आरबीआइ/2006-07/108
ए पी(डीआइआर सिरीज़)परिपत्र सं.5
अगस्त 16, 2006
सेवा में
सभी श्रेणी I के प्राधिकृत व्यापारी बैंक
महोदया/महोदय,
अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के व्यक्तियों द्वारा भारत
में अचल संपत्ति की खरीद - भुगतान का प्रकार - स्पष्टीकरण
प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंकों का ध्यान समय-समय पर यथासंशोधित मई 3, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 21/2000 के विनियम सं. 3 और 4 की ओर आकर्षित किया जाता है।
2. उक्त अधिसूचना के विनियम 3 और 4 के अनुसार, भारत से बाहर निवासी भारतीय नागरिक तथा भारतीय मूल के व्यक्ति भारत में कृषि संपत्ति, बागान अथवा फार्म हाऊस से इतर किसी अचल संपत्ति का अभिग्रहण कर सकते हैं। यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे अभिग्रहण का भुगतान (i) भारत से बाहर के किसी स्थान से आवक प्रेषण के रूप में सामान्य बैंकिंग चैनल के माध्यम से भारत में प्राप्त निधियों अथवा (ii) विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1990 के प्रावधानों और समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बनाए गए विनियमों के अनुसार रखे गए किसी अनिवासी खाते में रखी गई निधियों में से किया जाएगा।
3. तदनुसार, ऐसे भुगतान यात्री चेकों अथवा विदेशी मुद्रा नोटों अथवा पैराग्राफ 2 में विशेष रूप से उल्लिखित को छोड़कर किसी अन्य प्रकार से नहीं किए जा सकते हैं।
4. इस संबंध में जारी फरवरी 10, 2006 की अधिसूचना सं. फेमा 146/2006-आरबी [विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में अचल संपत्ति का अभिग्रहण और अंतरण) विनियमावली, 2000 की एक प्रति संलग्न है।
5. प्राधिकृत व्यापारी - श्रेणी I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत करा दें।
6. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है।
भवदीय
(सलीम गंगाधरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक |