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Date: 01/07/2013
माल और सेवाओं के आयात के संबंध में मास्टर परिपत्र

आरबीआई/2013-14/13
मास्टर परिपत्र सं. 13/2013-14

1 जुलाई 2013

सभी श्रेणी-I प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदया / महोदय

माल और सेवाओं के आयात के संबंध में मास्टर परिपत्र

भारत में माल और सेवाओं के आयात की अनुमति, समय-समय पर यथा संशोधित, 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. जी.एस.आर. 381(E) अर्थात विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता) नियमावली, 2000 के साथ पठित विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 5 के अनुसार दी जा रही है।

2. इस मास्टर परिपत्र में ' माल और सेवाओं के आयात ' विषय पर वर्तमान अनुदेशों को एक स्थान पर समेकित किया गया है । इस मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची परिशिष्ट में दी गयी है।

3. यह मास्टर परिपत्र एक वर्ष की अवधि के लिए ('सनसेट खंड' के साथ) जारी किया जा रहा है। यह परिपत्र 1 जुलाई 2014 को वापस ले लिया जाएगा और उसके स्थान पर इस विषय पर अद्यतन मास्टर परिपत्र जारी किया जायगा।

भवदीय,

(सी.डी.श्रीनिवासन)
मुख्य महाप्रबंधक


विषय सूची

खण्ड ए - प्रस्तावना
खण्ड बी - आयात के लिए सामान्य दिशा-निर्देश
बी.1. सामान्य दिशा-निर्देश
बी.2. फार्म ए-1
बी.3. आयात लाइसेंस
बी.4.विदेशी मुद्रा के क्रेता का दायित्व
बी.5.आयात भुगतान के निपटान की समय सीमा
बी.6.विदेशी मुद्रा/ भारतीय रुपए का आयात

खंड-सी आयात के लिए परिचालनगत दिशा-निर्देश

सी-1. अग्रिम विप्रेषण
सी.2. आयात बिलों पर ब्याज
सी.3. प्रतिस्थापन आयात के बदले विप्रेषण
सी.4. प्रतिस्थापन आयात के लिए गारंटी
सी.5. बीपीओ कंपनियों द्वारा उनके समुद्रपारीय कार्यालयों (साइटों) के लिए उपकरणों का आयात
सी.6. आयात बिलों/दस्तावेजों की प्राप्ति
सी.7. आयात का साक्ष्य
सी.8. प्राप्ति सूचना जारी करना
सी.9. सत्यापन और परिरक्षण
सी.10. आयात साक्ष्यों का अनुवर्तन
सी.11. बैंक गारंटी जारी करना
सी.12. नामित बैंकों / नामित एजेंसियों द्वारा सोने/ प्लैटिनम/चांदी का आयात
सी.13. स्वर्ण/कीमती धातुओं अथवा/और हीरे/अर्द्ध कीमती/कीमती रत्नों से जड़े आभूषणों सहित किसी भी रूप में स्वर्ण का आयात

सी.14. प्लैटिनम, पालाडियम, रोडियम, चांदी और कच्चे, कट और पॉलिश किये हुए हीरों का आयात

सी.15. आयात फैक्टरिंग
सी.16. वाणिज्यिक (मर्चेटिंग) व्यापार
परिशिष्ट-
मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

खण्ड ए-प्रस्तावना

(i) आयात व्यापार का विनियमन भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, वाणिज्य विभाग के अंतर्गत विदेशी व्यापार के महानिदेशक द्वारा किया जाता है। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक यह सुनिश्चित करें कि भारत में आयात प्रचलित आयात-निर्यात नीति और भारत सरकार द्वारा 3 मई 2000 की अधिसूचना सं.जी.एस.आर. 381(E) द्वारा निर्मित विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000 और विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम के अधीन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय- समय पर जारी निदेशों के अनुरूप हैं।

(ii) भारत में आयात के लिए अपने ग्राहकों की ओर से साखपत्र खोलते समय प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक, सामान्य बैंकिंग कार्य प्रणाली का अनुसरण करें और प्रलेखी ऋणों के लिए समान सीमा शुल्क और प्रथा (यूसीपीडीसी) आदि के प्रावधानों का पालन करें ।

(iii) ड्रॉइंग और डिज़ाइन के आयात के संबंध में रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट सेस ऐक्ट, 1986 के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।

(iv) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक आयातकों को यह भी सूचित करें कि वे यथा लागू आयकर अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करें।

खण्ड बी - आयात के लिए सामान्य दिशा-निर्देश

बी.1. सामान्य दिशा-निर्देश

अपने ग्राहकों की ओर से आयात भुगतान लेनदेन करते समय प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा नियंत्रण की दृष्टि से अनुसरण की जानेवाली नियमावली और विनियमावली, निम्नलिखित पैराग्राफों में निर्धारित की गई हैं। जहां पर विनिर्दिष्ट विनियमावली मौजूद नहीं है, वहां प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक सामान्य व्यापार परिपाटी (प्रथा) द्वारा नियंत्रित होंगे। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक अपने सभी लेनदेनों में भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग) द्वारा जारी "अपने ग्राहक को जानने" (केवाईसी) संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन करने पर विशेष रूप से ध्यान दें।

बी. 2. फॉर्म ए-1

i) व्यक्ति, फर्म और कंपनियां भारत में आयात के लिए 5000 अमरीकी डॉलर अथवा उसके समतुल्य राशि से अधिक के भुगतान हेतु फार्म ए-I में आवेदन करें। (अनुबंध-5)

ii) यह स्पष्ट किया जाता है कि जब विदेशी मुद्रा की खरीद, समय समय पर यथा संशोधित, 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. जी.एस.आर.381 (ई) के जरिये भारत सरकार द्वारा निर्मित विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000 की अनुसूची । और ॥ में शामिल न किए गए चालू खाता लेनदेन के लिए की जा रही हो, जिसकी राशि 5000 अमरीकी डॉलर अथवा उसकी समतुल्य राशि से अधिक न हो अथवा भुगतान आवेदक के बैंक खाते पर आहरित चेक अथवा माँग ड्राफ्ट द्वारा किया जा रहा हो, तो प्राधिकृत व्यापारी ऐसे आवेदक से फॉर्म ए-1 सहित कोई भी अतिरिक्त दस्तावेज न लें बल्कि एक साधारण आवेदन पत्र लें जिसमें मूल जानकारी अर्थात आवेदक का नाम और पता, लाभार्थी का नाम और पता, विप्रेषित की जाने वाली राशि और विप्रेषण का प्रयोजन निहित हो।

बी.3. आयात लाइसेंस

नकारात्मक सूची में शामिल माल, जिनके लिए प्रचलित निर्यात आयात नीति के अंतर्गत लाइसेंस प्राप्त करना अपेक्षित है, उनको छोड़कर, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, आयात के लिए साखपत्र मुक्त रूप से खोलें और विप्रेषणों की अनुमति दें। साखपत्र खोलते समय लाइसेंस की "विदेशी मुद्रा नियंत्रण के प्रयोजन हेतु" प्रति मंगायी जाए और लाइसेंस के साथ संलग्न विशेष शर्तों, यदि कोई हों, का पालन किया जाए। लाइसेंस के तहत विप्रेषण करने के बाद प्रयुक्त लाइसेंस की प्रतिलिपि, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक आंतरिक लेखा परीक्षकों अथवा निरीक्षकों द्वारा इसके सत्यापन किए जाने तक अपने पास रखें।

