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मास्टर परिपत्र

मास्टर परिपत्र - आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) और सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर)

आरबीआई/2013-14/64
बैंपविवि. सं. आरईटी बीसी.19 /12.01.001/2013-14

1 जुलाई 2013
10 आषाढ़ 1935 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

मास्टर परिपत्र - आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर)
और सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर)

कृपया उपर्युक्त विषय पर दिनांक 2 जुलाई 2012 का मास्टर परिपत्र आरबीआइ/2012-13/76 बैंपविवि. सं. आरईटी. बीसी. 22/12.01.001/2012-13 देखें, जिसमें सीआरआर/एसएलआर पर अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को 30 जून 2012 तक जारी अनुदेशों/दिशानिर्देशों को शामिल किया गया था। उक्त मास्टर परिपत्र को इस विषय पर 30 जून 2013 तक जारी अनुदेशों को शामिल करते हुए यथोचित रूप में अद्यतन किया गया है । इस मास्टर परिपत्र की एक प्रति संलग्न है। इस मास्टर परिपत्र को भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी प्रदर्शित किया गया है।

भवदीय

(सुधा दामोदर)
मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नक :यथोक्त


विषय-सूची

1.

प्रस्तावना

1.1

आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर)

1.2

आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखना

1.3

वर्धमान आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखना

1.4

मांग और मीयादी देयताओं की गणना

1.5

मांग देयताएं

1.6

मीयादी देयताएं

1.7

अन्य मांग और मीयादी देयताएँ

1.8

बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियां

1.9

विदेश स्थित बैंकों से उधार

1.10

विप्रेषण सुविधाओं के लिए प्रतिनिधि बैंकों के साथ व्यवस्था

1.11

मांग और मीयादी देयताओं/निवल मांग और मीयादी देयताओं की गणना में शामिल न की जाने वाली देयताएं

1.12

छूट प्राप्त श्रेणियां

1.13

विदेशी मुद्रा अनिवासी खातों (बैंक) और अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा खातों से ऋण

1.14

आरक्षित नकदी निधि अनुपात की गणना की क्रियाविधि

1.15

दैनिक आधार पर आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखना

1.16

आरक्षित नकदी निधि अनुपात के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा रखे गए नकदी शेषों पर ब्याज का भुगतान नहीं

1.17

फार्म ए (सीआरआर) में पाक्षिक विवरणी

1.18

अर्थ दंड

2

सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर)

2.1

सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) की गणना की क्रियाविधि

2.2

सांविधिक चलनिधि अनुपात के लिए अनुमोदित प्रतिभूतियों का वर्गीकरण तथा मूल्यांकन

2.3

अर्थदंड

2.4

फॉर्म VIII (एसएलआर) में विवरणी प्रस्तुत करना

2.5

मांग और मीयादी देयताओं की गणना की शुद्धता सांविधिक लेखा-परीक्षकों द्वारा प्रमाणित किया जाना

 

अनुबंध - I

 

अनुबंध - II

 

परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र - आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर)
और सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर)

क॰ उद्देश्य- इस परिपत्र में आरक्षित निधि संबंधी अपेक्षाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है ।

ख॰ वर्गीकरण -बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35क के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी सांविधिक दिशानिर्देश।

ग॰ पूर्व अनुदेश- यह मास्टर परिपत्र भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए परिपत्रों में निहित ऐसे अनुदेशों का संकलन है जो इस परिपत्र की तारीख को लागू हैं।

घ॰प्रयोज्यता- यह परिपत्र क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों पर लागू होगा।

च॰ स्वरूप

1. प्रस्तावना

1.1 आरक्षित नकदी निधि अनुपात

2.1 सांविधिक चलनिधि अनुपात

2. दिशानिर्देश

1.1 से 1.18 आरक्षित नकदी निधि अनुपात की गणना की क्रियाविधि

2.1 से 2.5 सांविधिक चलनिधि अनुपात की गणना की क्रियाविधि

3. अनुबंध

4. परिशिष्ट

1. प्रस्तावना

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा आरक्षित निधि संबंधी सांविधिक अपेक्षाओं, अर्थात् आरक्षित नकदी निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात रखने से संबंधित अपेक्षाओं के अनुपालन की निगरानी करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42(2) के अंतर्गत फार्म ए विवरणी (सीआरआर के लिए) तथा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 के अंतर्गत फार्म VIII विवरणी (एसएलआर के लिए) नामक सांविधिक विवरणियाँ निर्धारित की हैं।

1.1 आरक्षित नकदी निधि अनुपात

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (1) के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक देश में मौद्रिक स्थिरता स्थापित करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए बिना किसी न्यूनतम अथवा उच्चतम दर के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) निर्धारित करता है।

