त्त के लि‍ए प्रस्ताव के भाग के रूप में डि‍बेंचर/बांड का नि‍र्गम कि‍या गया हो और उस डि‍बेंचर/बांड की अवधि‍ तीन वर्ष और उससे अधि‍क हो।

और

    • वि‍त्तीय संस्था का नि‍र्गम में उल्लेखनीय (अर्थात् 10% या उससे अधि‍क) हि‍त नि‍हि‍त हो ।

और

    • नि‍र्गम नि‍जी तौर पर शेयर आबंटन का भाग हो अर्थात् उधारकर्ता ने वि‍त्तीय संस्था से संपर्क कि‍या हो और ऐसे सार्वजनि‍क नि‍र्गम का भाग न हो जहां वि‍त्तीय संस्था ने कि‍सी आमंत्रण पर अभि‍दान कि‍या हो।

(ii) अधि‍मान शेयर : परि‍वर्तनीय अधि‍मान शेयरों को छोड़कर अधि‍मान शेयरों को परि‍योजना वि‍त्त के भाग के रूप में प्राप्त कि‍या हो और उपर्युक्त (i) में नि‍हि‍त मानदंड को पूरा करता हो।

(iii) जमाराशि‍ : कंपनी क्षेत्र में रखी गयी जमाराशि ।

(III) ऋण जोखि‍म (एक्सपोज़र)

"ऋण एक्सपोज़र" में नि‍धि‍क और गैर-नि‍धि‍क ऋण सीमाएं, हामीदारी और इसी प्रकार की अन्य प्रति‍बद्धताएं शामि‍ल होंगी। ऋण आदि‍ जोखि‍म की सीमा नि‍श्चि‍त करने के लि‍ए स्वीकृत सीमाओं या बकाया में से जो भी अधि‍क हो उसे वि‍चार में लि‍या जाएगा। तथापि‍, मीयादी ऋणों के मामले में, ऋण आदि‍ जोखि‍म सीमा की गणना वास्तवि‍क बकाया के आधार पर की जाए जि‍समें असंवि‍तरि‍त या अनाहरि‍त प्रति‍बद्धताओं को जोड़ा जाये।

तथापि‍, जि‍न मामलों में संवि‍तरण शुरू करना अभी बाकी है, एक्सपोज़र सीमा, स्वीकृत सीमा या करार के अनुसार उधारकर्ता कंपनी के साथ वि‍त्तीय संस्था ने जो वायदा कि‍या है उस सीमा तक के आधार पर ऋण आदि‍ जोखि‍म सीमा की गणना की जानी चाहि‍ए ।

गैर-नि‍धि‍क ऋण आदि‍ जोखि‍म सीमा में वि‍देशी वि‍नि‍मय और वर्तमान ऋण मानदंडों के अनुसार अन्य डेरि‍वेटि‍व्ज़ उत्पाद, जैसे मुद्रा स्वैप, ऑपशंस आदि‍ में वायदा ठेकों को शामि‍ल कि‍या जाना चाहि‍ए ।

(IV) पूंजीगत नि‍धि‍यां

ऋण संकेंद्रण के प्रयोजन हेतु पूंजीगत नि‍धि‍यां पूंजी पर्याप्तता मानदंडों (अर्थात् पूंजी स्तर I और स्तर II) के तहत नि‍र्धारि‍त कुल वि‍नि‍यामक पूंजी होगी ।

(V) `उधारकर्ता समूह' की परि‍भाषा

`उधारकर्ता समूह' की परि‍भाषा वही होगी जो वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा समूह नि‍वेश मानदंडों के अनुपालन में लागू की जाती है ।

(VI) आस्ति‍यों और देयताओं का परि‍पक्वता ढांचा

आस्ति‍यों और देयताओं के परि‍पक्वता ढांचे के लि‍ए वि‍त्तीय संस्थाओं को आस्ति‍ देयता प्रबंधन प्रणाली पर भारतीय रि‍ज़र्व बैंक द्वारा जारी दि‍शानि‍र्देशों के अनुसार वि‍वि‍ध आस्ति‍यों और देयताओं की मदों का समूहन (बकेटिंग) वि‍नि‍र्दि‍ष्ट समय बकेट में कि‍या जाना चाहि‍ए।

(VII) परि‍चालन परि‍णाम

परि‍चालन परि‍णामों के लि‍ए कार्यशील नि‍धि‍यों और कुल आस्ति‍यों को पि‍छले लेखा वर्ष की समाप्ति‍ पर, अनुवर्ती छमाही की समाप्ति‍ पर तथा रि‍पोर्ट के अधीन लेखा वर्ष के अंत में वि‍द्यमान अंकों के औसत के रूप में लि‍या जाये। ("कार्यशील नि‍धि‍यों" का अर्थ है वि‍त्तीय संस्था की कुल आस्ति‍यां)

(VIII) प्रति‍ कर्मचारी नि‍वल लाभ की गणना

प्रति‍ कर्मचारी नि‍वल लाभ को नि‍कालने के लि‍ए सभी संवर्गों के सभी स्थायी, पूर्णकालि‍क कर्मचारि‍यों को वि‍चार में लि‍या जाना चाहि‍ए ।

2.16 परि‍पक्वता तक धारि‍त (एचटीएम) संवर्ग में रखे गए नि‍वेश की बि‍क्री

यदि‍ वर्ष के आरंभ में एचटीएम संवर्ग में धारि‍त नि‍वेश के बही मूल्य से 5 प्रति‍शत से अधि‍क मूल्य की प्रति‍भूति‍याँ एचटीएम संवर्ग में /से अंतरि‍त/बि‍क्री की जाती है तो वि‍त्तीय संस्था को एचटीएम संवर्ग में धारि‍त नि‍वेशों का बाजार मूल्य प्रकट करना चाहि‍ए तथा बाजार मूल्य की तुलना में बही मूल्य के आधि‍क्य को नि‍र्दि‍ष्ट करना चाहि‍ए जि‍सके लि‍ए प्रावधान नहीं कि‍या गया है। यह प्रकटीकरण वि‍त्तीय संस्था के लेखा परीक्षि‍त वार्षि‍क वि‍त्तीय वि‍वरणों में `लेखे पर टि‍प्पणि‍याँ' में कि‍या जाना चाहि‍ए।

 
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