बी.4. विदेशी मुद्रा क्रेता का दायित्व

(i) विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (फेमा) की धारा 10(6) के अनुसार, विदेशी मुद्रा का अधिग्रहण करने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुमति है कि वह उसे अधिनियम की धारा 10(5) के अधीन प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक को दी गई अपनी घोषणा में उल्लिखित प्रयोजन के लिए अथवा उक्त अधिनियम अथवा उसके अधीन बनाई गई नियमावली अथवा विनियमावली के अंतर्गत किसी अन्य प्रयोजन हेतु, जिसके लिए विदेशी मुद्रा का अभिग्रहण स्वीकार्य है, उसका उपयोग कर सकता है।

(ii) जहां अधिगृहीत विदेशी मुद्रा का उपयोग भारत में माल के आयात के लिए कर लिया गया है, वहां प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक यह सुनिश्चित करें कि आयातक आयात के लिए साक्ष्य अर्थात् बिल ऑफ एंट्री की एक्सचेंज कंट्रोल कॉपी, पोस्टल एप्रेसल(appraisal) फार्म अथवा सीमा शुल्क विभाग का मूल्यांकन प्रमाणपत्र, आदि प्रस्तुत करता है तथा इस बात से खुद को भी संतुष्ट कर लें कि विप्रेषण के मूल्य के समतुल्य माल आयात किया गया है ।

(iii) 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा14/2000-आरबी में निर्धारित आयात के भुगतान की अनुमत विधियों के अलावा, आयात का भुगतान भारत में किसी बैंक के पास रखे गये समुद्रपारीय निर्यातक के अनिवासी खाते में जमा द्वारा भी किया जा सकता है। ऐसे मामलों में भी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, उक्त उप-पैराग्राफों (i) और (ii) में दिए गए निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करें ।

बी.5 आयात के भुगतान के निपटान के लिए समय-सीमा

बी.5.1 सामान्य आयात के लिए समय - सीमा

(i) मौज़ूदा विनियमों के अनुसार, गारंटी निष्पादन आदि कारणों से रोकी गई राशि के मामलों को छोड़कर आयात के लिए विप्रेषणों को पोत-लदान की तारीख से अधिकतम छह महीने तक पूरा कर लिया जाना चाहिए।

(ii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक, विवादों, वित्तीय कठिनाइयों आदि के कारण विलंबित आयात देयताओं के भुगतान के लिए अनुमति दे सकते हैं। ऐसे विलंबित भुगतानों के ब्याज, मीयादी बिल अथवा पोतलदान की तारीख से तीन वर्षों से कम अवधि के लिए अतिदेय ब्याज की अनुमति निम्नलिखित भाग III के पैरा सी.2 के निदेशों के अनुसार दी जाए।

बी.5.2 आस्थगित भुगतान व्यवस्था की समय-सीमा

पोतलदान की तारीख से छः महीने की अवधि से आगे तीन वर्ष की अवधि से कम की अवधि के भुगतानों का प्रावधान करनेवाले आपूर्तिकर्ता और क्रेता ऋण सहित आस्थगित भुगतान की व्यवस्था को व्यापार ऋण के रूप में समझा जाता है जिसके लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार और व्यापार ऋण के मास्टर परिपत्र में निर्धारित प्रक्रियागत दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए।

बी.5.3 पुस्तकों के आयात के लिए समय-सीमा

पुस्तकों के आयात के विप्रेषण को बिना किसी समय सीमा के अनुमति दी जाए बशर्ते ब्याज का भुगतान, यदि कोई हो, वह भाग III के पैराग्राफ सी. 2 में निहित अनुदेशों के अनुसार हो।

बी.6. विदेशी मुद्रा/ भारतीय रुपए का आयात

(i) विनियमावली में दिए गए अपवादों को छोड़कर, कोई व्यक्ति रिज़र्व बैंक की सामान्य अथवा विशेष अनुमति के बगैर किसी विदेशी मुद्रा का भारत में आयात नहीं करेगा अथवा भारत में नहीं लाएगा। चेक सहित करेंसी के आयात को विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम 1999 की धारा 6 की उप-धारा (3) के खंड (जी) और समय-समय पर यथासंशोधित 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 6/2000-आरबी के अनुसार रिज़र्व बैंक द्वारा बनाई गई विदेशी मुद्रा प्रबंध (करेंसी का निर्यात और आयात) नियमावली, 2000 द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

(ii) रिज़र्व बैंक अपनी निर्धारित शर्तों के अधीन किसी व्यक्ति को भारत सरकार और/ अथवा रिज़र्व बैंक के करेंसी नोट भारत में लाने की अनुमति दे सकता है।

बी.6.1. भारत में विदेशी मुद्रा का आयात

कोई व्यक्ति -

(i) करेंसी नोटों, बैंक नोटों और यात्री चेकों को छोड़कर किसी भी रूप में बिना किसी सीमा के भारत को विदेशी मुद्रा भेज सकता है;

(ii) भारत से बाहर के किसी भी स्थान से किसी भी सीमा तक की विदेशी मुद्रा (जारी न किए गए नोटों को छोड़कर) भारत ला सकता है, जो इस शर्त के अधीन होगा कि वह व्यक्ति भारत आने पर इन विनियमों के संलग्नक में दिये गये करेंसी घोषणा फार्म (सीडीएफ) में कस्टम अधिकारियों को घोषणापत्र प्रस्तुत करे; तथापि, इसके अतिरिक्त वहां ऐसी घोषणा करना आवश्यक नहीं होगा जहां किसी भी समय किसी व्यक्ति द्वारा करेंसी नोट, बैंक नोट अथवा यात्री चेक के रूप में लायी गयी विदेशी मुद्रा का सकल मूल्य 10,000 अमरीकी डॉलर (दस हजार अमरीकी डॉलर) अथवा इसके समतुल्य से अधिक न हो और/अथवा किसी भी समय ऐसे व्यक्ति द्वारा लायी गई नकद विदेशी मुद्रा का सकल मूल्य 5,000 अमरीकी डॉलर (पांच हज़ार अमरीकी डॉलर) अथवा इसके समतुल्य से अधिक न हो।

बी.6.2. भारतीय करेंसी और करेंसी नोटों का आयात

(i) अस्थायी दौरे पर भारत से बाहर गया भारत का निवासी कोई व्यक्ति भारत से बाहर के किसी स्थान (नेपाल और भूटान को छोड़कर) से भारत लौटते समय प्रति व्यक्ति अधिकतम 7,500 रु. की राशि तक के भारत सरकार के करेंसी नोट और रिज़र्व बैंक के नोट भारत ला सकता है।

(ii) कोई व्यक्ति नेपाल अथवा भूटान से 100 रुपए से अधिक मूल्यवर्ग के नोटों को छोड़कर भारत सरकार के करेंसी नोट और रिज़र्व बैंक के नोट, दोनों में से कोई भी, भारत ला सकता है।

खण्ड सी -आयात के लिए परिचालनगत दिशा-निर्देश

सी.1 अग्रिम विप्रेषण

सी.1.1. माल के आयात के लिए अग्रिम विप्रेषण

(i) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -I बैंक, माल के आयात के लिए निम्नलिखित शर्तों के अधीन बिना किसी सीमा के अग्रिम विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं :

(ए) यदि अग्रिम विप्रेषण की राशि 200,000 अमरीकी डॉलर अथवा उसके समतुल्य राशि से अधिक हो तो भारत से बाहर के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित बैंक से बिना किसी शर्त अप्रतिसंहरणीय अतिरिक्त साखपत्र अथवा भारत में किसी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक की गारंटी, यदि ऐसी गारंटी भारत से बाहर के किसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित बैंक द्वारा काउंटर-गारंटी पर जारी की गयी हो, प्राप्त किये जाएं ।

(बी) जहाँ आयातक (सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी या भारत सरकार / राज्य सरकार (रों) के विभाग / उपक्रम को छोड़कर) विदेशी आपूर्तिकर्ता से बैंक गारंटी प्राप्त करने में असमर्थ है और प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक, आयातक के पिछले निर्यात वसूली के ट्रैक रिकॉर्ड तथा प्रामाणिकता से संतुष्ट है तो 5,000,000 अमरीकी डॉलर (पांच मिलियन अमरीकी डालर) तक के अग्रिम विप्रेषण के लिए बैंक गारंटी/अतिरिक्त साख पत्र प्रस्तुत करने के लिए दबाव न डाले । प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, ऐसे मामलों के निपटान के लिए अपने बैंक के निदेशक मंडल द्वारा बनायी गयी उपयुक्त नीति के तहत आंतरिक दिशा-निर्देशों का अनुसरण करें ।

(सी) जहाँ आयातक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी या भारत सरकार / राज्य सरकार (रों) के विभाग / उपक्रम अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित बैंक से अग्रिम भुगतान के बाबत बैंक गारंटी प्राप्त करने की स्थिति में नहीं है/हैं, वहाँ 100,000 अमरीकी डॉलर से अधिक के अग्रिम विप्रेषण के लिए, विप्रेषण भेजने से पहले, उससे/उनसे अपेक्षित है कि वे वित्त मंत्रालय, भारत सरकार से विशेष छूट की अनुमति प्राप्त करे/करें ।

(ii) आयात के लिए अग्रिम विप्रेषण के संबंध में सभी भुगतान विनिर्दिष्ट शर्तों के अधीन होंगे ।

सी.1.2 कच्चे हीरों के आयात के लिए अग्रिम विप्रेषण

(i) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंकों को अनुमति है कि वे बगैर किसी सीमा के और किसी आयातक (सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी अथवा भारत सरकार/राज्य सरकारों के विभाग/उपक्रमों को छोड़कर) द्वारा गारंटी अथवा समर्थनकारी साखपत्र के बिना निम्नलिखित खनन कंपनियों से भारत में कच्चे हीरों के आयात की अनुमति दें, अर्थात्

ए) डी.बीअर्स यू.के.लि.,
बी) रियो टिंटो, यू.के.,
सी) बीएचपी बिल्लिटोन, आस्ट्रेलिया,
डी) इंडियामा, ई.पी. अंगोला,
ई) अलरोसा, रूस,
एफ) गोखरन, रूस,
जी) रियो टिंटो,बेल्जियम,
एच) बीएचपी बिल्लिटोन, बेल्जियम और
आई) नामीबिया डाइमंड ट्रेडिंग कंपनी (पीटीवाई) लि. (एनडीटीसी)

(ii) अग्रिम प्रेषण की अनुमति देते समय, प्राधिकृत व्यापारी बैंक निम्नलिखित को सुनिश्चित करें -

(ए) आयातक इस संबंध में रत्न और जवाहरात निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) द्वारा अनुमोदित सूची के अनुसार कच्चे हीरों का मान्यता प्राप्त संसाधक (प्रोसेसर) हो तथा उसका निर्यात वसूली का पिछला रिकार्ड अच्छा हो;

(बी) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, अपने वाणिज्यिक निर्णय के आधार पर और लेनदेन की वास्तविकता से संतुष्ट होने पर लेनदेन करें;

(सी) अग्रिम भुगतान बिक्री करार की शर्तों पर ही किया जाये और देय राशि सीधे संबंधित कंपनी,जो अंतिम हिताधिकारी हो, उसी के खाते में क्रेडिट की जाए न कि संख्यांकित खाते में या अन्यथा। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त सावधानी बरती जाए कि घिसे हुये या रगड़ खाये हुए हीरों(कॉनफ्लिक्ट डायमंड) के आयात के लिए विप्रेषण की अनुमति नहीं है;

(डी) भारतीय आयातक कंपनी और समुद्रपारीय कंपनी के लिए प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों को जानने संबंधी मानदण्डों और समुचित सावधानी उपायों का पालन किया जाना चाहिए; और

(ई) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, इस संबंध में जारी फेमा/ नियमों/ विनियमों/ निदेशों के अनुसार आयातक द्वारा देश में कच्चे हीरों के आयात का सबूत देनेवाला बिल ऑफ एंट्री/ दस्तावेज की प्रस्तुति का अनुवर्तन करें ।

(iii) सार्वजनिक क्षेत्र अथवा भारत सरकार/राज्य सरकार के विभाग/उपक्रम की आयातक कंपनी के मामले में, जहां अग्रिम भुगतान 100,000 अमरीकी डॉलर अथवा उसके समतुल्य से अधिक हो, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक उपर्युक्त शर्तों और वित्त मंत्रालय, भारत सरकार से प्राप्त बैंक गारंटी की विशेष छूट की शर्त पर अग्रिम प्रेषण की अनुमति दे सकते हैं ।

(iv) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों द्वारा बैंक गारंटी अथवा समर्थनकारी साखपत्र के बिना 5,000,000 अमरीकी डॉलर (पांच मिलियन अमरीकी डॉलर मात्र) के समतुल्य अथवा उससे अधिक राशि के किये गये अग्रिम भुगतान की रिपोर्ट संलग्न फार्मेट (अनुबंध-2) में प्रत्येक वर्ष सिंतबर और मार्च को समाप्त छमाही के लिए मुख्य महाप्रबंधक, भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा विभाग, व्यापार प्रभाग, केन्द्रीय कार्यालय, अमर भवन, सर पी.एम. रोड, फोर्ट, मुंबई 400001 को प्रस्तुत करना अपेक्षित है। रिपोर्ट संबंधित छमाही की समाप्ति से अनुवर्ती 15 दिनों के अंदर जमा की जानी चाहिए।

सी.1.3. वायुयान/हेलीक़ाप्टर और अन्य विमानन संबंधी खरीदगत के आयात हेतु अग्रिम विप्रेषण

एक क्षेत्र विशेष के लिए उपाय के रूप में अनुसूचित हवाई यातायात सेवा के रूप में कार्य करने के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय से अनुमति प्राप्त एयरलाइन कंपनियों को बैंक गारंटी के बिना, 50 मिलियन अमरीकी डॉलर तक के अग्रिम विप्रेषण की अनुमति दी गई है। तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक प्रत्येक वायुयान, हेलीकॉप्टर और विमानन संबंधी अन्य खरीदों के सीधे आयात के लिए शर्तरहित, अविकल्पी समर्थनकारी साखपत्र के बिना 50 मिलियन अमरीकी डालर तक के अग्रिम विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं। उपर्युक्त लेनदेनों के लिए विप्रेषण निम्नलिखित शर्तों के अधीन होंगे ।

  1. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक, लेनदेन सही है इससे संतुष्ट होने और अपने वाणिज्यिक निर्णय के आधार पर लेनदेन करें। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक भारतीय आयातक कंपनी तथा समुद्रपारीय विनिर्माता कंपनी के संबंध में " अपने ग्राहक को जानने " संबंधी मानदंडों और समुचित सावधानी उपायों का पालन करें।

