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रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 07/2020: फर्म के निवेश पर लीवरेज का प्रभाव: भारतीय अनुभव को डिकोड करना

1 जुलाई 2020

रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 07/2020:
फर्म के निवेश पर लीवरेज का प्रभाव: भारतीय अनुभव को डिकोड करना

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्यपत्रक श्रृंखला* के तहत एक वर्किंग पेपर रखा जिसका शीर्षक “फर्म के निवेश पर लीवरेज का प्रभाव: भारतीय अनुभव को डिकोड करना” है। इस पेपर के लेखक अवधेश कुमार शुक्ला और तारा शंकर शॉ हैं।

यह पेपर भारत में फर्मों के लीवरेज और उनके निवेश व्यवहार के बीच संबंध पर केंद्रित है। अनुभवजन्य परिणाम बताते हैं कि फर्म-स्तरीय लीवरेज, निवेश चक्र की गतिविधियों के संबंध में शुरुआती संकेत प्रदान कर सकता है। इसके अलावा, पेपर पाता है कि फर्म का लीवरेज गैर-रैखिक तरीके से अपनी निवेश गतिविधि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, अर्थात निचले स्तर पर फर्म के लीवरेज का इसके निवेश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जबकि उच्च स्तर पर यह नकारात्मक रूप से निवेश को प्रभावित करता है। पेपर से यह निष्कर्ष निकलता है कि बैंकों की तुलनपत्र को साफ करने और गैर-वित्तीय कॉरपोरेट्स द्वारा डीलीवरेज करने की पहल से निवेश चक्र को पुनर्जीवित करने में मदद मिलनी चाहिए। पूंजी संरचना के ऋण और ट्रेड –ऑफ सिद्धांत की एजेंसी लागत के अनुरूप परिणाम हैं, जहां फर्म ऋण की लागत और लाभों को संतुलित करके लीवरेज हेतु लक्ष्य निर्धारित करते हैं।

अजीत प्रसाद
निदेशक  

प्रेस प्रकाशनी: 2020-2021/5


* रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और इस पर अधिक चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्‍वरूप का ध्यान रखा जाए।


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