1.2 आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखना

वर्तमान में, 9 फरवरी 2013 से आरंभ होनेवाले पखवाड़े से, आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) पैरा 1.11 और 1.12 में वर्णित छूटों के समायोजन के बाद किसी बैंक की कुल मांग और मीयादी देयताओं के 4 प्रतिशत पर निर्धारित किया गया है।

1.3 वर्धमान आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखना

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (1-ए) के अनुसार अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे उक्त अधिनियम की धारा 42 (1) के अंतर्गत निर्धारित शेष राशियों के अलावा, अतिरिक्त औसत दैनिक शेष रखें जिसकी राशि भारत के राजपत्र में समय-समय पर प्रकाशित अधिसूचना में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित दर से कम नहीं होगी। ऐसी अतिरिक्त शेष राशि की गणना, अधिसूचना में निर्दिष्ट तारीख को कारोबार की समाप्ति पर बैंक की कुल मांग और मीयादी देयताओं की तुलना में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (2) में निर्दिष्ट विवरणी में दिखाई गई कुल मांग और मीयादी देयताओं की अतिरिक्त राशि के आधार पर की जाएगी।

वर्तमान में, बैंकों द्वारा किसी प्रकार का वर्धमान आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखना अपेक्षित नहीं है।

1.4 मांग और मीयादी देयताओं की गणना

किसी बैंक की देयताएं मांग या मीयादी जमाराशियों या उधारों या देयताओं की अन्य विविध मदों के रूप में हो सकती हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 के अंतर्गत दी गयी परिभाषा के अनुसार किसी बैंक की देयताएं बैंकिंग प्रणाली के प्रति या दूसरों के प्रति मांग और मीयादी जमाराशियों के रूप में या उधारों के रूप में या देयताओं की अन्य विविध मदों के रूप में हो सकती हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (1सी) के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक को इस बात के लिए अधिकृत किया गया है कि वह किसी भी खास देयता को वर्गीकृत कर सके। अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि किसी खास देयता के वर्गीकरण के संबंध में कोई संदेह होने पर वे आवश्यक स्पष्टीकरण के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से संपर्क करें।

1.5 मांग देयताएं

"मांग देयताओं" के अंतर्गत ऐसी सभी देयताएं शामिल हैं जो मांग पर देय हैं। इनके अंतर्गत चालू जमाराशियां, बचत बैंक जमाराशियों का मांग देयता वाला भाग, साखपत्रों/गारंटी के बदले धारित मार्जिन, अतिदेय मीयादी जमाराशियाँ, नकद प्रमाणपत्रों और संचयी/आवर्ती जमाराशियों में शेष राशियां, बकाया तार अंतरण, मेल अंतरण, मांग ड्राफ्ट, अदावी जमाराशियां, नकद ऋण खाते में जमाशेष और उन अग्रिमों के लिए जमानत के रूप में रखी गयी जमाराशियां जो मांग पर देय हैं, शामिल हैं। बैंकिंग प्रणाली के बाहर से माँग और अल्प सूचना पर प्रतिदेय राशि को अन्य के प्रति देयता के समक्ष दर्शाया जाना चाहिए।

1.6 मीयादी देयताएं

मीयादी देयताएं वे हैं जो मांग से अन्यथा देय हैं तथा इनके अंतर्गत मीयादी जमाराशियां, नकदी प्रमाणपत्र, संचयी और आवर्ती जमाराशियां, बचत बैंक जमाराशियों का मीयादी देयता वाला भाग, स्टाफ जमानत जमाराशियां, यदि मांग पर प्रतिदेय न हो तो साख पत्र के बदले धारित मार्जिन, ऐसे अग्रिमों के लिए जमानत के रूप में रखी गयी जमाराशियां जो मांग पर प्रतिदेय न हों और स्वर्ण जमाराशियां शामिल हैं।

1.7 अन्य मांग और मीयादी देयताएं

अन्य मांग और मीयादी देयताओं के अंतर्गत शामिल हैं - जमाराशियों पर उपचित ब्याज, देय बिल, अदत्त लाभांश, उचंत खाते में पड़ी हुई ऐसी शेष राशि जो अन्य बैंकों या जनता को देय हो, शाखा समायोजन खाते के अंतर्गत निवल जमा शेष, "बैंकिंग प्रणाली" को देय ऐसी राशि जो जमाराशियों या उधारों के रूप में न हो। ऐसी देयताएं (i) अन्य बैंकों की ओर से बिलों के संग्रहण, (ii) अन्य बैंकों को देय ब्याज और इसी तरह की अन्य मदों के चलते निर्मित हो सकती हैं। यदि कोई बैंक "अन्य मांग और मीयादी देयताओं" के योग में से बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयताओं को अलग न कर सकता हो तो समग्र `अन्य मांग और मीयादी देयताएं' फॉर्म ए में विवरणी की मद II (सी) `अन्य मांग और मीयादी देयताएं' के अंतर्गत दर्शायी जानी चाहिए और सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को इसपर औसत आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखना होगा।

