16 जून 2021
आरबीआई बुलेटिन - जून 2021
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का जून 2021 का अंक जारी किया। बुलेटिन में मौद्रिक नीति वक्तव्य, तीन आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।
तीन आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारत के सॉवरेन प्रतिफल वक्र (यील्ड कर्व) के आकार का एक समष्टि-आर्थिक अवलोकन; और III. भारत में राजकोषीय ढांचा और व्यय की गुणवत्ता।
I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी की दूसरी लहर से जूझ रही है, हालांकि सतर्क आशावाद लौट रहा है। वर्तमान आकलन के अनुसार, दूसरी लहर की क्षति मुख्य रूप से घरेलू मांग को प्रभावित करने के संदर्भ में है। आशावादी पक्ष देखें, तो कुल आपूर्ति की स्थिति के कई पहलू - कृषि और स्पर्श-रहित सेवाएं मजबूती से कायम हैं, जबकि महामारी प्रोटोकॉल के बीच पिछले वर्ष की तुलना में औद्योगिक उत्पादन और निर्यात में वृद्धि हुई है। आगे चलकर, समुत्थान का मार्ग टीकाकरण की गति और पैमाने से तय होगा। महामारी की स्थिति से उठ खड़े होने लायक और पहले से मौजूद चक्रीय और संरचनात्मक बाधाओं से खुद को मुक्त करने लायक सुदृढ़ता और आधारभूत तत्व अर्थव्यवस्था में हैं।
II. भारत के सॉवरेन यील्ड कर्व के आकार का एक समष्टि-आर्थिक अवलोकन
अध्ययन में प्रतिफल वक्र (यील्ड कर्व) के समष्टि-आर्थिक अवधारकों (मैक्रोइकॉनॉमिक डिरमिनेंट्स) को देखने पर यह पाया गया है कि 2019 की दूसरी तिमाही से प्रतिफल वक्र में अधोमुखी झुकाव आया है, जो मौद्रिक नीति के अति-निभावी रुख को दर्शाता है। चलनिधि प्रचुरता के कारण अल्पकालिक ब्याज दरों में अनुपात से अधिक कमी और इसके साथ अति-दीर्घावधि प्रतिभूति (अल्ट्रा-लॉन्ग डेटेड पेपर) जारी करने में वृद्धि के कारण प्रतिफल वक्र (यील्ड कर्व) की ढलान (स्लोप) को बढ़ा हुआ पाया गया है। नमूना-बाह्य पूर्वानुमानों (आउट-ऑफ सैंपल फॉरकास्ट) से मौजूदा स्तरों से लंबी अवधि के प्रतिफल के कमी की गुंजाइश के संकेत मिलते हैं।
III. भारत में राजकोषीय ढांचा और व्यय की गुणवत्ता
कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया भर की सरकारों की ओर से भारी राजकोषीय कार्रवाई की आवश्यकता हुई। भारत जब राजकोषीय प्रोत्साहन को समेटने और राजकोषीय समायोजन की राह पर अग्रसर है, यह जरूरी है कि 'कितना' की तुलना में 'कैसे' पर बल दिया जाए। इस आलेख में कुछ मात्रात्मक संकेतकों का प्रस्ताव है, यथा, पूंजीगत परिव्यय की तुलना में राजस्व व्यय के अनुपात और सकल राजकोषीय घाटे की तुलना में राजस्व घाटे के अनुपात के साथ इनका प्रारंभिक स्तर जिसे एक सतत वृद्धि पथ (ग्रोथ ट्रैजेक्टरी) के लिए राजकोषीय ताने-बाने में में उपयुक्त रूप से बुना जा सकता है। इस अध्ययन के कुछ मुख्य अंश इस प्रकार हैं:
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क्रॉस-कंट्री अनुभव से पता चलता है कि टिकाऊ राजकोषीय समेकन प्राप्त करने में व्यय कटौतियां, विशेष रूप से वर्तमान व्यय में स्थायी कमी से जुड़ी कटौतियां राजस्व बढ़ाने के उपायों की तुलना में अधिक प्रभावी पाई गई हैं।
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आलेख में सरकारी व्यय की गुणवत्ता के छह संकेतकों का उपयोग करके केंद्र और राज्यों के व्यय की गुणवत्ता का विश्लेषण किया गया है, अलग-अलग और एक सम्मिश्र संकेतक, दोनों माध्यमों से।
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भारत में पूंजीगत परिव्यय और राजस्व व्यय के अनुपात (आरईसीओ) का प्रारंभिक स्तर लगभग 5.0 पाया गया है, जबकि सकल राजकोषीय घाटे में राजस्व घाटे के हिस्से (आरडी-जीएफडी) की सीमा सामान्य सरकार (केंद्र और राज्य) के लिए 40 प्रतिशत पाई गई है।
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अंत में, आलेख में कुछ प्रमुख राजकोषीय संकेतकों को दर्शाया गया है जिनको जीडीपी के 4.5 प्रतिशत के जीएफडी लक्ष्य के साथ व्यय के गुणवत्ता आधारों (कनसिडरेशंस) को मिलाकर 2025-26 तक प्राप्त किया जा सकता है जैसा कि केंद्रीय बजट 2021-22 में कहा गया है।
(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2021-2022/374 |