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मौद्रिक नीति

"... मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।"


भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की प्रस्तावना

प्रेस प्रकाशनी


मौद्रिक नीति समिति की 20 से 22 मई 2020 के दौरान हुई बैठक के कार्यवृत्त

05 जून 2020

मौद्रिक नीति समिति की 20 से 22 मई 2020 के दौरान हुई बैठक के कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अंतर्गत]

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी के अंतर्गत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तेईसवीं बैठक 20 से 22 मई 2020 के दौरान आयोजित की गई; आरंभ में यह बैठक 3 से 5 जून 2020 के लिए निर्धारित थी लेकिन COVID-19 महामारी के मद्देनज़र इसे निर्धारित समय से पहले 20 से 22 मई 2020 के दौरान आयोजित किया गया।

2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. चेतन घाटे, प्रोफेसर, भारतीय सांख्यिकी संस्थान; डॉ. पामी दुआ, भूतपूर्व निदेशक, दिल्ली अर्थशास्त्र स्कूल; डॉ. रविन्द्र एच. ढोलकिया, भूतपूर्व प्रोफेसर, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. जनक राज, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देबब्रत पात्र, उप गवर्नर, प्रभारी मौद्रिक नीति उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर द्वारा की गई। डॉ. चेतन घाटे, डॉ. पामी दुआ और डॉ. रविन्द्र एच. ढोलकिया ने वीडियो कान्फरेंस के माध्यम से बैठक में भाग लिया।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों के कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:

(ए) मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;

(बी) उपर्युक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और

(सी) उपर्युक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45 ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।

4. मौद्रिक नीति समिति ने उपभोक्ता विश्वास, परिवार मुद्रास्फीति प्रत्याशा, तथा व्यावसायिक पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा करवाए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है।

संकल्प

5. मौद्रिक नीति समिति ने आज (22 मई 2020) अपनी बैठक में वर्तमान और उभरती समष्टिगत आर्थिक परिस्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया है कि –

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत नीतिगत रेपो दर को 4.40 प्रतिशत से 40 आधार अंक कम करके तत्काल प्रभाव से 4.00 कर दिया जाए।
  • तदनुसार, सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 4.65 प्रतिशत से घटकर 4.25 प्रतिशत हो गई। और
  • एलएएफ के तहत प्रतिवर्ती रेपो दर 3.75 प्रतिशत से घटकर 3.35 प्रतिशत हो गई।
  • यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर में कमी और विकास को पुनर्जीवित करने और अर्थव्यवस्था पर COVID -19 के प्रभाव को कम करने के लिए जब तक आवश्यक हो निभावकारी रुख बनाए रखने का निर्णय लिया।

ये निर्णय वृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्‍फीति के 4 प्रतिशत के मध्‍यावधिक लक्ष्‍य को +/-2 प्रतिशत के दायरे में हासिल करने के उद्देश्‍य से भी है।

इस निर्णय के समर्थन में प्रमुख विवेचनों को नीचे दिए गए विवरण में वर्णित किया गया है।

आकलन

वैश्विक अर्थव्यवस्था

6. मार्च 2020 में एमपीसी की बैठक के बाद से वैश्विक आर्थिक गतिविधि में COVID-19 संबंधित लॉकडाउन और सामाजिक अलगाव की वजह से ठहराव की स्थिति बनी हुई है। 2020 की पहली तिमाही में प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में यूएस, यूरो क्षेत्र, जापान और यूके में आर्थिक गतिविधि संकुचित हो गयी। उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के बीच चीनी अर्थव्यवस्था में स्पष्ट गिरावट देखी गई और उच्च आवृत्ति संकेतकों के आंकड़ों से ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे ईएमई में भी गतिविधि संकुचित हो जाने की संभावनाओं का संकेत मिलता है।

7. वैश्विक वित्तीय बाजारों में मार्च में एक अशांत अवधि के बाद शांती छाई हुई है और अस्थिरता में कमी आ गयी क्योंकि तेज और बृहद राजकोषीय और मौद्रिक नीति प्रतिक्रियाओं से मनोभावों को शांत करने में मदद मिली। इक्विटी बाजारों में कुछ हानियों को पुनः वसूल कर लिया गया, जबकि सरकारी बॉन्ड प्रतिफल सीमाबद्ध रहें हालांकि देश-विशिष्ट कारकों के कारण कतिपय ईएमई में कुछ वृद्धि हुई। ईएमई में पोर्टफोलियो प्रवाह अप्रैल में पुनर्जीवित हो गए और उन्हें सुरक्षित पनाहगाह तक पहुंचने में आसानी हुई। अमेरिकी डॉलर कमजोर होने के साथ, प्रमुख ईएमई मुद्राएं, जो लगातार नीचे की ओर दबाव का अनुभव करती थीं, ने एक विकासोन्मुख दृषिकोण के साथ कारोबार किया। कच्चे तेल की कीमतों में मामूली वृद्धि हुई क्योंकि तेल उत्पादक देशों (ओपेक प्लस) ने उत्पादन में कटौती करने के लिए सहमति व्यक्त की और लॉकडाउन के आसन्न सहजता की उम्मीदों ने मांग में पुनरुद्धार की संभावनाओं में सुधार हुआ। सोने की कीमतें हेजिंग मांग के कारण बढ़ गई। मुख्य रूप से तेल की कीमतों में गिरावट और लॉकडाउन के बीच मांग में कमी के कारण सीपीआई मुद्रास्फीति मुख्य एई और ईएमई में मंद रही, जबकि आपूर्ति की गड़बड़ी के कारण खाद्य मुद्रास्फीति में तेजी आई।

घरेलू अर्थव्यवस्था

8. पिछले दो महीनों में हुए लॉकडाउन से घरेलू आर्थिक गतिविधि बुरी तरह प्रभावित हुई है। उच्च आवृत्ति संकेतक मार्च 2020 से शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मांग में गिरावट की ओर संकेत करते हैं। बिजली की खपत कम हो गई है, जबकि निवेश की गतिविधि और निजी खपत दोनों में तेज गिरावट का सामना करना पड़ा, जैसा कि मार्च में पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में गिरावट और उपभोक्ता टिकाऊ और गैर-टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में बड़ी छंटनी के रूप में दिखाई दिया। यात्री और वाणिज्यिक वाहन बिक्री, घरेलू हवाई यात्री यातायात और विदेशी पर्यटकों के आगमन जैसे सेवा क्षेत्र की गतिविधि के उच्च आवृत्ति संकेतकों में भी मार्च में भारी संकुचन देखा गया। देश में चावल, दलहन और तिलहन की ग्रीष्म बुवाई से ही कृषि द्वारा एकमात्र उम्मीद की किरण देखी गयी, जिसमें खरीफ ऋतु के तहत बोए गए कुल क्षेत्रफल में 43.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई और रबी की फसल भरपूर होने का अंदाज रिकॉर्ड खरीद में परिलक्षित हो रहा है।

9. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति में जनवरी में बढ़ोत्तरी के बाद मार्च 2020 में लगातार दूसरे महीने 5.8 प्रतिशत तक सुधार हुआ। यह मुख्य रूप से दिसंबर 2019 - जनवरी 2020 में खाद्य मुद्रास्फीति के दोहरे अंक से कम हो जाने के कारण था। हालांकि, अप्रैल में आपूर्ति में व्यवधानों ने राहत दी और खाद्य मुद्रास्फीति में सौम्यता को पलट दिया, जो मार्च में 7.8 प्रतिशत से बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई। सब्जियां, अनाज, दूध, दाल और खाद्य तेलों और चीनी की कीमतें दबाव बिंदुओं के रूप में उभरीं1

10. रिज़र्व बैंक अपने पारंपरिक और अपरंपरागत दोनों तरह के उपायों की श्रेणी का विस्तार करते हुए अग्र-सक्रिय चलनिधि प्रबंधन मोड में बना रहा,ताकि प्रणाली स्तरीय चलनिधि को बढ़ाया जा सके साथ ही वित्तपोषण की कमी का सामना करने वाले विशिष्ट क्षेत्रों को भी चलनिधि उपलब्ध करया जा सके। चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत औसत दैनिक निवल अवशोषण के साथ प्रणालीगत चलनिधि में बहुतायत बनी रही, जो अप्रैल में 4.75 लाख करोड़ से बढ़कर मई 2020 (20 मई तक) में 5.66 लाख करोड़ हो गई। 2020-21 (20 मई तक) के दौरान, खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) खरीद के माध्यम से 1,20,474 करोड़ और तीन लक्षित दीर्घावधि रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ) नीलामी और एक टीएलटीआरओ 2.0 नीलामी के माध्यम से 87,891 करोड़ उपलब्ध करवाए गए। प्रतिफल वक्र में समान रूप से अधिक चलनिधि वितरित करने के लिए, रिज़र्व बैंक ने 'ऑपरेशन ट्विस्ट' नीलामी आयोजित की जिसमें एक साथ ही 27 अप्रैल 2020 को प्रत्येक के लिए 10,000 करोड़ की सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री और खरीद शामिल थे। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) के पुनर्वित्त के रूप में अब तक (21 मई 2020 तक) 22,334 करोड़ रुपये और तरलता की कमी को दूर करने तथा वित्तीय बाजारों को दबावरहित बनाने के लिए विशेष चलनिधि सुविधा (एसएलएफ) के माध्यम से म्यूचुअल फंड में 2,430 करोड़ उपलब्ध करवाए। 6 फरवरी 2020 के बाद रिजर्व बैंक ने 9.42 लाख करोड़ (जीडीपी का 4.6 प्रतिशत) की चलनिधि बढ़ाने के उपायों की घोषणा की है।