अन्य बैंकों को जारी किया गया सहभागिता प्रमाणपत्र, अंतर शाखा समायोजन खाते में पांच वर्ष से अधिक समय से पृथक्कृत बकाया जमा प्रविष्टियों से संबंधित अवरुद्ध खाते में बकाया शेष, खरीदे गये/भुनाये गये बिलों पर मार्जिन राशि और बैंकों द्वारा विदेश से उधार लिया गया सोना भी अन्य मांग और मीयादी देयताओं के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिए। संपार्श्विकीकृत डेरिवेटिव लेनदेन के अंतर्गत प्राप्त नकदी सम्पार्श्विक को आरक्षित निधि अपेक्षा के प्रयोजन से बैंक के डीटीएल/एनडीटीएल में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि इनका स्वरूप `बाह्य देयताओं' जैसा होता है।

जमाराशियों पर उपचित ब्याज की गणना (विभिन्न प्रकार के खातों पर लागू ब्याज गणना की विधियों के अनुसार) प्रत्येक रिपोर्टिंग पखवाड़े में की जानी चाहिए, ताकि इस संबंध में उनकी देयता उसी पखवाड़े की विवरणी की कुल निवल मांग और मीयादी देयताओं में सही-सही व्यक्त हो।

1.8 बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियां

बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियों के अंतर्गत बैंकों के पास चालू खातों में शेष, बैंकों और अधिसूचित वित्तीय संस्थाओं के पास अन्य खातों में शेष, बैंकिंग प्रणाली को ऐसे ऋणों या जमाराशियों के रूप में उपलब्ध करायी गयी निधियां जो 15 दिनों या उससे कम की मांग या अल्प सूचना पर चुकौती योग्य हों और बैंकिंग प्रणाली को उपलब्ध कराये गये ऐसे ऋण जो मांग और अल्प सूचना पर चुकौती योग्य राशि से भिन्न हो। बैंकिंग प्रणाली से प्राप्त होनेवाली कोई अन्य राशि, जो उपर्युक्त किन्हीं मदों के अंतर्गत वर्गीकृत नहीं की जा सकती, बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियों के रूप में मानी जानी चाहिए।

1.9 भारत स्थित बैंकों द्वारा विदेशों से उधार

भारत स्थित बैंकों द्वारा विदेशों से लिये गये ऋण/उधार "अन्यों के प्रति देयताएं" माने जाएंगे तथा ऐसे मामलों में आरक्षित निधि संबंधी अपेक्षाएं लागू होंगी। विदेशों में जुटाए तथा रखे गए अपर टियर II लिखतों को आरक्षित निधि अपेक्षाओं के प्रयोजन के लिए मांग और मीयादी देयताओं की गणना करने के लिए देयता माना जाएगा।

1.10 विप्रेषण सुविधाओं के लिए प्रतिनिधि बैंकों के साथ व्यवस्था

विप्रेषण सुविधा योजना के अंतर्गत जब कोई बैंक किसी ग्राहक से निधि स्वीकार कर लेता है तब ऐसी निधि उसकी बहियों में देयता (अन्यों के प्रति देयता) बन जाती है। निधि स्वीकार करनेवाले बैंक की देयता तभी समाप्त होगी जब प्रतिनिधि बैंक, निधि स्वीकार करनेवाले बैंक के ग्राहकों को जारी किये गये ड्राफ्टों को स्वीकार कर लेगा। अत: विप्रेषण सुविधा योजना के अंतर्गत निधि स्वीकार करनेवाले बैंक द्वारा प्रतिनिधि बैंक पर जारी किये गये ड्राफ्टों के संबंध में ऐसी अदत्त शेष राशि, निधि स्वीकार करनेवाले बैंक की बहियों में `भारत में अन्यों के प्रति देयता' शीर्ष के अंतर्गत बाहरी देयता के रूप में दिखायी जानी चाहिए तथा उसे आरक्षित नकदी निधि/सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन के लिए निवल मांग और मीयादी देयताओं की गणना हेतु हिसाब में लिया जाना चाहिए।

प्रतिनिधि बैंकों द्वारा प्राप्त राशि उनके द्वारा `बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयता' के रूप में दिखायी जानी चाहिए, न कि `अन्यों के प्रति देयता' के रूप में, और इस तरह की देयता का समायोजन प्रतिनिधि बैंकों द्वारा अंतर-बैंक आस्तियों में से किया जाना चाहिए। इसी प्रकार ड्राफ्ट /ब्याज / लाभांश वारंट जारी करने वाले बैंकों द्वारा रखी गयी राशि उनकी बहियों में `बैंकिंग प्रणाली के पास आस्ति' मानी जानी चाहिए और इसका समायोजन उनकी अंतर-बैंक देयताओं में से किया जाना चाहिए।

