27 मार्च 2018
डीआरजी अध्ययन सं. 44:
भारत में मौद्रिक नीति अंतरण में वित्तीय घर्षण की भूमिका
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर डीआरजी अध्ययन जारी किया है जिसका शीर्षक है – “भारत में मौद्रिक नीति अंतरण में वित्तीय घर्षण की भूमिका”। उक्त अध्ययन डॉ. शेसाद्री बनर्जी, डॉ. हरेन्द्र बेहेरा, श्री संजीब बोरदोलोई और श्री राकेश कुमार द्वारा सह-लेखित है।
इस अध्ययन में एक अपूर्ण रूप से प्रतिस्पर्धी बैंकिंग क्षेत्र के साथ न्यू कीन्सेनियन डायनेमिक स्टेकास्टिक जनरल इक्विलिब्रियम (एनके-डीएसजीई) विकसित किया है तथा भारत में मौद्रिक नीति अंतरण में विभिन्न वित्तीय घर्षणों की भूमिका की जांच की गई है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:
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अध्ययन में मौद्रिक नीति आश्चर्यों (शॉक्स) का कमजोर अंतरण पाया गया है। सकारात्मक नीति दर आश्चर्यों के बाद अर्थव्यवस्था में ब्याज दर में वृद्धि हुई है, चाहे यह कम गति से है और क्रेडिट के लिए मांग कम हो गई है। इससे उपभोग और निवेश मांग में कमी के माध्यम से अर्थव्यवस्था के मांग पक्ष और भौतिक पूंजी की प्रतिस्थापन लागत के माध्यम से आपूर्ति पक्ष से उत्पन्न होने वाले संकुचनकारी प्रभाव उत्पन्न हो गए हैं। इस दो तरफा संकुचन से उत्पादन के कारकों, विशेषकर श्रम में मांग तेजी से कम हुई है जो समग्र आउटपुट और मुद्रास्फीति को नीचे ला रहा है। नकारात्मक नीति दर आश्चर्य से ब्याज दर कम हुई हैं जिन्होंने बाद में अर्थव्यवस्था में विस्तारकारी प्रभाव उत्पन्न कर दिए हैं।
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मौद्रिक नीति अंतरण में सुधार होगा यदि वित्तीय प्रणाली में घर्षण कम होता है, विशेषकर जमाकर्ता आधार के मामले में अधिक वित्तीय समावेशन होने से और परिवारों की संपार्श्विक बाधाओं के सहज होने से। यह संभावना है कि संपार्श्विक के सहज मानदंडों से परिवार अपना उधार बढ़ा सकेंगे जो आगे अंतरण में सुधार करेगा।
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बनावटी प्रयोग दर्शाते हैं कि पूर्वानुमान आधारित मुद्रास्फीति और आउटपुट अंतराल के साथ टेलर नियम का मानक रूप मुद्रास्फीति को स्थिर करने और आउटपुट के लिए इष्टतम नियम है। वास्तव में, क्रेडिट चक्र और/अथवा आस्ति मूल्य चक्र को सहज बनाने के लिए नीति ब्याज दर को समायोजित करने से मुद्रास्फीति की अस्थिरता और आउटपुट बिगड़ जाता है। कुल मिलाकर, ऐसा प्रतीत होता है कि मौद्रिक नीति के माध्यम से वित्तीय स्थिरता को लक्ष्य बनाना आर्थिक स्थिरीकरण के उद्देश्य से उचित न हो।
* मजबूत विश्लेषणात्मक और अनुभवजन्य आधार के सहयोग से वर्तमान रुचि के विषयों पर तीव्र और प्रभावी नीतिगत अनुसंधान करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग में विकास अनुसंधान समूह (डीआरजी) का गठन किया है। डीआरजी अध्ययन भारतीय रिज़र्व बैंक के बाहर के विशेषज्ञों तथा बैंक के अंदर अनुसंधान प्रतिभा के पूल के बीच सहयोगात्मक प्रयासों का परिणाम है। व्यावसायिक अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं के बीच रचनात्मक चर्चा करने की दृष्टि से इन अध्ययनों को व्यापक प्रचलन हेतु जारी किया जाता है। डीआरजी अध्ययन भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर ही जारी किए जाते हैं और इनकी कोई मुद्रित प्रतियां उपलब्ध नहीं होंगी।
अजीत प्रसाद
सहायक परामर्शदाता
प्रेस प्रकाशनी : 2017-2018/2573 |