11. विभिन्न तरलता प्रबंधन उपायों को प्रतिबिम्बित करते हुए, घरेलू वित्तीय स्थितियों ने विभिन्न बाजार खंडों में तरलता प्रीमिया को कम करते हुए सराहनीय रूप से आसानी को प्रतिबिम्बित किया है। सरकारी प्रतिभूतियों, वाणिज्यिक पत्रों (सीपी), 91 दिन के ट्रेजरी बिल, जमा के प्रमाण पत्र (सीडी) और कॉर्पोरेट बांड पर प्रतिफल में नरमी आई है। वाणिज्यिक बैंकों के नए रुपये ऋणों पर भारित औसत ऋण दरों में अकेले मार्च 2020 में 43 बीपीएस की गिरावट आई । हालांकि क्रेडिट ग्रोथ मौन बनी हुई है, इस साल अब तक (8 मई तक) वाणिज्यिक पत्रों, बांड, डिबेंचर और कॉर्पोरेट निकायों के शेयरों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के निवेश में 66,757 करोड़ रुपये की तेजी से वृद्धि हुई, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 8,822 करोड़ रुपये की गिरावट आई थी। मार्च में बड़े बहिर्गमन के विपरीत अप्रैल में म्यूचुअल फंड की विभिन्न योजनाओं में शुद्ध अंतर्प्रवाह भी दर्ज किये गये हैं।

12. बाहरी क्षेत्र में, अप्रैल 2020 में भारत के वस्तु व्यापार में गिरावट आई, निर्यात और आयात में क्रमशः 60.3 प्रतिशत और 58.6 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की गिरावट आई। जबकि अप्रैल में आयात में सभी 30 कमोडिटी समूहों संकुचन हो गया, निर्यात में 30 समूहों में से 28 में संकुचन हुआ । अप्रैल 2020 में व्यापार घाटा क्रमिक रूप से और साल-दर-साल आधार पर - 47 महीनों में अपने निम्नतम स्तर तक - संकुचित हो गया। वित्तपोषण के पक्ष में, शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह मार्च 2020 में एक वर्ष पहले के 0.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढे‌। 2020-21 में अब तक (18 मई तक) इक्विटी में शुद्ध विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) एक साल पहले के 0.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। हालांकि, ऋण खंड में, एक साल पहले के 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बहिर्गमन की तुलना में इसी अवधि के दौरान 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पोर्टफोलियो बहिर्गमन हुआ। इसके विपरीत, स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग के तहत शुद्ध निवेश में इसी अवधि के दौरान 0.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2020-21 में अब तक 9.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (15 मई तक) बढ़कर- 12 महीने के आयात के बराबर 487.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।

संभावनाएं

13. मुद्रास्फीति का दृष्टिकोण अत्यधिक अनिश्चित है, क्योंकि आने वाले महीनों में लॉकडाउन में क्रमिक छूट के साथ आपूर्ति व्यवस्थाओं की बहाली के साथ, अप्रैल में खाद्य मुद्रास्फीति में असामान्य उछाल में नरमी आने की उम्मीद है । सामान्य मानसून का पूर्वानुमान खाद्य मुद्रास्फीति के लिए भी अच्छा पूर्वसूचक सिद्ध हो सकता है। वर्तमान वैश्विक मांग-आपूर्ति संतुलन को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों के कम रहने की संभावना है, हालांकि वे हाल ही के दबावग्रस्त स्तर से मजबूत भी हो सकती हैं । धातुओं और अन्य औद्योगिक कच्चे माल की नरम वैश्विक कीमतों से घरेलू फर्मों के लिए इनपुट लागत कम रहने की संभावना है। मांग में कमी कोर मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर) पर नीचे की ओर का दबाव डाल सकती है, हालांकि आपूर्ति अव्यवस्था का बने रहना निकट अवधि के दृष्टिकोण के लिए अनिश्चितता प्रदान करता है। हालांकि वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव का असर महंगाई पर पड़ सकता है। अनुकूल आधार प्रभावों के साथ संयुक्त होकर इन कारकों के प्रभावी होने से हेडलाईन मुद्रास्फीति को 2020-21 की तीसरी और चौथी तिमाही में लक्ष्य से नीचे लाने की उम्मीद है।

14. विकास के दृष्टिकोण की ओर मुड़ते हुए, विस्तारित लॉकडाउन को देखते हुए 2020-21 की पहली तिमाही में कृषि के अलावा अन्य आर्थिक गतिविधियों के दबावग्रस्त रहने की संभावना है। हालांकि लॉकडाउन को कुछ प्रतिबंधों के साथ मई के अंत तक हटाया जा सकता है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग उपायों और श्रम की अस्थायी कमी के कारण दूसरी तिमाही में भी आर्थिक गतिविधि नियंत्रित रह सकती है। आर्थिक गतिविधियों में तीसरी तिमाही में सुधार शुरू होने और चौथी तिमाही में उसके गति हासिल करने की उम्मीद है क्योंकि धीरे धीरे आपूर्ति व्यवस्थाओं में सामान्य स्थितियां बहाल हो जाती है और मांग धीरे-धीरे पुनर्जीवित होती है । एक पूरे वर्ष के रूप में अभी भी महामारी की अवधि और कब तक सोशल डिस्टेंसिंग उपायों के बने रहने की संभावना है उसके बारे में अनिश्चितता बढ़ रही है और फलस्वरूप घरेलू विकास के लिए नकारात्मक जोखिम महत्वपूर्ण बनी हुई है। दूसरी ओर, अगर महामारी को नियंत्रित किया जाता है और सोशल डिस्टेंसिंग उपायों को तेजी से चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाता है तो उपरी दिशा में संवेगों को फैलाया जा सकता है।

15. एमपीसी का मानना है कि महामारी का व्यापक आर्थिक प्रभाव शुरू में प्रत्याशित से अधिक गंभीर हो रहा है और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में तीव्र तनाव का सामना करना पड़ रहा हैं। आपूर्ति अवरोधों के साथ-साथ मांग के संकुचित हो जाने से आपत्ति का प्रभाव और बढ़ गया है । आर्थिक और वित्तीय गतिविधि की हानि से परे, आजीविका और स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा शुरू किए गए विभिन्न उपाय अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए काम कर रहे हैं, वित्तीय स्थितियों को और सुविधायुक्त बनाने की आवश्यकता है। इससे सस्ती दरों पर धन के प्रवाह में आसानी होगी और जीवन को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।मुद्रास्फीति संभावनाओं के सौम्य बने रहने के साथ चूंकि लॉकडाउन से संबंधित आपूर्ति अवरोधों में सुधार हो रहा है, विकास की चिंताओं को संबोधित करने के लिए नीति अवसरों के अभी इस्तेमाल किये जाने की जरूरत है बजाय इसके कि बाद में जब गतिविधि पुनर्जीवित हो जायेगी तब हेडरूम को बनाए रखने के लिए अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिए इनका प्रयोग किया जाएं।

16. यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे, सभी सदस्यों ने नीतिगत रेपो दर में कमी और विकास को पुनर्जीवित करने और अर्थव्यवस्था पर COVID -19 के प्रभाव को कम करने के लिए जब तक आवश्यक हो निभावकारी रुख बनाए रखने के लिए वोट किया।

17. डॉ पामी दुआ, डॉ. रविन्द्र एच.ढोलाकिया, डॉ जनक राज, डॉ माइकल देबब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने नीतिगत रेपो दर में 40 बीपीएस की कमी के लिए मतदान किया, जबकि डॉ चेतन घाटे ने 25 बीपीएस की कमी के लिए मतदान किया।

18. एमपीसी की बैठक के कार्यवृत्त 5 जून 2020 तक प्रकाशित किए जाएंगे।

पॉलिसी रेपो दर को कम करने के लिए संकल्प पर मतदान
सदस्य मतदान पॉलिसी रेपो दर में कमी का परिमाण
(आधार अंक)
डॉ. चेतन घाटे हां 25
डॉ. पामी दुआ हां 40
डॉ. रवींद्र एच. ढोलकिया हां 40
डॉ. जनक राज हां 40
डॉ. माइकल देवव्रत पात्र हां 40
श्री शक्तिकान्त दास हाँ 40

डॉ. चेतन घाटे का वक्तव्य

19. अंतिम समीक्षा के बाद से, अर्थव्यवस्था की संभावनाएं और बिगड़ गयी है।

20. कई उच्च आवृत्ति संकेतक निकट अवधि में गंभीर विकास परिणामों की ओर इशारा करते हैं। COVID-19 पर, हमने वक्र को समतल करने का पहला लक्ष्य हासिल नहीं किया है। आर्थिक और स्वास्थ्य लागतों के बीच '' रस्साकशी '' ने अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक खोल दिया है। अर्थव्यवस्था को स्मार्ट तरीके से खोलने की जरूरत है। समय से पहले अर्थव्यवस्था को खोलने का जोखिम यह है कि नए मामलों में वृद्धि हो सकती है। स्थानीय महामारियों को बढ़ने में समय लगता है। मुख्य विकास चुनौती यह है कि शीर्ष छह औद्योगिक राज्य जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 62% उत्पादन करते हैं, ये भी COVID द्वारा सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहे हैं।

21. गंभीर विकास परिणामों के बावजूद मैंने और बड़ी राशि के बजाए 25 बीपीएस अंकों की कटौती के लिए मतदान क्यों किया?

