आरबीआई/2012-13/131
डीपीएसएस सीओ (ईपीपीडी) / 98 / 04.03.01 / 2012-13
13 जुलाई 2012
एनईएफ़टी में भाग लेने वाले सभी बैंकों के
अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक/कार्यपालक अधिकारी
महोदय/महोदया
राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण प्रणाली (एनईएफ़टी) – ग्राहक प्रभारों को तर्कसंगत बनाना
कृपया दिनांक 03 नवम्बर 2010 के हमारे परिपत्र डीपीएसएस (सीओ) आरटीजीएस सं. 1008/04.04.002/2010-2011 का संदर्भ लें जो कि इलेक्ट्रानिक भुगतान उत्पादों पर लागू ग्राहक प्रभारों को तर्कसंगत बनाने के संबंध में था।
2. वर्ष 2005 में लागू की गई एनईएफ़टी प्रणाली में हाल के वर्षों में बहुत भारी वृद्धि हुई, जिससे इसकी लोकप्रियता और ग्राहकों के बीच बढ़ती स्वीकृति परिलक्षित होती है। इस वृद्धि के बावजूद यह पाया गया है कि कई बैंक अभी भी अपने ग्राहकों पर अधिकतम स्वीकृत प्रभार लगा रहे हैं। यह वांछनीय है कि बढ़ते हुए लेनदेनों के कारण होने वाले लाभों का फायदा ग्राहकों को भी मिले ताकि चेक/डीडी जैसे कागज आधारित जटिल तंत्र की जगह इलेक्ट्रानिक भुगतान प्रणाली के प्रयोग को और अधिक बढ़ावा दिया जा सके। यह भी आवश्यक समझा जा रहा है कि बड़ी संख्या में वित्तीय समवेशन कार्यक्रमों के अंतर्गत शामिल किए जा रहे लोगों को एनईएफ़टी जैसे सक्षम विप्रेषण तंत्र के माध्यम से वहन करने योग्य वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध कराई जा सकें।
3. तदनुसार, हितधारकों से परामर्श के पश्चात समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है कि एनईएफ़टी लेनदेनों के लिए बैंकों द्वारा लिए जाने वाले ग्राहक प्रभारों को निम्नलिखित अनुसार तर्कसंगत बनाया जाए:
राशि सीमा |
अधिकतम प्रभार (सेवा कर रहित) |
`10,000/- तक की राशि |
` 2.50/- |
`10,001/- से `1 लाख तक की राशि |
` 5/- |
`1 लाख से अधिक और `2 लाख तक की राशि |
`15/- |
`2 लाख से अधिक की राशि |
`25/- |
4. यह ध्यान रहे कि बैंक यदि चाहें तो अपने ग्राहकों से उपर्युक्त सीमा तक निर्दिष्ट प्रभार जो कि अधिकतम हैं, ले सकते हैं।
5. सभी सदस्य बैंकों से यह अनुरोध है कि वे ग्राहकों को इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करें।
6. ये प्रभार 01 अगस्त 2012 से प्रभावी होंगे।
7. ये निर्देश भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (2007 का 51) की धारा 18 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए जा रहे हैं।
कृपया इस परिपत्र की प्राप्ति की सूचना दें और अनुपालन सुनिश्चित करें।
भवदीय
(जी. श्रीनिवास)
महाप्रबंधक और प्रभारी अधिकारी |