  2. अग्रिम भुगतान बिक्री करार की शर्तों के अनुसार ही किया जाए और संबंधित विनिर्माता (आपूर्तिकर्ता) के खाते में सीधे जमा किया जाए।

  3. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक ऐसे मामलों पर कार्रवाई करने के लिए अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से अपने आंतरिक दिशा-निर्देश तैयार करें।

  4. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी अथवा केन्द्र सरकार/ राज्य सरकार के विभाग/उपक्रम के मामले में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, यह सुनिश्चित करें कि 100,000 अमरीकी डॉलर से अधिक के अग्रिम विप्रेषण के लिए वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा बैंक गारंटी की अपेक्षा से छूट मिली हुई है।

  5. भारत में माल का वास्तविक आयात विप्रेषण की तारीख से छः माह (पूंजीगत माल के लिए तीन वर्ष) के अंदर किया जाता है और आयातक, संबंधित अवधि की समाप्ति से पंद्रह दिनों के अंदर आयात के दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने का वचनपत्र देता है। यह स्पष्ट किया जाता है कि जहां अग्रिम का भुगतान चरणबद्ध रूप में किया जाता है, वहां करार के अनुसार किए गए अंतिम विप्रेषण की तारीख को आयात के दस्तावेजी साक्ष्य की प्रस्तुति के लिए गिना जाएगा।

  6. विप्रेषण करने से पहले, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक यह सुनिश्चित करें कि आयात के लिए कंपनी ने वर्तमान विदेश व्यापार नीति के अनुसार नागरिक उड्डयन मंत्रालय/ डीजीसीए/ अन्य एजेंसियों से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त किया है।

  7. वायुयान और विमानन क्षेत्र संबंधी उत्पादों के आयातित न होने की स्थिति में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -I बैंक यह सुनिश्चित करें कि अग्रिम विप्रेषण की राशि भारत को तत्काल प्रत्यावर्तित की जाती है।

उपर्युक्त शर्तों से किसी प्रकार का बदलाव होने की स्थिति में रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय का पूर्वानुमोदन आवश्यक होगा।

सी.1.4. सेवाओं के आयात के लिए अग्रिम विप्रेषण

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी - I बैंक सेवाओं के आयात के लिए निम्नलिखित शर्तों पर किसी सीमा के बगैर अग्रिम विप्रेषण के लिए अनुमति दें :

(ए) यदि अग्रिम की राशि 500,000 अमरीकी डॉलर अथवा उसकी समतुल्य राशि से अधिक होती है तो समुद्रपारीय लाभार्थी से भारत के बाहर स्थित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित बैंक से गारंटी अथवा भारत में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी - I बैंक से गारंटी, यदि इस प्रकार की गारंटी भारत के बाहर स्थित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित बैंक की काउंटर-गारंटी के लिए जारी की जाती है, प्राप्त करनी चाहिए ।

(बी) सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी अथवा भारत सरकार/राज्य सरकारों के विभाग/उपक्रम को 100,000 (एक लाख अमरीकी डॉलर) अमरीकी डॉलर से अधिक अथवा उसकी समतुल्य राशि, बैंक की गारंटी के बिना, सेवाओं के आयात हेतु अग्रिम विप्रेषण करने के लिए वित्त मंत्रालय, भारत सरकार से अनुमोदन प्राप्त करना अपेक्षित होगा।

(सी) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी - I बैंक यह सुनिश्चित करने के लिए भी अनुवर्ती कार्रवाई करें कि अग्रिम प्रेषण का लाभार्थी भारत में प्रेषणकर्ता के साथ संविदा अथवा करार के तहत अपने प्रति दायित्व पूर्ण करता है, ऐसा न करने पर उक्त राशि भारत को प्रत्यावर्तित की जानी चाहिए ।

सी.2. आयात बिलों पर ब्याज

(i) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, लदान की तारीख से तीन वर्ष से कम अवधि के लिए समय समय पर व्यापार ऋण के लिए निर्धारित दरों पर मीयादी बिल पर ब्याज अथवा अतिदेय ब्याज के भुगतान की अनुमति दे सकते हैं।

(ii) मीयादी आयात बिलों के पूर्व भुगतान के मामले में, दावा की गई दर पर असमाप्त मीयाद के लिए आनुपातिक ब्याज घटाने के बाद ही अथवा करेंसी के लिबोर, जिस पर माल का बीजक बनाया गया है, जो भी लागू हो, विप्रेषण किया जाए। जहां ब्याज के लिए अलग से दावा नहीं किया गया है अथवा स्पष्ट रूप से न दर्शाया गया हो, बीजक की करेंसी के प्रचलित लिबोर पर असमाप्त मीयाद के लिए आनुपातिक ब्याज की कटौती के बाद विप्रेषण की अनुमति दी जाए।

सी.3. प्रतिस्थापन आयात के बदले विप्रेषण

यदि माल की कम आपूर्ति हुई है, माल क्षतिग्रस्त हो गया है, कम मात्रा में पहुंचा है अथवा रास्ते में खो गया है और मूल माल, जो खो गया है, की जमानत पर खोले गए साख पत्र की सुरक्षा के लिए आयात लाइसेंस की विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रतिलिपि का उपयोग किया जा चुका है, तो प्राधिकृत व्यापारी  श्रेणी- I बैंक, खोए हुए माल की कीमत तक के मूल पृष्ठांकन को रद्द करें और रिज़र्व बैंक को लिखे बिना आयात के प्रतिस्थापन के लिए नए विप्रेषण की अनुमति दें, बशर्ते खोए हुए माल से संबंधित बीमा दावा आयातक के पक्ष में निपटाया गया हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रतिस्थापित कन्साइनमेंट लाइसेंस की वैधता अवधि के भीतर ही भेज दिया जाता है।

सी.4. प्रतिस्थापन आयात के लिए गारंटी

दोषपूर्ण आयात के प्रतिस्थापन के मामलों में, यदि समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता द्वारा पूर्व में आयातित दोषपूर्ण माल को पुनः भारत से बाहर भेजे जाने से पहले आयात किया जा रहा है तो दोषपूर्ण माल के भेजने/ वापसी के लिए आयातक ग्राहक के अनुरोध पर प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक, अपने वाणिज्यिक विवेक के अनुसार गारंटी जारी कर सकते हैं।

सी.5 कारोबारी प्रक्रिया आऊटसोर्सिंग (बीपीओ) कंपनियों द्वारा अपने समुद्रापारीय कार्यालयों के लिए उपकरणों का आयात

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक, भारत स्थित बीपीओ कंपनियों को समुद्रपारीय उनके अंतर्राष्ट्रीय कॉल सेंटरों (आईसीसी) की स्थापना के संबध में उनके समुद्रपारीय कार्यालयों के लिए उपकरणों के आयात और उन्हें संस्थापित करने की लागत हेतु निम्नलिखित शर्तों के अधीन विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं :

(i) कारोबारी प्रक्रिया आउटसोर्सिंग कंपनी (बीपीओ कंपनी) ने अंतर्राष्ट्रीय कॉल सेंटर की स्थापना के लिए संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार तथा संबंधित अन्य प्राधिकरणों से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करना चाहिए।

(ii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक के वाणिज्यिक निर्णय, लेनदेन की विश्वसनीयता और करार की शर्तों पर ही विप्रेषण की अनुमति दी जाए।

(iii) समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता के खाते में सीधे विप्रेषण किया जाए।

