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प्रेस प्रकाशनी

मई 2020 के लिए मासिक बुलेटिन

14 मई 2020

मई 2020 के लिए मासिक बुलेटिन

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन के मई 2020 अंक को जारी किया। बुलेटिन में रिज़र्व बैंक के गवर्नर का साक्षात्कार, दो लेख और वर्तमान आँकड़े शामिल हैं।

दो लेख हैं: I. शब्दों के सामर्थ्य से मुद्रास्फीति का संकेत देना; II. ऋण हानि प्रावधान के निर्धारक: भारतीय बैंकों के मामले।

I. शब्दों के सामर्थ्य से मुद्रास्फीति का संकेत देना

मीडिया, सूचना के प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण चैनल के रूप में, जनता की भावनाओं और अपेक्षाओं को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। यह लेख वैकल्पिक संकेतकों का निर्माण करता है जो अर्थव्यवस्था की स्थिति का आकलन करने के लिए उपयोगी हो सकता है। मीडिया रिपोर्टों से उच्च आवृत्ति की असंरचित जानकारी का उपयोग करते हुए और बिग डेटा तकनीकों को लागू कर के, यह लेख भारत में खुदरा मुद्रास्फीति के संदर्भ में एक भावना सूचकांक का निर्माण करता है, और अनुभवजन्य रूप से उनके इंटर-लिंकेज की जांच करता है।

मुख्य विशेषताएं:

  • उचित फिचर चयन पद्धति का परिनियोजन करते हुए, सपोर्ट वेक्टर मशीनों (एसवीएम) क्लासिफायर का उपयोग करते हुए मीडिया रिपोर्टों के असंरचित समाचार पाठ से भावना निकाली गई है ।

  • मुद्रास्फीति पर भावनाओं का संभावित अंतर का पता लगाने के लिए समाचार के आगमन के समय को ध्यान में रखा जाता है।

  • अनुभवजन्य विश्लेषण बताता है कि भावना सूचकांक मुद्रास्फीति को बहुत अच्छी तरह से ट्रैक करता है, और इसकी दिशात्मक सटीकता, उच्च और सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण है।

  • कारण विश्लेषण से संकेत मिलता है कि मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान के लिए मीडिया भावना सूचकांक में महत्वपूर्ण व्याख्यात्मक सामर्थ्य हो सकता है।

II. ऋण हानि प्रावधान के निर्धारक: भारतीय बैंकों के मामले

वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) ने बैंकों के परिचालन में प्रचक्रीयता की ओर ध्यान आकर्षित किया है। जीएफसी के बाद, बैंकों द्वारा अपनाई जा रही लेखांकन पद्धति में नए सिरे से रुचि पैदा हुई है। ऐसा ही एक क्षेत्र ऋण हानि प्रावधान है, जो बैंक भविष्य के ऋण घाटे की भरपाई के लिए निर्धारित करते हैं।

मुख्य विशेषताएं:

  • अध्ययन में भारतीय बैंकों द्वारा ऋण हानि प्रावधान में प्रचक्रीयता के साथ-साथ ऋण हानि प्रावधान के माध्यम से आय सुचारू करने के भी अनुभवजन्य साक्ष्य मिलते हैं।

  • निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा प्रावधानीकरण अधिक प्रचक्रीय पाए गए।

  • इस चक्रीय पैटर्न को पहचानते हुए, एक कुशल ऋण हानि प्रावधान प्रबंधन यह कहता है कि बैंकों को अच्छे समय के दौरान ऋण हानि भंडार का निर्माण करना चाहिए, ताकि जब अर्थव्यवस्था चक्रीय मंदी का सामना कर रही हो तो उसे सहयोग प्रदान किया जा सके।

  • भारतीय लेखा मानक (इंड-एएस) का कार्यान्वयन, जिसमें बैंकों को ऋण की उत्पत्ति के समय से अपेक्षित ऋण हानि के लिए प्रावधान करने की आवश्यकता होती है, बजाय ‘ट्रिगर इवेंट्स’ संकेत के निकटस्थ नुकसान की प्रतीक्षा करने के, इससे प्रचक्रीयता समस्या को कुछ हद तक दूर करने में मदद की उम्मीद होती है।

अजीत प्रसाद
निदेशक   

प्रेस प्रकाशनी: 2019-2020/2359


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