1.11 मांग और मीयादी देयताओं/निवल मांग और मीयादी देयताओं की गणना में शामिल न की जाने वाली देयताएं

निम्नलिखित देयताएं आरक्षित नकदी निधि अनुपात के प्रयोजन के लिए देयताओं का अंग नहीं मानी जाएंगी :

क) प्रदत्त पूंजी, आरक्षित निधियाँ, बैंक के लाभ-हानि लेखे में कोई जमाशेष, भारतीय रिज़र्व बैंक से लिए गए किसी ऋण की राशि तथा निर्यात-आयात बैंक, राष्ट्रीय आवास बैंक, नाबार्ड, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक से पुनर्वित्त के रूप में ली गयी राशि।

ख) निवल आयकर प्रावधान।

ग) दावों से संबंधित निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम से प्राप्त ऐसी राशि जो उनके समायोजन न होने तक बैंकों द्वारा अपने पास रखी गयी हो।

घ) गारंटी लागू करने पर निर्यात ऋण गारंटी निगम से प्राप्त राशि।

ङ) न्यायालय का निर्णय न होने तक, दावों के तदर्थ निपटान से संबंधित बीमा कंपनी से प्राप्त राशि।

च) कोर्ट रिसीवर से प्राप्त राशि।

छ) बैंकर स्वीकृति सुविधा (बीएएफ) के अंतर्गत ऋण-सीमाओं के उपयोग के कारण उत्पन्न देयताएं।

ज) स्वयं सहायता समूहों के नाम पर अनुदान आरक्षित निधि खाते में रखी गई 10,000/- रुपये की जिला ग्रामीण विकास एजेंसी (डीआरडीए) की अनुदान राशि।

झ) ग्रामीण गोदामों के निर्माण /नवीकरण /विस्तार के लिए निवेश अनुदान योजना के अंतर्गत नाबार्ड द्वारा दिया गया अनुदान।

ञ) खरीद-बिक्री संविभाग के अंतर्गत डेरिवेटिव लेनदेन से होनेवाले निवल अप्राप्त लाभ /हानियां।

त) वार्षिक शुल्क तथा अन्य प्रभारों जैसे वापस न किए जानेवाले अग्रिम रूप से प्राप्त आय प्रवाह।

थ) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित पात्र वित्तीय संस्थाओं से किसी बैंक द्वारा पुन:भुनाए गए बिल।

द) लाभ और हानि खाता से सृजित प्रावधान, जो कोई विशिष्ट देयता न हो और वह किसी अतिरिक्त देयता को अंगीकार करने के कारण उत्पन्न हुआ हो।

1.12 छूट प्राप्त श्रेणियां

अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को निम्नलिखित देयताओं पर आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखने से छूट प्रदान की गयी है :

  1. बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42(1) के स्पष्टीकरण के खंड (घ) के अंतर्गत अभिकलित भारत में बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयताएं।

  2. एशियाई समाशोधन यूनियन (अमेरिकी डालर) खातों में जमाशेष।

  3. उनकी अपतटीय बैंकिंग इकाइयों के संबंध में मांग और मीयादी देयताएं।

  4. अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह अपेक्षित नहीं है कि वे 15 दिन और उससे अधिक तथा एक वर्ष तक की मूल परिपक्वता अवधि वाली अंतर-बैंक मीयादी जमाराशियों/मीयादी उधार संबंधी देयताओं को `बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयताएं' के अंतर्गत (फार्म ए की मद I) शामिल करें। इसी प्रकार बैंकों को 15 दिन और उससे अधिक तथा एक वर्ष तक की मूल परिपक्वता अवधि वाली मीयादी जमाराशियों और मीयादी ऋणों से संबंधित अंतर-बैंक आस्तियों को आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखने के प्रयोजन के लिए `बैंकिंग प्रणाली के पास आस्तियां'(फार्म ए की मद III) से अलग रखना चाहिए। इन जमाराशियों पर उपचित ब्याज को भी आरक्षित निधि अपेक्षाओं से छूट दी गई है।

1.13 विदेशी मुद्रा अनिवासी खातों (बैंक) और अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा जमाराशियों से ऋण

फॉर्म `ए' विवरणी में रिपोर्ट करते समय विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) खातों (एफसीएनआर [बी] जमा योजना) और अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा जमाराशियों से दिये गये ऋणों को, बैंक-ऋण के भाग के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। रिपोर्ट देने के प्रयोजन हेतु, बैंकों को अमरीकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो में अपनी विदेशी मुद्रा आस्तियों/देयताओं (विदेशी मुद्रा उधार सहित) को भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर घोषित भारिबैं संदर्भ दरों पर भारतीय रुपये में परिवर्तित करना चाहिए। जहाँ तक अन्य मुद्राऔं में आस्तियों/देयताओं के परिवर्तन का संबंध है, बैंक सूचना देने वाले शुक्रवार के दिवसांत से संबंधित न्यू यार्क समापन दर का प्रयोग कर ऐसी मुद्राओं को अमरीकी डॉलर में परिवर्तन करें और उसी दिन के लिए अमरीकी डॉलर/भारतीय रुपये की भारिबैं संदर्भ दर का प्रयोग कर उन्हें भारतीय रुपये में परिवर्तित करें।