(iv) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक आयातक कंपनी के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अथवा लेखा परीक्षक से आयात के सबूत के रूप में एक प्रमाणपत्र प्राप्त करें कि माल, जिसके लिए विप्रेषण किया गया है, का वास्तव में आयात किया गया है और उसे समुद्रपारीय कार्यालय में संस्थापित किया गया है।

सी.6. आयात बिलों/दस्तावेजों की प्राप्ति

सी.6.1. आयातक द्वारा समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ताओं से सीधे आयात दस्तावेजों की प्राप्ति

आयात बिल और दस्तावेज आपूर्तिकर्ता के बैंकर से भारत में आयातक के बैंकर द्वारा प्राप्त किए जाने चाहिए । अत: निम्नलिखित मामलों को छोड़कर, समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता से आयातक द्वारा सीधे आयातपत्र प्राप्त करने की स्थिति में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक , कोई भी विप्रेषण न करें :-

(i) यदि आयात बिल का मूल्य 300,000 अमरीकी डॉलर से अधिक न हो।

(ii) विदेशी कंपनियों की पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक संस्थाओं द्वारा उनके नियंत्रण कार्यालयों से प्राप्त आयात बिल।

(iii) विदेश व्यापार नीति में यथा परिभाषित विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थित 100% निर्यात उन्मुख इकाई/इकाइयों, सरकारी क्षेत्र के उपक्रम और लिमिटेड कंपनियों के हैसियत धारक निर्यातकों द्वारा प्राप्त आयात बिल।

(iv) सभी लिमिटेड कंपनियों अर्थात पब्लिक लिमिटेड, डीम्ड पब्लिक लिमिटेड और प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों द्वारा प्राप्त आयात बिल।

सी.6.2. विनिर्दिष्ट क्षेत्रों के मामले में समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ताओं से आयातकों द्वारा सीधे आयात दस्तावेजों की प्राप्ति

एक विशेष क्षेत्रगत उपाय के रूप में, जहाँ पर आयातक कच्चे हीरों, कच्चे कीमती स्टोन, कच्चे तथा सेमी-कीमती स्टोन के आयातपत्र/दस्तावेज, समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता से सीधे प्राप्त कर लेता है और आयातक द्वारा विप्रेषण के समय दस्तावेजी सबूत प्रस्तुत कर दिये जाते हैं, तो प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों को अनुमति है कि वे ऐसे आयात के लिए 300,000 अमरीकी डॉलर तक के विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक निम्नलिखित शर्तों पर ऐसे लेनदेन कर सकते हैं।

(i) आयात, मौजूदा व्यापार नीति के अनुरूप हो ।

(ii) लेनदेन वाणिज्यिक निर्णय पर आधारित हों और वे लेनदेन की वास्तविकता से संतुष्ट हों।

(iii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक " अपने ग्राहक को जानने" संबंधी मानदण्डों और समुचित सावधानी उपायों/प्रक्रिया का अनुपालन करें और आयातक ग्राहक की वित्तीय स्थिति /मालियत तथा निर्यात वसूली के पिछले रिकार्ड से संतुष्ट हों। सुविधा देने से पहले वे समुद्रपारीय बैंकर अथवा समुद्रपारीय प्रतिष्ठित क्रेडिट रेटिंग एजेंसी से प्रत्येक समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता के बारे में रिपोर्ट प्राप्त करें।

सी.6.3. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक द्वारा समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ताओं से सीधे आयात दस्तावेजों की प्राप्ति

(i) आयातक ग्राहकों के अनुरोध पर प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, उल्लेखानुसार समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ताओं से सीधे ही बिल प्राप्त कर सकते हैं बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, आयातक ग्राहक की वित्तीय स्थिति / हैसियत और पिछले वसूली रिकॉर्ड से पूरी तरह संतुष्ट हों ।

(ii) सुविधा देने से पहले प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, समुद्रपारीय बैंकर अथवा प्रतिष्ठित क्रेडिट रेटिंग एजेंसी से प्रत्येक समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता के बारे में रिपोर्ट प्राप्त करे। तथापि, जहाँ पर बीजक की राशि 300,000 अमरीकी डॉलर से अधिक न हो, समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता के बारे में रिपोर्ट प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, आयातक ग्राहक की वित्तीय स्थिति / हैसियत और पिछले वसूली रिकॉर्ड से पूरी तरह संतुष्ट हो ।

सी.7. आयात का साक्ष्य

सी .7.1. प्रत्यक्ष आयात

(i) आयात के उन सभी मामलों में, जहां भारत में आयात के लिए भेजी गई/ भुगतान की गई विदेशी मुद्रा की राशि 100,000 अमरीकी डॉलर अथवा उसकी समतुल्य राशि से अधिक है तो जिस प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, के माध्यम से संबंधित विप्रेषण भेजा गया है, यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि आयातक निम्नलिखित दस्तावेज प्रस्तुत करता है :-

(ए) घरेलू उपभोग के लिए आयातित सामान हेतु आयातपत्र की विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रतिलिपि;

अथवा

(बी) 100% निर्यात उन्मुख इकाई के मामले में, वेयरहाउसों के लिए आयातपत्र की विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रतिलिपि;

अथवा

(सी) डाक द्वारा आयात करने के मामले में आयातक द्वारा सीमा शुल्क प्राधिकारियों को यथा घोषित सीमा शुल्क निर्धारण प्रमाणपत्र अथवा पोस्टल अप्रेज़ल फार्म, एक साक्ष्य के रूप में कि जिस माल के लिए भुगतान किया गया है, उसका वास्तविक रूप से भारत में आयात किया गया है।

(ii) डी/ए आधार पर किए गए आयातों के संबंध में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-1 बैंक, आयातपत्र के लिए विप्रेषण भेजते समय आयात साक्ष्य प्रस्तुत करने पर जोर दें । तथापि, कंसाइंमेंट का न पहुंचना, कंसाइंमेंट सुपुर्दगी/सीमा शुल्क निकासी में विलंब जैसे जायज़ कारणों से यदि आयातक दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं तो आयातक के अनुरोध की मौलिकता (प्रामाणिकता) से संतुष्ट होने पर प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, आयातक को आयात का साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए उचित समय, किंतु विप्रेषण की तारीख से अधिकतम तीन महीने तक का समय दे सकते हैं।

सी .7.2. आयात पत्र (बिल ऑफ एंट्री) के बदले आयात का साक्ष्य

(i) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, घरेलू उपभोग के लिए आयातित माल के आयातपत्र की विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रतिलिपि के बदले मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) अथवा कंपनी के लेखा परीक्षक से निम्नलिखित शर्तों के अधीन यह प्रमाणपत्र स्वीकार कर सकते हैं कि माल जिसके लिए विप्रेषण भेजा गया है, उसका वास्तव में भारत में आयात हो चुका है;

(ए) विप्रेषित विदेशी मुद्रा की राशि 1,000,000 अमरीकी डॉलर (एक मिलियन अमरीकी डालर) अथवा उसके समतुल्य राशि से कम है,

(बी) आयातक भारत में स्टॉक एक्स्चेंज में सूचीबद्ध एक कंपनी है और जिसकी शुद्ध मालियत उसके पिछले लेखा परीक्षित तुलनपत्र की तारीख को 100 करोड़ रुपये से कम नहीं है, अथवा आयातक कोई सरकारी क्षेत्र की कंपनी अथवा भारत सरकार का उपक्रम अथवा उसका कोई विभाग है।