22. सबसे पहले, यह मेरे लिए पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि COVID-19 से एक बड़े अवस्फीतिकारी झटके का गठन हो सकता है। मुद्रास्फीति के दबाव आर्थिक मंदी (उत्पादन अंतराल) के साथ कम हो जाते हैं लेकिन भविष्य की मुद्रास्फीति और उत्पादन लागत से संबंधित कारकों के साथ बढ़ जाते हैं।

23. रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षण के नवीनतम दौर में 3 महीने आगे और 1 साल आगे दोनों मुद्रास्फीति की उम्मीदें तेजी से (क्रमशः 190 बीपीएस और 120 बीपीएस तक) बढ़ गई हैं। यह वृद्धि पिछले छह दौर के सर्वेक्षणों में मुद्रास्फीति की उम्मीदों के लिए अपेक्षाकृत समतल प्रक्षेपवक्र (ट्राजेक्टरी) को पलट देता है। यह हाल के महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि को भी दर्शाता है। अप्रैल में खाद्य मुद्रास्फीति मार्च में 7.8% की तुलना में बढ़कर 8.6% हो गई और आने वाले महीनों में इसके और बढ़ने की संभावना है। यह चिंताजनक है। मैं COVID संबंधित आपूर्ति पक्ष में अवरोधों (बॉटल नेक) और उनके मुद्रास्फीतिकारक प्रभाव के कारण खाद्य वस्तुओं के बाजार में आगमन में आने वाली गिरावट के बारे में चिंतित रहता हूं।

24. जब अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी तब मांग में तेजी से सुधार होगा। घरेलू और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में पहले से ही एक गंभीर अव्यवस्था है। इनको हल करने में कुछ समय लगेगा और इसलिए संभावना है कि आपूर्ति की तुलना में मांग में तेजी से सुधार होगा।

25. वर्तमान में, कोर मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर मुद्रास्फीति) अप्रैल रीडिंग (सीएसओ द्वारा जारी नहीं की गई) के मार्च रीडिंग के समान या लगभग 4% होने की संभावना के साथ मध्यम बनी हुई है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क में तेज बढ़ोतरी और सभी राज्यों में पेट्रोल और डीजल पर मूल्य वर्धित कर (वैट) की दरों में बढ़ोतरी के कारण पंप पर तेल की कम कीमतों को उपभोक्ताओं तक पहुंचने नहीं दिया है और इस तरह से कोर मुद्रास्फीति पर तेल की कम कीमतों के किसी भी लाभकारी प्रभाव को रद्द कर दिया है।

26. दूसरा, जैसाकि मैंने पिछली समीक्षा में उल्लेख किया था मांग की कमी वाली अर्थव्यवस्था में दर में भारी कटौती करना स्ट्रिंग पर जोर देने के समान है।

27. दर कटौती को लागू करने के लिए बैंकों को उधार देना पड़ता है। क्रेडिट बाजारों की चलनिधि और कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए उठाए गए कदमों के बावजूद 24 अप्रैल (उपलब्ध सबसे अद्यतन डेटा) के अनुसार गैर-खाद्य ऋण की वृद्धि दर वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 8 मई 2020 को 6.5% थी, जो की 10 अप्रैल 2020 को 7.2% की तुलना में कम है।

28. तीसरा, दर में कटौती को अन्य उपायों के रूप में देखा जाना चाहिए जो पहले से ही संकट से निपटने में चलनिधि नीति, सामाजिक बीमा नीति और राजकोषीय नीति के संबंध में उठाए गए हैं।

29. अंतिम समीक्षा के बाद, व्यापक राजकोषीय सहायता की घोषणा की गई है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 10% है। इस सहायता का "केनिसियन घटक", अर्थात, वह हिस्सा जो राजकोषीय नीति के माध्यम से विवेकाधीन खर्च को बढ़ाता है, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1% है।

30. एक महत्वाकांक्षी केनिसियन राजकोषीय प्रोत्साहन हमेशा स्काईला और चेरीबडीस के बीच निर्देशित होते रहता है। अगर सरकार प्रोत्साहन के विवेकाधीन हिस्से पर बहुत अधिक खर्च करती है, तो प्रतिफल वक्र पिट जाएगी, बैंकों को घाटा होगा और हमारी क्रेडिट रेटिंग में भी गिरावट आएगी। इससे यह भी संकेत जाएगा कि सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की अपनी प्रतिबद्धता को छोड़ रही है। यदि यह बहुत कम खर्च करता है, तो इससे संवृद्धि के बिगड़ने का खतरा है।

31. मध्य मार्ग को निदेशित करने के लिए सरकार ने अत्यावश्यक संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया है। यह विवेकपूर्ण है। प्रोत्साहन के लिए पूर्ण रूप से नपातुला दृष्टिकोण यह जानता है कि सरकार वित्तीय अस्थिरता के निहितार्थ के बिना समृद्धि की ओर प्रस्थान नहीं कर सकती है।

32. हालांकि प्रोत्साहन के छोटे केनिसियन घटक के बावजूद राज्य सरकार की उधार सीमा में छूट को ध्यान में रखते हुए राज्य-केंद्र का संयुक्त राजकोषीय घाटा अभी भी वित्त वर्ष 21 में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 10-12% तक बढ़ने की संभावना है। मुझे संदेह है कि क्या बांड बाजार इसे बंद कर सकेंगे। इसका मतलब है कि ऋण बाजार में संचरण को नुकसान होगा, जिससे दर में भारी कटौती अर्थहीन हो जाएगी। इससे ऋण और बंधक से छुट्टी की घोषणा से एनपीए में एक उभरते स्पाइक के परिणामस्वरूप वित्तीय प्रणाली में बढ़ती जोखिम से बचाव में वृद्धि होगी । इससे ट्रांसमिशन में और भी रुकावट आएगी।

33. चौथा, पिछली समीक्षा के बाद से, उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों की एक किस्म में तेजी से गिरावट आई है। मार्च आईआईपी (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) में व्यापक आधार पर और गहरा संकुचन हुआ है, जो मार्च में 4.6% से घटकर -16.7% हो गया। यात्री वाहन की बिक्री कम हो गई है। उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुओं में -16% की गिरावट आई है। मियादी निवेश के संकेतक नरम हो गए: तैयार स्टील की खपत में -90.9% की गिरावट आई है और आईआईपी पूंजीगत वस्तुएं (जो मशीनरी और उपकरणों का प्रतिनिधित्व करती है) भी -35.6% तक गिर गई हैं। उत्पादन और नए निर्यात आदेशों में तेज संकुचन के कारण पीएमआई विनिर्माण मार्च में 51.8 की तुलना में अप्रैल में घटकर 27.4 रह गया। व्यापार गतिविधि में तेज गिरावट के कारण पीएमआई मार्च में 49.3 से अप्रैल में गिरकर 5.4 हो गया। निर्यात में -60.3% की भारी गिरावट आई है।

34. हालांकि इनमें कोई संदेह नहीं है कि इसके परिणामस्वरूप उत्पादन अंतराल में बडी नकारात्मकता आई है और यह भी सच है कि संभावित उत्पादन में भी गिरावट आयी है।

35. कृषि क्षेत्र एकमात्र आशा की किरण है। चालू रबी की फसल ने अच्छा प्रदर्शन किया है और फसलों की वर्तमान ग्रीष्मकालीन बुवाई (चावल, दाल, मोटे अनाज और तिलहन के लिए) पिछले साल की तुलना में 43.7% अधिक हुई है।

36. इसलिए COVID की वजह से होने वाले गंभीर विकास परिणाम दर में भारी कटौती के लिए सबसे मजबूत तर्क है । हालांकि, इस तरह की दरों में कटौती से तब बचा जाना चाहिए जब अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित हो रही हो और न कि तब जब हम लॉक-डाउन में हैं । जब अर्थव्यवस्था में तेजी होती है, यह मानते हुए कि संचरण हो रहा है और बैंक उधार दे रहे हैं, दर कटौती सबसे प्रभावी ढंग से काम करती है । एमपीसी को कुछ बारूद (गन पाउडर) को सूखा रखना चाहिए।

37. पांचवां, रिवर्स रेपो दर लगातार तीन बार कटौती कर के 3.35% रखा गया है। असममित कटौती के पीछे एलएएफ कॉरिडोर का उपयोग मौद्रिक नीति के साधन के रूप में करने का विचार रहा है। सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए रिवर्स रेपो दर अब प्रभावी नीति दर है। मुझे चिंता है कि जब चीजें वापस सामान्य हो जाएंगी चलनिधि की वर्तमान मात्रा को समेटना मुश्किल हो जायेगा। आरबीआई की चलनिधि नीति ने वित्तीय बाजारों को स्थिर करने में मदद की है, लेकिन अंतिम ऋणदाता नीतियाँ जैसाकि व्यापक रूप से माना जाता है, संकट के अलावा उपयोगी नहीं हैं और इसलिए इसे सामान्य मौद्रिक नीति के हिस्से के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

