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गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियां

यद्यपि यह भूमिका हमारी गतिविधियों का एक ऐसा पहलू है, जिसके संबंध में स्‍पष्‍ट रूप से कहीं उल्‍लेख तो नहीं है, किंतु अति महत्‍वपूर्ण गतिविधियों की श्रेणी में इसकी गिनती की जाती है। इसके अंतर्गत अर्थव्‍यवस्‍था के उत्‍पादक क्षेत्रों को ऋण उपलब्‍धता सुनिश्चित करना, देश की वित्‍तीय मूलभूत संरचना के निर्माण हेतु संस्‍थाओं की स्‍थापना करना, किफायती वित्‍तीय सेवाओं की सुलभता बढ़ाना तथा वित्‍तीय शिक्षण एवं साक्षरता को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं।

प्रेस प्रकाशनी


भारतीय रिज़र्व बैंक ने आवास वित्त प्रतिभूतिकरण बाजार के विकास पर समिति की रिपोर्ट जारी की

9 सितंबर 2019

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आवास वित्त प्रतिभूतिकरण बाजार के विकास पर समिति की रिपोर्ट जारी की

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 29 मई 2019 को आवास वित्त प्रतिभूतिकरण बाजार के विकास पर समिति का गठन किया था, जिसके अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन, वरिष्ठ सलाहकार, बैन एंड कंपनी थे। समिति की स्थापना बैंकों के साथ-साथ गैर-बैंक बंधक प्रवर्तकों के बैलेंस शीट में ऋण और चलनिधि जोखिम के बेहतर प्रबंधन के लिए अच्छी तरह से कार्य करने वाले प्रतिभूतिकरण बाजारों की भूमिका को मान्यता देने के लिए की गई थी। समिति का कार्यक्षेत्र था भारत में बंधक प्रतिभूतिकरण बाजार की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करना और प्रवर्तकों / निवेशकों के साथ-साथ बाजार के माइक्रोस्ट्रक्चर से संबंधित विभिन्न मुद्दों के समाधान के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करना । समिति ने अब अपनी रिपोर्ट गवर्नर को सौंप दी है। समिति की प्रमुख सिफारिशें, दक्षता बढ़ाने और लेनदेन की पारदर्शिता के व्यापक परिप्रेक्ष्य द्वारा निर्देशित हैं जो निम्नानुसार हैं:

  1. बाजार निर्माण और मानक स्थापित करने के लिए, राष्ट्रीय आवास बैंक के माध्यम से एक सरकार प्रायोजित मध्यस्थ की स्थापना;

  2. डेटा संग्रह और एकत्रीकरण के लिए मानकीकृत स्वरूपों सहित ऋण उत्पत्ति, ऋण सर्विसिंग, ऋण प्रलेखन और ऋण के लिए मानक विकसित करना;

  3. प्रत्यक्ष असाइनमेंट लेन-देन और पास-थ्रू प्रमाणपत्र में शामिल लेन-देन के साथ ही साथ बंधक समर्थित प्रतिभूतियों (एमबीएस) और परिसंपत्ति समर्थित प्रतिभूतियों (एबीएस) के लिए विनियामक दिशानिर्देशों को अलग-अलग करना;

  4. एमबीएस के लिए न्यूनतम होल्डिंग अवधि (एमएचपी) और न्यूनतम प्रतिधारण आवश्यकता (एमआरआर) के लिए विनियामक मानदंडों में छूट;

  5. पंजीकरण और स्टांप शुल्क आवश्यकताओं के लिए संशोधन और स्पष्टीकरण और प्रतिभूतिकरण के लिए लेनदेन की लागत को कम करने साथ ही पास-थ्रू प्रतिभूतियों में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कर दिशा-निर्देश;

  6. वित्तीय फर्मों के लिए दिवाला कानून के तहत ऋण शोधन के लिए दिवालियापन को नियंत्रित करने के लिए ऋण संवर्धन के रूप में किसी भी प्रतिभूतिकरण लेनदेन के साथ-साथ किसी भी जोखिम को अंतर्निहित परिसंपत्तियों के रूप में मानना; और,

  7. निवेशकों के रूप में अपने-अपने विनियमित संस्थाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय क्षेत्र नियामकों द्वारा जारी नियमों में परिवर्तन ।

हितधारकों और जनता की प्रतिक्रिया के लिए रिपोर्ट आज रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखी गई है। रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया 30 सितंबर 2019 तक ईमेल के माध्यम से भेजी जा सकती हैं।

योगेश दयाल  
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2019-2020/651

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