(ii) उक्त सुविधा भारतीय विज्ञान संस्थान/ भारतीय तकनीकी संस्थान, जैसे वैज्ञानिक इकाई/ शैक्षणिक संस्थाएं समेत स्वाधिकृत निकायों को भी दी जाए, जिनके लेखों की जांच भारत के नियंत्रक एवं महालेखाकार (सीएजी) द्वारा की जाती है । प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, ऐसी संस्थाओं के लेखापरीक्षक/सीईओ से इस आशय के घोषणा पत्र क़ी प्रस्तुति पर जोर दें कि नियंत्रक और महालेखाकार उनके लेखों की जांच करते हैं।

सी .7.3. अगोचर आयात

(i) जहां आयात अगोचर रूप में हो, अर्थात् इंटरनेट/ डाटाकॉम चैनेल के माध्यम से सॉफ्टवेयर या डाटा तथा ई-मेल/फैक्स के माध्यम से ड्राइंग व डिज़ाइन हो तो सनदी लेखाकार द्वारा जारी इस आशय का प्रमाणपत्र प्राप्त किया जाए कि आयातक को सॉफ्टवेअर/डाटा/ड्राइंग/ डिज़ाइन प्राप्त हो गये हैं ।

(ii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, आयातकों को सूचित करें कि वे इस खण्ड के अंतर्गत किए गए आयातों की जानकारी सीमा शुल्क अधिकारियों को दें।

सी.8. प्राप्ति सूचना जारी करना

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, आयातक से प्राप्त साक्ष्य अर्थात् आयातपत्र की विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रतिलिपि, पोस्टल अप्रेज़ल फार्म अथवा सीमा शुल्क निर्धारण प्रमाणपत्र आदि की पावती पर्ची जारी करें जिसमें आयात लेनदेन से संबंधित सभी संगत ब्योरे दर्ज हों।

सी.9. सत्यापन और परिरक्षण

(i) आंतरिक निरीक्षक अथवा लेखा परीक्षक (प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक द्वारा नियुक्त किए गए बाह्य लेखा परीक्षकों समेत) आयात के दस्तावेजी साक्ष्य अर्थात् आयातपत्र की विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रतिलिपियों अथवा पोस्टल अप्रेज़ल फार्म अथवा सीमा शुल्क निर्धारण प्रमाणपत्र आदि का सत्यापन करें।

ii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, भारत में आयात के साक्ष्य से संबंधित दस्तावेज सत्यापन की तारीख से एक साल की अवधि तक सुरक्षित रखें। तथापि, जिन मामलों में जांच एजेंसियों द्वारा विवेचना चल रही हो, उनके दस्तावेजों को संबंधित जांच एजेंसी से अनुमति लेने के बाद ही नष्ट किया जाए।

सी.10. आयात साक्ष्य का अनुवर्तन

(i) यदि कोई आयातक 100,000 अमरीकी डॉलर से अधिक के आयात के लिए किए गए विप्रेषणों के संबंध में, भाग III के पैरा सी.7. की अपेक्षानुसार, विप्रेषण की तारीख से तीन महीने के भीतर दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करता है तो प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक , उस मामले के संबंध में अगले तीन महीने तक आयातक को पंजीकृत पत्र जारी करने समेत तेज़ी से अनुवर्ती कार्रवाई करें।

(ii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-1 बैंक, 100,000 अमरीकी डॉलर से अधिक के विप्रेषणों के संबंध में, जहां पर आयातक ने उपयुक्त दस्तावेजी आयात साक्ष्य विप्रेषण की तारीख से छह महीने के भीतर प्रस्तुत करने में चूक की है उनके आयात लेनदेनों के ब्योरे देते हुए फार्म बीईएफ (अनुबंध-1) में छमाही आधार हर वर्ष जून और दिसंबर के अंत में रिज़र्व बैंक के उस क्षेत्रीय कार्यालय को, जिसके क्षेत्राधिकार में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक कार्य करता हैं, छमाही जिससे विवरण संबधित है, की समाप्ति के 15 दिन के भीतर प्रस्तुत करें।

(iii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों को 100,000 अमरीकी डालर अथवा इससे कम राशिवाले आयातों के साक्ष्य की प्रस्तुति के संबंध में अनुवर्ती कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है बशर्ते वे लेनदेन की विश्वसनीयता और प्रेषक की नीयत से संतुष्ट हों । ऐसे मामलों में, कार्रवाई करने के लिए, बैंक का निदेशक मंडल एक उपयुक्त नीति बनाए और प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, तदनुसार अपने लिए आंतरिक दिशा-निर्देश स्वंय निर्धारित करें।

सी.11. बैंक गारंटी जारी करना

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंकों को, समय-समय पर यथा संशोधित, 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 8/2000-आरबी के अनुसार अपने आयातक ग्राहकों की ओर से गारंटी जारी करने की अनुमति है।

सी.12. नामित बैंकों/ नामित एजेंसियों द्वारा स्वर्ण/ प्लैटिनम/ चांदी का आयात

नामित बैंकों/एजेंसियों को ऋण, आपूर्तिकर्ता/खरीददार से क्रेडिट, परेषण के साथ-साथ अनिर्धारित/ खुले मूल्य के आधार पर भी स्वर्ण के आयात की अनुमति दी गयी है। हालांकि, स्वर्ण के सभी आयात अनिवार्यत: दस्तावेज बनाम भुगतान (डीपी) के आधार पर ही होंगे। तदनुसार, दस्तावेज बनाम स्वीकृति/सुपुर्दगी (डीए) के आधार पर स्वर्ण के आयात की अनुमति नहीं होगी। हालांकि, ये प्रतिबंध स्वर्ण आभूषणों के निर्यातकों की स्वर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किए जाने वाले आयात के संबंध में लागू नहीं होंगे। सभी श्रेणियों के तहत स्वर्ण के आयात के लिए नामित बैंकों/एजेंसियों द्वारा खोले जाने वाले साख पत्र 100 प्रतिशत नकदी मार्जिन के आधार पर ही होंगे। यह स्पष्ट किया जाता है कि उल्लिखित अनुदेश जारी किए जाने के परिणामस्वरूप, आपूर्तिकर्ता/क्रेता से उधार पर (Suppliers Credit/ Buyers Credit) स्वर्ण आयात के साथ ही साथ खुले मूल्य आधार पर स्वर्ण का आयात करते समय नकदी मार्जिन और भुगतान पर देय प्रलेख आधार संबंधी विनिर्दिष्ट अनुशासन का पालन करना होगा। दूसरे शब्दों में, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों से अपेक्षित है कि वे यह सुनिश्चित करें कि किसी भी स्वरूप अथवा नाम में उधार का उपयोग स्वर्ण के किसी भी स्वरूप के आयात के लिए न किया जाए।

[4 जून 2013 का ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.107, 27 जून 2013 का ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.122]

सी.12.1. परेषण (कंसाइनमेंट) के आधार पर स्वर्ण/प्लैटिनम/चांदी का आयात

ए) नामित एजेंसियां/प्रीमियर/स्टार ट्रेडिंग हाउस, जिन्हें स्वर्ण के आयात के लिए भारत सरकार द्वारा अनुमति दी गयी है और नामित बैंक अब केवल स्वर्ण आभूषणों के निर्यातकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परेषण (कंसाइनमेंट) के आधार पर स्वर्ण का आयात कर सकती/सकते हैं।