1.14 आरक्षित नकदी निधि अनुपात की गणना की क्रियाविधि

बैंकों द्वारा नकदी प्रबंधन में सुधार लाये जाने के लिए सरलीकरण के उपाय के रूप में बैंकों द्वारा निर्धारित आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखने के मामले में एक पखवाड़े के विलंब की प्रक्रिया 6 नवंबर, 1999 से आरंभ होनेवाले पखवाड़े से शुरू की गयी है।

1.15 दैनिक आधार पर आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखना

बैंकों के पखवाड़े के भीतर नकदी प्रवाह के आधार पर आरक्षित निधि रखने की इष्टतम नीति का चयन करने के मामले में बैंकों को लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए अपेक्षित है कि वे 28 दिसंबर, 2002 से आरंभ होनेवाले पखवाड़े से रिपोटिर्गं पखवाड़े के लिए अपेक्षित औसत दैनिक आरक्षित निधि के 70 प्रतिशत तक न्यूनतम आरक्षित नकदी निधि अनुपात शेष पखवाड़े के सभी दिन रखें।

1.16 आरक्षित नकदी निधि अनुपात के अंतर्गत अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक में रखे गए पात्र नकदी शेष पर ब्याज का भुगतान नहीं

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 में, धारा 42 की उप-धारा (1बी) को हटाकर किए गए संशोधन के प्ररिप्रेक्ष्य में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा रखे गए आरक्षित नकदी निधि अनुपात शेषों पर 31 मार्च 2007 से प्रारंभ होने वाले पखवाड़े से भारतीय रिज़र्व बैंक किसी ब्याज का भुगतान नहीं करता है।

1.17 फॉर्म `ए' में पाक्षिक विवरणी

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42(2) के अंतर्गत सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे संबंधित पखवाड़े की समाप्ति से 7 दिनों के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को फॉर्म `ए' में एक अनंतिम विवरणी प्रस्तुत करें। इसका उपयोग प्रेस विज्ञप्ति तैयार करने के लिए किया जाता है। अंतिम फॉर्म `ए' संबंधित पखवाड़ा समाप्त होने के 20 दिनों के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को भेजा जाना आवश्यक है। "मुद्रा आपूर्ति : विश्लेषण और संकलन की पद्धति" पर गठित कार्यदल की सिफारिशों के आधार पर, भारत में स्थित सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए यह ज़रूरी है कि वे 9 अक्तूबर, 1998 से आरंभ होनेवाले पखवाड़े से फॉर्म `ए' विवरणी का ज्ञापन (जिसके अंतर्गत प्रदत्त पूंजी, आरक्षित निधियों, मीयादी जमाराशियों - अल्पावधि (एक वर्ष या उससे कम की संविदागत परिपक्वता अवधि की) तथा दीर्घावधि (एक वर्ष से अधिक संविदागत परिपक्वता अवधि की) सहित, जमा प्रमाणपत्रों, निवल मांग और मीयादी देयताओं, आरक्षित नकदी निधि अनुपात संबंधी कुल अपेक्षाओं इत्यादि का विवरण शामिल हो), फॉर्म `ए' विवरणी का अनुबंध `ए' (जिसके अंतर्गत सभी विदेशी मुद्रा देयताओं और आस्तियों का विवरण दिया गया हो) और फॉर्म `ए' विवरणी का अनुबंध `बी' (जिसके अंतर्गत अनुमोदित प्रतिभूतियों तथा गैर-अनुमोदित प्रतिभूतियों में किये गये निवेश, ज्ञापन संबंधी मदें जैसे शेयरों /डिबेंचरों/ प्राथमिक बाज़ार में बांडों में अभिदान और प्राइवेट प्लेसमेंट के माध्यम से अभिदान का विवरण हो) प्रस्तुत करें।

अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा अपनी बचत बैंक जमाराशियों के संबंध में मांग देयताएं और मीयादी देयताओं के अंश की गणना की वर्तमान पद्धति, जो प्रत्येक वर्ष 30 सितंबर और 31 मार्च को कारोबार की समाप्ति की स्थिति पर आधारित होती है (देखें 19 नवंबर 1997 का भा. रि. बैं. परिपत्र बैंपविवि. सं. बीसी 142/ 09.16.001/97-98), बचत बैंक जमाराशियों पर दैनिक गुणफल के आधार पर ब्याज देने की नई प्रणाली में भी जारी रहेगी। बैंकों को छमाही अवधि के दौरान प्रत्येक माह में रखी गयी न्यूनतम शेष राशियों के औसत को बचत बैंक जमाराशियों की `मीयादी देयता' वाला अंश मानना चाहिए। इस राशि को उक्त छमाही अवधि के दौरान रखी गयी वास्तविक शेष राशियों के औसत से घटाने पर जो राशि प्राप्त होगी उसे `मांग देयता' वाला अंश माना जाना चाहिए। प्रत्येक छमाही में इस प्रकार प्राप्त मांग और मीयादी देयताओं के अंशों के अनुपात के आधार पर अगली छमाही के दौरान सूचना देने वाले सभी पखवाड़ों के लिए बचत बैंक जमाराशियों की मांग और मीयादी देयताओं के घटक प्राप्त किये जाएंगे।

1.18 अर्थ दंड

24 जून 2006 से आरंभ होनेवाले पखवाड़े से अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखने में की गयी चूक के मामलों में निम्नानुसार दंडात्मक ब्याज लगाया जाएगा :

(i) दैनिक आधार पर अपेक्षित आरक्षित नकदी निधि अनुपात, जो कि वर्तमान में अपेक्षित कुल आरक्षित नकदी निधि अनुपात का 70 प्रतिशत है, को बनाए रखने में की गयी चूक के मामलों में उस दिन के लिए निर्धारित न्यूनतम राशि से वास्तव में रखी गयी राशि जितनी कम है, उस राशि पर बैंक दर के अतिरिक्त तीन प्रतिशत प्रति वर्ष की दर पर उस दिन के लिए दंडात्मक ब्याज वसूल किया जाएगा तथा यदि यह कमी अगले अनुवर्ती दिन/दिनों में जारी रहती है तो बैंक दर से पांच प्रतिशत अधिक की वार्षिक दर पर दंडात्मक ब्याज वसूल किया जाएगा।

(ii) किसी पखवाड़े के दौरान औसत आधार पर आरक्षित नकदी निधि अनुपात बनाए रखने में चूक के मामलों में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 की उप-धारा (3) में दी गयी व्यवस्था के अनुसार दंडात्मक ब्याज वसूल किया जाएगा।

अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से यह अपेक्षित है कि वे अपेक्षित आरक्षित नकदी निधि अनुपात रखने में हुई चूक के संबंध में दिनांक, राशि, प्रतिशत और चूक का कारण जैसे विवरण देते हुए इस तरह की चूक पुन: न होने देने के लिए की गयी कार्रवाई की सूचना दें।

2. सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) बनाए रखना

बैंककारी विनियमन (संशोधन) अध्यादेश, 2007 को प्रतिस्थापित करने वाले बैंककारी विनियमन (संशोधन) अधिनियम, 2007 के माध्यम से बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 में किए गए संशोधन के परिणामस्वरूप 23 जनवरी 2007 से रिज़र्व बैंक विनिर्दिष्ट आस्तियों में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए सांविधिक चलनिधि अनुपात निर्धारित कर सकता है। किसी अनुसूचित वाणिज्य बैंक की ऐसी आस्तियों का मूल्य दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार को बैंक की भारत में कुल मांग और मीयादी देयताओं के उस प्रतिशत (अधिकतम 40 प्रतिशत) से कम नहीं होगा जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर भारत सरकार के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करता है।

अनुसूचित वाणिज्य बैंक रिज़र्व बैंक द्वारा 9 मई 2011 से आरंभ की गयी सीमांत स्थायी सुविधा योजना में भाग ले सकते हैं। इस सुविधा के अंतर्गत पात्र संस्थाएं 17 अप्रैल 2012 से दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े की समाप्ति पर अपने एनडीटीएल के दो प्रतिशत तक उधार ले सकती हैं। इसके अलावा पात्र संस्थाएँ इस सुविधा के अन्तर्गत अपनी अतिरिक्त एसएलआर धारिताओं पर एक दिन के लिए निधि प्राप्त कर सकते हैं। यदि बैंकों की एसएलआर धारिताएँ सांविधिक अपेक्षा से एनडीटीएल के दो प्रतिशत तक गिर जाती हैं, तो बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 24 की उप धारा 2 क के अन्तर्गत जारी अधिसूचना के अनुसार इस सुविधा के प्रयोग के कारण एसएलआर अनुपालन में हुई चूक के लिए बैंकों को विशेष रूप से छूट प्राप्त करने की बाध्यता नहीं होगी।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 31 जुलाई 2012 की अधिसूचना बैंपविवि. सं.आरईटी. 32/12.02.001/2012-13 द्वारा यह निर्दिष्ट किया है कि 11 अगस्त 2012 से आरंभ होने वाले पखवाड़े से प्रत्येक अनुसूचित वाणिज्य बैंक भारत में नीचे दिये गये विवरण के अनुसार आस्तियां रखना जारी रखेगा जिनका मूल्य भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट की गयी मूल्यांकन विधि के अनुसार किसी भी दिन कारोबार की समाप्ति पर दूसरे पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंतिम शुक्रवार को भारत में कुल निवल मांग और मीयादी देयताओं के 23 प्रतिशत से कम नहीं होगा :

