10 फरवरी 2018
फरवरी 2018 के लिए मासिक बुलेटिन
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का फरवरी 2018 अंक जारी किया। इसमें दो भाषण, एक लेख और वर्तमान सांख्यिकी दी गई है। उक्त लेख ‘जीडीपी आंकड़ों में सांख्यिकीय विसंगतियां: भारत से साक्ष्य’ विषय पर है।
I. जीडीपी आंकड़ों में सांख्यिकीय विसंगतियां: भारत से साक्ष्य
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आकलन में सांख्यिकीय विसंगतियां एक विश्वव्यापी अनुभवजन्य चुनौती है। भारत के जीडीपी आंकड़ों में, सांख्यिकीय विसंगतियां बड़ी और अस्थिर हैं किंतु उन्नत कवरेज़ और पद्धति में सुधार के साथ राष्ट्रीय लेखों को 2011-12 के नए आधार वर्ष में करने से आकलन त्रुटियां कम हो गई हैं। भारत के अनुभव की जांच करते हुए, यह लेख सिफारिश करता है कि केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (सीएसओ) आगे की सांख्यिकीय विसंगतियों के मिलान हेतु आपूर्ति-उपयोग सारणियों का उपयोग करने पर विचार कर सकता है।
इस लेख की मुख्य विशेषताएं निम्नानुसार हैं:
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भारतीय संदर्भ में, सांख्यिकीय विसंगतियां (i) राष्ट्रीय निपटान योग्य आय और इसके उपयोग खाते, (ii) पूंजी वित्त खाते और (iii) बाह्य लेनदेन खाते में विसंगतियों का मिश्रण हैं। परिपाटी के अनुसार, व्यय खाते पर जीडीपी में समेकित विसंगतियां रिपोर्ट की गई हैं।
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जीडीपी की हिस्सेदारी के रूप में, वर्तमान मूल्यों की तुलना में स्थिर मूल्यों में अधिक सांख्यिकीय विसंगतियां हैं।
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सांख्यिकीय विसंगतियां वार्षिक जीडीपी की तुलना में तिमाही जीडीपी में अधिक हैं।
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हाल की अवधि में, जीडीपी में सांख्यिकीय विसंगतियों की संख्या में लगातार कमी आई है जो आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए सीएसओ के संधारणीय प्रयास की ओर संकेत करती है।
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जीडीपी के अग्रिम अनुमानों की इसके अंतिम संशोधित अनुमानों के साथ तुलना दर्शाती है कि संशोधित अनुमानों में सांख्यिकीय विसंगतियां संपूर्ण स्थिति में उच्चतर हैं।
जोस जे. कट्टूर
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2017-2018/2180 |