बी) नामित एजेंसियों/बैंकों द्वारा कंसाइनमेंट आधार पर प्लैटिनम एवं चांदी का आयात किया जा सकता है, जहाँ पर स्वामित्व आपूर्तिकर्ता के पास रहेगा और आयातक (कंसाइनी) आपूर्तिकर्ता (कंसाइनर) के एजेंट के रूप में कार्य करेगा। आयात की लागत के लिए विप्रेषण, बिक्री होने पर और समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता और नामित एजेंसी/बैंक के बीच किए गए करार के प्रावधानों के अनुसार किया जाएगा।

सी.12.2. अनिर्धारित (खुली) कीमत के आधार पर स्वर्ण/प्लैटिनम/चांदी आयात

नामित एजेंसी/बैंक एकमुश्त खरीद आधार पर स्वर्ण का आयात कर सकते हैं बशर्ते स्वर्ण का स्वामित्व आयात के समय ही आयातक के नाम में चला जाएगा परंतु स्वर्ण की कीमत, आयातक द्वारा ग्राहकों को स्वर्ण की बिक्री कर देने के बाद निर्धारित की जायेगी। ये अनुदेश प्लेटिनम और चांदी के आयात पर भी लागू होंगे।

सी.12.3. स्वर्ण का सीधे आयात

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, स्वर्ण के सीधे आयात हेतु रत्न और जवाहरात क्षेत्र की निर्यातोन्मुखी इकाइयों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों की इकाइयों और नामित एजेंसियों/ बैंकों की ओर से, निम्नलिखित शर्तों के अधीन, साख पत्र खोल सकता है और विप्रेषण की अनुमति दे सकता है :

(i) स्वर्ण का आयात विदेश व्यापार नीति के अनुसार ही होना चाहिए।

(ii) स्वर्ण के सीधे आयात के लिए खोले गए साख पत्र की मीयाद 90 दिनों से अधिक अवधि के लिए नहीं होनी चाहिए एवं इसे 100 प्रतिशत नकदी मार्जिन के आधार पर होना चाहिए।

(iii) स्वर्ण के आयात से संबंधित सभी लेनदेनों हेतु बैंकर के विवेक का सही-सही उपयोग किया जाए। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक यह सुनिश्चित करें कि ऐसे लेनदेन करते समय समुचित सावधानी की प्रक्रिया अपनायी जाए और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा, समय-समय पर जारी, अपने ग्राहकों को जानने के सभी मानदंडों एवं एंटी मनी लांडरिंग संबंधी दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -I बैंक ऐसे लेनदेनों की सावधानीपूर्वक निगरानी करें। आयातकों के कारोबार में भारी अथवा असामान्य वृद्धि की ध्यानपूर्वक जांच यह सुनिश्चित करने के लिए की जाए कि लेनदेन वास्तविक व्यापारिक लेनदेन हैं।

(iv) समुचित सावधानी की सामान्य प्रक्रिया अपनाने के अलावा साखपत्र खोलने से पहले आपूर्तिकर्ता की विश्वसनीयता भी सुनिश्चत की जाए। आयातक ग्राहक की वित्तीय स्थिति, कारोबार का प्रकार और निवल मालियत के साथ कारोबार के टर्नओवर की मात्रा का अनुपात उचित होना चाहिए। उपर्युक्त के अलावा, बैंक ऐसे मामलों में वास्तविक स्थिति के निर्धारण हेतु अन्य बैंकों से सावधानीपूर्वक (गोपनीयता से) जानकारी भी लें। इसके अलावा, आयात/ निर्यात लेनदेनों की लेखा परीक्षा करने के तरीके को स्थापित करने के लिए ऐसे लेनदेनों से संबंधित सभी दस्तावेजों को कम से कम पांच वर्षों तक अभिरक्षण में रखा जाए।

(v) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंक, विनिर्देशानुसार आयातकों द्वारा आयात पत्र (बिल ऑफ एंट्री) की प्रस्तुति के संबंध में अनुवर्ती कार्रवाई करें।

(vi) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी- I बैंकों के प्रधान कार्यालय/ अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रभाग अब से निम्नलिखित विवरण मुख्य महाप्रबंधक, भारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा विभाग, केंद्रीय कार्यालय, व्यापार प्रभाग, अमर भवन, फोर्ट, मुंबई 400001 को प्रस्तुत करेंगे:

(ए) नामित बैंकों / एजेंसियों / रत्न और जवाहरात क्षेत्रगत निर्यात उन्मुख ईकाईयों (EOUs)/ एसईजेड द्वारा आयातित स्वर्ण की मात्रा और मूल्य को दर्शाने वाला अर्ध वार्षिक विवरण (मार्च / सितंबर को समाप्त) अनुबंध-3 के अनुसार प्रस्तुत किया जाए;

(बी) नामित एजेंसियों (नामित बैंकों को छोड़कर)/रत्न और जवाहरात क्षेत्रगत निर्यात उन्मुख ईकाईयों (EOUs)/एसईजेड द्वारा रिपोर्ट किए जाने वाले माह के दौरान आयातित स्वर्ण की मात्रा और मूल्य के साथ-साथ वित्तीय वर्ष के प्रथम माह से लेकर रिपोर्ट किए जाने वाले माह के अंत में उनकी संचयी स्थिति को दर्शाने वाला मासिक विवरण अनुबंध-4 के अनुसार प्रस्तुत किया जाए।

उल्लिखित दोनों विवरण प्रस्तुत किए जाएंगे, भले ही आँकड़ों की स्थिति `शून्य' हो और वे संबंधित माह/अर्ध वर्ष के अनुवर्ती माह की दस तारीख तक भारतीय रिज़र्व बैंक के उल्लिखित कार्यालय को पहुँच जाने चाहिए।

ये विवरण ई-मेल से भी प्रस्तुत किए जाएं ।

सी.12.4. ऋण के आधार पर स्वर्ण का आयात

(i) नामित एजेंसियां/प्राधिकृत व्यापारी बैंक इस योजना के तहत स्वर्ण का ऋण के रूप में आयात जवाहरात के निर्यातकों को आगे ऋण के तौर पर देने के लिए कर सकते हैं।

(ii) निर्यातोन्मुखी इकाइयां और विशेष आर्थिक क्षेत्रों की इकाइयां, जो हीरे-जवाहरात के क्षेत्र में हैं, वे विनिर्माण तथा निर्यात हेतु केवल अपने लिए स्वर्ण का ऋण के रूप में आयात कर सकती हैं।

(iii) स्वर्ण ऋण की अधिकतम अवधि भारत सरकार की विदेश व्यापार नीति 2009-2014 अथवा तत्संबंध में समय-समय जारी की गयी अधिसूचना के अनुरूप होगी

(iv) प्राधिकृत व्यापारी बैंक, स्वर्ण ऋण के आयात के लिए यथा आवश्यक फेडाई (एफईडीएआई) के 1 अप्रैल 2003 के दिशा-निर्देशों के अनुसार आपाती साख पत्र खोल सकते हैं। आपाती (अतिरिक्त) साख पत्र की अवधि स्वर्ण ऋण की अवधि के अनुरूप होगी।

(v) आपाती (अतिरिक्त) साख पत्र केवल ऋण के तौर पर स्वर्ण आयात का कारोबार करने के लिए अनुमत कंपनियों अर्थात नामित एजेंसियों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों में 100% निर्यातोन्मुखी उपक्रमों/इकाइयों, जो हीरे-जवाहरात के क्षेत्र में हैं, की ओर से खोले जा सकते हैं।