38. उपरोक्त कारणों को देखते हुए, मैं इस बार पॉलिसी रेट में 25 बीपीएस की कटौती करने के लिए वोट करता हूं।

39. मैं आने वाली वृद्धि-मुद्रास्फीति के आंकड़ों को ध्यान से देखता रहूंगा और आंकड़ों पर निर्भर रहना जारी रखुंगा।

40. मैं भी रुख को निभावकारी रूप में बनाए रखने के लिए वोट करता हूं।

डॉ पामी दुआ का वक्तव्य

41. COVID-19 महामारी के कारण पिछले दो महीनों में देशव्यापी घरेलू आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया है। इस अभूतपूर्व और असाधारण आर्थिक और स्वास्थ्य संकट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी प्रखर तीव्रता और प्रसार के साथ गंभीर रूप से प्रभावित किया है।

42. घरेलू मुद्रास्फीति के मोर्चे पर, हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति फरवरी 2020 में 6.6 प्रतिशत से गिरकर मार्च में 5.8 प्रतिशत हो गई। अप्रैल महीने के लिए केवल आंशिक सूचना जारी की गई है, जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति के आंकडें दिए गए है, जिसके अनुसार खाद्य मुद्रास्फीति मार्च में 7.8 प्रतिशत से बढ़कर अप्रैल में 8.6 प्रतिशत हो गई, जिसके मुख्य कारक सब्जियों, दालों, खाद्य तेलों, दूध और अनाज की कीमतें रहीं। हालांकि, कच्चे तेल की कम कीमतें, धातुओं और अन्य औद्योगिक कच्चे माल की सौम्य वैश्विक कीमतें और सकल मांग के कमजोर पड़ने से मुद्रास्फीति के सौम्य होने की उम्मीद है, हालांकि आपूर्ति बाधित होने से मुद्रास्फीति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। कुल मिलाकर, वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही में हेडलाइन मुद्रास्फीति कम होने की उम्मीद है और यह लक्ष्य से नीचे गिर सकती है। यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित परिवारों के मुद्रास्फीति अनुमान सर्वेक्षण के मई 2020 दौर के अनुरूप भी है, जो एक साल से आगे के क्षितिज के पूर्वानुमानों की तुलना में तीन महीने के आगे के पूर्वानुमान के लिए उच्च मुद्रास्फीति की उम्मीदों को दर्शाता है।

43. घरेलू उत्पादन के मोर्चे पर, उभरती महामारी से घरेलू संवृद्धि पर गंभीर प्रभाव पड़ा है, जो लॉकडाउन और सामाजिक अलगाव के कारण आर्थिक गतिविधि की अचलता के निकट की स्थिति के कारण पंगू हो गया है, जिससे मांग में कमी के साथ-साथ आपूर्ति में भी रुकावटें पैदा हुई हैं। शहरी खपत के उच्च आवृत्ति संकेतक - यात्री वाहन की बिक्री, घरेलू यात्री हवाई यातायात और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं में मार्च 2020 में प्रभावशाली तरीके से गिरावट आयी है। ग्रामीण मांग के संकेतकों - ट्रैक्टर बिक्री, मोटरसाइकिल बिक्री और उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुएँ- में एक समान निराशाजनक तस्वीर उभरती है जो समान अवधि में तेजी से गिर गए। अप्रैल में तैयार स्टील की खपत और मार्च में सीमेंट उत्पादन में भारी गिरावट के साथ मियादी निवेश के संकेतक भी गिर गए, जो निर्माण गतिविधि में मंदी को दर्शाते हैं। इसके अलावा, मार्च और अप्रैल के दौरान पूंजीगत वस्तुओं के आयात में महत्वपूर्ण गिरावट के साथ मार्च में पूंजीगत उत्पादन (आईआईपी के उपयोग-आधारित वर्गीकरण के अनुसार) में 36 प्रतिशत की गिरावट आई। 25 मार्च से लॉकडाउन लगने के कारण आईआईपी के मार्च प्रिंट के आंकड़ों को सीमित नमूने के साथ संकलित किया गया है, जिसमें विनिर्माण में 20 प्रतिशत से अधिक की गिरावट, बुनियादी ढांचा / निर्माण सामान लगभग 24 प्रतिशत और बिजली 6.8 प्रतिशत की गिरावट के साथ प्रारंभिक आंकड़ों में आईआईपी में लगभग 17 प्रतिशत की गिरावट का संकेत मिलता है।

44. आंशिक रूप से उत्पादन और नए निर्यात आदेशों में संकुचन के कारण विनिर्माण के लिए क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) मार्च में 51.8 से घटकर अप्रैल में अपने न्यूनतम स्तर 27.4 पर आ गया। सेवाओं के लिए पीएमआई मार्च में 49.3 से अप्रैल में प्रभावी रूप से 5.4 के एक अभूतपूर्व स्तर तक गिर गया, जिसका मुख्य कारण व्यावसायिक गतिविधि, नए व्यापार के आदेश और नए निर्यात व्यापार में गिरावट है। विदेशी पर्यटकों के आगमन, रेलवे माल यातायात, और वाणिज्यिक वाहन बिक्री सहित उपरोक्त (यात्री वाहन बिक्री, घरेलू यात्री हवाई यातायात) के अलावा सेवा क्षेत्र के उच्च आवृत्ति संकेतक मार्च / अप्रैल में संकुचित हुए।

45. सौभाग्य से, पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 10 मई 2020 तक चावल, दलहन, मोटे अनाज और तिलहन सहित ग्रीष्म कालीन फसलों के तहत कृषि क्षेत्र के साथ कृषि में संवृद्धि 43.7 प्रतिशत तक हुई है। इसके अलावा, 2019-20 के लिए फसल उत्पादन के तीसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, 2019-20 में खाद्यान्न (खरीफ और रबी) का उत्पादन पिछले वर्ष के अंतिम अनुमान से 3.7 प्रतिशत अधिक है।

46. आरबीआई द्वारा मई 2020 में किए गए उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण में भी एक गंभीर तस्वीर दिखाई गयी है, जिसमें दिखाया गया है कि समग्र वर्तमान स्थिति सूचकांक का गिरावट एतिहासिक है, जबकि भविष्य का अनुमान सूचकांक वर्ष के लिए उच्च निराशावाद को दर्शाता है। इस प्रकार, उपभोक्ता मनोभाव में अगाध रूप से निम्न स्तरीय गिरावट आयी है।

47. वैश्विक स्तर पर, वैश्विक विनिर्माण पीएमआई अप्रैल 2020 में ग्यारह साल के निचले स्तर तक गिर गया, जबकि वैश्विक सेवा पीएमआई में तेजी से रिकॉर्ड गिरावट आई। तदनुसार, भारत के माल का निर्यात और आयात में रिकॉर्ड संकुचन हुआ, जिसमें अप्रैल 2020 में निर्यात में 60.3 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि आयात 58.6 प्रतिशत घट गया।

48. इस प्रकार आर्थिक स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। जबकि COVID-19 महामारी एक मानवीय और स्वास्थ्य संकट है, संबंधित लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों में गिरावट को जन्म दिया है, जो एक निकट ठहराव में आ गया है। कृषि क्षेत्र के अलावा, आर्थिक गतिविधियां लॉकडाउन हटने के बाद भी सामाजिक अलगाव और श्रमिकों के अपने मूल स्थानों पर प्रवास के परिणामस्वरूप श्रमिक की कमी के कारण सुस्त बनी रह सकती हैं। वास्तव में, वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी वृद्धि नकारात्मक क्षेत्र में रहने की उम्मीद है, जिसे वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में कुछ राहत मिलेगी। इस प्रकार आर्थिक गतिविधि की बहाली महामारी को रोकने की गति है,जो भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था कितनी जल्‍दी खुल जाती है और कितनी जल्‍दी बाधित आपूर्ति ठीक होकर मांग पुनर्जीवित हो जाती है इस पर निर्भर करती है। यह राजकोषीय, मौद्रिक, सामाजिक और प्रशासनिक उपायों के संयुक्त प्रोत्साहन प्रभाव पर भी निर्भर करेगा जो संकट में जीवित रहने के लिए अनुकूल परिस्थितियों को बनाने के साथ-साथ विकास में पुनरुद्धार के लिए कार्यान्वित किया गया है। समय के साथ, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और पूंजीगत व्यय के लिए सरकारी व्यय में कतिपय पुन: प्राथमिकता (reprioritisation) भी वांछनीय हो सकती है।

49. सरकार ने अन्य उपायों के बीच, ग्रामीण रोजगार सृजन, बुनियादी ढांचा निर्माण, एमएसएमई क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने और एक सक्षम कारोबारी माहौल के निर्माण के लिए पांच चरणों में एक व्यापक पैकेज की रूपरेखा तैयार की है। पैकेज में समाज के गरीब वर्गों और संसाधन में कमी वाले राज्य सरकारों के लिए उधार सीमा बढ़ाकर राहत के उपाय भी शामिल किए गए हैं। उपायों में कई प्रमुख संरचनात्मक सुधार शामिल हैं, जो प्रकृति में अधिक दीर्घकालिक हैं।