(क) नकदी, अथवा

(ख) स्वर्ण जिसका मूल्य चालू बाज़ार मूल्य से अधिक कीमत पर नहीं होगा, अथवा

(ग) निम्नलिखित लिखतों में निवेश जिन्हें "सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियाँ" कहा जाएगा :

  1. 9 मई 2011 की अधिसूचना बेंपविवि.सं. आरईटी. 91/12.02.001/2010-11 के अनुबंध में दी गयी सूची के अनुसार 6 मई 2011 तक जारी दिनांकित प्रतिभूतियां

  2. भारत सरकार के खज़ाना बिल

  3. बाज़ार उधार कार्यक्रम तथा बाज़ार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत समय-समय पर जारी भारत सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियां

  4. बाज़ार उधार कार्यक्रम के अंतर्गत समय-समय पर जारी राज्य सरकारों के राज्य विकास ऋण ;

  5. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिसूचित किए जानेवाले कोई अन्य लिखत।

बशर्ते उपर्युक्त प्रतिभूतियां (मार्जिन सहित), यदि रिज़र्व बैंक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत अर्जित की गई हों, तो उन्हें इस प्रयोजन के लिए पात्र आस्ति के रूप में नहीं माना जाएगा ।

स्पष्टीकरण :

1. उपर्युक्त प्रयोजन के लिए `बाज़ार उधार कार्यक्रम' का अर्थ भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा जनता से लिए जाने वाले देशी रुपया ऋण हैं, जिनका प्रबंध भारतीय रिज़र्व बैंक नीलामी के माध्यम से अथवा इस संबंध में जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट किसी अन्य विधि से ऐसी विपणनयोग्य प्रतिभूतियों को जारी करके करता है, जो सरकारी प्रतिभूति अधिनियम 2006 तथा उसके अंतर्गत बने विनियमों से नियंत्रित होती हैं।

2. उपर्युक्त प्रतिशत अंश की गणना में भारग्रस्त सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियों को शामिल नहीं किया जाएगा ।

बशर्ते, उपर्युक्त आस्तियों के प्रतिशत अंश की गणना करने के लिए निम्नलिखित मदें शामिल की जाएंगी, जैसे -

  1. उस सीमा तक किसी अग्रिम अथवा किसी अन्य प्रकार की ऋण व्यवस्था के लिए किसी संस्था में रखी गई प्रतिभूतियां जिस सीमा तक इन प्रतिभूतियों की जमानत पर आहरण न किया गया हो अथवा कोई उपयोग न किया गया हो तथा

  2. सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के अंतर्गत भारत में निवल मांग और मीयादी देयताओं के एक प्रतिशत तक की चलनिधि सहायता प्राप्त करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को संपार्श्विक के रूप में दी गई प्रतिभूतियां जिन्हें संबंधित बैंक के अपेक्षित एसएलआर संविभाग में से एक हिस्से के रूप में निकाला गया हो।

3. उपर्युक्त प्रयोजन के लिए राशि की गणना हेतु निम्नलिखित को भारत में रखी गयी नकदी के रूप में माना जाएगा :

i) भारत से बाहर निगमित किसी बैंकिंग कंपनी द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 11 की उप धारा (2) के अंतर्गत रखे जाने के लिए अपेक्षित जमाराशियां

ii) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 42 के अंतर्गत किसी अनुसूचित बैंक द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रखे जाने के लिए अपेक्षित शेष से रखा गया अधिक शेष

iii) भारत में अन्य अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के पास चालू खातों में निवल शेष ।

टिप्प्णी :

1. किसी सरकारी प्रतिभूति के एसएलआर स्तर संबंधी सूचना प्रसारित करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि :

(i) भारत सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा जारी प्रतिभूतियों का एसएलआर स्तर प्रतिभूतियों को जारी करते समय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी प्रेस प्रकाशनी में दर्शाया जाएगा तथा

(ii) एसएलआर प्रतिभूतियों की अद्यतन तथा वर्तमान सूची रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (www.rbi.org.in) पर लगाई जाएगी जिसका लिंक "डाटा बेस ऑन इंडियन इकोनॉमी" होगा।

2. नकदी प्रबंधन बिल को भारत सरकार खजाना बिल के रूप में माना जाएगा तथा तदनुसार उन्हें एसएलआर प्रतिभूतियों के रूप में माना जाएगा।