(vi) आपाती (अतिरिक्त) साख पत्र केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित बुलियन बैंकों के पक्ष में ही जारी किये जाएं। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी –I बैंक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित बुलियन बैंकों की विस्तृत सूची जेम ऐण्ड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल से प्राप्त कर सकते हैं।

(vii) स्वर्ण का आयात और अधिकतम 90 दिनों की मीयाद सहित आपाती साख पत्र खोलने संबंधी वर्तमान सभी अनुदेश यथावत् बने रहेंगे।

(viii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी – I बैंक अपने पास पर्याप्त प्रलेखीकरण बनाये रखें, जो सभी आयातों तथा ऋण के तौर पर स्वर्ण के आयात के लिए जारी आपाती (अतिरिक्त) साख पत्र से गहरा संबंध रखते हों।

ix) स्वर्ण ऋण की अधिकतम अवधि, विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2009-14 अथवा इस संबंध में समय-समय पर भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किये अनुसार होनी चाहिए ।

x) तदनुसार, स्वर्ण ऋण की अधिकतम अवधि विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2009-14 के अनुसार, 270 दिन (अर्थात् 90 दिन विनिर्माण और निर्यात के लिए + 180 दिन कीमत निर्धारण तथा स्वर्ण ऋण की चुकौती के लिए) होती है ।

सी.13. स्वर्ण/कीमती धातुओं से निर्मित अथवा/और हीरे/अर्ध कीमती/कीमती रत्नों से जड़े हुए आभूषणों सहित स्वर्ण का किसी भी रूप में आयात

स्वर्ण/कीमती धातुओं से निर्मित अथवा/और हीरे/अर्ध कीमती/कीमती रत्नों से जड़े हुए आभूषणों सहित स्वर्ण का किसी भी रूप में आयात करने के लिए खोले गए साखपत्र की मीयाद पोतलदान की तारीख से 90 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिए एवं 100 प्रतिशत नकदी मार्जिन के के आधार पर होनी चाहिए।

सी.14. प्लैटिनम, पालाडियम, रोडियम, चांदी और कीमती/अर्ध कीमती रत्नों तथा कच्चे, कट तथा पॉलिश किये हुए हीरों का आयात

(ए) प्लैटिनम, पालाडियम, रोडियम और चांदी, कीमती/अर्ध कीमती रत्नों और कच्चे, कट तथा पॉलिश किये हुए हीरों के आयात के लिए खोले गये साख पत्र की मीयाद सहित 'आपूर्तिकर्ता' और 'क्रेता' की ऋण अवधि पोत-लदान की तारीख से 90 दिन से अधिक नहीं होनी चाहिए।

(बी) धातुओं और कच्चे, कट तथा पॉलिश किये हुए हीरों के आयात के संबंध में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी –I बैंक यह सुनिश्चित करें कि समुचित सावधानी की प्रक्रिया अपनायी जाती है तथा ऐसे लेनदेन करते समय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी अपने ग्राहकों को जानने संबंधी सभी मानदंडों और एंटी मनी लांडरिंग संबंधी दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है। इसके अतिरिक्त, आयातकों के कारोबार में भारी अथवा असामान्य वृद्धि की ध्यानपूर्वक जांच यह सुनिश्चित करने के लिए की जाए कि लेनदेन वास्तविक हैं और ब्याज कमाने अथवा विदेशी मुद्रा अर्जित करने के इरादे से नहीं किये गये हैं। इन धातुओं और कच्चे, कट तथा पॉलिश किये हुए हीरों के आयात संबंधी अन्य सभी अनुदेश लागू बने रहेंगे।

[20 फरवरी 2013 का ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.83]

सी.15. आयात लेनदारी (फैक्टरिंग)

(i) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, रिज़र्व बैंक के अनुमोदन के बिना, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फैक्टरिंग कंपनियों, अधिमानतः फैक्टर्स चेन इंटरनेशनल के सदस्य के साथ, आयात लेनदारी (फैक्टरिंग) की व्यवस्था कर सकते हैं।

(ii) उन्हें आयात से संबंधित मौजूदा विदेशी मुद्रा निर्देशों, प्रचलित निर्यात-आयात नीति और रिज़र्व बैंक द्वारा इस बारे में जारी किसी अन्य दिशानिर्देश/निदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।

सी.16. वाणिज्यिक (मर्चेंटिंग) व्यापार

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक , वास्तविक वाणिज्यिक व्यापार लेनदेन अथवा मध्यवर्ती व्यापार लेनदेन करते समय आवश्यक पूर्वोपाय करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि:

(ए) लेनदेन से संबधित माल भारत में आयात करने के लिए अनुमत हैं और निर्यात खंड और आयात खंड के लिए क्रमश: निर्यात (घोषणा फार्म के सिवाय) और आयात (आयात पत्र के सिवाय) के लिए लागू सभी नियमों, विनियमों और निदेशों का अनुपालन किया जाता है।

(बी) संपूर्ण वाणिज्यिक व्यापार संबंधी लेनदेन 6 माह के भीतर पूरा किया जाता है।

(सी) लेनदेनों में विदेशी मुद्रा परिव्यय तीन महीने से अधिक अवधि के लिए नहीं है।

(डी) निर्यात खंड के लिए समय पर भुगतान प्राप्त किया जाता है।

(ई) जहां निर्यात खंड के लेनदेनों का भुगतान आयात के भुगतान से पहले होता है, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक यह सुनिश्चित करें कि भुगतान शर्तें ऐसी हों कि लेनदेन के निर्यात खंड के लिए प्राप्त भुगतान से लेनदेन के आयात खंड की देयता बिना विलंब समाप्त की जाती है।

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक कृपया नोट करें कि आपूर्तिकर्ता ऋण अथवा क्रेता ऋण दोनों के रूप में अल्पावधि ऋण वाणिज्यिक व्यापार अथवा मध्यावर्ती व्यापार लेनदेनों के लिए उपलब्ध नहीं है।


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र में समेकित किए गए परिपत्रों की सूची

माल और सेवाओं का आयात

क्रम

परिपत्र संख्या

दिनांक

1.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 106

19 जून 2003

2.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 4

19 जुलाई 2003

3.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.9

18 अगस्त 2003

4.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.15

17 सितंबर 2003

5.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.49

15 दिसंबर 2003

6.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.66

6 फरवरी 2004

7.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.72

20 फरवरी 2004

8.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.2

9 जुलाई 2004

9.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.34

18 फरवरी 2005

10.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.1

12 जुलाई 2005

11.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.33

28 फरवरी 2007

12.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.34

2 मार्च 2007

13.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.63

25 मई 2007

14.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.77

29 जून 2007

15.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.18

7 नवंबर 2007

16.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.37

16 अप्रैल 2008

17.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.03

4 अगस्त 2008

18.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.08

21 अगस्त 2008

19.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.09

21 अगस्त 2008

20.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.12

28 अगस्त 2008

21.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.13

1 सितंबर 2008

22.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.15

8 सितंबर 2008

23.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.21

29 दिसंबर 2009

24.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.56

29 अप्रैल 2011

25.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.59

06 मई 2011

26.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.82

21 फरवरी 2012

27.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.83

27 फरवरी 2012

28.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.103

03 अप्रैल 2012

29.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.83

20 फरवरी 2013

30.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.103

13 मई 2013

31.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं. 107

04 जून 2013

32.

एपी (डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.122

27 जून 2013

 
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