50. भारतीय रिजर्व बैंक ने पारंपरिक मौद्रिक नीति उपायों के साथ-साथ अपरंपरागत मौद्रिक नीति साधनों का उपयोग किया है जो कि वित्तीय परिस्थितियों को आसान बनाने और अर्थव्यवस्था में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए पारंपरिक उपायों के अनुपूरक है। इसने अर्थव्यवस्था में चलनिधि, मौद्रिक संचरण और ऋण प्रवाह में सुधार के लिए कई उपाय किए हैं और ऋण सेवा पर राहत प्रदान की है।

51. COVID-19 महामारी से भारतीय अर्थव्यवस्था को झटका लगने से पहले, आर्थिक गतिविधि में मंदी के जवाब में फरवरी और अक्टूबर 2019 के बीच पॉलिसी रेपो दर पहले ही 135 आधार अंकों तक कम कर दी गई थी। महामारी के आगमन के बाद से, मार्च एमपीसी की बैठक में रेपो दर में 75 आधार अंकों की कटौती की गई, फरवरी 2019 और मार्च 2020 के बीच कुल 210 आधार अंकों की कटौती की गई। निधि आधारित उधार दर की सीमांत लागत (एमसीएलआर) में फरवरी 2019 और 15 मई 2020 के बीच एक वर्ष के मध्य में 90 आधार अंकों की गिरावट के साथ बैंकों की उधार दरों में मौद्रिक नीति संचरण में सुधार हुआ। फरवरी 2019 और मार्च 2020 के बीच नए रुपया ऋण में भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) में 114 आधार अंकों की गिरावट आई और केवल मार्च में ही 43 आधार अंकों की गिरावट आई।

52. संकट की गंभीरता और गहनता को देखते हुए, महामारी का समष्टि आर्थिक प्रभाव शुरुआत में लगाए गए अनुमान की तुलना में अधिक गंभीर हो रहा है। इस प्रकार, विकास को पुनर्जीवित करने और COVID-19 के आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए, वित्तीय स्थितियों को और अधिक सुगम बनाना महत्वपूर्ण है। तदनुसार, मैं पॉलिसी दर में 40 आधार अंकों की कटौती करने के लिए वोट करती हूं। इससे फरवरी 2019 (20 मई तक) में शुरू होने वाले सहज चक्र में कटौती के परिमाण सहित अभी तक 250 आधार अंक की कटौती की जा चुकी है जबकि COVID-19 महामारी के प्रसार के प्रारंभ से लेकर अभी तक 115 आधार अंक तक की नीति दर में कुल कटौती की जायेगी। अनिश्चितता और आर्थिक गतिविधियों में अचलता के करीब के वर्तमान परिदृश्य में, इससे ऋण लेने में तत्काल वृद्धि नहीं हो सकती है, लेकिन आगे जाकर उपभोक्ता विश्वास और निवेशक मनोभाव को बढ़ावा मिलेगा। मैं यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे विकास को पुनर्जीवित करने के लिए जब तक आवश्यक हो निभावकारी रुख को बनाए रखने के लिए मतदान करती हूं।

डॉ.रवींद्र एच.ढोलकिया का वक्तव्य

53. भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले भौगोलिक क्षेत्रों के एक प्रमुख हिस्से में निरंतर लॉकडाउन और COVID -19 के कारण वैश्विक आर्थिक स्थिति बिगड़ने से अब 2020-21 के दौरान भारत में वास्तविक जीडीपी वृद्धि पिछले 40 वर्षों में पहली बार एक अलग संभावित नकारात्मक क्षेत्र में है। यहां तक ​​कि सांकेतिक जीडीपी वृद्धि नकारात्मक क्षेत्र में फिसल सकती है। यहां पर मंदी के सभी लक्षण हैं- समग्र मांग में गिरावट, नकारात्मक वास्तविक विकास और उच्च बेरोजगारी। सरकार ने घोषणाओं की श्रृंखला के माध्यम से एक प्रमुख राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान किया है। ऐसी परिस्थितियों में मौद्रिक नीति की भूमिका अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व संकट से बाहर लाने के लिए राजकोषीय प्रयासों के अनुपूरक और समर्थक की होनी चाहिए। इस बैठक में, पॉलिसी रेट में कटौती के सभी अवसरों को समाप्त किए बिना, मैं पॉलिसी रेपो रेट में 40 बीपीएस कटौती और उदार रुख बनाए रखने के लिए वोट करता हूं। मेरे वोट के लिए अधिक विशिष्ट कारण इस प्रकार हैं –

  1. लॉकडाउन के तहत, उपभोक्ता मुद्रास्फीति मापन और परिवार मुद्रास्फीति प्रत्याशा का सर्वेक्षण काफी समस्याग्रस्त होने की संभावना है। नमूनों को कम कर दिया जाएगा और अवांछनीय पूर्वाग्रह अनुमानों को अविश्वसनीय और अयोग्य बना सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, मुझे लगता है, मॉडल आधारित पूर्वानुमान एक बेहतर मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं। बहुत सर्तकता से किया गया पूर्वानुमान अभ्यास 2020-21 की चौथी तिमाही के लिए 2.8 प्रतिशत के आसपास हेडलाईन सीपीआई मुद्रास्फीति का अनुमान प्रदान करता है। अनिश्चितताओं के लिए भी, एक बहुत ही रूढ़िवादी अनुमान 3.1-3.2 प्रतिशत के रूप में लिया जा सकता है। इसलिए, 4 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर बढ़ती मुद्रास्फीति से अभी नीति के लिए कोई चिंता का कारण नहीं लगता है।

  2. यद्यपि अधिकांश अन्य तुलनिय देशों में वास्तविक नीति दर शून्य या नकारात्मक है, भारत में यह न केवल सकारात्मक है, बल्कि लगभग 1.2 से 1.6 प्रतिशत तक बहुत अधिक है। मेरा मानना ​​है कि वास्तविक नीतिगत दर को सकारात्मक बनाए रखने की जरूरत है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में इतना अधिक नहीं।

  3. केंद्र सरकार द्वारा कई किस्तों में दिए गए राजकोषीय प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप राजकोषीय घाटे के जीडीपी अनुपात में केवल 150 बीपीएस की कमी आने की संभावना है। इसी तरह, सभी राज्य मिलकर अपने वित्तीय घाटे को जीडीपी अनुपात में लगभग 150 बीपीएस तक बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार, जीडीपी अनुपात में संयुक्त राजकोषीय घाटे पर प्रभाव लगभग 300 बीपीएस तक सीमित हो सकता है, जो मेरी राय में इस तरह की चरम परिस्थितियों में काफी विवेकपूर्ण है। यह मुद्रास्फीति नहीं हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप वृद्धि में बढ़ोतरी की जा सकती है।

  4. एक बार जब स्थिति सामान्य हो जाएगी और राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन देने वाले उपाय प्रभाव पैदा करने लगेंगे, मेरी राय में उबरने वाली अर्थव्यवस्था को कुछ और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता हो सकती है। यह विवेकपूर्ण होगा कि भविष्य के लिए कुछ स्थान संरक्षित किया जाए।

54. इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, मैं पॉलिसी रेपो दर में 40 बीपीएस की कमी और उदार रुख को बनाए रखने के लिए वोट करता हूं।

डॉ. जनक राज का वक्तव्य

55. आर्थिक गतिविधि पर COVID -19 का प्रभाव शुरुआती अपेक्षा से बहुत अधिक तीव्र हो गया जिसके कारण 3 सप्ताह के देशव्यापी लॉकडाउन को 9 सप्ताह तक बढ़ाया गया। यहां अभी भी अनिश्चितता है कि महामारी विज्ञान वक्र कब समतल होगा और यह कुछ और समय के लिए समष्टी-आर्थिक असंभावनाओं को अस्पष्ट रखना जारी रखेगा। जैसा कि, हम वर्तमान तिमाही में भारी नकारात्मक वृद्धि और संपूर्ण रूप से वर्ष के लिए समग्र नकारात्मक वृद्धि को देख रहे हैं। अर्थव्यवस्था की मांग और आपूर्ति दोनों पक्ष ढह गए हैं। हालांकि, मेरा मानना ​​है कि मांग की तुलना में आपूर्ति बहुत तेजी से ठीक होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की क्षमता बहुत बड़ी है और बरकरार है, हालांकि श्रमिकों की अनुपलब्धता अस्थायी रूप से कुछ महीनों के लिए उत्पादन में बाधा बन सकती है। हालांकि, दूसरी ओर मांग में काफी कमी आई है। लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में दैनिक मजदूर / दिहाड़ी मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। हालांकि बेरोजगार कार्यबल के एक हिस्से को फिर से काम मिल जाएगा, फिर भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें बहुत नुकसान हुआ हैं और इन क्षेत्रों में काम करने वाले कई लोग स्थायी रूप से अपनी नौकरी खो चुके हैं। इससे निजी उपभोग पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसके अलावा, उपभोक्ता का विश्वास भी कमजोर हो गया है और विवेकाधीन खर्च में उपभोक्ताओं द्वारा कटौती की संभावना है।