2.1 सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) की गणना की क्रियाविधि

बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 24(2)(ख) के अंतर्गत सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन के लिए कुल निवल मांग तथा मीयादी देयताओं की गणना करने की क्रियाविधि आरक्षित नकदी निधि अनुपात के प्रयोजन से उपयोग में लाई जानेवाली क्रियाविधि से मोटे तौर पर मिलती-जुलती है। खंड 1.11 के अंतर्गत उल्लिखित देयताओं में मद 1.11(ध) को छोड़कर कोई भी देयता सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन के लिए देयताओं का भाग नहीं होगी। अत: अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को `बैंकिंग प्रणाली के प्रति देयताएं' के अंतर्गत सभी परिपक्वता अवधि की अंतर-बैंक मीयादी जमाराशियों /मीयादी उधार देयताओं को शामिल करना चाहिए। उसी तरह सांविधिक चलनिधि अनुपात के प्रयोजन के लिए निवल मांग तथा मीयादी देयताओं की गणना के लिए `बैंकिंग प्रणाली में आस्तियों" के अंतर्गत अपनी सभी परिपक्वता अवधि की मीयादी जमाराशियों तथा मीयादी उधारों की अंतर-बैंक आस्तियों को शामिल करना चाहिए । बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 18(1) के स्पष्टीकरण के खंड (घ) के अंतर्गत अभिकलित "बैंकिंग प्रणाली" के प्रति निवल देयताओं पर सांविधिक चलनिधि अनुपात रखने से छूट दी गई है।

2.2 सांविधिक चलनिधि अनुपात के लिए अनुमोदित प्रतिभूतियों का वर्गीकरण और मूल्यांकन

अनुमोदित प्रतिभूतियों के वर्गीकरण तथा मूल्यांकन के संबंध में, बैंक, बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यांकन तथा परिचालन के लिए विवकेपूर्ण मानदंड से संबंधित हमारे मास्टर परिपत्र (जिसे समय-समय पर अद्यतन किया जाता है) में निहित अनुदेश देखें।

2.3 अर्थ दंड

यदि कोई बैंकिंग कंपनी सांविधिक चलनिधि अनुपात की अपेक्षित मात्रा नहीं रखती है तो उसे उस चूक के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक को उस दिन के लिए कमी की राशि पर बैंक दर से 3 प्रतिशत प्रति वर्ष अधिक दर पर अर्थ दंड का भुगतान करना होगा और यदि ऐसी चूक आगामी परवर्ती कार्य दिवस को भी बनी रहती है तो कमी की राशि पर चूक से संबंधित दिनों के लिए बैंक दर से 5 प्रतिशत प्रति वर्ष अधिक दर पर दांडिक ब्याज अदा करना पड़ेगा।

2.4 फॉर्म VIII में विवरणी प्रस्तुत करना

  1. बैंकों को हर महीने की 20 तारीख से पहले भारतीय रिज़र्व बैंक को ठीक पिछले महीने के एकांतर शुक्रवारों को रखे गये सांविधिक चलनिधि अनुपात की राशि दिखाते हुए फॉर्म VIII में एक विवरणी प्रस्तुत करनी चाहिए तथा ऐसे शुक्रवारों को रखी गयी भारत में मांग और मीयादी देयताओं का विवरण भी साथ में देना चाहिए। यदि ऐसे शुक्रवार को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के अंतर्गत सार्वजनिक अवकाश का दिन घोषित किया गया हो तो उससे पूर्ववर्ती कारोबार के दिन की समाप्ति के समय का विवरण दिया जाना चाहिए।

  2. बैंकों को फॉर्म VIII के अनुबंध के रूप में एक विवरण भी प्रस्तुत करना चाहिए जिसमें (क) सांविधिक चलनिधि अनुपात के अनुपालन के प्रयोजन हेतु रखी गयी प्रतिभूतियों का मूल्य और (ख) भारतीय रिज़र्व बैंक के पास उनके द्वारा रखे गये अतिरिक्त नकदी शेषों का निर्धारित फॉर्मेट में विवरण दिया गया हो।

2.5 मांग और मीयादी देयताओं की गणना की शुद्धता सांविधिक लेखा-परीक्षकों द्वारा प्रमाणित किया जाना

सांविधिक लेखा-परीक्षकों को यह सत्यापित और प्रमाणित करना चाहिए कि बैंक की बहियों के अनुसार बाहरी देयताओं की सभी मदों का बैंक द्वारा विधिवत् संकलन किया गया था और उन्हें संबंधित वित्तीय वर्ष के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को भेजी गयी पाक्षिक/मासिक सांविधिक विवरणियों में मांग और मीयादी देयताओं/निवल मांग और मीयादी देयताओं के अंतर्गत ठीक-ठीक दर्शाया गया था।


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