56. कुल मांग के भीतर, जबकि निजी खपत में पूर्व- COVID-19 स्तर से मंदी की संभावना है, निवेश मांग की मुझे अधिक चिंता है, जो कई कारणों से गंभीर रूप से प्रभावित होने की संभावना है। पहले, मांग में गिरावट को देखते हुए, कई क्षेत्रों में क्षमता से अधिक बनने की संभावना है। इसके घरेलू और बाहरी दोनों में भविष्य की मांग के बारे में बड़ी अनिश्चितता के साथ मिलकर, निजी क्षेत्र में नए निवेश को बाधित करने की संभावना है। दूसरा, निवेश गतिविधि का वित्तपोषण - लाभप्रदता में गिरावट के कारण या कमजोर बैलेंस शीट के कारण उधार लेने से - अपने आप में एक चुनौती भी होगी। तीसरा, केंद्र और राज्यों दोनों द्वारा सरकारी व्यय का फोकस, पूंजीगत व्यय की तुलना में राजस्व व्यय पर भी होगा। इन सभी कारणों से, निवेश गतिविधि, जो पिछली दो तिमाहियों में संकुचित थी, के आगे चलकर गंभीर रूप से प्रभावित होने की उम्मीद है।

57. मुद्रास्फीति की बात करते हुए एनएसओ ने अप्रैल 2020 के लिए केवल खाद्य और आवास समूहों पर डेटा जारी किया है। खाद्य मुद्रास्फीति मार्च के 7.8 प्रतिशत से बढ़कर अप्रैल में 8.6 प्रतिशत हो गई। हालांकि, इन आकडों की सावधानी के साथ व्याख्या करने की आवश्यकता है क्योंकि अप्रैल में खाद्य कीमतों में वृद्धि आपूर्ति लाइनों में व्यवधान के कारण हुई और यह अल्पकालिक है। अप्रैल में खाद्य के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति और डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति के बीच की खाई तेजी से 500 से अधिक बीपीएस तक बढ़ गई। जबकि अप्रैल में सीपीआई खाद्य मुद्रास्फीति 80 बीपीएस के करीब बढ़ गई थी, डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में 5.5 प्रतिशत से 3.6 प्रतिशत तक 190 बीपीएस की गिरावट हुई, जो आपूर्ति की बाधाओं के कारण खुदरा स्तर पर मार्जिन में वृद्धि का संकेत देती है। मानसून सामान्य होगा, जैसाकि पूर्वानुमान लगाया गया है, इसका खाद्य मुद्रास्फीति पर भी लाभदायक प्रभाव होना चाहिए। इसलिए, मुझे लगता है कि दाल के अलावा अन्य खाद्य मुद्रास्फीति के जोखिम इस स्तर पर कम से कम हैं और मई / जून से समग्र खाद्य मुद्रास्फीति के डाउनवर्ड प्रक्षेपवक्र की ओर बढ़ने की उम्मीद है।

58. हालांकि सीपीआई ईंधन मुद्रास्फीति का प्रिंट अप्रैल के लिए उपलब्ध नहीं था, लेकिन तेल बाजार कंपनियों के आंकड़ों से पता चलता है कि वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण घरेलू एलपीजी और केरोसिन के दाम अप्रैल में गिर गए।

59. अंत में, हमारे पास अप्रैल के लिए भी कोर मुद्रास्फीति (भोजन और ईंधन को छोड़कर) प्रिंट नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को पेट्रोल और डीजल के घरेलू पंप कीमतों पर पारित नहीं किया गया है। हालांकि यह घरेलू पंप की कीमतों को अंतरराष्ट्रीय कीमतों में किसी भी वृद्धि के लिए संवेदनशील बनाता है, वर्तमान मांग आपूर्ति संतुलन पर, तेल की कीमतें नरम रहने की संभावना है। घरेलू मांग में गिरावट को देखते हुए, मध्यम अवधि के दौरान कोर मुद्रास्फीति को मौजूदा स्तरों से काफी नरम होना चाहिए। वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में भारी गिरावट के कारण इनपुट लागत दबाव भी कम होने की संभावना है। मार्च-अप्रैल के दौरान आवास मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत से कम रहीं जो श्रृंखला में सबसे कम थी। सुरक्षा के मद्देनजर सोने की कीमतें स्थिर रहने की उम्मीद है। हालांकि, कोर मुद्रास्फीति अगले कुछ तिमाहियों में सौम्य रहने की उम्मीद है, फिर भी यहां पर V आकार में वसूली होने की उम्मीद है, अर्थव्यवस्था को अभी काफी सुस्त रहने दिया जाए ताकि कोर मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा जा सके।

60. संक्षेप मे, 2020-21 में आर्थिक गतिविधि में संकुचन की उम्मीद है। लॉकडाउन में ढील के कारण आपूर्ति लाइनें बहाल किए जाने की संभावना है, मांग को पूर्व-COVID ​​स्तरों पर पुनर्जीवित करने में अधिक समय लगेगा। यहां तक ​​कि सरकारी व्यय से कुछ सहायता प्रदान की जाएगी, निजी खपत में कमी के कारण समग्र खपत धीमा होने की संभावना है। हालांकि, निजी खपत से अधिक, निवेश की मांग जिसके इस अनिश्चित वातावरण में बहुत नुकसान होने की उम्मीद है और संभावित विकास के निहितार्थों के साथ निकट भविष्य में आर्थिक गतिविधियों पर बहुत भारी प्रभाव के साथ प्रभावित होने की संभावना है। इसलिए, निवेश की मांग को पुनर्जीवित करने के लिए ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। कुल मिलाकर, मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति सौम्य रहने की उम्मीद है। फरवरी 2019 से मौद्रिक नीति में काफी ढील दी गई है और सरकार ने कई उपाय भी किए हैं, जिससे कुल मांग पर COVID-19 के हानिकारक प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी। हालांकि, मांग में अभूतपूर्व गिरावट से वित्त पोषण की स्थिति को और आसान बनाना आवश्यक हो जाता है। आर्थिक गतिविधियों में संभावित संकुचन और मुद्रास्फीति संभावनओं में नरमी के साथ नीतिगत स्थान का पता चलता है। इसलिए, मैं 40 बेसिस प्वाईंट तक पॉलिसी रेपो दर को कम करने और यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे उदार रूख को तब तक बनाए रखने के लिए वोट देता हूं जब तक कि विकास को पुनर्जीवित करना आवश्यक है। मौद्रिक नीति के संचलन के साथ लंबे समय तक संचरण को देखते हुए, वित्तपोषण की स्थिति को सक्षम बनाना महत्वपूर्ण है ताकि सामान्य स्थिति बहाल होते ही आर्थिक गतिविधियों में तेजी आए। क्या उम्मीद के अनुसार मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र को बदल देना चाहिए, आगे जाकर कुछ और नीतिगत अवसर खुल सकते हैं। ऋण बाजार में मौद्रिक नीति कार्यों के पूरी तरह से संचारित होने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि बैंक अच्छी तरह से पूंजीकृत रहें। जब क्रेडिट मांग बढ़ती है, तो केवल मजबूत बैलेंस शीट वाले बैंकों से ही उधार गतिविधि को सहयोग करने की उम्मीद की जा सकती है।

डॉ. माइकल देबव्रत पात्र का वक्तव्य

61. मेरे विचार में, COVID-19 द्वारा आर्थिक गतिविधियों को खत्म करना और लॉकडाउन को लागू करना जीडीपी के अनुमानों / तथ्यों और अन्य बताए गए मैक्रोइकॉनॉमिक एग्रीगेट्स के अनुमानों की तुलना में बुनियादी आजीविका, आर्थिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास की हानि के संदर्भ में, बहुत अधिक हानिकारक है। भारत में, बाकी दुनिया की तरह, बाहरी व्यापार, निवेश, विनिर्माण, लोगों से जुड़ी सेवाएं - आतिथ्य, पर्यटन, विमानन और निर्माण - और निवेश सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। निजी खपत दृढ़ता से सकारात्मक क्षेत्र को पकड़े हुए हैं, लेकिन खर्च का पैटर्न विवेक से दूर और आवश्यकता के निकट बहुत हद तक बदल गया है। बड़े मौद्रिक प्रोत्साहन और राजकोषीय प्रयास समग्र मांग के तहत एक सहयोग बनाने के लिए प्रयासरत हैं। वर्तमान समय में, इस आशा के साथ हर संभव प्रयास को करने और करते रहने की आवश्यकता है कि जब जीवन सुरक्षित रहे, तब संसाधन, ऊर्जा और समय के साथ पुन:निर्माण और पुनरुद्धार किया जा सकता है।

62. वास्तव में, मेरा विचार है कि क्षति इतनी गहरी और व्यापक है कि भारत के संभावित उत्पादन को निचले स्तर पर धकेल दिया गया है और इसमें सुधार के लिए कई वर्ष लगेंगे।

63. एमपीसी के साथ विचार-विमर्श में, मेरा विचार है कि विकास के खतरों का आगे बढ़कर और आक्रामक रूप से समाधान करना होगा या अधिक गंभीर संभावनओं का जोखिम उठाना होगा।

64. इस बीच, लंबे समय तक लॉकडाउन ने आपूर्ति को अव्यवस्था में डाल दिया और मुद्रास्फीतिजो जनवरी 2020 के चरम पर पहुंच गई थी, को कम करने में बाधा डाली । समकालीन जानकारी से पता चलता है कि कई खाद्य पदार्थों, विशेषकर नाशवान खाद्य पदार्थों की कीमतों में आगे के समय में हेडलाइन मुद्रास्फीति के विकास के लिए अनुकूल निहितार्थ से गति सौम्य हो सकती है। इससे पता चलता है कि खाद्य मूल्य बढ़ोतरी में बहुत कम दृढ़ता और फैलाव है (अप्रैल 2020 को छोड़कर जब लॉकडाउन ने व्यापक प्रभाव डालना शुरू किया था) और नीतिगत उद्देश्यों के लिए इस पर विचार किया जा सकता है। लगातार आठ तिमाहियों से मौसमी रूप से समायोजित जीडीपी वृद्धि की गति का निरंतर नुकसान कोर मुद्रास्फीति की अंतर्निहित गति को कम कर रहा है और इसके निकट भविष्य में जारी रहने की संभावना है क्योंकि कुल मांग को पूर्व- COVID ​​स्तरों पर वापस आने में समय लगेगा।

65. सापेक्ष मूल्य बजट की कमी के भीतर समायोजित होते हैं। मौद्रिक नीति को निर्धारित करने के लिए, हालांकि, इसमें कीमतों का पूर्ण स्तर और उसकी संभावित गतिविधियां मायने रखती हैं। यह कुल मांग का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करता है। वास्तविक जीडीपी वृद्धि में गति के अप्रत्यक्ष नुकसान के अलावा, मौद्रिक स्थिति भी मांग की नाजुक स्थिति को दर्शा रही है। जबकि पहले दौर के सीआरआर इफ़ेक्ट के लिए आरक्षित नकदी एक साल पहले अपनी गति के संबंध में पर्याप्त रूप से विस्तारित हो रही है, यह अनिवार्य रूप से बड़े मौद्रिक प्रोत्साहन और नकदी के लिए जनता की मांग- 22 मई 2020 तक मुद्रा का प्रचलन वर्ष-दर-वर्ष 18.4 प्रतिशत तक बढ़ा जो एक वर्ष पहले 14.9 प्रतिशत था- को दर्शाता है । वर्तमान परिवेश में बैंक ऋण / निवेश के बजाय रिज़र्व बैंक के पास बहुत अधिक शेष राशि जमा कर रहे हैं, वह धन गुणक जिस पर इस आरक्षित धन का विस्तार धन आपूर्ति में होता है, को एलएएफ रिवर्स रेपो में शामिल करने के लिए समायोजित किया जाना चाहिए, जो अनिवार्य रूप से (प्रतिफल) अतिरिक्त भंडार है। इस समायोजन के साथ, धन गुणक अपने सामान्य स्तर 5.5 से प्रभावी रूप से लगभग 4.5 तक घट गया होगा। यह पैसे की आपूर्ति दर में दिखाई दे रहा है जो इसके लौकिक रुझान से कम हो गया है; वास्तव में, नकारात्मक मुद्रा अंतराल (इसके प्रवृत्ति दर को घटाकर मुद्रा आपूर्ति की वास्तविक दर) 2019-20 से खासकर दूसरी छमाही से, व्यापक हो गया है। बैंक ऋण और निवेश दोनों बहु-वर्षीय चढ़ाव को कम कर रहे हैं,जो बुरी तरह से मांग और जोखिम को कम करने की ओर इशारा करते हैं। दूसरी ओर, एक साल पहले की तुलना में बैंक डिपॉजिट तेजी से बढ़ रहे हैं, एहतियाती बचत वृत्ति के कारण इस अनिश्चितता के दौर में इसमें तेजी आ रही है। इस समय मंदी के पाश को तोड़ने के लिए विश्वास की कमी को दूर करने के लिए बैंकों को निवेश और उधार देने के लिए और लोगों को खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है।

66. यह इस संदर्भ में है कि मौद्रिक नीति की कार्रवाइयों और रुख पर ध्यान देना चाहिए। एमपीसी ने विकास को पुनर्जीवित करने और COVID-19 के पतन को कम करने के लिए इसे उदार बनाए रखने का निर्णय लिया है। इस रुख को ध्यान में रखते हुए, फरवरी 2020 से नीतिगत दर में 75 बेसिस प्वाईंट की कमी की गई, जब वायरस के प्रकोप की तुलना महामारी से की गई। विकास और मुद्रास्फीति के विकसित विन्यास में, मौद्रिक नीति परिवारों और व्यवसायों के बीच विश्वास को प्रेरित कर सकती है ताकि खर्च की तुलना में जमा करने की सार्वजनिक वरीयता और बैंकों की ऋण देने और निवेश करने की वरीयता के भंवर को तोड़ दिया जाए। गतिविधि के टूटे हुए क्षेत्रों में सुधार के साथ आगे बढ़ने के लिए, ग्रीन शुट्स को पोषित करना महत्वपूर्ण है - जो कृषि और संबद्ध गतिविधियों में दिखाई दे रहे हैं - ताकि वे जड़ जमाए और विकसित हों। ये विचार पिछले कार्यों को समर्थन देते हैं और उदार रुख के साथ दृढता से नीतिगत दर में एक और निर्णायक कमी करने का रुख करते हैं। केंद्रीय बैंकों का अनुभव यह रहा है कि मौद्रिक नीति सबसे अच्छा तब काम करती है जब वह नीतिगत कार्यों से सुदृढ़ होती है और वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने तक उसी दिशा में रुख करती है।

67. इन तरल और अनिश्चित समय में त्रुटि के मार्जिन के लिए अनुमति देने के पश्चात, वित्तीय स्थिरता के लिए दर में कमी के आकार के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, मुद्रास्फीति संभावनाओं द्वारा पता किए गए समय पर दर में कमी के आकार को नापने-तौलने की आवश्यकता है।

68. तदनुसार, जैसाकि हाल के दिनों में एमपीसी के संकल्प में परिलक्षित हुआ है, मैं मौद्रिक नीति के उदार रुख को बनाए रखते हुए नीतिगत दर में 40 बेसिस प्वाईंट की कमी के लिए वोट करता हूं।

श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य

69. घरेलू अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव शुरू में प्रत्याशित से कहीं अधिक गंभीर हो गया है। प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में लॉकडाउन ने दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है । अप्रैल डब्ल्यूईओ में आईएमएफ ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के 2020 में 3.0 प्रतिशत की तेजी से संकुचित होने का अनुमान लगाया था । 2020 की पहली तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े और प्रमुख उन्नत और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं से निकलने वाले हालिया उच्च आवृत्ति संकेतक, हालांकि, सुझाव देते हैं कि वैश्विक विकास में संकुचन और भी गहरा हो सकता है ।

70. COVID-19 महामारी के प्रसार को रोकने और मानव जीवन को बचाने के लिए लगाए गए दो महीने के लॉकडाउन से घरेलू आर्थिक गतिविधि बुरी तरह प्रभावित हुई है। मार्च-अप्रैल 2020 के लिए उच्च आवृत्ति संकेतक मांग में कमी के संकेत देते हैं। मार्च के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) द्वारा मापा गया औद्योगिक उत्पादन, जिसमें केवल सात दिन का राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन शामिल था, 16.7 प्रतिशत से संकुचित हुआ । यह संकुचन जिन क्षेत्रों में फैला हुआ था उनमें विनिर्माण क्षेत्र में 20.6 प्रतिशत और पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में 35.6 प्रतिशत की कमी आई। निजी खपत, जो घरेलू मांग का आधार रही है, उसमें मार्च 2020 में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में 33.1 प्रतिशत और गैर-टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में 16.2 प्रतिशत की गिरावट आई ।

71. अप्रैल के लिए उपलब्ध सीमित डेटा मांग में एक और सिकुड़न का संकेत देते हैं। अप्रैल 2020 में भारत के वस्तु व्यापार में गिरावट आई जो निर्यात में 60.3 प्रतिशत और आयात में 58.6 प्रतिशत रही। अप्रैल में रेलवे माल ढुलाई में 35.3 प्रतिशत की गिरावट आई, वहीं स्टील की खपत में 90.9 प्रतिशत की गिरावट आई। अप्रैल में पीएमआई विनिर्माण और पीएमआई सेवाएं क्रमश 27.4 और 5.4 के अभूतपूर्व स्तर पर आ गईं।

72. बैंक ऋण वृद्धि कमजोर मांग का संकेत दे रही है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के गैर-खाद्य ऋण में 8 मई 2020 को 6.5 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की वृद्धि हुई, जबकि एक साल पहले यह 13.0 प्रतिशत थी। 2020-21 के दौरान अब तक (8 मई 2020 तक) हालांकि, वाणिज्यिक पत्रों, शेयर, बांड और डिबेंचर में बैंकों के निवेश में 66,757 करोड़ की वृद्धि हुई, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 8,822 करोड़ की गिरावट आई, जो रिजर्व बैंक के लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ) के प्रभाव को दर्शाती है।

73. केवल आशा की किरन कृषि क्षेत्र रहा है - गर्मियों में बुवाई अच्छी चल रही है। 10 मई 2020 तक देश में सभी फसलों की गर्मियों की बुवाई 43.7 प्रतिशत (चावल के लिए 37.9 प्रतिशत, दलहन के लिए 74.8 प्रतिशत और तिलहन के लिए 29.3 प्रतिशत) रही जो पिछले वर्ष के एकडों की तुलना में बहुत अधिक थी। रबी की फसल लगभग तैयार हो चुकी है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा सामान्य मानसून का पूर्वानुमान कृषि उत्पादन और कृषि आय के लिए अच्छा शुभ संकेत है ।

74. मुद्रास्फीति पर, अप्रैल 2020 के लिए हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण उपलब्ध नहीं हुआ। जिन प्रमुख समूहों के लिए सूचकांक जारी किए गए थे, उनमें खाद्य उपसमूहों में मुद्रास्फीति में व्यापक वृद्धि के कारण खाद्य समूह मुद्रास्फीति में अप्रैल 2020 में (पिछले महीने के 7.8 प्रतिशत से 8.6 प्रतिशत तक) वृद्धि हुई ।

75. रिजर्व बैंक नकदी का सक्रिय प्रबंधन कर रहा है। 6 फरवरी 2020 के एमपीसी के बयान के बाद से रिजर्व बैंक ने 9.42 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 4.6 प्रतिशत) से तरलता बढ़ाने के उपायों की घोषणा की है। जब दर कटौती का वर्तमान चक्र शुरू हुआ, तब फरवरी 2019 में 114 बीपीएस से मार्च में नए रुपये ऋणों पर भारित औसत ऋण दर (डब्ल्यूएएलआर) में 43 बीपीएस की गिरावट के साथ मौद्रिक संचरण में सुधार जारी है ।

76. आगे देखते हुए, विकास दृष्टिकोण तेजी से खराब हो गया है। अभी भी अनिश्चितता है कि COVID वक्र कब समतल होगा । यहां तक कि आपूर्ति पक्ष में धीरे से सुधार होने की उम्मीद है क्योंकि लॉकडाउन से संबंधित प्रतिबंधों को चरणबद्ध रूप से समाप्त किया जा रहा है, यह मांग पक्ष है, जो आने वाले कुछ समय के लिए आर्थिक गतिविधियों को मजबूती से प्रभावित करना जारी रखेगा । मांग सृजन पर सरकार द्वारा घोषित राजकोषीय और आकस्मिक देयता उपायों के प्रभाव को सावधानीपूर्वक देखने की आवश्यकता है । विभिन्न सुधार उपायों के त्वरित कार्यान्वयन मध्यम से दीर्घावधि में भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास के आवेगों को ला सकते हैं। हालांकि, हाल की अवधि में किए गए विभिन्न राजकोषीय, मौद्रिक और तरलता उपायों के कारण 2020-21 की दूसरी छमाही में धीरे से उबरने से पहले वर्ष की पहली छमाही में आर्थिक गतिविधि के संकुचित हो जाने की उम्मीद है । कुल मिलाकर 2020-21 में जीडीपी ग्रोथ नकारात्मक क्षेत्र में रहने का अनुमान है। सुधार की गति महामारी की रोकथाम पर और कितनी जल्दी सोशल डिस्टेंसिंग/लॉकडाउन उपायों को चरणबद्ध रूप से समाप्त कर दिया जाता है इस बात पर निर्भर होगी।

77. सीपीआई के बारे में पूरी जानकारी के अभाव में महंगाई के दृष्टिकोण का आकलन करना चुनौतीपूर्ण हो गया है। आने वाले महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आने की संभावना है क्योंकि परिवहन बाधाएं कम होंगी और आपूर्ति लाइनों में सुविधा मिलेगी । उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा जारी 22 आवश्यक वस्तुओं के आंकड़ों से भी इसकी पुष्टि होती है, जिससे पता चलता है कि इस महीने में अप्रैल के स्तर से अब तक कई खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट आई है । मांग में मंदी के कारण कोर वस्तुओं और सेवाओं में कीमतों के दबाव में भी काफी आसानी होने की संभावना है । मजबूत अनुकूल आधार प्रभावों की उपस्थिति में कमजोर मांग की स्थिति के परिणामस्वरूप हेडलाइन मुद्रास्फीति 2020-21 की तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान लक्ष्य दर से नीचे गिर सकती है ।

78. 27 मार्च, 2020 को एमपीसी की पिछली ऑफ-साइकिल बैठक के बाद से समष्टि-आर्थिक स्थितियां तेजी से खराब हुई हैं। विकास और मुद्रास्फीति के बीच तेजी से विकसित हो रहे समंजन ने वृहद आर्थिक दृष्टिकोण के आकलन को तेज करने की और तेजी से बदलती अंतर्निहित आर्थिक और वित्तीय स्थितियों को संबोधित करने के लिए पहले से ही कार्य करने की तैयारी में रहने की और आगे के रास्ते के लिए अनुमानों को निर्धारित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया में दो सप्ताह के समय की देरी, द्वि-मासिक एमपीसी बैठक की समय-सारणी के लिए इंतज़ार करना महंगा और अपरिवर्तनीय हो सकता है। वास्तव में मौद्रिक नीति कार्रवाई में इस तरह की देरी संभवतः बिगड़ते विकास दृष्टिकोण के लिए जोखिम का एक स्रोत बन सकता है। मौद्रिक नीति सार्वजनिक नीति का एक तेजी से तैनात किया जानेवाला साधन है और उसे मौद्रिक प्राधिकरणों, मौजूदा वृहद आर्थिक स्थितियों के पूर्वद्रष्टा आकलन से आगाह करनेवाला और फुर्तीला होना चाहिए। इस संदर्भ में एमपीसी की निर्धारित दूसरी द्विमासिक बैठक 3 से 5 जून 2020 के स्थानपर 20 से 22 मई 2020 के दौरान समय-पूर्व आयोजित की गई।

79. जैसा कि पूर्वगामी पैराग्राफ में बताया गया है विकास के लिए जोखिम मार्च 2020 के अंत में हमारे आकलन की तुलना में कहीं अधिक गंभीर हो गए हैं। यह उम्मीद की जाती है कि इस निदान को अगले कुछ महीनों में स्पष्ट आंकड़ों के साथ स्वीकृत किया जाएगा यहां तक कि समग्र दृष्टिकोण अत्यधिक अनिश्चित बना हुआ है। इस स्तर पर मौद्रिक नीति के लिए प्रमुख चुनौती घरेलू मांग को पुनर्जीवित करना है ताकि अल्पावधि में आय और रोजगार पर कोई हानिकारक प्रभाव न पड़े और मध्यम अवधि में संभावित वृद्धि हो सके। घरेलू मांग को मजबूत करने के लिए उपभोक्ता और कारोबारी विश्वास को पुनर्जीवित करना जरूरी है। सरकार पहले ही अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करने और समाज के कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा के लिए कई उपायों की घोषणा कर चुकी है। रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित करने के लिए तरलता का भी सक्रिय प्रबंधन कर रहा है कि अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक क्षेत्रों में धन का प्रवाह बना रहे। रिजर्व बैंक घरेलू मांग को पुनर्जीवित करने के लिए धन/पूंजी की लागत को कम करने के लिए मौद्रिक नीति को भी आसान बना रहा है। हालांकि जब राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन उठाया जा रहा है, इन सभी उपायों द्वारा मांग का समर्थन करने में मदद मिलनी चाहिए, लेकिन मांग में पतन की भयावहता को देखते हुए, खपत को पुनर्जीवित करने और निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए आगे वित्तपोषण की स्थिति को सुलभ करने के लिए पूर्ण गला घोंटू स्थिति में भी आगे बढ़ने की जरूरत है। चूंकि बैंक खपत और निवेश के वित्तपोषण में प्रमुख खिलाड़ी हैं, इसलिए यह भी जरूरी है कि वे पर्याप्त रूप से पूंजीकृत रहें। 2020-21 की दूसरी छमाही के लिए निकट अवधि में विकास की गति के तेज नुकसान की बढ़ती संभावना के साथ मिलकर सौम्य मुद्रास्फीति दृष्टिकोण की उम्मीद ने वित्तीय स्थितियों को आसान करने और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए हमें और अधिक नीति अवसर प्रदान किया है। COVID-19 के प्रकोप के बाद से, एमपीसी ने पहली पंक्ति में आकर अपने कार्यों को संपन्न करने के लिए मतदान किया है । बिगड़ते दृष्टिकोण को देखते हुए अंतर्निहित परिस्थितियों द्वारा प्रदान किए गए अवसर के साथ मिलकर इन कार्यों को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।

80. नीतिगत अवसर के परिमाण का आकलन करने में कमजोर विकास की गति, कम जोखिम भरे मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण को देखते हुए विकास को प्राथमिकता देने की आवश्यकता और सुधार के सामने सौम्य वित्तीय स्थितियों को आश्वस्त करने की आवश्यकता को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है ताकि विश्वास निरंतर हो सके । इन सभी कारकों पर विचार करते हुए नीतिगत दर में 40 आधार अंकों की कमी उचित होगी । तदनुसार मैं पॉलिसी रेपो रेट को 4.4 प्रतिशत से घटाकर 4.0 प्रतिशत करने के लिए मतदान करता हूं। मैं मौद्रिक नीति के उदार रुख को बनाए रखने के लिए भी मतदान करता हूं । भारतीय रिजर्व बैंक सतर्क है और व्यापक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और मुद्रास्फीति लक्ष्य का पालन करते हुए वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए अपने टूलकिट में से किसी भी पारंपरिक और अपरंपरागत साधन का उपयोग करने में संकोच नहीं करेगा ।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2019-2020/2459


1 अखिल भारतीय हेडलाइन सीपीआई को लॉकडाउन के कारण गैर-खाद्य पदार्थों में सीमित लेनदेन के मद्देनजर अप्रैल 2020 के लिए जारी नहीं किया गया था; आंकड़े केवल खाद्य और आवास समूहों के लिए जारी किए गए थे।

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